- दगा किसी का सगा नहीं.धोखेबाज़ आदमी किसी का सगा नहीं होता.
- दगा किसी का सगा नहीं, कर के देखो भाई, चिट्ठी उतरी बामन ऊपर, नाई नाक कटाई.किसी को धोखा दे कर आप फायदा नहीं उठा सकते, इस आशय की एक कहानी कही जाती है. एक राजा किसी ब्राह्मण के ऊपर बहुत मेहरबान था. राजा के नाई को यह बहुत नागवार गुजरता था. नाई ने ईर्ष्यावश ब्राह्मण के खिलाफ राजा के खूब कान भरे. राजा उस के षड्यंत्र को नहीं समझ पाया और ब्राह्मण को सजा देने के लिहाज से राजा ने उसे एक बंद चिट्ठी और दो मोहरें दीं और कहा कि कोतवाल को चिट्ठी दे देना. चिट्ठी में लिखा था कि चिट्ठी लाने वाले की नाक काट लेना. सरल हृदय ब्राह्मण ने बाहर निकल कर नाई को बताया कि वह कोतवाल को कोई महत्वपूर्ण संदेश देने जा रहा है. नाई ने उससे चिट्ठी ले ली और स्वयं ही देने चला गया और अपनी नाक कटा बैठा.
- दगाबाज दूना नवे, चीता चोर कबाण.चीता, चोर, धनुष और दगाबाज व्यक्ति जितना झुकते हैं उतना ही अधिक नुकसान पहुँचाते हैं. इस आशय की एक और कहावत है – नमनि नीच की अति दुखदाई.
- दब कर रहना ही बड़ा दाँव.व्यवहार कुशलता का सबसे बड़ा गुर है दब कर रहना. विनम्रता पूर्ण व्यवहार से बड़े से बड़े शक्तिशाली लोगों को भी वश में किया जा सकता है.
- दबा बनिया पूरा तौले.जब बनिये की अटकी होती है तो वह पूरा तौलता है वरना वह डंडी मारने की कोशिश करता है.
- दबा हाकिम मातहतों से दबे.कमजोर अधिकारी (या रिश्वतखोर अधिकारी) अपने मातहतों से दबता है.
- दबाने पर चींटी भी चोट करती है.अधिक अत्याचार करने से दुर्बल व्यक्ति भी हिंसक हो सकता है.
- दबी आग और दबी बहू.जो लोग घर की बहू को दबा कर रखते हैं उन्हें सीख दी गई है कि दबी हुई बहू दबी हुई आग के समान खतरनाक है जो कि कभी भी विकराल रूप धारण कर सकती है.
- दबी बिल्ली चूहों से कान कतरवाती है.शक्तिशाली व्यक्ति जब संकट में होता है तो उसे कमज़ोर लोगों से दबना पड़ता है.
- दबे को सब दबाते हैं.मजबूर और लाचार इंसान पर सब रौब जमाते हैं.
- दम भाई सगे भाई, और भाई घसर पसर.नशा करने वालों में बड़ा तगड़ा भाईचारा होता है.
- दम है तो क्या गम है.अपने अंदर शक्ति है और आत्मविश्वास है तो कोई काम कठिन नहीं है.
- दम है तो क्या गम है.नशा करने के बाद सारे दुःख भूल जाते हैं.
- दमड़ी का उपला, धुआंधार मचाए.कोई सस्ती सी चीज बहुत बड़ा काम कर दे यह बहुत अव्यवस्था फैला दे तो.
- दमड़ी का सौदा, बाजार ढिंढोरा.छोटे से काम का बहुत भारी दिखावा.
- दमड़ी की अरहड़, सारी रात खड़खड़.पुरानी मुद्रा में दमड़ी माने पैसे का आठवाँ भाग. बहुत कम कीमत की अरहर काट के लाए हैं और उसे रखने के लिए रात भर उठा पटक कर रहे हैं. छोटे से काम में बहुत दिखावा करना.
- दमड़ी की उगाही में दस चक्कर.थोड़े से लाभ के लिए बहुत अधिक परिश्रम करना पड़े तो.
- दमड़ी की घोड़ी, छै पसेरी दाना.पसेरी माने पाँच सेर (कहीं कहीं ढाई सेर को भी पसेरी कहते हैं). घोड़ी तो बहुत कम कीमत की है पर दाना बहुत पैसों का खा रही है. किसी सस्ती चीज़ की मेंटेनेंस कॉस्ट बहुत अधिक हो तो.
- दमड़ी की दाल, बुआ पतली न हो.कामवाली को जरा सी दाल बनाने के लिए दी है और कह रही हैं दाल पतली नहीं होनी चाहिए.
- दमड़ी की निहारी में टाट के टुकड़े.निहारी माने नाश्ता (निराहार का अपभ्रंश है). कहीं बहुत सस्ता नाश्ता मिल रहा है, खाते समय उस में टाट के टुकड़े निकल आए तो शिकायत कैसी. बहुत सस्ते में कोई चीज़ बनाने की कोशिश की जाए तो उसकी गुणवत्ता कम हो ही जाएगी.
- दमड़ी की पगड़ी, अधेली का जूता.दमड़ी माने पैसे का आठवाँ हिस्सा और अधेली माने अठन्नी. कहावत उस समय की जब पगड़ी शान की चीज़ मानी जाती थी लिहाजा उस में लोग अधिक पैसा खर्च करते थे. जूते को लोग हिकारत की नजर से देखते थे और उसमें बहुत कम पैसे खर्च करना चाहते थे. उस समय के हिसाब से कोई आदमी उल्टा काम करे तो यह कहावत कहते थे. अब पगड़ी तो लोग पहनते ही नहीं हैं और जूते में हजारों रूपये खर्च करते हैं.
- दमड़ी की बुलबुल, टका हलाली.दमड़ी माने पैसे का आठवाँ हिस्सा और टका माने दो पैसा (अधन्ना). सामान बहुत सस्ता लेकिन बनाने का खर्च बहुत अधिक हो तो.
- दमड़ी की भाजी, घर भर राजी.गरीब आदमी की आवश्यकताएँ बहुत कम होती हैं.
- दमड़ी की मुर्गी, नौ टका पकड़ाई.सामान बहुत सस्ता पर सामान लाने का खर्च बहुत अधिक है.
- दमड़ी की सुई, सवा मन मलीदा.(मलीदा – एक प्रकार का बढ़िया व महंगा खाद्य पदार्थ). अनहोनी और उलटी बात, छोटी सी सस्ती सी सुई के लिए कोई सवा मन मलीदा क्यों देगा.
- दमड़ी की हंडिया गई सो गई, कुत्ते की जात तो पहचानी गई.कोई सज्जन अच्छी नस्ल का समझ कर एक महंगा कुत्ता खरीद कर लाए. एक दिन मौका मिलते ही कुत्ता आंगन में रखी हंडिया ले कर भाग गया. वह सज्जन इस घटना से उदास हो कर बैठे थे तो किसी सयाने ने उन्हें इस तरह से समझाया. आपका कोई दोस्त, रिश्तेदार या नौकर धोखा दे तब भी यह कहावत कही जाती है.
- दमड़ी न कौड़ी, रानी से मटकौअल.पास में फूटी कौड़ी नहीं है और बहुत बड़े घर की स्त्री से प्रेम करने चले हैं. मटकौअल को लोग नैन मटक्का भी बोलते हैं.
- दमदमे में दम नहीं, खैर मांगो जान की.दमदमा – मोर्चाबंदी. जिसकी सेना कमजोर हो वह यह बात कहता है.
- दमा दम के साथ जाता है.दमे की बीमारी ठीक नहीं होती, प्राण निकलने पर ही रोगी का पीछा छोड़ती है.
- दमी यार किसके, दम लगाया खिसके.गांजा, सुल्फा, चरस और स्मैक आदि पीने वाले नशेड़ी लोगों को दमी (दम लगाने वाला) कहा जाता है. जहाँ कहीं नशे के अड्डे होते हैं वहाँ ये लोग पहुँच जाते हैं और दम लगा कर वहाँ से खिसक लेते हैं. कहावत स्वार्थी लोगों के लिए कही गई है जो अपना स्वार्थ पूरा होते ही वहाँ से निकल लेते हैं.
- दया धर्म को मूल है पाप मूल अभिमान, तुलसी दया न छोड़िये जब लग घट में प्रान.सभी प्राणियों पर दया करना धर्म का मूल घटक है और अपने ऊपर अभिमान करना पाप की जड़ है. जब तक मनुष्य जीवित है उसे दया नहीं छोड़नी चाहिए.
- दया धर्म नहिं मन में, मुखड़ा क्या देखे दर्पन में.यदि तुम्हारे मन में दया और धर्म नहीं है तो दर्पण में अपना रूप देख कर प्रसन्न मत हो.
- दया बिनु संत कसाई.जिस संत के मन में दया नहीं है वह कसाई के समान है.
- दरदी ही जाने दरदी की गति (दर्द को वह समझे जो खुद दर्दमंद हो).दूसरे का कष्ट वही जान सकता है जिसने स्वयं वह कष्ट झेला हो.
- दरबार तक पहुँच हो तो दरबारी के पास क्यों जाए.जब बड़े आदमी से सीधे सम्बंध हों तो चमचों के पास क्यों जाएं.
- दरया पर जाना और प्यासे आना.यदि किसी याचक को बहुत सम्पन्न व्यक्ति के यहाँ से खाली हाथ लौटना पड़े तो यह कहावत कहते है.
- दरवाजे पर आई बरात, समधन को लगी हगास.जब बरात किसी के घर आती है तो द्वारचार में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका लड़की की मां की होती है. उस समय अगर उस को शौच लगने लगे तो बड़ी परेशानी होगी, ख़ास तौर पर उस जमाने में जब शौच के लिए लोटा ले कर बाहर जाना होता था. किसी अति आवश्यक कार्य के समय महत्वपूर्ण व्यक्ति के साथ कोई परेशानी आ जाए तो यह कहावत बोलते हैं.
- दरिद्रता को मूल एक आलस बखानिए.आलसी व्यक्ति हमेशा दरिद्र ही रहता है.
- दर्जी का क्या सामान और क्या मुकाम.कहावत उस समय की है जब बड़ी बड़ी टेलर शॉप नहीं हुआ करती थीं और दर्जी लोग अपना सुई धागा ले कर घर घर घूम कर काम करते थे.
- दर्जी की सुई, कभी रेशम में कभी टाट में.दर्जी की सुई कीमती रेशम को भी सिलती है और घटिया टाट को भी. किसी ऐसे व्यक्ति या उपकरण के लिए कहावत कही जाती है जो सभी तरह के काम करता हो.
