किसी मंदिर में एक अंधा पुजारी पूजा किया करता था। वह दो रोटी बना कर भगवान् को भोग लगा देता और फिर उन रोटियों को स्वयं खा लिया करता। लेकिन मंदिर में एक बिल्ली हिल गई और जैसे ही पुजारी भगवान की मूर्ति के आगे रोटियां रखकर हाथ जोड़ता, वैसे ही वह रोटियों को उठाकर भाग जाती। पुजारी भूखा रह जाता। तब उसने एक युक्ति निकाली। उसने लकड़ी की एक बड़ी खूँटी बनवाई और जब वह भोग लगाता तो उस खूँटी को राटियों में ठोंक देता, जिससे बिल्ली उन्हें नहीं लेजा पाती। सूरदास की मृत्यु के बाद उसका एक चेला पूजा करने लगा। वह अंधा नहीं था लेकिन गुरु की परिपाटी को निभाने के लिए वह भी रोटियों में खूँटी अवश्य ठोंकता। उसके बाद तीसरा पुजारी प्राया। वह कुछ समझदार था। उसने किसी वयोवृद्ध से खूँटी ठोंकने का रहस्य पूछा और सारी बात जानकर उसने रोटियों में खूँटी ठोंकना बंद कर दिया।
सयाना आदमी लीक नहीं पीटता
10
May