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संकट काल में मर्यादा नहीं देखी जाती. जब जान पर बनी हो तो व्यक्ति का पहला धर्म है प्राणों की रक्षा करना. इसी को आपद्धर्म कहा गया है. संस्कृत में कहावत है – आपात्काले मर्यादा नास्ति.

संक्रांत को थापे हुए होली में काम आवें. गोबर से कंडे (उपले) बनाने को कंडे थापना कहते हैं. संक्रांति पर थापे हुए उपले होली पर काम आते हैं. कहावत के द्वारा सीख दी गई हैं कि 1. कल जिस वस्तु की आवश्यकता होगी उसे आज बना कर रखो. 2. कोई चीज़ बनते ही तुरंत काम में नहीं ली जा सकती इसलिए धैर्य रखो. 

संख के भरोसे घोंघा भी टेढ़ो चलत. किसी बड़े आदमी के भरोसे छोटा भी ऐंठ दिखाए तो.

संख बाजे, सत्तर बला भाजे. शंख बजाने से सत्तर बलाएं दूर होती हैं. शंख बजाने का एक अर्थ तो पूजा पाठ से है जिससे मन को शान्ति मिलती है और सहारा मिलता है. दूसरा लाभ यह है कि सांस का व्यायाम होता है जिससे बीमारियाँ दूर होती हैं. कुछ लोग इसके आगे भी बोलते हैं – मुद्दई के मुख कालिख लागे.

संग लगी लंगड़ी दीवार फांदने जाए. पैर वालों के साथ लंगड़ी भी दीवार फांदने की कोशिश कर रही है. कोई व्यक्ति दूसरों की देखा देखी अपनी सामर्थ्य से बाहर का काम करने की कोशिश करे तो.

संग सोई तो लाज क्या. जब किसी के साथ सो लीं तो लज्जा कैसी. गलत काम में किसी का सहयोग किया है तो छिपाना कैसा.

संगठन में शक्ति होती है. अर्थ स्पष्ट है.

संगत अच्छी बैठ के खैये नागर पान, छोटी संगत बैठ के कटें नाक और कान. नागर पान एक अच्छी किस्म का पान होता है. अच्छी संगत बैठने वाले को सम्मान मिलेगा और बुरी संगत बैठ कर नाक कटेगी.

संगत की फूट का अल्ला बेली. संगठित समाज में फूट पड़ जाए तो ईश्वर ही मालिक है.

संगत कीजे साधु की हरे और की व्याधि, ओछी संगत नीच की आठों पहर उपाधि. साधु की संगत दूसरों का दुख दूर करती है और नीच की संगत से हर समय संकट बना रहता है.

संगत बड़ों की कीजिए, बढ़त बढ़त बढ़ जाए, बकरी हाथी पर चढ़ी, चुन चुन कोंपल खाए. बड़ों की संगत से लाभ होता है. बकरी हाथी पर चढ़ जाए तो पेड़ की कोमल पत्तियाँ जो ऊँचाई पर लगी होती हैं उनको खा सकती है.

संगत सार अनेक फल. अलग अलग संगत से अलग अलग फल प्राप्त होता है.

संगत से सब होत है, वही तिली वहि तेल, जांत पांत सब छोड़ के पाया नाम फुलेल. संगत से व्यक्ति का चरित्र बदल जाता है. तिली के तेल को इत्र की संगत मिल जाती है तो वह तिली का तेल न रह कर इत्र हो जाता है.

संगत से सांसत. गलत संगत में पड़ कर व्यक्ति कष्ट उठाता है.

संगत से सुधरें कम और बिगड़ें ज्यादा. गुणों की अपेक्षा अवगुणों की छूत जल्दी लगती है.

संगत ही गुण उपजे, संगत ही गुण जाय. अच्छी संगत से व्यक्ति गुण ग्रहण करता है और बुरी संगत में पड़ कर गुणों को गंवा देता है. रूपान्तर – संगत से फल होत है, संगत से फल जाए.

संगे बियाह भया संग संग गौना, सबके धिया पूत हमार सैंया बौना. किसी स्त्री का पति बौना है तो वह सन्तान न होने के लिए पति के बौना होने को दोष दे रही है. सत्य यह है कि छोटे कद के लोग नपुंसक नहीं होते.

संझा की झड़ी और सुबह का झगड़ा. ये जल्दी नहीं रुकते. शाम को यदि वर्षा आरम्भ हो तो जल्दी नहीं रूकती. झगड़ा यदि सुबह को शुरू हो तो जल्दी समाप्त नहीं होता. कहावतों की यह विशेषता है कि उन्हें रुचिकर बनाने के लिए दो अलग बातों को एक साथ जोड़ कर बोला जाता है.

संत हंस गुण गहहिं पय, परिहरि वारि विकार. पय-दूध, वारि-पानी. संत हंस के समान हैं जो विकारों को छोड़ कर गुणों को ग्रहण कर लेते हैं (जिस प्रकार हंस पानी को छोड़ कर दूध को ग्रहण कर लेता है).

संतन की बानी सुने प्रेम सहित जो कोय, गंगादिक सब तीर्थ फल बिन अस्नाने होय. जो कोई प्रेम सहित संतों की वाणी सुनता है उसे बिना गंगा आदि नहाए ही सब तीर्थों का फल प्राप्त हो जाता है.

संतों को कैसा स्वाद, अनबिलोया ही आने दे.  जो व्यक्ति भोला बनकर अपनी स्वार्थ-सिद्धि करना चाहता हो उस के लिए. सन्दर्भ कथा – एक महात्मा किसी के घर भिक्षा मांगने गये. घरवाली दही बिलो (मथ) रही थी. घरवाली ने कहा, थोड़ा ठहरिये, बिलोना हो जाए तो छाछ देती हूँ. महात्मा जी बोले – हम संत-महात्माओं को कैसा स्वाद, अनबिलोया ही आने दे. वास्तविकता यह है कि छाछ की बजाय अनबिलोया दही ज्यादा स्वादिष्ट होता है. इसी तरह एक और महात्मा जी को सत्तू देते समय गृहिणी ने गुड़ न होने की बात कही तो वह बोले – साधु को स्वाद से क्या, गुड़ नहीं बताशा ही सही.

संतों संसार कैसा, कि अपने मन जैसा. व्यक्ति की भावना जैसी होती है उसको संसार वैसा ही दिखता है.

संतोष कड़वा पर फल मीठा (संतोष का फल मीठा). जब व्यक्ति को कोई चीज़ न मिलने पर संतोष करना पड़ता है तो उसे मन में कष्ट होता है लेकिन बाद में समझ आता है कि संतोष करने से ही वह सुखी रहा.

संतोष की डाल में मेवा फले (संतोखे घर मेवा). संतोष करने वाले को अंततः सुख मिलता है.

संतोषी सदा सुखी. जिस हाल में हम हैं उसी में संतोष करना सीखें तो हम सदा सुखी रह सकते हैं.

संपत की जोरू, विपत का यार. पत्नी सम्पत्ति होने पर ही साथ देती है जबकि मित्र हर प्रकार की विपत्ति में.

संपति जाए, मति न जाए. बुद्धिमान लोग ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हम पर संकट आए तो धन भले ही चला जाए हमारी बुद्धि न जाए (बुद्धि सलामत रहेगी तो धन फिर कमा लेंगे).

संवर जाय सो काम, पल्ले पड़े सो दाम. जो काम सही समय से सफलता पूर्वक सम्पन्न हो जाए वही काम कहलाएगा और व्यापार करने पर जो पैसा जेब में आ जाए वही लाभ माना जाएगा.

संवरे तो सपूत, बिगड़े तो कपूत. कोई कितनी भी मेहनत से काम करे, काम अच्छा हो जाए तो काम करने वाले को सपूत कहते हैं और काम बिगड़ जाए तो उसे कपूत कहने से नहीं चूकते.

संसार तो असार, या में सुकृत ही सार है. संसार में केवल अच्छे कर्म ही काम आते हैं और सब सारहीन है.

संसार भेड़िया धसान है. संसार में सभी बिना सोचे समझे एक दूसरे के पीछे भाग रहे हैं.

सकल तीर्थ कर आई तुमडि़या तौ भी न गयी तिताई. जन्मजात स्वभाव बदलता नहीं है. (तूमड़ी- लौकी की जाति का एक फल जो बहुत कड़वा होता है. साधु लोग इससे पानी भरने या खाना रखने का पात्र बनाते हैं).

सकल न सूरत, सनीचर जैसी मूरत. बहुत कुरूप और मनहूस आदमी.

सकल पदारथ है जग माही कर्म हीन नर पावे नाही. संसार में सभी वस्तुएँ मौजूद हैं, भाग्य के बिना वह कुछ लोगों को मिल नहीं पातीं.

सकल भूमि गोपाल की यामें अटक कहाँ. सारी सृष्टि ईश्वर के आधीन है, इस में किसी को कोई संशय नहीं होना चाहिए. 

सकल वस्तु संग्रह करो, कबहुं आइहैं काम, समय पड़े पे ना मिले, माटी खरचे दाम. (बुन्देलखंडी कहावत) किसी वस्तु को बिल्कुल बेकार नहीं समझना चाहिए. मिट्टी भी कभी कभी खरीदनी पड़ती है. इंग्लिश में कहावत है – Keep a thing seven years, and you will find a use.

सकलदीपी तीन तरह के, पढ़ल-लिखल पंडित, कम पढ़ल जोतसी बैद और अनपढ़ ओझा गुनी. सकलदीपी ब्राह्मणों के बारे में लोक विश्वास. सकलदीपी – बिहार में एक प्रकार के ब्राह्मण.

सकुची पूँछ बसत विष, मस्तक बसे भुजंग, केहरि के नख में बसे, तिरिया आठों अंग. सकुची – एक जहरीली मछली. किसी दिलजले व्यक्ति का कथन. सकुची नामक मछली की पूंछ में विष होता है, सांप के सर में और शेर के नाखून में. लेकिन स्त्री के सारे शरीर में विष होता है.

सखी और सूम साल भर में बराबर हो रहते हैं. सखी – दानी, सूम – कंजूस. जो अपने धन का काफी हिस्सा दान करता है और जो कंजूस है उनकी सम्पत्ति में कोई ख़ास फर्क नहीं होता (दानी को आत्मिक सुख मिलता है इसलिए वह अधिक कार्य कर पाता है एवं ईश्वर भी उसकी मदद करता है).

सखी का खजाना कभी खाली नहीं होता. सखी – दानी. परोपकारी व्यक्ति का खजाना कभी खाली नहीं होता. ईश्वर किसी न किसी बहाने स्वयं उसे भरता रहता है.

सखी का बेड़ा पार, सूम की मट्टी ख्वार. दानी अपने सत्कर्मों के कारण भव सागर को पार कर जाता है, कंजूस किसी का भला न करने के कारण कर्म बंधन में बंधा रहता है.

सखी का बोलबाला, सूम का मुँह काला. दानी व्यक्ति की सब बड़ाई करते हैं और कंजूस को सब बुरा कहते हैं.

सखी का सर बुलंद, मूजी की गोर तंग. सखी – दानी, मूजी – कंजूस, गोर – कब्र. दानी व्यक्ति शान से सर उठा कर जीता है जबकि कंजूस को कब्र में भी ठीक से लेटने को जगह नहीं मिलती.

सखी की नाव पहाड़ चले. दानी के सब काम आसानी से हो जाते हैं.

सखी के माल पर पड़े, सूम की जान पर. 1.दानी व्यक्ति का तो दान देने में केवल धन खर्च होता है, कंजूस का धन खर्च हो तो उस की जान निकल जाती है. 2.धन की रखवाली में ही कंजूस का सारा जीवन लग जाता है.

सगरा खीरा खा के बोले कड़वा है. किसी का पूरा माल डकार कर बाद में कहना कि अच्छा नहीं था.

सगाई ठगाई है. सगाई के दो अर्थ हैं इसलिए इस कहावत के भी दो अर्थ हैं. 1. विवाह संबंध – रिश्ता तय करते समय दोनों पक्ष एक-दूसरे से कई बातें छिपाकर रखते हैं और अपने विषय में अत्यधिक बढ़ा चढ़ा कर बताते हैं. यह ठगाई नहीं तो क्या है. 2. प्रेम – वास्तविक प्रेम कुछ नहीं होता, यह केवल धोखा है.

सगाई दो जनां, ब्याह सौ जनां. किसी कंजूस आदमी का मजाक उड़ाने के लिए जिसने बहुत कम लोगों को न्यौता दिया हो.

सगों बिन सगाई कैसी, भलों बिन भलाई कैसी. 1.सगे सम्बन्धियों को साथ लिए बिना विवाहादि कोई भी कार्य नहीं हो सकते और समाज के भले लोगों को साथ लिए बिना परोपकार का कोई कार्य नहीं हो सकता. 2. अपने मित्र और सम्बन्धियों से ही प्रेम (सगाई) किया जा सकता है और भले लोगों से ही भलाई की जा सकती है

सच और झूठ में चार अंगुल का फर्क (अंतर अंगुली चार का सांच झूठ में होई). आँख और कान में केवल चार अंगुल की दूरी होती है. आँखों देखा सच और कानों सुना झूठ.

सच कहइया मारा जाए, झूठा भडुआ लड्डू खाए (सच कहे तो मारा जाए). सच बोलना खतरा मोल लेना है. सच कहने वाला विपत्ति में पड़ जाता है और झूठ बोलने वाला ऐश करता है.

सच कहना आधी लड़ाई मोल लेना है. किसी के मुँह पर सच बोल देने से लड़ाई होने की सम्भावना होती है.

सच बोल पूरा तोल, मन चाहे जहाँ डोल. जो व्यापारी ग्राहकों से सच बोलता है और पूरा तोलता है उसे किसी का डर नहीं होता.

सच्चा जाय रोता आए, झूठा जाय हंसता आए. अदालतों में मिलने वाले झूठे न्याय के बारे में कहावत.

सच्चाई में खुदा की सूरत है. सत्य आचरण ईश्वर के समान है.

सच्ची बात और गधे की लात झेलने वाले बहुत कम मिलते हैं. अर्थ स्पष्ट है.

सच्ची बात सहदुल्ला कहें, सबके दिल से उतरे रहें. जो सच्ची और खरी बात कहता है वह सब के दिल से उतरा हुआ रहता है (उसे लोग पसंद नहीं करते).

सच्चे का बोलबाला, झूठे का मुँह काला. सच्चे व्यक्ति का सब आदर करते हैं और झूठे से सब नफरत करते हैं.

सच्चे प्रभु को छोड़ के पूजें कबरें भूत, जो बेचारे मर गए उनसे मांगें पूत. मजारों पर जा कर मन्नत मांगने वाले और भूत प्रेत को मानने वाले लोगों के लिए नसीहत.

सच्चे लोग कसम नहीं खाते. केवल झूठे लोग ही बार बार कसमें खाते हैं.

सजन तुम झूठ मत बोलो, खुदा को सांच प्यारा है, कहावत है बड़ों की यूं, कभी न सांच हारा है. अर्थ स्पष्ट है. 

सजन सकारे जाएंगे, नैन मरेंगे रोय, बिधना ऐसी रैन कर, भोर कबहुं न होय. सकारे – सवेरे, बिधना – विधाता. किसी स्त्री के पति को सुबह उठ कर परदेस जाना है, वह ईश्वर से मांग रही है कि सुबह कभी न हो. 

सजनी के होठों पर इनकार है, साजन काहे घोड़े पे सवार है. किसी के मना करने के बावजूद भी यदि कोई जबरदस्ती गले पड़ रहा हो तो यह कहावत कही जाती है.

सज्जन जन चित ना धरें दुर्जन जन के बोल, पाथर मारे वृक्ष में तउ फल देत अमोल. दुष्ट लोग बुरा भला कहें तब भी सज्जन लोग उनका भला ही करते हैं. वृक्ष में पत्थर मारो तो भी वह फल ही देता है.

सज्जन बैठें आठ, तऊ न टूटे खाट, दुर्जन बैठे एक, टूटें खाट अनेक. एक खाट पर आठ तमीजदार लोग बैठ जाएँ तब भी खाट नहीं टूटेगी, और एक बेढंगा आदमी अपने बेढंगेपन से अनेकों खाटें तोड़ सकता है. 

सटटे की कमाई और तेल की मिठाई. दोनों ही खराब हैं, अत: इनसे बचना चाहिए.

सठ सनेह, जीरण वसन, जतन करंता जाय, सजन सनेह, रेसम लछा, घुलत घुलत घुल जाए. धूर्त व्यक्ति का प्रेम और जीर्ण वस्त्र, यत्न करने पर भी नष्ट हो जाते हैं. सज्जन व्यक्ति का प्रेम और रेशम का लच्छा समय के साथ घुल मिल जाते हैं. सठ – शठ, दुष्ट, जीरण – जीर्ण, वसन – वस्त्र.

सठ सुधरहिं सत्संगति पाई. दुष्ट व्यक्ति भी अच्छी संगत में रह कर सुधर जाता है.

सठ सेवक, नृप कृपन, कुनारी, कपटी मित्र, शत्रु सम चारी. धूर्त नौकर, कंजूस राजा, चरित्रहीन स्त्री और कपटी मित्र ये चारों शत्रु के समान हैं. कहीं कहीं शत्रु के स्थान पर सूल (शूल) भी लिखा गया है.

सड़ पक जाए, गोतिया न खाए, गोतिया खाएगा तो अकारथ जाएगा. अत्यंत स्वार्थी लोगों के लिए. चीज़ चाहे सड़ जाए और फेंकनी पड़े, पर अपनी जाति का कोई दूसरा व्यक्ति न खा ले. 

सड़ा सूत दर्जी को खोर. सड़ा हुआ कपड़ा और दर्जी को दोष देना. अपनी त्रुटि कोई नहीं देखता.

सत डिगा जहान डिगा. सत – सत्य, अहिंसा, प्रेम, शील इत्यादि सद्गुण. इन्हीं सद्गुणों पर संसार टिका हुआ है. 

सत नहिं छोड़े सूरमा, सत छोड़े पत जाए. सत – सत्य, श्रेष्ठता, धर्म. वीर पुरुष धन का मोह छोड़ देते हैं पर सत को नहीं छोड़ते क्योंकि सत को छोड़ने से उनका मान चला जाता है.

सत मत छोड़े हे पिया सत छोड़े पत जाए, सत की मारी लच्छमी फेर मिलेगी आए. वीर पुरुष धन छोड़ देते हैं पर सत को नहीं छोड़ते क्योंकि सत को छोड़ने से उनका मान चला जाता है. यदि आप सत पर अडिग रहोगे तो लक्ष्मी फिर आपके पास आ जाएगी.

सतगुर की महिमा अनंत, अनंत किया उपगार, लोचन अनंत उघाड़िया, अनंत दिखावणहार. सतगुरु का उपकार बहुत बड़ा है जिसने ईश्वर से साक्षात्कार कराया है.

सतलड़ी मिलने वाली है. कोई चीज न होने पर भी उसके लिए झगड़ा करना. सन्दर्भ कथा – दो नशेबाज बैठे गपशप कर रहे थे. एक ने कहा कि यदि इस वक्त मुझे एक सतलड़ी (सात लड़ियों की माला) मिल जाए तो कैसा रहे? दूसरा बोला कि सतलड़ी मिल जाए तो चार मेरी और तीन तुम्हारी. इसी बात को लेकर दोनों में तकरार बढ़ गई और दोनों सर फुटौवल करने लगे. दोनों की बात सुन कर किसी ने पूछा कि वह सतलड़ी हैं कहाँ, जिसके लिए लड़ रहे हो? इस पर दोनों बोले कि सतलड़ी अभी मिली कहाँ है, लेकिन अगर मिल जाए तो सात में से चार मैं ही लूँगा.

सतवंती के लाज बड़ छिनाली के बात बड़. (भोजपुरी कहावत) सतवंती नारी के लिए उसकी लाज बड़ी चीज़ है और चरित्रहीन नारी के लिए उसकी बात.

सती अंग, भुजंगमणि, केहरिकेस, गजदंत, सूर कटारी, विप्र धन, हाथ लगें जब अंत. इन छः चीजों को कोई इनके जीवित रहते हाथ नहीं लगा सकता – सती का शरीर, नाग की मणि, सिंह के बाल, हाथी के दांत, शूर पुरुष की कटारी और ब्राह्मण का धन.

सती के रोवले देव रोवें. (भोजपुरी कहावत) पतिव्रता स्त्री के रोने से देवता भी दुखी होते हैं.

सती के वस्त्र झीर-झीर, वैश्या को रेशम का चीर. पतिव्रता स्त्री को फटे हुए कपड़े और वैश्या को बहुमूल्य वस्त्र मिलते हैं, समाज की यही विडंबना है. 

सती सराप देवे नही, छिनाल को सराप लगे नहीं. सराप – श्राप. पतिव्रता नारी किसी से नाराज होने पर भी उस को श्राप नहीं देती, और कुलटा स्त्री के श्राप का कोई असर नहीं होता.

सत्तर करता सात के और सोलह के सौ, ब्याज बुरा रे बालके इससे राखे भौ (भय). ब्याज पर पैसा लेने से डरो, इसमें सात के सत्तर और सोलह के सौ वापस करने पड़ते हैं.

सत्तू खा के शुक्रिया क्या. छोटे से उपकार का क्या शुक्रिया करना.

सत्तू मनभत्तू जब घोले तब खइबे तब जइबे, धान बिचारे भल्ले कूटे खाए चल्ले. किसी को मूर्ख बना कर अपना घटिया माल उसे भिड़ा देना और उसका अच्छा माल उस से ठग लेना. सन्दर्भ कथा – गाँव के कुछ लोग किसी काम से शहर जा रहे थे. रास्ते में खाने के लिए एक की पत्नी ने सत्तू साथ में बाँध दिया. दूसरे के घर में और कुछ नहीं था सो उस की पत्नी ने थोड़े से धान बाँध दिये. धान को खाना बड़ा मुश्किल काम है, पहले कूट कर छिलका अलग करो, फिर पीसो और फिर खाओ. जिस के पास धान थे वह बहुत चालाक था. उस ने सत्तू वाले को बातों में फंसा लिया कि सत्तू के साथ कितनी मुश्किल है, पहले पानी लाओ, फिर घोलो, फिर बैठ के खाओ तब कहीं जा पाओगे. धान बिचारा तो फटाफट कूटो खाओ चलो. सत्तू वाला आदमी भोला भाला था, उसने अपना सत्तू दे कर धान ले लिया. जब खाने बैठा तो मालूम हुआ कि वह मूर्ख बन गया है. तब तक दूसरा आदमी सत्तू खा कर वहाँ से निकल लिया था.

