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पंख देख के नाचे मोर, पैर देख के रोये. मोर अपने सुंदर पंखों को देख कर बहुत खुश होता है लेकिन बद्सूरत पैरों को देख कर रोता है. हम सब को यह जानना आवश्यक है कि कोई भी व्यक्ति सम्पूर्ण नहीं हो सकता.

पंखे से कोहरा नहीं छंटता. छोटे साधन से बहुत बड़ा कार्य सिद्ध नहीं किया जा सकता.

पंच और पसेरी कहीं बाँध के नहीं ले जाए जाते. न्याय करने वाले पंच उसी स्थान के होते हैं जहाँ पंचायत होनी हो, इसी प्रकार भारी बांट भी अपने साथ बाँध कर नहीं ले जाए जाते.

पंच कहें बिल्ली तो बिल्ली सही. पंचों की बात सब को माननी पड़ती है. किसी ने अपनी आँखों से देखा कि पडोसी के कुत्ते ने उसकी मुर्गी का शिकार किया, लेकिन यदि पंच कहते हैं कि जंगली बिल्ली ने किया है तो बिल्ली ने ही किया होगा.

पंच जहाँ परमेश्वर. कोर्ट कचहरी जा कर बर्बाद होने के मुकाबले यदि गाँव के लोग अपने बीच से ही पांच लोगों को पंच बना कर फैसला कर लें तो सभी का फायदा है. इसीलिए कहा गया है कि जहाँ आपसी समझ बूझ से झगड़े निबटाने की व्यवस्था है वहाँ परमेश्वर का वास है.

पंचों का कहना सर माथे, लेकिन परनाला यहीं गिरेगा. किन्हीं दो पड़ोसियों के बीच इस बात पर झगड़ा हो रहा है कि छत से आने वाला परनाला नीचे कहाँ खुलेगा. झगड़ा निबटाने के लिए पंचायत होती है और पंच कुछ फैसला देते हैं. लेकिन जो दबंग आदमी है वह कहता है कि मैं पंचों की बात जरूर मानूँगा लेकिन परनाला जहाँ मैं कह रहा हूँ वहीँ गिरेगा. किसी व्यक्ति द्वारा अपनी ही शर्त पर समझौता करने की जिद करना. 

पंचों का जूता और मेरा सिर. अगर मेरी बात गलत साबित हो तो पंच जो सजा दें मैं मानने को तैयार हूँ.

पंचों में परमेसर बोले. पंचों की वाणी को ईश्वर की वाणी माना गया है. इसलिए पञ्च पर भी बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वह अपने स्वार्थों से ऊपर उठ कर समुचित न्याय करे.

पंज ऐब शरई. चोरी, व्यभिचार, शराब, जुआ और झूठ, इस्लाम  में ये पाँचों ऐब वर्जित हैं. किसी व्यक्ति में ये सारे ऐब हों और अपने को सच्चा मुसलमान बताता हो, उस के लिए व्यंग्य. शरई – शरिया को मानने वाला.

पंडित और मसालची दोनों उल्टी रीत, और दिखावें रोशनी आप अँधेरे बीच. मशालची औरों को रोशनी दिखाता है पर खुद अँधेरे में रहता है. पंडित औरों को ज्ञान देता है पर खुद उस पर अमल नहीं करता.

पंडित की कथा कोरी बांच ले तो पंडित को कौन पूछे. कोरी – बुनकर. कोरी यदि कथा सुना ले और पूजा करा ले तो पंडित को कौन पूछेगा. कम्पाउंडर अगर इलाज कर ले तो डॉक्टर को कौन पूछेगा.

पंडित की बहू भद्रा ब्याहे. वर्ष के दिनों में कुछ समय भद्रा का प्रभाव होता है जिस में शुभ कार्य वर्जित होते हैं. पंडित जी जो सब को भद्रा का डर दिखा कर उगाही करते हैं उनके घर में भद्रा में पुत्र जन्म हो रहा है. 

पंडित केरा पोथड़ा ज्यों तीतर को ज्ञान, औरन सगुन बतात हैं, अपनों फंद न जान. तीतर का दिखाई पड़ना अच्छा शगुन माना जाता है, लेकिन तीतर को इस का ज्ञान नहीं होता. ऐसे ही पंडित अपने पोथे से औरों को मुहूर्त बताता है लेकिन अपने लिए मुहूर्त नहीं निकाल पाता.

पंडित जी गए दारू पीए तो भठिए में लग गई आग. (भोजपुरी कहावत) पंडित जी दारु पीने गए तो भट्ठी में ही आग लग गई. कलियुगी ब्राह्मणों का मजाक उड़ाने के लिए.

पंडित जी ने कौआ हग दिया. अफवाहों द्वारा बात का बतंगड बनना. सन्दर्भ कथा – अफवाहों द्वारा बात का बतंगड किस प्रकार बनता है, इस के पीछे एक कहानी कही जाती है. एक पंडित जी जंगल में शौच के लिए गए और एक पेड़ के नीचे बैठ कर शौच करने लगे. पेड़ के ऊपर एक कौआ बैठा था. पंडित जी मलत्याग कर के उठे तभी संयोग से कौए का एक बड़ा सा पंख उन के मल पर आ कर गिर गया. पंडित जी की नज़र मल पर पड़ी तो उस में कौए का पंख दिखाई दिया. पंडित जी को यह वहम हो गया कि यह पंख उन के पेट से निकला है. घर आ कर उन्होंने पंडितानी को यह बात बताई. आधी अधूरी बात एक कामवाली के कानों में पड़ी. उसने किसी दूसरे को बताई, दूसरे ने तीसरे को बताई. उड़ते उड़ते पूरे गाँव में यह बात फ़ैल गई कि पंडित जी ने कौआ हग दिया.

पंडित जी बैंगन वातल है, मुझे नहीं औरों को. पंडित लोग अपने फायदे के लिए उपदेशों को घुमा फिरा लेते हैं. एक पंडित जी बैंगन की बहुत सी बुराइयाँ बताया करते थे. किसी जजमान के घर गए तो वहाँ बढ़िया घी में तर बैंगन का भर्ता बना था. भोजन करने बैठे तो जजमान ने उन्हें भर्ता नहीं परोसा. कहा – पंडित जी आप कह रहे थे कि बैंगन वायु करता है. पंडित जी बोले – मुझे नहीं औरों को.

पंडित बांचें पोथी लेखा, कबिरा बांचें आँखों देखा. पंडित तो पोथी में लिखा हुआ पढ़ कर ज्ञान की बात करते हैं लेकिन कबीरदास आँखों से देख कर और अनुभव द्वारा प्राप्त ज्ञान की बात करते हैं. सही बात यही है कि पोथियों में लिखे ज्ञान के मुकाबले धरातल का व्यवहारिक ज्ञान अधिक महत्वपूर्ण है.

पंडित भूलें तो राह कैसे मिले. मार्ग दिखाने वाला ही मार्ग भूल जाए तो रास्ता कैसे मिलेगा.

पंडित से पूछो तो ग्रह, ओझा से पूछो तो डायन. पंडित से किसी संकट का कारण पूछो तो किसी ग्रह का दोष बताता है, ओझा से पूछो तो डायन का.

पंडित सोई जो गाल बजावा. गाल बजाना – अपनी प्रशंसा करना. जो पंडित अपने बारे में बढ़ चढ़ कर हांकता है, उसे ही लोग विद्वान समझते हैं.  

पंडित, सूर, सुजानवर, रूपवती तिय जान, जहाँ जहाँ ये पग धरें, वहाँ वहाँ सम्मान. विद्वान व्यक्ति, शूरवीर, बुद्धिमान व्यक्ति और रूपवती स्त्री का हर जगह सम्मान होता है.

पंद्रह बुलाए आये बीस, घर के मिल कर हो गए तीस. घर के किसी आयोजन में थोड़े लोग बुलाओ तब भी बहुत लोग हो जाते हैं.

पंसेरी में पांच सेर की भूल. पंसेरी माने पांच सेर. पांच सेर तोलने में दो चार छटांक की भूल हो जाए तो माफ़ की जा सकती है, लेकिन अगर पांच सेर की भूल हो तो कोई कैसे मान जाएगा. 

पंसेरी वाली भी दुह लेता है और पाव वाली भी. जो भ्रष्ट हाकिम अमीर गरीब सब से रिश्वत ले लेता हो. पंसेरी वाली – पांच सेर दूध देने वाली गाय, पाव वाली – पाव भर दूध देने वाली गाय.

पइसा के लाने सबरे करम करने परत. (भोजपुरी कहावत) पैसा कमाने के लिए सब कर्म करने पड़ते हैं.

पकाय सो खाय नहीं, खाय कोई और, दौड़े सो पाय नहीं, पाय कोई और. भाग्य के कारण जिसने पकाया उसे नहीं मिला किसी और को खाने को मिला. जिसने दौड़ भाग की उसे नहीं किसी और को लाभ हो गया.

पके आम का क्या ठीक, कब टपक जाए (पके आम टपकने का डर). अधिक वृद्ध और बीमार लोगों के लिए.

पके आम सुहावन, पके मर्द छिनावन. आम पक कर मीठा और आकर्षक हो जाता है जबकि पुरुष पक कर (वृद्ध हो कर) अप्रिय हो जाता है.

पके पे निम्बौली मिठात. अनुभवी होने के साथ व्यक्ति का स्वभाव मृदु होता जाता है.

पक्का होना चाहे तो पक्के के संग खेल, कच्ची सरसों पेर के खली होय न तेल. अगर आप किसी काम में दक्ष होना चाहते हैं तो अनुभवी व्यक्ति के साथ काम कीजिए, कोई खेल सीखना चाहते हैं तो अनुभवी खिलाड़ी के साथ खेलिए. बात को समझाने के लिए सरसों का उदाहरण दिया गया है. सरसों पक जाए तभी उसको पेरने से तेल और खली मिलती है कच्ची सरसों पेरने पर नहीं.

पक्के घड़े में जोड़ नहीं लगता. कच्चा घड़ा चटक जाए तो उस में जोड़ लगाया जा सकता है या टेढ़ा हो तो उसे सीधा किया जा सकता है लेकिन पक्के घड़े को न तो सीधा किया जा सकता है न ही उस में पैबंद लग सकता है. छोटे बच्चे के विचारों को प्रभावित किया जा सकता है, बड़े आदमी की मान्यताओं को नहीं.

पक्षे चोरी, पक्षे न्याय, पक्ष बिना सो मारो जाय. दुनिया में सब काम दूसरों के बल या तरफदारी से ही होते हैं.

पग पवित्र तीरथ गवन, कर पवित्र कछु दान, मुख पवित्र तब होत है, भज ले जब भगवान. पैर तभी पवित्र होते हैं जब आप उन से चल कर तीर्थ करने जाते हैं, हाथ दान देने से पवित्र होते हैं और मुख तब पवित्र होता है जब आप भगवान का नाम लेते हैं.

पग पूजे सिर कूटे. 1. पद या आयु में बड़ा व्यक्ति यदि निकृष्ट आचरण करे तो उस की भी धुनाई करो. 2. किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जो आप का आदर करने का दिखावा करे और आपको नुकसान पहुँचाए.

पग बिन कटे न पंथ. बिना पहला पग बढ़ाए रास्ता नहीं कटता है. अर्थात काम कितना भी बड़ा क्यों न हो जब तक आरम्भ ही न किया जाए, पूरा कैसे होगा.

पगड़ी की साख से घाघरी की साख ज्यादा प्यारी. जिसे कुल की साख से पत्नी और ससुराल अधिक प्यारी हो.

पगड़ी दोनों हाथों से संभाली जाती है. बहुत मेहनत से इज्जत बचाई जाती है.

पगड़ी रख, घी चख.  घी चखने का अर्थ है मौज उड़ाना. 1. मौज उड़ाओ लेकिन पगड़ी सम्भाल कर (अपने सम्मान पर ठेस मत आने दो). 2. सम्मान की परवाह मत करो, पगड़ी नीचे रखो और मौज उड़ाओ..

पगड़ी रहे या जाए, सर सलामत रहना चाहिए (पगड़ी गई ऐसी तैसी में, सिर तो बच गया). जहां इज्जत बचाने के चक्कर में जान जा रही हो वहाँ कुछ लोग तो कहते हैं कि जान जाए पर इज्ज़त न जाए. कुछ लोग कहते हैं कि यदि जान बची रहे तो प्रतिष्ठा तो फिर भी प्राप्त की जा सकती है इस लिए पहले जान बचाओ.

पगले आग मत लगा देना, भली याद दिलाई. दुर्बुद्धि आदमी से जिस काम के लिए मना करो वही करता है.

पगले सबसे पहले. 1. मूर्ख व्यक्ति भला बुरा विचार किये बिना हर काम में कूद पड़ता है. 2. कहीं भी कोई आयोजन हो रहा हो, उस में पगले लोगों को पहले पूछना चाहिए, क्योंकि वे रायता फैला सकते हैं. 

पचै सो खाए, रुचै सो बोले. भोजन वही करना चाहिए जो आसानी से पच जाए. बोलना वही चाहिए जो सब को अच्छा लगे.

पछवा चले, खेती फले. खेती के लिए पछवा हवा (पश्चिम से आने वाली शुष्क हवा) लाभदायक होती है.

पछुआ में पुरवाई बहे, फिर फिर ताके नार, जे ना जाए बिन बरसे, वो दूसर करे भतार. पछुआ हवा के बीच पुरवाई चले तो वर्षा अवश्य होती है और राह चलती नारी घूम घूम कर देखे तो दूसरा पति अवश्य करती है.

पछुआ हवा उसावे जोई, घाघ कहें घुन कबहु न होई. ओसाना – अनाज को हवा में उड़ा कर भूसी को अलग करना. पछवा हवा में अनाज को ओसाया जाए तो उसमें घुन नहीं होता.

पजामे का कोई जिकर नहीं. दूसरे का भला करने के चक्कर में अपना नुकसान हो जाए तो कहते भी नहीं बनता और चुप रहते भी नहीं बनता. सन्दर्भ कथा – किसी व्यक्ति के घर उसका एक मित्र आया. मित्र को उस शहर में कुछ लोगों से मिलने जाना था लेकिन रास्ते में उसका पजामा कीचड़ से गंदा हो गया था. उस व्यक्ति ने नया पजामा मित्र को पहनने को दिया और दोनों लोग चल पड़े. रास्ते में उसे लगा कि मित्र का पजामा बहुत अच्छा लग रहा है जबकि उस का पजामा घटिया लग रहा है. वह मन ही मन इस बात पर बहुत परेशान हुआ. वह कुछ कह नहीं पाया पर मन में कसमसाता रहा.

    जिन पहले सज्जन के घर ये लोग पहुँचे वहाँ उसने अपने मित्र का परिचय कराया कि ये मेरे मित्र फ़लाने फ़लाने हैं, अमुक शहर से आये हैं और ये जो पजामा पहने हैं ये मेरा है. मित्र ने बाहर निकल कर कहा, यार यह कहने की क्या जरूरत थी कि पजामा तुम्हारा है. दूसरे घर में गए तो वहाँ उन्होंने अपने मित्र का परिचय कराया और बोले कि जो पजामा ये पहने हैं ये इन्हीं का है. बाहर निकल कर मित्र ने फिर कहा कि यार यह अजीब बात है. यह कहने की क्या जरूरत है की पजामा मेरा है या तुम्हारा है. तीसरे घर में उन सज्जन ने मित्र का परिचय कराया और कहा कि ये जो पजामा पहने हैं वह न इनका है न मेरा है. मित्र बाहर निकल कर बहुत बिगड़े. बोले तुम पजामे का जिक्र ही क्यों करते हो.

    चौथे घर में उन्होंने मित्र का परिचय कराया कि ये श्री फलाने हैं, अमुक शहर से आए है और भाई पजामे का कोई जिकर नहीं. जहाँ कोई व्यक्ति बिना किसी उचित कारण बार बार अपना महत्व जताने की कोशिश कर रहा हो वहाँ मजाक में यह कहावत कही जाती है.

पटको तुम, मूछें हम उखाड़ें. पुराने जमाने में मूंछें उखाड़ना किसी का सब से बड़ा अपमान माना जाता था. जानी दुश्मनों के साथ ही ऐसा बर्ताव किया जाता था. कोई चतुर व्यक्ति अपने साथ वालों को उकसा रहा है कि तुम फलाने को पटक दो तो हम उस की मूँछ उखाड़ देंगे. किसी को खतरनाक काम के लिए उकसाना और खुद उस का श्रेय लेना. रूपान्तर – धर तौ पटको, चढ़बे हम ठाँड़े. पटको तो सही, चढ़ बैठने को हम खड़े हैं.

