ख
खंजर तले जो दम लिया तो क्या दम लिया. तलवार के साए में कौन चैन से बैठ सकता है.
खंडहर बता रहे हैं इमारत बुलंद थी. जिस प्रकार बड़ी इमारतों के भग्नावशेष बता देते हैं कि यह इमारत विशाल रही होगी, उसी प्रकार धनी व्यक्ति निर्धन हो जाए उसके तौर तरीके बता देते हैं कि वह कभी धनी था.
खंबा गिरे छप्पर भारी. छप्पर को टिकाने वाला खंबा गिर जाए तो छप्पर भारी हो जाता है. घर के मुख्य कमाने वाले की मृत्यु हो जाए तो घर चलाना भारी पड़ने लगता है.
खंबा देख के गड्ढा खोदा जाता है. जितना ऊँचा खंबा होता है, उस को खड़ा करने के लिए उतना ही गहरा गड्ढा खोदना पड़ता है. कार्य के अनुसार ही तैयारी की जाती है और साधन जुटाए जाते हैं.
खग ही जाने खग की भाषा. चिड़िया की भाषा चिड़िया ही समझ सकती है. बच्चे की भाषा बच्चा समझ सकता है, जवान की भाषा जवान और बूढ़े की भाषा को बूढ़ा ही समझ सकता है.
खजुही कुतिया, मखमली झूल. खुजली वाली कुतिया के लिए मखमल की झूल. अपात्र को कोई बहुत बढ़िया चीज़ मिल जाना.
खजूर खाने हैं तो पेड़ पर चढ़ना पड़ेगा. कुछ पाने के लिए परिश्रम तो करना ही पड़ेगा.
खटमल के कारण खटिया मार खाय. खाट में खटमल हो जाएँ तो उन्हें निकालने के लिए जोर जोर से लाठी मारते हैं. गलत लोगों की संगत से मनुष्य हानि उठाता है. खटमल के लिए देखिए परिशिष्ट.
खटमल मार के हाथ न गंदा करो. ओछे व्यक्ति को सजा देने की कोशिश में अपनी हानि होती है.
खटिया में खटमल और गाँव में तुरक. खाट में खटमल और गाँव में मुसलमान परेशानी का कारण बनते हैं.
खट्टा खट्टा साझे में, मीठा मीठा न्यारा. जो फल खट्टा निकल गया उसको बाँट कर खाओ और जो मीठा है वह केवल मेरा है. निपट स्वार्थपरता. न्यारा – अलग.
खड़ा बनिया पड़े समान, पड़ा बनिया मरे समान. बनियों के डरपोक होने पे व्यंग्य.
खड़ा मूते लेटा खाय, उसका दलिद्दर कभी न जाय. जो आदमी खड़ा हो कर पेशाब करता है और लेट कर खाता है वह हमेशा दरिद्र ही रहेगा.
खड़ा स्वर्ग में गया. जिसकी मृत्यु चलते फिरते हुई हो उसके लिए कहते हैं.
खड़ा होने दो, बैठे की जगह तो करइ लेव. खड़े होने को स्थान मिल जाए तो फिर बैठने की जगह तो बना लेंगे.
खड़ी आई, लेटी जाऊँगी. स्त्री का ससुराल वालों से कथन.
खड़ी खेती, गाभिन गाय, तब जानो जब मुँह में जाय. खेती पक कर तैयार खड़ी हो तो भी किसान बहुत खुश नहीं होता. जब फसल कट कर खलिहान में पहुँच जाए और खाने को मिल जाए तभी वह खुश होता है. इसी प्रकार गाय गर्भवती हो तो तब तक खुश नहीं होना चाहिए जब तक वह ब्याह न जाए और दूध न मिल जाए.
खतरा दो अंगुल, डर सौ अंगुल. खतरे से अधिक डर आदमी को परेशान करता है.
खता करे बीबी, पकड़ी जाए बांदी. इसका अर्थ दो तरह से है. एक तो यह कि गलती कोई और करे और सजा किसी और को मिले. दूसरा यह कि बीबी से कुछ कहने की हिम्मत नहीं है इसलिए उसकी गलती की सजा बांदी को दे रहे हैं.
खता लम्हों ने की, सजा सदियों ने पाई. कुछ देखने में छोटी लगने वाली गलतियाँ बहुत लम्बे समय तक दुख पहुँचाती हैं. गलती तो थोड़ी देर में ही हो जाती है लेकिन उसके परिणाम दूरगामी होते हैं. आजादी मिलने के समय जो गलतियाँ उस समय के नेताओं ने कीं उस का खामियाजा देश अब तक भुगत रहा है.
खत्री पुत्रम् कभी न मित्रम् (जब मित्रम् तब दगा ही दगा). खत्रियों के विषय में किसी दिलजले का कथन.
खत्री से गोरा सो पिंड रोगी. खत्री से गोरा कोई दिखाई दे रहा है तो हो न हो पीलिया का रोगी होगा. खत्रियों के गोरे रंग पर कहावत.
खन में तत्ते खन में सीरे. खन – क्षण, तत्ता – गरम, सीरा – ठंडा. घड़ी घड़ी मिजाज़ बदलना.
खपरा फूटा, झगड़ा टूटा. जिस चीज को लेकर झगड़ा हो रहा है वह टूट जाए तो झगड़ा खत्म.
खर को गंग न्हवाइए, तऊ न छांड़े खार. कितना भी प्रयास करो, दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता.
खर, उल्लू औ मूरख नर सदा सुखी इस घरती पर. गधा, उल्लू और मूर्ख नर, इस धरती पर सदा सुखी हैं क्योंकि इन की कोई महत्वाकांक्षाएं नहीं होतीं.
खरचा रहा न पास, यार मुख से न बोले. जब पास का धन समाप्त हो जाता है तो दोस्त मुँह चुराने लगते हैं.
खरचे से ठाकुर बने. ठकुराई करने के लिए कुछ शान शौकत दिखानी पड़ती है.
खरब अरब लौं लच्छमी, उदै अस्त लौं राज, तुलसी हरि की भक्ति बिन, जे आवें किस काज. कितना भी धन हो और कितना भी फैला हुआ राज पाट हो, हरि की भक्ति के बिना सब बेकार हैं.
खरबूजा खरबूजे को देख कर रंग बदलता है. जो व्यक्ति बिना अपनी बुद्धि प्रयोग किए अपनी जाति या समाज वालों की तरह व्यवहार करने लगे उसका मज़ाक उड़ाने के लिए.
खरबूजा चाहे घाम को आम चाहे मेह, औरत चाहे जोर को और बालक चाहे नेह. खरबूजा तेज धूप में मीठा होता है और आम बरसात में. स्त्री पौरुष को पसंद करती है और बालक स्नेह को.
खरा कमाय खोटा खाय. ईमानदार आदमी कमाता है और बेईमान बैठ कर खाता है.
खरा खेल फरुक्खाबादी. सच्ची बात और ईमानदारी का काम. फर्रुखाबाद के रुपये की चांदी किसी समय बहुत शुद्ध और खरी मानी जाती थी. उसी से कहावत चली.
खरादी का काठ काटे ही से कटता है. धीरे धीरे ही सही, कोई भी लम्बा काम करने ही से निबटता है और ऋण चुकाने से ही चुकता है. खराद एक मशीन होती है जिस पर धीरे धीरे लकड़ी की घिसाई और कटाई की जाती है.
खराब किराएदार से खाली मकान बेहतर. गलत आदमी को मकान किराए पर देने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. थोड़े से लाभ के लिए किसी बड़ी परेशानी को न्योता नहीं देना चाहिए.
खरी मजूरी चोखा काम. नगद और अच्छी मजदूरी देने से काम अच्छा होता है.
खरे को बरकत ओर खोटे को हरकत. ईमानदार की उन्नति होती है और बेईमान का विनाश.
खरे खोटे की राम जानें. किसी विषय की जिम्मेवारी न लेना.
खरे माल के सौ गाहक. अर्थ स्पष्ट है. कहावत के द्वारा दूकानदारों को अच्छी गुणवत्ता वाला माल बेचने को प्रेरित किया गया है.
खरे सोने को कसौटी का क्या डर. सोना यदि शुद्ध हो तो कसौटी पर खरा ही उतरेगा. जो व्यक्ति निर्दोष है और सच्चा है वह किसी से नहीं डरता.
खर्चा घना पैदा थोड़ी, किस पर बांधूं घोड़ा घोड़ी. आमदनी से अधिक खर्च है, किस बूते घोड़ा पाल लूँ. (घोड़ा पालना बहुत महंगा शौक है)
खल की दवा पीठ की पूजा. दुष्ट लोग पीटने से ही ठीक रहते हैं.
खल खाई और कुत्तों की झूठी. (बुन्देलखंडी कहावत) वैश्या के यहाँ जाने वाले से ऐसा कहा जाता है.
खलक का हलक किसने बंद किया है. जनता की आवाज़ को कोई नहीं दबा सकता.
