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कालिया मर्दन

कालिया नाग के ऊपर नृत्य करते बालक कृष्ण

गोकुल में स्पष्ट परिवर्तन आया था। कुछ काल पहले तक उदास दिखने वाले मुखों पर अब उमंग और उत्साह दिखाई देते थे। बालक अब सर्वत्र किलकारियाँ करते, आनंद पूर्वक मायें चराते और भांति भांति की क्रीड़ाएं करते थे। वृक्ष हरे-भरे हो गए थे और पशु भी प्रसन्न हो कर अठखेलियाँ करते प्रतीत होते थे। इस परिवर्तन को लाने वाला और कोई नहीं एक छोटा सा बालक था, नन्द का पुत्र कृष्ण। नटखट, सुन्दर, सांवला, सलोना सब का प्यारा कृष्ण। उस के मुख पर एक अलौकिक मुस्कान थी जो निराशा को घो डालती थी। उस का हर कार्य आशा और आनन्द को जन्म देने वाला होता था। जिधर यह चलता था सभी उस ओर सम्मोहित से हो कर चल पड़ते थे और जैसा वह कहता था, बिना भला बुरा विचारे वैसा ही करने को तत्पर हो जाते थे।

यह समय बहुत ही बुरा था। दुष्ट कंस के राज्य में न्याय, सत्य और धर्म के लिए कोई स्थान न था। यथा राजा तथा प्रजा की कहावत को चरितार्थ करते हुए कंस के चाटुकार सेवक भी असहाय जनता पर मनमाने अत्याचार करते थे। अवैध व्यापारी एवं दस्यु प्रवृत्ति के लोग राजनैतिक संरक्षण में खूब फल फूल रहे थे। इन्हीं में से एक था कालिया। वह कुछ वनस्पतियों व रसायनों के संयोग से विशेष प्रकार के मादक द्रव्य बनाया करता था जिनके सेवन से मनुष्य को उन्माद हो जाता था। यह उन्माद सुरापान से भिन्न होता था।

प्रारंभ में कुछ मनचले युवक केवल जिज्ञासा वश ऐसे पदार्थों का सेवन कर लिया करते थे। शीघ्र ही उन्हें इन मादक पदार्थों की लत हो जाती थी और इन के न मिलने पर शरीर में भयंकर छटपटाहट होती थी। ऐसी स्थिति में वे अधिक से अधिक मूल्य दे कर भी उन मादक पदार्थों को खरीदने पर विवश हो जाते थे। धन का अभाव होने पर वे इन मादक पदार्थों की प्राप्ति के लिए घोर असामाजिक कार्य और अपराध तक करने को तत्पर हो जाते थे। एक बार मादक द्रव्यों के जाल में फँस जाने वाले का सर्वनाश निश्चित होता था। इस अनैतिक व्यापार से होने वाली आय का एक बड़ा भाग सत्ता के शीर्ष लोगों तक पहुँचता था। इसके अतिरिक्त कालिया की इन मादक बूटियों की मदद से कंस ने बहुत से शक्तिशाली राक्षसों को वश में कर रखा था। इस कारण से भी कालिया कंस का विशेष कृपा पात्र था।

गोकुल के समीप यमुना का पाट बहुत विस्तृत था। नदी के पार के भूभाग पर कालिया ने अपना महल और रसायन शाला बनाए थे। उन से निकलने वाले विषैले रसायनों के कारण यहाँ का जल बहुत विषैला हो गया था। उस प्रदूषित जल को पी कर बहुत से मनुष्य और पशु काल का ग्रास बन चुके थे। गोकुल वासी घृणा वश कालिया को कालिया नाग और यमुना के उस भाग को काली दह कहते थे।

अपराधियों, असामाजिक तत्वों, भ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारियों व न्यायपालिका का यह अपवित्र गठबंधन मथुरा के ग्रामीण अंचलों में रहने वाले सरल हृदय और भीरु प्रकृति के लोगों को विभिन्न प्रकार से उत्पीड़ित करता था। लेकिन उन ग्वाल बालों में किसी भी प्रकार का प्रतिकार करने का साहस नहीं था।