- दर्शन मोटे, करतब खोटे.तड़क भड़क और दिखावा अधिक, काम बहुत कम या बहुत गलत काम.
- दलाल का दिवाला क्या मस्जिद का ताला क्या.जिस व्यापार में पूंजी लगाई गई हो उस में अत्यधिक घाटा हो जाने पर दीवाला निकलने का डर रहता है. लेकिन दलाली एक ऐसा धंधा है जिस में व्यक्ति की स्वयं की पूंजी नहीं लगती इस लिए उस में दीवालिया होने का कोई डर नहीं है. इसी प्रकार किसी भी इमारत में कोई न कोई सामान अंदर रखा होता है जिस की चोरी न हो इसलिए ताला लगाया जाता है. मस्जिद एक ऐसी इमारत है जहाँ कोई सामान नहीं होता इस लिए ताले की कोई जरूरत नहीं है.
- दलाली बेशरम की, सर्राफी भरम की, दौलत करम की, बात मरम की.दलाली का काम करने के लिए काफी बेशर्मी करनी पड़ती है, सर्राफ वही बड़ा बनता है जो बाजार में अपना भरम बना कर रखे, धन वही कमा सकता है जो कर्म करता हो, बात वही दमदार होती है जिसमें कुछ मर्म हो.
- दलिद्दर घर में नोन पकवान.घोर गरीबी में रहने वाले इंसान के लिए नमक भी पकवान के समान है.
- दलिद्दर बहुत दुखदाई.दलिद्दर – दारिद्र्य. दरिद्रता बहुत दुःख देती है.
- दलिद्दर से जंजाल भला.दलिद्दर माने दरिद्रता, गरीबी. धन कमाने के लिए बहुत से जंजाल झेलने पड़ते हैं. लेकिन घोर गरीबी में जीने के मुकाबले यह जंजाल झेलना अधिक अच्छा है.
- दवा की दवा और गिज़ा की गिज़ा.ऐसी वस्तु जिससे पेट भरे, ताकत आए और रोग भी ठीक हों. जैसे दूध मुनक्का.
- दस भाइयों की बहन कुँवारी डोले.ज्यादा भाई होते हैं तो एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल देते हैं. इस प्रकार की दूसरी कहावत है – सात बेटों की माँ गंगा न पावे.
- दस भोला भाला, बीस बावला, तीस तीखा, चालीस चोखा, पचास पका, साठ थका, सत्तर झूला, अस्सी लूला, नब्बे नागो और सौ भागो.हर अवस्था के व्यक्ति की विशेषता बताई गई है. 10 वर्ष की आयु में भोला भाला, 20 वर्ष की आयु में जुनूनी, 30 वर्ष की आयु में तेजतर्रार और कड़क, 40 वर्ष की आयु में अनुभवी, 50 वर्ष की आयु में परिपक्व, 60 वर्ष की आयु तक थोड़ा थकने लगता है, 70 वर्ष में भूलना शुरू हो जाता है, 80 में चलना फिरना मुश्किल, 90 में अपनी देखभाल स्वयं नहीं कर सकता इसलिए नंगा रहता है और 100 वर्ष की अवस्था का मतलब अब संसार से कूच का समय आ गया.
- दस्तरखान के बिछाने में सौ ऐब, न बिछाने में एक ऐब.मेहमानों की आवभगत के लिए खाने की मेज पर कपड़ा बिछाया जाता है उसे दस्तरखान कहते हैं. आप दस्तरखान बिछाते हैं तो उस में बहुत सी कमियाँ निकाली जाती हैं, मसलन – गंदा है, छोटा है, ठीक से नहीं बिछाया, घटिया है वगैरा वगैरा. लेकिन अगर आप कुछ बिछाते ही नहीं हैं तो कहने वालों के लिए एक ही बात रह जाती है कि दस्तरखान नहीं बिछाया. कहावत का अर्थ यह है कि यदि आप अच्छे के लिए कोई काम करें और लोग उसमें बहुत कमियाँ निकालें तो वह काम न करना ही अच्छा है.
- दाँत टूटा साँप जोर से फू-फू करता है.दांत टूटने के बाद सांप जोर से फुफकार कर डराने की कोशिश करता है. शक्ति छिन जाने के बाद दुष्ट व्यक्ति अधिक भयंकर दिखने की कोशिश करता है.
- दाँया धोए बांये को और बाँया धोए दांये को.कोई भी हाथ स्वयं अपने आप को नहीं धो सकता. दायें हाथ को धोने के लिए बायाँ हाथ जरूरी है और बाएँ को धोने के लिए दाहिना. समाज में सभी लोग एक दूसरे पर निर्भर होते हैं इसलिए सब को साथ मिल कर चलना चाहिए और एक दूसरे की मदद करना चाहिए..
- दांत कुरेदने को तिनका नहीं बचा.आग या बाढ़ आदि आपदाओं में सब कुछ नष्ट हो जाने पर.
- दांतले खसम का ना रोते का पता चले न हंसते का.(हरयाणवी कहावत) जिस आदमी के दांत बाहर हों उस का यह पता लगाना मुश्किल होता है कि वह हँस रहा है या रो रहा है.
- दांतों का काम आँतों से नहीं लेना चाहिए.भोजन को पीसने का काम दांतों का है और पचाने का काम आँतों का. कहावत द्वारा उन लोगों को सीख दी गई है जो लोग भोजन को बिना ठीक से चबाए निगल जाते हैं.
- दांव में आई, मरे बिलाई.बिल्ली जैसा चालाक प्राणी भी कभी कभी दांव में फंस जाता है. कोई कितना भी धूर्त हो कभी न कभी दांव में फंस सकता है.
- दाई से क्या पेट छिपाना.जो जिस विषय का जानकार है उस से संबंधित राज छिपाने की कोशिश नहीं करना चाहिए.
- दाख छुआरा छांड़ि अमर फल, विष कीड़ा विष खात.विषैले फल खाने वाला कीड़ा, किशमिस छुआरा आदि छोड़ कर विष खाता है.यह उसी प्रकार है जैसे दुनिया में एक से एक स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक चीजों के होते हुए भी शराब पीने वाले शराब पीते हैं.
- दाख पके जब काग के होय कंठ में रोग.जब अंगूर पक कर तैयार हुए तो कौवे के गले में ऐसी बीमारी हो गई कि वह उन्हें खा ही नहीं सकता. जब कोई चीज प्राप्त करने में दुर्भाग्य आड़े आ जाए.
- दाग लगाए लँगोटिया यार.जिगरी दोस्त आपकी बहुत बदनामी कर सकता है (क्योंकि वह आपके सब राज जानता है).
- दाता कहने से बनिया गुड़ देता है.यदि किसी से कोई काम निकालना हो तो उसकी प्रशंसा करनी चाहिए. बनिए से कहोगे कि भाई आप बड़े दानी दाता हो तो वह खुश हो कर गुड़ दे देगा.
- दाता की नाव पहाड़ चढ़े.दाता के सब काम आसानी से हो जाते हैं.
- दाता के घर लच्छमी ठाड़ी रहत हजूर, जैसे गारा राज को भर भर देत मजूर.दानी व्यक्ति पर लक्ष्मी की विशेष कृपा रहती है. लक्ष्मी उस को इस प्रकार भर भर कर सम्पत्ति देती है जैसे मजदूर राज मिस्त्री को भर भर कर गारा देता है.
- दाता के तीन गुण, दे, दिलावे, छीन ले.दाता स्वयं भी देता है और दूसरों से दिलाता भी है, पर जब क्रुद्ध होता है तो छीन भी लेता है. यहाँ दाता का अर्थ ईश्वर से है.
- दाता को राम छप्पर फाड़ कर देता है.दानी व्यक्ति को ईश्वर भरपूर मदद देता है.
- दाता दाता मर गए, रह गए मक्खीचूस.कोई जरूरतमंद व्यक्ति कई स्थानों से निराश होने के बाद कुढ़ कर यह बात कहता है.
- दाता दे भण्डारी का पेट फटे (दाता दे, भंडारी पेट फाड़े).भंडारी वह व्यक्ति होता है जो अनाज आदि के भंडारों का रख रखाव करता है. कहावत में कहा गया है कि दान तो दाता दे रहा है और भंडारी को कष्ट हो रहा है.
- दाता देवे और शरमावे, पानी बरसे और गरमावे.जो सच्चे दानवीर होते हैं वे दान दे कर उस पर अहंकार नहीं करते बल्कि लज्जा और विनम्रता प्रकट करते हैं. तुक बंदी करने के लिए एक बिलकुल असम्बद्ध बात जोड़ दी गई है कि पानी बरसने के बाद गर्मी बढ़ जाती है.
- दाता पुन्न करे, कंजूस जोड़ जोड़ मरे.जो लोग अपनी सम्पत्ति में से यथाशक्ति दान करते हैं वे पुन्य कमाते हैं जबकि कंजूस लोग जोड़ जोड़ कर ही मर जाते हैं.
- दाद खाज अरु सेउआ बड़भागी के होंय, पड़े खुजावें खाट पर बड़ी अनंदी होय.जो बेचारे दाद, खाज और खुजली से परेशान हों उन का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही गई है (कि वे बड़े भाग्यवान हैं जो खाट पर पड़े खुजाने का आनंद ले रहे हैं).
- दाद, खाज और राज, बड़भागी को ही मिलते हैं.कोई खुजली से मरा जा रहा हो तो उस के जले पर नमक छिड़कने के लिए. दाद और खाज की तुलना राज्य मिलने से की गई है.
- दादा कहे सरसों ही लादना.दादाजी ने कहा था कि सरसों का ही व्यापार करना तो केवल वही करेंगे. बिना अपनी बुद्धि प्रयोग करे लकीर के फकीर बनना.
- दादा की बेटी लुगरी और भाई की बेटी चुनरी.लुगरी – फटी पुरानी धोती. बुआ की कोई इज्जत नहीं और भतीजी से प्यार.
- दादा के भरोसे फौजदारी.मूर्खता पूर्ण कार्य. दादा कितने भी प्रभावशाली क्यों न हों, उन के भरोसे मार पीट नहीं करनी चाहिए. दादा के न रहने पर कौन बचाने आएगा. फौजदारी – मारपीट.
- दादा खरीदे और पोता बरते.कोई चीज़ बहुत टिकाऊ है यह बताने के लिए यह कहावत कही जाती है.
- दादा मर गया रोता, मरने के बाद हुआ पोता.जब किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उस की इच्छा पूरी हो.
- दादा मरिहैं तो भोज करिहैं.किसी काम को लम्बे समय के लिए टालना (किसी से दावत मांगी जा रही है तो कह रहा है कि दादा मरेंगे तो भोज करेंगे).