खलक की जुबान, खुदा का नक्कारा. जनता की बात ईश्वर की आज्ञा. इंग्लिश में कहावत है – The voice of the people is the voice of God.
खलक गाल भरावे, पेट नहीं भरावे. खलक – संसार. संसार के लोग मुँह देखी बातें करते हैं, पर पेट भरने वाला कोई नहीं होता.
खलिहान और कुटुंब, सूना न छोड़ो. खलिहान को छोड़ कर जाने में चोरी का डर होता है और कुटुंब को छोड़ कर जाने में कुटुंब टूटने का डर होता है.
खली गुड़ एक भाव (खांड़ खड़ी का एक भाव). भारी अव्यवस्था की स्थिति. खराब शासन व्यवस्था.
खवैया के राम देवैया. हर भूखे मनुष्य को भगवान बोजन देते हैं. अकर्मण्य लोग अक्सर ऐसा बोलते हैं.
खसने न लजाई, हंसने लजाई. खसना – गिरना. कोई व्यक्ति चलते चलते गिर जाए तो लज्जित नहीं होता, अगर उसे गिरा हुआ देख कर कोई हंस दे तो लज्जित होता है.
खसम का खाए, भाई का गाए. उन स्त्रियों के लिए जो हमेशा अपने मायके की ही तारीफ़ करती हैं. पति बेचारा सारी सुख सुविधाएं मुहैया करा रहा है लेकिन गुणगान भाई का ही करेंगी.
खसम किया सुख सोने को, कि पाटी लग के रोने को. ससुराल में जो लड़की सुखी नहीं है उसका कथन.
खसम देवर दोनों एक ही सास के पूत, यह हुआ या वह हुआ. पति के मरने पर स्त्री को देवर से विवाह करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास.
खसम मरे का गम नहीं, घरवाली का सपना सच होना चाहिए. एक स्त्री को यह गलतफहमी थी कि उस के सपने अवश्य सच्चे होते हैं. एक बार उस ने सपना देखा कि उस के पति की मृत्यु हो गई है. जागने पर उसने अपने पति को जीवित पाया तो वह बहुत दुखी हुई. लोगों ने कहा कि तुम्हें तो खुश होना चाहिए. तो वह बोली पति को चाहे कुछ भी हो मेरा सपना सच होना चाहिये. कितना भी नुकसान हो, अपनी मूर्खतापूर्ण सोच से चिपके रहना
खसम मरे तो मरे सौतन विधवा होनी चाहिए. बहुत नीच प्रकृति के लोग हर हाल में दूसरे का बुरा चाहते हैं चाहे उस में अपना कितना बड़ा नुकसान क्यों न हो जाए.
खसम वाली रांड. ऐसी स्त्री जिसका पति उसकी कोई कद्र न करता हो.
खसम ही मारे तो किसके आगे पुकारे. अगर कोई स्त्री पर अत्याचार करता है तो वह सहायता के लिए अपने पति को पुकारती है, अगर पति ही उस पर अत्याचार करे तो वह किससे सहायता मांगे. यदि राजा या हाकिम ही अत्याचारी हो तो जनता किस की शरण में जाए.
खा कचौड़ी ओढ़ दुशाला, रोय मरेगा देने वाला. उधार ले कर खूब बढ़िया खाओ और पहनो. पैसे वापस न मिलने पर तो साहूकार रो रो कर मरेगा, तुम्हारा कुछ नुकसान थोड़े ही होगा.
खा करजा जल्दी मर जा. करजा – कर्ज़, ऋण. क़र्ज़ ले कर खाने वाला चिंता के कारण जल्दी मरता है.
खा के मुँह पोंछ लिया. गलत काम कर के उसे छिपाना या मुकर जाना.
खा चुके खिचड़ी, सलाम चूल्हे भाई. जिस से मतलब निकल गया उसको विदा की नमस्कार.
खा लो पी लो सो अपनो. खाया पिया ही संसार में काम आता है और तो सब नष्ट हो जाता है.
खांड की रोटी, जहाँ तोड़ो वहीँ मीठी. अच्छी वस्तु हर प्रकार से अच्छी ही है.
खांड को खांड हरावे, रांड को रांड हरावे. खांड के व्यापारी तरह तरह की खांड को परख कर बताते हैं कि कौन सी अच्छी है, अर्थात खांड ही खांड को हराती है. इसी प्रकार ओछी मानसिकता वाली स्त्रियाँ भी दूसरी स्त्रियों को नीचा दिखाने की कोशिश करती रहती हैं.
खांड़ खून्देगा तो खांड़ खाएगा. परिश्रम करेगा तो फल मिलेगा. (खांड बनाने के लिए उसे पैरों से खूँदना पड़ता है).
खांड दही जो घर में होय, बांके नैन परोसे जोय, बा घर ही बैकुंठा होय. घर में बढ़िया खाद्य सामग्री हो और आग्रह कर के खिलाने वाली पत्नी हो तो घर में ही बैकुंठ धाम है. जोय – जोरू, पत्नी.
खांड बिना सब रांड रसोई. जब चीनी बनाने के परिष्कृत तरीके ईजाद नहीं हुए थे तब गन्ने के रस से गुड़ और खांड बनाई जाती थी. फिर खांड को शुद्ध कर के उस से बूरा बनाने का रिवाज़ शुरू हुआ. इन चीजों से ही मिठाई आदि बनती थी. इसी लिए कहा गया कि खांड के बिना रसोई बेकार है.
खांसी करूं खुर्रा करूं, फिर भी न मरे तो क्या करूं. बीड़ी व तम्बाखू का कथन.
खांसी हिचकी जम्हाई, तीनों रोग के भाई. खांसी ही नहीं, हिचकी और जम्हाई भी रोग के सूचक हो सकते हैं.
खांसी, काल की मासी. लम्बे समय चलने वाली खांसी किसी गंभीर रोग का सूचक हो सकती है.
खाइए मन भाता, पहनिए जग भाता. इंसान को खाना तो अपने मन का खाना चाहिए पर पहनना वह चाहिए जो दूसरों को उसके ऊपर अच्छा लगे. रूपान्तर – आप रुच भोजन, पर रुच सिंगार.
खाई दाल तबेले की, अक्कल होवे धेले की. तबेला माने घोड़ों के बाँधने का स्थान (अस्तबल). घोड़े को जब तबेला में रहने की आदत पड़ जाती है तो उस का दिमाग खराब हो जाता है. कहावत का अर्थ है कि सरकारी नौकरी लगते ही आदमी के दिमाग में सुरूर आ जाता है.
खाईं गकरियाँ गाये गीत, जे चले चैतुआ मीत. गकरियाँ – बाटी, चैतुआ – चैत की फसल काटने वाले मजदूर, जो फसल के दिनों में घरों से निकलते हैं, जहाँ तक काटने के लिए खड़ी फसल मिलती है आगे बढ़ते जाते हैं व कटाई का काम समाप्त हो जाने पर लौट जाते हैं. स्वार्थी अथवा निर्मोही व्यक्ति के लिए प्रयुक्त.
खाऊं कि न खाऊं तो न खाओ, जाऊं कि न जाऊं तो जरूर जाओ. जब मन में दुविधा हो कि इस समय खाना खाऊं या न खाऊं, तो उस समय नहीं खाना चाहिए. अगर यह दुविधा हो कि शौच जाऊं या न जाऊं तो चले जाना ज्यादा अच्छा है.
खाए कम और थूके ज्यादा. जो लोग काम कम करते हैं और शिकायतें ज्यादा करते हैं.
खाए के गाल और नहाए के बाल नहीं छिपते. जिस को भरपेट पौष्टिक आहार मिल रहा हो उस के गाल देख कर मालूम हो जाता है कि यह खाया पिया है. रिश्वत खाने वाले के लिए भी इस कहावत का प्रयोग कर सकते हैं. कहावत में तुक मिलाने के लिए नहाए हुए व्यक्ति के बाल भी नहीं छिपते यह भी जोड़ दिया गया है.
खाए खाए पहाड़ बिलात. बैठे-बैठे खाने से चाहे जितना धन क्यों न हो, एक न एक दिन खत्म हो जाता है.
खाए गोप, कुटे जयपाल. अपराध कोई और करे, सजा किसी और को मिले.
खाए तो भेड़िए का नाम न खाए तो भेड़िए का नाम. कोई भी गलत काम हो तो लोग उन्ही पर शक करते है जो बदनाम हैं (चाहे उन्होंने वह काम किया हो या न किया हो).
खाए पिये होओ तो बने रहो. अपने घर से खा-पी कर आये हो तो हमारे यहाँ आराम से रहो. जब घर आए किसी आदमी को खाने-पीने के लिए न पूछा जाय तब उसकी ओर से व्यंग्य में.
खाए बकरी की तरह, सूखे लकड़ी की तरह. जो लोग खाते खूब हैं पर फिर भी दुबले पतले हैं उन के लिए.