सत्य कहे कवि नार सुभाऊ, सब विधि अगम अगाध दुराऊ. स्त्री के स्वभाव को कोई नहीं जान सकता.

सत्य की जड़ पाताल तक. सत्य कभी नष्ट नहीं होता.

सत्य नारायण की कथा में गधे का क्या काम. जहाँ धर्म कर्म का काम हो रहा हो वहाँ मूर्खों का क्या काम. 

सत्यमेव जयते. झूठ कितना भी प्रबल क्यों न हो अंतत: सत्य की ही विजय होती है. संस्कृत में पूरा कथन है – सत्यमेव जयते नानृतं (सत्य की ही जय होती है झूठ की नहीं). 

सत्रह को पेशगी ओर तेरह को बधाई. उल्टा काम. विवाहादि समारोहों में बधाई गाने के लिए जो लोग बुलाए जाते हैं उन्हें पहले ही पेशगी (अग्रिम धनराशि) दी जाती है.   

सत्रह पटेलों से बिगड़े गाँव. ज्यादा जमींदार हों तो गाँव का विकास न हो कर विनाश हो जाता है.

सदा एक ही रुख नाव नहीं चलती. नाव सदैव एक दिशा में नहीं चलती. जीवन में सुख दुख दोनों आते हैं.

सदा की पदनी, उरदों दोष. सदा पादने वाली स्त्री उरद की दाल को दोष दे रही है कि उस से वायु हो गई. अपनी कमी छिपा कर दूसरों को दोष देना. (असभ्य भाषा है लेकिन कहावतों में चलती है).

सदा के उजड़े, नाम बस्ती खां. गुण के विपरीत नाम.

सदा के दुखिया, नाम चंगे खां. गुण के विपरीत नाम.

सदा दिवाली संत घर, जो घी मैदा होए (सदा दीवाली साधु की, जो घर गेहूँ होए). संत के घर खाद्य सामग्री उपलब्ध हो तो सदा उत्सव का सा माहौल रहता है क्योंकि वहाँ दीन दुखियों की भीड़ लगी रहती है.

सदा न काहू की रही, प्रीतम के गल बांह, ढलते ढलते ढल गई, तरुवर की सी छाँह. यौवन और वैवाहिक जीवन का सुख सदैव नहीं रहता है.

सदा न फूले केतकी, सदा न सावन होए, सदा न जोवन थिर रहे, सदा न जीवे कोय. संसार में कोई वास्तु सदैव नहीं रहती. केतकी पर हमेशा फूल नहीं आते, सावन बारह महीने नहीं रहता, यौवन सदैव स्थिर नहीं रहता और कोई व्यक्ति इस धरा पर सदैव नहीं रहता. व्यवहार में इस में से आधा भी बोला जाता है.

सदा न संग सहेलियाँ सदा न राजा देस, सदा न जग में जीवनां सदा न कारे केस. संसार में कोई भी चीज सदैव नहीं रहती. किसी कन्या की सखियाँ सदा साथ नहीं रहतीं, कोई राजा अनंतकाल राज्य नहीं करता, कोई व्यक्ति अमर नहीं है और बाल सदा काले नहीं रहते (बुढापा सभी को आता है).

सदा भवानी दाहिने, सम्मुख रहें गनेश, पांच देव रक्षा करें, ब्रह्मा विष्णु महेश. किसी काम को आरम्भ करने से पहले बोली जाने वाली प्रार्थना.

सन के डंठल खेत छिटावे, तिनते लाभ चौगुनो पावे. खेत में सन के डंठल छिटकाने से खेती अच्छी होती है.

सन्त न छाड़ै सन्तई, कोटिक मिलें असंत, मलय भुजंगहिं बेधिया, शीतलता न तजन्त. संत पुरुष अपनी सज्जनता नहीं छोड़ते चाहे करोड़ों दुष्ट क्यों न मिलें. चन्दन पर सांप लिपटे रहते हैं पर वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता.

सन्मुख गाय पियावहीं बाछा, यही सगुन है सबसे आछा. जो लोग कोई काम करने से पहले शगुन अपशकुन का विचार करते हैं वे ऐसा मानते हैं कि यदि गाय बछड़े को दूध पिलाती दिख जाए तो यह सबसे अच्छा शगुन है.

सपना, सगुन, सिद्ध का वाचा, कोई झूठा कोई साँचा. सपनों के फल, शगुन अशगुन और साधु लोगों की वाणी, इन पर अधिक विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि ये अक्सर झूठे निकलते हैं.

सपने की सौ मोहर से कौड़ी सरे न काम. सपने में हमारे पास कितना भी धन हो वह हमारे किसी काम का नहीं होता. इसी प्रकार इस संसार में कोई कितना भी धन इकठ्ठा कर ले, परलोक में उसका कोई मोल नहीं है.

सपने तो सोने के बाद ही आते हैं. जागृत व्यक्ति कभी व्यर्थ की कल्पनाएँ नहीं करता. जो सोए हुए हैं (वास्तविकता से मुँह मोड़े हुए हैं) वे ही भांति भांति के सपने देखते हैं. 

सपने में राजा भए, जागत भए फ़कीर. जो आज अपने राजा होने पर घमंड कर रहा है उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि यह स्वप्न के समान क्षण भंगुर अवस्था है.

सपूत एक ही भला और कपूत सात भी खोटे. सुपुत्र एक ही काफी है और कुपुत्र सात हों तो भी बेकार हैं.

सपूत का बाप, कपूत की माई, होत की बहन, अनहोत का भाई. बाप केवल सपूत का ही सगा होता है जबकि माँ सपूत कपूत सभी से प्रेम करती है. बहन अच्छे दिनों में साथ देती है, जबकि भाई बुरे दिनों में भी साथ देता है. 

सपूत की कमाई में सब का हिस्सा. सपूत सभी के ऊपर खर्च करता है.

सपूत तो पड़ोसी का भी अच्छा, जो वक्त पर काम आए. अच्छा बेटा किसी का भी हो वक्त पर काम आता है.

सपूती रोवे टूकों को, निपूती रोवे पूतों को. टूकों – टुकड़ों (छोटी छोटी चीजों को). जिसके कई सारे पुत्र हैं वह टुकड़ों की मोहताज है और जिसके पुत्र नहीं है वह पुत्र की कामना में मरी जा रही है.

सपूतों के कपूत और कपूतों के सपूत होते आए हैं. जरूरी नहीं कि दुष्ट लोगों के यहाँ दुष्ट संतानें ही पैदा हों. दुष्टों के यहाँ सज्जन भी पैदा हो सकते हैं और सज्जनों के यहाँ दुष्ट भी जन्म ले सकते हैं.

सफ़ेद बाल, जवानी का जवाल. जवाल – क्षय. बाल सफेद होना जवानी के ढलने का लक्षण है.

सफ़ेद भैंस काली दही, हाकिम जो कहें वही सही. हाकिम कुछ भी कहें उस को सही मानना पड़ता है. अगर वह कहें कि भैंस सफ़ेद है और दही का रंग काला है तो भी मानना पड़ेगा.

सब उस्तरे बांधो कोई तलवार न बांधो, कर दो ये मुनादी कोई दस्तार न बांधो. दस्तार – पगड़ी. सिखों द्वारा कायर हिन्दू जातियों पर किया गया व्यंग्य. हिन्दू लोग दाढ़ी बनाते हैं इसलिए उस्तरे का जिक्र किया गया है.

सब काम धक्का, तो बुरा काम तक्का. सब काम कर के हार गये तो मजबूरी में गलत काम किया. तक्का-देखा.

सब काम दाई का, नाम भौजाई का. काम कोई और करे व श्रेय कोई और ले तो. दाई – प्रसव कराने वाली.

सब की बारी अंडे, हमारी बारी कुडुक. भाग्य साथ न देना. औरों की बारी थी तो मुर्गी ने अंडे दिए और हमारी बारी आई तो मुर्गी कुडुक हो गई. 

सब की मैया सांझ. सांझ की गोद में सब को विश्राम मिलता है.

सब कीजे, तिरिया भेद न दीजे. स्त्रियों को भेद की बात न बताओ. (वे अपने पेट में कोई बात नहीं पचा सकतीं).

सब कुत्ते गया को जाएं तो पत्ते कौन चाटेगा (सब बिल्लियाँ स्वर्ग को जाएं तो कढ़ाई कौन चाटेगा). सभी लोग बड़े और महत्वपूर्ण बन जाएँ तो छोटे काम कौन करेगा.

सब के द्वार गोपीचंद मांग तांग खाना, बहिनी दुआरे मत जाना. प्रसिद्ध लोकगाथा गोपीचंद में योगी बने गोपीचंद को बहन के घर भिक्षा लेने जाने को मना किया गया है. उसी से कहावत बनी. खराब स्थिति में यदि भाई बहन के घर सहायता लेने जाता है तो एक तो बहन को बहुत दुख होता है, दूसरे घरवाले भी उस पर तंज करते हैं. 

सब के भले में अपना भी भला. देश उन्नति करेगा तो सभी धर्मों और जातियों के लोगों को को लाभ होगा.

सब को अति प्यारा लगे, जो नर शील स्वभाव. जो स्वभाव से सुशील होता है वह सबको अच्छा लगता है.

सब को पंडित साइत दें, खुद चल देवें भद्रा में. पंडित लोग सब को शगुन अपशगुन बताते हैं पर स्वयं उस को नहीं मानते. असल में वे यह जानते हैं कि इन सब का कोई वास्तविक महत्व नहीं होता.

सब कोई पायल पहनें, लंगड़ी कहे हमहूँ. किसी वस्तु के योग्य न होने पर भी उसकी इच्छा करना.

सब गदहे बैकुण्ठ जाएंगे तो लाद कौन ढोएगा. सब का विकास हो जाएगा तो मेहनत वाले काम कौन करेगा.

सब गहनों में चंदनहार. स्त्रियाँ सभी गहनों में चन्दनहार (चन्द्रहार) को सर्वश्रेष्ठ मानती हैं.

सब गुण की आगर धिया, नाक बिना बेहाल. आगर – खजाना, धिया – बेटी. एक कन्या सब प्रकार से गुणवान है पर उसकी नाक चपटी है तो सब गुण बेकार हैं. सर्वगुण संपन्न व्यक्ति में कोई एक अक्षम्य अवगुण हो तो.

सब गुण भरी बैंतला सोंठ. बैंतला सोंठ नामकी औषधि में बहुत से गुण होते हैं. किसी एक व्यक्ति में बहुत से गुण हों तो उस के लिए यह कहावत प्रयोग की जाती है. व्यंग्य में चालू स्त्री के लिए भी इसे प्रयोग करते हैं.

सब गुन भरे ठकुरवा मोर, आपे पहरू आपे चोर. मेरे मालिक सर्व गुण सम्पन्न हैं. खुद ही पहरेदार हैं और खुद ही चोर. आजकल के नेताओं और भ्रष्ट नौकरशाहों पर व्यंग्य. 

सब घटा देते हैं मुफलिस के गरज़ माल का मोल. गरीब जब जरूरत के वक्त अपनी कोई चीज़ बेचना चाहता है तो लोग उस की मजबूरी का फायदा उठाते हुए चीज़ की कम कीमत लगाते हैं.

सब घर अंधा, द्वारे कुआं. घर के सब लोग अंधे हैं और दरवाजे पर ही कुआँ है. किसी घर या समाज के लोग आसन्न खतरे के प्रति बेपरवाह हों तो यह कहावत कही जाती है. 

सब जग रूठा रूठन दे, वह एक न रूठा चाहिए. सारा संसार रूठ जाए तो कोई बात नहीं, बस एक परमात्मा नहीं रूठना चाहिए.  

सब जीते जी के झगड़े हैं यह तेरा है यह मेरा है, जब चल बसे इस दुनिया से न तेरा है न मेरा है. जब तक इंसान जीवित रहता है तब तक तेरा मेरा करता रहता है, दुनिया से जाते ही सब खत्म हो जाता है.

सब जोगिया मरें, मोर खपरवा भरे. स्वार्थी जोगी सोचता है कि सारे जोगी मर जाएँ, केवल मुझे भिक्षा मिले.

सब झगड़े की जड़ दौलत. अर्थ स्पष्ट है.

सब ते कठिन राज मद भाई. सता का नशा सब से बड़ा नशा है.

सब दाढ़ी वाले हों तो चूल्हा कौन फूंकेगा. चूल्हा फूँकने में दाढ़ी जलने का डर रहता है. सभी दाढ़ी वाले हों तो चूल्हा कौन फूंकेगा. सब अपनी कोई न कोई मजबूरी बता रहे हैं तो काम कैसे होगा.

सब दिन चंगे, त्यौहार के दिन नंगे. उन लोगों के लिए जो अपने खर्चों का ठीक प्रकार से नियोजन नहीं करते, अन्य दिनों में फिजूलखर्ची करते हैं और त्यौहार के दिन खाली हाथ हो जाते हैं.

सब दिन जात न एक समान. किसी के भी सब दिन एक से नहीं होते. जो आज विपन्न है वह कल सम्पन्न हो सकता है और जो आज धनी है वह कल निर्धन हो सकता है.

सब दिन साहू के एक दिन चोर का. साहूकार अपनी मक्कारी से सब दिन पैसे जोड़ता रहता है और चोर मौका लगते है एक ही दिन में सब साफ़ कर देता है.

सब धन धाम शरीर से ही. शरीर ठीक हो तभी घन कमाया जा सकता है और तीर्थ किए जा सकते हैं. संस्कृत में कहावत है – शरीरमाद्यम् खलु धर्म साधनम्. रूपान्तर – काया राखे धर्म है.

सब धान बाइस पसेरी. अच्छी बुरी हर चीज़ का एक ही भाव लगाना.

सब में है और सब से न्यारा. ईश्वर सब में होते हुए भी सब से अलग है.

सब मेहरारू दुनिया की कहें, कानी अपने भतार की कहे (आनों को आन की चिंता, कानी को भतार की चिंता). सारी स्त्रियाँ दुनिया भर के लोगों की बातें करती हैं, लेकिन कानी केवल अपने पति की बात करती है (जिससे लोग समझें कि उसका पति उसे बहुत चाहता है). आनों को – दूसरी स्त्रियों को, आन की – दूसरों की.

सब रस नोनै है. खाने का सारा स्वाद नमक में ही है. चेहरे के लावण्य के लिए भी ऐसा कह सकते हैं.

सब रामायण सुन कहें, सीता किसकी जोय. पूरी बात सुनने के बाद कोई मूर्खतापूर्ण प्रश्न पूछना. सारी रामायण सुन कर पूछ रहे हैं कि सीता किस की पत्नी थीं.

सब सच कहने लायक नहीं होते. कुछ सच बहुत अप्रिय होते हैं इसलिए उन्हें बोलने से बचना चाहिए. संस्कृत में कहा गया है – सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्, न ब्रूयात् सत्यं अप्रियं.

सब से न्यारा बाल हठ. तीन प्रकार के हठ प्रसिद्ध हैं, बाल हठ, त्रिया हठ और राज हठ. इन में बाल हठ (बच्चों की जिद) सबसे अलग ही है. सन्दर्भ कथा – एक बार अकबर के दरबार में बालहठ पर चर्चा हो रही थी. बीरबल ने कहा कि बच्चे की जिद कोई पूरा नहीं कर सकता. अकबर इस बात से चिढ़ कर बोला कि मैं किसी की भी कोई भी जिद पूरी कर सकता हू. अकबर के कहने पर एक बच्चे को बुलाया गया. अकबर ने उससे कहा कि तुम कुछ भी माँगो तुम्हें मिलेगा. वह बच्चा बोला मुझे हाथी चाहिए. तुरंत एक हाथी मंगवाया गया. फिर वह बोला मुझे लोटा चाहिए. लोटा भी फौरन हाजिर कर दिया गया. अकबर ने बीरबल की तरफ व्यंग्य भरी नजर से देखा. तब तक वह बच्चा बोला, इस हाथी को लोटे में डाल दो. अकबर ने उसे समझाने की कोशिश की कि ऐसा नहीं हो सकता तो वह जोर जोर से रोने लगा. हार कर अकबर को यह मानना पड़ा कि बालहठ कोई पूरा नहीं कर सकता.

सब से भला किसान, खेती करे और घर रहे. सब से अच्छा किसान है जिसे कम से कम घर पर रहने को तो मिलता है. व्यापार में व्यक्ति को सामान लाने व तकादे करने के लिए कहाँ कहाँ भटकना पड़ता है और नौकरी में तो हमेशा तबादले की तलवार लटकी रहती है.

सब से मीठी भूख. सबसे स्वादिष्ट क्या है – भूख, क्योंकि तेज भूख लगी हो तो हर चीज़ स्वादिष्ट लगती है. इंग्लिश में कहावत है – Hunger is the best sauce. रूपान्तर – भूख मीठी या खीर.

सब से हिलमिल चालिए जब लग पार बसाए, मिष्ट वचन मुख बोलिए नेकी ही रह जाए. जब तक सम्भव हो सब से हिलमिल कर रहना चाहिए और मीठे वचन बोलना चाहिए. हमारे जाने के बाद हमारे नेक व्यवहार की याद ही लोगों के मन में रह जाएगी.

सब से हिलिए सब से मिलिए सब से कीजे चाव, हांजी हांजी सबसे कीजे बसिए अपने गाँव. मेल जोल सबसे कीजिए, सबकी हाँ में हाँ मिलाइए लेकिन करिए वही जो आप को ठीक लगे.

सबको ठेल, मैं अकेल. स्वार्थी व्यक्ति.

सबते भले वे मूढ़ मति, जिन्हें न व्यापे जगत गति. व्यक्ति जितना बुद्धिमान होता जाता है सांसारिक समस्याओं के प्रति उतनी ही उसकी चिंताएं बढती जाती हैं, मूर्ख लोग सबसे भले हैं जिन्हें संसार की चिंताएं नहीं सतातीं. इंग्लिश में कहावत है – Ignorance is a bliss, more you know more you suffer.

सबसे तेज चले वो ही जो चले अकेला. अकेला काम करने वाला व्यक्ति सबसे जल्दी काम निबटा पाता है, सबके साथ के चक्कर में काम आगे नहीं बढ़ता.

सबसे प्यारा पेट (सब से दुलारा पेट). संसार में सारे अच्छे बुरे काम पेट की खातिर ही किए जाते हैं.

सबसे भली चुप. चुप रहना सबसे अच्छा है. इससे सब झगड़े निबट जाते हैं. (अव्वल तो झगड़े होते ही नहीं हैं).

सबसे भले भीख के रोट. कामचोर भिखारियों का कथन.

सबसे भले हैं मूसर चंद, करें न खेती भरें न दंड. मूसरचंद – जो किसी काम के योग्य न हो. ऐसे लोग सब से भले हैं,  उन्हें न खेती करनी है न कोई टैक्स देना है. रूपान्तर – करी न खेती, परे न फंद, घर घर डोलें मूसरचंद.

सबसे सेवक धर्म कठोरा. गोस्वामी जी ने कहा है कि सेवा का काम सबसे कठिन होता है.

सबहि नचावत राम गोसाईं. इस संसार में सब प्राणियों की डोर प्रभु के हाथ में है.

सबहिं जात भगवान की, तीन जात बेपीर, दांव पड़े चूकें नहीं, बामन बनिक अहीर. भगवान ने सभी जातियों को बनाया है लेकिन ब्राह्मण, बनिया और अहीर ये तीन जातियाँ दूसरों का दुख दर्द नहीं समझतीं.

सबही जात चमार की बिना चाम नहिं कोय, बिना चाम वह आप है जिसको लखै न कोय. किसी को चमार कह कर हिकारत की नज़र से मत देखो क्योंकि हम सभी चमड़ी वाले हैं (अर्थात चमार हैं). बिना चमड़ी वाला तो केवल एक ईश्वर है जिसे हम देख नहीं सकते.

सबाब न अजाब, कमर टूटी मुफ्त में. सबाब – पुण्य, अजाब – पाप का दंड. किसी काम में लाभ या हानि कुछ नहीं हुआ, मेहनत बेकार गई. 

सबै वस्तु का मोल है, समय अमोल पहचान, समय व्यर्थ खोते नहीं सो जन चतुर सुजान. समय का लाभ उठा लेना चाहिए. गया समय दुबारा हाथ नहीं आता है.

सबै सहायक सबल के कोऊ न निबल सहाय. (पवन जगावत आग कौं, दीपहिं देत बुझाय) सभी लोग बलवान की सहायता करते हैं, निर्बल की सहायता कोई नहीं करता बल्कि उसे और दबाते हैं. हवा आग को और भड़काती है जबकि दीपक को बुझा देती है.

सब्र की डाल में मेवा फलता है (सब्र का फल मीठा). संतोष से बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है. इंग्लिश में कहावत है – Everything comes if a man can only wait. रूपान्तर – सब्र की दाद खुदा देगा.

सभा बिगारें तीन जन, चुगल, चुगद औ चोर. तीन लोग सभा को बिगाड़ते हैं, चुगलखोर, मूर्ख आदमी और चोर.

सभा सुहाते बोलिये जासों रीझे राय. सभा में ऐसी बात बोलनी चाहिए जो सबको अच्छी लगे.

सभागिया की जीभ और अभागिया के पाँव. भाग्यशाली व्यक्ति जुबान से बोल कर ही सारे काम करा लेता है और अभागा आदमी दौड़ भाग के भी अपना काम नहीं करा पाता.

सभागिया की बेटी मरे, अभागिया का जंवाई. बेटी के मरने का दुख तो बहुत होता है, पर दामाद के मरने और बेटी विधवा होने का दुख उससे भी बहुत बड़ा होता है (क्योंकि विधवा बेटी हमेशा आँखों के सामने रहती है). 

सभागिया को जंगल में ही मंगल, निरभागिया बस्ती में भी भूखा मरे. जो भाग्यवान है उसे हर परिस्थिति में आनंद मिल जाता है, जो अभागा है वह कहीं सुख नहीं पा सकता.

सभी औरतों के मैके में छप्पर पर छप्पन मन पोदीना होता है. सभी स्त्रियाँ अपने मैके के बारे में बढ़ा चढ़ा के बताती हैं. इंग्लिश में कहावत है – In my father’s house are many mansions.