कृष्ण अल्पायु से ही यह सब देख रहे थे। उन्होंने व्यथित और निराश होना नहीं सीखा था। वह समझते थे कि संगठित हुए बिना वह संघर्ष नहीं कर सकते। लेकिन इन भीरु प्रकृति के लोगों को संगठन के लिये प्रेरित करना कोई आसान कार्य न था। किसी भी समाज में अधिकाँश लोग सामाजिक सरोकारों के प्रति उदासीन होते हैं। सभी यह चाहते है कि अत्याचार का विरोध तो हो लेकिन उसके लिए अन्य लोग आगे बढ़ कर संघर्ष करें, न तो उनके स्वयं के ऊपर कोई संकट आए और न ही उनको मिलने वाली सुविधाओं में कोई कमी आए।

बहुत विचार कर के कृष्ण ने खेल खेल में उन्हें संगठित करने की विधि निकाली। उन्होनें दैनिक खेल कूद का आयोजन करना आरम्भ किया। विशेष कर कृष्ण का ध्यान उन खेलों पर था जिन से व्यक्ति जुझारू बन सके, जैसे रस्साकसी, कबड्डी, मल्लयुद्ध दंड युद्ध, कशा (चाबुक) युद्ध इत्यादि। खेल के पश्चात सब ग्वाल बाल घेरा बना कर बैठते और तब कृष्ण का बातों का पिटारा खुलता। राम व लक्ष्मण द्वारा बाल्यकाल में ही ताड़का एवं सुबाहु जैसे दुर्दांत आतंकी राक्षसों का वध और फिर वनवासी जनजातियों का संगठन कर के रावण का संहार, परशुराम द्वारा सहस्त्र बाहु का वध, देवताओं द्वारा दानवों से सतत संघर्ष एवं बार बार हार का मुँह देखने के बाद अंत में विजय प्राप्त करना जैसी कथाएँ सुनाने के बाद कृष्ण उन्हें वर्तमान में ले आते। वे उन्हें उस समय व्याप्त समस्याओं से अवगत कराते और निराशा को त्याग कर संघर्ष करने की प्रेरणा देते।

कृष्ण की चपलता और शारीरिक क्षमता अद्भुत थीं। उन्होंने मल्लयुद्ध के नए-नए दाँव विकसित किए थे। ग्रामीणों के लिए सहज व सुलभ दंड (लाठी), कशा (चाबुक) और गुलेल जैसे छोटे छोटे अस्त्रों के प्रयोग में उन्होंने अत्यधिक सिद्धहस्तता प्राप्त की थी। बलराम जी कृषि में काम आने वाले हल को मारक शस्त्र के रूप में प्रयोग करते थे। इन अस्त्रों के प्रयोग में उन्होंने शनैः शनैः अन्य बालकों को भी पारंगत बनाया। कंदुक (गेंद) का खेल भी बालकों को अत्यधिक प्रिय था। वे एक दूसरे के शरीर को लक्ष्य बना कर वेग से कंदुक फेंकते थे और वार को बचाते थे। कहने को ये सभी खेल बड़े सरल और सरस थे पर इस खेल खेल में ही बालकों की शारीरिक दृढ़ता और प्रहार क्षमता बढ़ने लगी।

कुछ माह में ही कृष्ण के प्रयास रंग लाने लगे। संगठित होते बालकों में अब उत्साह जागृत होने लगा। पहले जो बालक कहीं भी तनिक झगड़ा होते देख कर घरों में जा छिपते थे, वही बालक अब शौर्य पूर्वक अन्याय का प्रतिकार करने लगे। एक ही आवाज पर सैकड़ों बालक दंड (लाठी) एवं कशा (चाबुक) इत्यादि ले कर एकत्र हो जाते थे। शोषण करने वाले अधिकारी एवं दस्यु प्रवृत्ति के लोग अब इस संगठित जनशक्ति से भय खाने लगे थे।