- दादी को मत सिखलाओ कि जच्चगी कैसे होती है. अपने से अधिक अनुभवी व्यक्ति को सिखाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.
- दादू दावा छोड़ दे, निरदावा दिन काट, केतेक सौदा कर गए, पंसारी की हाट.संत दादू कहते हैं कि दुनिया की मोह माया पर दावा करना छोड़ दो. जाने कितने यहाँ आए और चले गए. इस बाज़ार में सौदा सब करते हैं पर कोई कुछ ले कर नहीं गया.
- दादो घी खायो, म्हारो हाथ सूँघ ल्यो.हमारे दादा बहुत घी खाते थे, हमारा हाथ सूँघ कर देख लो. जिन के बाप दादे बड़े आदमी थे पर वे दुर्भाग्यवश कुछ भी नहीं हैं, ऐसे लोग हर समय अपने बाप दादाओं का बखान करते हैं.
- दान की गाय है तो क्या चलनी में दुहेंगे.दान में मिली हुई चीज को व्यर्थ ही बर्बाद नहीं किया जाता. चलनी में दूध दुहने का अर्थ है दूध को ऐसे ही बहा देना.
- दान की बछिया के दांत नहीं गिने जाते.जब आप गाय की बछिया खरीदने जाते हैं तो उसके दांत गिन के देखते हैं कि वह उत्तम प्रजाति की है या नहीं. लेकिन अगर बछिया दान में मिली है तो यह सब थोड़े ही देखा जाता है. अगर कोई व्यक्ति मुफ्त में मिली चीज में मीन मेख निकालता है तो यह कहावत कही जाती है.
- दान दहेज़ बह जाएगा, छाती कूटता रह जाएगा.जो लोग दान दहेज़ के चक्कर में रहते हैं उन्हें सीख दी गई है कि यह सब मिला हुआ धन नष्ट हो जाएगा और पैसे वाले घर की नकचढ़ी लड़की अपने घर में ला कर जीवन भर पछताना पड़ेगा.
- दान दीन को दीजिए, मिटे दीन की पीर, औषध बाको दीजिए जा के रोग शरीर.जो गरीब है उसी को धन का दान दीजिए. उसी प्रकार जैसे औषधि केवल उसी को दी जाती जो रोगी है.
- दान वित्त समान. जरूरत मंदों को दान देना एक उत्तम निवेश है. यही वह धन है जो आपके साथ जाएगा. 2. अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान देना चाहिए.
- दाना खाए न पानी पीवे, ऐसन आदमी कैसे जीवे.कुछ लोग चाहते हैं कि अपने कर्मचारी या मजदूर को खाने पीने न दें बस काम में जोते रहें. ऐसे लोगों के लिए.
- दाना न घास, खरहरा छ: छ: बार.खरहरा कहते हैं खुरदुरी चीज़ से घोड़े की मालिश करने को जो दिन में एक बार करना पर्याप्त रहता है. कहावत का अर्थ है अपने कर्मचारी को आवश्यक वस्तु न दे कर फ़ालतू की चीजें देते रहना.
- दाना न घास, घोड़ी तेरी आस.घोड़ी को खिलाने के लिए न दाना है न घास लेकिन घोड़ी पालने की इच्छा रखते हैं. साधन न होते हुए भी दिवास्वप्न देखना.
- दाने को टापे, सवारी को पादे.ऐसे घोड़े के विषय में कहा गया है जो दाना खाने की जुगत में हर समय रहता है, पर सवारी बैठाने के नाम पर पादने लगता है.
- दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम.जो जिस के भाग्य में लिखा है वह उसी को मिलेगा.
- दाम दीजे, काम लीजे.मुँह मांगा पैसा दीजिये और मनमाफ़िक काम लीजिए.
- दाम बनावे काम (दाम सँवारे काम), (दाम करे सब काम).पैसा हर काम बना देता है.
- दामों रूठा बातों नहीं मानता.जो पैसे के लेनदेन पर रूठा हो वह केवल बातों से नहीं मानता.
- दारु तो हाथी को भी पटक देती है.हाथी जैसा ताकतवर प्राणी भी यदि शराब पी लेगा तो नशे में ढेर हो जाएगा. कहावत द्वारा शराब से बचने की सलाह दी गई है.
- दाल भात चोखा, कबहुं न करे धोखा.दाल भात से यहाँ अर्थ है सादा और पौष्टिक भोजन. सादा भोजन सबसे अच्छा है, जिससे स्वास्थ्य अच्छा रहता है और उसे कमाने के लिए गलत काम भी नहीं करने पड़ते.
- दाल भात में मूसर चंद. किसी आनन्ददायक काम में विघ्न डालने वाला. किसी बने बनाए काम को गुड़ गोबर करने वाला.
- दाल भात लंबा जैकारा, ए बाई परताप तुम्हारा.कोई व्यक्ति यदि अपनी जवान बेटी को किसी बूढ़े को ब्याह दे तो बेटी की ससुराल में उसकी खूब खातिरदारी होती है. ऐसे किसी व्यक्ति का कथन.
- दाल में कुछ न कुछ काला है.जहाँ कुछ गड़बड़ी की आशंका हो वहाँ यह कहावत कही जाती है.
- दाल में नमक, सच में झूठ.जितना दाल में नमक होता है उतना सच में झूठ चल जाता है.
- दावत नहीं, अदावत है.अदावत – झगड़ा, दुश्मनी. दावत देने से कुछ लोग तो खुश होते हैं पर बहुत से लोग नाराज़ भी हो जाते है. (यहाँ तक कि कुछ लोग दुश्मनी तक मानने लगते हैं). 2. अधिक लोगों की दावत करना बहुत झंझट का काम है.
- दावत में सबसे पहले पहुँचो और लड़ाई में सबसे बाद.दावत में पहले पहुँचने का फायदा यह है कि सबसे बढ़िया और ताज़ा माल खाने को मिलता है, जहाँ लड़ाई हो रही हो वहाँ बाद में इसलिए पहुँचो कि तब तक खतरा टल चुका होता है.
- दावा किया, तकादा गया.जब आप अपने रुपए की वसूली के लिए किसी के ऊपर मुकदमा कर देते हैं तो फिर उस से तकादा नहीं कर सकते.
- दासा सदा उदासा.जो किसी का दास हो वह कभी सुखी नहीं रह सकता.
- दासी करम, कहार से नीचे.किसी एक व्यक्ति की नौकरानी बन के काम करना सबसे खराब काम है. उस से अच्छी कहारिन है जो घर घर जा कर काम करती है लेकिन किसी की गुलामी नहीं करती.
- लेन देन पर ख़ाक, मुहब्बत रक्खो पाक.इस कहावत को दो प्रकार से प्रयोग करते हैं – थोड़े बहुत लेन देन के पीछे प्रेम सम्बन्ध नहीं तोड़ना चाहिए. 2. जो लोग क़र्ज़ ले कर वापस नहीं करना चाहते वे इस प्रकार की बहाने बाजी करते हैं.
- दिन अस्त, मजूर मस्त.दिन भर काम में खपने वाला मजदूर शाम होने पर सुख की सांस लेता है.
- दिन आया रावण मरे.सब समय की बात है बुरा समय आने पर रावण जैसा सर्वशक्तिमान व्यक्ति भी मारा गया.
- दिन ईद, रात शबेरात.हर समय मौज ही मौज.
- दिन कटे काम से, रात कटे नींद से, राह कटे साथ से.अर्थ स्पष्ट है.
- दिन के पीछे रात और रात के पीछे दिन.कहावत के द्वारा यह सीख दी गई है कि जिस प्रकार दिन के बाद रात अवश्य आती है और रात के बाद दिन, उसी प्रकार जीवन में सुख के बाद दुख अवश्य आता है और दुख के बाद सुख.
- दिन चोखे होवें व्यापार चले और न्यौते आवें, दिन आड़े होवें तो माल घटे और पाहुने आवें.अच्छे दिन होते हैं तो व्यापार भी चलता है, आमदनी होती है और निमंत्रण मिलते हैं. दिन बुरे होते हैं तो व्यापार भी नहीं चलता, घाटा होता है और घर में मेहमान भी आ जाते हैं जिन के ऊपर खर्च भी करना पड़ता है.
- दिन बुरे आते हैं तो सोने में हाथ डालो मिट्टी हो जाता है, दिन भले आते हैं तो मिट्टी छूने से सोना बन जाती है.अर्थ स्पष्ट है.
- दिन दस आदर पाए के करनी आप बखान, जब लौं काग सराध पख तब लग को सन्मान.बहुत से लोगों का विश्वास है कि पितृ लोग श्राद्ध पक्ष में कौवे का रूप धर कर भोजन करने आते हैं, इसलिए लोग कौवों को भोजन कराते हैं. यह सम्मान केवल श्राद्ध पक्ष समाप्त होने तक ही मिलता है. थोड़े समय के लिए सत्ता या अधिकार पा जाने पर जो लोग इतराने लगते हैं उनको सीख देने के लिए यह कहावत कही गई है.
- दिन नीके कंकर मोती(दिन अच्छे होते हैं तो कंकड़ जवाहर हो जाते हैं). भाग्य साथ देता है तो हर काम में लाभ होता है. अच्छे दिन आते हैं तो कंकड़ मोती बन जाते हैं.
- दिन भर ऊनी ऊनी, रात को चरखा पूनी.दिन में समय बर्बाद करती रही और रात में चरखा और पूनी (रूई का गोला) ले कर बैठी. समय पर काम न कर के अंत में बेसमय उल्टा सीधा काम करने वाले लोगों के लिए.
- दिन भर खेली आले माले, जूआँ ढूँढे दिया उजाले(कातन बैठी दिया उजाले). दिन भर इधर उधर खेलती रही और रात में दीये के उजाले में जूएँ बीनने बैठी. अर्थ ऊपर वाली कहावत की भांति.
- दिन भले आएँगे तो घर पूछते चले आएंगे.जब आदमी के अच्छे दिन आने होते हैं तो उसे कोई प्रयास नहीं करना पड़ता.
- दिन में गर्मी रात में ओस, कहे घाघ वर्षा सौ कोस.अगर दिन में गर्मी हो और रात में ओस गिरे तो घाघ कवि कहते हैं कि दूर दूर तक वर्षा की कोई संभावना नहीं है.
- दिन में बादल रात में तारे, चलो कंत कहीं करें गुजारे.यदि चौमासे में कभी दिन में बादल छाए रहें पर रात में तारे दिखने लगें तो यह वर्षा न होने (अकाल पड़ने) के लक्षण हैं. ऐसे में किसान की स्त्री अपने पति को सुझाव दे रही है कि गुजारा करने के लिए कहीं और चलो.