सभी झुकते हुए पलड़े के साझी हैं. जो जीतता हुआ होता है सब उसी का साथ देना चाहते हैं.

सभी सुपात्र हों कुपात्र एक, जैसे सोने के थाल में लोहे की मेख. किसी घर में सभी लोग बहुत अच्छे हों लेकिन केवल एक व्यक्ति खराब हो तो सारा कुनबा बेकार हो जाता है. एक थाल पूरा सोने का बना हो पर उसमें एक कील लोहे की लगी हो तो पूरा थाल बेकार हो जाता है.

सभी से दोस्ती करने वाला किसी का दोस्त नहीं. जो सभी से मित्रता रखना चाहता है वह किसी एक का घनिष्ठ मित्र नहीं हो सकता. 

समंदर में खसखस के दाने की क्या बिसात. इस असीम ब्रह्मांड में एक मनुष्य की कोई बिसात नहीं है.

समंदर में साझा और पोखर में नहाये. किसी व्यक्ति का समुद्र के अथाह जल में साझा है परन्तु वह तालाब में नहा रहा है. जैसे कोई सनातन जैसे वृहत धर्म का मानने वाला मजार पर माथा टेकने जाए.

समंदर में सूखा पड़ गया (समुन्दर पाट दिया). अनहोनी बात, असंभव कार्य.

समझ के खर्चे सोच के बोले. पैसा खर्च करने से पहले ठीक से समझ लेना चाहिए कि वस्तु इतने दाम के योग्य है या नहीं. इसी प्रकार बोलने से पहले भी सोचना जरूर चाहिए.

समझदार को इशारा काफी है. समझदार आदमी हलके से इशारे से ही बात समझ लेता है.

समझने वाले की मौत है. 1.समझदार पर ही सब जिम्मेदारी आकर पड़ती है. 2. समझदार चुप नहीं रह पाता, और अगर वह अपनी राय जाहिर कर देता है, तो उसकी मुसीबत आ जाती है. सन्दर्भ कथा – एक बार अकबर बादशाह के दरबार में किसी अच्छे गवैये का गाना हो रहा था. उसे सुनकर सब अपना सिर हिला रहे थे. बादशाह ने बीरबल से पूछा, ये सब लोग गाना समझते हैं क्या? बीरबल ने उत्तर दिया, इसका पता अभी लगाए देता हूं. उन्होंने दरबारियों को संबोधित करके कहा कि आप लोगों का जहांपनाह के सामने इस तरह सिर हिलाना अच्छा नहीं मालूम देता. अब कोई ऐसी गुस्ताखी करेगा, तो उसका सिर कलम कर दिया जाएगा. इस पर सब संभलकर बैठ गए, और गाना चलता रहा. थोड़ी देर में एक बूढ़े दरबारी के मुंह से निकल पड़ा, हे भगवान समझदार की मौत है. बीरबल ने पूछा, क्यों भाई, क्या बात है? तब उस दरबारी ने जवाब दिया, क्या बताऊं, गाना सुनकर मैं सिर हिलाए बिना नहीं रह सकता और आपने उसके लिए मना कर दिया. तब बीरबल ने बादशाह से कहा कि जहांपनाह यही एक साहब हैं जो गाना समझते हैं. बाकी तो सब यों ही सिर हिला रहे हैं.

समझे न बूझे, खूँटा ले के जूझे. जबरदस्ती जिद करने वाले नासमझ आदमी के लिए.

समझे मीत, मीत के बैन. मित्र की बात को मित्र ही समझ सकता है.

समधियाने और पखाने के पास न बसे. पहले के लोग मानते थे कि शौचालय घर के अंदर या घर के पास नहीं होना चाहिए. इसी प्रकार लोगों का मानना है कि बेटे या बेटी की ससुराल घर के पास नहीं होनी चाहिए.

समधी चाहें दान दहेज़, लड़का चाहे जोय, सभी बराती चाहें केवल अच्छी खातिर होय. संसार में हर व्यक्ति को केवल अपना ही हित सूझता है.

समधी समरथ कीजिये, जब तब आवे काम. समर्थ लोगों से ही संबंध जोड़ना चाहिए, वे आड़े वक्त में काम आ सकते हैं. 

समय करे वह बैरी भी न करे. समय मनुष्य के साथ इतना बुरा कर सकता है जितना शत्रु भी नहीं कर सकता.

समय का भरोसा कोनी, कब पलटी मार जावे. (राजस्थानी कहावत) समय का कोई भरोसा नहीं, कब बदल जाए. 

समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता. सभी काम समय आने पर ही होते हैं, समय किसी के लिए रुकता भी नहीं है. इंग्लिश में कहावत है – Time and tide wait for none.

समय की फेरी, सास बहू की चेरी. समय बदल गया है. अब सास को बहू की गुलामी करनी पड़ती है.

समय के बाजे समय पर ही सुहाते हैं (समय समय की राग रागिनी, बेवक्त की शहनाई).  जो बाजे मांगलिक अवसरों पर अच्छे लगते हैं, वही दुख और चिंता के क्षणों में बहुत बुरे लगने लगते हैं. 

समय दसा कुल देखि के, सबै करत सनमान. व्यक्ति का सम्मान समय, दशा और कुल देख कर होता है.

समय धराए तीन नाम, परसा परसू परशुराम. परशुराम नाम का एक व्यक्ति जब बहुत गरीब था तो उसको लोग परसा कह कर बुलाते थे, जब उस पर कुछ पैसा हुआ तो उसे परसू कहने लगे और जब वह सम्पन्न हो गया तो परशुराम जी कहने लगे.

समय पड़े की बात, बाज पर झपटे बगुला. बाज का समय खराब होता है तब बगुला भी उस पर झपट लेता है.

समय परे ओछे बचन, सबके सहउ रहीम. रहीम कहते हैं कि यदि आपका समय खराब है तो सबके कड़वे वचन भी चुपचाप सुन लेना चाहिए. 

समय पाय तरूवर फले, केतिक सींचो नीर. कोई भी काम समय आने पर ही होता है उसके पहले चाहे कितना प्रयास करो. पेड़ को कितना भी सींचो वह फलेगा समय आने पर ही.

समय पाय फल होत है, समय पाय झरि जाय, सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछिताय. समय के अनुसार ही पेड़ पर फल लगता है और समय के अनुसार ही झड़ जाता है. सदा किसी का समय एक सा नहीं रहता इसलिए इसका दुख नहीं करना चाहिए.

समय बड़ा बलवान. समय व्यक्ति को कुछ का कुछ बना देता है.

समय बिताने के लिए करना है कुछ काम, शुरू करो अंताक्षरी ले कर हरि का नाम. अंताक्षरी शुरू करने से पहले बोलने वाली कहावत.

समय संपत्ति है. समय का सदुपयोग करने वाला ही धनवान बन सकता है.

समय सब घावों का मरहम है. समय सब घावों को भर देता है. इंग्लिश कहावत – Time is the great healer.

समय समय का बाना न्यारा. बाना – वेश, न्यारा – अलग. अवसर के अनुसार उचित वस्त्र पहनना चाहिए.

समय समय को देखिये, समय समय की बात, काहु समय में दिन बड़ा, काहु समय में रात. सब दिन एक से नहीं रहते. कभी सुख मिलता है कभी दुख.

समय समय सुन्दर सभी, रूप कुरूप न कोय. समय के अनुसार ही व्यक्ति सुंदर या असुन्दर होता है. कोई सदैव रूपवान या सदैव कुरूप नहीं होता.

समरथ कहं नहिं दोस गोसाईं, रबि, पावक, सुरसरि की नाई. किसी बलवान व्यक्ति को उसके कर्म के लिये दोषी नहीं कहा जाता है चाहे उस के कारण कितना ही कष्ट क्यों न हुआ हो. सूर्य के ताप से प्राणी व्याकुल हो जाते हैं, आग लगने से और नदी में बाढ़ आने से कितना नुकसान होता है, लेकिन इन का दोष कोई नहीं मानता.

समाचार मड़वा के पाये, जब लहकौरे बैंगन खाये. लहकौर-विवाह की रीति जिसमें वर कन्या एक दूसरे के मुँह में कौर देते हैं. लहकौर में बैंगन का साग आया तो पता चल गया कि लड़की वाले बरात का कैसा स्वागत करेंगे.

समुद्र और श्मशान किसी को इंकार नहीं करते. समुद्र में कितना भी कुछ डाल दो वह मना नहीं करता, इसी प्रकार श्मशान में कितनी भी अर्थियां आ जाएँ किसी को मना नहीं किया जाता.

समुद्र सूखेगा तो भी घुटनों तक पानी रहेगा. जहाँ बहुत बड़ा भंडार भरा हुआ है वहाँ कम भी होगा तो कितना.

समुद्र सोख को दरिया क्या. बहुत बड़े काम करने वाले के लिए छोटा काम क्या चीज़ है. जो समुद्र को सोख सकता है उसके लिए नदी क्या है.

सम्पत होय थोड़ी तो गाय रखो न कि घोड़ी. जिस के पास कम पैसा हो उस की समझदारी गाय पालने में है जिसमें खर्च कम और लाभ अधिक है. कम संपत्ति वाले को घोड़ी नहीं पालना चाहिए जिसमें अनाप शनाप खर्च है और उपयोगिता भी कम है. 

सम्पति और विपत्ति को दोनों सम कर राख, चार दिनां की चांदनी फिर अँधेरी पाख. अच्छे और बुरे दोनों समय में मन को स्थिर रखना चाहिए, सुख के कुछ दिनों के बाद दुख भी आता है. इस दोहे का बाद वाला हिस्सा कहावत के रूप में अत्यधिक प्रचलन में है.

सम्पत्ति के सब ही हितु, विपदा में सब दूर. मनुष्य के पास संपत्ति हो तो सब मित्र बन जाते हैं.

सम्मुख छींक लड़ाई भासैं, छींक पाछिली सुख अभिलासैं, छींक दाहिनी धन को नासैं, वाम छींक सुख सदा प्रकासैं. (बुन्देलखंडी कहावत) किसी के सामने छींक आ जाए तो लड़ाई होती है, पीठ पीछे छींक आए तो अच्छा शकुन मानते हैं, दाहिनी ओर कोई छींक दे तो धन का नाश होता है और कोई बायीं ओर छींके तो शुभ होता है.

सयाना आदमी लीक नहीं पीटता. लीक – कच्ची सड़क पर गाड़ियों के चलने से बने निशान. बुद्धिमान व्यक्ति बिना सोचे समझे पुरानी परम्पराओं पर नहीं चलता. सन्दर्भ कथा – किसी मंदिर में एक अंधा पुजारी पूजा किया करता था. वह दो रोटी बना कर भगवान् को भोग लगा देता और फिर उन रोटियों को स्वयं खा लिया करता. एक बार मंदिर में एक बिल्ली हिल गई और जैसे ही पुजारी भगवान की मूर्ति के आगे रोटियां रखकर हाथ जोड़ता, वैसे ही वह रोटियों को उठाकर भाग जाती. पुजारी भूखा रह जाता. तब उसने एक युक्ति निकाली. उसने लकड़ी की एक बड़ी खूँटी बनवाई और जब वह भोग लगाता तो उस खूँटी को राटियों में ठोंक देता, जिससे बिल्ली उन्हें नहीं लेजा पाती. सूरदास की मृत्यु के बाद उसका एक चेला पूजा करने लगा. वह अंधा नहीं था लेकिन गुरु की परिपाटी को निभाने के लिए वह भी रोटियों में खूँटी अवश्य ठोंकता. उसके बाद तीसरा पुजारी प्राया. वह कुछ समझदार था. उसने किसी वयोवृद्ध से खूँटी ठोंकने का रहस्य पूछा और सारी बात जानकर उसने रोटियों में खूँटी ठोंकना बंद कर दिया

सयाना कौआ विष्टा खाता है. जो धूर्त व्यक्ति अपने को ज्यादा बुद्धिमान समझता है वह अंत में हानि उठाता है. कौवे को धूर्त प्राणी माना गया है इसलिए उसका उदाहरण दिया गया है.

सयानी चली ससुराल और बावरी सीख दे. अपने से अधिक बुद्धि वाले को सीख देने की कोशिश करना. 

सयाने के सवाये, कमबख्त के दूने. सयाना व्यापारी कम मुनाफा लेता है और सफलता पूर्वक व्यापार करता है. मूर्ख व्यापारी दुगुना करने के चक्कर में धन गंवा देता है.

सयाने को जरा इशारा, मूरख को कोड़ा सारा. समझदार व्यक्ति थोड़े से इशारे से समझ जाता है और मूर्ख आदमी डांट फटकार से समझता है. रूपान्तर – अकलमन्द को इशारा, अहमक को फटकारा.

सर गंजा और दो जोड़ी कंघा. जिस वस्तु की बिल्कुल आवश्यकता न हो उस को अधिक मात्रा में रखना.

सर तोड़ मेहनत और मुँह तोड़ जवाब. कस कर मेहनत करने वाला किसी से नहीं डरता.

सर बड़ा सरदार का, पैर बड़ा गंवार का. एक आम विश्वास है कि बुद्धिमान व्यक्ति का सर बड़ा होता है और मूर्ख का पैर. किसी का पैर बड़ा हो तो मजाक में भी कहते हैं. रूपान्तर –  सर बड़ा सपूत का, पैर बड़ा कपूत का.

सर भले ही कट जाए, नाक नहीं कटनी चाहिए. जान भले ही चली जाए, इज्जत नहीं जानी चाहिए.

सर मुंडाते ही ओले पड़े. काम पूरा करते ही उससे सम्बंधित कोई ऐसी मुसीबत आ जाए जिससे नुकसान हो जाए.

सर मुंड़े उस रांड का जो खसम से पहले खाए. लोक मान्यता है कि स्त्री को पति को खिलाने बाद ही भोजन करना चाहिए. अगर वह पहले खा ले तो उसका सर मूंड देना चाहिए.  

सर सलामत तो पगड़ी हजार. जान बची रहेगी तो मान सम्मान बाद में भी कमा लेंगे.

सर सहलाएं भेजा खाएँ. थोड़ा प्रेम दिखा कर बहुत परेशान करने वालों के लिए.

सरक बुआ भतीजी आई. जहाँ छोटे लोग बड़ों की अवमानना करें.

सरकार के मुँह में गया पैसा और भैंस के मुंह में गया भूसा फिर नहीं लौटते. सरकार के यहां दिया गया पैसा तथा भैंस के मुंह में गया भूसा भला कैसे वापस आ सकता है.

सरकारी सांड. ऐसे सरकारी मुलाजिम जो काम कुछ न करें और लोगों पर रौब गांठते फिरें.

सरके तो सरकाइये, नहीं तो आप सरक जाइए. काम होता दिखे तो लगे रहिये, वरना चुपचाप निकल लीजिये.

सरनाम बनिया और बदनाम चोर. दोनों अच्छा पैसा कमाते हैं. नामी बनिया अच्छा पैसा कमाता है क्योंकि लोग उस के नाम से माल खरीदते हैं. बदनाम चोर पैसा कमाता है क्योंकि लोग उसके नाम से डरते हैं.

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है.  अमर क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा लिखी गई यह अमर रचना कहावत की भाँति आज भी जन जन की जबान पर है. उन्होंने अंग्रेज सरकार के खिलाफ यह बात कही थी, लेकिन अब कहीं भी अत्याचार के खिलाफ लोग ऐसा बोलते हैं.

सरम की बांधी सात घर करे (सरम की मां गोड़ा रगड़े). शर्म की बँधी सात घर करती है. मजबूरी के कारण व्यक्ति को छोटे छोटे काम या गलत काम भी करने पड़ते हैं.  

सरम के आंसू निकल गये. किसी के अत्यधिक बेशरम बन जाने पर कहते हैं कि इसे देख कर शर्म भी रो दी.

सरमदार अपनी सरम से मरा, बेसरम ने कही मुझ से डरा. शर्मंदार ने तो दूसरे का लिहाज किया, परन्तु बेशर्म ने समझा कि यह मुझसे डर गया.

सराय का कुत्ता, हर मुसाफिर का यार. जो लोग अपने स्वार्थ के लिए सब से दोस्ती गाँठ लेते हैं उन के लिए.

सराहल धिया डोम घरे जाय. (भोजपुरी कहावत) ज्यादा प्रशंसा करने से बेटी बिगड़ सकती है और उसे अपने भले बुरे का ज्ञान नहीं रहता. ऐसी बहुत सी लड़कियां आजकल लव जिहाद का शिकार हो रही हैं.

सरिता, कूप, तड़ाग नृप, जे कम कभी न देत, करम कुम्भ जाको जितै, सो उतना भर लेत. नदी, कुआं, तालाब और राजा, ये देने में कंजूसी नहीं करते. जिसका कर्म व भाग्य रूपी घड़ा जितना बड़ा है वह उतना भर लेता है. 

सर्दियों का सवेरा, गर्मियों की दोपहर और चौमासे की रात. ये सभी कष्टप्रद होने के कारण लंबे महसूस होते हैं.

सर्दी भोगी की और गर्मी योगी की. भोगी के लिए जाड़े अधिक उपयुक्त रहते हैं और योगी के लिए गर्मी का मौसम. जब तक एयर कंडिशनर का आविष्कार नहीं हुआ था, धनी और भोगी लोग गर्मी में परेशान रहते थे.

सर्मीलो मांगे नहीं, गर्वीलो देय नहीं. जिसे आत्म सम्मान प्यारा है वह किसी से कुछ मांगता नहीं और जिसे अपनी सम्पन्नता पर अभिमान है वह बिना मांगे (बिना नीचा दिखाए) किसी को कुछ देता नहीं.

सर्राफ की थैली में खोटा खरा एक. सर्राफ की थैली से निकली हर चीज़ को लोग असली समझ कर विश्वास कर लेते हैं (सर्राफ इस का गलत फायदा भी उठाते हैं).

सलाम के लिए मियाँ को क्यूँ नाराज करो. अगर मियाँ सलाम करने से खुश होता है तो कर लो, इतनी छोटी सी बात के लिए किसी से क्यूँ बिगाड़ो. (कहावत मुग़लकाल की है जब हिन्दुओं को मुसलामानों से दबना पड़ता था).

सवाल दीगर, जवाब दीगर. सवाल कुछ और, जवाब कुछ और.

सवेरे का टहलना, दिन भर की खुशी. सुबह उठ कर टहलने से व्यक्ति दिन भर प्रसन्नचित्त रहता है.

ससुर के प्राण जाए, पतोहू करे काजर. दूसरे के कष्ट को न समझ कर अपने स्वार्थ में लगे रहना. ससुर के प्राण जा रहे हैं और पुत्रवधू साज सिंगार करने में व्यस्त है.

ससुर को पड़ी हल बैल की, बहू की पड़ी नोन तेल की. सब को अपने अपने काम की चिंता होती है.

ससुर जेठ का डर नहीं, जिससे डरे वो घर नहीं. किसी अनुशासनहीन स्त्री के लोकविरुद्ध आचरण पर व्यंग्य. 

ससुर पकड़े साड़ी, तो बहू क्यों छोड़े दाढ़ी. ससुर अगर मर्यादा का उल्लंघन कर के बहू की साड़ी पकड़े तो बहू को भी दाढ़ी पकड़ के उस की पिटाई करने का पूरा हक है.

ससुरार पियारि लगी जब से, रिपु रूप कुटुम्ब भयो तब से. रिपु रूप – दुश्मन जैसा. जो लोग ससुराल के भक्त हो जाते हैं उन्हें अपना परिवार दुश्मन लगने लगता है.

ससुरार सुख की सार, जो रहे दिन दो चार. जो रहे दिन दस बारा, हाथ में खुरपी बगल में चारा. ससुराल बड़े सुख की जगह है अगर वहाँ दो चार दिन रहो तो. अगर ज्यादा दिन रहोगे तो काम पकड़ा दिया जाएगा (खुरपी लो और चारा काट कर लाओ).

ससुराल का वास, कुल का नाश. कोई व्यक्ति ससुराल में रहता है तो उस के कुल की मर्यादाओं का सत्यानाश हो जाता है (क्योंकि हर कुल की परम्पराएं अलग अलग होती हैं). 

ससुराल जाने वाली, छिनाल नहीं कहलाती. कोई मनचले स्वभाव की लड़की जब ससुराल चली जाती है और वहाँ रम जाती है तो लोग उसके पूर्व के चरित्र पर ऊँगली नहीं उठाते.

ससुराल बसे दोनहुँ कुल नास. कोई पुरुष अगर अपनी ससुराल में रहता है तो उस के पिता और श्वसुर दोनों के कुल का नाश होता है.

ससुराल में रहना, गधे पर चढ़ना. ससुराल में रहने पर उतनी ही बेईज्ज़ती होती है जितनी गधे पर चढने से.

ससुराल में सुहाय नहीं, पीहर में समाय नहीं. बहुत सी स्त्रियों को ससुराल में अच्छा नहीं लगता, लेकिन मायके में भी उन के लिए स्थान नहीं है.

ससुराल में सौ बंधन. स्त्रियों को तो ससुराल में तरह तरह के बंधन होते ही हैं, जो पुरुष ससुराल में रहते हैं वे भी आजादी से नहीं रह सकते.

सस्ता ऊँट, महंगा पट्टा. ऊँट तो सस्ता है पर उसका पट्टा महंगा है. किसी वस्तु का रखरखाव वस्तु की कीमत से अधिक महंगा हो तो.

सस्ता माल और बहता पानी. इनका कोई भरोसा नहीं. (आज के जमाने में चाइनीज़ माल).

सस्ता माल पाऊँ, तो नौ मन तुलवाऊँ. सस्ते के चक्कर में अनावश्यक खरीदारी करने वालों पर व्यंग्य.

सस्ता रोवे बार बार, मंहगा रोवे एक बार. कोई अच्छी चीज़ थोड़ी महंगी मिले तो खरीदते समय एक बार कष्ट होता है लेकिन सस्ते के चक्कर में घटिया माल उठा लाए तो बार बार रोना पड़ता है.

सस्ती भेड़ की पूँछ, सब उठा उठा देखें (सस्ती भैंस की पूँछ उठा कर देखी जाए). सस्ते माल की कोई कद्र नहीं करता और सब को यह डर भी होता है कि कहीं यह घटिया न हो.

