एक ग्रामीण वैश्या ने पितृ पक्ष के दिनों में ब्राह्मणों को अपने घर भोजन कराना चाहा. परन्तु कोई उसके घर आने को राजी नहीं हुआ. बहुत ढूँढ़ – खोज के बाद तिलक – छापा लगाये और गले में माला पहने हुए एक ब्राह्मण मिला. उसे वह अपने साथ लिवा लायी और बड़े प्रेम से भोजन कराया. अंत में दक्षिणा देकर बोली – महाराज, मेरा अपराध क्षमा कीजिएग . मैं जाति की बेड़नी हूँ. ब्राह्मण भोजन कराने की बड़ी इच्छा थी, इसलिए आपको लिवा लायी. ब्राह्मण बोला – कोई बात नहीं. मैं भी भाँड़ हूँ. ब्राह्मण का वेष बनाये फिर रहा था. सोचा चलो आज इस प्रकार ही कहीं बढ़िया माल खाने को मिल जायगा.
जैसे को तैसा मिला, मिली खीर में खाँड़, तू जात की बेड़नी, मैं जात का भाँड़
20
Jun