- दिन में सोवे, रोजी खोवे.जो दिन में सोता है वह अपनी जीविका खो देता है.
- दिनन के फेर से सुमेरू होत माटी को.जब बुरा समय आता है तो बड़े बड़े लोग मिट्टी में मिल जाते हैं (सुमेरु जैसा विशालकाय पर्वत भी मिट्टी हो जाता है).
- दिया कलेजा काढ़, हुआ नहिं आपना.अपना कलेजा निकाल कर दे दिया फिर भी वह अपना न हुआ.
- दिया तो मुंह चाँद था, न दिया तो सियार की मांद था.जब तक किसी को कुछ देते रहो वह आपकी बड़ाई करता है (आपके मुँह को चाँद सा बताता है) और न दो तो गाली देने से बाज भी नहीं आता (आपकी शक्ल को सियार की मांद जैसा बताने लगता है).
- दिया न बाती, बांदी फिरे इतराती.कुछ न होते हुए भी घमंड करना.
- दिया भूलो, लिया कभी न भूलो.इस का अर्थ दो तरह से किया जा सकता है. किसी को धन या कोई वस्तु उधार दिया हो तो भले ही भूल जाओ पर उधार ले कर कभी नहीं भूलना चाहिए. 2. किसी पर उपकार किया हो तो जताओ नहीं और उससे बदले में कुछ पाने की अपेक्षा मत करो (नेकी कर कुँए में डाल). किसी ने आप पर उपकार किया हो तो हमेशा उसके कृतज्ञ रहो.
- दिया लिया सब बह गया, रह गई कानी बहू.किसी ने अधिक दहेज़ के लालच में कानी लड़की से शादी कर ली. रुपया पैसा तो थोड़े दिनों में ही खर्च हो गया, पर अब कानी बहू को जीवन भर झेलना पड़ेगा.
- दिया लिया ही काम आता है. दिया हुआ दान परलोक में काम आता है.
- दिये का प्रकाश धरती पर, दिए का प्रकाश स्वर्ग तक.दिये का (दीपक का) प्रकाश धरती पर ही फैलता है जबकि दिए का (दान का) प्रकाश स्वर्ग तक साथ चलता है.
- दिल को होए करार तब सूझे त्यौहार.मन में चैन हो तभी उत्सव इत्यादि अच्छे लगते हैं.
- दिल जाने सो ही दिलदार.वही सच्चा मित्र या प्रेमी है जो आपके दिल का हाल जानता है और समझता है.
- दिल मिले की यारी.दिल मिलते हैं तभी दोस्ती होती है.
- दिल में न हो रार, तबहिं मने त्यौहार.किसी से कोई लड़ाई, झगड़ा, टंटा न हो तभी त्यौहार मनाने का मन करता है.
- दिल में रहम हो, जुबान नरम हो, आँखों में शरम हो, तो सब कुछ तुम्हारा है. स्पष्ट है.
- दिल में हो आग तो शब्द बनें शोले.जला भुना आदमी जली कटी बातें बोलता है.
- दिल लगा गधी से तो परी क्या करे.आदमी को जिस स्त्री से प्रेम हो जाए उसके आगे सब बेकार लगती हैं.
- दिल लगा मेंढकी से तो पद्मिनी क्या चीज़ है.ऊपर वाली कहावत की भांति.
- दिल से दिल को राह है.एक दूसरे से मन मिल जाना ही सब से बड़ा सुख है.
- दिलेरी मर्दों का गहना है.स्त्रियाँ के शरीर पर बहुत से गहने अच्छे लगते हैं पर पुरुषों के लिए तो साहस और शूरता ही सबसे बड़े गहने हैं.
- दिलों में ख़ाक उड़ती है, फकत मुँह पर सफाई है.दिल में ख़ाक उड़ने का अर्थ दुखी होने से भी है और ईर्ष्या में जलने से भी. जहाँ लोग ऊपर से ख़ुशी जाहिर करते हैं पर अंदर से दुखी होते हैं वहाँ यह कहावत कही जाती है.
- दिल्ली की कमाई, दिल्ली में ही गंवाई.पैसा कमाने के लिएघर से बाहर तो रहे पर जो भी कमाया वहीँ खर्च आये.
- दिल्ली की गद्दी लई, सुरा सुन्दरी राग.दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाले सुरा, सुंदरी और संगीत के चक्कर में पड़ कर गद्दी की रक्षा नहीं कर पाए.
- दिल्ली की तुर्कनो मरे और बूंदी का राजपूत सिर मुंडाए. किसी अनजान व्यक्ति के दुख में अनावश्यक दुखी होना. तुर्कनो – मुस्लिम स्त्री.
- दिल्ली की बेटी गोकुल की गाय, करम फूटे तो बाहर जाय.दिल्ली में पली बढ़ी लड़की को दिल्ली के बाहर कहीं अच्छा नहीं लगता. उसकी शादी कहीं बाहर हो जाए तो उसे लगता है कि उस के करम फूट गए. इसी प्रकार गोकुल में पलने वाली गाय गोकुल से बाहर जा कर खुश नहीं रह सकती.
- दिल्ली के बांके, जूती में सौ सौ टाँके.दिल्ली वालों का मज़ाक उड़ाने के लिए कहा गया है. (अपने आप को बड़ा भारी अफलातून समझते हैं और जूते में मार तमाम टांके लगे हुए हैं).
- दिल्ली में क्या दीवालिए नहीं रहते.कोई स्थान कितना भी सम्पन्न क्यों न हो, वहाँ रहने वाले सभी लोग धनी नहीं होते.
- दिल्ली में दरबारी से अपने गाँव की लंबरदारी भली.राजा के दरबार में दरबारी बनने के मुकाबले गाँव की जमींदारी ज्यादा अच्छी है. यहाँ आप अपने मालिक खुद हैं जबकि वहाँ किसी के गुलाम हैं.
- दिल्ली से हींग आई, तब बड़े पके.किसी काम में आडम्बर के कारण अनावश्यक देर लगना.
- दिवस जात नहिं लागहिं बारा.अच्छे दिन हों या बुरे, अंततः सब बीत जाते हैं.
- दिवाले में डेढ़ हिस्सा.जिसे हर काम में घाटा ही घाटा होता हो.
- दी दिवाई खली न खाए, पीछे कोल्हू चाटन जाए.बैल को जो खल दी गई है वह नहीं खा रहा है बल्कि पिराई के बाद कोल्हू को चाट रहा है. अवसर का लाभ न उठाने वाले मूर्ख व्यक्ति के लिए.
- दीन की सेवा ही दीनबंधु की सेवा है. दीन हीन व्यक्ति की सेवा ही ईश्वर की सच्ची सेवा है.
- दीन सबन को लखत है, दीनहिं लखै न कोय, जो रहीम दीनहिं लखै, दीनबंधु सम होय.दीन हीन व्यक्ति सब की ओर आशा भरी नजरों से देखता है लेकिन उसकी ओर कोई नहीं देखता. जो दीन की ओर ध्यान देता है वह दीनबंधु ईश्वर के समान होता है.
- दीन से दुनिया रखनी मुश्किल है.धर्म पर चलो तो दुनिया में रहना मुश्किल है.
- दीन से दुनिया है.धर्म पर ही संसार टिका है.
- दीमक का खाया पेड़ और चिंता का खाया शरीर किसी काम के नहीं रहते.जिस पेड़ के तने को दीमक खा ले वह सूख जाता है, इसी प्रकार चिंताओं का मारा व्यक्ति भी किसी काम का नहीं रहता.
- दई दई का करत है, दई दई सो कबूल.दई – दैव, दई – दिया है. दैव – दैव क्यों चिल्लाते हो. दैव (ईश्वर) ने जो दिया है उसे स्वीकार करो. इस दोहे की पहली पंक्ति इस प्रकार है – दीरघ सांस न लेय दुख, सुख साईँ न भूल.
- दीवानी आदमी को दीवाना कर देती है.यहाँ दीवानी से अर्थ मुकदमों से है. मुकदमेदारी आदमी को पागल कर देती है.
- दीवाने को बात बताई, उसने ले छप्पर चढ़ाई.मूर्ख आदमी को गोपनीय बात बताओगे तो वह सारे में फैला देगा.
- दीवार खाई आलों ने, घर खाया सालों ने.दीवार में आले अधिक हों तो दीवार कमज़ोर हो जाती है. घर में सालों का दखल हो तो घर कमज़ोर हो जाता है.
- दीवारों के भी कान होते हैं.घर की अंदर गुपचुप की गई बात भी जाने कैसे बाहर पहुँच जाती है. इसीलिए कहते हैं कि दीवारों के भी कान होते हैं.
- दीवाल रहेगी तो पलस्तर बहुतेरे चढ़ जाएंगे.शरीर जीवित रहेगा तो चर्बी मांस सब बाद में चढ़ जाएगा.
- दीवाली की कुलिया.देखने में आकर्षक चीज़ जो बाद में किसी काम न आए.
- दीवाली जीत, साल भर जीत.दीवाली पर जुए में जीतना शुभ माना जाता है.
- दीवे को परवा नहीं, जल जल मरे पतंग.एकतरफा प्रेम करने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है.
- दुख कहने के लिए नहीं सहने के लिए होता है.जब आप पर कोई दुःख पड़े तो चुपचाप उसे सहना चाहिए, सब के सामने उसका रोना नहीं रोना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – What cannot be cured must be endured.
- दुख जाने दुखिया या दुखिया की माँ.किसी व्यक्ति के दुख को वह स्वयं समझ सकता है या उसकी माँ समझ सकती है, और कोई नहीं समझ सकता.
- दुख पीछे सुख होत है ज्यों निशि बीते भोर.जिस प्रकार अँधेरी रात के बाद सुबह आती है उसी प्रकार दुःख के बाद सुख अवश्य आता है.
- दुख मरें बी फाख्ता, कौवे मेवें खाएं.शरीफ लोग दुखी रहते हैं और धूर्त लोग मौज करते हैं.
- दुख मिटा बिसरे राम.जब तक व्यक्ति परेशानी में होता है तब तक वह ईश्वर को याद करता है, दुःख समाप्त होते ही वह ईश्वर को भूल जाता है. इंग्लिश में कहावत है – The danger past and god forgotten.
- दुख में सुमरिन सब करें, सुख में करे न कोय(जो सुख में सुमिरन करे, दुःख कहे को होए). दुःख में सभी लोग ईश्वर को याद करते हैं और सुख में कोई नहीं करता. अगर सुख के दिनों में ईश्वर को याद करें तो दुःख होगा ही क्यों. इसी प्रकार का दूसरा दोहा है – सुख में सुमिरन न किया, दुःख में किया याद, रहिमन ऐसे नरन की कौन सुने फ़रियाद.