पट्ठों की जान गई, पहलवान का दांव ठहरा. पहलवान अपने चेलों और चमचों पर अपने दांव आजमाते हैं, उसी पर कहावत.

पठान का पूत, घड़ी में औलिया, घड़ी में भूत. पठान का व्यवहार बड़ा विचित्र और अनुमान से परे होता है. वह कभी कुछ हो जाता है कभी कुछ.

पठानों ने गाँव मारा, जुलाहों की चढ़ बनी. बहादुर लोग कोई वीरतापूर्ण काम करते हैं और कायर लोग उसका फायदा उठाते हैं. 

पड़वा पाठ भुलावे, छोरों को खिलावे. पुराने समय की मान्यता है कि दीपावली के अगले दिन पड़वा को पढ़ाई करने से विद्यार्थी पाठ भूल जाता है. इस के पीछे चित्रगुप्त जी सम्बंधित एक कथा कही जाती है.

पड़िया के साथ भैंस मुफ्त. आम तौर पर किसी बड़ी चीज़ के साथ छोटी चीज मुफ्त मिलती है. जहाँ छोटे लाभ के साथ बड़ा लाभ स्वत: ही हो रहा हो वहाँ यह कहावत कही जाती है. भोजपुरी में इस कहावत को इस प्रकार कहते हैं – पड़िया मोल भैंस सुगौना. 

पड़ी बिछौना फूहड़ सोवे, राँधा कुत्ता खाए. निकम्मी और आलसी स्त्री के लिए.

पड़ी लकड़ी कौन उठाए. व्यर्थ की मुसीबत कौन मोल ले.

पड़ोसन को देख पड़ोसन जल मरे. स्त्रियों में दूसरे की सम्पत्ति से ईर्ष्या करने की प्रवृत्ति बहुत अधिक होती है.

पड़ोसी के घर में बरसेगा तो बौछार यहाँ भी आयेगी. पड़ोसी की तरक्की से जलने के स्थान पर यह सोचना चाहिए कि पड़ोसी के घर समृद्धि आएगी तो हमें भी कुछ न कुछ लाभ होगा.

पडोसी से प्रेम रखो, पर बीच की दीवार न तोड़ो. पड़ोसियों से सद्भाव बना कर रखना चाहिए और उनके सुख दुख में सम्मिलित भी होना चाहिए लेकिन थोड़ी दूरी भी बना कर रखना चाहिए.

पढ़ ले बेटा फ़ारसी, तले पड़े सो हारसी. किसी जमाने में फ़ारसी पढ़ना एक प्रकार से उच्च शिक्षा प्राप्त करना था. बच्चों को समझाया जा रहा है कि पढ़ लो, नहीं पढ़े तो जीवन में हार जाओगे.

पढ़तव्यं सो भी मरतव्यं, ना पढ़तव्यं सो भी मरतव्यं, जिभ्या सांसत किम कर्तव्यं. पढूंगा तो भी मरूंगा, नहीं पढूंगा तो भी मारूंगा, तो जीभ को कष्ट क्यों दूँ. पढ़ाई से भागने वाले छात्र का हास्यपूर्ण कथन.

पढ़ा लिखा जाट, सोलह दूनी आठ. पहले के जमाने में जाट लोगों में खेती का चलन ज्यादा था, पढ़ाई लिखाई का कम. इसी बात को लेकर लोगों ने उनका मजाक उड़ाने की कोशिश की है. व्यवहारिक रूप में इस कहावत का प्रयोग केवल जाटों के लिए नहीं करते हैं. कोई भी पढ़ा लिखा व्यक्ति यदि बचकाना और बेवकूफी की बात कर रहा हो तो यह कहावत कही जा सकती है.

पढ़ाई लिखाई की ऐसी तैसी, खोदो घास चराओ भैंसी. जब कोई बच्चा पढ़ने लिखने से आना-कानी करता है तो बड़े उलाहना में कहते हैं, क्या करोगे पढ़-लिखकर चलो घास खोदो और भैंस चराओ.

पढ़ाए पढ़े ना खूसर, नवाए नवे ना मूसर. मूर्ख पढ़ाने से नहीं पढ़ता, जैसे मूसल झुकाने से नहीं झुकता.

पढ़ाया लिखाया बेटा वानर हो गया. किसी धूर्त व्यक्ति को उसी की भाषा में जवाब. सन्दर्भ कथा – एक पंडितजी ने एक साहूकार के यहाँ अपना कुछ रुपया धरोहर रखा था. कुछ दिनों के बाद जब पंडितजी ने उससे अपना रुपया मांगा, तब साहूकार ने बतलाया कि पंडितजी वह रुपया तो कोयला हो गया. इसके कुछ दिनों के बाद साहूकार ने अपना एक लड़का पंडितजी को पढ़ाने को दिया. पंडितजी ने लड़के को कहीं छिपा दिया और उसकी जगह एक बंदर को बाँध दिया. जब साहूकार अपना लड़का लेने गया तो पण्डित जी ने उसे वह बंदर दिखा कर कहा कि यही तुम्हारा लड़का है. इस पर साहूकार झगड़ा करने लगा तो मामला मुखिया तक पहुँचा. मुखिया ने सारी बात समझ कर पंडित जी के रूपये ब्याज समेत वापस दिलवाए. तब पंडित जी ने लड़का भी वापस कर दिया.

पढ़ि पढ़ि के पत्थर भया लिख लिख भया ज्यूँ ईंट, कहें कबीरा प्रेम की लगी न एको छींट. पढ़ लिख कर यदि मनुष्य ईंट पत्थर जैसा निर्बुद्धि और निष्ठुर बन जाए तो ऐसे ज्ञान का क्या लाभ.

पढ़े घर की पढ़ी बिल्ली. जिस खानदान में कुछ लोग पढ़ लिख जाते हैं उस घर के सभी लोग अपने को बहुत काबिल समझने लगते हैं. उनका मज़ाक उड़ाने के लिए.

पढ़े तो हैं गुने नहीं. व्यवहारिक ज्ञान नहीं पाया हो तो किस काम का. सन्दर्भ कथा – (गुनना – व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करना). शिक्षा ली हो पर व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त न किया हो तो वह शिक्षा किसी काम की नहीं होती. किसी राज पुरोहित का बेटा काशी से बहुत सारी विद्याएँ पढ़ कर आया. राजा ने उस की योग्यता की परीक्षा लेने के लिए अपनी मुट्ठी में कोई चीज़ बंद कर ली और पूछा, बताओ मेरी मुट्ठी में क्या है. उसने अपनी विद्या के बल पर बताया, कोई सफ़ेद पत्थर की गोल चीज़ है जिसके बीच में छेद है. राजा ने कहा, क्या हो सकता है? वह बहुत देर तक सोचता रहा कि ऐसी चीज़ क्या हो सकती है जो पत्थर की हो, सफेद हो और जिसके बीच में छेद भी हो.  फिर बोला, चक्की का पाट. राजा हँस पड़ा. उस ने मुट्ठी खोली, उस में एक मोती था. कोई पढ़ा लिखा व्यक्ति मूर्खता पूर्ण और अव्यवहारिक बात करे तो यह कहावत कही जाती है.

पढ़े तोता पढ़े मैना, कहीं सिपाही का पूत भी पढ़ा है. एक बार को तोता और मैना पढ़ सकते हैं पर सिपाही का बेटा नहीं पढ़ता (वह रिश्वत की कमाई से बिगड़ जाता है और अपने पिता की ताकत के नशे में चूर रहता है).

पढ़े न लिखे, नाम विद्यासागर. गुण के विपरीत नाम.

पढ़े फारसी बेचें तेल, ये देखो कुदरत का खेल. पहले जमाने में सामान्य लोग उर्दू पढ़ते थे. जिनको ज्यादा पढ़ना होता था वे उसके बाद फारसी पढ़ते थे. मतलब यह कि फारसी एक प्रकार की उच्च शिक्षा थी. यदि कोई उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी बहुत छोटा मोटा काम करने पर मजबूर हो तो यह कहावत कही जाती है.

पढ़े लिखे की चार आँखें होतीं. पढ़ा-लिखा आदमी अधिक समझदार होता है.

पढ़े लिखे बिन कौन अकाजू, जोते हल घर भरूँ अनाजू. पढ़ाई से भागने वाले किसान के बेटे का कथन. बिना पढ़े लिखे मैं बेकार थोड़े न हो जाऊँगा. हल जोत कर घर को अनाज से भर दूंगा.

पढ़े लिखे मूसर. पढ़े लिखे पर व्यवहारिक ज्ञान से शून्य व्यक्ति के लिए उपेक्षापूर्ण कथन.

पढ़े वेद, जोते खेत. उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद कोई छोटा मोटा काम करना पड़े तो.

पढ़े से विद्या, किए से खेती. जिस प्रकार किसी दूसरे के पढ़ने से हमें विद्या नहीं आ सकती (अपने आप पढ़ने से ही आएगी) उसी प्रकार किसी दूसरे के करने से खेती नहीं हो सकती.

पढे सो पंडित होय. जो पढ़े लिखेगा वही विद्वान बनेगा.

पढ़ो पट्टू सीताराम, कही हम तो पढ़े पढ़ाये हैं. मूर्ख व्यक्ति अपने को बहुत बुद्धिमान समझता है.

पढों में अनपढ़, जैसे हंसों में कौवा. बहुत से शिक्षित व्यक्तियों के बीच में एक अनपढ़ व्यक्ति वैसा ही दिखाई देता है जैसे हंसों के बीच में कौवा.

पतली देह अन्न की खान. जो आदमी दुबला पतला हो पर खाता अधिक हो.

पतली पतली पोवे पीहर को रोवे, मोटी मोटी पोवे चैन से सोवे. जो बहू पतली पतली रोटियाँ बनाती है वह रसोई में ही खटती रहती है. जो मोटी रोटियाँ बनाती है वह चैन से सोती है. शिक्षा यह दी गई कि ज्यादा सुघड़ता से काम करने के चक्कर में पड़ोगे तो पिसते रहोगे. काम चलाऊ काम करो और मस्त रहो.

पति तो पूजे देव को, भूतन पूजे जोय, एकै घर में दो मता, कुसल कहाँ से होय. पति देवता की पूजा करता है और पत्नी भूतों की. जब पति पत्नी दोनों के मत और विश्वास एक दूसरे से उल्टे हों तो उन में नहीं निभ सकती.

पति भूखा तो माथा दूखे, अपनी भूखों चूल्हा फूंके. उन कामचोर स्त्रियों के लिए जो पति का काम करने में बहाने बनाएँ और अपना स्वार्थ पूरा करती रहें. माथा दूखे – सर में दर्द. 

पति से रूठी, गाँव से बोलती नहीं. उन लोगों पर व्यंग्य जो छोटी छोटी बात पर अधिक गुस्सा दिखाते हैं.

पतिबरता को कपड़ा नाहीं, बेसवा ओढ़े थान. पतिबरता – पतिव्रता स्त्री, बेसवा – वैश्या. जो पतिपरायणा है उनके लिये तो पहनने को कपड़ा तक नहीं है और वेश्या को कपड़े का थान मिल रहा है. अधर्म की पराकाष्ठा. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – पतिबरता भूखी मरे, पेड़े खाए छिनार.

पतीली न जाने खाने का स्वाद. पतीली सब के लिए खाना बनाती है पर स्वयं उस का स्वाद नहीं ले सकती. मेहनतकश लोग सुख सुविधा के सारे साधन बनाते हैं पर स्वयं उन का आनंद नहीं ले पाते हैं.

पतुरिया का डेरा, जैसे ठगों का घेरा. पतुरिया – चरित्रहीन स्त्री, वैश्या. ऐसी स्त्री अपने मोहजाल में फंसा कर व्यक्ति का धन सम्मान सब ठग लेती है.

पतुरिया रूठी, धरम बचा. चरित्रहीन स्त्री अगर आपसे रूठ जाए तो यह समझो कि आपका धर्म बच गया (क्योंकि उसके चक्कर में पड़ कर तो धर्म भ्रष्ट होना ही था).

पतोहू मरे भागवान की, दमाद मरे अभागे का. यदि बहू मर जाती है तो बेटे का दूसरा ब्याह कर के कमी पूरी की जा सकती है मगर दामाद के मरने पर लड़की जीवन भर विधवा हो कर आँखों के सामने रहती है.

पत्ता खटका, बंदा सटका. डरपोक लोगों के लिए जो पत्ता खड़कने की आवाज सुन कर ही सरक लेते हैं.

पत्ता खड़कल बाभन हड़कल. (भोजपुरी कहावत) ब्राह्मण इतने डरपोक होते हैं कि पता खड़कने से डर जाते हैं.

पत्थर को जोंक नहीं लगती. किसी भी समाज में मुफ्तखोर लोग जोंक के समान होते हैं जो कि समाज के अन्य लोगों का खून चूसते हैं. ये आपसे हर समय कुछ न कुछ सहायता मांगते रहते हैं और अगर आप मना करते हैं तो उलटे आपको ही पत्थर दिल कहते हैं. ऐसे लोगों से निबटने के लिए पत्थर दिल बनना ही अच्छा रहता है.

पत्थर क्या पसीजे. अत्यंत कठोर चित्त से दया या कंजूस से दान की आशा नहीं की जा सकती.

पत्थर खुद की करे बड़ाई, हम हैं महादेव के भाई. किसी बड़े आदमी का सगा सम्बन्धी उससे रिश्ता बता कर अपनी शान झाड़ रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.

पत्थर नीचे हाथ दबे, तो चतुराई से काढ़े. किसी बड़ी मुसीबत में फंसने पर बहुत होशियारी से उससे निकलने की कोशिश करना चाहिए. 

पत्थर पे नाव चलावे. असंभव या अनहोना कार्य करना.

पत्थर से पत्थर टकराता है तो चिंगारियां निकलती हैं. जब दो विकट योद्धा लड़ते हैं तो लड़ाई भीषण होती है और आसपास के लोगों का नुकसान हो सकता है.

पनिहारी की लेज से, सहजे कटे पखान. लेज – डोरी, पखान – पाषाण. कुँए की पत्थर की चरखी पर पानी भरने वाली डोलची की रस्सी से निशान पड़ जाते हैं. नित्य प्रयास करने से कठिन काम भी संभव हो जाते हैं.  

पर उपदेश कुशल बहुतेरे, (जे आँचरन्हि ते नर न घनेरे). दूसरों को उपदेश देना बहुत आसान है. ऐसे लोग बहुत कम होते हैं जो स्वयं उन बातों पर अमल करें. अधिकतर इस कहावत का प्रथम भाग ही बोला जाता है.

पर की पीर न जानें चार, राजा, दुखिया, याचक, नार. चार प्रकार के लोग दूसरे की पीड़ा को नहीं समझते हैं. राजा जो अपने अभिमान में चूर रहता है, दुखिया जो स्वयं दुखी है, याचक जो मांगते समय किसी का सुख दुख नहीं देखता और नारी जो आमतौर पर दूसरों के कष्टों के प्रति संवेदनहीन होती हैं.

पर घर कूदें मूसरचंद. जो बिना निमन्त्रण किसी के घर जाएं या बिना सहायता मांगे सहायता करने पहुँच जाएँ.

पर घर नाचें तीन जन, कायस्थ, बैद, दलाल. कायस्थ (कचहरी में काम करने वाले पेशकार व अन्य मुलाजिम), वैद्य और दलाल ये दूसरों के धन पर ऐश करते हैं.

पर धन बांधे मूरखचंद. (पर धन राखें मूरखचंद). पराई धरोहर की चौकीदारी करना मूर्खता का काम है. इससे आप को लाभ तो कुछ नहीं होता, उलटे खतरा और होता है.

पर नारी पैनी छुरी, तीन ओर से खाय, धन छीजे, जोवन हरे, पत पंचों में जाय. पराई नारी से आसक्ति पैनी छुरी से खेलने के समान है. उससे धन और यौवन का ह्रास होता है और पंचों (समाज के प्रतिष्ठित लोगों) के बीच प्रतिष्ठा जाती है. कुछ लोग इस के आगे भी बोलते हैं – जीवत काढ़े कलेजा, अंत नरक ले जाय.

पर नारी पैनी छुरी, मत कोई लावो संग, दसों सीस रावन के ढह गए, पर नारी के संग. पराई स्त्री पैनी छुरी की भाँति खतरनाक है. पराई स्त्री का अपहरण करने के कारण रावण के दसों सर कट गए.

परखना हो किसी को तो उस के यार देख लो.  यदि किसी व्यक्ति की सच्चाई जाननी हो तो यह मालूम करो कि उसके मित्र किस बौद्धिक और सामाजिक स्तर के हैं. इंग्लिश में इस आशय की एक कहावत है – Man is known by the company he keeps.

