कहावत का अर्थ है किसी को मूर्ख बना कर अपना घटिया माल उसे भिड़ा देना और उसका अच्छा माल उस से ठग लेना. इस के पीछे एक कहानी है. गाँव के कुछ लोग किसी काम से शहर जा रहे थे. रास्ते में खाने के लिए एक की पत्नी ने सत्तू साथ में बाँध दिया. दूसरे के घर में और कुछ नहीं था या उस की पत्नी फूहड़ थी सो उसने थोड़े से धान बाँध दिये. धान को खाना बड़ा मुश्किल काम है, पहले कूट कर छिलका अलग करना पड़ेगा, फिर पीसो और फिर खाओ. जिस के पास धान थे वह बहुत चालाक था. उस ने सत्तू वाले को बातों में फंसा लिया कि सत्तू के साथ कितनी मुश्किल है, पहले पानी लाओ, फिर घोलो, फिर बैठ के खाओ तब कहीं जा पाओगे. धान बिचारा तो फटाफट कूटो खाओ चलो. सत्तू वाला आदमी भोला भाला था, उसने अपना सत्तू दे कर धान ले लिया. जब खाने बैठा तो मालूम हुआ कि वह मूर्ख बन गया है. तब तक दूसरा आदमी सत्तू खा कर वहाँ से निकल लिया था.
सत्तू मनभत्तू जब घोले तब खइबे तब जइबे, धान बिचारे भल्ले कूटे खाए चल्ले
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