सहज पके सो मीठा (धीमा पके सो मीठा होए). इत्मीनान से किया गया काम अच्छा होता है.

सहरी खाए सो रोजा रक्खे. जो किसी काम में होने वाला लाभ उठाए उसे उस काम में होने वाले कष्ट भी झेलने चाहिए. रमजान के दिनों में रोज़ा रखने वालों को सहरी (सुबह के खाने) में बढ़िया माल खाने को मिलते हैं. जो लोग रोज़ा नहीं रखते वे भी माल खाने की जुगत में रहते हैं. सहरी का माल दूसरे लोग खा गए और रोज़ा रखने को किसी दूसरे से कहा जा रहा है, तो वह यह बात कहता है. सन्दर्भ कथा – रोज़े के दिनों में मुसलमान सूर्योदय के पहले ही खूब जम कर खाना खा लेते हैं. फिर दिन भर कुछ नहीं खाते पीते. शाम को इफ्तार होने पर ही कुछ खाते हैं. सुबह का वह भोजन सहरी कहलाता है. एक मियां के पास एक कुत्ता था. एक दिन उस कुत्ते ने उनकी सहरी खा डाली. इस पर मियां ने नाराज़ होकर उसे एक खंभे से बांध दिया और कहा कि बस अब आज मेरे बदले यह कुत्ता ही रोज़ा रखेगा, क्योंकि इसने ही सहरी खाई है. इस प्रकार मियां ने अपने को रोज़ा रखने की मुसीबत से बचा लिया

सहरी भी न खाऊं तो काफिर न हो जाऊं. जो लोग रोज़ा रखना नहीं चाहते लेकिन सहरी खाने की जुगाड़ में रहते हैं उनका तर्क. सन्दर्भ कथा – एक समय बहुत से मुलमान इकट्ठे होकर सहरी खा रहे थे. उनमें एक मुसलमान ऐसा भी था, जो रोज़ा नहीं रखे हुए था. उसे अपनी पंक्ति में देखकर सबके सब कह उठे कि तुम क्यों सहरी खा रहे हो? तुम क्या रोजा रख रहे हो? इस पर उसने जवाब दिया, मैं तो नमाज भी नहीं पढ़ता, न ही रोज़ा रखता हूं, अब अगर सहरी भी न खाऊं तो काफिर नहीं हो जाऊंगा?

सहस डुबकियां मैं लई मोती कर नहिं लाग, सागर को क्या दोष है जो नहिं मेरे भाग. मैंने हजार डुबकियाँ लगाएँ लेकिन एक भी मोती हाथ नहीं आया. मेरे भाग्य में नहीं है तो मैं सागर को क्यों दोष दूँ.

सहसा करि पछताएं विमूढ़ा. नासमझ लोग जल्दबाजी में गलत काम कर बैठते हैं और फिर पछताते हैं.

सहस्त्र गोपी एक कन्हैया. जहाँ एक व्यक्ति के चाहने वाले बहुत से लोग हों.

सही गए, सलामत आए. किसी काम में असफल होकर लौटने वाले पर व्यंग्य.

सही सवेरे सूम का नाम लो तो रोटी नहीं मिलती. पुराना विश्वास है कि यदि सुबह सुबह कंजूस का नाम ले लोगों तो उस दिन रोटी नहीं मिलती.

साँई ते सब होते है, बन्दे से कुछ नाहिं, राई से पर्वत करे, पर्वत राई माहिं. सब कार्य ईश्वर के करने से ही होते हैं, मनुष्य के करने से कुछ नहीं होता. ईश्वर चाहे तो राई को पर्वत बना दे और पर्वत को राई.

साँच कहा माने नहीं, झूठ से जग पतियाये. इस संसार में सच्ची बात को कोई नहीं मानता, सब झूठे लोगों का ही विश्वास करते हैं. रूपान्तर – साँच कहे जग मारन जाय, झूठे जग पतियाय.

साँचे तो फाके करें, लाबर लड्डू खायें. लाबर – झूठे. सच बोलने वाले भूखे मरते हैं, झूठे मौज उड़ाते हैं. 

साँप के बच्चे सपोले ही कहलाएगें (सांप के सांपै होत). 1. व्यक्ति में अपने वंश के गुण अवश्य आते हैं. नीच व्यक्ति की संतानें नीच ही होती हैं. 2. व्यक्ति कुछ भी बन जाए वंश का नाम उस का पीछा नहीं छोड़ता.

साँप को दूध पिलाओगे तो भी जहर ही उगलेगा. दुष्ट व्यक्ति की सहायता करोगे तो भी वह आपको नुकसान ही पहुंचाएगा. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – साँप को दूध पिलाने से विष बढ़ता है.

साँप निकल गया लकीर पीटते रहो. नुकसान होने के बाद बेकार की जांच पड़ताल करने से क्या लाभ.

साँप मरे न लाठी टूटे. (साँप भी मरे लाठी भी न टूटे). अपना काम भी हो जाए और कुछ गंवाना भी न पड़े.

साँप सर पे बूटी पहाड़ पे. सांप तो सर पे है लेकिन सांप का विष उतारने की बूटी दूर पहाड़ी पर है. खतरा सर पर मंडरा रहा हो और उस से बचने का उपाय पास न हो तो.

साँपों की सभा में जीभों की लपालप. जहाँ दुष्ट लोगों का जमावड़ा होगा वहाँ सब जहरीली बोली ही बोलेंगे.

सांई अपने चित्त की भूल न कहिये कोय, तबलगि मन में राखिये जब लगि काम न होय. जब तक काम न हो जाए तब तक किसी को अपनी कार्य योजना और आशंकाओं के विषय में नहीं बतानी चाहिए.

सांई अवसर के पड़े को न सहे दुख द्वंद, जाए बिकाने डोम घर राजा श्री हरिश्चन्द्र. कठिन समय आता है तब बड़े लोगों को भी दुख झेलने पड़ते हैं. राजा हरिश्चन्द्र पर जब दुख आया तो उन्हें डोम के हाथों बिकना पड़ा था.

सांई इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय, मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय. हे ईश्वर मुझे इतना दीजिए जिसमें मेरे परिवार का पालन भी हो जाए और कोई याचक मेरे द्वार से भूखा न जाए.

सांई ऐसे पुत्र से बाँझ रहे बरु नारि, बिगरौ बेटो बाप से जाय रहे ससुरारि. जो बेटा बाप से बिगड़ कर ससुराल जा कर रहने लगे ऐसा बेटा होने के मुकाबले तो स्त्री बाँझ रहे वह ज्यादा अच्छा.

सांई का घर दूर है जैसे पेड़ खजूर, चढ़े तो चाखे प्रेम रस गिरे तो चकनाचूर. ईश्वर का घर दूर भी है और वहाँ जाने के प्रयास में खतरे भी हैं, जैसे खजूर के पेड़ पर चढ़ पाए तो मीठे खजूर चखने को मिलेंगे और गिर गए तो हड्डियाँ चूर हो जाएँगी.

सांई का रख आसरा वाही का ले नाम, दोउ जग भरपूर हों तेरे सगरे काम. ईश्वर का आसरा रखने पर लोक परलोक के सारे काम सही हो जाते हैं.

सांई के सब खेल हैं. दुनिया के सारे कार्य ईश्वर के खेल मात्र हैं.  

सांई घोड़े मर गए गदहन आयो राज, काग हाथ पै लेत हैं दूर कियो है बाज. निकम्मे या दुष्ट राजा के लिए – घोड़े मर गए हैं और गधों का राज आ गया है जिन्होंने बाज को हटा कर कौवे को हाथ पर बिठाया हुआ है.

सांई या संसार में भांत भांत के लोग, सब से मिलकर बैठिये नदी नाव संयोग. संसार में तरह तरह के लोग हैं और हमें बहुत कम समय ही रहना है इसलिए सबसे मिलाकर रखना चाहिए.

सांई या संसार में मतलब को व्यवहार, जब लग पैसा गाँठ में तब लग ताको यार. संसार में सब अपना स्वार्थ देखते हैं, जब तक आपके पास धन है तभी तक आपसे दोस्ती करते हैं.

सांच कहे तो साथ छुटे. सच बोलने से साथ छूटने का डर रहता है.

सांच को आँच नहीं. सत्य बात अंततः सिद्ध हो ही जाती है. सन्दर्भ कथा – किसी नगर में एक जुलाहा रहता था. वह बहुत बढ़िया कम्बल तैयार करता था. उसका धंधा सच्चा था. एक दिन उसने एक साहूकार को दो कम्बल दिए. साहूकार ने दो दिन बाद उनका पैसा ले जाने को कहा. दो दिन बाद जब जुलाहा अपना पैसा लेने आया तो साहूकार ने कहा, मेरे यहां आग लग गई और उसमें दोनों कम्बल जल गए, अब मैं पैसे क्यों दूं? जुलाहा बोला, यह नहीं हो सकता मेरा धंधा सच्चाई पर चलता है. असली कम्बल में कभी आग नहीं लग सकती. जुलाहे के कंधे पर एक कम्बल पड़ा था उसे सामने करते हुए उसने कहा, यह लो, लगाओ इसमें आग. साहूकार ने कम्बल को जलाने कि काफी कोशिश की लेकिन कम्बल नहीं जला. तब जुलाहे ने कहा, याद रखो सांच को आंच नहीं. (कहानी में यह माना गया है कि असली कम्बल आग नहीं पकड़ता)

सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप, जाके हिरदै सांच है, ताके हिरदै आप. सच बोलने में बहुत से कष्ट झेलने पड़ते हैं इसलिए सच बोलना एक तपस्या है. झूठ के बराबर कोई पाप नहीं है. जो सच बोलता है उस के हृदय में स्वयं भगवान निवास करते हैं. (कहीं कहीं पर झूठ बराबर ताप भी लिखा मिलता है जिसका अर्थ है कि झूठ बोलने में भी मनुष्य को मानसिक संताप होता है). आजकल इसके उलट एक कहावत कही जाती है – झूठ बराबर तप नहीं, सांच बराबर ताप, जाके हिरदै सांच है, बैठा बैठा टाप.

सांची कहे, खुश रहे. सच बोलो तभी मन प्रसन्न होता है.

सांची कहें तो मौसी का काजल. सच बात कहने से कोई तिनक उठे तब. सन्दर्भ कथा – एक सज्जन बड़े मुँहफट और स्पष्टवादी थे. इस कारण उनका नाम ‘साँचेरैया’ पड़ गया था. एक बार वह अपनी मौसी के यहाँ गये. धीरे से दरवाजा खोल कर भीतर पहुँचे तो देखा कि मौसी बड़ी ठसक से श्रृंगार कर रही हैं और वहीं मौसा भी खड़ें हैं. वे उल्टे पैरों बाहर लौट आये और चुपचाप दरवाजे पर बैठ गये. थोड़ी देर बाद मौसी बाहर निकली तो उन्हें बैठा देख कर पूछा, अरे, तू कब आया? साँचेरैया ने तुरंत उत्तर दिया, जब तुम काजल लगा रही थीं और मौसा खड़े हँस रहे थे. सुनते ही मौसी आग बबूला हो गयी और – अरे तेरो सत्यानास जाए, मौसी से हँसी करता है, कह कर उसे मारने दौड़ी. साँचेरैया वहाँ से भाग निकले. इसके पश्चात सच बोलने के कारण जब कभी कोई विपत्ति आती है तो वे यही कहते हैं कि सांची कहें तो मौसी का काजल.   

सांचे का रंग रूखा. सच्चा व्यक्ति अक्सर रूखा होता है.

सांचे गुरु का चेला, मरे न मारा जाय. सच्चे गुरु के शिष्य को कोई विपत्ति नहीं आती. 

सांचे रांचे राम. सत्य में ही राम बसते हैं.

सांझ जाये भोर आये, कैसे न छिनार कहाये. जो स्त्री शाम को कहीं जाए और सवेरे घर लौट कर आये उसे चरित्रहीन ही माना जाएगा.

सांझे धनुष सकारे मोर, ये दोनों पानी के बोर. सकारे – सुबह को. शाम को इन्द्रधनुष दिखाई दे और सुबह को मोर, तो वर्षा अवश्य होगी.

सांटे की सगाई और ब्याज के रूपये का अहसान क्या. सांटे की सगाई – अदला बदली वाली शादी (जहाँ अपनी बेटी दूसरे घर में शादी हो कर जाए और उस घर की बेटी अपने घर में आए). ऐसी शादी में किसी का किसी पर अहसान नहीं होता. इसी प्रकार उधार लिए धन का ब्याज अदा करने पर भी कोई एहसान नहीं माना जाता.

सांड़ों की लड़ाई में बाड़ का नुकसान (लड़ें सांड बाड़ी का भुरकस). घर के दो लोग आपस में लड़ते हैं तो घर का ही नुकसान होता है. कहीं कहीं बोलते हैं – सांड़ों की लड़ाई में बछड़े का भुरकस.

सांड़ों से हल नहीं चलते. मुफ्तखोर और अनुशासनहीन लोगों से काम नहीं लिया जा सकता.

सांप और चोर की धाक बड़ी होती है. इन से सभी डरते हैं.

सांप का काटा बच सकता है पर इंसान का काटा नहीं. सांप के काटे का इलाज संभव है पर इंसान के धोखे और विश्वासघात का नहीं. 

सांप का काटा बिच्छू से क्यों डरे. जो बड़ी बड़ी मुसीबतें झेल चूका हो वह छोटी मुसीबतों से क्यों डरेगा.

सांप का डसा रस्सी से भी डरता है. अर्थ स्पष्ट है (दूध का जला छाछ भी फूँक फूँक कर पीता है).

सांप का दांव नेवला जाने. सांप के दांव को इंसान नहीं समझ सकता, नेवला ही समझ सकता है. 

सांप का मंतर खाट की बानि, अनका लाभ आपनी हानि. अनका–दूसरों का. सांप का मन्त्र जानने वाले को समय असमय सांप का जहर उतारने यहाँ वहाँ जाना पड़ता है, जिसमें उसका समय खराब होता है. खाट बुनने वाले को बेगारी में लोगों की खाटें बुनने जाना पड़ता है, जिसमें उसका समय खराब होता है और उंगलियाँ छिल जाती हैं.

सांप काटना छोड़ दे पर फुफकारना न छोड़े. दुष्ट अपनी दुष्टता को पूर्णतया नहीं छोड़ सकता.

सांप की क्या मौसी, सुनार की क्या साख. साँपों में कोई किसी का रिश्तेदार नहीं होता, सब एक दूसरे को खा जाने को तैयार रहते हैं. इसी तरह सुनार की कोई साख नहीं होती कि फलां सुनार बड़ा ईमानदार है.

सांप की तो भाप भी बुरी. दुष्ट आदमी से जितना दूर रहो उतना अच्छा.

सांप के घर पावने, फन से फन मिलावने. (बुन्देलखंडी कहावत) पावने – पाहुने, अतिथि. 1. जहाँ मेजबान और मेहमान एक से बढ़ कर एक हों. 2. दुष्ट लोगों के ख़ुशी प्रकट करने के तरीके भी निराले होते हैं.

सांप के डसे को इतवार कब आवे. सांप ने आज काटा है और झाड़ने वाला कह रहा है कि जहर इतवार को ही उतारा जाता है.

सांप के पैर सांप को ही दिखाई देते हैं (सांप के पाँव पेट में होते हैं). दुष्ट व्यक्ति के पास क्या क्या शक्तियाँ व सामर्थ्य हैं यह वही जानता है.

सांप के फन से देह खुजाएँ. जानबूझ कर अनर्थ करने वाले के लिए.

सांप के संपोले का क्या छोटा और क्या बड़ा. सांप के बच्चे सभी जहरीले होते हैं, चाहे छोटा हो या बड़ा.

सांप को सांप भाई जान कहोगे तब भी काटेगा. आप कितनी भी नम्रता और आदर से बोलिए, दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता.

सांप चलती हुई मौत है. अर्थ स्पष्ट है.

सांप डँसे और बोले, मेरे ऊपर मत गिरना. दुष्ट व्यक्ति सबको नुकसान पहुँचाता है और यह भी कहता जाता है कि मुझे कोई हानि मत पहुँचाना.

सांप निकल गया लकीर रह गई. 1. किसी परंपरा के लुप्त होने के बाद भी रूढ़ियों का बंधन रह जाता है. 2. डर मिटने के बाद भी आशंका नहीं मिटती.

सांप मार के संपोला न पालो. शत्रु को समाप्त करने के बाद उस के उत्तराधिकारी पर दया दिखाने की भूल नहीं करना चाहिए. वह कभी भी बदला लेने की कार्यवाही कर सकता है.

सांप लहरा के बिल में घुसे, तो बारह जगह से छिले. सांप बाहर लहरा के चलता है पर बांबी में सीधा घुसता है. दुष्ट व्यक्ति अपने घर में दुष्टता नहीं दिखाता, यदि दिखाएगा तो नुकसान उठाएगा.

सांपों के डर गोगा पूजे (सांप नहीं होते तो गोगा जी को कौन पूछता). राजस्थान में गोगा देव को साँपों का देवता मान कर पूजा जाता है. दुष्टों से बचने के लिए कभी कभी अवांछित लोगों की भी शरण लेनी पडती है.

सांबा खेती अहीर मीत, कभी कभी ही होवें हीत. सांबा एक प्रकार का घटिया अनाज होता है जिसकी खेती लाभदायक नहीं होती. इसी प्रकार अहीर से मित्रता करने से भी कोई लाभ नहीं होता. हीत – हितकर.

सांभर जाय, अलोना खाय (सांभर में नोन का टोटा). अलोना – बिना नमक का. जहां जिस चीज़ की बहुतायत होनी चाहिए वहाँ उस चीज़ का अभाव. सांभर झील के पानी में नमक बहुत है इसलिए उससे नमक बनाते हैं.

सांभर पड़ा सो लून. सांभर झील में जो कुछ डालो वह गल कर नमक बन जाता है. किसी दूसरे समाज के साथ रहने वाला व्यक्ति अपनी पहचान खो कर उनके जैसा ही बन जाता है.

सांस बटाऊ पाहुना, आये या न आए. सांस एक राहगीर और अतिथि के समान है जिसका कोई भरोसा नहीं होता कि वह आएगा या नहीं आएगा.

साइत से सुतार भलो. किसी काम का मुहूर्त्त देखने की अपेक्षा उसका ठीक से प्रबंध करना अच्छा.

साईसों का अकाल और मुंशियों की बहुतायत. विशेष कामों में माहिर लोगों की कमी और पढ़े लिखे बेरोजगारों की बहुतायत. साईस – घोड़ों की देखभाल करने वाला. आजकल भी कुछ ऐसा ही माहौल है.

साख के हिसाब से उधार. बाज़ार में आदमी की जैसी साख होती है उसे वैसा ही उधार मिलता है.

साख लाख से अच्छी. लाखों रूपये पास हों लेकिन प्रतिष्ठा न हो तो बेकार है.

साग अच्छा तोरी का, गुड़ अच्छा चोरी का, राग अच्छा होरी का. अर्थ स्पष्ट है. होरी – होली के गीत.

सागर में पानी बरसे, मरुभूमि बूँद को तरसे. जिस के पास धन और साधनों की बहुतायत है उसी के पास और धन इकठ्ठा होता जाता है, निर्धन बेचारा तरसता रहता है.

साझा उधार दोऊ अशुभ, घर अंधियारी लाय. साझे का काम और उधार लेना या देना अशुभ काम हैं. इन से घर में अंधियारा आता है. 

साझा जोरू, खसम ही का भला. पत्नी साझे की होगी तो किसी की जिम्मेदारी नहीं होगी.

साझा तो भगवान का भी बुरा. साझा किसी से भी नहीं करना चाहिए, भगवान से भी नहीं.  

साझा तो सिर्फ अपना ही भला. अपने अलावा किसी से साझा नहीं करना चाहिए. सुनने में बात अटपटी लगती है, लेकिन यह भी संभव है. एक ही व्यक्ति अलग अलग नामों से प्रतिष्ठान बना कर साझेदारी कर सकता है. 

साझा निभे न बाप का. साझा कभी नहीं निभता (चाहे पिता और पुत्र के बीच क्यों न हो).

साझा बाप न रोए कोई. जिस बाप के कई बेटे हों (साझे का बाप) उनमें कोई बाप के मरने पर दुखी नहीं होता. सब इसी उधेड़बुन में रहते हैं कि सम्पत्ति का बंटवारा कैसे हो. बाप की सेवा को सब एक दूसरे पर टालते हैं.

साझे की खेती गदहे खाएं. साझे की खेती में कोई रखवाली नहीं करता इसलिए छुट्टे जानवर खेत खा जाते हैं.

साझे की तो होली ही अच्छी होती है (साझे की होली सबसे भली). साझे का कोई काम अच्छा नहीं होता, केवल होली ही साझे की (सब मिल कर जलाएं तो) अच्छी होती है. 

साझे की नाव, पार नहीं उतारती. साझे का काम किसी भी संकट से बाहर नहीं निकालता.

साझे की माँ गंगा न पावे. साझे के काम में सब एक दूसरे पर काम टालते रहते हैं इसलिए काम नहीं होता. जिस माँ के कई बेटे हैं उसे मरने के बाद कोई भी बेटा गंगा नहीं पहुंचाता. इंग्लिश में कहावत है – Everybody’s business is nobody’s business.

साझे की सुई भी ठेले पर लदती है. साझे के काम में आदमी को पैसे का दर्द नहीं होता इसलिए फिजूलखर्ची बहुत होती है.

साझे की हांडी चौराहे पर फूटी. साझे का काम फेल होता है और जग हंसाई भी होती है.

साझे के देव को भोग नहीं मिलता. किसी भी काम की जिम्मेदारी बहुत से लोगों पर डाल दी जाए तो वह काम नहीं होता (चाहे देवता को भोग लगाने का काम ही क्यों न हो).

साझे के बाप को खाएँ सियार. कई बेटे होते हैं तो बाप का क्रिया कर्म भी ठीक से नहीं होता.

साझे में व्यापार करेगा तो संन्यासी बनेगा. साझे के काम में घाटा होना निश्चित है.

साठ सास ननद हों सौ, माँ से होड़ न इनकी हो. साठ सासें और सौ ननदें मिल कर भी माँ की बराबरी नहीं कर सकतीं.

साठा सो पाठा. साठ वर्ष की आयु में आ कर आदमी परिपक्व हो जाता है.