परजा जड़ है राज की, राजा है ज्यों रूख, रूख सूख कर गिर पड़े, जब जड़ जावे सूख. राजा को यह नहीं भूलना चाहिए कि यदि वह पेड़ के समान है तो प्रजा उसकी जड़ है. यदि प्रजा कष्ट में रहेगी तो राजा का उसी प्रकार नाश हो जाएगा जैसे जड़ सूख जाने से पेड़ सूख जाता है.

परजा भागे छोड़ कर कुन्यायी का गाम, चहूँ ओर जग में करे फेर उसे बदनाम. अन्यायी राजा के राज्य को लोग छोड़ कर भागने लगते हैं और उसे बदनाम करते हैं.

परदे की बीवी और चटाई का लहंगा. किसी कुलीन महिला द्वारा सस्ता और फूहड़ पहनावा धारण करना.

परदेशी की प्रीत, फ़ूस का तापना (परदेसी की प्रीत, रैन का सपना). फूस में आग लगाते ही वह एकदम से जल उठता है और बहुत कम समय में खत्म हो जाता है. इसी प्रकार रात्रि में देखा गया सपना भी एकदम खत्म हो जाता है. परदेसी आदमी की प्रीत भी इसी प्रकार अल्प कालिक होती है.

परदेस कलेस नरेसन को. राजा और बड़े हाकिम दूसरे देश में परेशान रहते हैं क्योंकि उन की पूछ अपने देश में ही होती है.

परदेस में पैसे पेड़ों पर नहीं लगते. जो लोग समझते हैं कि विदेश में बहुत कमाई है उन को सीख देने के लिए.

परमात्मा गंजे को नाखून न दे. अगर गंजे के नाखून होंगे तो वह खुजा खुजा कर अपनी खोपड़ी लहूलुहान कर लेगा. (विस्तृत विवरण के लिए देखिए सन्दर्भ कथा 67 – खुदा ने गंजे को नाखून नहीं दिए).

परवत पर खोदे कुआँ कैसे निकसे तोय. पर्वत पर कुआँ खोदने पर पानी नहीं मिल सकता. गलत स्थान पर उद्यम करना व्यर्थ जाता है.

परसी थाली देख कर मत चूको बेईमान. बेईमान व्यक्ति बेईमानी करने का कोई मौका नहीं चूकता, ख़ास तौर पर अगर पकी पकाई मिल रही हो तो.

परहथ बनिज संदेसे खेती, बिन वर देखे ब्याहें बेटी, द्वार पराए गाड़ें थाती, ये चारों मिल पीटें छाती. दूसरे के हाथों व्यापार करने वाला, संदेश भेज कर खेती कराने वाला, बिना वर को देखे कन्या का विवाह करने वाला और दूसरे के घर के बाहर अपना धन गाड़ने वाला, ये चारों लोग छाती पीटते हैं. रूपान्तर – परहथ बनिता, साझे खेती. (अपनी स्त्री को दूसरे को सौंपना).

परहथ विद्या परहथ धन, न वो विद्या न ये धन. दूसरे के पास जो विद्या या धन है वह हमारे किस काम का.

परहित सरिस धर्म नहिं भाई. परोपकार के समान उत्तम कोई दूसरा धर्म नहीं है. व्यवहार में इतनी ही कहावत बोली जाती है. इसके आगे की पंक्ति इस प्रकार है – पर पीड़ा सम नहिं अधमाई.

पराई आसा, नित उपवासा (पराई आसा, मरै उपासा). दूसरों के भरोसे रहोगे तो भूखों मरोगे.

पराई नौकरी सांप खिलाने के बराबर है. दूसरे की नौकरी में बहुत खतरे हैं (सब से बड़ा खतरा तो नौकरी जाने का ही है). इसके अलावा कोई भी अनहोनी हो तो उसका ठीकरा नौकर के सर पर ही फोड़ा जाता है.

पराई पत्तल का भात मीठा. मनुष्य को हमेशा यह प्रतीत होता है कि दूसरे लोग उससे अधिक सुखी हैं.

पराई बदशगुनी के वास्ते अपनी नाक कटाई. कुछ लोग इतने नीच प्रवृत्ति के होते हैं कि हमेशा दूसरों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं चाहे उस प्रयास में अपना नुकसान क्यों न हो जाए.

पराई हंसी गुड़ से भी मीठी. दूसरा व्यक्ति यदि प्रसन्न दिखाई देता है तो हम सोचते हैं कि वह बहुत सुखी है (चाहे वास्तविकता इससे भिन्न हो).

पराए कंधे पे रख के बंदूक चलाना. अर्थ स्पष्ट है.

पराए खसम के लिए सत्ती होवे. किसी दूसरे के कष्ट में अत्यधिक व्यथित होना.

पराए घर में नौ खाटों पर कमर सीधी होती है (दूसरों के घर चार खाटों पर कमर खुले). अपने घर पर आदमी चाहे कैसे भी काम चला ले, दूसरे के घर जाता है तो उसे अतिरिक्त सुविधाएं चाहिए होती हैं.

पराए दुख में दुखी होने वाले कम, पराए सुख में दुखी होने वाले ज्यादा मिलते हैं. किसी दूसरे के दुख को बहुत कम लोग महसूस करते हैं. ज्यादातर लोग दूसरों को सुखी देख कर दुखी होते हैं.

पराए धन पर धींगर नाचे. मुस्टंडे लोग दूसरों के धन पर मौज करते हैं. 

पराए धन पर लक्ष्मी नारायण. दूसरों का धन बांट कर अपने को बड़ा दानी सिद्ध करना.

पराए धन से फलहार, लेवें न डकार. मुफ्त का माल खाने को मिल जाए तो आदमी डकार तक नहीं लेता.

पराए पीर को मलीदा, घर के देव को धतूरा. दूसरों के लिए पूजनीय किसी व्यक्ति का सम्मान करना और अपने देवताओं का अपमान करना.

पराए पूत किसको कमा कर देते हैं. किसी दूसरे को कमा कर देना कोई नहीं चाहता.

पराए पूतन की आसा (पराये पूतन सपूती होवे). दूसरे के लड़के से सहायता की आशा करना. दूसरे की संपत्ति से अपने को धनवान समझने की मूर्खता. पराए पूतन – दूसरे के पुत्रों से, सपूती – पुत्रवती.

पराए भरोसे खेला जुआ, आज न मुआ कल मुआ. दूसरे पर विश्वास कर के जुआ खेलने वाला बर्बाद हो जाता है. पैसा उधार ले कर जुआ खेलने से भी मतलब हो सकता है.

पराए माथे सिल फोड़े. दूसरों को संकट में डाल कर अपना काम बनाना.

पराधीन दोनों सदा, जग में बेटी बैल. बेटी सदा दूसरों के आधीन रहती है, पहले पिता के घर में और फिर ससुराल में. इसी प्रकार बैल भी अपनी जीविका के लिए दूसरों के आधीन होता है. ये दोनों ही अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकते.

पराधीन सपनेहूँ सुख नाहिं. दूसरे की गुलामी करने वाले को कभी सुख नहीं मिल सकता (सपने में भी नहीं). 

पराया खाइए गा बजा, अपना खाइए सांकल लगा. सांकल लगा कर कोई काम करने का अर्थ है घर के दरवाजे की कुंडी बंद कर के अर्थात बिना किसी को बताएकिसी दूसरे की दी हुई चीज़ खा कर खूब प्रशंसा कीजिए पर अपने घर में क्या खाते हैं यह किसी को नहीं बताना चाहिए.

पराया धर थूकने में भी डर, अपना घर हग जी भर. पराए घर में कोई भी काम डर डर कर करना पड़ता है, अपने घर में कोई भी काम हो और कैसा भी काम हो पूरी आज़ादी रहती है.

पराया माल, जी का जंजाल. किसी दूसरे का कोई कीमती सामान अपने घर में रखना बहुत झंझट का काम है. उसकी बहुत चौकीदारी करनी पड़ती है और यदि खो जाए तो बहुत लानत मलानत होती है.

पराया माल, पूंछ का बाल. दूसरे की सम्पत्ति को उतना ही तुच्छ समझना चाहिए जितना किसी पशु की पूंछ का बाल. संस्कृत साहित्य में भी ‘परद्रव्येषु लोष्टवत्’ समझने की सीख दी गई है.

पराया मूंड पसेरी सा. दूसरे के सर को पसेरी के बाट के बराबर समझना.

परिचय और मारपीट करने से ही होवे. कहावतों का सबसे सशक्त पक्ष होता है उन में छिपा हास्य. दूसरों से परिचय आगे बढ़ कर करने से ही होता है, इस में मारपीट भी करने से ही होती है यह जोड़ दिया गया है.

परिवर्तन संसार का नियम है. संसार में हर वस्तु परिवर्तन शील है, कुछ भी स्थायी नहीं है. इंग्लिश में कहावत है – Change is the law of nature.

परी गरज मन और है, सरी गरज मन और. गरज पड़ने पर आदमी का मन जैसा रहता है वैसा गरज पूरी होने पर वैसा नहीं रहता.

पर्दा रहे तो पुन्य, खुल जाए तो पाप. ऐसे दिखावटी पुण्यात्मा लोगों के लिए जो परदे के पीछे पाप करते हैं. (जैसे आजकल के बहुत से ढोंगी धर्मगुरु).

पल का चूका कोसों दूर. मौके पर जरा सी चूक हो जाने पर आदमी अपने लक्ष्य से बहुत दूर भटक सकता है. (जैसे आजकल वन वे ट्रैफिक में होता है, एक कट छूटा और मीलों का चक्कर). 

पल पखवाड़ा, घड़ी महीना, चार घड़ी का साल, करजदार जब कल कहे तो ताको कौन हवाल. कर्जदार पैसा वापस करने की मियाद को टालता रहता है. वह एक पल कहता है तो पखवाड़ा निकाल देता है, एक घड़ी कह कर महीना बिता देता है और चार घड़ी कह कर साल निकाल देता है. अगर वह एक दिन कह रहा है तब तो न जाने कभी देगा भी या नहीं.

पलटनमारवा पलटन में ही रहत. धोखे से फ़ौज को मरवाने वाला देशद्रोही फ़ौज में ही रहता है. सेना जैसी महत्वपूर्ण संस्थाओं में सावधानी अति आवश्यक होती है.

पल्ले में रुपया हो तो जंगल में मंगल. जिसके पास धन है वह कहीं भी उत्सव मना सकता है.

पशु का सताना, निरा पाप कमाना. बेजुबान पशुओं को सताने से बहुत पाप लगता है.

पसु पच्छी हू जानिहैं अपनी अपनी पीर. अपनी अपनी पीड़ा को पशु पक्षी भी जानते हैं.

पहचाना चोर जान से मारे. कोई व्यक्ति यदि चोर या डाकू को पहचान ले तो चोर उसे जान से मार देता है. इसलिए यदि कभी चोर को पहचान भी लें तो जताना नहीं चाहिए.

पहने ओढ़े नारी, लीपे पोते घर. स्त्री पहन ओढ़ कर अच्छी लगती है और घर लीपने पोतेने के बाद.

पहलवानी पचाय की, रईसी बचाय की. पहलवान वही बन सकता है जो अच्छी खुराक खाए और उसे पचा ले, धनवान वही बन सकता है जो अपनी कमाई में से बचत करे. 

पहला कसूर भगवान भी करें माफ़. पहला अपराध करने वाले यह कह कर सजा से बचने की कोशिश करते हैं.

पहला ताप तुरइया बसे, खीरा देखे खिलखिल हँसे, जब लिया फूट का नाँव, डंका बजा के घेरा गाँव. ज्वर का पहला आगमन तुरई के साथ होता है, खीरा देख कर वह बहुत प्रसन्न होता है और फूट का नाम लेते ही डंके की चोट गाँव घेर लेता है. लोक विश्वास है कि तुरई, खीरा और फूट के खाने से ज्वर फैलता है. ताप – बुखार.

पहला पानी भर जाए ताल, घाघ कहै अब परे अकाल. जब वर्षा के पहले पानी के बरसने पर ही ताल भर जाय तो समझो कि अब इस के बाद अकाल पड़ जायेगा.

पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में हो माया, तीजा सुख पतिव्रता नारी, चौथा सुख सुत आज्ञाकारी. किसी भी मनुष्य के लिए चार सुख सबसे बड़े माने गए हैं – पहला स्वस्थ शरीर, दूसरा सुख घर में धन संपदा, तीसरा सुख पतिव्रता पत्नी और चौथा सुख आज्ञाकारी पुत्र. इन के ऊपर तीन सुख और बताए गए हैं – पांचवां सुख राज सम्माना, छटवां सुख कुटुम्बी नाना, सातवाँ सुख धरम रति होई, तासे स्वर्ग धरनि पर होई. 

पहली बहुरिया, दूसरी पतुरिया, तीसरी कुकुरिया. पहली पत्नी को लोग घर की बहू की तरह रखते हैं, दूसरी को वैश्या की तरह और तीसरी का हाल कुतिया जैसा होता है.

पहले अपना आगा ढंको, पीछे किसी को नसीहत करो. पहले अपने अंदर जो कमियाँ हों उन्हें छिपाओ या दूर करो, फिर किसी को उपदेश दो.

पहले अपनी आँख का मूसर तो निकालो, फिर दूसरे की आँख का तिनका निकालियो. पहले अपनी बड़ी विपत्ति से छुटकारा तो पाओ फिर दूसरे की छोटी मोटी विपत्ति दूर करने की सोचना.

पहले अपनी दाढ़ी की आग बुझाई जात. अपने ऊपर आई आफत से निबट कर तब दुनिया के बारे में सोचो.

पहले आत्मा, फिर परमात्मा. पहले जीविका का प्रबंध करो, फिर भगवान की भक्ति करना संभव हो पाएगी.

पहले आप पहले आप में गाड़ी छूटी (तकल्लुफ़ में है तकलीफ़ सरासर). औपचारिकता में काम बिगड़ जाना.  सन्दर्भ कथा – दो शरीफ़ आदमी रेल का सफर करने के लिए स्टेशन पर पहुंचे और टिकट कटा लिए. रेल भी प्लेटफार्म पर आ पहुंची. एक ने दूसरे के प्रति शिष्टाचार दिखाने के लिए कहा, हज़रत सवार होइए. दूसरे ने कहा, नहीं, क़िबला पहले आप. पहले ने कहा, नहीं, नहीं, पहले आप बैठिए, तब मैं बैठूंगा. तब तक रेल छूट गई

पहले आप, फिर बाप. आजकल की संतानें अपना पेट भरने के बाद ही माँ बाप के विषय में सोचती हैं.

पहले आरसी में अपना मुँह तो देखो. कुछ भी इच्छा करने से पहले व्यक्ति को अपनी हैसियत समझ लेना चाहिए.

पहले का झगड़ा अच्छा, पीछे का झगड़ा बुरा. जो कुछ भी संशय या मतभेद हों उन्हें काम शुरू करने के पहले ही सुलझा लेना चाहिए.

पहले गस्से में मक्खी (पहले गस्से में बाल). किसी कार्य के आरंभ में ही कोई अनर्थ हो जाए तो. मूलत: यह संस्कृत की कहावत है – प्रथम ग्रासे मक्षिका पात.

पहले चारा भितर, फिर देवता पितर. इंसान पहले खाने की चिंता करता है उसके बाद उसे देवता और पितृ याद आते हैं. रूपान्तर – पाँच कौर भीतर, फिर देवता पीतर.

पहले चुम्मे गाल काटा. आरंभ में ही धोखा दे दिया. चुम्मा – चुम्बन.

पहले ढोर चराते थे अब कान काटते हैं. बहुत मामूली व्यक्ति यदि किसी महत्वपूर्ण और प्रभावी पद पर पहुँच जाए तो (जैसे कुछ क्षेत्रीय राजनीति करने वाले शातिर नेता).

पहले तो वह रीझ थी, अब क्यों ऐसी खीज. स्त्रियाँ अक्सर अपने पतियों से पूछती हैं कि पहले तुम्हें इतना प्रेम था कि तुम हर बात पर रीझ जाते थे, अब क्यों इतना खीजते हो.

पहले तोलो, पीछे बोलो. कोई बात बोलने से पहले उस पर मनन अवश्य कर लेना चाहिए.

पहले दही जमाय के पीछे कीन्ही गाय. दही जमाने का इंतजाम करने के बाद गाय पाल रहे हैं. बिना योजना के काम करना.

