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कलयुग में झूठ ही फले

एक सेठ बहुत मालदार था। उसने अपने एक गरीब मित्र को काम-धंधा करने के लिए दो हजार रुपये उधार दिये थे। कुछ समय बाद सेठ मर गया और उसके मरने के बाद शीघ्र ही उसका सारा कारोबार चौपट हो गया। सेठ की स्त्री और और पुत्र को दो जून भोजन मिलना भी दूभर हो गया। उधर सेठ के उस गरीब मित्र के पास अपार सम्पदा हो गई। एक दिन मृत सेठ की विधवा अपने पुत्र को साथ लेकर नये सेठ के यहाँ पहुँची और उससे अपने पति द्वारा दिये गये रुपयों की मांग की। लेकिन नये सेठ ने उसे दुत्कारते हुए कहा कि मेरे पास रुपयों की क्या कमी थी जो मैं तुम्हारे पति से दो हजार रुपये उधार लेता। पास बैठे हुए लोगों ने भी उसकी बात का समर्थन किया और सेठ की विधवा से कहा कि तुम्हारे पास कोई सबूत या लिखा-पढी हो तो दिखलाओ। विधवा ने उत्तर दिया कि मेरे पास कोई लिखा-पढी तो नहीं है, लेकिन यदि मैं झूठ बोलती होऊं तो मेरा यह इकलौता लड़का मर जाए। उसके इतना कहते ही लड़का तुरन्त मर गया और सभी लोग उसे झूठी मान कर उसकी भर्त्सना करने लगे।
वह बेचारी अपने भाग्य को कोसती हुई सेठ की हवेली से बाहर निकल रही थी कि उसे पुरुष वेशधारी ‘कलियुग’ मिला। विधवा ने उसके सामने अपना दुखड़ा रोया तो वह बोला कि तुमने सतयुग की बात कही, इसलिए तुम्हारा लड़का मर गया। यह युग मेरा है अर्थात् कलियुग है और इसमें झूठ बोलने से ही फल की प्राप्ति होती है। अब तुम पुन. सेठ के पास जाकर कहो कि मेरे पति ने तुम्हें बीस हजार रुपये दिये थे, मैंने भूल से दो हजार बतला दिये और इसीलिए मेरा लड़का मर गया। यदि मेरे पति ने तुम्हें बीस हजार रुपये दिये हों तो मेरा लड़का तुरन्त जी उठे। विधवा ने वैसा ही किया। उस के यह कहते ही लड़का जी उठा और नये सेठ को झख मार कर बीस हजार रुपये मृत सेठ की विधवा को देने पड़े।

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