गोकुल से गोप बालाएँ दधि माखन इत्यादि को बेचने के लिए मथुरा ले जाती थीं। मथुरा के व्यापारी बहुत कम मूल्य दे कर इस सब को हथिया लेते थे और स्वयं बहुत अधिक मूल्य में विक्रय कर के अनुचित लाभ कमाते थे। कंस के सैनिक और प्रशासनिक अधिकारी भी सुविधा शुल्क के नाम पर इस में से बड़ा भाग हड़प लेते थे। कृष्ण ने सब को समझाया कि इस दधि माखन को खा कर कंस के अत्याचारी सैनिक और बलिष्ठ हो जाएँगे। इस की आवश्यकता तो यहाँ के ग्वाल बालों को है। कृष्ण के नेतृत्व में ग्वाल बालों की टोली घरों से दधि माखन चुरा कर खाने लगी। इन टोलियों ने गोकुल से बाहर जाने वाली युवतियों को रोकना आरम्भ किया। कुछ की मटकियाँ तोड़ी गई। अंततः गोकुल से दधि माखन बाहर जाना बंद हो गया। नियमित रूप से गोरस मिलने से कुपोषण से ग्रस्त बालक धीमे धीमे बलिष्ठ होते दिखाई देने लगे।

कालिया तो कंस का विशेष कृपापात्र था ही, उस काल में कंस के पाले हुए अन्य बहुत से राक्षस भी राज्य में कहीं भी मनमाना भ्रमण करते थे एवं जहाँ चाहते थे वहाँ रुक कर लोगों को पीड़ित करते थे। असहाय लोग उनकी सब कुत्सित इच्छाओं को पूरा करते थे। ग्वाल बालों का साहस धीरे धीरे इतना बढ़ गया कि वे कृष्ण और बलराम के नेतृत्व में उन राक्षसों पर भी आक्रमण करने लगे। राक्षसों के लिए यह सब अप्रत्याशित एवं अकल्पनीय था। वे इतने स्थूलकाय एवं विलासी हो चुके थे कि युद्ध करना भूल चुके थे। उन में से कुछ तो मारे गए एवं कुछ जान बचा कर कंस के पास पहुँचे। कंस ने अपने सत्ता मद में उन राक्षसों की चेतावनियों पर कोई ध्यान न दिया, अपितु बालकों से पिट कर आने पर उन्हें ही उलाहना दिया।

गोकुल के जो युवक युवतियाँ कालिया के विषैले जाल में फँस गए थे उन्हें कृष्ण एवं गोकुल वासियों ने कुछ स्नेह व कुछ कठोरता द्वारा अपने वश में किया। योग्य वैद्यों के मार्गदर्शन में उन में से अधिकांश युवक मादक द्रव्यों की लत से बाहर निकलने में सफल हो गए। इस प्रकार के युवकों ने फिर अन्य ग्वाल बालों के साथ मिल कर कालिया के दूतों को पकड़वाने का उत्तरदायित्व लिया। जो दो तीन दुष्ट दूत इन लोगों की पकड़ में आ गए उन पर मल्ल युद्ध के दाँव-पेचों का इतना अभ्यास किया गया कि उन का कचूमर निकल गया। अन्य दूत भय के कारण यह क्षेत्र छोड़ कर भाग गए।

इन सब प्रयासों से मादक द्रव्यों की समस्या पर काफी नियन्त्रण हो गया, परन्तु इस समस्या की जड़ तो स्वयं कालिया ही था। कृष्ण जानते थे केवल सतही उपचार करने से कोई समस्या समाप्त नहीं होती। उसकी जड़ को नष्ट करना आवश्यक है। जड़ को वहीं छोड़ देने पर समस्या  निश्चित रूप से पुनः सर उठाएगी। कालिया को वहाँ से हटाया जाना बहुत आवश्यक था। पर यह कैसे सम्भव हो?

