बया का घोंसला हम सभी ने देखा है कि कितने बढ़िया तरीके से बनाती है. उस में गर्मी से, सर्दी से, बरसात से सब से बचने का इंतजाम होता है.
एक बार जाड़े की बरसात के दौरान एक बया अपने घोसले से बाहर निकली तो क्या देखती है कि एक बंदर पेड़ की डाल पर बैठा वरिश में भीग कर थरथर काँप रहा है. उसे बंदर की हालत पर दया भी आई और उसकी नासमझी पर गुस्सा भी.
उसने बंदर से कहा – भैया! तुमने अपने लिए घर क्यों नहीं बनाया. बंदर इस बात से चिढ़ गया और बोला, तुझे क्या मतलब मैं कैसे भी रहूं. लेकिन बयां नहीं मानी, उसने फिर से बंदर को नसीहत देने की कोशिश की – मानुष जैसे हाथ पांव हैं, मानुष जैसी काया, चार महीने वर्षा बीती, छप्पर क्यों नहीं छाया.
बंदर गुस्से में उस पर झपटा. बया ने उड़ कर अपनी जान तो बचा ली पर बंदर ने खिसिया कर उस का घर तोड़ दिया.
इसी पर कहावत बनी है – सीख उसी को दीजिए, जा को सीख सुहाए, सीख जो दीन्ही बांदरा, चिड़िया का घर जाए.