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गले पड़ी बाजे है

एक रात को कुछ चोर एक गाने-बजाने वाले के घर में घुसे । वहाँ चोरों को और कुछ नहीं मिला तो एक ने ढोलक उठाली, दूसरे ने सारंगी और तीसरे ने इकतारा ले लिया । इतने में जाग हो गई और चोर भाग निकले। घर वालों ने और पास पड़ोस के लोगों ने उनका पीछा किया तो चोर एक खेत में घुस गये । खेत में फसल पकी खड़ी थी और बाजरे के सिट्टे इतने घने थे कि रास्ता पा सकना कठिन था । जिसने गले में ढोलक डाल रखी थी, वह तो और भी कठिनाई से आगे बढ रहा था । जैसे तैसे वह भागता था, बाजरे के सिट्टे ढोलक पर तड़ातड़ पड़ते और ढोलक बजने लगती थी । उसके साथियों ने उससे पुकार कर कहा कि तू ढोलक न बजा, क्योंकि ढोलक की आवाज को लक्ष्य करके ही वे लोग हमारा पीछा कर रहे हैं। इस पर ढोलक वाले ने कहा कि मैं कहाँ बजा रहा हूँ, यह तो बिना बजाये ही बज रही है।

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