काली दह के किनारे कदंब का एक घना वृक्ष था। उस पर चढ़ कर कालिया के महल का दृश्य स्पष्ट दिखाई देता था। कृष्ण बहुधा वहाँ बैठ कर कालिया की गतिविधियों का निरीक्षण किया करते थे। कुछ दिनों में कृष्ण ने निश्चित रूप से जान लिया कि अपराहन में कालिया के सभी दूत बाहर चले जाते थे। कालिया स्वयं भारी डील- डील का स्वामी था व स्वभाव से विलासी एवं आलसी था। अब कृष्ण उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा करने लगे।

एक दिन कृष्ण अपराहन में दैनिक क्रीड़ा के पहले कदम्ब के वृक्ष पर चढ़ कर यमुना के उस पार कालिया के महल का निरीक्षण कर रहे थे। उन्होंने देखा कि कालिया अपने महल से बाहर निकला एवं लड़खड़ाता हुआ आ कर रेत पर लेट गया। उसकी चाल बता रही थी कि उसने किसी मादक पदार्थ का अत्यधिक सेवन कर रखा था। कृष्ण को यह अवसर उपयुक्त लगा। ग्वाल बालों के देखते देखते कृष्ण कालीदह में कूद गए। सभी ग्वाल बाल उनकी इस गतिविधि से हतप्रभ रह गए। कुछ मारे भय के वहीं खड़े रोने चिल्लाने लगे। कुछ भाग कर गोकुल पहुँचे। वहाँ जिसने भी सुना कि कृष्ण काली दह में कूद गए हैं, वही रोता पीटता भागा चला आया। माता यशोदा पछाड़ खा कर मूर्छित हो गईं। बहुत से ग्वाल बाल लाठियाँ पटक पटक कर जल में कूदने का हठ करने लगे। वयस्क लोगों ने बड़ी कठिनाई से उन्हें रोका। उधर कृष्ण पानी के भीतर तैर कर उस तट तक जा पहुँचे थे। उनका प्रिय कशा (चाबुक) उनकी कमर से लिपटा हुआ था।

कालिया उस समय जल के किनारे मखमल की शैया पर लेटा धूप सेंक रहा था। कृष्ण सीधे उसके सम्मुख जा कर खड़े हो गए और अधिकार पूर्वक उससे कहा, ‘उठो कालिया। मैं नंद का पुत्र कृष्ण तुम्हारे लिए क्षेत्र प्रमुख का आदेश ले कर आया हूँ। तुम्हारे लिए आज्ञा है कि तुम अपना विषैला व्यापार बंद कर के अन्यत्र चले जाओ। यदि तुम शान्ति पूर्वक यहाँ से चले जाओगे तो तुम्हें और तुम्हारे परिवार को कोई हानि नहीं पहुँचाएगा।”

कालिया ने कृष्ण का नाम अपने दूतों से सुन रखा था। इधर के क्षेत्र में इस बालक के कारण उस का व्यापार नहीं चल पा रहा था ऐसा उसे ज्ञात हुआ था। कृष्ण को इस प्रकार सामने खड़ा देख कर और उन के चुनौती भरे वचन सुन कर वह बिल्कुल आग बबूला हो गया। वह त्वरित गति से उठा और लगभग फुफकारते हुए कृष्ण पर झपटा।

कृष्ण सावधान थे। झपटते हुए वृषभों (साँड़ों) को वंचका देना व उन पर कशा प्रहार करना उन का प्रिय खेल था। उन्होंने उसी प्रकार एक ओर हट कर कालिया को उस के वेग में आगे निकल जाने दिया और उस की पीठ पर कशा से भरपूर प्रहार किया। कालिया फूत्कार कर पलटा और पुनः कृष्ण पर झपटा। कृष्ण ने उसी प्रकार वार बचाया और फिर भीषण प्रहार किया। कालिया औंधे मुँह रेत में गिरा और असह्य वेदना से छटपटाया। वह समझ गया कि सामने खड़ा बालक कोई साधारण बालक नहीं है। उसकी चपलता और प्रहार शक्ति असाधारण है।