साठी बुद्धि नाठी. साठ साल का होने पर बुद्धि नष्ट हो जाती है. ऊपर वाली कहावत से उलट.

सात घर की कुतिया. जगह जगह मुँह मारने वालों के लिए.

सात पूतों से न अघाए, कानी धिया देख जले. अपने सात पुत्रों से तृप्त नहीं हो रही है, पड़ोसन की कानी लड़की को देख कर ईर्ष्या कर रही है. अपनी सम्पन्नता न देख कर दूसरे की छोटी सी चीज़ से ईर्ष्या करना.

सात बैद रोगी को मारें. बहुत सारे वैद्यों से इलाज कराने वाला मरीज कभी ठीक नहीं होता.

सात मामा का भांजा, भूखा ही सो जाए. एक लड़का ननसाल गया. उसके सात मामा थे. वह एक-एक करके सब के घर गया. सातों मामा यह सोचते रहे कि वह दूसरे के घर से खाना खाकर आया होगा इसलिए किसी ने उससे खाने के लिए नहीं पूछा. अंततः उस बेचारे को भूखा ही सोना पड़ा. जब एक काम की जिम्मेदारी बहुत सारे लोगों को दे दी जाती है तो वह काम नहीं हो पाता.

सात हाथ हाथी से रहिए, पांच हाथ सिंगहारे से, बीस हाथ नारी से रहिए, तीस हाथ मतवारे से. हाथी से सात हाथ दूर, सींग वाले जानवर से पांच हाथ, स्त्री से बीस हाथ और पागल या नशेड़ी से तीस हाथ दूर रहना चाहिए.

सातवें आसमान पे धोती सुखाएं. जब कोई आदमी बेहद घमंड में रहता है तो यह कहावत कही जाती है.

सातों माँगी घाघरी घर डूबा डूबा, सातों काती पूनरी घर ऊबा ऊबा. एक आदमी की सात बहुएँ थीं. सातों ने घाघरी मांगी (खर्च करवाया) तो घर डूब गया और सातों ने छोटा छोटा काम किया (सूत काता) तो घर उबर गया.

साथ छोड़ मत मीत का राह भीर के बीच, एक अकेले मनुख को सूझे ऊंच न नीच. भीड़ के बीच मित्र का साथ नहीं छोड़ना चाहिए, अकेले इंसान को सही और गलत की पहचान नहीं हो पाती. मीत के स्थान पर कुछ लोग साथ छोड़ मत टोल का भी कहते हैं. टोल – टोली, समूह.

साथ भी सोवे और मुंह भी छिपावे. जिस के साथ गलत काम कर रहे हो उस से क्या मुँह छिपाना.

साथ सोई, बात खोई. किसी परपुरुष के साथ सोने से स्त्री का सम्मान खत्म हो जाता है.

सादा जीवन, उच्च विचार. स्पष्ट. इंग्लिश में कहावत है – To be simple is to be great.

साध से सिद्धि नहीं मिलती. केवल चाहने भर से सिद्धि नहीं मिल जाती. इसके लिए साधना करनी पड़ती है.

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहे, थोथा देइ उड़ाय. साधु (सज्जन पुरुष) सार्थक बात को ग्रहण करते हैं और निरर्थक बातों पर ध्यान नहीं देते (जिस प्रकार सूप अनाज को रोक कर भूसी को उड़ा देता है). (देखिये परिशिष्ट) 

साधु का बेटा सवादू. चरित्रवान पिता का पुत्र लम्पट हो तो. सवादू – स्वाद लेने वाला.

साधु को दासी, चोर को खांसी, प्रेम विनास हांसी, उसकी बुध्दि विनासी, खाय जो रोटी बासी. दासी से साधु का विनाश होता है (साधु उस के मोह में फंस कर पतित हो जाता है), खांसी से चोर का (खांसने पर चोर पकड़ा जाता है), किसी की हंसी उड़ाने से प्रेम का विनाश होता है और बासी रोटी खाने से बुद्धि का.

साधु को स्वाद से क्या, गुड़ नहीं बताशा ही सही. आजकल के धूर्त साधुओं पर व्यंग्य. देखिए सन्दर्भ कथा 186.

साधु भूखा भाव का धन का भूखा नाहिं, (धन का भूखा जो फिरै सो तो साधु नाहिं)  साधु का मन  भाव का भूखा होता है, वह धन का लोभी नहीं होता. जो धन का लोभी है वह तो साधु नहीं हो सकता.

साधु मिलन अरु हरि भजन, दया धरम उपकार, तुलसी या संसार में पांच रतन हैं सार. अर्थ स्पष्ट है.

साधु संत दें जिन्हें असीस, सुखी रहें वे बिस्वे बीस. साधु संत जिन्हें आशीर्वाद देते हैं वे सदा सुखी रहते हैं. यहाँ साधु से अर्थ असली साधु से है, गेरुए वस्त्र पहन कर भीख मांगने वालों से नहीं. बिस्वे बीस-देखिए परिशिष्ट.

साधुन पीई संतन पीई पीई कुंवर कन्हाई, जो विजया की निंदा करें उन्हें खाय कालिका माई. विजया माने भांग. भांग पीने वाले इस तरह भांग की बड़ाई करते हैं.

साधु पुरुष देखी कहैं, सुनी कहैं नहि कोय. साधु पुरुष सुनी हुई बात नहीं कहते, देखी हुई को ही मानते हैं.

साधू जन रमते भले, दाग लगे न कोय. साधु को कहीं ठहरना नहीं चाहिए, ठहरने से उस पर कलंक लगने का डर रहता है.

साधू निकरे सैर को दोइ दीन की खैर, ना काऊ से दोस्ती, ना काऊ से बैर. भीख मांगते समय साधू कहते हैं. आम तौर पर इसका बाद वाला भाग बोला जाता है.

साने सदा स्नेह में, जीभ न चकनी होय. लगातार घी लगाओ तब भी जीभ चिकनी नहीं होती. ओछे व्यक्ति को कितना भी स्नेह दो वह कृतज्ञ नहीं होता. स्नेह – प्रेम, स्नेह – चिकनाई (घी, तेल)

साबित कदम को सब जगह ठाँव. परिश्रमी और ईमानदार व्यक्ति का स्वागत सब लोग करते हैं.

साबित नहीं कान, बालियों (झुमके) का अरमान. किसी वस्तु के योग्य न होने पर भी उसकी इच्छा करना.

साम दाम दंड भेद. किसी चीज़ को पाने के लिए उचित अनुचित सब प्रकार की तिकड़म करना. इंग्लिश में कहावत है – By hook or by crook.

सामने पड़ जाए काना, तो बैकुंठ भी नहीं जाना. एक जमाने में ऐसा माना जाता था कि यदि आप कहीं जा रहे हों और काना व्यक्ति दिख जाए, तो भारी अपशकुन होता है. 

सामने सांप और पीछे बाघ. विकट परिस्थिति, जहाँ दोनों ओर एक से बढ़ कर एक संकट हों.

सार पराई पीर की क्या जाने बेपीर. जो कष्ट किसी ने स्वयं न झेला हो उस के बारे में वह नहीं जान सकता.

सारा गाँव जल गया, काले मेघा पानी दे. मुसीबत आने पर स्वयं प्रयास न कर के दूसरों का मुँह ताकते रहना.

सारा गांव जल गया, फूहड़ कहे कहूँ लत्ता गंधाय. लत्ता – कपड़ा, गंधाय – गंध आना. पूरा गाँव जल गया किन्तु मूर्ख स्त्री को लग रहा है कि कहीं से कपड़ा जलने की गंध आ रही है.

सारा शहर जल गया, बीबी फ़ातिमा को खबर ही नहीं. अपने चारों तरफ के हालात से अनजान रहना.

सारी ईद मुहर्रम हो गई. एक झटके में सारी ख़ुशी गम में बदल गई. रूपान्तर – छठी की तेरईं हो गई.

सारी खुदाई एक तरफ जोरू का भाई एक तरफ. अगर घर में शान्ति चाहिए तो पत्नी के भाई को अति महत्वपूर्ण व्यक्ति का दर्ज़ा देना पड़ेगा.

सारी चोट निहाई के सिर. जिम्मेदार व्यक्ति को सब मुसीबतें झेलनी पडती हैं. निहाई पक्के लोहे की एक बड़ी सिल जैसी होती है जिस पर रख कर लोहे को काटा पीटा जाता है. लोहे पर जितनी चोट की जाती हैं वे सब निहाई पर ही पड़ती हैं. रूपान्तर – चूकी चोट निहाई के सर. निहाई के लिए देखिए परिशिष्ट.

सारी देग में एक ही चावल टटोला जाता है. किसी घर या समाज के एक ही आदमी को देख कर यह अंदाजा लगाया जाता है कि वह घर या समाज कैसा होगा.

सारी रात पीसा पर ढकना भी न भरा. बहुत मेहनत की पर फल कुछ नहीं मिला.

सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है. जो लोग व्यर्थ में ही सभी की परेशानियों में परेशान होते रहते हैं उनका मज़ाक उड़ाने के लिए.

साला तीरथ, ससुरा तीरथ, तीरथ छोटी साली, मात पिता की बात न पूछे, तीरथ है घरवाली. उन लोगों पर व्यंग्य जो ससुराल को सब कुछ मानते हैं और माता पिता की सेवा नहीं करते हैं.

सालिग्राम की बटिया, जैसी छोटी वैसी बड़ी. शालिग्राम चाहे छोटे हों या बड़े, पूजे ही जाएंगे. गुणवान व्यक्ति की आयु कुछ भी हो, कद काठी कैसी भी हो, उसका सम्मान ही होगा. 

साली न सलहैज, सास से मसखरी. मूर्खता पूर्ण और बचकाना काम.

साली निहाली, चाहे ओढ़ी, चाहे बिछा ली. साली से मज़ाक का रिश्ता होता है इसलिए कुछ भी कहा जा सकता है. निहाली – निहाल करने वाली. निहाली माने रजाई भी होता है.

साले की चूल्हे में जड़. साले को जीजा के घर में कभी खाने पीने की कमी नहीं हो सकती.

सावन की छाछ भूतों को, जेठ की छाछ पूतों को. पुराने लोग मानते थे कि सावन के महीने में छाछ (मट्ठा) नुकसान करता है और जेठ में बहुत लाभ करता है.

सावन की तीज, पड़े खेत में बीज. सावन की तीज को खेत में खरीफ की बुआई शुरू करने का रिवाज़ रहा होगा.

सावन की ना सीत भली, जातक की ना प्रीत भली. सीत – ओस, जातक – संन्यासी. सावन माह की ओस नुकसान देह होती है और साधु के साथ प्रेम करना बुरा होता है. सीत माने मट्ठा भी होता है.

सावन के अंधे को हरा ही हरा सूझता है. इस कहावत को कुछ इस तरह प्रयोग करते हैं कि लालची व्यक्ति को हर समय पैसा ही पैसा दिखाई देता है.

सावन के चिकनियाँ, अगहन में भीख मांगें. सावन में जो खेत में काम नहीं करते और साफ़ सुथरे बने घूमते रहते हैं, उन्हें अगहन में फसल कटने के समय भीख मांगनी पडती है.

सावन के रपटे और हाकिम के डपटे में कुछ बुरा नहीं. सावन में कीचड़ में फिसलना बहुत आम बात है इसलिए उस से ज्यादा परेशान नहीं होना चाहिए. इसी तरह हाकिम अगर डांट दे तो उसका बुरा नहीं मानना चाहिए क्योंकि यह तो हाकिमों की आम आदत होती है.

सावन केरे प्रथम दिन उगत न दीखे भान, चार महीना पानी बरसे जानो इसे प्रमान. सावन के पहले दिन यदि सूर्य बादलों में छिपा रहे तो चार महीने अच्छी वर्षा होगी. (घाघ और भड्डरी की कहावतें)

सावन घोड़ी भादों गाय, माघ मास जो भैंस बियाय, जेठे बहू असाढ़े सास, सो घर होवे बाराबाट. (बुन्देलखंडी कहावत) सावन में घोड़ी, भादों में गाय और माघ के महीने में भैंस का ब्याहना अशुभ होता है. इसी प्रकार जेठ में बहू और आषाढ़ में सास को प्रसव हो तो घर में बर्बादी आती है. निचली कहावत इस से मिलती जुलती है.

सावन घोड़ी, भादों गाय, माघ मास में भैंस बियाय, जी से जाय या खसमहिं खाय. इन महीनों में प्रसव होने से ये मर सकती हैं या इनके मालिक का अनिष्ट हो सकता है.

सावन पछुआ भादों पुरवा क्वार बहे इशान, कातिक कंता सींक न डोले, कहाँ रखोगे धान. सावन में पछुआ, भादों में पुरवाई और आश्विन में ईशान कोण से हवा चले और कार्तिक में बिलकुल हवा न चले (सींक भी न हिले) तो इतना धान होगा कि रखने की जगह कम पड़ जाएगी.

सावन ब्यारी जब तब कीजे, भादों बाको नाम न लीजे, क्वार मास के दो पखवारे, जतन जतन से टारो प्यारे, आधे कातिक होय दिवारी, ठेलमठेला करो ब्यारी. ब्यारी – रात का भोजन. सावन में ब्यारी कभी कभी ही करनी चाहिए, भादों में उसका नाम भी नहीं लेना चाहिए, क्वार में बहुत सँभल कर रहना चाहिए, उसके बाद आधा कार्तिक बीतने पर जब दिवाली हो जाय, तब खूब पेट भर भी ब्यारी करें.

सावन मास बहे पुरवैया, बेचे बरधा लेवे गैया. सावन में पुरवाई चलने से वर्षा नहीं होती. ऐसे में बैल बेच कर गाय खरीद लेना चाहिए जिससे गुजर हो सके.

सावन में गधा उदासा. कोई व्यक्ति बहुत सी सुविधाएं मिलने के बाद भी उदास हो तो यह कहावत कहकर उसका मजाक उड़ाया जाता है. सन्दर्भ कथा – सावन में जब गधा सब तरफ़ बहुत सारी खास देखता है तो तनाव में आ जाता है कि मैं इतनी सारी घास कैसे खाऊंगा. इसलिए वह उदास हो जाता है. वैशाख के महीने में जब मैदान सूख जाते हैं तो गधा बड़ा खुश होता है कि मैंने सारी घास खा ली. इसीलिए गधे को वैशाख नंदन कहते हैं.

सावन सूखे न भादों हरे (सावन हरे न भादों सूखे). यदि कोई व्यक्ति ऐसा काम कर रहा हो जिसमें न कभी अधिक लाभ होने की संभावना हो और न अधिक हानि (जैसे नौकरी करने वाले लोग).

सास का धन, जमाई पुन्न करे. दूसरे का धन खर्च कर के पुण्यात्मा बनने वाले लोगों पर व्यंग्य. 

सास की चेरी, सबकी जिठेरी. सास की मुंहलगी नौकरानी से सब बहुएं डरती हैं.

सास की रीस, पतोहू के माथे. बहू आने से सास की पूछ कम हो जाती है इसलिए सास बहू से ईर्ष्या करती है.

सास के साथ निबाही तो क्या निबाही, बहू के साथ निबाहो तो जानें. जो इस समय सास हैं वे पहले बहू थीं. उस समय सास बहुओं में निभ जाती थी. आजकल की बहुओं के साथ निभाना बहुत कठिन है.

सास को पड़ी भाजर की, बहू को पड़ी काजर की. भाजर – गृहस्थी का सामान. सास को घर गृहस्थी का सामान जुटाने की चिंता है और बहू को अपने श्रृंगार की.

सास को न भावे, सो बहू को टिकावे. अपने को कोई चीज पसंद न आने पर उसे दूसरों के मत्थे मढ़ना.

सास गई गाँव, बहू कहे मैं क्या क्या खाऊं. पुराने जमाने में बहुएं सास से डरती थीं और सास के सामने अपने मन की चीज़ें नहीं खा सकती थीं. सास बाहर गई है तो बहू के ठाठ हो रहे हैं. (अब इसका उल्टा हो गया है).

सास घरुआरी, बहू दरबारी. उलटी बात. सास को घर सम्भालना पड़ रहा है और बहू बाहर के काम कर रही है. वैसे आजकल ये आम रिवाज हो गया है.

सास छोटी और बहू बड़ी. जिस घर में बड़े लोगों की पूछ न हो उस के लिए कही जाने वाली कहावत.

सास ताके टुकुर टुकुर, बहू चली बैकुंठ. 1. घर में किसी अत्यधिक वृद्ध व्यक्ति के जीवित रहते यदि किसी कम आयु वाले की मृत्यु हो जाए तो. 2. सास को छोड़ कर बहू तीर्थ यात्रा पर जाए तो.

सास तो मरी हुई ही अच्छी. सास कैसी भी हो बुरी ही होती है, सास के मरने पर ही चैन की सांस आती है.

सास न नन्दी, आप ही आनंदी. जिस बहू के घर में सास और ननद नहीं होतीं वह खुश रहती है (कोई रोकने टोकने वाला नहीं होता). रूपान्तर – जिन घर सास न नंदा, तिन घर बड़े अनंदा.

सास ने बहू से कही, बहू ने कुत्ते से कही, कुत्ते ने पूँछ हिला दी. एक दूसरे पर काम टालने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है. 

सास बहू की एकहिं सोड़ (सौर), लक्ष्मी जाए छत को फोड़. (बुन्देलखंडी कहावत) सास बहू को अगर एक साथ प्रसव हो तो यह घर के लिए अशुभ है (लक्ष्मी रूठ जाती है). 

सास बहू की हुई लड़ाई, करे पड़ोसन हाथापाई (सास बहू की हुई लड़ाई, सिर को फोड़ मरी हमसाई). सास बहू की में लड़ाई पड़ोसन को बीच में नहीं पड़ना चाहिए. वह जिस के अनुकूल नहीं बोलेगी उसी से दुश्मनी हो जायेगी.

सास बिना ससुरार न भावे, लाभ बिना रोजगार न भावे. अर्थ स्पष्ट है. सास के बिना ससुराल में कौन पूछेगा और जिस में लाभ ही न हो ऐसा रोजगार कौन करेगा.

सास मर गई कट गई बेड़ी, बहू चढ़ गई हर की पैड़ी. सास के मरने से बहू बहुत आजाद महसूस कर रही है. 

सास मर गई ससुरा जिए, नई बहुरिया के राज भए. सास मर गई और ससुर जीवित है तो नई बहू का घर पर राज हो जाता है. रसोई और घर चलाने के लिए सब उस पर निर्भर हो जाते हैं.

सास मर गई, तूम्बे में आत्मा. सास के मरने के बाद भी बहू को डराती रहती है. सन्दर्भ कथा – कोई बूढ़ी औरत अपनी बहू को बहुत तंग किया करती थी. जब वह मरने लगी तो बहू से बोली कि देखो, मरने के बाद मैं अपनी आत्मा घर में रखे तूम्बे में बंद कर जाऊंगी. तुम उस तूम्बे को ही सास समझना और हर काम उससे पूछकर किया करना. उसके मर जाने पर बहू के मन में सास का इतना खौफ था कि ऐसा ही करने लगी. एक दिन जब यह तूम्बे के पास खड़ी होकर कुछ पूछ रही थी, तब उसकी पड़ोसिन संयोग से वहां आ गई. उसने जो यह तमाशा देखा, तो तूम्बे को लेकर जमीन पर पटक चकनाचूर कर दिया. उस दिन के बाद से बहू आनंदपूर्वक रहने लगी.  

सास मेरी घर नहीं, मुझे किसी का डर नहीं. सास के बाहर जाने पर बहू की मौज. कोई कड़क हाकिम छुट्टी पर हो तो कर्मचारियों की मौज हो जाती है.

सास मोरी अन्हरी, ससुर मोरा अन्हरा, जिस से बियाही वोही चक्चुन्हरा, के को दिखाने को डालूँ मैं कजरा. (भोजपुरी कहावत) अन्हरी – अंधी, अन्हरा – अंधा, चक्चुन्हरा – जिसकी आंखें रौशनी से चकाचौंध हो कर बार बार बंद होती हों. ससुराल में किसी को कुछ दिखता ही नहीं है तो बहू श्रृंगार किस को दिखाने के लिए करे.

सास से तोड़ बहू से नाता. घर में किसी एक से नाता तोड़ कर दूसरे से जोड़ना. यहाँ सास बहू का उदाहरण ख़ास तौर पर इसलिए दिया गया है क्योंकि उन में थोड़ी अनबन और एक दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति होती है.

सास से बैर, पड़ोसन से नाता. अपने घर के सगे सम्बन्धियों से अधिक पड़ोसियों को तवज्जो देना.

सास से हुई अलग, तो हिस्से आई ननद. जिस परेशानि से बचने के लिए बंटवारा किया, वही हिस्से में आई.

सास, कोठे पर की घास. सास को बहुत तुच्छ चीज़ समझना. कोठे पर की घास – छत पर उगी घास.

सासरे का दुख और पीहर के बोल. औरत के लिए कहीं भी सुख नहीं है. ससुराल में हरदम सास और ननद का कोंचना. मायके में भौजाइयों का राज होने पर वे भी ताने मारती रहती हैं. 

सासरो सुख वासरो, दो दिनां को आसरो. पुरुषों के लिए ससुराल में दो दिन रहना ही अच्छा लगता है.

सासू का ओढ़ना, पतोहू का नक्पोछना. सास जिस चीज़ को जीवन भर संभाल कर इस्तेमाल करती है, पुत्रवधू उसकी बेकद्री करती है (सास के ओढ़ने को बहू नाक पोंछने के लिए प्रयोग कर रही है).

सासू कुत्ती दूर हट, धोबिन माई पांय लागूं (सास से रूठना और धोबिन मैया पांय लागी). ऐसी दुष्ट बहू के लिए जो सास का अपमान करती है और दूसरी औरतों व कामवालियों का दिखावटी आदर करती है.

सासू गटके पाहुना, बहू बटाऊ खाय. सास शातिर है, मेहमानों को खा जाती है, पर बहू तो और बढ़ कर है, राह चलते लोगों को पकड़ कर खा लेती है. जहाँ सास भी धूर्त हो और बहू उस से बढ़ कर धूर्त हो.

सासू जी की सीख घर के द्वार तक. सास की सीख बहू घर में ही मानती है, जैसे ही घर से निकली आजाद हुइ.

साह का दांव हाट में, चोर का दांव बाट में. व्यापारी का दांव मंडी में काम करता है और चोर का सुनसान में.

