एक किसान की पत्नी वड़ी लड़ाका थी। वह नित्य प्रति अपने पति को घर के आंगन में बिठा कर इक्कीस जूते लगाया करती थी। इससे तंग आकर वह एक दिन भाग निकला और पास के नगर में चला गया। लेकिन वह औरत भी एक ही थी। वह जिस जगह पर अपने पति को बिठा कर जूते मारा करती थी, अब उस खाली जगह पर ही उसके नाम से जूते मार कर अपने नियम का निर्वाह करने लगी। उस स्थान के नीचे एक हँडिया गड़ी हुई थी, जिसमें मंत्र बल से एक भूत को बन्द किया हुआ था। अब वे जूते उसी भूत के सिर पर पड़ने लगे। जूतों की मार से भूत बेचैन हो उठा, लेकिन वह क्या कर सकता था।
फिर एक दिन जूतों की मार से वह हँडिया फूट गई तो भूत उसमें से निकल कर बेतहाशा भागा और उसी नगर में जा पहुँचा।
एक दिन उसे वही किसान दिखलाई पड़ा तो भूत ने उससे कहा – जूत भाई, राम राम। किसान के पूछने पर उसने आप बीती सुनाते हुए कहा कि हम दोनों ने एक ही औरत के हाथ से जूते खाये हैं, इसलिए हम जूत भाई हैं। किसान बोला कि मुझे यहाँ प्राये इतने दिन हो गये, लेकिन कोई अच्छी आय नहीं हुई।
भूत ने कहा कि इसका उपाय मैं किये देता हूँ। मैं अभी जाकर अमुक सेठ के बेटे के शरीर में प्रवेश करता हूँ और किसी के निकाले नहीं निकलूंगा। लेकिन जब तुम आओगे तो तुरन्त निकल जाऊंगा। इस काम के बदले तुम सेठ से मोटी रकम वसूल कर लेना। लेकिन इस वात को याद रखना कि मैं दोबारा किसी के शरीर में प्रवेश करूं तो वहां भूल कर भी न आना। यदि आओगे, तो तुम्हें जान से मार डालूंगा ।
किसान ने यह बात स्वीकार कर ली और योजनानुसार किसान को सेठ से मुँह मांगी रकम प्राप्त हो गई।
अगली बार भूत ने राजा के पुत्र के शरीर में प्रवेश किया और किसी के निकाले नहीं निकला। राजा को पता चला कि अमुक किसान ने सेठ के बेटे का भूत भगाया था तो उसने किसान को तत्काल ही बुला भेजा। किसान दुविधा में फँस गया। न जाए तो राजा मारे और जाए तो भूत मारे। अन्ततः उसने एक युक्ति निकाली। उसने अपनी घोती ऊपर कर के बाँधी, जूतियां हाथ में लीं और बड़े जोरों से भागता हुआ राजा के बेटे के पास यह कहता हुआ पहुँचा – भूत भाई, रांड आई, अर्थात् वह जूते लगाने वाली औरत यहाँ भी आ पहुँची है। इतना सुनते ही भूत के होश फाख्ता हो गये और वह अविलम्ब ही राजकुमार के शरीर से निकल कर भाग गया।
मार के आगे भूत भी भागते हैं
10
May