कालिया शीघ्रता से सतर्क हो कर उठने लगा। लेकिन कृष्ण अवसर चूकने वाले नहीं थे। वह उठ पाता इस से पहले ही कृष्ण ने उसके ऊपर अपने कशा के भयंकर प्रहार करने आरंभ कर दिये। कालिया वार बचाने का प्रयास कर रहा था और कृष्ण को पकड़ना चाह रहा था। पर कृष्ण की क्षिप्रता अद्भुत थी। उनका कोई भी वार खाली नहीं जा रहा था।

कृष्ण के प्रत्येक प्रहार में इतनी शक्ति थी कि कालिया के शरीर में स्थान स्थान पर रक्त छलक आया था। क्रोध और पीड़ा के कारण उस के मुख से भयानक फूत्कार की ध्वनियाँ निकल रही थीं और फेन गिरने लगा था। वह किसी प्रकार उठ कर कुछ दूर भागा। महल की ओर जाने वाले मार्ग को कृष्ण रोक कर खड़े थे। इस बीच कालिया की पत्नियाँ भी महल के द्वार पर आ गई थीं और इस विचित्र अकल्पनीय दृश्य को आँखें फाड़ फाड़ कर देख रही थीं।

कालिया का मस्तिष्क कार्य नहीं कर रहा था। जीवन में पहली बार इस प्रकार के संकट से उस का सामना हुआ था। कृष्ण को कशा ले कर अपनी ओर बढ़ता देख कर उसे कुछ न सूझा। हड़बड़ाहट में उसने जल में छलाँग लगा दी। संभवतः यह उस के जीवन की सब से बड़ी भूल थी।

कृष्ण स्वयं अत्यधिक कुशल तैराक थे। कालिया के जल में कूदते ही उन्होंने कशा को एक ओर फेंका और बिना एक पल का भी विलंब किए जल में कूद पड़े। कालिया जल की सतह पर आकर श्वास ले पाता इससे पहले ही कृष्ण जल के भीतर उस के ऊपर पहुँच गए और उस के मस्तक पर अपने पैरों से शक्तिशाली प्रहार करने आरंभ कर दिए। कालिया भली भाँति तैरना जानता था पर उस का शरीर भारी था और कृष्ण उसे सन्तुलन बनाने का अवसर ही नहीं दे रहे थे। कालिया बीच बीच में किसी प्रकार जल की सतह पर आ कर श्वास लेता और कृष्ण पर वार करने का प्रयास करता।

कालिया ने अनेक बार प्रयास किया कि किसी प्रकार एक बार कृष्ण को पकड़ ले और अपनी भुजाओं में पीस कर मार डाले  पर कृष्ण उसकी पकड़ में ही नहीं आए। इस भयानक उथल पुथल के कारण काली दह का रसायन युक्त जल फेनिल हो रहा था और किनारे खड़े गोकुल वासी कुछ न दिखाई देने के कारण बहुत व्याकुल हो रहे थे। शीघ्र ही कालिया बहुत थक गया। उस को जल के भीतर अपना संतुलन बनाए रखने में बहुत कठिनाई हो रही थी। कृष्ण ने अब उचित अवसर जान कर पानी में डुबा कर उसके प्राण लेने का निश्चय किया। उन्होंने अपने वक्ष में भरपूर श्वास भरा और जल में डुबकी लगा कर कालिया के नीचे पहुँच गए। कालिया के पैरों को पकड़ कर उन्होंने उसे भी जल के भीतर खींच लिया। अब तक कालिया का श्वास बुरी तरह उखड़ चुका था जबकि कृष्ण को श्वास रोकने का बहुत अच्छा अभ्यास था।