- दुख सुख निसदिन संग हैं मेट सके न कोय, जैसे छाया देह की अलग कभी न होय.मनुष्य को सुख और दुःख दोनों मिलना अवश्यम्भावी है. जैसे शरीर की छाया को शरीर से अलग नहीं किया जा सकता वैसे ही सुख और दुःख को अलग नहीं किया जा सकता. जो व्यक्ति सुख में रह रहा है उसे घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि उसे भी कभी न कभी दुःख मिलेगा, और जो दुःख में जी रहा है उसे निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि उसे भी कभी सुख अवश्य मिलेगा.
- दुई दिन दौड़े इक दिन खाए, अहमक होय बराते जाए.बरात में एक दिन दावत खाने को मिलती है पर उसके लिए दो दिन फ़ालतू में दौड़ना पड़ता है. इस कारण से बरात में जाना कोई समझदारी का काम नहीं है.
- दुकान सी दाता न घर सा भिखारी.व्यापार हमें जीवन भर कुछ न कुछ देता रहता है, अर्थात उस के जैसा दाता कोई नहीं है. गृहस्थी हर समय कुछ न कुछ मांगती रहती है अर्थात उसके जैसा भिखारी कोई नहीं है.
- दुख में सुख की कदर मालूम होती है.आज यदि हमें सब प्रकार की सुविधाएँ मिली हुई हैं तो हम उन की कदर नहीं करते. कल जब हम पर दुख पड़ता है तो हमें इस चीजों की कीमत मालूम पडती है. इंग्लिश में कहावत है – Misfortunes tell us what fortune is.
- दुखती चोट, काने से भेंट.कुछ लोग काने व्यक्ति को देखना बहुत अपशकुन मानते हैं (वैसे यह बहुत गलत और निंदनीय आचरण है, काना होना किसी का स्वयं का दोष नहीं है). कहावत में कहा गया है कि किसी की चोट दुःख रही है ऊपर से काना आदमी दिख गया, याने दुःख में दुःख.
- दुखते दांत को उखाड़ना ही अच्छा.जो चीज़ स्थायी दुःख का कारण बन जाए उसे नष्ट कर देना चाहिए.
- दुखिया का घर जले, सुखिया पीठ सेंके.स्वार्थी लोग किसी के दुःख में भी अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं.
- दुखिया का दुःख दुखिया जाने और न जाने कोय.दुखी व्यक्ति का दुःख वह स्वयं ही जान सकता है, और कोई उसे नहीं समझ सकता.
- दुखिया की पीड़ा दुखिया ही सुनता है.जिसने स्वयं दुख झेला हो वही दूसरों का दुखड़ा सुन सकता है.
- दुखिया दुःख को रोवे, सुखिया उसकी जेब टोवे.दुखिया अपना दुःख सुना रहा होता है और सुखिया यह देखने की कोशिश करता है कि उस से कितना पैसा उगाहा जा सकता है.
- दुखिया रोवे, सुखिया सोवे.जिसको कोई दुख है वह अपने दुख से परेशान है जबकि जो सुखी है वह चैन की नींद सोता है.
- दुखे पेट, कूटे माथा (पिराए पेट, फोड़े माथा).किसी और की परेशानी के लिए किसी और को प्रताड़ित करना.
- दुखों का भंडार नाम सदासुखराय.गुण के विपरीत नाम.
- दुधारू गाय की लात भली (लात खाए पुचकारिए होए दुधारू धेनु).दूध देने वाली गाय लात भी मार दे तो उसे पुचकारा जाता है. जिससे आपका स्वार्थ सिद्ध होता है उसके अवगुण भी सहन किए जाते हैं.
- दुधारू भी उतना खाय, जितना खाय बाँझ.घर व समाज के लिए जो उपयोगी व्यक्ति है उस पर जितना खर्च होता है उतना ही खर्च निठल्ले (अनुपयोगी) व्यक्ति पर भी होता है.
- दुनिया का मुँह कौन पकड़े(दुनिया से कौन जीते). यदि आप में कोई कमी है तो दुनिया के लोग कुछ न कुछ जरूर बोलेंगे. उन्हें कोई रोक नहीं सकता.
- दुनिया खाये बिना रह जाए, पर कहे बिना नहीं रहती.लोगों को सबसे अधिक रस परनिंदा करने में मिलता है.
- दुनिया ठगिये मक्कर से रोटी खाइए शक्कर से.आज कल की दुनिया में धूर्त और ठग लोग ही मजे मार रहे हैं.
- दुनिया दुरंगी मकारा सराय कहीं खैर खूबी कहीं हाय हाय.मकारा सराय – मक्कारों की सराय. दुनिया में कहीं ख़ुशी का रंग है तो कहीं दुःख का रंग है.
- दुनिया पराए सुख दुबली है (दुनिया पराए सुख से परेशान है).दूसरे का सुख देख कर हर किसी को ईर्ष्या होती है.
- दुनिया मुर्दापरस्त है.दुनिया मरे हुए लोगों की ही प्रशंसा करती है.
- दुनिया में दो ही गरीब या बेटी या बैल.दुनिया में सबसे अधिक सताए हुए दो ही प्राणी हैं, बेटी और बैल.
- दुनिया से कौन जीते.दुनिया वाले आप के बारे में क्या कहते हैं इस से अधिक परेशान नहीं होना चाहिए. जिस काम में आपको लाभ हो व सुविधा हो वह काम करना चाहिए. एक बाप और बेटा अपने गधे पर बैठे कहीं जा रहे थे. लोगों ने देखा तो बोले, देखो कैसे कसाई हैं, बेचारे दुबले पतले गधे पर दोनों लदे हुए हैं. लोगों की बात सुन कर बाप उतर कर पैदल चलने लगा, तो लोगों ने कहा कि देखो जवान मुस्टंडा गधे की सवारी कर रहा है और बूढ़े बाप को पैदल चलना पड़ रहा है. यह सुन कर बेटा उतर गया और बाप गधे पर बैठ गया. अब लोग कहने लगे कि कैसा बाप है, बेटे को चलवा रहा है और खुद मजे से गधे पर बैठा है. तंग आ कर वो दोनों गधे से उतर कर पैदल चलने लगे तो लोग हंसने लगे कि कैसे मूर्ख हैं, गधे के होते हुए पैदल चल रहे हैं.
- दुबला कुनबा सराप की आस.दुर्बल आदमी की एक ही ताकत है उसका श्राप, जिससे सबल लोग भी डरते हैं.
- दुबला जेठ देवर बराबर.परिवार का कोई बड़ा बूढ़ा व्यक्ति यदि साधन सम्पन्न न हो तो उस की कोई इज्जत नहीं होती. जेठ यदि गरीब है तो उससे देवर जैसा व्यवहार किया जाता है.
- दुबली बिटिया को घाघरा भारी.दुबले पतले लोगों का मजाक उड़ाने के लिए.
- दुबली बिल्ली भी अपशकुन करती है.दुबली बिल्ली चाहे शिकार न कर पाए, पर यदि रास्ता काट जाएगी तो अपशकुन तो पूरा ही करेगी. दुष्ट व्यक्ति कमजोर हो तो भी नुकसान पूरा पहुँचा सकता है.
- दुबले कलावंत की कौन सुने.गरीब कलाकार को कोई नहीं पूछता.
- दुबले को दुख बहुत.दुबले से अर्थ यहाँ शारीरिक रूप से दुर्बल व्यक्ति से भी है और आर्थिक रूप से दुर्बल से भी. दुर्बल व्यक्ति को दुःख ही दुःख हैं.
- दुबले पर दो लदें.कमजोर को सभी सताते हैं.
- दुबले से भिड़ो नहीं, मोटे से डरो नहीं.दुबले आदमी को कमजोर समझ कर उससे भिड़ने की गलती नहीं करना चाहिए (हो सकता है कि वह लड़ने में तेज हो), और मोटे आदमी को तगड़ा समझ कर उससे डरना नहीं चाहिए.
- दुम पकड़ी भेड़ की आर हुए न पार.गाय की पूँछ पकड़ कर आप नदी पार कर सकती हैं, भेड़ की पूँछ पकड़ कर नहीं. संकट से पार पाने के लिए किसी समर्थ व्यक्ति का ही सहारा लेना चाहिए.
- दुरंगी छोड़ दे एक रंग हो जा, सरासर मोम हो या संग हो जा.मोम – मोम की तरह मुलायम, संग – पत्थर (पत्थर की तरह सख्त). दो तरह का व्यक्तित्व मत पालो, या विनम्र बनो या सख्त. इस को इस प्रकार भी कहते हैं – दो रंगी छोड़ दे एक रंग हो जा, या किनारे हो ले या संग हो जा.
- दुराए दुरे नहीं, नाह को नेह, सुगंध की चोरी.स्वामी किसी को प्रेम करता हो तो यह बात छिप नहीं सकती (व्यवहार में प्रकट हो जाती है), इसी प्रकार सुगंध की चोरी छिप नहीं सकती (हाथ में सुगंध आ जाती है).
- दुर्घटना से देर भली.कहीं पहुँचने की जल्दी में दुर्घटना का शिकार होने के मुकाबले देर से पहुँचना अच्छा है. इंग्लिश में कहावत है – Better late than never.
- दुर्बल को न सताइए, जाकि मोटी हाय, (मुई खाल की सांस सौं, लौह भसम हुई जाय).लोहे को तपाने के लिए लोहार भट्टी जलाया करते थे जिसकी आग बढ़ाने के लिए धौंकनी से हवा फूँकी जाती थी. धौंकनी बकरे की खाल से बनती थी. कबीर दास ने कहा है कि दुर्बल व्यक्ति को मत सताओ. जिस प्रकार मरे हुए जानवर की खाल की सांस से लोहा भस्म हो जाता है उसी प्रकार दुर्बल व्यक्ति की हाय से बड़े से बड़ा व्यक्ति भी मिट्टी में मिल सकता है. (देखिये परिशिष्ट)
- दुलहिन नहीं देखी तो देख उसका भाई, बाघ नहीं देखा तो देख ले बिलाई.(भोजपुरी कहावत) दुल्हन के भाई को देखने से दुल्हन कैसी होगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है. इसी तरह बिल्ली को देखने से बाघ कैसा होगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है.
- दुलारी धिया का कनकटनी नाम.कुछ लोग अधिक लाड़ में बच्चों के ऊलजलूल नाम रख देते हैं, उन पर व्यंग्य.
- दुलारी बिटिया, ईंटे का लटकन.ज्यादा लाड़ प्यार से बिगड़ी हुई बिटिया फूहड़ पने से फैशन कर रही है (ईंट का झुमका पहने है).