खाए मुँह पचाए पेट, बिगड़ी बहू लजाए जेठ. गलत काम कोई करे और उस को सुधारने की कोशिश दूसरे को करनी पड़े तो. स्वाद के चक्कर में मुँह अंट शंट चीजें खाता है और पेट को वह सब पचाना पड़ता है, बहू गलत काम करती है और लज्जित जेठ को होना पड़ता है.
खाए सिपाही नाम कप्तान का. अधीनस्थ कर्मचारी रिश्वत लेते हैं तो भी हाकिम की बदनामी होती है.
खाए हुए को खिलाना आसान. 1.भरे पेट पर आदमी कम खाएगा. 2.जिस को एक बार रिश्वत दे चुके हो उस को दुबारा रिश्वत खिलाना आसान है.
खाएं भीम हगें शकुनि. काम कोई और करे, फल किसी और को मिले.
खाएंगे तो चुपड़ी नहीं तो उपासे. अच्छा खाना खाएंगे, नहीं तो भूखे रहना मंजूर है.
खाएगा तो हगेगा भी. कर्म का फल अवश्य मिलेगा.
खाओ तो कद्दू से न खाओ तो कद्दू से. किसी को कद्दू पसंद नहीं है पर खाने के लिए केवल कद्दू की सब्जी ही है, मजबूरी में वही खानी पड़ रही है. पसंद की चीज़ न मिले और मजबूरी में दूसरी चीजों से काम चलाना पड़े तब यह कहावत कही जाती है.
खाओ दाल रोटी चटनी, कमाई कितनी भी हो अपनी. आमदनी अधिक हो तब भी सादगी से रहना चाहिए.
खाओ न पिओ, जुग जुग जिओ. घर आए मेहमान को खिलाना पिलाना कुछ नहीं. केवल झूठा आशीर्वाद देना.
खाओ पकौड़ी पेलो दंड. जीवन को बिंदास जीने का संदेश.
खाओ पीओ छको मत, चलो फिरो थको मत, बोलो चालो बको मत, देखो भालो तको मत. हर काम को समझदारी से और सीमा के अंदर करने का सुझाव.
खाओ पेट भर के और सोओ मुँह ढक के. सामान्य लोग जीवन का यही उद्देश्य मान कर चलते हैं.
खाओ यहाँ तो पानी पियो वहां. बहुत जल्दी जाओ.
खाक डाले चाँद नहीं छिपता. धूल फेंकने से चंद्रमा नहीं छिपता. महापुरुषों पर बेकार के लांछन लगाने से उनकी महानता कम नहीं होती.
खाक न खटाई, मुंडो फिरे इतराई. किसी स्त्री की शक्ल सूरत कुछ खास न हो पर वह अपने को बहुत सुंदर समझ कर घमंड करती हो तो यह कहावत कही जाती है. किसी के पास कुछ न हो फिर भी वह बहुत घमंड करे तो भी.
खाकर आवे आलस, नहा के होवे चौकस. खाना खा कर आलस आता है और नहाने के बाद स्फूर्ति.
खाकर हगे, कबहुं न अघे. कुछ लोगों की खाना खाते ही शौच जाने की आदत होती है. ऐसे लोगों का पेट कभी नहीं भरता. अघाना – तृप्त होना.
खाके जल्दी चलिए कोस, मरिए आप दैव के दोस. खाना खाके फ़ौरन लम्बी दूरी चलना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. ऐसा करने वाला अपनी गलती से मरता है और ईश्वर को दोष देता है. एक कोस – दो मील.
खाज चली जाय, खुजाने की आदत न जाय. खुजली की बीमारी खत्म भी हो जाए तब भी खुजाने की आदत नहीं जाती. किसी भी चीज की आदत पड़ जाए तो आसानी से नहीं जाती है.
खाज पर उँगली सीधी जावे. जहाँ खुजली हो रही होती है उँगली सीधे वहीँ जाती है. इस के लिए किसी को सिखाना नहीं पड़ता. यह बात आदमी ही नहीं जानवरों पर भी लागू होती है.
खाज से गंजी कुतिया, पूंछ में कंघी बांधे. जिस कुतिया के बाल खुजली के कारण गिर गए हैं वह पूंछ में कंघी बांधे घूम रही है. कोई व्यक्ति जिस शौक के लायक न हो उस तरह का शौक करे तो.
खाट खड़ी और बिस्तर गोल. किसी स्थान से कब्जा छोड़ने को मजबूर किया जाना. पहले जब चारपाई (खाट) का चलन था तो लोग चारपाई बिछा के उस पर बिस्तर बिछाया करते थे. चारपाई पर कब्ज़ा करने वाले आदमी को हटाने के लिए चारपाई खड़ी कर दी गई और बिस्तर को गोल कर दिया (लपेट दिया).
खाता जाए और खप्पर फोड़ता जाए. किसी चीज से अपना काम निकल जाने के बाद वह चीज किसी और के काम न आ जाए, ऐसी नीचता पूर्ण सोच रखने वाला.
खाता भी जाए और बड़बड़ाता भी जाए. जो लोग कभी खुश हो कर कोई काम नहीं करते, उन के लिए.
खाता भी रहे ललचाता भी रहे. खाने को मिल जाए तब भी लालच करने वाले व्यक्ति के लिए. वैसे यह मनुष्य का स्वभाव है कि कितना भी मिल जाए, उसका लालच कम नहीं होता.
खातिन ईंधन को क्यूँ जाए, तेलिन रूखा क्यूँ खाए. खातिन – बढ़ई की पत्नी. बढ़ई को लकड़ी के छोटे टुकड़े और छीलन सहज ही उपलब्ध होती हैं. इसी प्रकार तेली को पत्नी को तेल की कमी नहीं होती.
खाते खाते भंडार नष्ट हो जाते हैं. अन्न या धन का कितना भी बड़ा भंडार हो, यदि आप उसमें कुछ जोड़ें नहीं और खर्च करते रहें तो वे एक दिन ख़त्म हो जाता है.
खाते पीते जग मिले, औसर मिले न कोय. सुख के दिनों में सब आप से मिलते जुलते हैं पर विपत्ति के अवसर पर कोई नहीं मिलता.
खाते पीते न मरे, आलस से मर जाए. कोई व्यक्ति अधिक खाने से चाहे न मरे पर आलस्य से जरूर मर जाएगा. आलस्य बीमारियों की जड़ है.
खाद पड़े तो खेत, नहीं तो कूड़ा रेत. खाद से ही खेत फलता फूलता है.
खान तो खान, जुलाहा भी पठान. मुसलामानों में खान और पठान ऊंची जात के लोग माने जाते हैं और जुलाहा नीची जात का. कोई निम्न कोटि का व्यक्ति अपने को उच्च कोटि का दिखाने की कोशिश करे तो.
खान पान में आगे, काम काज से भागे. जो लोग खाने में आगे रहते हैं और काम के समय गायब हो जाते हैं.
खान से जान रहे. अच्छे भोजन से ही शरीर में जान आती है, भोजन से ही प्राण बचते हैं.
खानदान है कि शिव जी की बारात. शिव जी की बरात में भयंकर शक्लों वाले उन के भूत और गण गए थे. किसी खानदान के सभी लोग भयंकर शक्लों वाले हों तो.
खाना कुखाना उपासे भला, संगत कुसंगत अकेले भला. (भोजपुरी कहावत) कुपथ्य खाने से भूखा रहना अच्छा है और बुरी संगत से अकेला रहना अच्छा है.
खाना घर में, भौंकना सड़क पे (खाना मन्दिर में, भौंकना मस्जिद में). जो आजीविका दे रहा हो उसका काम न कर के दूसरे का काम करना.
खाना जाने सो पचाना भी जाने. जो रिश्वत खाना जानता है, वह उसे हजम करना भी जानता है.
खाना थाली का, परोसना साली का. जहाँ सब लोगों को पत्तल में खाना मिल रहा हो वहाँ थाली में खाना मिलना विशेष आवभगत का सूचक है (विशेषकर दामाद को ऐसी सुविधा मिलती है) और ऐसे में परोसने वाली साली हो तो सोने में सुहागा.
खाना पराया है पर पेट तो पराया नहीं है. मुफ्त का मिल रहा हो तो इस का अर्थ यह नहीं कि इतना खा लो कि बीमार हो जाओ.
खाना पीना भाईचार, लेखा जोखा खरा व्यौहार. रिश्तेदारी और दोस्ती में खाना पीना तो खुले हृदय से करना चाहिए, लेकिन पैसे व जायदाद आदि में लेखा जोखा दुरुस्त रखना चाहिए.
खाना सीरा को, मिलना वीरा को. खाना शीरे (हलवे) का सबसे उत्तम होता है और मिलना भाई का.
खाना, तिरिया, रुपैय्या, तीनों रखो छुपाए. जो खाना आप खाते हैं वह दूसरों को दिखा कर नहीं खाना चाहिए, इसी प्रकार अपने घर की स्त्रियों का और अपने पैसे का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए.
