केशव दास हिंदी के आरंभिक कवियों में से एक हैं जोकि बहुत सौन्दर्य प्रेमी थे. उन के बाल जल्दी सफेद हो गये थे. एक बार कुछ सुंदर स्त्रियों ने उनके बाल देख कर उन्हें बाबा कह कर सम्बोधित किया तो उन्होंने यह कविता कही – बालों ने वह किया जो शत्रु भी नहीं करेगा. मीठी बोली और हिरनी जैसी आँखों वाली बाबा कह कर जा रही हैं.
केसव केसन अस करी, जो अरिहू न कराहिं, मधुर वचन मृग लोचनी, बाबा कहि कहि जाहिं
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Jun