- दुल्हिन वही जो पिया मन भाए.कोई स्त्री कितनी भी सुंदर या गुणवान क्यों न हो यदि पति उसे पसंद नहीं करता तो सब बेकार है. इसी प्रकार जिसे मालिक पसंद करे वही कर्मचारी योग्य माना जाता है.
- दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम.अधिकतर मनुष्य सांसारिक सुखों (माया) का आनन्द लेते हैं और कुछ ईश्वर की भक्ति (राम) में लीन हो कर परम सुख प्राप्त करते हैं, पर जो लोग दुविधा में रहते हैं उन्हें दोनों में से कुछ नहीं मिलता.
- दुशाले में लपेट कर मारो.किसी का अपमान करना है तो भी शालीनता के साथ करो.
- दुश्मन एक भी हो तो बहुत, दोस्त अनेक भी हों तो कम.दुश्मन कोई न हो तो अच्छा, दोस्त जितने अधिक हों उतना अच्छा.
- दुश्मन की किरपा बुरी, भली मित्र की त्रास.दुश्मन की कृपा से तो मित्र द्वारा दिया गया कष्ट अच्छा है.
- दुश्मनों की कमी है तो उधार दे के देखो.कहावत में यह सीख दी गई है कि जिसको आप उधार देते हैं वह (उधार वापस मांगने पर) आपका दुश्मन हो जाता है. इसलिए उधार देने से बचना चाहिए.
- दुश्मनों में यूँ रहो, जैसे दांतों में जीभ.दांतों के बीच जीभ बड़ी युक्ति पूर्वक रहती है क्योंकि उस को हर समय कटने का खतरा होता है.
- दुष्ट न छोड़े दुष्टता, दे कैसी सिख कोय, धोए हू सौ बार के स्वेत न काजर होय.कितना भी समझाने की कोशिश करो, दुष्ट व्यक्ति दुष्टता नहीं छोड़ता (जैसे सौ बार धोने पर भी काजल सफेद नहीं होता).
- दुष्ट नारि और मित्र शठ परै जानिए जाय, बसे सर्प घर बीच ही जाने कब उठ खाय.(बुन्देलखंडी कहावत) दुष्ट नारी और कपटी मित्र को घर में नहीं बसाना चाहिए. इनको घर में रखना सांप पालने के बराबर है.
- दुष्ट सास और बदमाश बहू राम रूठें तभी मिलें. दुनिया में ये दोनों कष्ट सबसे बड़े हैं. भगवान जिससे नाराज हों उसे ही ऐसा कष्ट देते हैं.
- दूजिये की जोरू, शैतान का घोड़ा, जितना कूदे उतना थोड़ा.दूजिया – पहली पत्नी की मृत्यु (या तलाक) के बाद दूसरा विवाह करने वाला. कोई दूजिया यदि कुँवारी लड़की से विवाह करता है तो उसे उसके बहुत नखरे उठाना पड़ते हैं. (शैतान के घोड़े से तुलना की गई है).
- दूतों से भींते हिल जाती हैं.कुटिल और चुगलखोर लोगों की करतूतों से राजमहलों की दीवारें (भीतें) हिल जाती हैं, अर्थात शासन अस्थिर हो जाते हैं. घर के बुजुर्ग लोग इस आशय से यह कहावत कहते हैं कि कुटिल लोगों की बातों में आने से घर परिवार और सम्बन्ध टूट जाते हैं, इसलिए सुनी सुनाई बातों में न आ कर अपने विवेक से काम लेना चाहिए.
- दूध और पूत किस्मत से मिलते हैं.दूध केवल सम्पन्न लोगों को ही मिलता है अर्थात जो भग्यवान हैं वही पी सकते हैं. किसी के घर में पुत्र का जन्म भी भाग्य से ही होता है.
- दूध कलारी कर गहे मद समझे सब कोए.कलारी – शराब बेचने वाली. शराब बेचने वाली स्त्री अगर दूध का गिलास भी पकड़े हो तो सब उसे शराब ही समझते हैं. जिस व्यक्ति की समाज में गलत छवि बनी हुई हो वह यदि अच्छा काम भी करे तो लोग बुरा ही समझते हैं.
- दूध का उफान ठन्डे जल के छींटे से दबे.कोई व्यक्ति बहुत क्रोध में हो तो बदले में क्रोध करने से नहीं बल्कि शांत व्यवहार करने से वह शांत होता है.
- दूध का जला छाछ भी फूँक फूँक कर पीता है (फूँके तक्र दूध को दाह्यो).तक्र – मट्ठा. गर्म दूध पीने से कोई जल गया हो तो वह डर के कारण मट्ठे को भी पीने से पहले फूंक मार कर ठंडा करता है. एक बार धोखा खाया हुआ व्यक्ति दोबारा कुछ अधिक ही सावधानी से काम करता है. इंग्लिश में कहावत है – The burnt child dreads the fire.
- दूध का दूध पानी का पानी हंस के विषय में कहा जाता है की वह दूध और पानी को अलग कर देता है और केवल दूध ग्रहण करता है. संस्कृत में इसे नीर क्षीर विवेक कहते हैं, अर्थात अशुद्धियों को अलग कर के शुद्ध वस्तु या शुद्ध ज्ञान ग्रहण करना. 2. दूध और पानी को अलग करना बहुत कठिन कार्य है. किसी उलझे हुए कठिन मसले को तर्क पूर्ण ढंग से सुलझाना. 3. इस कहावत का एक बिल्कुल अलग प्रकार से भी अर्थ किया जाता है. एक दूधवाली दूध में आधा पानी मिलाती थी और ग्राहकों से पूरे पैसे वसूलती थी. एक बार वह रुपयों की पोटली ले कर कहीं जा रही थी. नदी किनारे एक पेड़ के नीचे सुस्ताने के लिए बैठ गई तो उस की आँख लग गई. इसी बीच एक बंदरिया उस की रुपयों की पोटली ले गई और पेड़ की डाल पर बैठ कर पोटली में से निकाल कर एक रुपया नदी में और एक जमीन पर फेंकने लगी. दूध वाली जोर जोर से रोने लगी तो पास खड़े एक आदमी ने कहा कि बंदरिया दूध की कमाई तुझे दे रही है और पानी की कमाई पानी में डाल रही है.(बंदरिया कहे गूजरी सयानी, दूध का दूध और पानी का पानी).
- दूध की मलाई, रखवाली में बिल्ली बिठाई.मूर्खतापूर्ण कार्य. बिल्ली मौका मिलते ही मलाई को चट कर जाएगी.
- दूध दही का पाहुना छाछ से अनखावना.जिस मेहमान को दूध दही की आदत पड़ी हो उसे छाछ दी जाए तो वह नाराज हो जाता है.
- दूध देने वाली गाय की लात भी सही जाती है.जिस से कोई लाभ मिलता हो उसकी अनुचित हरकतें भी सहन करनी पड़ती हैं.
- दूध पीती बिल्ली कुत्तों में जा पड़ी.कोई बेचारा सुख में जीवन व्यतीत कर रहा हो और अचानक बहुत बड़ी मुसीबत में फंस जाए.
- दूध बेचा, मानो पूत बेचा.गाँव के लोगों में आज भी दूध को बेचना अच्छा नहीं माना जाता. अपने बच्चे दूध पीने वाले हों तो लोग कहते हैं कि अगर तुम ने दूध बेचा तो यह बच्चे के साथ बहुत बड़ा अन्याय है.
- दूध में की मक्खी, किसने चक्खी.दूध में यदि मक्खी गिर जाए तो मक्खी चखना तो बहुत दूर की बात है उस दूध को भी कोई नहीं पीता. जान बूझ कर किसी गलत व घृणित बात को कोई स्वीकार नहीं करता.
- दूधों नहाओ, पूतों फलो.स्नेह से दिया गया आशीवाद. दूध से नहाओ अर्थात तुम्हारे घर में खूब सम्पन्नता हो, पूतों फलो अर्थात तुम्हारे घर में बहुत से पुत्र जन्म लें.
- दूब तो चरने के लिए ही होती है.आतताइयों का मानना है कि कमजोर लोग सताने के लिए ही बने हैं.
- दूर की गंगा से घर का पोखर भला. कोई भी चीज़ कितनी भी अच्छी क्यों न हो यदि हमारी पहुँच से बाहर हो तो हमारे लिए बेकार है. जो सहज उपलब्ध हो वह अधिक अच्छी है.
- दूर के ढोल सुहावने होते हैं.बहुत सी वस्तुएँ दूर से अच्छी लगती हैं परन्तु पास जा कर मालूम होता है कि वे इतनी अच्छी नहीं हैं.
- दूर जमाई फूल बराबर गावँ जमाई आदो, घर जमाई गधे बराबर जितना चाहे लादो.जो दामाद दूर रहता है वह फूल के समान प्रिय होता है, जो उसी गाँव में रहे वह कुछ कुछ प्रिय और सम्माननीय होता है, पर जो ससुराल में रहे वह गधे के समान लादा जाता है.
- दूर देस से साजन आया, ऊंची मैंड़ी पलंग बिछाया, खाय पीय कर रहिया सोय, लेना एक न देना दोय. किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जिसे अपनी पत्नी से कोई आसक्ति न हो. 2. किसी विशिष्ट अतिथि के लिए अच्छा प्रबंध करो और वह कोई तवज्जो न दे तो.
- दूर रहे से हेत बढ़े.दूर रहने से प्रेम बढ़ जाता है.
- दूल्हा और दूल्हे का भाई, लंगड़ी घोड़ी और काना नाई.जहाँ बरात में बहुत कम लोग हों और वो भी एक से बढ़ कर एक कार्टून हों तो.
- दूल्हा ढाई दिन का बादशाह.ढाई दिन की बादशाहत का मुहावरा अलिफ़ लैला के एक किस्से से आया है जिसमें किसी गरीब आदमी को ढाई दिन के लिए बादशाह बना दिया गया था. दूल्हे की शान भी केवल ढाई दिन की होती है, बारात लौटने के बाद उसे कोई नहीं पूछता.
- दूल्हा तो आया नहीं और फेरों की तैयारी.सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति के बिना कोई कार्यक्रम कैसे हो सकता है.
- दूल्हा दुल्हन मिल गए, झूठी पड़ी बरात.दूल्हे को दुल्हन से मिलवाने के लिए ही विवाह नाम का बड़ा भारी आयोजन किया जाता है. अब अगर दूल्हा दुल्हन अपने आप से ही मिल जाएँ तो बारात को कौन पूछेगा. इस का दूसरा अर्थ यह है कि यदि दो व्यक्ति आपस में दुश्मनी रखते हों तो उनके समर्थक भी लड़ने लगते हैं. अब यदि वे दोनों आपस में मिल जाएँ तो समर्थक कहीं के नहीं रहते.