साह का साथ भला और रात का घात भला. किसी का साथ करना हो तो सुरक्षा की दृष्टि से सब से अच्छा साथ राजा या किसी बड़े आदमी का है, और किसी पर हमला करना हो तो रात का समय सब से अच्छा है.

साहब की सलाम दूर की भली (साहब से सलाम दूर की). हाकिमों से जितना दूर रहो उतना अच्छा.

साहू बनज न कीजिए जो दरबार बिकात, गाँठ लेत देते कटे विनती में दिन रात. (बुन्देलखंडी कहावत) व्यापारियों को सलाह दी गई है कि सरकारी विभागों को कोई सामान नहीं बेचना चाहिए. वे भुगतान भी पूरा नहीं करेंगे, रिश्वत मांगेंगे और दिन रात चक्कर भी लगवाएंगे.

सिंधु तैर कर सरस्वती में डूबा. बहुत बड़ा कार्य कर के छोटे से काम को न कर पाना.

सिंह अकेला मारे खाए. शेर को शिकार के लिए किसी सहायक की आवश्यकता नहीं होती. वीर पुरुष अकेले ही कार्य करते हैं.

सिंह के वंश में उपजा स्यार. वीर पुरुषों के वंश में कोई व्यक्ति कायर निकल जाए तो.

सिंह चढ़ी देवी मिले, गरुड़ चढ़े भगवान, बैल चढ़े सिव जी मिलें, अड़े संवारे काम. यदि स्वप्न में सिंह पर सवार देवी, गरुण पर सवार विष्णु जी या बैल पर चढ़े शंकर जी दिखाई पड़ जाएं तो सभी कार्य संवर जाते हैं.

सिंह चाहे वन को और वन चाहे सिंह को. शेर के लिए जंगल आवश्यक है और जंगल के लिए शेर. प्रकृति का संतुलन इसी प्रकार से बनता है. जंगल नहीं होगा तो शेर और सारे जानवर कहाँ रहेंगे. यदि शेर शाकाहारी जंतुओं का शिकार नहीं करेगा तो उनकी संख्या बहुत बढ़ जाएगी और वे जंगल को खा जाएंगे.

सिंह नहीं देखा तो देख ले बिलाई, जम नहीं देखा तो देख ले जमाई. किसी ने शेर नहीं देखा तो बिल्ली को देख लो जिस में शेर के बहुत से गुण हैं, और यमराज को न देखा हो तो दामाद को देख लो. वैसे यह बात आज के समय में सच नहीं है. आजकल अधिकतर दामाद बेटों से ज्यादा सेवा करते हैं.

सिंह पराये देस में, नित मारे नित खाय. वीर पुरुष जहाँ जाते हैं वहाँ अपना साम्राज्य कायम कर लेते हैं. 

सिंहनी एक सपूत जन सोवत पाँव पसार, दसेक पूत जन के गधी लादे धोबी भार. समझदार और बहादुर लोग कम बच्चे पैदा करते हैं और सुख से रहते हैं, जबकि मूर्ख लोग ज्यादा बच्चे पैदा कर के गरीबी में पिसते हैं.

सिंहासन छोड़ घूरे पर बैठा. कोई व्यक्ति मूर्खतावश आदर का स्थान छोड़ अपमान जनक स्थान पर पहुँचा जाए.

सिंहों के नहिं लेह्ड़े, हंसों की नहिं पांत, लालन की नहिं बोरियां, साधु न चलें जमात. शेरों के झुंड नहीं होते, हंसों की पंक्तियाँ नहीं होतीं, लाल इतने सारे नहीं होते कि बोरियों में भरे जाएं और साधु इतने अधिक नहीं होते कि समुदाय बना कर चलें. ये सब बिरले ही होते हैं.

सिकंदर जब चला दुनिया से, दोनों हाथ खाली थे. कोई कितना भी शक्तिशाली और दौलतमंद क्यों न हो इस दुनिया से सब को खाली हाथ जाना है.

सिखाई बुद्धि अढाई घड़ी. सिखाई हुई बुद्धि थोड़ी देर ही काम आ सकती है, सारे जीवन नहीं. 

सिखाए पूत दरबार नहीं चढ़ते. जिसमें अपनी कोई बुद्धि न हो वह केवल सिखाने से ही योग्य नहीं बन सकता. राजा के दरबार में वही लोग जा पाते थे जो बहुत योग्य होते थे.

सिखाने से घर उजड़ते हैं, सिखाने से ही घर बसते हैं. गलत बातें सिखाने से घर उजड़ते हैं और अच्छी सकारात्मक बातें सिखाने से घर बसते हैं.

सिखैया नाऊ का काटेगा बटाऊ का. सीखने वाला नाई अनजान लोगों की ही खाल काटता है. बटाऊ – राहगीर. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – अहीर के कपार पर सीखे नाऊ.

सिद्ध को साधक पुजाते हैं (सिद्धों की महिमा साधकों से). किसी तथाकथित सिद्ध आदमी की महत्ता उस को पूजने वाले लोग ही निर्माण करते हैं. जितने अधिक मानने वाले होते हैं उतना ही सिद्ध पुरुष पूजा जाता है.

सिपाही की जोरू हमेशा रांड. सिपाही लड़ाई पर जाता है तो भी बेचारी अकेली रहती है, और अगर लड़ाई में मारा जाए तब तो विधवा हो ही जाती है.

सिपाही की रोटी जान बेचे की. सिपाही अपनी जान खतरे में डालने की रोटी खाता है.

सियार औरों को शगुन दे, आप कुत्तों से डरे. यात्रा में सियार का मिलना अच्छा शगुन माना जाता है. सियार बेचारा औरों के लिए तो अच्छा शगुन है लेकिन खुद कुत्तों से डरता है.

सियार के मुंहें मंगल नहीं निकलते. जिस व्यक्ति के मुंह से हमेशा बुरे वचन ही निकलते हों उस पर व्यंग्य.

सियार के शिकार को शेर नहीं खाता है. योग्य और वीर पुरुष घटिया लोगों द्वारा अर्जित की हुई संपत्ति से लाभ नहीं उठाते.

सियार ने कहा और लोमड़ी ने गवाही दी. धूर्त लोग आपस में बिना शर्त एक दूसरे का समर्थन करते हैं, जैसे आजकल के कुछ नेता.

सिर का नहाया पाक. 1. सर धो कर नहाने को ही स्नान माना जाता है. 2. केवल सर धोना.

सिर का बोझ पैर पर आवे. बोझ चाहे सर पर रखा हो, पैरों को ही सारा बोझ उठाना पड़ता है. परिवार का सारा भार अंततोगत्वा मुखिया पर ही आता है. 

सिर की पगड़ी हाथ, कर ले दो दो हाथ. सिर की पगड़ी से अर्थ अपनी इज्ज़त से है. अपनी इज्ज़त हाथ में ले ली तो फिर गाली गलौज या लड़ने से क्या डरना.

सिर चला जाए, आन न जाए. जान चली जाए पर सम्मान नहीं जाना चाहिए.

सिर झाड़, मुँह पहाड़. कुरूप और बेतरतीव व्यक्ति. 

सिर नकद, नौकरी उधार. जी जान से काम करने पर भी पर्याप्त प्रतिफल न मिलना.

सिर पर आरे चल गए, फिर भी मदार ही मदार. जान पर बनी है फिर भी स्वयं कोई प्रयास न कर के पीर मदार को मदद के लिए पुकार रहे हैं. अंधविश्वासी और आलसी लोगों पर व्यंग्य. 

सिर पर जूती, हाथ में रोटी. बहुत अपमान सह कर रोजी रोटी कमाना.

सिर फोड़े को मुंह फोड़ा ही भाता है. निम्न वृत्ति के लोगों को अपने जैसे लोग ही पसंद आते हैं.

सिर बड़ा सपूत का, पांव बड़ा कपूत का. लोक मान्यता है कि योग्य लोगों का सिर बड़ा होता है और मूर्ख लोगों के पाँव.

सिर मुड़ा के क्या घुटना मुड़ाएगा. सिर मुड़ाने वालों पर व्यंग्य. सिर मुड़ा कर कुछ काम नहीं बना तो क्या अब घुटने को मुड़ाओगे.

सिर सजदे में, मन बोटियों में. झूठी इबादत. 

सिर से उतरे बाल, गू में जाएं या मूत में. बाल कितने भी प्रिय हों सिर से उतरने के बाद कहीं भी फेंक दिए जाते हैं (उन्हें कोई नहीं पूछता). समाज की निगाहों से उतरे हुए सम्मानित व्यक्ति का भी यही हाल होता है.

सिरहाना किधर भी करो, चूतड़ तो बीच में ही रहेंगे. सत्ता किसी के भी पास जाए, बिचौलिए मजे में रहते हैं.

सिर्फ ताबीज़ से ही काम नहीं होता, कुछ कमर में भी दम चाहिए. विशेष तौर पर यह कहावत संतान मांगने वालों के लिए कही गई है. लेकिन अन्य स्थानों पर भी प्रयोग कर सकते हैं कि पूजा पाठ, गंडे तावीज़ के सहारे मत बैठे रहो, कर्म करो.

सिलाई दोगे या ब्योंत में निकाल लूँ. ब्योंत – कतरन. दरजी को सिलाई का पूरा पैसा नहीं देना चाहोगे तो वह कपड़ा बचा कर कसर पूरी करेगा. जिसका जो काम है उसे उसका पूरा मेहनताना देना चाहिए, वरना वह हेर फेर करने पर मजबूर हो जाता है. 

सिवइयों बिन ईद कैसी. बढ़िया खाना, मिठाई और कपड़े आदि न मिलें तो त्यौहार कैसा.

सींग कटा बछड़ों में मिले. कोई बड़ी उम्र का व्यक्ति बच्चों के बीच बच्चा बन जाए तो.

सींग पकड़े तो टूटा हुआ, पूँछ पकड़े तो कटी हुई.  जो व्यक्ति बात-बात में बदल जाय. जिससे कुछ भी कबूलवाना मुश्किल हो. जैसे कुछ धूर्त नेता.

सींग मुड़े, माथा उठा, मुंह होवे गोल, रोम नरम, चंचल करन, तेज बैल अनमोल. आज की खेती में बैल का महत्व समाप्त हो गया है लेकिन एक जमाने में खेती के लिए बैल अपरिहार्य होता था. उस समय सयाने लोग अच्छे बैल की बहुत सी पहचान बताया करते थे.

सीख उसी को दीजिए जाको सीख सुहाए, सीख जो दीन्ही बांदरा चिड़िया का घर जाए. सीख उसी को देनी चाहिए जिसे सीख अच्छी लगे. जो सीख सुन कर खिसियाए उसे सीख नहीं देनी चाहिए. सन्दर्भ कथा – हम सभी ने देखा है कि बया कितने बढ़िया तरीके से घोंसला बनाती है. उस में गर्मी से, सर्दी से, बरसात से सब से बचने का इंतजाम होता है. एक बार जाड़े की बरसात के दौरान एक बया अपने घोसले से बाहर निकली तो क्या देखती है कि एक बंदर पेड़ की डाल पर बैठा वारिश में भीग कर थरथर काँप रहा है. उसे बंदर की हालत पर दया भी आई और उसकी नासमझी पर गुस्सा भी. उसने बंदर को नसीहत देने की कोशिश की – मानुष जैसे हाथ पांव हैं, मानुष जैसी काया, चार महीने वर्षा बीती, छप्पर क्यों नहीं छाया. बंदर गुस्से में उस पर झपटा. बया ने उड़ कर अपनी जान तो बचा ली पर बंदर ने खिसिया कर उस का घर तोड़ दिया.

सीख देत औरों को पांडे, आप भरें पापों के भांडे. पंडित लोग औरों को शिक्षा देते हैं और अपने आप गलत काम कर के पाप के घड़े भरते हैं.

सीख बाप की, अकल आप की. पिता की शिक्षा काम आती है पर अपनी अक्ल होना भी बहुत आवश्यक है.

सीख सड़प्पे तो लाला जी के साथ गए, अब तो देखो और खाओ. कंजूसी की पराकाष्ठा. सन्दर्भ कथा – किसी कंजूस ने अपने घर में यह नियम बना रखा था कि घी के बर्तन में सींक डुबाने से जितना घी निकले, उतना ही हर आदमी ले लिया करे. जब वह मर गया, तो उसका लड़का उससे भी बढ़कर कंजूस निकला. उसने घी के बर्तन का मुंह बंद करके उस पर पक्की डाट लगा दी और घरवालों से कहा कि देखो, लाला जी के ज़माने में तुम लोगों ने सींक डुबो-डुबो कर खूब घी खाया, अब तो बस घी को देखो और खाओ. इसी प्रकार एक बंगाली कंजूस की भी कथा है कि वह नदी किनारे बैठकर भात खाया करता था और प्रत्येक कौर के साथ नदी की ओर हाथ बढ़ाकर कहता था ‘ऊ मशली, ई भात.’ इस प्रकार वह मछली खाने का आनंद उठा लिया करता था.

सीख सरीरां ऊपजै देई न आवे सीख. जिसके अंदर सीखने की इच्छा हो वही कुछ सीख सकता है, जबरदस्ती किसी को कुछ नहीं सिखाया जा सकता.

सीख सीख पड़ोसी से सीख, छोटे से सीख बड़े से सीख. जिस से जहाँ कुछ ज्ञान मिले ले लेना चाहिए.

सीढ़ी दर सीढ़ी छत पर चढ़ते हैं. कोई भी कठिन कार्य एक एक पायदान चढ़ कर ही पूरा होता है.

सीतल, पातल, मंद गत, अल्प अहार, निरोस, ये तिरिया में पांच गुन, ये तुरिया में दोस. शीतल स्वभाव, पतला शरीर, मंद गति, कम खाना और निरोष (क्रोध रहित) होना, स्त्री में ये पाँचों गुण हैं जबकि घोड़ी में हों तो अवगुण माने जाते हैं. तिरिया शब्द स्त्री का अपभ्रंश है. तुरिया माने घोड़ी.

सीता सुकुमारी जैमाल श्री राम गले डाले. विवाह में जयमाल के समय बड़ी बूढ़ियाँ यह मंगल गीत गाती हैं.

सीधी उँगली से घी नहीं निकलता है. पहले के जमाने में चम्मच का प्रयोग नहीं होता था. यदि थोड़ा सा घी निकालना हो महिलाएं डब्बे में उँगली डाल कर उससे घी निकाल लेती थीं. अब जाहिर सी बात है कि अगर सीधी उंगली डालोगे तो घी कहाँ निकलेगा. कहावत का अर्थ है कि केवल सिधाई से काम नहीं निकलता.

सीधे का मुंह कुत्ता चाटे. जो आदमी सीधा होता है उसका सब नाजायज़ फायदा उठाते हैं.

सीधे को सौ दुख. सीधे आदमी के लिए इस स्वार्थी और कपटी संसार में दुख ही दुख हैं.

सीधे घोड़े पर दो सवार होते हैं (सीधे पर दो लदें). सीधे की सिधाई का सब फायदा उठाते हैं.

सीधे पेड़ काटे जाते हैं, टेढ़े खड़े रहते हैं. सब सीधे लोगों पर अत्याचार करते हैं, दुष्ट लोगों पर नहीं.

सीना तान के क्यों चलते हो, हमारे भैया पहलवान हैं. रिश्तेदारों के बल पर अकड़ दिखाने वालों पर व्यंग्य.

सीपी से समुन्दर उलीचत. सीपी से समुद्र उलीचते हैं. असंभव कार्य

सील बिना डील बेकार है. किसी मनुष्य का शरीर कितना भी लंबा-चौड़ा क्यों न हो यदि उसमें शील और सहृदयता जैसे गुण नहीं है तो सब बेकार है.

सीलवंत गुन न तजे, औगुन तजे न गुलाम, हरदी जरदी न तजे, खटरस तजे न आम. जो शीलवान व्यक्ति है वह अपने गुणों का त्याग नहीं करता और जो बुरी आदतों का गुलाम है वह अपनी बुरी आदतें नहीं छोड़ता. जिस प्रकार हल्दी अपना पीलापन नहीं छोड़ती और कच्चा आम अपना खट्टापन नहीं छोड़ता.

सीलवंत पुरुष भिखार, सीलवंत नारी छिनार. अत्यधिक शीलवान पुरुष हमेशा निर्धन रहता है. शीलवंती नारी सब से ठीक से बात करती है तो लोग इसका गलत अर्थ लगाते हैं और उसे चरित्रहीन कह कर बदनाम करते हैं.

सुअर का बन्दा, क्या साफ़ क्या गन्दा. गंदे आदमी की संतानें भी गंदी ही होती हैं.

सुअरी को सिंदूर, गिरगिट को माला नहीं सुहाते. ओछे लोगों को उच्चस्तरीय रहन सहन अच्छा नहीं लगता.

सुई कहे मैं छेदूं छेदूं पहले छेद कराए. सुई सब को छेदने से पहले अपने अंदर छेद कराती है. दूसरों को नसीहत देने से पहले स्वयं उसका पालन करना चाहिए.

सुई का भाला हो गया. छोटी सी मुसीबत बहुत बड़ी बन गई.

सुई चोर सो बज्जर चोर. चोर तो चोर है, चाहे वह सुई चुराए या कोई बड़ी चीज़ चुराए.

सुई जहां न जाए वहाँ सूजा घुसेड़ते हैं. जहाँ सिधाई से काम न चले वहाँ बल प्रयोग करना पड़ता है.

सुई टूटी कसीदे से छूटी. सुई टूटने से कामचोर महिला खुश हो रही है कि चलो अब कढ़ाई करने से मुक्ति मिली. कामचोर लोग काम से बचने के बहाने ढूँढते हैं.

सुई से बोले छलनी, तेरे सर में छेद. अपने अंदर बहुत कमियाँ होते हुए भी दूसरे की कमी का मजाक उड़ाना.

सुई, कतरनी, गज, उंगलेटा, रक्खे सो दरजी का बेटा. सुई, कैंची, नापनेवाला गज और सुई की चुभन से बचने के लिए उंगली में पहनने वाला उँगलेटा. जो यह सामान रखे वही असली दर्जी माना जाएगा.

सुकर्म से नाम और कुकर्म से भी नाम, एक नाम और दूजा बदनाम. अर्थ स्पष्ट है.

सुख और दुख एक सिक्के के दो पहलू हैं. हमें इन दोनों को ही स्वीकार करना सीखना चाहिए.

सुख कहना जन से, दुख कहना मन से. अपना सुख सब से बांटो लेकिन दुख को मन में ही रखो.

सुख की कदर दुख में ही मालूम होती है. जब तक इंसान को सुख ही सुख मिलता है वह उस की कदर नहीं जानता. जब दुख मिलता है तभी समझ में आता है कि सुख कितना कीमती है.

सुख के बड़े जोधा रखवाली हैं. सुख किसी किले में बंद है और बहुत से योद्धा उस की रखवाली कर रहे हैं. सुख के आस पास पहुँचना बहुत कठिन है. इंग्लिश में कहावत है – Pleasure has a sting in its tail.

सुख के माथे सिल परै नाम हिए ते जाय, बलिहारी वा दुख की पल-पल नाम रटाय. सिल – पत्थर (शिला), हिए – हृदय. जिस सुख के कारण प्रभु का नाम भूल जाता है उस सुख के माथे पर पत्थर पड़ें. उस दुख की बलिहारी जिस के कारण प्रभु का नाम याद रहता है.

सुख के सब साथी, दुख में न कोय. जब व्यक्ति सुख में होता है तो दूर दूर के दोस्त रिश्तेदार भी अपने होते हैं, दुख आते ही सब गायब हो जाते हैं.

सुख बढ़े, मुटापा चढ़े. जब व्यक्ति सुख में होता है तो उस पर मोटापा चढ़ने लगता है.

सुख मानो तो सुक्ख है, दुख मानो तो दुक्ख, सच्चा सुखिया वही है, जो माने सुख न दुक्ख. सुख और दुख केवल हमारी सोच के परिणाम हैं, जो इनसे से प्रभावित नहीं होता वही वास्तव में सुखी है. सन्दर्भ कथा – एक आदमी अपनी छोटी सी झोपड़ी में अपने परिवार के साथ रहता था. उसकी एक पत्नी थी और सात बच्चे थे. उसने कुछ मुर्गियां भी पाल रखी थी जिन्हें वह जंगली जानवरों और चोरों के डर से अपनी झोपड़ी के अंदर ही रखता था. वे सारी मुर्गियां दिन भर कुटकुट करके शोर मचातीं और गंदगी फैलाती थीं. बरसात के दिनों में झोपड़ी में पानी टपकता था जिससे जिंदगी और भी दूभर हो जाती थी. उसके पास एक बकरी भी थी जिसको वह मजबूरी में बाहर ही बांध देता था.

    उस गांव के पास जंगल में एक सिद्ध महात्मा रहते थे जिनके पास लोग अपनी समस्याओं के समाधान के लिए जाया करते थे. एक दिन वह आदमी बहुत परेशान होकर उन महात्मा जी के पास गया और रो-रो कर उन को बताया कि उसकी जिंदगी बिल्कुल नर्क है. एक छोटी सी झोंपड़ी में नौ परिवार के लोग, बारह मुर्गियां और दो मुर्गे. महात्मा जी ने उसकी पूरी बात सुनी और बोले, जो मैं कहूंगा वह करोगे? उस आदमी ने कहा जी महाराज बिल्कुल करूंगा. महात्मा जी ने कहा, बकरी को भी अंदर बांध लो. वह बोला, महात्मा जी फिर तो हम लोग बिल्कुल ही मर जाएंगे. महात्मा जी ने कहा, जैसा मैं कह रहा हूं वैसा ही करो और एक हफ्ते बाद मेरे पास आओ.

    एक हफ्ते बाद वह आदमी महात्मा जी के पास रोता हुआ आया और उनके पैर पकड़ कर लेट गया. बोला, महात्मा जी हम सब वाकई मर जाएंगे. झोपड़ी में वैसे ही जगह नहीं थी, अब यह बकरी और अंदर आ गई. यह बदबू करती है, इस ने मिंगनी करके सारी झोपड़ी भर दी है. अब तो बिल्कुल नहीं रहा जाता. महात्मा जी बोले, ठीक है बकरी को बाहर बांध दो और एक हफ्ते बाद मेरे पास आकर बताओ कि जिंदगी कैसी चल रही है. एक हफ्ते बाद वह आदमी फिर से महात्मा जी के पास आया तो काफी खुश नजर आ रहा था. महात्मा जी ने पूछा, कहो क्या हाल है. वह बोला, बहुत अच्छे हैं महाराज जी, कोई बकरी सकरी नहीं केवल हम नौ लोग और थोड़ी सी मुर्गियाँ. हम सब बहुत सुखी हैं.