जल के भीतर कालिया श्वास लेने के लिए छटपटाने लगा और अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा कर बाहर आने का प्रयास करने लगा। जब यह मरणासन्न हो गया तो कृष्ण उसे खींच कर जल के ऊपर ले आए। अब उसमें इतनी शक्ति नहीं रह गई थी कि वह अपने भारी शरीर का जल में संतुलन बना सके। वह समझ गया कि जल में कूद कर उसने भारी भूल कर दी है। इधर जल की उथल पुथल शान्त होने के बाद गोकुल वासियों को भी अब सारा दृश्य स्पष्ट दिखाई देने लगा था। उत्साही युवक लाठियाँ पीट पीट कर और चिल्ला कर कृष्ण को कालिया का वध करने के लिए उत्साहित करने लगे। कालिया को अपना अंत अब निकट दिखाई देने लगा। उसने हाथ जोड़ कर कृष्ण से विनती की, ‘हे कृष्ण! दया करो, मेरे प्राण मत लो। तुम जो कहोगे वही मैं करूँगा। इसी बीच कालिया की कुछ पत्नियाँ भी तैर कर वहाँ पहुँच गई और कृष्ण से प्रार्थना करने लगीं कि वे उनके पति को जीवित छोड़ दें।

कृष्ण ने कुछ क्षणों तक उस परिस्थिति पर विचार किया। कालिया की पत्नियों पर उन्हें दया आयी। कालिया कितना भी दुष्ट क्यों न हो, इस समय वह और उसकी पत्नियाँ कृष्ण की शरणागत थीं। शरणागत का वध करना आर्य संस्कृति के विरुद्ध था। पर उसको एवं उसकी विष उगलने वाली रसायन शालाओं को ऐसे ही छोड़ देना भी ठीक न था। विषम परिस्थितियों में तुरन्त सटीक निर्णय लेना कृष्ण की विशेषता थी। उन्होंने कालिया की ग्रीवा को अपनी एक भुजा से इस प्रकार जकड़ लिया कि वह कोई धूर्तता न कर सके और उसकी पत्नियों को आज्ञा दी कि वे तुरंत जा कर अपने महल को आग लगा दें। कालिया की स्त्रियों के पास कृष्ण की आज्ञा मानने के अतिरिक्त कोई चारा न था। कालिया के प्राण बचाने के लिए उन्होंने महल में जा कर आग लगानी आरंभ कर दी। महल के भीतर एकत्र ईंधन और रसायनों के कारण शीघ्र ही महल से गगनचुम्बी लपटें उठने लगीं।

कृष्ण इस बीच कालिया की ग्रीवा को उसी प्रकार जकड़े रहे। उनकी सहायता के लिए तब तक बहुत से ग्वाल बाल तैर कर यहाँ आ गए थे और कालिया को चारों ओर से घेर लिया था। जब कालिया का महल पूर्ण रूप से अग्नि की लपटों से घिर गया तो कृष्ण ने कालिया को छोड़ दिया और उससे कहा, जाओ कालिया, अब तुम मथुरा की सीमा के भीतर कभी न आना। अपने शेष जीवन को किसी सेवा कार्य में लगाना तभी तुम्हारा उद्धार होगा। कालिया अपनी पत्नियों के साथ नतमस्तक हो कर वहाँ से चला गया।

उस रात्रि कालिन्दी के तट पर विजयोत्सव मनाया गया। कालिया जैसे दुर्दांत दस्यु के साथ मरणान्तक द्वन्द्व करने वाले कृष्ण इस समय आनंद मग्न हो मुरली बजा रहे थे और मुख पर एक भुवन मोहिनी मुस्कान ले कर ग्वाल बालों व गोप कन्याओं के साथ नृत्य कर रहे थे। अधर्म एवं अन्याय से संघर्ष के साथ साथ यदि जीवन में रस एवं आनंद भी हो तभी जीवन की पूर्णता है, ऐसा उनका विश्वास था।

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