खाने को ऊँट (शेर), कमाने को बकरी (खाने को बाघ, कमाने को मुर्गी). अर्थ स्पष्ट है.
खाने को चटनी, पलंग पे नटनी. घर में ठीक से खाने को तो है नहीं लेकिन वैश्या वृत्ति का शौक सूझ रहा है.
खाने को दाम नहीं नाम करोड़ीमल. नाम कुछ असलियत कुछ.
खाने को निंबोली, बताने को दाख. दाख- द्राक्ष (किशमिश, अंगूर). कोई व्यक्ति अपने घर में खाता कुछ है बताता कुछ है तो उस पर व्यंग्य में कहा गया है कि खाते तो निंबोली हैं, और कहते हैं कि अंगूर खाता हूं.
खाने को भंग नहाने को गंग, चढ़न को तुरंग, ओढ़न को दुसाला. भंग – भाँग, तुरंग – घोड़ा, दुसाला – कीमती ऊनी वस्त्र जो जाड़ों में ओढ़ा जाता है. कहावत बाबा विश्वनाथ की पावन नगरी काशी के लिए कही गई है.
खाने को हम और लड़ने को हमारा भाई. स्वार्थी और अवसरवादी लोगों के लिए.
खाने में शरम क्या, और घूंसे में उधार क्या. खाने में शरम नहीं करनी चाहिए और मारपीट का बदला तुरंत चुकाना चाहिए.
ख़ामोशी नीम रज़ा. उर्दू में नीम का अर्थ है आधा और रज़ा का अर्थ है सहमति. यदि आप किसी बात का विरोध नहीं करते (विशेषकर अन्यायपूर्ण बात का) तो इसका अर्थ यह लगाया जाता है कि आप उससे सहमत हैं. इंग्लिश में कहावत है – Silence is half consent. संस्कृत में कहा गया है – मौन स्वीकृति लक्षणं.
खाय कै मूते सोवे बाऊँ, काय को वैद बसावे गाऊँ. स्वास्थ्य के विषय में लोक विश्वास – खाना खा कर तुरंत मूत्र त्याग करे और बायीं करवट सोए तो व्यक्ति स्वस्थ रहता है (फिर वह गाँव में वैद्य क्यों बसाएगा). कुछ ज्ञानी लोगों ने अन्य कहावतों द्वारा इस को और विस्तार दिया है – खा के सोवे चित्त, बैद बुलावे नित्त. खा के सोवे दहिने, बैद बुलावे तहिने. खा के सोवे पट्ट, बैद बुलावे झट्ट.
खाय को कठौती भर उठाने को सूप, सुपवे न उठे दीदी मो से. खाने को तो एक कठौता भरकर खा लेंगी और काम करने चलीं तो सूप जैसे हल्की चीज़ उठाई, उस पर भी नज़ाकत यह कि यह तो हमसे उठता ही नहीं.
खाय चना, रहे बना. चना खाने वाला लम्बे समय तक स्वस्थ रहता है.
खाय तो घी से, नहीं तो जाय जी से. दाल और रोटी में घी के बिना कोई स्वाद नहीं है. घी न मिले इस से तो अच्छा है कि जान चली जाए.
खाय न खरचे सूम धन, चोर सबै ले जाय. कंजूस आदमी खाने में व अन्य कार्यों में अपना धन खर्च नहीं करता. अंततः चोर सब धन ले जाता है. सूम – कंजूस.
खाय पिए रोवे, वो प्रभु को खोवे. जो लोग सब तरह से संपन्न हैं फिर भी रोते रहते हैं उनसे ईश्वर नाराज़ हो जाता है.
खाय पिये को रोसा बीबी, हल जोते को ताहिर. खिलाने पिलाने के लिये तो रोसा बीबी है और हल जोतने के लिये ताहिर. काम किसी और से लेना और लाभ किसी और को पहुँचाना.
खाय भी गुर्राय भी. नीच प्रवृत्ति के कृतघ्न लोगों के लिए कहा जाता है. उन हाकिमों के लिए भी जो रिश्वत लेते हैं फिर भी गुर्राते हैं.
खाय लो खाय लो, जब लौं धिया नहीं, पहन लो पहन लो, जब लौं बहू नहीं. धिया – बेटी, जब लौं – जब तक. जब तक लड़की नहीं है तभी तक खा पी लो और जब तक बहू नहीं तभी तक पहन लो. लड़की के होने के बाद उसके ब्याह की चिंता में पड़ जाओगी और बहू के आने के बाद अच्छे गहने कपड़े उस को देने पड़ेंगे.
खाया पिया अंग लगेगा, दान धर्म संग चलेगा, धन पड़ा-पड़ा जंग लगेगा. आदमी को अधिक धन संग्रह के लालच में नहीं पड़ना चाहिए. अच्छा खाओगे तो शरीर स्वस्थ होगा, दान करोगे तो पुन्य मिलेगा जो कि परलोक में साथ जाएगा. इकठ्ठा किया हुआ पैसा केवल जंग खाएगा.
खाया पिया साथ, हांड़ी मारा लात. काम निकल जाने पर किसी को तिरस्कृत करना. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – खाया भात, उड़ाया पात. खाना खा कर पत्ता फेंक दिया और चलते बने.
खाया पीया एक नाम, मारा पीटा एक नाम (जीमा जूठा एक नाम, मारा पीटा एक नाम). किसी के घर केवल मुँह जूठा किया या जम कर खाया, खाने का नाम तो हो ही गया. ऐसे ही किसी को एक थप्पड़ मारा या जम के ठुकाई की, मारने का नाम तो हो ही गया. इसलिए मौका मिले तो खूब खाओ और खूब पीटो.
खाये बिना रहा जाय, पर कहे बिना न रहा जाय. जिन लोगों की बहुत बोलने की आदत होती है उन पर व्यंग्य.
खारा कड़वा गंधला, जो बरसेला तोय, खेती की हानी हुवे, देस नास भी होय. अगर खारा, कड़वा या गंदा पानी बरसता है तो वह खेती को तो नुकसान करता ही है, देश के लिए भी यह अच्छा शगुन नहीं है. तोय – पानी.
खारे समन्दर में मीठा कुआं. बहुत से दुष्ट लोगों के बीच एक भला आदमी.
खाल उढ़ाए सिंह की, स्यार सिंह नहिं होए. अच्छे वस्त्र पहन लेने से या या दिखावा करने से कायर और मूर्ख पुरुष वीर या विद्वान नहीं बन सकते.
खाला खसम कराय दे, के मैं तो खुद हेरती फिरूं (खाला खसम करा दे, खाला खुद तलाश लें). खाला – मौसी., हेरती – ढूँढती. कोई लड़की मौसी से कह रही है कि मेरी शादी करा दो. मौसी कह रही हैं कि मैं तो खुद अपने लिए ढूँढ़ रही हूँ. जो स्वयं परेशानी में है वह दूसरे की सहायता क्या कर पाएगा.
खाली घर में चमगादड़ डेरा डाल लेते हैं. 1.खाली पड़ी जायदाद पर अनधिकृत लोग कब्ज़ा कर सकते है. 2.खाली दिमाग में तरह तरह के फितूर पैदा होते हैं.
खाली दिमाग शैतान का घर है (खाली बैठे अटपट सूझे). दिमाग अगर खाली होता है तो उसमें तरह-तरह के फितूर आते रहते हैं. इसलिए इंसान को कभी खाली नहीं बैठना चाहिए अगर आपके पास कोई धंधा पानी न हो तो कोई सामाजिक कार्य करें, भविष्य की योजना बनाएं, अच्छा साहित्य पढ़ें या किसी शौक में मन लगाएं. इंग्लिश में इस प्रकार कहा है – An idle brain is devil’s workshop. Idleness is mother of all evil.
खाली दिमाग से खाली जेब ज्यादा अच्छी. मूर्ख होने के मुकाबले निर्धन होना अच्छा है.
खाली बर्तन खटकते हैं. निठल्ले लोग बैठे बिठाए झगड़ा ही किया करते हैं.
खाली बोरा सीधा खडा नहीं हो सकता. बोरे में कुछ गेहूँ चावल आदि भरा होगा तभी वह सीधा खड़ा हो पाएगा. कहावत का अर्थ है कि भूखा व्यक्ति ईमानदारी से काम नहीं कर सकता या स्वाभिमान से नहीं जी सकता.
खाली लल्ला ही सीखा है दद्दा नहीं सीखा. लल्ला – ‘ल’, दद्दा – ‘द’. ल से लेना, द से देना. जो लोग केवल लेना जानते हैं, देना नहीं जानते. कुछ लोग यह और जोड़ते हैं – दद्दा के डर से दिल्ली को भी हस्तिनापुर बोले.
खाली हाथ आये, खाली हाथ जाना. संसार में न तो कोई कुछ लेकर आया और न कुछ लेकर जाएगा.