सुख में आए करमचंद, लगे मुड़ावन गंज. करमचन्द ज्यादा पैसे वाले हो गए तो अपने गंजे सर को मुंडवाने लगे. मूर्खतापूर्ण दिखावा और फिजूलखर्ची.

सुख में निद्रा, दुख में राम. सुख में व्यक्ति चैन की नींद सोता है, दुख में उसे भगवान याद आते हैं.

सुख में सिंगार, दुख में ढाल. आभूषणों के लिए ऐसा कहा गया है. सुख के दिनों में श्रृंगार करने के काम में आते हैं और दुख के दिनों का सहारा बनते हैं (इन को बेच कर काम चलाया जा सकता है).

सुख में सुमिरन ना किया, दुख में किया याद, कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद. जो लोग सुख में भगवान को याद नहीं करते केवल दुख में ही याद करते हैं उनकी प्रार्थना भगवान क्यों सुनेंगे. 

सुख सोवे कुम्हार जाकी चोर न लेवे मटिया. कुम्हार को चोरी का कोई डर नही है (उसकी मिट्टी कौन चुराएगा), इसलिए वह सुख से सोता है. सम्पन्नता के साथ ही चिंताएँ आती हैं.

सुखिया सब संसार है, खावै और सोवे, दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रौवे. जो लोग अज्ञानी हैं वे सुख से खा रहे हैं और सो रहे हैं क्योंकि उन्हें संसार की कोई चिंता नहीं है और अपना भविष्य वे जानते नहीं हैं. जिनके ज्ञान चक्षु खुल गए हैं (जो जाग गए हैं) वे क्षणभंगुर संसार की वास्तविकता जान कर दुखी होते हैं.

सुखिया सुख के आगे, दुखिया का दुख क्या जाने. जो सब प्रकार से सुखी और संपन्न है (जिसने कभी कष्ट नहीं भोगा) वह दुखी लोगों के कष्ट को नहीं समझ सकता. 

सुखी सुख देवे, दुखी दुख देवे. सुखी व्यक्ति सुख बाँटता है और दुखी व्यक्ति दुख बाँटता है. दुखी व्यक्ति हमेशा अपनी परेशानियों का रोना रोता है और मदद चाहता है.

सुखे सिहुला दुखे दिनाइ, करम फूटे तो फटे बिबाई. सिहुला – छीप (एक प्रकार का फंगल इन्फेक्शन जिस में खुजली नहिं होती, केवल हल्के रंग के छोटे छोटे गोल चकत्ते बन जाते हैं), दिनाई – दाद. जिन को सिहुला होता है उन्हें कोई कष्ट नहीं होता, जिन्हें दाद होता है उन्हें खुजली के कारण कुछ कष्ट (दुख) होता है पर जिनके पैर में बिबाई फट जाएँ उन्हें बहुत अधिक कष्ट होता है.

सुघड़ बलैयां ससुरा ले, बैल मांग बहू को दे. होशियार और आदर करने वाली बहू की ससुर हर संभव सहायता करता है. बहू को बैलों की जरूरत हो तो दूसरों से बैल मांग कर लाता है.

सुघड़ भलाई ससुरा ले, बैल खोल बहू के दे. ऊपर वाली कहावत से एकदम अलग. कुछ लोगों में अपनी प्रशंसा करवाने की बड़ी ललक होती है. ऐसे ही एक ससुर लोगों से प्रशंसा पाने के लिए इतने लालायित हैं कि बहू के बैल खोल कर उधार दे दे रहे हैं. (अपनी तारीफ़ के लिए दूसरे का नुकसान करना).

सुघड़ी की बिटिया भली, कुघड़ी का बेटा नाहीं. अच्छी साइत की जन्मी कन्या भली है मगर खराब नक्षत्र का जन्मा लड़का नहीं. ऐसा लड़का परिवार के लिए अशुभ हो सकता है.

सुदिन का सिंगार, कुदिन का आहार. गहने इत्यादि अच्छे दिनों में शरीर का श्रृंगार करते हैं और बुरे दिनों में घर की अर्थ व्यवस्था को संभालने के काम आते हैं.

सुधरने में देर लगती है, बिगड़ने में नहीं. व्यक्ति हो या कोई काम बिगड़ बहुत जल्दी जाता है पर सुधरता बहुत मुश्किल से है.

सुधा सराहिअ अमरता, गरल सराहिअ मीचु. अमृत अमरता प्रदान करता है और विष मृत्यु प्रदान करता है. जैसी जिसकी प्रवृत्ति हो वह वैसा ही कार्य करता है. मीचु – मृत्यु.

सुन ऐ माटी के लोला, कायथ सुनार कहीं भगत होला. (भोजपुरी कहावत) कायस्थ और सुनार लोगों से त्रस्त कोई व्यक्ति बता रहा है कि ये लोग कभी सच्चे नहीं होते.

सुन रे ढोल, बहू के बोल. किसी को दूसरे व्यक्ति के प्रति आगाह करने के लिए. सन्दर्भ कथा – कोई बूढ़ी औरत अपने लड़के से उसकी बदचलन स्त्री की हमेशा शिकायत किया करती थी. पर लड़के ने कभी उस पर ध्यान नहीं दिया. कुछ दिनों बाद वह स्त्री बहुत बीमार पड़ी. कुल पुरोहित ने आकर उससे कहा कि तुम्हारा अंतिम समय निकट है. तुमने जितने अपराध किए हैं, उन्हें स्वीकार कर लो तो नरक से बच जाओगी. स्त्री जब ऐसा करने चली तो बुढ़िया ने अपने लड़के को एक बड़े ढोल में छिपा दिया, जो वहीं रोगी के पास रखा हुआ था. इधर स्त्री अपने किए सभी दुष्कर्मों को एक-एक करके पुरोहित के सामने स्वीकार कर रही थी, उधर उसकी सास उक्त वाक्य कहकर ढोल बजाती जाती थी, जिससे उसका लड़का अपनी दुराचारिणी स्त्री के सभी कर्मों को ध्यान से सुन ले

सुन सुन गीता फूटे कान, तऊ न उपजो रंचक ग्यान. रंचक – रंच मात्र. गीता को सुनते सुनते कान फूट गए, लेकिन थोडा सा ज्ञान भी नहीं मिला.

सुना था तो डरे, जब पड़ा तो किए (सुनी थी तो डरी थी, पड़ी थी तो सही थी). जब हम किसी कठिन परिस्थिति के विषय में सुनते हैं तो डरते हैं, पर जब आ कर पड़ती है तो उसे सहते भी हैं और उससे निबटते भी हैं.

सुनार अपनी माँ की नथ में से भी चुराता है (सुनार तो माँ की हंसुली में से भी निकाल ले). अर्थ स्पष्ट है. सुनार बेचारे इतने बदनाम हैं कि उन के बारे में यहाँ तक कहा गया है. सन्दर्भ कथा – एक बार किसी बादशाह ने सुनार से पूछा कि तुम रुपए में कितना खा सकते हो? सुनार ने जवाब दिया- ‘सोलह आने तक.’ बादशाह इस बात से चिढ़ गया और कहा कि तुम्हें इस को साबित करना होगा. बादशाह ने कहा कि तुम्हें एक सोने की मूर्ति राजमहल में बैठकर ही बनानी होगी और साथ ही उस पर कड़ा पहरा बिठा दिया. राजमहल में जाकर काम शुरू करने के पहले सुनार ने अपने घर पर ही एक पीतल की ठीक वैसी ही मूर्ति बना ली और उसे अपनी स्त्री के पास दही की मटकी में डालकर छोड़ दिया. राजमहल में जब सब के सामने स्वर्णमूर्ति बनकर तैयार हो गई तो उसने कहा कि इसे अब खटाई में साफ करना होगा.

    उसी समय उसकी स्त्री, जिसे उसने पहले से सिखा-पढ़ा रखा था, ‘दही लो, दही लो’ की आवाज़ करती हुई निकली. सुनार ने यह कहकर कि खटाई के लिए इसका दही ख़रीद लिया जाए, उसे बुला लिया, और उसकी मटकी लेकर उसमें सोने की मूर्ति डाल दी और उसके स्थान पर पीतल की मूर्ति, जो उसमें पड़ी हुई थी, निकाल कर राजा को दे दी. इस प्रकार सोने की मूर्ति उसके घर पहुंच गई और बादशाह के सामने उसने अपनी बात रख ली.

सुनार कहे गहना बनवाओ मत पर देखने तो दो. सुनार इतना चतुर होता है कि गहना देखने के बहाने भी उस में से कुछ निकाल सकता है. इसीलिए उसे पश्यतोहर (देख कर हरण करने वाला) कहा गया है.

सुनार का बेटा सुरूप भी सस्ता, बनिए का बेटा कुरूप भी महंगा. सुनार का बेटा सुंदर हो तब भी दहेज़ कम ही मिलेगा और बनिये का बेटा कुरूप हो तब भी अच्छा दहेज़ मिलेगा.

सुनार की खटाई और दर्ज़ी के बंद. काम को टालने वालों के लिए. सुनार और दर्ज़ी कभी समय पर काम कर के नहीं देते. सुनार के पास जाओ तो कहेगा कि सामान तैयार है बस खटाई में डालना है. दर्जी के पास जाओ तो कहेगा कि कपड़ा तैयार है बस बंद (बटन) लगाने हैं.

सुनार जी थोड़ा सोना दे दो, सोना क्या मांगे से मिले, मांगे से तो न मिले पर ठाली जिभ्या क्या करे. सुनार से किसी ने सोना माँगा, तो सुनार ने कहा कि सोना क्या माँगने से मिलता है. माँगने वाला कहता है कि मुझे मालूम है मांगने से नहीं मिलता है, पर खाली जीभ क्या करे, कुछ तो चलनी चाहिए. 

सुनार ही जाने सुनार की माया. सुनार किस प्रकार से लोगों को ठगता है यह दूसरा सुनार ही जान सकता है.

सुनिए दो और कहिए एक. सुनो अधिक और बोलो कम.

सुनो भई गप्प सुनो भई सप्प, नाव में नदिया डूबी जाए. कोई बड़ी बड़ी गप्पें हांक रहा हो तो उस का मज़ाक उड़ाने के लिए.

सुनो सब की करो मन की. यदि आपको कोई सलाह देता है तो धैर्य पूर्वक सुनना चाहिए पर बिना सोचे समझे उसे मानना नहीं करना चाहिए. सब की सलाह पर मनन करके और अपने विवेक से सोच कर कार्य करना चाहिए.

सुन्दरता को सिंगार की जरूरत नहीं. जो वास्तव में सुंदर है उसे श्रृंगार की आवश्यकता नहीं है.

सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो भूला नहीं कहलाता. यदि कोई व्यक्ति कुछ गलतियाँ करे पर बाद में उन्हें सुधार ले तो उसका दोष नहीं माना जाता.

सुबह होने पर जुगनू कहते हैं कि उन्होंने दुनिया में उजाला फैलाया. उन लोगों पर व्यंग्य जो स्वत: होने वाले कार्य का भी श्रेय लेने की कोशिश करते हैं. जैसे अंग्रेजों को द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण मजबूरी में भारत छोड़ना पड़ा और कुछ लोग दावा करते है कि उनहोंने भारत को आजाद कराया.

सुबेला का पाहुना, कुबेला का बैरी. सही समय पर आया अतिथि अच्छा लगता है और असमय आया अतिथि दुश्मन लगता है. सुबेला – उपयुक्त समय, कुबेला – गलत समय, पाहुना – अतिथि.

सुभाग तब जानी, जो घर जले आग, घड़े में रहे पानी. सुभाग – सौभाग्य. जब घर में आग जले और घड़े में भरपूर पानी हो, तभी समझो कि भाग्य अच्छा है. रोजी-रोटी का ठिकाना ही सौभाग्य की पहली मांग है.

सुमरने मरे, बिसरने जिए. जो लोग पुरानी बातों को याद कर के दुखी और लज्जित होते रहते हैं वे परेशान रहते हैं, जो उन्हें भुला कर आगे बढ़ते हैं वे सुखी रहते हैं.

सुर नर मुनि सब की यह रीती, स्वारथ लागि करें सब प्रीती. चाहे देवता हों, मनुष्य हों या मुनि हों, सब अपने स्वार्थ के लिए ही प्रेम करते हैं.

सुरतीला सो फुर्तीला. सुरती खाने वाला ही चपलता से काम कर सकता है. तम्बाखू खाने वालों का कथन.

सुरमा सबहिं लगात, पर चितवन भांत भांत. श्रृंगार सब करते हैं पर सब सुंदर नहीं दिखते.

सुलगती में फूंक मत दो. यदि दो लोगों में कुछ अनबन चल रही हो तो ऐसी कोई बात मत कहो जिससे आग भड़क जाए.

सुहागन का पूत पिछवाड़े खेले है. सुहागिन का अगर लड़का मर जाए, तो यह समझना चाहिए कि वह कहीं गया नहीं, बल्कि पिछवाड़े ही खेल रहा है. तात्पर्य यह कि उसे फिर भी पुत्र उत्पन्न होने की उम्मीद रहती है.
किसी अच्छी आमदनी वाले का जब कोई नुकसान हो जाता है, तब बड़े लोग यह भाव प्रकट करने के लिए कि चिंता की और कोई बात नहीं, घाटा शीघ्र पूरा हो जाएगा इस वाक्य का प्रयोग करते है.

सुहाते की लात, न सुहाते की बात. जो अपने को अच्छा लगता है उसकी लात भी सही जाती है लेकिन जो बुरा लगता है उसकी बात भी बुरी लगती है.

सूंड कटे गणेश. बहुत मोटे व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए. 

सूअर की नजर पड़ेगी तो गू पर ही. जो व्यक्ति जिस प्रवृत्ति का होता है वह वैसे ही गुण दोष ढूँढ लेता है. सूअर के सामने तरह तरह के व्यंजन रखे हों और कोने में कहीं विष्टा पड़ी हो तो वह विष्टा की ओर ही भागेगा. विधर्मी लोग आर्य सनातन धर्म की हजार विशेषताओं को न देख कर एकाध छोटी मोटी कमी का ही मजाक उड़ाते हैं.

सूअर को गू पकवान. निकृष्ट व्यक्ति को निकृष्ट वस्तुएँ ही अच्छी लगती हैं.

सूअर चरें, कटरे मार खाएँ. किसी के अपराध की सजा दूसरे को मिले तो.

सूअर तो गू से भी पेट भरे पर गाय क्या करे. गंदगी में रहने और निकृष्ट पदार्थ खाने वाले व्यक्ति कैसे भी जीवन काट सकते हैं पर स्वच्छता प्रेमी को ऐसी परिस्थितियों में बहुत परेशानी होती है. 

सूई भी साथ नहीं जाएगी. जो लोग धन दौलत इकट्ठी करने के पीछे पागल रहते हैं उन को बार बार यह समझाया जाता है कि तुम यहाँ से सुई भी साथ नहीं ले जा सकते.

सूखा कसार खा के तो ऐसे ही सपूत पैदा होंगे. किसी स्त्री का शिशु कमजोर था. पड़ोसियों ने टोका तो बहू ने सास पर कटाक्ष किया कि गर्भावस्था में अच्छी खिलाई पिलाई न हो तो ऐसे ही बच्चे होंगे,

सूखी के संगै गीली भी जलें. सूखी लकड़ियों के साथ गीली भी जल जाती हैं. समाज में उत्साही लोगों के साथ   सुस्त लोग भी कुछ न कुछ कर दिखाते हैं.

सूखी तलइया में मेंढक करे टर-टर. बिना उपयुक्त अवसर के खुश होने वाले व्यक्ति के लिए.

सूखे कुएं से घड़ा नहीं भरता. जिस के पास स्वयं कुछ न हो वह किसी को कैसे कुछ दे सकता है.

सूखे धानों पानी पडा. 1. जिस वस्तु की अत्यधिक आवश्यकता थी वही मिल गई. इसके विपरीत अर्थ – 2. जब धान सूख गए तब पानी पड़ा जोकि किसी काम का नहीं.

सूखो भोजन, कुलरिनी, औ कुलच्छनी नार, पाँव पन्हैया है नहीं, नरकों के फल चार. (बुन्देलखंडी कहावत) कुलरिनी – जिसको बाप दादों का कर्ज उतारना हो. यह चार चीजें धरती पर ही नरक भोगने की निशानी हैं – रूखा सूखा भोजन, बाप दादाओं की कर्जदारी, चरित्रहीन पत्नी और बिना जूते के पैर.

सूझे न बिटौरा और गुलेल का शौक. कंडों के ढेर जैसी बड़ी चीज नहीं दिखती और गुलेल चलाने का शौक रखते हैं. बिना सामर्थ्य के कोई काम करने की कोशिश करने वाले के लिए.

सूझे न बिटौरा, चाँद से राम राम. किसी व्यक्ति को पास की चीज़ भी ठीक से न दिखती हो और वह बहुत दूर देखने की कोशिश करे तो.

सूत न कपास, जुलाहे से लठ्ठम लठ्ठा. पहले के लोग कपास ला कर सूट कातते थे और जुलाहे को दे कर उससे कपड़ा बुनवाते थे. बुनाई की मजदूरी कितनी हो या सूत कम हो गया इस बात पर झगड़ा भी होता था. किसी के पास न सूत है न कपास फिर भी जुलाहे से लड़ रहा है. बिना किसी बात के झगड़ा करने वाले के लिए.

सूद के पैसा दोबर, ना तो गोबर. ऊंचे ब्याज पर दिया धन दुगुना हो जाता है या मारा जाता है.

सूधी छिपकली घणे माछर खावै. (हरियाणवी कहावत) छिपकली देखने में सीधी सादी लगती है पर ढेर सारे मच्छर खा जाती है. कहावत ऐसे लोगों पर फिट बैठती है जो देखने में सीधे लगते हैं और खूब हेर फेर कर लेते हैं.

सूनी सार भली के मरखना बैल. सार – बैल बाँधने का स्थान. बैल न होने से मरखना बैल होना अच्छा.

सूने घर चोरों का राज (चूहों का राज). सूने घर पर अवांछित तत्व कब्जा कर लेते हैं, इसलिए घर को कभी खाली नहीं छोड़ना चाहिए. 

सूने घर में सियार ब्याये. जिस घर की चौकसी नहीं की जाती, उसका प्रयोग अवांछित लोग करने लगते हैं.

सूप उतार लो, नाव हलकी हो जाय. मूर्खतापूर्ण बात. सूप हटाने से नाव के बोझ पर क्या फर्क पड़ेगा.

सूप के बजाने से ऊँट नहीं भागते. बहुत छोटे साधन से बड़े काम नहीं होते.

सूप बोले तो बोले, साथ में छलनी भी बोले, जामें बहत्तर छेद. सूप में अनाज को फटक कर उसमें से भूसी आदि अलग करने का काम किया जाता है. सूप एक बड़ा आइटम है जबकि छलनी छोटी सी चीज है. छलनी में बहुत सारे छेद भी होते हैं. अगर कोई बड़ा आदमी कोई आपत्तिजनक बयान दे और साथ में उसका चमचा टाइप का कोई आदमी भी बोलने लगे तो यह कहावत कही जाती है.

सूप में रखा बैंगन, जिधर चाहो उधर लुढ़काओ. अवसरवादी लोग, जैसे आजकल के नेता.

सूप से कहीं सूरज ढकता है. सूप जैसे छोटे से साधन से सूर्य ढकने जैसा बहुत बड़ा काम नहीं किया जा सकता.

सूप हँसे चलनी पे कि तुझ में बहत्तर छेद. जिस व्यक्ति में दोष ही दोष हों वह अपने से कम दोषों वाले व्यक्ति पर हँसे तो.

सूम का खर्च दूना. कंजूस आदमी मौके पर खर्च नहीं करता पर कभी न कभी वह ऐसा फंसता है कि उसे कई गुना अधिक खर्च करना पड़ता है.

सूम का धन बिरथा जाय. कंजूस आदमी का धन व्यर्थ ही जाता है, क्योंकि वह उसका स्वयं भी उपभोग नहीं करता और किसी को दान भी नहीं करता. कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – सूम का धन सैतान खाय.

सूम के घर कुत्ता न जाय. कंजूस के घर जाना कोई पसंद नहीं करता, क्योंकि वहाँ कुछ नहीं मिलता. 

सूमन पूछे सूम से, कासे मुक्ख मलीन, कै गांठी से गिर पड़ो, कै काहू को दीन्ह, ना गांठी से गिर पड़ो, ना काहू को दीन्ह, देवत देखा और को, तासे मुक्ख मलीन. कंजूस घर आया तो बड़ा उदास था. पत्नी ने पूछा, उदास क्यों हो. क्या गाँठ में से कुछ गिर पड़ा, या किसी को कुछ देना पड़ा. कंजूस बोला, ऐसा कुछ नहीं है, किसी और को कुछ दान करते देख लिया, उससे मन में हौला बैठ गया.

सूमी का धन अइसे जाय, जइसे कुंजर कैथा खाय. कहते हैं कि हाथी कैथे के फल को साबुत खा लेता है पर उसे पचा नहीं पाता और साबुत कैथा मल में निकल जाता है. कंजूस का धन भी इसी प्रकार व्यर्थ जाता है.

सूर समर करनी करहिं, कहि न जनावहिं आप, (विद्यमान रण पाय रिपु, कायर करहिं प्रलाप). सूर – शूरवीर, समर – युद्ध. वीर पुरुष युद्ध में ही वीरता दिखाते हैं, अपने आप उस का ढिंढोरा नहीं पीटते.

सूरज का क्या दोष जो उल्लू को न दीखे. कहते हैं कि उल्लू हो सूर्य के प्रकाश में नहीं दिखता. अब इस में सूर्य का तो कोई दोष नहीं माना जा सकता. यदि किसी मूर्ख को ज्ञानी की बात समझ में नहीं आती हो तो इस में ज्ञानी का क्या दोष. 