पहले नेग, पीछे गीत. विवाह आदि में जो लोग मंगल गीत आदि गाते हैं उन्हें विवाह के बाद नेग (रुपये, अनाज, कपड़े आदि) दिया जाता है. यदि कोई पहले नेग लेने की बात कहे तो यह उल्टी बात हुई.

पहले पहरे हर कोई जागे, दूजे पहरे भोगी, पहर तीसरे चोर जागे, चौथे पहर जोगी. रात्रि के चार प्रहर के बारे में बताया गया है, पहले प्रहर हर कोई जागता है, दूसरे प्रहर में भोगी लोग जाग कर भोग का आनंद उठाते हैं, तीसरे प्रहर सब गहरी नींद सोते हैं इसलिए चोर जाग कर चोरी करते हैं. चौथे प्रहर में योगी लोग जाग कर ध्यान और पूजन करते हैं.

पहले पहुंचे, मन भर खाए. दावत में जो पहले पहुँचता है उसे हमेशा लाभ होता है. इंग्लिश में कहते हैं -Early bird catches the worm. या First come first served.

पहले पिए जोगी, बीच में भोगी, पीछे रोगी. योगी लोग खाना खाने के पहले पानी पीते हैं और भोगी लोग बीच में. जो खाने के बाद पानी पीते हैं वे सदैव रोगी रहते हैं.

पहले पीये मूरख, फिर पीये तमखुवा, पीछे पीवे चिलमचट्ट. चिलम भरते समय पीनेवाले मूर्ख होता है, बीच में  तम्बाकू के स्वाद को जानने वाला पीता है, अंत में जब केवल राख बचती है तो चिलमचट्ट सुट्टा लगाता है.

पहले पेट पूजा, फिर काम दूजा. बिना पेट भरे कोई काम ठीक से नहीं हो सकता.

पहले बो, पहले काट. खेती में जो पहले बोता है वह पहले फसल भी काटता है. पहले काम करने वाला हमेशा लाभ में रहता है.

पहले भात खवाय के पीछे मारी लात. पहले दिखावटी प्रेम दिखा के फिर अपमान करना.

पहले भाव, पीछे भोजन. मान सम्मान हो तभी भोजन करना चाहिए.

पहले भोजन फिर स्नान, फिर टट्टी फिर सालिगराम. कायदे से हम पहले शौचादि से निवृत्त हो कर स्नान करते हैं, फिर भगवान की पूजा करते हैं और बाद में भोजन करते हैं. कहावत में आजकल की पीढ़ियों का जिक्र है जो सब काम उलटे करती हैं.

पहले मनना, फिर गनना. विवाह के लिए वर कन्या मानें तभी जन्मपत्री, ज्योतिष गणना आदि करना चाहिए.

पहले मार पीछे संवार. मौका मिलने पर पहले ठुकाई कर दो और बाद में बात को संभाल लो.

पहले लिख ले पीछे दे, भूल पड़े कागज़ सूँ ले. किसी को रुपया पैसा या कोई चीज़ उधार देनी हो तो पहले लिख कर रखो उसके बाद दो. कभी भूल पड़े (आप स्वयं भूल जाओ या लेने वाला आनाकानी करे) तो यही लिखा हुआ काम आता है.

पहले सोच विचार के पीछे कीजे काज. कोई भी कार्य करने से पहले लाभ हानि का आकलन कर लेना चाहिए.

पहलो मूरख फांदे कुआँ, दूजो मूरख खेले जुआ, तीजो मूरख बहन घर भाई, चौथो मूरख घर जमाई. महा मूर्खों के चार प्रकार बताए गए हैं – पहला वह जो कुआँ फांदे (जरा सी चूक हुई और कुएँ में गया), दूसरा वह जो जुआ खेले (बर्बादी का पूरा प्रबंध), तीसरा वह जो विवाहित बहन के घर स्थायी रूप से रहे (उसकी कोई इज्ज़त नहीं होती) और चौथा वह जो घर जमाई बन कर ससुराल में रहे (घरेलू नौकर से भी बुरा हाल होता है).

पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नहीं आते. पहाड़ का पानी नीचे को बह जाता है और पहाड़ी युवक काम की तलाश में मैदानी इलाकों में चले जाते हैं.

पहाड़ दूर से ही सुहाने लगते हैं. जो लोग पहाड़ पर नहीं रहते उन्हें पहाड़ों पर जाना और घूमना बहुत अच्छा लगता है, पर जो लोग वहाँ रहते हैं उन्हें मालूम है कि पहाड़ का जीवन कितना कठिन है.

पहाड़ भले ही टले फ़क़ीर न टले. भिखारी आसानी से नहीं हटता, कुछ ले कर ही टलता है.

पहाड़ों से छाया नहीं होती. कहने को पहाड़ इतने बड़े होते हैं पर आप चाहें कि उन की छाया में खड़े हो जाएँ तो यह नहीं हो सकता. जो बड़ा आदमी किसी के काम न आता हो उस पर व्यंग्य.

पहिला गाहक, परमेसुर बराबर. दुकानदार प्रत्येक दिन के अपने पहले ग्राहक को बहुत शुभ मानते है.

पहिले जागे पहिले सोवे, जो वह चाहे वाही होवे. जो पहले सोता है और पहले जागता है वह सदैव सफल होता है. इंग्लिश में कहावत है – Early to bed and early to rise, makes a man healthy wealthy and wise.

पहिले दिन पहुना, दूसरे दिन ठेहुना, तीसरे दिन केहुना. इंग्लिश में कहावत है –Fish and guest, smell in three days.

पहिले भात, पीछे बात. पहले पेट भरेगा तभी कुछ बात समझ में आएगी.

पाँच पंच मिल कीजे काजा, हारे-जीते कुछ नहीं लाजा. बहुत से लोग मिल कर कोई काम करते हैं तो हानि लाभ की जिम्मेदारी किसी की नहीं होती.

पाँच पहर धंधे गया, तीन पहर गया सोय, एक पहर हरिनाम बिन, मुक्ति कैसे होय. दिन रात मिला कर आठ पहर (प्रहर) होते हैं. इन में से पांच पहर धंधे पानी में लगा दिए और तीन पहर सो गया. कुछ समय निकाल कर एक पहर तो अच्छे कामों में लगा, वरना मुक्ति कैसे होगी. 

पाँच भाई पाँच ठौर, मौका पड़े तो एक ठौर. आजकल के युग में सब भाइयों का एक ही घर में रहना तो संभव नहीं है पर समझदारी इस में है कि वे अलग अलग रहते हुए आवश्यकता होने पर एकजुट हो जाएं.

पाँच महीने ब्याह के बीते, पेट कहाँ से लाई. गर्भवती स्त्रियों का पेट छह माह के गर्भ के बाद बाहर निकला दिखाई देता है. किसी स्त्री के विवाह को पाँच महीने ही हुए हैं और उस का पेट निकला दिखाई दे रहा है तो अन्य स्त्रियाँ उस से पूछ रही हैं. किसी को नौकरी करते हुए साल दो साल ही हुआ हो और वह बहुत पैसा इकठ्ठा कर ले तो मजाक में यह कहावत कही जा सकती है.

पाँच साल की बाला का बेटा बारह साल का. असम्भव और हास्यास्पद बात.

पाँचे मित्र, पचासे ठाकुर, सौ में जमाई, एक में चाकर. पाँच रुपये में मित्र, पचास में जमीदार, सौ में दामाद, और एक रुपये में नौकर को संतुष्ट किया जा सकता है.

पाँचों उँगलियों से पाहुंचा भारी. एकता में शक्ति है.

पाँचों उंगलियाँ एक सी नहीं होतीं. किसी घर में या समाज में सभी व्यक्ति एक से नहीं होते.

पाँचों पांडव छठे नारायण. 1. जो समूह भगवान् की प्रेरणा से कार्य करे. 2. व्यंग्य में – ये पांच पांडव क्या कम थे जो इन के गुरु घंटाल छठे नारायण और आ गए.

पांच कोस प्यादा रुके, दस कोस असवार, या तो नार कुभार्या, या नामर्द भतार. कहीं बाहर से घर लौट कर आने वाला व्यक्ति घर पहुँचने के लिए बहुत उतावला होता है. लेकिन अगर पैदल चल कर घर लौटने वाला व्यक्ति (प्यादा) शाम होने के कारण घर से पांच कोस पहले ही रुक जाए, और घोड़े पर सवार हो कर आने वाला यदि दस कोस पहले रुक जाए तो इसका अर्थ यह है कि या तो पत्नी में या पति में कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है.

पांच में तीन उठाऊं और दो में हिस्सा लूँ. कोई व्यक्ति हिस्से बांटे में दबंगई कर के ज्यादा हिस्सा हड़पना चाहता हो तो यह कहावत कही जाती है. 

पांच रुपया शंकर और पच्चीस रूपये नंदी को. उलटी बात. कोई बड़े अफसर को कम रिश्वत दे और उसके मातहत को बहुत अधिक तो यह कहावत कही जाएगी.  

पांच वर्ष लौं लाड़िये, दस लौं ताड़न देय, सुत को सोलह साल में, मित्र सरिस गिन लेय. लाड़िये–लाड़ प्यार करिये, ताड़न–प्रताड़ना, सरिस–तरह, गनि लेय–गिन लीजिये. बच्चे को पांच वर्ष तक खूब लाड़ करना चाहिए, पांच से दस वर्ष के बीच उसे मार-पीट कर सीख देनी चाहिए, सोलह साल के लड़के से मित्रवत् व्यवहार करना चाहिये.

पांच शनीचर, पांच रबि, पांच मंगल जो होय, छत्र टूटि धरनी परै, अन्नौ मंहगा होय. यदि एक माह में पांच इतवार, पांच शनि, व पांच मंगल पड़ें तो समझो कि राजवंश का अशुभ होगा और अनाज बेहद महंगा. (भड्डरी)

पांचे आम, पचीसे महुवा, तीस बरस पर इमली. आम का पेड़ पाँच वर्ष पर, महुआ पच्चीस वर्ष पर और इमली तीस वर्ष पर फल देती है.

पांचो उँगलियाँ घी में. अत्यधिक लाभ की स्थिति. घी के डब्बे में से कम घी निकालने के लिए एक उंगली से घी निकाला जाता है. अगर कोई पाँचों उंगलियाँ डाल कर घी निकाल रहा हो तो इसका मतलब हुआ कि वह बहुत सम्पन्न है. किसी की सम्पन्नता देख कर कोई व्यक्ति ईर्ष्यावश उस से कहता है कि भई तुम्हारी तो पाँचों उँगलियाँ घी में हैं, तो वह जवाब में कहता है – हाँ भई पाँचों उँगलियाँ घी में, सर कढ़ाई में और पैर चूल्हे में हैं (क्योंकि कि उसे धन कमाने के लिए बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं).

पांड़े के घर की बिल्ली भी भगतिन. 1. घर के संस्कारों का असर सभी सदस्यों पर पड़ता है. पंडित जी के घर मांस मछली नहीं मिलता इसलिए बिल्ली दूध रोटी खाती है. 2. कपटी पंडित और उसके धूर्त चेलों पर व्यंग्य. 

पांडे जी पछताएंगे, वोई चने की खाएंगे (सूखे चने चबाएंगे). कहावत इस आशय में कही जाती है कि शुरू में आप कितने भी नखरे करें अंत में मजबूर हो कर आप को यही काम करना पड़ेगा.

पांड़े मरें जान से, पंडाइन मथें मट्ठा. पांडे जी तो बेहद तकलीफ में हैं और पड़ाइन घर के काम काज में व्यस्त हैं. कुशल गृहिणी को सभी कामों में संतुलन बना कर चलना चाहिए.

पांत में दो भांत कैसी. भोजन करने के लिए पंगत बैठी है तो दो तरह की पंगत क्यों बनाई गई हैं? ऊँच नीच और जात पांत का विरोध करने के लिए.

पांत, कचहरी, रेल में सबसे पहले जाए, जो न माने बात यह सो पाछे पछताए. पांत – पंगत (भोज). खाने की दावत, कचहरी के काम और रेल में चढ़ने के लिए सबसे पहले जाना चाहिए. 

पांव में भौंरी है. ऐसे आदमी के लिए कहते हैं जो किसी एक स्थान पर जम कर न बैठ सके.

पांव में सनीचर है. जो व्यक्ति जहाँ जाए वहाँ काम बिगड़ जाए, उसके लिए.

पांवों में क्या मेंहदी रचाये हो. कहीं आने जाने में असमर्थता व्यक्त करने पर.

पाऊँ तो रस लाऊँ, नाहीं तो घर-घर आगी लगाऊँ. फलां चीज़ मुझे मिल जाएगी तो आपकी तारीफों के पुल बांधूगा, नहीं मिलेगी तो घर घर आपकी बुराई करता घूमूँगा.

पाक रह, बेबाक रह. पाप से दूर रह कर पवित्र मन से काम कीजिए तो आप निडर हो कर काम कर सकते हैं.

पागल और सांड के लिए रास्ता छोड़ देना चाहिए. कहावत के द्वारा यह सीख दी गई है कि पागल और सांड से नहीं उलझना चाहिए.

पादें कम कांखें ज्यादा (हगें कम, कांखें ज्यादा).  जो लोग काम कम करते हैं शोर ज्यादा मचाते हैं. कांखना – जोर लगाना.

पान पीक सोहे अधर, काजर नैनन जोग. पान की पीक होठों पर ही अच्छी लगती है और काजल आँखों में ही. हर वस्तु अपनी जगह पर ही अच्छी लगती है. 

पान सड़ा क्यों, घोड़ा अड़ा क्यों, फेरा न था. (यह अमीर खुसरो की एक विशेष प्रकार की पहेली नुमा कहावत है जिसमें दो प्रश्नों का एक ही उत्तर होता है). पान को लम्बे समय तक रखना हो तो उसे बार बार उलट पलट कर रखना होता है. इसे पान को फेरना कहते हैं. घोड़े की थकान दूर करने के लिए मिटटी का बना एक खुरदुरा खरहरा घोड़े के ऊपर फेरा जाता है, इससे घोड़े को बड़ा आराम मिलता है. 

पान सड़े, घोड़ो अड़े, विद्या बीसर जाए, रोटी जले अंगार पर, कहु चेला किन दाय, गुरु जी फेरा न था. ऊपर वाली कहावत में दो बातें और जोड़ दी गई हैं – विद्या क्यों बिसरी (भूली), क्योंकि फेरी नहीं थी (दोबारा नहीं पढ़ी) और रोटी क्यों जली. क्योंकि एक तरफ सिकने के बाद फेरी (पलटी) नहीं थी.

पानी उतर गया. इज्जत – आबरू चली गयी.

पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात, देखत ही छिप जाएगा, ज्यों तारा परभात. मनुष्य देह पानी के बुलबुले के समान क्षण भंगुर है.

पानी गरम हो, तो भी आग बुझाए. बहुत अधिक क्रोध करने वाले को कम क्रोध करने वाला शांत कर सकता है.

पानी था सो निकल गया, अब क्या बांधे पाल. वर्षा के पानी को इकट्ठा करने के लिए पाल बांधते हैं. पानी बह जाने के बाद पाल बाँधने से कोई लाभ नहीं होगा. अवसर चूक जाने के बाद प्रयास क्यों कर रहे हो.

पानी पी कर क्या जात पूछना (पानी पी घर पूछनो नाही भलो विचार). अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी करना और बाद में भला बुरा विचारना. पहले के जमाने में लोग छुआछूत को बहुत मानते थे. तब उच्च जाति के लोग नीची जाति वाले के हाथ का छुआ हुआ पानी नहीं पीते थे. एक महात्मा जी एक बार प्यास से मर रहे थे, किसी ने उन्हें पानी दिया जो उन्होंने तुरन्त गटागट पी लिया. पानी पी कर पूछते हैं भैया कौन जात हो?

पानी पीकर मूत तोले. बहुत अधिक स्यानपन दिखानेवाले के लिए. वैसे गुर्दे के मरीज के लिए यह जरूरी होता है. गुर्दे की बीमारी में डॉक्टर लोग यह सलाह देते है कि आपको जितना मूत्र हो रहा हो उतना ही पानी पीना है.

पानी पीजे, चार महीने डाल का, चार महीने पाल का, चार महीने ताल का. डाल का और पाल का ये शब्द आम तौर पर फलों के लिए प्रयोग करते हैं. डाल का फल अर्थात तुरंत का तोड़ा हुआ, पाल का मतलब रख कर पकाया हुआ. पानी के लिए कहा गया है कि चैत, बैशाख, जेठ और अषाढ़ घड़े का पानी पीजिए (पाल का). सावन, भादों, क्वार, कार्तिक नल का पानी पीजिए (डाल का) और बाकी चार महीने कुएँ या तालाब का पानी पीजिए (ताल का).