- दूल्हे के मुंह से लार गिरे तो बाराती क्या करें.मुंह से लार गिरने का अर्थ है मंद बुद्धि होना. दूल्हा मंद बुद्धि है इस में बारातियों का क्या दोष है.
- दूल्हे के सो जाने से ब्याह नहीं टलता.जब बाल विवाह होते थे तब यह समस्या आती होगी कि कोई कोई दूल्हा विवाह के बीच में ही सो जाता होगा. तभी यह कहावत बनी होगी. बड़े आयोजन किसी एक महत्वपूर्ण व्यक्ति की अनुपस्थिति से भी रुकते नहीं हैं, इस आशय में यह कहावत कही जाती है.
- दूल्हे के ही साथ बरात.बारात दूल्हे के ही साथ चलती है, इसी प्रकार सेना सरदार के साथ और जनता अपने नेता के साथ चलती है.
- दूल्हे को पत्तल नहीं, बजनिये को थाल.महत्वपूर्ण व्यक्ति की अनदेखी कर के महत्वहीन लोगों की आवभगत करना. (दूल्हे को पत्तल भी नहीं मिल रही है और बाजा बजाने वाले को थाल में भोजन परोसा जा रहा है. बजनिया – बाजा बजाने वाला.
- दूसरे की थाली में घी घना दीखे.मनुष्य को सदैव ऐसा लगता है कि दूसरे लोग उससे अधिक सुखी हैं. ऐसा लगता है कि दूसरे की थाली में घी अधिक है (एक जमाने में घी अधिक होना अच्छे खाने का मानक था).
- दूसरे की थाली में लड्डू बड़ा दीखे.दूसरे की सुख समृद्धि हमेशा अपने से अधिक लगती है. इंग्लिश में कहावत है – The grass is always greener on the other side of court.
- दूसरे की पत्तल, लंबा-लंबा भात.चावल जितना लम्बा हो उतना ही उच्च कोटि का माना जाता है. हर व्यक्ति को ऐसा लगता है कि दूसरे को उस से अच्छा भात मिला है. अर्थ ऊपर वाली दोनों कहावत की भांति.
- दूसरे की पीठ खुजलाने से अपनी खुजली नहीं मिटती है.दूसरों के काम करते रहने से अपनी आवश्यकताएं पूरी नहीं होतीं. इसका अर्थ यह नहीं है कि दूसरों के लिए कुछ नहीं करना चाहिए. व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं और समाज के कार्यों में संतुलन बना कर चलना चाहिए. (घर में दिया जला कर चौराहे पर दिया जलाओ).
- दूसरे की बहू और अपनी बेटी सबको अच्छी लगती है.अधिकतर महिलाओं को अपनी बहू में बुराइयाँ ही बुराइयाँ और अपनी बेटी में अच्छाइयाँ ही दिखाई पडती है, साथ ही दूसरों की बहू बहुत सुशील और गुणवान नज़र आती हैं.
- दे गया सो ले गया, जमा किया सो गवां दिया.जो धन दान दिया वह आपके साथ परलोक जाएगा, जो जमा करते रहे वह सब यहीं रह जाएगा.
- दे दुआ समधियाने को, नहिं फिरती दाने दाने को.लड़के की ससुराल से मिले माल पर कोई औरत घमंड कर रही है तो दूसरी उसे आइना दिखा रही है.
- दे दे बारूद में आग, किसकी रही और किस की रह जाएगी.खूब खाओ पियो और मौज उड़ाओ. यहाँ क्या बचना है.
- देकर कोई नहीं भूलता.व्यक्ति कोई वस्तु ले कर भूल सकता है पर दे कर कभी नहीं भूलता.
- देख पराई चूपड़ी जा पड़ बेईमान, एक घड़ी की सरमा सरमी दिन भर को आराम.कहीं खाने पीने का बढ़िया इंतजाम हो तो बिना शर्म किये वहाँ जा कर पड़ जाओ. एक घड़ी की बेशर्मी और सारे दिन का आराम.
- देखती आँखों और चलते घुटनों.सभी लोग यह चाहते हैं कि जब इस संसार से जाने का समय आए तब तक आँखों से दिखता रहे और पैर चलते रहें (किसी का मोहताज न होना पड़े).
- देखते हैं ऊँट किस करवट बैठता है.ऊंट जब बैठता है तो पहले से यह बताना संभव नहीं होता कि वह दाएं या बाएं किस तरफ बैठेगा. जब किसी व्यक्ति के विषय में यह अनुमान लगाना कठिन होता है कि वह आगे क्या निर्णय लेगा तो यह कहावत कही जाती है.
- देखन के बौरहियाँ, मतलब में चौकस.कहावत उन लोगों के लिए जो देखने में बुद्धू लगते हैं पर अपने मतलब में होशियार होते हैं.
- देखन के बौराहिया, आवें पांचो पीर.ऊपर वाली कहावत की भांति.
- देखा देखी साधे योग, छीजे काया बाढ़े रोग.बिना योग्य गुरु से सीखे किसी की नकल कर के योग करने से शरीर को हानि होती है.
- देखा देस बंगाला, जहाँ दांत लाल मुँह काला.बंगाल के लोगों के सांवले रंग और पान खाने की आदत पे व्यंग्य.
- देखा न भाला, सदके गई खाला.बिना देखे किसी की बड़ाई करना.
- देखा बाप घर, करे आप घर.लड़की ने जो अपने मायके में देखा होता है वही ससुराल में करना चाहती है.
- देखी तेरी कालपी, बावनपुरा उजाड़.कालपी में पुराने महलों और किलों के खंडहर बहुत हैं इस पर किसी का व्यंग्य.
- देखो खेल खुदाय का क्या क्या पलटे रंग, खानजादा खेती करे, तेली चढ़े तुरंग.एक नवाब ने तेली की रूपवती लड़की से शादी कर ली तो तेली जाति के लोगों की महल में बहुत पूछ हो गई और नवाब के अपने खानदानी खेती कर के पेट पालने पर मजबूर हो गए.
- देना और मरना बराबर है.कंजूस के लिए कथन.
- देना थोड़ा, दिलासा बहुत.देना कुछ ख़ास नहीं केवल बातों से ढाढस बंधाना.
- देनी पड़ी बुनाई तो घटा बतावें सूत.एक जमाने में लोग सूत कात कर जुलाहों को बुनने के लिए देते थे. किसी ऐसे आदमी की बात हो रही है कि जब बुनाई (जुलाहे की मजदूरी) देने का नम्बर आया तो बोले मेरा सूत कम हो गया है. कामगार को पैसा देने में हीला हवाली करना.
- देने का बाट और, लेने का बाट और.बनिए को जब माल देना होता है तो वह कम तोलता है और जब लेना होता है तो ज्यादा तोलता है.
- देने के लिए दीवालिया और लेने के लिए शाह.जब उधार वापस करने की बात आती है तो अपने को दीवालिया बताते हैं और जब किसी से उधार लेना होता है तो अपने को बहुत बड़ा आदमी बताते हैं.
- देने को लेने को राम जी का नाम है. सन्यासियों के लिए कथन.
- देने वाले से दिलाने वाले को ज्यादा सबाब है.परोपकार करने वाले से परोपकार करवाने वाले को अधिक पुन्य मिलता है.
- देर आए, दुरुस्त आए.गलत काम करने वाला कोई आदमी थोड़ी देर से सही पर सही राह पर आ जाए तो.
- देव न मारे डेंग से कुमति देत चढ़ाय.ईश्वर किसी को दंड देना चाहता है तो डंडा नहीं मारता, उसकी बुद्धि भ्रष्ट कर देता है.
- देवता का माहात्म्य, पुजारी के हाथ.पुजारी जितना अधिक देवता का गुणगान करेगा उतनी अधिक लोग देवता की भक्ति करेंगे. महात्माओं और नेताओं के चमचे भी इसी प्रकार से उनका प्रचार करते हैं.
- देवदार औ चन्दन टोरा खस का इत्र मिलावें, करें उबटनों देह लगा के गरमी में सुख पावें.(बुन्देलखंडी कहावत) देवदार, चंदन और खस को मिला कर उबटन करने से ठंडक पड़ती है.
- देवर से परदा जेठ से ठिठोली.उल्टा काम. आम तौर पर स्त्रियाँ जेठ से पर्दा करती हैं और देवर से हंसी मजाक कर लेती हैं.
- देवी दिन काटें, लोग परिचै मांगें.देवी खुद परेशानी में हैं और किसी तरह दिन काट रही हैं, लोग उनसे आग्रह कर रहे हैं कि अपनी महिमा दिखाइये. कोई व्यक्ति स्वयं परेशानी में हो और उससे सहायता मांगी जाए तब.
- देवी दे तो दे नहीं तो भैरों तैयार है. जहाँ पर मांगने वाले के पास बहुत सारे विकल्प हों.
- देवेगा सो पावेगा, बोवेगा सो काटेगा.जैसा व्यवहार दूसरों को दोगे वैसा ही पाओगे.
- देवों से दानव बड़े. भले लोगों के मुकाबले दुष्ट लोग अधिक प्रभावशाली हों तो.
- देश छोड़ो, वेश न छोड़ो.यदि किसी कारण से विदेश में बसना पड़े तो भी अपनी संस्कृति और मूल्यों को नहीं छोड़ना चाहिए.
- देशी गधा पूर्वी रेंक(देसी गधा पंजाबी रेंक). कोई फूहड़ व्यक्ति अधिक फैशन करे या अनपढ़ व्यक्ति ज्यादा अंग्रेज़ी बोले तो.
- देशी मुर्गी विलायती बोल.ऊपर वाली कहावत की भांति.
- देस चाकरी, परदेस भीख.अपने शहर या गाँव में व्यक्ति लज्जा के कारण भीख नहीं मांग सकता, इसलिए नौकरी ही कर सकता है. लेकिन परदेस में (जहाँ उसे कोई जानता न हो) भीख मांग सकता है.
- देस चोरी परदेस भीख.बहुत भूखा होने पर आदमी परदेस में तो भीख मांग कर काम चला लेता है पर अपने गाँव या शहर में लज्जा के कारण भीख नहीं मांग पाता, लिहाजा चोरी करता है.
- देस पर चढ़ाव, सर दुखे न पाँव.परदेस से घर वापस आना हो तो न थकान होती है न पैर दुखते हैं.
- देसी कुतिया विलायती बोली.अनपढ़ व्यक्ति ज्यादा अंग्रेज़ी बोले तो.
- देसी गधी, पूरवी चाल.मूर्ख व्यक्ति अधिक इतराए तो.