खाली हाथ मुंह की तरफ नहीं जाता है. हाथ में कोई खाने की चीज़ होगी तो वह अवचेतन रूप से ही मुँह में जाता है. हाथ खाली होगा तो नहीं जाएगा. प्रकृति सभी जीवों को यह सिखाती है.
खाविंद राज बुलंद राज, पूत राज दूत राज. पति के राज में स्त्री को जितना सुख मिलता है उतना पुत्र के राज में नहीं मिलता.
खावे के तीन बेर, ढोए के चलनी. खाने को दिन तीन बार चाहिए और वजन उठाने का काम आया तो चलनी जैसी हल्की चीज़ उठाएँगे. रूपान्तर – खाए में चट, उठावे में पट.
खावे को मलाई, बोले को म्याऊँ. खाने के लिए बढ़िया माल चाहिए काम के वक्त बहाने बनाना.
खावे जैसो अन्न, होवे तैसो मन्न. बेईमानी से पैदा किया हुआ अन्न खाओगे तो बुद्धि भ्रष्ट होगी और ईमानदारी की रोटी खाओगे तो मन निर्मल रहेगा.
खावे पान, टुकड़े को हैरान. घर में खाने को नहीं है और पान खाने जैसा फालतू शौक करने की सूझ रही है.
खावे पूत, लड़े भतीजा. खाना पीना खाने और जायदाद का सुख भोगने के लिए तो बेटा है और खतरे उठाने के लिए भतीजे को आगे करना चाहते हैं.
खावे पौना, जीवे दूना. कोई व्यक्ति जितना खा सकता है उससे पौना (तीन चौथाई) ही खाने की आदत डाल ले तो वह लंबे समय तक जियेगा.
खावे मोट, तोड़े कोट. मोटा अनाज खाने से अधिक ताकत आती है. तोड़े कोट – किला तोड़ सकता है.
खावें पीवें लड़का बिटियाँ, सत्त को डुकरियाँ. माल उड़ायें और मौज मनाएँ जवान लड़के लड़कियाँ, और व्रत-उपवास या कठिन कार्य के लिए बूढ़े आदमी. सत्त – धार्मिक कार्य, डुकरियाँ – बूढ़ी स्त्रियाँ.
खास खास को टोपली, बाकी को लंगोट. कुछ चुने हुए लोगों को टोपी दी गयी परन्तु शेष लोगों को लंगोट ही मिला. कुछ विशेष लोगों का तो सम्मान किया गया परन्तु शेष लोगों को जैसे-तैसे ही निपटा दिया गया.
खिचड़ी की तारीफ़ कर दी तो दांतों में चिपक गई. किसी की तारीफ़ करने से वह गले पड़ जाए तो.
खिचड़ी खाते नीक लागे और बटुली माजत पेट फटे. (भोजपुरी कहावत) खिचड़ी खाते समय अच्छी लगती है और बरतन धोते समय बहुत परेशानी होती है. सुविधाएँ सब चाहते हैं पर काम कोई नहीं करना चाहता.
खिचड़ी खाते पाहुंचा उतरा. बहुत नाज़ुक व्यक्ति का मज़ाक उड़ाने के लिए. पाहुंचा – कलाई.
खिचड़ी तेरे चार यार, घी, पापड़, दही, अचार. खिचड़ी खाने का असली मज़ा इन चार चीजों के साथ है.
खिदमत से अज़मत है. बड़ों की सेवा करके ही आप संपन्न बन सकते हैं. इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि चमचागिरी कर के ही रुतवा मिल सकता है. रूपान्तर – खुशामद से ही आमद है. अज़मत – शान (उर्दू)
खिन हँसिवौ खिन रूसिवौ, चित्त चपल थिर नाहि, ताका मीठा बोलना, भयकारी मनमाहि. जो क्षण में हँसे क्षण में रूठे उसके मीठे बोलने से भी डर लगता है. खिन – क्षण, रूसिवां – रूठना, थिर – स्थिर.
खिलाए का नाम नहीं, रूलाए का नाम. आप किसी के बच्चे को कितनी भी देर खिलाएं और बहलाएं उसका कोई श्रेय नहीं मिलता, अगर बच्चा रो दिया तो माँ कहेगी कि बच्चे को रुला दिया.
खिलाए के न पिलाए के, मांग टीका धाए के. पत्नी के खाने पीने की चिंता नहीं है, बार बार भाग कर यह देखने आ रहे हैं कि उसने श्रृंगार कैसा किया है.
खिसियाई कुतिया भुस में ब्याई, टुकड़ा दिया काटने आई. कोई व्यक्ति खिसिया रहा हो और जो उस की सहायता करना चाहे उसी को बुरा भला कह रहा हो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे. चूहा बिल्ली की पकड़ से निकल कर भाग गया तो बिल्ली खिसिया कर खम्बे को नोचने लगी. काम न होने पर कोई व्यक्ति खिसिया रहा हो तो यह कहावत बोलते हैं.
खीर खीचड़ी मंदी आंच. खीर और खिचड़ी मंदी आंच पर अच्छी बनती हैं.
खीर पूड़ी खाएं और देवता को मनाएं (घर वाले खीर खाएँ और देवता राजी हों). पहले के लोगों ने भगवान को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखने का विधान बनाया जिसमें व्यक्ति दिन भर भूखा रह कर केवल एक बार रूखा सूखा भोजन करता था (यह एहसास करने के लिए कि गरीब कितनी कठिनाई से जीवन बिताते हैं). आजकल के ढोंगी भक्त व्रत रखने का नाटक करते हैं जिसमे वे दिन भर भी कुछ न कुछ खाते पीते रहते हैं और शाम को खूब पकवान खाते हैं.
खीर में साझा, महेरी में न्यारे. महेरी – मट्ठे और अनाज से बनने वाला साधारण भोजन, न्यारे – अलग. स्वार्थी व्यक्ति बढ़िया चीजों में साझा मांगता है और घटिया चीजें अलग रखना चाहता है.
खीरा खाए ओस में सोवे, ताको वैद कहां तक रोवे. खीरे को लोग ठंडी तासीर वाला मानते थे. कोई आदमी खीरा खा कर ओस में सो जाए तो बीमार पड़ेगा ही, वैद्य इसमें क्या कर सकता है.
खीरा सिर तें काटिए, मलियत नमक बनाय, रहिमन करुए मुखन को, चहिअत इहै सजाय. खीरे का सर काट के नमक लगा कर मलते हैं जिस से उसकी कड़वाहट दूर हो जाए. जो लोग कड़वा बोलते हैं उनके साथ भी ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए.
खील बताशों का मेल. दो अच्छी चीजों का मेल.
खुजली तो खुजलाने से ही मिटती है. व्यक्तिगत आवश्यकताएं स्वयं अपने करने से ही पूरी होती हैं.
खुद करे तो खेती, नहीं तो बंजर हैती. खेती खुद करने से ही कामयाब होती है. दूसरों के ऊपर छोड़ देने से खेत बंजर हो जाता है.
खुद तो दान दे नहीं, देने में अड़ंगा लगाए. दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों के लिए.
खुद राह राह, दुम खेत खेत. खुद सड़क पर चल रहे हैं और पूँछ खेत में है. निहायत ही फूहड़ और बेतरतीब आदमी के लिए.
खुद ही नाचे खुद ही न्योछावर करे (बलैयां ले). अपने काम की प्रशंसा स्वयं करना.
खुदा का दिया कन्धों पर, पंचों का दिया सर पर. पंचों की आज्ञा ईश्वर की आज्ञा से बड़ी है.
खुदा का मारा हराम, अपना मारा हलाल. मांसाहारी लोग अपने आप से मरे हुए जानवर का मांस नहीं खाते. इंसान द्वारा मारे हुए जानवर का मांस ही खाते हैं.
खुदा किसी को लाठी ले कर नहीं मारता. ईश्वर किसी को दंड देता है तो लाठी ले कर नहीं मारता.
खुदा की खुदाई को कौन जाने. अकबर ने बीरबल के सामने ऐसा बोला तो बीरबल ने कहा, जहांपनाह मैं जानता हूँ. अकबर ने चिढ़ कर कहा, अच्छा! मुझे भी दिखाओ. बीरबल उसे यमुना के किनारे ले गए और यमुना की तरफ इशारा कर के बोले, हुजूर! यह खुदा ने खुदाई है या आप ने. सन्दर्भ कथा– एक दिन एक मियां नमाज पढ़ने के बाद कह रहा था कि या खुदा, तेरी खुदाई को कौन जानता है? वहीं एक जाट खड़ा था. उसने मियां से कहा कि मैं खुदा की खुदाई को जानता हूँ? मियां ने जाट की बात का प्रतिवाद किया तो दोनों में बहस हो गई. फैसला करवाने के लिए दोनों दिल्ली के बादशाह के दरबार में पहुँचे. जाट ने बादशाह से कहा कि हुजूर, मेरे साथ यमुना के किनारे चलें, वहीं मैं आपको ख़ुदा की खुदाई दिखलाऊगा. जब वे सब यमुना नदी के किनारे पर पहुँचे तो जाट ने नदी की ओर हाथ करके कहा कि यह खुदा की खुदाई है या इसे मियां के बाप- दादों ने. बादशाह को हँसी आ गई और उस ने जाट के हक में फैसला दे दिया.