पानी पीये छानकर और जीव मारे जानकर. ढोंगी महात्माओं के लिए.

पानी बरसे आधे पूस, आधा दाना, आधा फूस. जब आधे पूस में पानी बरसता है तो अनाज में आधा अन्न व आधा भूसा होता है.

पानी बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम, दोनों हाथ उलीचिए, यही सयानो काम. यदि आप नाव में जा रहे हैं और उस में पानी भरने लगे तो तुरन्त दोनों हाथों से उसे (बाहर फेंकना) आरम्भ कर दीजिए (वरना नाव डूब जाएगी), इसी प्रकार यदि घर में आवश्यकता से अधिक धन इकट्ठा होने लगे तो उसे दान करना शुरू कर दीजिए.

पानी बिन जिन्दगानी कौन काम की. मान-सम्मान के बिना जीवन किस काम का.

पानी मथे घी नहीं निकलता. बिना उचित साधनों के कोई कार्य सिद्ध नहीं होता. घी दही को मथने से निकलता है, पानी को मथने से नहीं.

पानी में आग लगाय लुगाई. स्त्रियाँ कहीं भी झगड़ा करा सकती हैं.

पानी में घुस कर कोई सूखा नहीं निकल सकता. इस संसार रूपी भवसागर में कोई व्यक्ति बिल्कुल निश्छल, निष्कपट, निष्पाप हो कर नहीं रह सकता.

पानी में पखान, भीगे पर छीजे नहीं, मूरख के आगे ज्ञान, रीझे पर बूझे नही. पखान – पाषाण (पत्थर). पानी में पत्थर भीगता तो है पर गलता नही है. मूर्ख के आगे ज्ञान की बात करोगे तो वह खुश तो होगा, पर समझेगा कुछ नही. 

पानी में पादोगे तो बुलबुले तो उठेंगे ही. कोई गलत काम कितना भी छिप कर करो तो भी औरों को दिखाई दे जाएगा. (भाषा में थोड़ी अभद्रता है पर बात सही है).

पानी में पैर नहीं, बड़ी मछली मेरी है. किसी कार्य में योगदान दिए बिना हिस्सा माँगना, वह भी औरों से अधिक.

पानी में मछली के नौ नौ हिस्सा. मछली अभी पकड़ी भी नहीं है (अभी पानी में ही है) और उस के हिस्से बांटे किए जा रहे हैं. काम पूरा होने से पहले ही लाभ के लिए झगड़ना.

पानी में मीन पियासी, मोहे देखत आवे हांसी. सब प्रकार की सुविधाओं के बीच रहते हुए भी मनुष्य की लालसा कम नहीं होती.

पानी में हगा ऊपर आता है. कोई गलत काम छिप कर किया जाए तब भी अंततः सामने आ जाता है. भोजपुरी कहावत – भइंस पानी में हगी त उतरइबे करी.

पानी से पतला क्या. किसी ढीले चरित्र वाले का मजाक उड़ाने के लिए.

पाप ऊंचे चढ़ के चिल्लात (पाप पहाड़ पे चढ़ के पुकारे). पापी का पाप छिपाने से नहीं छिपता. 

पाप का घड़ा कभी न कभी फूटता ही है (पाप का घड़ा डूब कर रहता है) (पाप का घड़ा भर कर डूबता है). कोई अत्याचारी, अनाचारी कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो उसका अंत अवश्य होता है.

पाप का धन, अकारथ जाए. पाप की कमाई अंततः व्यर्थ ही जाती है.

पाप का बाप लोभ. लालच ही इंसान को पाप करने के लिए प्रेरित करता है. सन्दर्भ कथा – एक व्यक्ति अपनी सारी शिक्षा संपन्न करके घर आया. माता पिता ने आनन फानन में उसकी शादी करा दी. उसकी पत्नी ने उससे एक प्रश्न पूछा कि बताओ कि पाप का बाप कौन है. तो वह विद्वान व्यक्ति हैरानी में पड़ गया. कहने लगा कि मैंने अपने सारे अध्ययन में पाप के बारे में तो पढ़ा है पर ये पाप का बाप कौन है यह नहीं जाना. पाप के बाप को जानने के लिए वह अपने गुरु जी से मिलने चल दिया.

    चलते चलते रास्ते में एक वैश्या का घर पड़ा. उस वेश्या ने यूं ही कहा राम राम महाशय! कहां जा रहे हैं आप? वह बोला, अपने गुरु से यह पूछने जा रहा हूँ कि पाप का बाप कौन है. वैश्या बोली, यह तो मैं आपको बता सकती हूँ. वह व्यक्ति बोला, यह तो बड़ा अच्छा होगा, कृपया जल्दी बताइए. वैश्या बोली बता तो दूंगी लेकिन आपको मेरे यहाँ भोजन करना पड़ेगा. वह व्यक्ति कहने लगा, नहीं नहीं, वैश्या का भोजन खाने से मुझे पाप लगेगा. रहने दो मैं अपने गुरुजी से ही पूछ लूँगा. वैश्या ने कहा, मेरे यहाँ खाना खाओगे तो मैं तुम्हें एक सोने का सिक्का भी दूंगी.

    सिक्का देख कर उस व्यक्ति के मन में लोभ आ गया और वह वैश्या के यहाँ खाना खाने के लिए तैयार हो गया. फिर जब वैश्या खाना बना कर लाई तो उसने कहा कि अगर आपको ऐतराज न हो तो मैं आपको अपने हाथों से ही खाना खिला दूं. उस व्यक्ति ने फिर ऐतराज जताया तो फिर से वैश्या ने फिर उसे सोने का सिक्का दिया. अब वह व्यक्ति उसके हाथ से खाना खाने को भी तैयार हो गया. वैश्या ने भोजन का एक निवाला विद्वान के मुख की तरफ बढ़ाया और उस के मुंह खोलते ही उसके गाल पर जोरदार एक थप्पड़ जड़ दिया और बोली, यह लोभ ही है पाप का बाप

पाप की कमाई, कुत्ते-बिल्लियों ने खाई. पाप कर के कमाया हुआ धन अंतत: बर्बाद ही हो जाता है. 

पाप छिपाए न छिपे, जस लहसुन की बास. जैसे लहसुन की गंध छिपाए नहीं छिपती वैसे ही पाप भी नहीं छिपता.

पाप डुबोवे धरम तिरावे, धरमी कभी नहीं दुख पावे. पाप मनुष्य को डुबोता है जबकि धर्म मनुष्य को डूबने से बचाता है. धर्म पर चलने वाला अंततः सुख पाता अवश्य है.

पाप मूल निंदा. किसी की निंदा करना पाप की जड़ है.

पाप-पुन्न का कोई भागी नहिं होत. पाप-पुण्य का फल अपने ही को मिलता है.

पापी का मन शंका में. पाप करने वाला मनुष्य हमेशा चिन्ता में रहता है क्योंकि वह स्वयं भी जानता है कि यह गलत काम है.

पापी की नाव, भर कर डूबे. पाप कर्म द्वारा जो सम्पत्ति कमाई जाती है वह अंततः डूब जाती है.

पापी के मन में पाप ही बसे. अर्थ स्पष्ट है.

पापी को मारने को पाप महाबली. पापी अंततः अपने पापों के कारण ही मारा जाता है.

पापी को माल अकारथ जाए, दंड भरे या चोर लै जाए. पाप की कमाई व्यर्थ ही जाती है. दंड भरने में जाती है या चोर ले जाते हैं.

पापी पेट सब कराए. पेट के लिए उचित अनुचित सब करना पड़ता है.

पापी सहाय पापी को. एक पापी दूसरे पापी की सहायता करता है (जैसे आजकल के भ्रष्ट नेता).

पार उतरना चाहे, तो केवट से मिल राहे. कोई काम करना हो तो उस से संबंधित व्यक्ति को पटाओ.

पार उतरूँ तो बकरा दूँ (सकरें देबी सुमिरों तोय, मुकते खबर बिसर गई मोय). मुसीबत में पड़ने पर इष्टदेव को भेंट देने की मनौती मानना और मुसीबत दूर होने पर मुकर जाना. सन्दर्भ कथा – जब कोई मुसीबत के समय तो देवी देवता से मन्नत मांगे, पर छुटकारा पाने पर मुकरजाए. कोई मियाँ नाव में बैठकर नदी पार कर रहा था. बीच में पहुंचा, तो बड़े जोर का तूफ़ान आया. उसने किसी पीर की मिन्नत मानी कि यदि सकुशल पार पहुंच जाऊं तो बकरा चढ़ाऊंगा. तूफान जब बंद हुआ, तो उसे बकरे का मोह हुआ और उसने कहा कि अगर बकरा नहीं चढ़ा सका तो मुर्गी अवश्य चढ़ाऊंगा. अंत में जब वह राजी-खुशी पार पहुंच गया, तो मुर्गी के लिए भी उसका मन कलपने लगा. अपने वादे को पूरा करने के लिए उसने कपड़ों में से एक चीलर निकाल कर मार डाला और बोला, जान के बदले में मैंने जान तो दे ही दी.

पार कहें सो आर है आर कहें सो पार, पकड़ किनारा बैठ रह यही पार यहि आर. नदी के किनारे बैठा आदमी अपने किनारे को आर कहता है और दूसरे किनारे को पार. दूसरी तरफ बैठा बंदा उस किनारे को आर कहता है और इस किनारे को पार. मोहजाल में मत उलझो. एक किनारा पकड़ कर बैठ जाओ, यही आर है और यही पार. 

पारसनाथ से चक्की भली जो आटा देवे पीस, कूढ़ नर से मुर्गी भली जो अंडा देवे बीस. पारसनाथ – जैन धर्मावलम्बियों का तीर्थस्थल पारसनाथ पर्वत जो झारखंड में स्थित है. कहावत में कहा गया है कि किसी पवित्र पर्वत के मुकाबले साधारण चक्की अधिक अच्छी है जो आटा पीस देती है. इसी प्रकार किसी बेकार के मनुष्य के मुकाबले मुरगी अधिक अच्छी है जो अंडे देती है. जैन धर्म का मजाक उड़ाने के लिए किसी ने ऐसा कहा है.

पाव की हंडिया में सेर नहीं समाता. छोटे आदमी की बुद्धि में बड़ी बात नहीं समा सकती. छोटी मानसिकता वाले व्यक्ति से किसी बड़े काम की आशा नहीं की जा सकती.

पाव भरी की देवी और नौ पाव पूजा. देवी छोटी सी हैं और पूजा की सामग्री बहुत सारी है. किसी अपात्र का बहुत अधिक सत्कार करने पर. रूपान्तर – पाव भर के बाबा जी, सवा सेर को संख.

पावक, बैरी, रोग, रिन सेस राखिए नाहिं, जे थोड़े हूँ बढ़त पुनि बड़े जतन सों जाहिं. (बुन्देलखंडी कहावत) आग, शत्रु और ऋण, इनको बिल्कुल समाप्त कर के छोड़ना चाहिए. ये थोड़े से भी बच जाएँ तो पुनः विकराल रूप धारण कर लेते हैं और फिर बड़ी कठिनाई से जाते हैं. रूपान्तर – पावक, बैरी, रोग, रिस, इन्हें न बढ़ने देय.

पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन, अब दादुर बक्‍ता भए, हमको पूछत कौन. वर्षा ऋतु में कोयल चुप हो जाती है. वह सोचती है कि अब तो मेंढक बोल रहे हैं, उसे कौन पूछेगा. मूर्खों की भीड़ में कोई बुद्धिमान व्यक्ति बोलना पसंद नहीं करता.

पास का कुत्ता न दूर का भाई. दूर रहने वाले भाई के मुकाबले पास रहने वाला कुत्ता अधिक मददगार होता है.

पास की ससुरार, रात दिना की रार. ससुराल अगर बहुत पास में हो तो रोज कोई न कोई लफड़ा होता है, इसलिए ससुराल के पास नहीं रहना चाहिए. 

पास जल सो जल, बांह बल सो बल. जो पानी हमारे आसपास उपलब्ध हो वही हमारे काम का है, जो बल हमारी बाहों में है वही हमारे काम का है.

पास रहे तो मन को न भाए, चला जाए तो मन पछताए. कोई वस्तु जब सहज उपलब्ध होती है तब हम उस का महत्व नहीं समझते. जब वह हाथ से निकल जाती है तो मन पछताता है.

पासा पड़े अनाड़ी जीते. भाग्य साथ दे तो अनाड़ी व्यक्ति भी कामयाब हो जाता है.

पासा पड़े सो दांव, राजा करे सो न्याव. पासा जो भी पड़ा वही आपका दांव माना जाएगा, उसे आप बदल नहीं सकते. राजा जो कह दे वही न्याय माना जाएगा, उसे कोई बदल नहीं सकता. 

पासी, चरवाहे और गाड़ीवान की मेहरारू रांड़े होंहि. पासी को ताड़ के पेड़ पर चढ़ना होता है जिस से गिर के जान जाने का खतरा है, चरवाहा जंगली जानवरों का शिकार बन सकता है और गाड़ीवान चोर डाकुओं का. इन कारणों से इनकी पत्नियों के विधवा होने का डर रहता है. इसके अलावा इन को बहुधा घर से बाहर ही रहना होता है.

पासों का सबसे अच्छा फेंकना है कि उनको फेंक ही दो. चौपड़ का खेल बर्बादी का पूरा इंतजाम है. उसमें पासे फेंक कर चाल चली जाती है. सयाने लोगों का कहना है पासे फेंकना है तो सबसे अच्छी चाल है बाहर फेंक दो.

पाहन में कौ मारबो, चोखा तीर नसाय. पत्थर में मार कर अच्छा ख़ासा तीर क्यों खराब कर रहे हो. पाहन – पाषाण, पत्थर. चोखा – अच्छा, नसाय – नष्ट कर रहे हो. कोई आदमी निष्ठुर व्यक्ति से सहायता प्राप्त करने की कोशिश में अपना समय नष्ट करे तो (या कोई व्यक्ति किसी मूर्ख को समझाने की कोशिश कर रहा हो तो).

पाहुना पहले दिन सोना, दूसरे दिन चांदी और तीसरे दिन कचरा. अतिथि का आना शुरू में अच्छा लगता है पर बहुत जल्दी वह बोझ लगने लगता है (इसलिए किसी के घर अधिक दिन नहीं ठहरना चाहिए).

पाहुने और मौत का भरोसा नहीं होता. अतिथि और मृत्यु कब आ जाएँ किसी को नहीं पता होता.

पाहुने जीमते जाते हैं, रांडें रोती जाती हैं. वैसे तो रांड शब्द का अर्थ विधवा स्त्री होता है, पर कहावतों में कई स्थानों पर इस का प्रयोग धूर्त स्त्री के अर्थ में करते हैं. कहीं कोई शुभ कार्य होता देख कर धूर्त लोगों को कष्ट हो रहा हो तो यह कहावत कही जाती है. 

पाहुनों से वंश नहीं चलता. किसी के घर में मेहमानों का जमघट लगा रहता हो पर उसकी अपनी कोई सन्तान न हो तो उस का वंश नहीं चल सकता. कोई व्यक्ति दुनियादारी में लगा रहे और अपने परिवार पर ध्यान न दे उसके लिए.

पिंड में सो ब्रह्माण्ड में. मनुष्य का शरीर जिन पांच तत्वों से बना है वही ब्रह्मांड में व्याप्त हैं.

पिए भैंस का दूध, रहे ऊत का ऊत. भैंस का दूध पीने से अक्ल मोटी हो जाती है (गाय का दूध पीने से बुद्धि तीव्र होती है).

पिए रुधिर पय न पिए, लगी पयोधर जोंक. जोंक यदि स्तन में लग जाए तो भी रक्त ही पीती है दूध नहीं. दुष्ट व्यक्ति को अच्छे परिवेश में रखो तब भी दुष्टता ही करता है.

पिछली रोटी खाय, पिछली मति पाय. ऐसा विश्वास है कि आखिरी रोटी खाने से बुद्धि कम हो जाती है.

पिछले गाँवों पिटकर आये, अगले गाँव में सिद्ध. धूर्त साधुओं के लिए.

पिटा हुआ और जीमा हुआ भूलता नहीं. किसी के घर से पिट के आए हों तो नहीं भूल सकते और कहीं भरपेट स्वादिष्ट भोजन मिला हो तो नहीं भूल सकते.

पितरन को पानी बामन को दान, आए दरवाजे को सदा रक्खें माने. पितरों को पानी देना, ब्राह्मण को दान देना और अतिथि को सम्मान देना सब का कर्तव्य है.  

पितृ मुखी कन्या सुखी. जिस कन्या का चेहरा पिता से मिलता है वह सुखी रहती है.