- देह धरे का दंड है, हर काहू को होय, ज्ञानी काटे ज्ञान से, मूरख काटे रोय.मानव शरीर मिला है तो कुछ न कुछ कष्ट तो मिलेगा ही. ज्ञानी लोग समझदारी से कष्ट सह लेते हैं जबकि मूर्ख कष्ट मिलने पर रोते रहते हैं.
- देह पर बाल न, तीन पाव का उस्तरा.अनावश्यक साज सामान. (देखिये परिशिष्ट)
- देहरी को दीपक, ज्यौं घर को त्यौं आँगन को.देहरी पर रखा हुआ दीपक घर को भी रौशनी देता है और आंगन को भी. समझदार लोग घर और समाज के कामों में संतुलन बना कर चलते हैं.
- दैव दैव आलसी पुकारा.उद्यमी लोग कर्म करते हैं जिसका उन्हें फल मिलता है जबकि आलसी लोग ईश्वर से ही मांगते रहते हैं.
- दो कहे तो चार सुने.यदि किसी की बुराई में दो बातें कहोगे तो चार सुननी भी पड़ेंगी. कहावत में यह सीख दी गई है कि यदि अपनी बुराई सुनना नहीं चाहते तो किसी को बुरा भी न कहो.
- दो खसम की जोरू, चौसर की गोट.जिस स्त्री के दो पति हों वह हर दम दोनों के इशारों पर नाचने को मज़बूर रहती है. दो हाकिमों के बीच कोई एक ही मातहत हो तो दोनों उस पर अपना जोर जमाते हैं.
- दो घर का पाहुना, भूखा ही रह जाए.यदि कोई व्यक्ति दो घरों का मेहमान हो तो दोनों यह सोचते हैं कि उसने दूसरी जगह खा लिया होगा, इस चक्कर में वह भूखा ही रह जाता है. दो लोगों के चक्कर में कोई काम न हो पा रहा हो तो यह कहावत कही जाती है.
- दो घर डूबते तो एक ही डूबा.जहाँ पति पत्नी दोनों ही निकम्मे और झगड़ालू हों वहाँ यह बात कही जाती है कि इन की शादी अलग अलग हुई होती तो दो घर डूबते. इनकी आपस में हुई है तो गनीमत है एक ही घर डूबा.
- दो घर मुसलमानी, तिसमें भी आनाकानी.किसी एक जाति के बहुत थोड़े से लोग हों और उन में भी आपस में खींच तान हो तो.
- दो घोड़ों पर सवारी खोटी.कहावत में यह सीख दी गई है कि किसी लक्ष्य को पाने का पूरे मन से प्रयास करो, अधूरे मन से कई सारे लक्ष्यों के पीछे भागने से कुछ भी हासिल नहीं होगा.
- दो जोरुओं का खसम फूंके चूल्हा.जिस आदमी के दो पत्नियाँ हों उसे खुद ही खाना बनाना पड़ता है (बल्कि कभी कभी तो पत्नियों के लिए भी बनाना पड़ता है), क्योंकि दोनों पत्नियाँ आपस में हिर्स करती हैं.
- दो तरबूज एक हथेली पर नहीं सधते.एक व्यक्ति से एक साथ दो बहुत बड़े काम नहीं लिए जा सकते.
- दो दिन की मुसलमानी अल्लाह अल्लाह पुकाऱै.(हरयाणवी कहावत) जो नया मुसलमान बना हो वह अधिक दिखावा करता है.
- दो नाव में चढ़ना, छाती फाड़ के मरना.यदि कोई व्यक्ति दो नावों में पैर रख कर नदी पार करना चाहेगा तो बीच मंझदार अवश्य डूबेगा. कोई व्यक्ति एक साथ दो कठिन काम करना चाह रहा हो और कोई भी काम ठीक से न कर पा रहा हो तो उसे नसीहत देने के लिए.
- दो पाटन के बीच में साबत बचा न कोए.संसार रूपी चक्की के दो पाट हैं, माया मोह और ईश्वर की भक्ति. बेचारा आम आदमी इन दोनों के बीच पिसता रहता है. (इसकी पहली पंक्ति है – चलती चाकी देख के दिया कबीरा रोय).
- दो बेटों की माँ दुखिया.दोनों बेटे एक दूसरे पर जिम्मेदारी टालते हैं.
- दो भिड़ेंगे तो एक तो गिरेगा ही.अर्थ स्पष्ट है.
- दो मुल्लो में मुर्गी हराम.अगर जानवर को एक ही वार में ठीक तरह से जिबह न किया गया तो उसका मांस हराम हो जाता है. दो मुल्ले करेंगे तो ठीक तरह से नहीं होगा.
- दो मुल्लों में मुर्गी हलाल.दो मुल्लों की आपसी लड़ाई और हिर्स में मुर्गी बेचारी मुफ्त में मारी जाती है.
- दो लड़ें तीसरा ले उड़े(दो की लड़ाई, तीजे की मौज). जब दो लोग लड़ते हैं तो तीसरा उसका लाभ उठाता है. दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर ने किस तरह रोटी खा ली थी यह कहानी हम सब ने सुनी होगी.
- दो लड़ेंगे तो एक गिरेगा भी.जब दो लोग लड़ेंगे तो कोई न कोई तो गिरेगा ही.
- दो शरीर एक प्राण.अत्यधिक प्रेम.
- दो हाथ दो पाँव मिलें तो चौपाया भी बन सकते हैं और चतुर्भुज भी.दो लोग मिल कर काम करें तो महान काम भी कर सकते हैं (भगवान के समान चतुर्भज बन सकते हैं) और नीचता की पराकाष्ठा भी कर सकते हैं (पशुओं के समान चौपाए बन सकते हैं)
- दोउ बेर जो घूमे फिरे, तीन बेर जो खाए, सदा निरोगी चंग रहे, जो प्रातः उठ न्हाए.जो व्यक्ति सुबह शाम सैर को जाता है (अर्थात व्यायाम करता है), तीन बार से अधिक भोजन नहीं करता है और प्रातः उठ कर नहाता है वह सदा निरोगी रहता है.
- दोनों दीन से गए पांड़े, हलुआ मिला न मांड़े.मांड़े माने पतली रोटी. पांडे जी दोनों चीजें खाने के चक्कर में थे हलुआ भी और रोटी भी. अंततः दोनों ही नहीं मिलीं. (दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम).
- दोनों पलीतों में दे दो तेल, तुम नाचो हम देखें खेल.दो लोगों में लड़ाई करा कर तमाशा देखने वालों के लिए.
- दोनों वक्त मिले सियोगे तो सूरज की आँख फूट जाएगी.पुराने लोगों की आदत थी कि किसी काम को मना करना हो तो उस के साथ कोई लोक विश्वास जोड़ दो. इसी प्रकार का एक बच्चों को समझाने वाला लोक विश्वास.
- दोष कहा वा कुब्जा को सखि अपनो श्याम खोटो.कंस के बुलाने पर जब कृष्ण मथुरा गए तो वहां उन्होंने एक कुबड़ी स्त्री को स्पर्श कर के परम रूपवती में बदल दिया. गोपियों को जब यह बात मालूम हुई तो उन्हें बड़ी जलन हुई. वे आपस में बात कर रही हैं कि इस में कुब्जा का कोई दोष नहीं है कृष्ण के मन में ही खोट है.
- दोस पराए देख करि, चला हसन्त हसन्त, आपने याद न आवई, जिनको आदि न अन्त.सभी लोग पराए दोष को देख कर हँसते हैं लेकिन अपने दोष कोई नहीं देखता.
- दोस्त के मुँह पर कहिए और दुश्मन की पीठ पर.दोस्त को उसकी कोई कमी बतानी हो तो उसके मुँह पर बताओ, पीठ पीछे किसी से उसकी बुराई मत करो. दुश्मन की कमी बतानी हो उस के मुँह पर कुछ न कह कर पीठ पीछे उसकी बुराई करो.
- दोस्त बने दुश्मन से सावधान रहिए.कोई दुश्मन यदि आप का दोस्त बन जाता है तो उस पर पूरा विश्वास नहीं करना चाहिए. हो सकता है वह आपकी पीठ में छुरा भोंकना चाहता हो. (फागुन को मेंह बुरो, बैरी को नेह बुरो).
- दोस्त मिलें खाते, दुश्मन मिलें रोते.आशीर्वाद के रूप में कहा जाता है.
- दोस्ती टूट जाती है बहुत अधिक मिलने से या बहुत कम मिलने से.बहुत अधिक मिलने से अनादर होता है. संस्कृत में कहावत है ‘अति परिचयात अवज्ञा, सतत गमनं अनादरम्’. बहुत कम मिलने से भी प्रेम कम हो जाता है. इंग्लिश में कहावत है ‘out of sight, out of mind.’
- दोस्तों का हिसाब दिल में.जहां सच्ची दोस्ती हो वहां लिखत पढ़त की जरूरत नहीं पड़ती.
- दोस्तों से रखिएगा लेन देन साफ़, कायम अगर आपको रखनी है दोस्ती.दोस्ती चाहे कितने भी पक्की क्यों न हो आपसी हिसाब किताब साफ़ रखना चाहिए, क्या मालूम कब किस के मन में कोई खटास पैदा हो जाए.
- दौड़ चले सो औंधा गिरे.किसी भी काम को करने में जो बहुत तेजी दिखाने की कोशिश करता है वह परेशानी में जरूर पड़ता है.
- दौड़े दौड़े जाइए, भाग बिना क्या पाइए.कितनी भी दौड़ भाग कर लो (प्रयास कर लो) भाग्य के बिना कुछ नहीं मिलता. (बहुत से आलसी लोग यह सोच कर प्रयास ही नहीं करते). वैसे सयाने लोग इस आशय में भी इस कहावत को कहते हैं कि पूरा प्रयास करने के बाद यदि सफलता न मिले तो निराश मत हो, यह मान लो कि अमुक वस्तु तुम्हारे भाग्य में ही नहीं थी. इंग्लिश में भी इस आशय की एक कहावत है – Nothing is stronger than destiny.
- दौलत पाय न कीजिए सपनेहूँ में अभिमान, (चंचल जल दिन चारिको, ठाउं न रहत निदान).लक्ष्मी चंचला है, किसी के पास ठहरती नहीं है, इसलिए धन दौलत पा कर घमंड नहीं करना चाहिए, सपने में भी नहीं.
- द्वार धनी के पड़ रहे, धक्का धनी के खाय, कबहूँ धनी नवाजिहैं, जो दर छांड़ि न जाए.धनवान के द्वार पर पड़े रहो चाहे वह धक्का ही क्यों न दे. अगर आशा ले कर पड़े रहेगो तो कभी न कभी उसकी कृपा हो जाएगी.
द
21
Feb