खुदा की चोरी नहीं तो बंदे का क्या डर. यदि हम ईश्वर के आगे सच्चे हैं तो मनुष्य से क्यों डरें.
खुदा की बातें खुदा ही जाने. ईश्वर के मन में क्या है यह ईश्वर ही जान सकता है.
खुदा के घर में चोर का क्या काम. चोर बदमाश लुटेरे आसानी से नहीं मरते (उनकी जरूरत वहाँ भी नहीं है).
खुदा दो सींग दे तो भी सहे जाते हैं. ईश्वर कुछ भी दे उसे सहर्ष स्वीकार करना पड़ता है.
खुदा ने गंजे को नाख़ून नहीं दिए हैं. वरना वह अपनी खोपड़ी लहुलुहान कर लेता. सन्दर्भ कथा – वैसे तो इस कहावत का अर्थ स्पष्ट है लेकिन इसका एक बहुत आश्चर्यजनक पहलू भी है. एक बहुत बिरली बीमारी होती है Anonychiya जिसमें जन्म से नाखून नहीं होते. ऐसे ही एक बीमारी होती है Alopecia totalis जिसमें सर पर या सारे शरीर पर बाल नहीं होते. ये बीमारियाँ जेनेटिक गड़बड़ी के कारण एक साथ भी हो सकती हैं. इस तरह के किसी बच्चे को देख कर किसी सयाने व्यक्ति ने मजाक में कहा होगा कि देखो इस गंजे को खुदा ने नाखून भी नहीं दिए हैं नहीं तो वह खुजा खुजा के अपनी खोपड़ी लहुलुहान कर लेता. तभी से यह कहावत बनी होगी..
खुदा ने जवाब दे दिया है, बेहयाई से जीते हैं. कोई अत्यधिक वृद्ध व्यक्ति परिवार और समाज पर बोझ बना हुआ हो तो यह कहावत कही जाती है.
खुदा मेहरवान तो गधा पहलवान (किस्मत मेहरबान तो गधा पहलवान). कोई पढ़ाई में पीछे रहने वाला बंदा यदि सिफारिश के बल पर अच्छी नौकरी पा जाए तो उससे ज्यादा काबिल लोग कुढ़ कर यह कहावत बोलते हैं. इंग्लिश में कहावत है – God sends fortune to fools.
खुदा लड़ने की रात दे, बिछड़ने का दिन न दे. पति पत्नी, दोस्त या रिश्तेदार आपस में थोड़ा लड़ लेते हैं पर बिलकुल बिछड़ना नहीं चाहते.
खुदी और खुदाई में बैर है. जिसके अन्दर अहम् है ईश्वर उससे प्रसन्न नहीं होता.
खुर तातो, खर मातो. बैसाख में मौसम बदलने के साथ जैसे ही गधे के खुर गरम होते हैं वैसे ही उस पर मस्ती छाने लगती है. कोई मूर्ख व्यक्ति थोड़ी सुविधाएं पा कर खुश हो रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
खुरचन मथुरा की, और सब नक़ल. खुरचन एक दूध की मिठाई का नाम है जोकि मथुरा की सबसे बढ़िया होती है. किसी बढ़िया और असली चीज़ की तारीफ़ करने के लिए यह कहावत कहते हैं.
खुले घर में धाड़ नहीं, निर्जन गांव में राड़ नहीं. (राजस्थानी कहावत) धाड़ – डाका, राड़ – झगड़ा. अर्थ स्पष्ट है.
खुले मांस पर मक्खी तो बैठेगी ही. अपनी चीज़ की परवाह नहीं करोगे तो अवांछित तत्व उस का फायदा उठाएंगे..
खुशामद किसे कड़वी लगती है. खुशामद और तारीफ़ सब को अच्छी लगती है. अगर आप यह जानते हैं कि सामने वाला अपने स्वार्थ के लिए आपकी खुशामद कर रहा है तब भी आप यह सोच कर खुश होते हैं कि हम इस लायक हैं तभी तो हमारी खुशामद की जा रही है. राजस्थानी कहावत है – खुसामद किसे खारी लागै.
खुशामद खरा रोजगार. खुशामद सबसे सच्चा व्यापार और सफलता का मन्त्र है.
खुशामद से ही आमद है, इसलिए बड़ी खुशामद है. खुशामद से सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं, इसीलिए खुशामद सबसे बड़ी चीज है.
खुशामदी का मुँह काला. जो व्यक्ति अयोग्य होते हुए भी दूसरों की खुशामद कर के आगे बढ़ जाता है, उसे कभी न कभी नीचा देखना पड़ता है.
खुस भई भिखना, दामाद लाया गाजर. गरीब आदमी बहुत छोटी सी भेंट से ही प्रसन्न हो जाता है.
खुसरो दरिया प्रेम का उल्टी बाकी धार, जो उतरा सो डूब गया जो डूबा सो पार. प्रेम की गति अजीब होती है. (अमीर खुसरो ने हिंदी में बहुत सी लोकप्रिय पहेलियाँ लिखी हैं और कुछ कहावतें भी बनाई हैं, उनमें से एक).
खुसामद से खुदा भी राजी. खुशामद से सबको अपने अनुकूल बनाया जा सकता है, भगवान को भी.
खूंटी हार लील गई. भाग्य साथ न दे तो बना बनाया काम बिगड़ जाता है. सन्दर्भ कथा – राजा विक्रमादित्य पर शनि की साढ़ेसाती लगी तो उन्हें अपना राज्य छोड़ना पड़ा. किसी मित्र के घर पर ठहरे थे तो वहाँ उन्होंने देखा कि आधी रात के समय एक खूँटी ने उस पर हीरों का हार निगल लिया. राजा पर उसकी चोरी का इल्जाम लगाया गया. आगे भी बहुत कुछ घटनाएं हुईं. साढ़ेसाती का समय पूरा होने पर सारे इल्जाम खत्म होते गए और खूँटी ने भी हार वापस उगल दिया.
खूंटे के बल बछड़ा कूदे (नाचे). कमजोर आदमी दूसरे की शह पर ही बोलता है.
खूंटे बंधा बछड़ा गाय की राह देखे. आदमी अपने कार्य के लिए जिस पर निर्भर होता है उसी की राह देखता है.
खून सर चढ़ कर बोलता है. (खून वह जो सर चढ़ कर बोले). 1. किसी का खून किया गया हो तो सबूत अपने आप बोलते हैं. 2. खून के रिश्ते सर चढ़ के बोलते हैं.
खूब कीचड़ उछालो, दाग तो लगेगा ही. किसी के ऊपर बिना किसी सबूत के भी अगर खूब कीचड़ उछालोगे तो कुछ न कुछ दाग तो लगेगा ही. जैसे आजकल बेईमान नेता ईमानदार नेताओं पर खूब कीचड़ उछाल कर जनता को भ्रमित करने में सफल हो जाते हैं. इंग्लिश में कहते हैं – Fling dirt enough and some will stick.
खूब गुजरेगी जब मिल बैठेंगे दीवाने दो. दो दोस्त मिल कर बैठते हैं तो खूब मस्ती होती है.
खूब दुनिया को आजमा देखा, जिसको देखा तो बेवफा देखा. निष्कपट प्रेम बहुत कम लोगों में मिलता है.
खूबसूरती गहनों की मोहताज नहीं. जो वास्तव में सुन्दर है उसको सुन्दर दिखने के लिए आभूषणों की आवश्यकता नहीं होती.
खेत को खोवे गेली, साधु को खोवे चेली. गेली – खेत में से हो कर जाने वाला रास्ता. खेत अगर छोटा हो और उस में से भी रास्ता निकाल दिया जाए तो खेत में बचेगा ही क्या. लोग फसल में छेड़छाड़ करेंगे सो अलग. इस कहावत में यह बात भी जोड़ दी गई है कि चेली के मोह में पड़ जाने से साधु की साख धूमिल हो जाती है.
खेत खाय गदहा, मार खाय जुलहा. गधा यदि किसी का खेत चरे तो उस को पालने वाले जुलाहे को मार पड़ती है. जब अपने से सम्बन्धित किसी व्यक्ति की गलती का दंड किसी को भुगतना पड़े तो.
खेत खाय पड़िया, भैंस का मुँह झकझोरा जाय. बच्चों की गलती की सजा उन के माँ बाप को भुगतनी पडती है.