पिय वियोग सम दुख जग नाहीं. किसी भी स्त्री के लिए पति के वियोग जैसा कोई दुख नहीं है.

पिया आगे राज, पीछे चलनी न छाज. विधवा स्त्री का कथन, पति के सामने तो मैंने राज किया और अब चलनी और सूप जैसी छोटी छोटी चीजों के लिए मुहताज हूँ.

पिया गए परदेश, अब डर काहे का. पति बाहर गए हों तो स्त्रियाँ निरंकुश हो जाती हैं. यह पुराने जमाने की कहावत है, अब इसका उल्टा है. स्त्रियाँ मैके जाती हैं तो पति निरंकुश हो जाते हैं.

पिया बिना कैसा त्यौहार (सजन बिन ईद कैसी). पति के बिना कोई त्यौहार अच्छा नहीं लगता.

पिया मोरा आंधर (अंधा), मैं का पर करूं सिंगार. मेरा पति अंधा है मैं श्रृंगार किस के लिए करूँ. जहाँ आपकी योग्यता का कोई कद्रदान न हो वहाँ योग्यता किस को दिखाएँ.

पिसनहारी को पूत, जो चबा ले सो लाभ (पिसनहारी के पूत को चना लाभ ही बहुत है). पिसनहारी – अनाज पीसने वाली. पिसनहारी वहाँ से कुछ ले तो नहीं जा सकती. उस का लड़का वहाँ बैठ कर जितना चबा ले वही उसके लिए बहुत बड़ा लाभ है. छोटे आदमी के लिए छोटे छोटे लाभ भी बहुत मायने रखते हैं.

पीठ की मार मारे, पेट की न मारे. किसी ने गलती की हो तो उस को दंड कितना भी दे दो पर उस की रोजी रोटी मत छीनो.

पीठ देख कर ही नजर लगे. 1. अत्यंत सुंदर व्यक्ति. 2. अत्यंत भद्दे व्यक्ति पर व्यंग्य.

पीठ पर मैल जम ही जाती है. शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट है, भावार्थ यह है कि जो स्थान हमारी देख रेख और कार्य क्षेत्र से दूर हो वहाँ गंदगी इकट्ठी हो जाती है. 

पीठ पीछे की छींक, संका ते मत झींक. यदि आपकी पीठ के पीछे कोई छींके तो यह अपशकुन नहीं माना जाता.

पीठ पीछे परजा, राजा को गरियावत. कोई कितना शक्तिशाली क्यों न हो, पीठ पीछे उसे भी गालियाँ मिलती हैं.

पीठ में लट्ठ भवानी करें, सबरो घर पूजा को चले. आपत्ति आने पर ही लोग भगवान का स्मरण करते हैं.

पीतल की अँगूठी में सोने का टांका, माँ छिनाल पूत बांका. किसी चरित्रहीन स्त्री का पुत्र बहुत बना ठना घूम रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए. 

पीतल, कांसा, लौह में पड़े जंग चढ़ जाए, जलधर आवे दौड़ता, इस में संसै नाय. अगर घर में पड़े पीतल, कांसा या लोहे में जंग लग जाए तो इस का अर्थ है कि वर्षा होने वाली है. (जलधर – बादल)

पीताम्‍बर ओछा भला, साबत भला न टाट, और जात शत्रु भली, मित्र भला न जाट. पीला कपड़ा घटिया वाला हो तो भी टाट से अच्छा है. दूसरी जाति के दुश्मन भी जाट दोस्त से बेहतर हैं. (जाट से दोस्ती खतरनाक है).

पीपर तले हाँ करे, कीकर तले नट जाए.  पल में बात बदलने वाला आदमी. अभी हाँ करे और अभी मुकर जाए.

पीपर पात सरिस मन डोला. पीपर – पीपल, पात – पत्ता, सरिस – तरह. मन की चंचल स्थिति के प्रति कहावत.

पीपल काटे, पाल बिनासे, भगवा भेस सतावे, काया गढ़ी में दया न ब्यापे, जड़ मूल से जावे. पाल–खेत की मेंड़ जो वर्षा का पानी रोकने को बनाई जाती है, जो पीपल को काटता है, मेंड़ काटता है, साधुओं को सताता है और जिसके मन में दया नहीं है उसका सर्वनाश हो जाता है. हिन्दुओं में पीपल के पेड़ को काटना निषिद्ध मानते हैं.

पीपल पूजन मैं गई अपने कुल की लाज, पीपल पूजत हरि मिले एक पंथ दो काज. कृष्ण भक्त गोपी का कथन. एक काम करने से दो लाभ होना. केवल ‘एक पंथ दो काज’ को भी कहावत की तरह बोला जाता है.

पीर को न शहीद को, पहले नकटे देव को. योग्य और पूज्य लोगों से पहले ओछे ओर बेशर्म आदमी को पूछना चाहिए, क्योंकि वह रायता फैला सकता है. 

पीर जी की सगाई, मीर जी के यहाँ (पीर की सगाई पीर के घर). दोस्ती, दुश्मनी, व्यापार, विवाह इत्यादि अपनी बराबरी वालों में ही करना चाहिए

पीला पीला सब सोना नहीं होता. ऊपरी दिखावे से जो चीज़ उत्तम प्रतीत होती है वह जरूरी नहीं कि वास्तव में उत्तम हो. इंग्लिश में कहते हैं – All that glitters is not gold.

पीसने को चोकर, गाने को सीता हरन.  दिखावट तो बहुत, परंतु सार कुछ नहीं.

पीसे हुए को क्या पीसना. 1. जो सताया हुआ हो उसे क्या सताना. 2. कही हुई बात बार बार क्या कहना.

पुचकारा कुत्ता सर चढ़े. कुत्ते को अधिक लाड़ करो तो वह सर पर चढ़ने लगता है. अपात्र को अधिक सुविधाएं दो तो वह उनका गलत लाभ उठाता है.

पुजारी की पगड़ी, सिपाही की जोय, जुलाहे की जूती, पड़ी पुरानी होय. पुजारी अधिकतर समय पूजा पाठ के कारण पगड़ी नहीं पहनता, सिपाही ड्यूटी पर तैनात रहता है या युद्ध में मारा जाता है इस कारण वह पत्नी साथ समय नहीं बिता पाता, जुलाहा दिन रात बैठ कर काम करता है इसलिए जूती नहीं पहनता. इस से मिलती जुलती कहावत है – पुजारी की पगड़ी, नामर्द की जोय, कायर की तलवार, पड़ी पुरानी होय.

पुड़किया बाज से कैसे जीत सकती है. पुड़किया – कबूतर की जाति का एक छोटा पक्षी. अर्थ स्पष्ट है.

पुन्न ही आड़े आवे. पुण्य ही समय पर मनुष्य की रक्षा करता है.

पुन्नी अरजे पापी खाय, पुन्नी का जनम अकारथ जाए. पुण्यात्मा लोग जो धन इत्यादि अर्जित करते हैं उसे पापी लोग खाते हैं. हमारे देश ने जो कुछ धन सम्पदा अर्जित की थी, वह सब मुगलों और अंग्रेजों ने लूट कर खाई.

पुन्य करत होत यदि हानि, तऊ न छाड़िए पुन्य की बानि. पुन्य (किसी का भला) करने में यदि अपना कुछ नुकसान भी हो जाए तब भी पुन्य करने की आदत नहीं छोड़नी चाहिए.

पुन्य की जड़ सदा हरी (पुण्य की जड़ पाताल तक). परोपकार करने वाले व्यक्ति की सदा उन्नति होती है.

पुरवा के बहे से चोट पिराय. पुरवा हवा के बहने से पुरानी से पुरानी चोट भी दर्द करती है.

पुराना कपड़ा और बेईमान आदमी का क्या ठिकाना. पुराना कपड़ा कभी भी फट सकता है और बेईमान आदमी कभी भी धोखा दे सकता है.

पुराना ठीकरा और कलई की भड़क. बुढापे में ज्यादा रंग रोगन लगा कर जवान दिखने की कोशिश. ठीकरा – टूटे हुए बर्तन का टुकड़ा. रूपान्तर – पुराने मठ पे कलई.

पुराना पंसारी, नया बजाज. पुराने पंसारी को बहुत सी वस्तुओं के विषय में अधिक जानकारी होती है इसलिए वह अधिक योग्य माना जाता है, नए बजाज को नए फैशन और स्टाइल के विषय में अधिक जानकारी होती है इसलिए नया बजाज अधिक अच्छा माना जाता है.

पुराना वैद्य और नया ज्योतिषी अच्छा होता है. वैद्य पुराना अच्छा होता है क्योंकि जैसे जैसे वह पुराना होता जाता है उस का अनुभव बढ़ता जाता है, जबकि ज्योतिषी नया अच्छा होता है क्योंकि वह नए ज्योतिष शास्त्र की नई बातें सीख कर आता है.

पुराना सो सयाना. व्यापार में पुराने अनुभवी लोगों को हमेशा तवज्जो देनी चाहिए. सन्दर्भ कथा – एक सेठ का विदेश में बहुत अच्छा कारोबार था. सेठ की मृत्यु हो जाने पर उसके बेटे ने नये-नये आदमियों को रख लिया और पुराने मुनीमों की छुट्टी कर दी. वे सारे नौसिखिये थे और सेठ के बेटे को भी कारोबार को संभालने का कोई अनुभव नहीं था, अतः कारोबार चौपट होने लगा. एक दिन उसके ऊपर एक बड़ी हुंडी आई. हुंडी दर्शनी थी, अतः उसके रुपये तत्काल दिये जाने आवश्यक थे. लेकिन रोकड़ में रुपये नहीं थे. हुंडी न देने का मतलब था दिवालिया घोषित हो जाना. तब सेठ के लड़के ने अपनी मां के कहने से पुराने मुनीम को बुलाया. जाड़े की ऋतु थी, मुनीम काफी वृद्ध था और जाड़े के कारण कांप रहा था. सेठ ने उसके तापने के लिए अंगीठी मंगवाई. इतने में हुंडी वाले का आदमी भुगतान लेने के लिए आ गया.

    वृद्ध मुनीम हुंडी को पढ़ने लगा और पढ़ते पढ़ते ही उसने अपने कांपते हाथों से हुंडी अंगीठी में डाल दी. फिर मुनीम ने अफसोस प्रकट करते हुए हुंडी वाले से कहा कि भैया हुंडी तो आग में जल गई, तुम इसकी पैठ (नकल) मंगवा लो. वह बोला कि कोई बात नहीं, पैठ मंगवा ली जाएगी. मुनीम की इस चतुराई से सेठ के बेटे को रुपया एकत्र करने के लिए समय मिल गया.

    जब बैंक नहीं होते थे तो लोग धनराशि को इधर से उधर ले जाने के स्थान पर हुंडियों का प्रयोग करते थे. यह एक प्रकार का बैंक ड्राफ्ट होता था. किसी एक सेठ के यहाँ रूपये जमा कर के उससे हुंडी लिखवा ली जाती थी और दूसरे दूसरे सेठ के यहाँ उस का भुगतान ले लिया जाता था. वे सेठ लोग अपने आपसी व्यापार में उनका जमा खर्च कर लेते थे. मियादी हुंडी का भुगतान हुंडी में लिखी मियाद पूरी होने पर किया जाता था, लेकिन दर्शनी हुंडी का भुगतान तत्काल करना होता था. यदि कोई सेठ हुंडी का भगतान न कर पाए तो बाजार में उसकी भद पिट जाती थी और उस का दीवाला निकला मान लिया जाता था. हुंडी के गुम हो जाने या नष्ट हो जाने पर उसकी पैठ लिखी जाती थी.

पुरुष की माया, बिरछ की छाया. पुरुष की छत्रछाया में ही यह संसार-चक्र चल रहा है.

पुरुष के दूख और पशु की भूख का कुछ पता नहीं चलता. ये अपनी परेशानी कहना नहीं जानते.

पुरुष पुरातन की वधू क्यों न चंचला होए. लक्ष्मी जी भगवान विष्णु की पत्नी हैं जोकि सृष्टि के सबसे पुरातन पुरुष हैं. शायद इसी लिए वह इतनी चंचल हैं. (लक्ष्मी अर्थात धन सम्पदा कभी किसी के पास ठहरती नहीं है इसलिए उन्हें चंचला कहा गया है). इस दोहे की पहली पंक्ति है कमला थिर न रहीम कहि यह जानत सब कोय.

पुरुष बिचारा क्या करे जिस घर नार कुनार, वो सीमे दो आंगुली, वो फाड़े गज चार. जिस घर में गृहणी दुष्ट स्वभाव की हो उस घर को अकेला पुरुष नहीं संभाल सकता. वह दो उँगली सी कर चुकता है तब तक वह दो गज और फाड़ देती है, अर्थात वह थोड़ी बहुत बात सम्भालता है तब तक वह बात को और अधिक बिगाड़ देती है. 

पुरुष ही पारस है. एक मनुष्य ही दूसरे को अच्छा बनाता है.

पुल पार करने के लिए होता है, घर बनाने के लिए नहीं. जो चीज़ समाज के उपयोग की होती है उस पर किसी को कब्ज़ा नहीं ज़माना चाहिए.

पुल बंधावै सास जाय, पतोहू खेले कजरिया धाय. सास तो पुल बाँधने जैसा कठिन और खतरनाक काम करने में लगी है और बहू कजरी खेल रही है. नई पीढ़ी के गैर जिम्मेदाराना व्यवहार के लिए कहावत कही गई है.

पुश्तों बाद कबूतर पाले, आधे गोरे आधे काले. किसी खानदान में कभी किसी ने कोई कायदे का काम न किया हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.

पूंछकटा हर वक्त लड़ने को तैयार. जिस कुत्ते की पूंछ कटी हो तो वह हर समय लड़ने को तैयार रहता है. जिस लड़ाका आदमी की कोई इज्ज़त न हो उस के लिए.

पूंजी से पूंजी उपजे. व्यापार में पूँजी लगाने से ही और पूँजी पैदा होती है.

पूछत पूछत लंका चले जात. कोई स्थान कितना भी अपरिचित हो आदमी पूंछते-पूछते वहाँ पहुँच जाता है.

पूछता नर पंडिता. (जो पूछे सो पंडित). औरों से पूछ पूछ कर ज्ञान प्राप्त करने वाला व्यक्ति पंडित बन जाता है. इंग्लिश में कहावत है – Curiosity is the mother of knowledge.

पूछने में का लगत. पूँछने में क्या लगता है. किसी से कोई बात पूछने में संकोच क्या.

पूछी खेत की बताई खलिहान की (पूछी जमीन की, बताई आसमान की). कुछ का कुछ जवाब देना.

पूछी न काछी, मैं दुल्हन की चाची. जबरदस्ती किसी से रिश्ता जोड़ना. मान न मान मैं तेरा मेहमान.

पूछे न ताछे, बड़बड़ करे. कुछ लोग कोई बात समझ में न आने पर या कोई परेशानी होने पर किसी से पूछने की बजाय बड़बड़ाते रहते हैं. उन का मजाक उड़ाने के लिए. 

पूजनीय गुण ते पुरुष, वयस न पूजित होए. पुरुष अपन गुणों से पूजा जाता है न कि अधिक आयु से.

पूजा के दिन बकरी हेरान. हेरान – खो गई. किसी ख़ास मौके पर सबसे महत्वपूर्ण वस्तु का खो जाना.

पूजा से दंडवत भारी, 1.पूजा करना आसान है पर दंडवत लगा कर परिक्रमा करना कठिन. 2.किसी की चमचागीरी करना आसन है पर नेताओं के गुलामों की तरह चप्पलें उठाना और पैरों में लेटे रहना बहुत मुश्किल है.

पूजे से देवता नाहीं तो भूत. यदि भक्त न पूजें तो कोई कैसे देवता बन सकता है.

पूड़ी न पापड़ी, पटाक बहू आ पड़ी. कहीं पर बिना किसी समारोह और दावत के कोई बड़ा काम (विवाह, बच्चे का जन्म आदि) हो जाए तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.

पूत आंधर पतोहू काजय देय. पुत्र तो अंधा है तो बहू किस को दिखाने के लिए काजल लगाकर बैठी है. 

पूत कपूत सुने बहुतेरे, मां न सुनी कुमाता. ऐसे बहुत से नालायक पुत्र हो सकते हैं जो अपनी माँ का ध्यान न रखें पर ऐसी माँ कोई नहीं होती जो अपने पुत्र का ध्यान न रखे.

पूत कमावे चार पहर, ब्याज कमावे आठ पहर. आदमी तो चार प्रहर काम कर के ही पैसा कमा सकता है पर ब्याज पर लगा पैसा आठों प्रहर पैसा कमाता है.