खेत न जोते राड़ी, ना रखे मरद की छाँड़ी, न भैंस बिसाहे पाड़ी, ना बिपदा लेवे आड़ी. राड़ी – ऊसर, बिसाहे – खरीदे. ऊसर खेत नहीं जोतना चाहिए, दूसरे पुरुष की छोड़ी हुई स्त्री नहीं रखनी चाहिए, बिना गाभिन हुई भैंस नहीं खरीदनी चाहिए, और जान-बूझ कर कोई विपत्ति मोल नहीं लेनी चाहिए.
खेत बड़ा घर सांकड़ा. खेत तो जितना बड़ा हो उतना अच्छा, लेकिन घर छोटा ही अच्छा होता है.
खेत बिगाड़े खरतुआ और सभा बिगाड़े दूत. दूत से अर्थ यहाँ चुगलखोर है. खरतुआ – खरपतवार जो खेत में अपने आप उगती है. झूठी चुगली करने वाले लोग किसी भी संस्था को बिगाड़ सकते है.
खेत बिगाड़े सौभना, गांव बिगाड़े बामना. सौभना – बन ठन के घूमने वाला. इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति अपने कपड़ों पर ज्यादा ध्यान देता है वह व्यक्ति खेत को बिगाड़ देता है. कहावत की दूसरी उक्ति है कि ब्राह्मण गांव को बिगाड़ता है. यह उक्ति ब्राहमण वर्ग के लिए न हो कर केवल लालची पंडितों को लक्ष्य कर के कही गई है.
खेत भला न झील का, घर अच्छा नहिं सील का. झील के किनारे का खेत अच्छा नहीं होता क्योंकि झील में पानी बढ़ने से उसके डूबने का डर रहता है. जिस घर में सीलन हो वह घर भी अच्छा नहीं होता.
खेत में तरकारी को बघार नहीं लगता. हर कार्य के लिए अलग अलग स्थान उपयुक्त होते हैं.
खेत में बुरी नाली और घर में बुरी साली. खेत में नाली का होना नुकसान की बात है और घर में साली का स्थायी रूप से रहना अच्छा नहीं है.
खेत रखे बाड़ को, बाड़ रखे खेत को. ये दोनों एक दूसरे की रक्षा करते हैं व एक दूसरे के पूरक हैं.
खेतिहर गये घर, दाएँ बाएँ हर. हर – हल. खेत का मालिक घर गया तो मजदूर हल छोड़ कर दाएँ बाएँ हो गए.
खेती उत्तम काज है, इहि सम और न कोय, खाबै को सब को मिले, खेती कीजे सोय. (बुन्देलखंडी कहावत) खेती सबसे अच्छा काम है जिससे अपना निर्वाह तो होता ही है, दूसरे प्राणियों को भी खाने को मिलता है.
खेती कर आलस करे, भीख मांग सुस्ताय, सत्यानास की क्या कहें, अठ्यानास हो जाए. खेती करने वाला आलस करे और भीख मांगने वाला सुस्ताने बैठ जाए तो इन का सत्यानाश से भी बड़ा नुकसान अठ्यानास होना तय है.
खेती कर कर हम मरे, बहुरे के कोठे भरे. किसान प्राण पण से खेती करता है और बदहाल रहता है. साहूकार और व्यापारी अपना घर भरते हैं.
खेती करे अधिया, बैल मरे न बधिया. अधिया – बटाई की खेती. ज़मीदार लोग किसान को जमीन खेती के लिए दे देते थे. जब अनाज निकलता था तो उसे ज़मीन का मालिक आधा बाँट लेता था. ऐसी खेती में मालिक को अपना बीज, खाद, बैल कुछ भी नहीं लगाना पड़ता इसलिए नुकसान की कोई संभावना नहीं होती.
खेती करे ऊख कपास, घर करे बोहरिया पास. खेती ऊख और कपास की करना चाहिए और घर साहूकार के पास बनाना चाहिए ताकि वह समय पर काम आ सके.
खेती करे न बनिजे जाय, विद्या के बल बैठा खाय. बनिज (वणिज) – व्यापार. विद्वान व्यक्ति खेती या व्यापार करे बिना अपने ज्ञान के बल पर पैसा कमाता है.
खेती करे सांझ घर सोवे, काटे चोर हाथ धरि रोवे. खेती करने वाले को खेत की रखवाली करनी पड़ती है. अगर नहीं करेगा तो चोर फसल काट के ले जाएंगे. कहावत का अर्थ सभी व्यापारों पर लागू होता है.
खेती करै बनिज को धावै, ऐसा डूबै थाह न पावै. बनिज – वाणिज्य, व्यापार. खेती करने वाला व्यापार में भी हाथ पैर फैलाता है तो बहुत परेशानी में पड़ सकता है.
खेती खसम सेती. खसम – स्वामी. खेती या व्यापार में लाभ तभी होता है जब मालिक स्वयं उसकी देखरेख करे.
खेती तो उनकी जो अपने कर हल हांकें, उनकी खेती कुछ नहीं जो सांझ सवेरे झांकें. जो किसान अपने हाथ से खेती करते हैं उन्हीं की खेती सफल होती है, जो सुबह शाम चक्कर लगा आएं उनकी खेती सफल नहीं होती.
खेती तो थोरी करे, मेहनत करे सिवाय, राम चहें बा मनुस को टोटो कबहुं न आए. (बुन्देलखंडी कहावत) खेती यदि थोड़ी भी हो तो भी मेहनत करने वाले व्यक्ति को धन की कमी नहीं होती.
खेती धन की नास, जो धनी न होवे पास, खेती धन की आस, धनी जो होवे पास. खेती करने वाले का वहीं रह कर खेती करना आवश्यक है. धनी से अर्थ यहाँ खेत के स्वामी से है.
खेती धन के नास, जब खेले गोसइयां तास. जब किसान ताश खेलता रहता है तो उसकी खेती स्वाभाविक रुप से नष्ट हो जाती है. गोसाईं – गोस्वामी, मालिक.
खेती न बारी हाकिम लगान मांगे. खेती बाड़ी कुछ नहीं हुई है और हाकिम लगान मांग रहा है. किसान का जीवन कितनी मुश्किलों से भरा है यह केवल किसान ही समझ सकता है.
खेती पितियावत न माने. पितिया – चचेरा (पितृव्य का अपभ्रंश). खेती चचेरे भाई जैसा व्यवहार नहीं मानती. उसकी सेवा तो सगे संबंधी के समान करनी होती है.
खेती बिनती पत्री और खुजावन खाज, घोड़ा आप संवारिये जो प्रिय चाहो राज. (बुन्देलखंडी कहावत) कुछ कार्य ऐसे हैं जो अपने हाथ से करने पर ही सफल होते हैं – खेती, अर्जी, चिट्ठी, खुजली और घोड़े की देखभाल.
खेती रहिके परदेस मां खाय, तेखर जनम अकारथ जाय. इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति अपने पास खेत होते हुए भी पैसों के लिए परदेश जाता है उसका जन्म ही निरर्थक है.
खेती राज रजाए, खेती भीख मंगाए. फसल अच्छी हो जाए तो किसान राजा हो जाता है, चौपट हो जाए तो भीख मांगने की नौबत आ जाती है. रूपान्तर – बनिज राज रजाए, बनिज भीख मंगाए. बनिज – वाणिज्य, व्यापार.
खेती वह जो खड़े रखावे, सूनी खेती हिरना खावे. खेती असली माने में वही है जिसे वहीं उपस्थित रह कर देखा जाए. वरना खड़े खेत को जानवर खा डालते हैं.
खेती हो चुकी, हल खूँटी ऊपर. काम ख़त्म हो गया अब औजार उठा कर रख दो.
खेती होए मरदे से औ बरधे से. खेती का काम मर्द और बैल मिल कर ही कर सकते हैं.
खेती, पाती, बीनती, परमेसर को जाप, पर हाथां नहिं कीजिये, करिए आपहिं आप. खेती करना, किसी को चिट्ठी लिखना, अर्जी लिखना और ईश्वर की भक्ति अपने आप ही करना चाहिए.
खेती, पानी, बीनती (अर्ज़ी) औ घोड़े की तंग, अपने हाथ संभारिये लाख लोग हों संग. खेती के सारे काम, खेत में पानी देना, अर्जी लिखना और घोड़े की रास संभालना ये सारे काम अपने हाथ से ही करने चाहिए. रूपान्तर – पाती खेती पूत मवेसी औ घोड़े की तंग, अपने हाथ संभारिये लाख लोग हों संग.
खेती, बेटी, गाभिन गाय, जो ना देखे उसकी जाय. खेती, बेटी और गाभिन गाय की देख-रेख करनी पड़ती है. यानि अगर आप इन तीनों पर नजर नहीं रखेंगे तो ये हाथ से निकल जाएंगी.
खेल खतम, पैसा हजम. खेल तमाशा देखने के लिए पैसा खर्च होता है. खेल ख़त्म होने के बाद जो पैसा आपने खर्च किया वह हज़म हो गया. पैसा खर्च करके आनंद उठाने के लिए यह कहावत बोलते हैं.
खेल खिलाड़ी का, पैसा मदारी का. काम कर्मचारी करते हैं और कमाई मालिक की होती है.
खेल खेला बंगा में और कसम खाई गंगा में. बंगा – कपास. कपास के खेत में कुकर्म किया और गंगा में नहा कर शुद्ध आचरण की कसम खाई. लम्पट और झूठे व्यक्ति के लिए.
खेल न जाने मुर्गी का, उड़ाने चले बाज. थोड़ी सी भी जानकारी हुए बिना बड़ा काम करने का प्रयास.
खेल में काहे के लालाजी. बहुत से स्थानों में दामाद और देवर को लाला कहते हैं. खेल में छोटे-बड़े सब बराबर हैं. सूरदास जी ने भी लिखा है – खेलत में को काको गुसैंया, हरि हारे जीते श्रीदामा, बरबस ही कत करत रिसैंया.
खेल में रोवे सो कौवा. जो बच्चा खेल खेल में खिसिया के रोने लगे उसे चिढ़ाने के लिए.
खेलनी के खेल कुछ कहे न जाए, बार बार खेलनी पानी भरन जाए. मनचली स्त्री पानी भरने के बहाने बार बार घर से बाहर निकलती है.
खेले कूदे होए खराब, पढ़े लिखे होए नबाव. (खेलोगे कूदोगे तो होगे खराब, पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नबाब). वैसे तो कहावत का अर्थ स्पष्ट है लेकिन यहाँ खेल से मतलब व्यर्थ के घटिया खेलों से है जो समय नष्ट करते हैं (जैसे गुल्ली डंडा, पतंगबाजी आदि). जो अच्छे प्रतिस्पर्धात्मक खेल हैं उन्हें खेलने से व्यक्तित्व का विकास होता है और उन में कैरियर भी बनाया जा सकता है.
खेले खाय तो कहाँ पिराए. यहाँ खेल से तात्पर्य अच्छे व्यायाम वाले खेलों से है और खाय का अर्थ पौष्टिक भोजन खाने से है. व्यायाम और पौष्टिक भोजन करने वाले का शरीर कहीं से नहीं दुखता. पिराए – दर्द करे.
खेले न खेलन देय, खेल में मूत देय. दुष्ट प्रवृत्ति और खिसियाने वाले लोगों के लिए.
खैनी खाय न बीड़ी पिए, ऐसो मानुस कैसे जिए. तम्बाखू का सेवन करने वाले अपने को हमेशा सही ठहराते हैं. शराब पीने वाले भी ऐसा कहते पाए जाते हैं – पिएगा नहीं तो जिएगा कैसे.
खैर का खूँटा. खैर की लकड़ी बहुत मजबूत होती है. इसमें दीमक या कीड़ा नहीं लगता. किसी दृढ़ निश्चयी व्यक्ति के लिए यह कहावत प्रयोग करते हैं.
खैर, खून, खांसी, खुसी, बैर, प्रीत, मदपान; रहिमन दाबे न दबें, जानत सकल जहान. कत्थे का दाग, बहता हुआ खून, खांसी, खुशी, वैर, प्रेम और शराब का नशा, ये दबाने से नहीं दबते (छिपाने से नहीं छिपते), सारा संसार इन्हें देख लेता है (जान जाता है).
खैरात के टुकड़े बाजार में डकार. दूसरों से दान लेकर दिखावा करना.
खोखला शंख पराई फूंक से ही बजता है. शंख क्योंकि खोखला होता है इसलिए अपने आप नहीं बोल सकता. दूसरे की फूंक से ही बोलता है. पुरुषत्व विहीन लोग अपने आप कुछ नहीं करते दूसरों के बल पर ही बोलते हैं.
खोखले अंडे की पैदाइश. तुच्छ व्यक्ति.
खोखले में तो उल्लू ही पैदा होते हैं. मूर्ख लोगों को अपनी जमात बढ़ाने के लिए समाज से अलग जगह चाहिए होती है.
खोटा खरा तो भी गाँठ का, भला बुरा तो भी पेट का. गाँठ का पैसा चाहे खोटा हो या खरा, अपने को प्रिय होता है. पेट का जाया चाहे सज्जन हो या दुर्जन, माँ को प्रिय होता है.
खोटा खाओ और खरा कमाओ. खाना कितना भी रूखा सूखा मिले, कमाई ईमानदारी से ही करनी चाहिए.
खोटा नारियल होली के लिए या पूजा के लिए. खोटे नारियल को लोग होली में जलने वाली वस्तुओं में डाल देते हैं या पूजा में चढ़ा देते हैं.
खोटा बेटा खोटा दाम, बखत पड़े पे आवे काम (खोटा बेटा और खोटा पैसा भी समय पर काम आता है). जिस जमाने में सिक्कों की बहुत कीमत हुआ करती थी तब लोग नकली सिक्के बना लिया करते थे (जैसे आजकल जाली नोट बना लेते हैं). बहुत मुसीबत के समय कभी कभी खोटा सिक्का भी धोखे से चल जाया करता था. इसी प्रकार नालायक बेटा भी मुसीबत में काम आ सकता है.
खोटी बात में हुंकारा भी पाप. कोई अन्यायपूर्ण बात कर रहा हो तो उस की हाँ में हाँ मिलाना भी पाप है.
खोटी संगत के फल भी खोटे. बुरे लोगों की संगत के बुरे परिणाम होते हैं.
खोटे की बुराई श्मशान में. दुष्ट व्यक्ति जब तक जीवित होता है तब तक किसी की उस को बुरा कहने की हिम्मत नहीं होती. उस के मरने के बाद लोग उसे खुले आम बुरा कहते हैं.
खोटे खाते में गवाही कौन दे. धोखाधड़ी वाले काम में गवाही देने के चक्कर में कभी नहीं पड़ना चाहिए.
खोटे खाते में मरे हुए की गवाही. बिलकुल फर्जी काम.
खोतों के सींग थोड़े ही होते हैं (वो ऐसे ही पहचाने जाते हैं). अगर कोई व्यक्ति समझदार लोगों के बीच बैठा बेवकूफी की हरकतें कर रहा हो तो यह कहावत कही जाती है. खोता माने होता है गधा. कहावत का अर्थ है कि गधों के सिर पर सींग नहीं होते. वे अपनी हरकतों से ही आदमियों के बीच अलग से पहचान लिए जाते हैं.
खोदा पहाड़ निकली चुहिया. बहुत अधिक श्रम करने के बाद बहुत कम लाभ होना या लाभ न होना. कुछ लोग इस प्रकार से भी कहते हैं – खोदा पहाड़ निकली चुहिया, वह भी मरी हुई. सन्दर्भ कथा – एक छोटे से पहाड़ पर बनी एक गुफा में कुछ चोर अपना चोरी का माल छुपाते थे. एक दिन सारे चोर डाका डालने गए थे और एक चोर वहीं रहकर रखवाली कर रहा था. शाम के समय उस चोर को गुफा में छन-छन की आवाज़ सुनाई दी. उसे शक़ हुआ कि कोई चुपचाप गुफा में घुस आया है. जैसे ही उस के बाक़ी साथी चोर आए उसने सबको ये बात बताई, लेकिन उसकी बात सुनकर सबने उसका मज़ाक़ उड़ाया. अगले दिन पहरेदारी के लिए एक दूसरे चोर को गुफा में छोड़ा गया. शाम गहराते ही उसे भी वैसी ही आवाज़ सुनाई देने लगी. उसे लगा कि गुफा में कोई भूत प्रेत का साया है. चोरों के सरदार ने कहा कि एक ज़माने में लोग अपना धन सुरक्षित रखने के लिए ज़मीन के नीचे गाड़ दिया करते थे और धन अपनी जगह अपने आप जगह बदलता रहता था. ऐसा करते हैं इस पहाड़ की खुदाई करते हैं. चोरों ने मिलकर उस पहाड़ को खोदना शुरु कर दिया. कई घंटे गुज़र गए तभी किसी को एक छोटी सी चुहिया इधर-उधर फ़ुदकती हुई दिखी जिसके पैर में एक छोटा सा घुंघरु अटक रहा था. उनमें से एक चोर गुस्से में बोला – खोदा पहाड़ निकली चुहिया.
खोदे चूहा और सोवे सांप. चूहा बड़े परिश्रम से बिल खोदता है और सांप उस पर कब्जा कर लेता है. प्राचीन भारत के लोगों ने अत्यंत समृद्ध देश बनाया और दुष्ट बर्बर आक्रान्ताओं ने उस पर कब्जा कर लिया.
खोया ऊँट घड़े में ढूंढे. आदमी बदहवासी में ऊँट को घड़े में ढूँढने जैसा मूर्खता पूर्ण कार्य भी करता है.
खोवें आदर मान को दगा लोभ और भीख. धोखा करना, मन में लोभ रखना और किसी से भीख माँगना, ये तीनों बातें व्यक्ति के सम्मान को ख़त्म कर देती हैं.