पूत का मूत प्रयाग का पानी. कोई कम उम्र की बहू पहली बार मां बनी तो बच्चे की टट्टी पेशाब से घिनिया रही थी. उसकी मां या सास ने उसको समझाने के लिए यह कहावत कही. कुछ पुरानी महिलाएं जो लड़की पैदा होने को बुरा समझती हैं, वे इस कहावत के आगे ये भी बोलती हैं – धी का मूत नरक की निशानी. धी – बेटी.

पूत की जात को सौ जोखें. पुत्रों का शुरू से ही बहुत ध्यान रखा जाता है लेकिन तब भी उनको पालने में ज्यादा परेशानियाँ आती हैं, लड़कियां बेचारी बेकद्री का शिकार हो कर भी आसानी से पल जाती हैं.

पूत के पाँव पालने में ही पहचान लिए जाते हैं. बच्चे के आरम्भिक लक्षण देख कर ही इस बात का अंदाज़ लग जाता है कि वह होनहार है. रूपान्तर – ललना के लच्छन पलना में दिख जात.

पूत के लक्षण पालने और बहू के लक्षण द्वार. पूत के लक्षण पालने में पहचान लिए जाते हैं यह तो सब जानते ही हैं, बहू के लक्षण भी तब ही पहचान लिए जाते हैं जब वह घर में प्रवेश करती है. 

पूत तो गाय का और पूत किसका, राजा तो मेघराज और राज किसका. गाय का पूत – बैल, मेघराज – बादल. जब खेती बैलों से होती थी और वर्षा पर निर्भर थी तब किसान के लिए बैल और बादलों की बहुत कीमत थी.

पूत न भतार, अनायासे छाती पे सवार. 1.जब कोई स्त्री जबरदस्ती किसी के सर हो रही हो तो वह यह कहता है कि न तो मैं तुम्हारा पुत्र हूँ, न ही पति. व्यर्थ में क्यों मेरी छाती पर सवार हो रही हो. 2. जिस स्त्री के पति और पुत्र न हों और वह जबरदस्ती किसी के सर हो रही हो.

पूत न माने अपनी डांट, भाई लड़े कहे नित बाँट, तिरिया करकस कलही होय, नियरे बसें दुष्ट सब कोय, मालिक नाहीं करें विचार, सबै कहें ये विपत अपार. पाँच सबसे बड़े कष्ट इस प्रकार हैं – पुत्र आपकी डांट न माने, भाई सम्पत्ति बाँटने के लिए लड़े, स्त्री कर्कशा हो, आस पास दुष्ट लोग बसें और मालिक आपकी परेशानी को न समझे.

पूत भए सयाने, दुख भए बिराने. बिराने – पराये. पुत्र सयाने हो जाते हैं तो आदमी के दुख दूर हो जाते हैं.

पूत भी प्यारा भतार भी प्यारा, किसकी सौगंध खाऊं. किसी के सर की कसम खाने में उस की जान को खतरा होता है. पुत्र और पति दोनों प्यारे हैं, किसकी कसम खाऊं. असमंजस की स्थिति. 

पूत मांगे गई, भतार लेती आई. ऐसी स्त्रियों पर व्यंग्य जो पुत्र की कामना में दुराचारी पीर फकीरों की वासना का शिकार हो जाती हैं.

पूत शोक सहा जाए, धन शोक न सहा जाए. दुनिया में सबसे बड़ा शोक पुत्रशोक माना गया है. लेकिन कुछ लोगों के लिए धन का जाना इससे भी बड़ा दुख का कारण है.

पूत सपूत तो क्यों धन संचै, पूत कपूत तो क्यों धन संचै. पहले के जमाने के लोग पैसा जोड़ने को बुरा समझते थे. तब ऐसा माना जाता था यदि व्यक्ति की आमदनी अच्छी हो तो उसे पैसा इकठ्ठा करने की बजाए सामाजिक कार्य में लगाना चाहिए. तर्क यह होता था कि बेटा अगर लायक है तो भी धन संचय मत करो क्योंकि वह बुढ़ापे में आपको सहारा देगा ही और अगर बेटा नालायक है तो भी धन संचय मत करो क्योंकि वह सब उड़ा देगा. हमारे विचार से आज के युग में इस को उल्टा करके बोलना चाहिए. पूत सपूत तो भी धन संचय, पूत कपूत तो भी धन संचय. बेटा अगर होनहार है तो उसे उच्च शिक्षा या व्यापार के लिए धन चाहिए होगा और अगर नालायक है तो आपको अपना बुढ़ापा इज्जत से काटने के लिए धन चाहिए होगा.

पूता कारज करियो सोई, जामें हंडिया खुदबुद होई. सयाने लोग बच्चों को समझाते हैं कि काम वही करो जिससे घर में खाने पीने का प्रबंध हो सके (रोजी रोटी चल सके).

पूतों का क्या बुरा, बुरे वो जिन के पूत न हों. संतान को पालने में यदि कोई लोग परेशानी महसूस करते हैं तो बड़े बूढ़े उनको यह समझाते हैं.

पूरब का बरधा, दक्खिन का चीर, पच्छिम का घोड़ा, उत्तर का नीर. दशहरे की पूजा में बनियों के प्रतिष्ठानों में बही खाते बदले जाते हैं और उस दिन का मुख्य वस्तुओं का भाव लिखा जाता है. इस के साथ क्या चीज़ कहाँ की अच्छी होती है यह भी लिखा जाता है. उसी क्रम में उपरोक्त कहावत लिखी जाती है. 

पूरब के चाँद पश्चिम चले जाइहैं, धी के दुलार बहू नहीं पाइहैं. चाहे दुनिया इधर से उधर हो जाए, जो प्यार लड़की को दिया जाता है वह बहू नहीं पा सकती.

पूरब से चला तमाखू रहा बंगाले छाय, जिनके तन पे लत्ता नाहीं वोहू तमाखू खाएँ. तम्बाखू खाने की लत पूरब से चली और पूरे बंगाल में छा गई. गरीब से गरीब आदमी भी इसकी गिरफ्त में है.

पूरा आसमान फटा है, थेगली कहाँ तक लगाऊं. थेगली – पैबंद. बहुत बड़ी गड़बड़ हो तो उस पर लीपा पोती नहीं की जा सकती. 

पूरा तोल चाहे महंगा बेच. दुकानदार को हमेशा पूरा तोलना चाहिए चाहे सामान की कीमत औरों से कुछ अधिक ही क्यों न रखनी पड़े.

पूरी खेती काकी, जो हाथ करे ताकी, आधी खेती काकी, जो देखे आवै ताकी, डंगरा विकै काके, जो पूछ आवै ताके. खेती में पूरा लाभ किसे होता है – जो अपने हाथ से करे, आधा लाभ किसे होता है – जो जाकर देखता रहे, जानवर किसके बिक जाते हैं (अत्यधिक घाटा) – जो खाली आने जाने वालों से पूछ ताछ करता है. 

पूरे घर में एक घाघरा, पहले उठे सो पहने. घोर अभाव की स्थिति. वस्तुएं कम हैं और उपभोक्ता अधिक हैं, जो पहले पहुंचेगा वह पाएगा.

पूस न बइए, पीस खइए. पूस में गेहूँ बोने से फसल होने की सम्भावना कम है. इस से अच्छा तो उसे पीस कर खा लो. बइये – बोइये. 

पेट काटे धन न जुड़े. जो गरीब व्यक्ति इतना कम धन कमा पा रहा हो कि केवल अपने परिवार का पेट भर सके वह धन नहीं जोड़ सकता. यदि वह भरपेट खाना नहीं खाएगा तो काम कैसे करेगा. पेट काटना – आवश्यकता से कम भोजन करना. 

पेट की आग पेटहि जानत. पेट की आग पेट ही जानता है. भूखे का कष्ट भूखा ही जानता है.

पेट की आग बुझते बुझते ही बुझती है. 1. तेज भूख लगी हो तो धीरे-धीरे ही शांत होती है 2. यदि स्त्री के पेट का जाया बच्चा ना रहे तो उसका दुख धीरे-धीरे ही भूलता है

पेट के आगे सब हेठ. सारे रिश्ते नाते, आदर्श और नैतिकता तभी अच्छे लगते हैं जब पेट भरा हो.

पेट के पत्थर भी प्यारे. पेट के पत्थर भी प्यारे होते हैं, फिर पुत्र चाहे जैसा निकम्मा हो, वह तो प्यारा होगा ही. जिन लोगों के पित्ते या गुर्दे की पथरी निकाली जाती हैं वे उन्हें बड़ी संभाल कर रखते हैं.

पेट खाली ईमान खाली. आदमी भूखा हो तो ईमानदारी से काम नहीं कर सकता, पेट भरने के लिए कुछ न कुछ बेईमानी जरूर करेगा.

पेट घुसे तो भेद मिले. किसी से मित्रता बढ़ा कर और अंतरंगता स्थापित कर के ही उस के मन का भेद लिया जा सकता है.

पेट जो चाहे करावे (पेट जो न कराए). पेट की आग आदमी से सब प्रकार के गलत काम कराती है. संस्कृत में कहा गया है – बुभुक्षितः किं न करोति पापं.

पेट न परजा का भरे, दैव करे वह राजा मरे. ऐसे राजा से क्या लाभ जो प्रजा का पेट न भर पाये.

पेट नरम, पैर गरम, सर ठंडा, जो आवे वैद तो मारो डंडा. पुराने जमाने में जब बहुत थोड़ी सी ही बीमारियां हुआ करती थी तो लोग यह मानते थे कि सर गर्म होना बुखार का लक्षण है, पेट का कड़ा होना या फूलना पेट की बीमारी का लक्षण है और पैर ठंडे होना किसी गंभीर बीमारी का लक्षण है. अगर किसी का पेट नरम है, पैर गर्म हैं और सर ठंडा है तो उसे कोई बीमारी नहीं है. ऐसे में यदि वैद्य देखने आए तो उसे डंडा मारकर भगा दो. इस कहावत से दो बात समझ में आती हैं एक तो यह कि रोजमर्रा में होने वाली छोटी मोटी बीमारियों के यही तीन मुख्य लक्षण होते थे और दूसरी यह कि उस जमाने में भी ऐसे वैद्य होते होंगे जो झूठी मूठी बीमारी बताकर लोगों को बेवकूफ बनाते होंगे. कुछ कुछ इस आशय की इंग्लिश में एक कहावत है – Keep your feet warm and your head cool, then you may call your doctor a fool.

पेट पड़ी गुन देतीं. बच्चे घर से बाहर जाते हैं तो माँ कहती है, बेटा रोटी खा कर जाओ, पेट पड़ी काम देंगी.

पेट पालना कुत्ता भी जानता है. मनुष्य का जन्म मिला है तो केवल पेट के बारे में ही मत सोचो, इस से ऊपर उठ कर धर्म और समाज के विषय में भी कुछ सोचो. पेट तो कुत्ता भी भर लेता है. 

पेट पीठ के कारने सब जग नाचे नाच. पेट भरने और सोने के लिए ही सब तरह के काम करने पड़ते हैं. 

पेट बुरी बला है. भूख आदमी से सारे पाप कराती है.

पेट भर और पीठ लाद (पेट भेंट, काज समेट). यदि किसी आदमी से भरपूर काम लेना है तो पहले उसका पेट भरना जरूरी है.

पेट भर जाने पर सूअर नांद को उलट देता है. पेट भर जाने के बाद मूर्ख और धूर्त व्यक्ति को खुराफात सूझती है. नांद उलटते समय वह यह नहीं सोचता कि कल मुझे फिर इसी नांद में खाना है.

पेट भरा जानो तब, कुत्ता कौरा पावे जब. भोजन पूरा हुआ तब मानना चाहिए जब कुत्ते को भी रोटी दे दी जाए. प्राणी मात्र पर दया करने वाली सनातन संस्कृति का यही आदर्श है(पहली रोटी गाय को पिछली रोटी कुत्ते को).

पेट भरा, नीयत नहीं भरी. यह तो मनुष्य की मूलभूत कमजोरी है कि पेट भरने के बाद भी नीयत नहीं भरती.

पेट भरे कपाल भारी. आलसी लोग जब तक भोजन नहीं करते तब तक भूख का बहाना कर के काम नहीं करते, खाने के बाद सर भारी होने का बहाना कर के पड़ जाते हैं.

पेट भरे के खोटे चाले. 1. पेट भरा हो तो आदमी को खुराफात सूझती है. 2. पेट भरा हो तो आदमी काम नहीं करना चाहता. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – पेट भरे के गून.

पेट भरे नीच और भूखे भलमानस से डरिये. नीच आदमी का पेट भरा हो तो उसे बदमाशी सूझती है. भलामानस भूखा हो तो मजबूरी में कुछ भी कर सकता है इसलिए इन से डरना चाहिए.

पेट भरे पर सौ मस्ती सूझे (पेट में पड़ा चारा तो कूदन लगे विचारा). जब तक इंसान का पेट नहीं भरता उसको इसी की चिंता रहती है. एक बार पेट भर जाने के बाद उस का मन भांति भांति के आनंद पाने के लिए भटकने लगता है.

पेट भरे पे सब खाने को पूछते हैं. कुछ ऐसा संयोग होता है कि जब आपका पेट भरा हो तो आप जहाँ भी जाएं, सब आपसे खाने के लिए पूछते हैं. कभी भूखे घर से निकल जाएं तो कोई नहीं पूछेगा.

पेट भरे बामन से भूखे गरीब को खिलाना अच्छा. कर्मकांडी लोग ब्राह्मणों को ही खिलाना चाहते हैं चाहे उन का पेट कितना भी भरा हुआ क्यों न हो. उन को सलाह दी गई है कि भूखे को खिलाने से अधिक पुण्य मिलेगा.

पेट भरे मन मोदक से कब. मन के लड्ड़ओं से भूख नहीं मिटती.

पेट भरो तो पीठ लादो. जिस पर बोझा लादना हो उसे पहले भरपेट खिलाना चाहिए (मनुष्य हो या पशु).

पेट भी खाली गोद भी खाली. न गोद में बच्चा, न गर्भ में.

पेट भूखा भले ही रखे, पीठ भूखी कोई नहीं रखता. निर्दयी लोग जानवर या मजदूर को खाना देने में कंजूसी करते हैं पर माल लादने में कंजूसी नहीं करते.

पेट में आंत न मुंह में दांत. अत्यधिक बुढ़ापा, जरावस्था.

पेट में उरद से पक रहे (पेट में रई सी फिर रही). अनिष्ट की आशंका, हृदय धड़कना, घबराहट होना.

पेट में न रोटी तो सारी बातें खोटी. मनुष्य भूख से व्याकुल हो तो उसे ज्ञान और आदर्श की सारी बातें बेमानी लगती हैं.

पेट में पड़ गई रोटी तो फड़के बोटी बोटी. अर्थ स्पष्ट है. आमतौर पर बहुत छोटे बच्चों के लिए प्रयोग करते हैं जो दूध पीने के बाद हाथ पैर चलाने लगते हैं.

पेट में पाप और गोमुखी में जाप.  (गोमुखी – ऊन आदि से बनी हुई थैली जिस में हाथ डाल कर जप करने वाली माला से जाप करते हैं) मन में पाप भरा है ऊपर से भक्ति दिखाते हैं उन लोगों के लिए.

पेट लगा फटने तो खैरात लगी बटने. आपत्ति में पड़ने पर ही मनुष्य दान-पुण्य करता है.

पेट सब कराए. पेट के लिए अच्छे-बुरे सब कर्म करने पड़ते हैं.

पेट से कोई सीख के नहीं आता. परिश्रम और अभ्यास से ही मनुष्य सब सीखता है.

पेट से निकली, घर से न निकली. एक लड़की ससुराल में सताए जाने के कारण मायके में आ कर रह रही थी. उस की भाभी को यह बात बहुत नागवार गुजरती थी. एक दिन चिढ़ कर उसने अपनी ननद से कहा कि तू मां के पेट से तो निकली पर इस घर से न निकली.

पेट है या बेईमान की कब्र. इसका कोई विशेष अर्थ नहीं है, शब्दों का हेर फेर अधिक है.

पेटवा चाकर, मुटवा घोड़, खाएं ज्यादा, काम करें थोड़. पेटू (ज्यादा खाने वाला) नौकर और मोटा घोड़ा, खाते अधिक हैं और काम कम करते हैं.

पेटू मरे पेट को, नामी मरे नाम को (लोभी मरे लोभ को,नामी मरे नाम को). जिसे केवल खाने का ही शौक है वह हर समय खाने की ही चिंता करता है, और जो नाम कमाना चाहता है वह केवल उसी विषय में सोचता है.

पेड़ फल से जाना जाता है. पेड़ का अपना कोई नाम नहीं होता, वह अपने फल के द्वारा ही जाना जाता है – जैसे आम का पेड़, जामुन का पेड़ आदि. इसी प्रकार व्यक्ति भी अपने कार्यों के द्वारा जाना जाता है.

पेड़ में कटहल, होठों तेल. कटहल खाते समय होठों पर न चिपके इस के लिए कटहल खाने से पहले होठों पर तेल लगा लेते हैं. अगर कटहल पेड़ से तोड़ा ही नहीं गया है तो तेल लगाने की क्या जरूरत. किसी काम के लिए बहुत जल्दबाजी मचाने वालों का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है. 

पेड़ लगा नहीं मकौडों ने डेरा डाल लिया. मकौड़ा – लकड़ी खाने वाला कीड़ा. किसी काम की अभी योजना ही बनी है, काम हुआ भी नहीं है, और लाभार्थियों ने डेरा डाल लिया.

पेड़ सबको छाया देता है, काटने वाले को भी. जो सत्पुरुष हैं वे सबका भला करते हैं, जो उन्हें नुकसान पहुंचाए उन का भी.

पेड़ से गिरा और मूसल की मार पड़ी.  दोहरी मुसीबत झेलना.

पेड़ से बैर, पत्तों से नाता. मुख्य व्यक्ति से बैर बांधना और गौण व्यक्तियों को महत्व देना.

पैंठ लगी नहीं गिरहकट पहले आ गए. पैंठ – बाजार, गिरहकट – जेबकतरे. कोई काम शुरू होने से पहले ही अवांछित लोगों का आ जाना.

पैदल और सवार का क्या साथ. मित्रता और सम्बन्ध अपने बराबर वालों से ही रखना चाहिए.

पैदा हुआ नापैद के लिए. नापैद – विनष्ट. जिसने जन्म लिया उसकी मृत्यु अवश्यम्भावी है.

पैर उठाते ही छींक दिया. यात्रा शुरू करने से पहले कोई छींक दे दो इसे अपशकुन मानते हैं. कोई काम शुरू करते ही कोई अपशकुन कर दे तो यह कहावत कही जाती है. 

पैर का जूता पैर में ही ठीक रहता है (पैर की जूती पैर में ही अच्छी होती है). जो व्यक्ति जिस लायक हो उससे वैसा ही व्यवहार करना चाहिए. निम्न श्रेणी के व्यक्ति को दबा कर रखना ही ठीक रहता है.

पैर की पूजा हुई है, पीठ की नहीं. कोई माननीय रिश्तेदार (फूफा या दामाद आदि) बहुत दुष्टता करे तो.

पैर जलें तो जूती पहनो, धरती पर कालीन नहीं बिछेगी. आपकी व्यक्तिगत परेशानी आपको स्वयं सुलझानी होगी, उसके लिए समाज के नियमों में बदलाव नहीं लाया जाएगा.

पैर बना रहे तो जूती हजार मिलिहैं. खतरनाक काम कर के पैसा कमाने की चाह रखने वाले युवाओं को बुजुर्ग लोग समझाते हैं कि जान सलामत रहेगी तो धन और सुख सुविधा के साधन बहुत मिल जाएंगे.

पैर में से काँटा निकालो तो भी पीड़ा होती है. अपना कोई सगा सम्बंधी कितना भी निकृष्ट क्यों न हो उससे संबंध तोड़ने में कष्ट होता है.

पैरों से गाँठ लगाए जो हाथों से न खुले. बहुत धूर्त आदमी के लिए, जो सब के लिए उलझनें पैदा करता हो.

पैरों से लंगड़ी, नाम फुदकी. नाम के विपरीत गुण.

पैसा आते भी दुख देता है और जाते भी. पैसा कमाने के लिए बहुत से कष्ट उठाने ही पड़ते हैं, पैसा जब आ जाता है तो रखने की चिंता, और अगर चला जाए तब तो कष्ट ही कष्ट.

पैसा करे काम, बीबी करे सलाम. पैसे में बड़ी ताकत है. पैसे के बल पर आदमी के सारे काम हो जाते हैं और पत्नी भी उसकी इज्ज़त करती है.

पैसा तो बेसवा भी कमा ले. (भोजपुरी कहावत) बेसवा – वैश्या का अपभ्रंश. केवल पैसा कमाने के लिए काम नहीं करना चाहिए. पैसा तो लोग उल्टे सीधे और भ्रष्ट काम कर के भी कमा लेते हैं.

पैसा ना कौड़ी, बाजार जाएँ दौड़ी (पैसा न कौड़ी, बीच बाज़ार में दौड़ा दौड़ी). साधन हीन होने पर भी ख़याली पुलाव पकाना.

पैसा पर्वत पे राह चलावे है. पैसे के बल पर कठिन काम भी आसान हो जाते हैं.

पैसा पास का, घोड़ी रान की. रान – जांघ. पैसा वही काम आता है जो हमारे पास हो (इधर उधर बंटा हुआ न हो), घोड़ी वही काम की है जिसकी हम सवारी कर सकें (जो हमारी जांघ के नीचे हो).

पैसा फले न डाल. पैसा पेड़ पर पैदा नहीं होता (परिश्रम कर के कमाया जाता है).

पैसा माई पैसा भाई, पैसे बिन न होय सगाई. सगाई माने आपसी प्रेम भी होता है और सगाई माने विवाह संबंध भी होता है. आज के युग में पैसा ही सब कुछ है. उसी पर सारे सम्बन्ध टिके हैं.

पैसा माई, पैसा बाप, पैसे बिना बड़ा संताप. आज के समय में पैसा ही सब कुछ है, पैसे के बिना बड़ा कष्ट है.

पैसा हाथ का मैल है. जिस प्रकार हाथ पर मैल लग जाए तो हम उसे धो कर साफ़ कर देते हैं उसी प्रकार अधिक पैसा हाथ में आने पर उसे बांट देना चाहिए. अधिक धन मनुष्य को पाप की ओर प्रवृत्त करता है.

पैसे का कोई पूरा नहीं, अक्ल का कोई अधूरा नहीं. पैसा कितना भी अधिक हो किसी को पर्याप्त नहीं लगता और अपने अंदर अक्ल कितनी भी कम हो किसी को कम नहीं लगती.

पैसे की आने की एक राह, जाने की चार. पैसा कमाया बहुत मुश्किल से जाता है पर खर्च बड़ी जल्दी हो जाता है, आता एक स्रोत से है पर खर्च कई जगह होता है.

पैसे की दाल और टके का बघार. एक पैसे की दाल में दो पैसे का छौंक. 

पैसे के सब साथी (पैसे के सब सगे) (पैसे के सौ गुलाम) (पैसे का सब खेल). अर्थ स्पष्ट है.

पैसे को पैसा खींचता है. जिस के पास पैसा है उसी के पास और पैसा इकठ्ठा होता है.

पैसे बिन माता कहे जाया पूत कपूत, भाई भी पैसे बिना मारें सर लख जूत. पैसे के बिना माँ, बाप, भाई, बहन कोई सम्मान नहीं करते (माँ कहती है कि मैंने कुपुत्र पैदा किया है और भाई लाख जूते मारते हैं).

पैसे बिना बुद्धि बेचारी. आदमी कितना भी बुद्धिमान हो, धन के बिना अपनी बुद्धि का लाभ नहीं उठा सकता. रूपान्तर – पैसे से सारी अक्कल आऊत.

पोटली में जितने सिक्के डालोगे उतने ही निकलेंगे. आपने जितना पैसा इकट्ठा किया है उतना ही तो आपके पास होगा, उससे कम या अधिक कैसे हो जाएगा. यही बात पाप और पुण्य के विषय में भी कही जा सकती है.

पोठिया कन्या झींगवा वर. पोठिया – एक छोटी मछली, झींगवा – झींगा. छोटी कन्या और वर के लिए मजाक में.

पोतड़ों के अमीर. पोतड़े – नवजात शिशुओं के लंगोटे बिछौने आदि. जन्म से अमीर लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है. इंग्लिश में कहावत है – born with silver spoon in mouth.

पोतड़ों के नशेड़ी. जिस ने बाप दादों से नशा करना सीखा हो.

पोतड़ों के बिगड़े, धोतड़ों में नहीं सुधरते. पोतड़े – बच्चों के लंगोटी बिछौने आदि, धोतड़े – पहनने के कपड़े (धोती इत्यादि) बचपन में जो खराब आदतें पड़ जाएँ वे बड़े होने पर भी नहीं सुधरतीं.

पोथा सो थोथा, पाठे सो साथै. पोथियों में जो लिखा है वह हमारे लिए व्यर्थ है, जो हम ने पढ़ लिया व कंठस्थ कर लिया वही हमारे साथ रहने वाला है.

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भय न कोय, ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय. पोथियाँ पढ़ कर कोई पंडित नहीं बनता. जो मानव मात्र से प्रेम करना सीख ले वही सच्चा पंडित बनता है.

पोपला और चने चाबे. अपनी सामर्थ्य से बाहर काम करने की कोशिश करना.

पोपाबाई को राज. कहा जाता है कि पोपाबाई गुजरात के एक छोटे प्रदेश की रानी थीं. उनके राज्य में इतना अंधेरखाता था कि वह कुशासन और कुव्यवस्था का प्रतीक बन गया है और उपर्युक्त कहावत चल पड़ी है.

पोला पहने खेत जोते, कुरता पहन निरावे, घाघ कहें ये तीनहुं भकुआ सिर बोझा ले गावे. पोला – एक प्रकार की खड़ाऊँ, भकुआ – मूर्ख. खड़ाऊँ पहन कर खेत जोतने वाला, कुरता पहन कर निराई करने वाला और सर पर बोझा रख कर गीत गाने वाला, ये तीनों मूर्ख होते हैं

प्याज को जितना छीलो उतनी ही बदबू आती है. पुरानी बातों को जितना उघाड़ो उतना ही मनमुटाव बढता है.

प्यार करूं प्यार करूं, चूतड़ तले अंगार धरूं, जल जाए तो क्या करूं. कपटी मित्र या सम्बंधी के लिए जो ऊपर से प्रेम दिखाता है और चुपचाप आपको नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है.

प्यार दिए से बेटा बिगड़े, भेद दिए से नारी, लोभ दिए से नौकर बिगड़े, धोखा दिए से यारी. अधिक लाड़ प्यार से बेटा बिगड़ जाता है, भेद की बात नारी को नहीं पचती, लालच देने से नौकर बिगड़ जाता है और धोखा देने से दोस्ती खत्म हो जाती है.

प्यास से मरने के बाद हजार घड़ा पानी बेकार. अर्थ स्पष्ट है. 

प्यासे के पास कुआँ चल कर नहीं आता है. सयाने लोग समझाने के लिए कहते हैं कि जिस चीज की आपको आवश्यकता है उसके लिए आपको ही प्रयास करना पड़ेगा. वह चीज बैठे-बैठे आपके पास चलकर नहीं आएगी.

प्यासे को पिलाओ पानी, चाहे हो जाए कुछ हानी. प्यासे को पानी अवश्य पिलाना चाहिए, चाहे इसमें कुछ हानि क्यों न उठानी पड़े.

प्रजा मरन, राजा को हाँसी. प्रजा कितनी भी त्रस्त हो, राजा लोग अपने आमोद-प्रमोद और हास्य-विनोद में व्यस्त रहते हैं.

प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं है. जो सामने दिख रहा उस को सिद्ध करने के लिए प्रमाण की क्या आवश्यकता. संस्कृत में कहते हैं – प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणं.

प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु व्याल. ईश्वर की महिमा से छोटा सा सांप भी गरुड़ को खा सकता है.

प्रभुता पाई काहि मद नाहीं. प्रभुता का अर्थ यहाँ है धन, बल और अधिकार. कहावत का अर्थ है कि प्रभुता पा कर सभी को घमंड हो जाता है. तुलसीदास जी द्वारा रचित मूल कविता इस प्रकार है – नहिं कोई जन्मा इस जग माहीं, प्रभुता पाई जाहि मद नाहीं. इंग्लिश में कहावत है – Power always corrupts.

प्रात समै खटिया से उठिकै, पीवै ठंडा पानी, ता घर वैद कबौ नहिं आवै, बात घाघ की मानी. जो प्रात:कल उठते ही ठंडा पानी (फ्रिज का नहीं) पीते हैं वे कभी बीमार नहीं होते.

प्रारब्ध पहले बना, पीछे बना शरीर. व्यक्ति के जन्म लेने से पहले ही उसका भाग्य लिख दिया जाता है.

प्रीत करी थी नीच से पल्ले आई कीच, सीस काट आगे धरा अंत नीच का नीच. नीच व्यक्ति से प्रेम करने पर मुश्किल ही सामने आती है. चाहे कोई अपना सर काट कर सामने रख दे नीच व्यक्ति अपनी नीचता नहीं छोड़ता.

प्रीत का निबाहना खांडे की धार है. खांडा – सीधी एवं चौड़ी तलवार. प्रीत का निबाहना उतना ही मुश्किल है जितना तलवार की धार पर चलना.

प्रीत जहाँ परदा नहीं, परदा जहां न प्रीत. जहाँ प्रेम होता है वहाँ कुछ दुराव छिपाव नहीं होता, और जहाँ दुराव छिपाव होता है वहाँ प्रेम नहीं हो सकता.

प्रीत तो ऐसी कीजिए ज्यों हिन्दू की जोय, जीते जी तो संग रहे मरे पे सत्ती होय. दूसरे धर्म के लोगों द्वारा हिन्दू स्त्रियों की प्रशंसा की गई है. हिन्दू स्त्री के समान प्रेम करो जो जीवन भर साथ निभाती है और पति के मरने पर सती हो जाती है.

प्रीत न टूटे अनमिले, उत्तम मन की लाग, सौ जुग पानी में रहे, चकमक तजे न आग. प्रेमी जन यदि आपस में न मिल पाएं तो भी उनके प्रेम में कमी नहीं आती. चकमक पत्थर युगों तक पानी में डूबा रहे तो भी बाहर निकालने पर आग पैदा करता है.

प्रीत रीत जानी आसान, मुस्किल पड़ी बात अब आन. सामान्य लोग समझते हैं कि प्रेम करना आसान है, पर जब उन्हें किसी से प्रेम होता है तो मालूम होता है कि इस में कितनी मुश्किलें हैं.

प्रीत सीखिये ऊख सों, पोर पोर रसवान, जहाँ गाँठ वहाँ रस नहीं, जेई प्रीत की बान. गन्ने में सब जगह रस होता है, केवल गाँठ में नहीं होता. इसी प्रकार प्रेम के संबंध में रस ही रस होता है, पर जहाँ मन में गाँठ पड़ जाती है वहाँ रस समाप्त हो जाता है.

प्रीतम मिले उजाड़ में, वही उजाड़ बजार. प्रीतम यदि उजाड़ में मिल जाएँ तो वही उजाड़ गुलज़ार हो जाता है.

प्रीतम हरि से नेह कर, जैसे खेत किसान, घाटा दे अरु दंड भरे, फेरि खेत पे ध्यान. ईश्वर से उसी प्रकार प्रेम करो जैसे किसान अपने खेत से करता है. खेती में घाटा हो या दंड भरना पड़े तो भी किसान का ध्यान खेत में ही लगा रहता है.

प्रेम और युद्ध में सब जायज है. अर्थ स्पष्ट है. इंग्लिश में कहते हैं – All is fair in love and war.

प्रेम करि काहू सुख न लयो. मीराबाई ने यह बात स्वयं के परिप्रेक्ष्य में कही है पर यह बात सब पर लागू होती है कि प्रेम करने वाले को कभी सुख नहीं प्राप्त होता (हमेशा कष्ट मिलता है).

प्रेम का पान हीरा समान. पान वैसे तो बहुत तुच्छ वस्तु है पर किसी ने प्रेम से दिया हो तो हीरे के समान है.

प्रेम न डाली फलत है, प्रेम न हाट बिकाए, प्रेम से खोजो प्रेम को, आपहि में मिल जाए. प्रेम पेड़ पर भी पैदा नहीं होता और बाजार में भी नहीं मिलता. अपने अंदर ही प्रेम को खोजना चाहिए.

प्रेम प्रीति से जो मिलै, तासों मिलिये धाय, अंतर राखे जो मिलै, तासों मिलै बलाय. जो प्रेमपूर्वक मिले उससे दौड़ कर मिलना चाहिए. जो मन में द्वेष रखता हो वह ऐसी तैसी में जाए.

प्रेम में नेम कहाँ. नेम – नियम. प्रेम कोई नियम कानून नहीं मानता.

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