सूरज के शनीचर. जब किसी बहुत नेक इंसान का पुत्र दुष्ट हो तो. शनिदेव सूर्य के पुत्र हैं. सूर्य देव सौभाग्य और यश के दाता हैं जबकि शनि अमंगलकारी.

सूरज बैरी ग्रहन है, दीपक बैरी पौन, जी का बैरी काल है, आवत रोके कौन. ग्रहण सूरज का वैरी है और पवन दीपक का. इसी प्रकार काल जीवन का वैरी है इन्हें आने से कोई नहीं रोक सकता.

सूरत को क्या चाटें, जब सीरत ही नहीं है. किसी सुंदर व्यक्ति या स्त्री का व्यवहार अच्छा न हो तो सुंदरता का कोई मूल्य नहीं है.

सूरत देखकर गधे बिदकते है. किसी कुरूप (परन्तु घमंडी) व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए. 

सूरत न शकल, भाड़ में से निकल. किसी व्यक्ति की शक्ल सूरत अच्छी न हो पर वह अपने को बहुत सुन्दर और काबिल समझता हो उससे चिढ़ने वाले ऐसा बोल कर मन की भड़ास निकालते हैं.

सूरत में जैसे, सीरत में तैसे. उन लोगों की शक्ल सूरत भी अच्छी नहीं होती और व्यवहार भी खराब होता है, उन के लिए.

सूरत से कीरत बड़ी, बिना पंख उड़ जाए, सूरत तो जाती रहे, कीरत कभी न जाए. अच्छी शक्ल सूरत से कीर्ति बेहतर है जो दूर तक फैलती है और अमर रहती है.

सूरत से सीरत भली. शक्ल अच्छी हो पर व्यवहार बुरा हो तो आदमी बेकार है, सूरत अच्छी न हो पर व्यवहार अच्छा हो तो आदमी अच्छा है. इंग्लिश में भी एक कहावत है – Hamdsome is that handsome does.

सूरत है लंगूर की बस दुम की कसर है. किसी को चिढ़ाने के लिए बच्चों की कहावत.

सूरदास की काली कमरिया, चढे न दूजो रंग. काले कंबल पर दूसरा रंग नहीं चढ़ सकता. सूरदास जी ने इसे भक्ति के आशय में प्रयोग किया है अर्थात सूरदास जी कृष्ण की भक्ति में इतने डूबे हुए हैं कि उन पर कोई और रंग नहीं चढ़ सकता. जहां कोई व्यक्ति अपने कट्टर विश्वास के आगे कुछ मानने को तैयार न हो.

सूरदास जे मन के खोटे, अवसर परे जाहिँ पहिचाने. जो लोग भीतर से कपटी हैं वे अवसर पड़ने पर काम नहीं आते इसलिए पहचान लिए जाते हैं.

सूरा सो पूरा. जो शूरवीर है वही सम्पूर्ण व्यक्ति है.

सूर्य अस्त पहाड़ मस्त. पहाड़ पर शराब के अत्यधिक चलन के ऊपर कहावत.

सेंत की गंगा, हराम के गोते. मुफ्त की वस्तु का दुरूपयोग हर कोई करता है.

सेंत के धान मौसा कौ सराध. मुफ्त का राशन मिल गया है तो मौसा का श्राद्ध कर रहे हैं.

सेंदुर न लगाएं तो भतार का मन कैसे रखें. सिंदूर न लगाएँ तो पति को प्रसन्न कैसे करें. मालिक के मनपसंद काम करना ही पड़ेगा.

सेज की तो मक्खी भी बुरी. सौतिया डाह की पराकाष्ठा.

सेज चढ़ते ही रांड हुई. विवाह होते ही विधवा हो गई. कोई काम होते ही बिगड़ गया हो तो.

सेठ के पेट में पापों की पोटली. अधिकतर लोग यह मानते हैं कि धनवान लोगों की कमाई पाप की होती है.

सेनापति को सेना का जोर और सेना को सेनापति का जोर. सैनिक वीर और बुद्धिमान हों तो सेनापति की शक्ति बहुत बढ़ जाती है, सेनापति वीर और बुद्धिमान हो तो सेना का मनोबल और शक्ति बहुत बढ़ जाता है.

सेर को सवा सेर. किसी चालाक आदमी का उससे भी चालाक से पाला पड़े तो.

सेर भरे के बाबाजी, सवा सेर का शंख. यदि उपकरण बड़ा हो और उसे प्रयोग करने वाला छोटा, तो मजाक में ऐसा कहते हैं.

सेर मरद पसेरी बरद. बरद – बैल, पसेरी – पांच सेर. मेहनतकश आदमी की खुराक एक सेर अनाज की होती है और बैल की पांच सेर की. 

सेवा करोगे तो मेवा मिलेगी. सेवा किसी की भी करो, हमेशा अच्छा फल ही मिलता है.

सेही का काँटा घर में मत रखो, लड़ाई होगी. यह एक लोक विश्वास है.

सैंया की सी कहूँ तो पीहर से नाता टूटे, भैया की सी कहूँ तो सेजिया छूटे. पति के पक्ष में बोलने पर भाई से नाता टूटता है, भाई के पक्ष में बोलूँ तो पति का घर छूटता है. स्त्रियों के लिए दुविधा की स्थिति.

सैंया के मन मुँह पाईं तो सासू के झोंटा नेवाईं. (भोजपुरी कहावत). पति के मन की थाह मिले और समर्थन मिले तो सास के बाल नोचूँ.

सैंया गए आँख लाने, कानी मन पतियाए. किसी ने कानी से कहा कि तुम्हारा पति तुम्हारे लिए आँख लेने गया है, तो कानी उस पर विश्वास कर लेती है. मजबूर आदमी किसी असंभव बात पर भी विश्वास कर लेता है.

सैंया गए परदेस तो अब डर काहे का. जो मनचली स्त्री पति से डरती हो वह उसके बाहर जाने पर निरंकुश हो जाती हैं. कड़क हाकिम के बाहर जाने पर उसके अधीनस्थ कर्मचारी भी मस्त हो जाते हैं.

सैंया ने इस दुनिया में लाखों किए इकट्ठे, कबहिं न लाए लड्डू पेड़े बेर खिलाए खट्टे. कंजूस पति के लिए.

सैंया भए कोतवाल तो अब डर काहे का. यदि किसी का निकट संबंधी किसी अच्छी पोस्ट पर हो और वह उस के बल पर इतराए तो यह कहावत कही जाती है. रूपान्तर – सैंया भए कोतवाल तो हम नंगे सोयेंगे.

सैयां से फुरसत नाहिं, देवर मांगे आंचल की छांह. पति से तो फुर्सत नहीं मिलती और छोटा देवर लाड़ प्यार मांग रहा है. परिवार की जिम्मेदारियों के बीच संतुलन रखने का संकट.

सो घर सत्यानाश जहां है अति बल नारी. जिस घर में स्त्री की सत्ता चलती है उस का सत्यानाश हो जाता है.

सो ताको सागर जहां जाकी प्यास बुझाए. जिसकी जहां प्यास बुझे उसके लिए वही सागर है.

सो पंछी पिंजरे परै जो बोले बहु मीठ (मीठी बानी बोलि कै, परत पींजरा कीर). कीर – तोता. तोता मीठी बोली बोलता है इसलिए पिंजरे में बंद कर के रखा जाता है. अधिक मीठा होना भी खतरनाक है.

सो फल कोई न ले सके, जहाँ कंटीली डार. जो फल कंटीली डाल पर लगता है उस को तोड़ने की जल्दी कोई हिम्मत नहीं करता. तात्पर्य है कि वस्तु सुरक्षित तभी रहती है जब उस तक पहुँचने में संकट उत्पन्न किए जाएँ.

सोंठ सुहागा सेंधा हींग, सहजन के रस बांधो मींग, सत्तर सूल बहत्तर बाय, खाते छूमंतर हो जाए. वायु रोग के लिए घरेलू नुस्खा. ऐसे नुस्खों की कोई प्रामाणिकता तो नहीं है पर वे प्रचलन में हैं

सोच कर चलना मुसाफिर, यह ठगों का गाँव है. संसार में तरह तरह के प्रलोभन हैं, उनसे सावधान रहो.

सोच करन्ता पुरषा हारे, मर्द वही जो पहले मारे. लड़ाई होने पर जो सोचता ही रहता है वह हार जाता है, वीर पुरुष वही है जो पहले बढ़ कर मारे. रूपान्तर –  ज्ञान गिने सो मूरख हारे, वो जीते जो पहले मारे.

सोचो आज, बोलो कल. बोलने से पहले भली भांति सोचना चाहिए.

सोचो साथ क्या जाएगा. इंसान कितना भी कुछ इकट्ठा कर ले अपने साथ कुछ भी नहीं ले जा सकता.

सोटे चल, अब तेरी बारी. सोटा – डंडा. जहाँ बातचीत से मसला हल न हो और बल प्रयोग की नौबत आ जाए.

सोते का मुंह कुत्ता चाटे. जो सचेत नहीं है उसको कोई भी नुकसान पहुँचा सकता है या कोई भी उसका अनुचित लाभ उठा सकता है.

सोते को जगावे, स्वांग करते को क्या जगावे. जो सो रहा हो उसे जगाया जा सकता है, जो सोने का नाटक कर रहा हो उसे कैसे जगा सकते हैं. स्वांग – नाटक.

सोते को सोता कब जगाता है. जो स्वयं चौकन्ना नहीं है वह दूसरे को सचेत कैसे कर सकता है.

सोते शेर को मत जगाओ (सोते नाग को मत छेड़ो) (सोती बर्रों को मत छोड़ो). शेर या नाग कितने भी खतरनाक हों अगर सो रहे हैं तो आप का कुछ नहीं बिगाड़ते इस लिए उन्हें सोने दो. कोई शक्तिशाली व्यक्ति, समाज या देश अगर सोया पड़ा है तो ऐसा कोई काम न करो जिससे उसके जागने का खतरा हो. अंग्रेजों ने भारत पर कब्जा कर लिया पर चीन को कभी नहीं छेड़ा. वे यही कहावत कहते थे. 

सोना चांदी आग में ही परखे जाते हैं. उच्च गुणों वाले व्यक्ति मुसीबत पड़ने पर ही परखे जाते हैं.

सोना छुए तो मिट्टी हो. अत्यंत भाग्यहीन व्यक्ति.

सोना जाने कसे, आदमी जाने बसे. कसौटी नाम का एक विशेष प्रकार का पत्थर होता है जिस पर सोने को घिसकर देखा जाता है कि वह शुद्ध है या मिलावटी. इस प्रक्रिया को कसौटी पर कसना कहते हैं. इस कहावत की पहली पंक्ति यह बताती है कि सोना कैसा है यह कसने से ही जाना जा सकता है. दूसरी पंक्ति का अर्थ है कि आदमी की पहचान उसके पास बसने यानी साथ रहने से ही हो सकती है.

सोना तौले ओर ईंटो का धड़ा करे. महा मूर्खतापूर्ण कार्य. कोई सामान तोलने से पहले तराजू के दोनों पलड़ों को बराबर किया जाता है. इस के लिए जो पलड़ा हल्का है उस तरफ कुछ रख कर दोनों को बराबर करते हैं. इस प्रक्रिया को धड़ा करना कहते हैं. सोना तोलने में खसखस के दानों से धड़ा करते हैं.

सोना पाना और खोना दोनों बुरा. सोने जैसी मूल्यवान चीज का खोना तो बुरा है ही, कहीं पड़ा हुआ या गड़ा हुआ सोना मिलना भी बुरा समझा जाता है क्योंकि वह लड़ाई झगड़े और यहाँ तक कि लूट और हत्याकांड का कारण बन सकता है.

सोना बिगड़े सुनार घर, बिटिया बिगड़े बाप घर. सोना सुनार के घर जाने से बिगड़ जाता है (वह उसमें खोट मिला देता है). लड़की बाप के घर रहने से बिगड़ती है क्योंकि मायके में उस पर विशेष नियंत्रण नहीं रह पाता.

सोना मिट्टी में भी चमकता है. उत्तम गुणों वाले व्यक्ति सभी परिस्थितियों में अपनी अलग पहचान बना लेते हैं.

सोना लेने पिय गए सूना कर गए देस, सोना मिला न पिय मिले चांदी हो गए केस. पति पैसा कमाने विदेश चले गए. बेचारी पत्नी को न पैसा मिला, न पति मिले, प्रतीक्षा में बाल सफ़ेद हो गए. व्यापार के सिलसिले में जो, लोग लम्बे समय तक बाहर रहते हैं उन के लिए.

सोना सज्जन साधुजन, टूट जुड़ें सौ बार, दुर्जन कुम्भ कुम्हार के, एकै धके दरार. सोना और साधु प्रवृत्ति के लोग बार बार टूटने के बाद भी जुड़ जाते हैं जबकि दुर्जन लोग कुम्हार के घड़े के समान होते हैं जोकि एक ही धक्के से टूट जाते हैं और फिर कभी नहीं जुड़ते. 

सोने का घर माटी कर दिया. बना बनाया काम बिगाड़ दिया.

सोने का निवाला खिलाइए और शेर की निगाह से देखिये. खिलाने पिलाने में बच्चे का खूब लाड़ प्यार करें पर उस पर कड़ी नज़र भी रखें.

सोने की कटारी कोई पेट में नहीं मारता. कटारी सोने की हो या हीरे मोती जड़ी हो, अपने पेट में थोड़ी मार ली जाएगी. किसी बहुमूल्य वस्तु को कोई अपने नुकसान के लिए प्रयोग कर रहा हो तो. 

सोने की कटोरी में कौन भीख न देगा. चंदा भी मांगने वाले की हैसियत देख कर दिया जाता है.

सोने की खोट तो सुनार ही जाने. किसी काम की बारीकियों को उस से संबंधित व्यक्ति ही जान सकता है.

सोने की बलेंडी और फूस का छप्पर. बलेंडी उस बल्ली को कहते हैं जिस पर छप्पर रखा जाता है. बलेंडी सोने की है और उस पर फूस का घटिया छप्पर रखा है – बेमेल और घटिया चीज़ (मखमल में टाट का पैबंद).

सोने के अंडे देने वाली मुर्गी का पेट न फाड़ो. नासमझी और जल्दबाजी खतरनाक होती हैं. सन्दर्भ कथा – एक आदमी के पास एक ऐसी मुर्गी थी जो रोज सोने का एक अंडा देती थी. उस अंडे को बेच कर उस की अच्छी आय हो जाती थी. एक दिन उसने सोचा कि रोज रोज मुर्गी की देखभाल करने और एक एक अंडा प्राप्त करने की बजाए एक ही दिन में सारे अंडे क्यों न निकाल लूँ. यह सोच कर उसने छुरा ले कर मुर्गी का पेट फाड़ दिया. लेकिन अंदर तो कुछ मिला ही नहीं, और मुर्गी भी मर गई. यह कहावत उन लोगों के लिए कही जाती है जो जल्दी लाभ उठाने के चक्कर में नुकसान उठाते हैं और फिर पछताते हैं.

सोने को जंग नहीं लगता. उत्तम लोगों को दोष नहीं व्यापते. खरे व्यक्ति को कलंक नहीं लगता.

सोने को मुलम्मे की जरूरत नहीं होती. चांदी या अन्य धातुओं को सोने जैसा दिखाने के लिए उन पर सोने की बहुत बारीक पर्त चढ़ाई जाती है जिसे मुलम्मा कहते हैं. जो खुद असली सोना है उसे मुलम्मे की क्या जरूरत. जो स्वयं गुणों से भरपूर है उसे आडम्बर या किसी और के नाम की क्या आवश्यकता.

सोने में सुगंध (सोने में सुहागा). अच्छे में और अच्छाई. अच्छा संयोग जुटना.

सोने वाले की भैंस पाड़ा ही जनेगी (सोने वाले को पड़वा और जागने वाले को पड़िया) (जो सोवेगा वो खोवेगा, जो जागेगा सो पावेगा). जो चौकन्ना होगा वह हमेशा फायदे में रहेगा, जो सोएगा वह नुकसान में रहेगा. सन्दर्भ कथा – दो पड़ोसियों की भैसें साथ-साथ ब्याहने वाली थीं. दोनों उनके ब्याहने की प्रतीक्षा कर रहे थे. रात अधिक हो गई तो एक ने कहा कि दोनों के जागने से क्या लाभ? एक आदमी सो जाए और भैंस जब ब्याहने को हो तो उसे भी जगा लिया जाए. ये कह कर वह सो गया और दूसरा जागता रहा. इत्तेफाक से थोड़ी देर बाद दोनों भैसें एक साथ ही ब्याह गईं. जो जाग रहा था, उसकी भैंस ने पाड़ा प्रसव किया और सोने वाले की भैस ने पाड़ी. लेकिन चूंकि पाड़ी की कीमत अधिक होती है इसलिए उसने पाड़े को दूसरी भैंस के साथ लगा दिया और पाड़ी को अपनी भैंस के साथ. फिर उसने अपने साथी को जगाया. जागने पर उसने पाड़ी को देख कर कहा कि इसकी शक्ल तो मेरी भैंस से मिलती है, लेकिन दूसरे ने कहा, नहीं, तुम्हारी भैंस तो पाड़ा ही ब्याई  है.इतने में एक तीसरा आदमी वहां आ गया और सारी स्थिति जानकर उसने कहा, सच चाहे जो हो, सोने वालों की भैंस तो पाड़ा ही जनती है.

सोने से गढ़ावल महंगी. जहाँ कच्चा माल तो महंगा हो ही पर उत्पादन की लागत और भी अधिक हो.

सोम भूखे न मंगल अघाए. जिस की स्थिति सदा एक सी रहती हो. अघाए – भरे पेट.

सोमे खेती बुधे घर, जो न जाने सो भी कर. सोमवार को खेती का काम और बुधवार को घर बनवाने का काम शुरू किया जा सकता है. इसके लिए किसी मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती.

सोया और मुआ बराबर. सोता व्यक्ति मरे के समान है. यहाँ सोये से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से भी हो सकता है जो अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सचेत न हो.

सोये घूरे पर और सपने देखे महलों के. अत्यंत निर्धनता में रहने वाला व्यक्ति यदि अत्यधिक धनवान बनने के सपने देखे तो.

सोलह सयान, बीस ज्ञान, पचीसे भान. सोलह वर्ष में लड़का सयाना हो जाता है, बीस में उसे बोध होता है, और पच्चीस वर्ष में संसार का अनुभव होने लगता है.

सोलह सिंगार किया, एक पैर में महावर दिया. फूहड़ नारी श्रृंगार करने में भी फूहड़पन दिखाती है.

सोलह हाथ साड़ी, आधी पिंडली उघाड़ी. जिस फूहड़ औरत को कपड़े पहिनने का शऊर न हो. बहुत लम्बी साड़ी होते हुए भी ऐसे बांधी है कि आधी पिंडली दिख रही है.

सोलहों सिंगार, घेंघा दिया बिगाड़. थाइरॉइड ग्रंथि के अत्यधिक बढ़ जाने से गले में घेंघा रोग हो जाता है जोकि देखने में बहुत बुरा लगता है. ऐसी कोई स्त्री कितना भी श्रृंगार कर ले, वह सुंदर नहीं लग सकती. 

सोवन को कुम्भकरन, भोजन को भीम. जो आदमी सोता भी बहुत हो और खाता भी बहुत हो.

सौ अजान, एक सुजान. सौ कमअक्ल लोगों के मुकाबले एक चतुर व्यक्ति का साथ अधिक अच्छा है. 

सौ इलाज एक परहेज (सौ दवा, एक परहेज) (सौ औषधि, एक पथ्य). परहेज इतना कारगर है कि सौ दवाओं से अधिक असर कारक है. इसको इस प्रकार भी कह सकते हैं कि परहेज़ न करो तो सौ दवाएं बेकार हैं.

सौ ऐबों का एक ऐब गरीबी. 1. गरीबी आदमी से मजबूरी में बहुत से गलत काम कराती है. 2. गरीब कितना भी ईमानदार हो लोग उसे चोर कह कर अपमानित करते हैं.

सौ कपूत से एक सपूत भला. बहुत सारे पुत्र हों और माँ बाप का ध्यान न रखें उन से एक ऐसा पुत्र बेहतर है जो उनका ध्यान रखे और संसार में माता पिता का यश फैलाए.

सौ का भाई साठ. बेतुके तर्क द्वारा किसी को मूर्ख बनाना. सन्दर्भ कथा – गाँव के साहूकार का एक जाट पर सौ रुपये का ऋण था. बार-बार टोकने पर भी जब उस जाट ने ऋण अदा नही किया तो बनिया उसके घर गया और बोला कि आज तुम्हें रुपये देने ही पड़ेंगे. इस पर जाट बोला कि आप सौ रुपये मागते है, लेकिंन सौ और साठ तो भाई भाई हैं, इसलिए मुझे साठ रुपये ही देने हैं. लेकिन इन साठ में आधे रुपये छूट के रहेंगे. इस प्रकार शेष तीस रुपये देने रहे. इन में से दस रुपये तो फिर कभी दे दूंगा, दस किसी से दिलवाउंगा और दस का क्या देना-लेना, चलो हिसाब चुकता हुआ.

सौ कालियों पर एक काला. कालिया नाग के सौ फनों को एक ही कृष्ण (काले) ने कुचल दिया. जब एक शूरवीर अपने युद्ध कौशल से अनेकों शत्रुओं को नष्ट कर दे तो.

सौ की हानी, सहस बखानी. कुछ लोग थोड़े से नुकसान को बहुत बढ़ा चढ़ा कर बताते हैं उनके लिए (सौ की हानि हुई तो हजार बता रहे हैं).

सौ कौवों में एक बगला भी नरेस. जहाँ सभी अयोग्य हों वहाँ थोड़ी सी योग्यता रखने वाला भी राजा बन जाता है  इस से मिलती जुलती कहावत है – अंधों में काना राजा.

सौ खोटों का वह सरदार, जिसकी छाती एक न बार. जिस पुरुष की छाती पर एक भी बाल न हो उसे बहुत धूर्त माना जाता है. (लोक विश्वास)

सौ गज नापूँ और गज भर न फाडूँ. जो बातें बहुत करे और काम कुछ न करे.

सौ गज पानी में रहे, मिटे न चकमक आग. चकमक पत्थर एक विशेष प्रकार का पत्थर होता है जिसको आपस में रगड़ने पर चिंगारी निकलती है. जब माचिस का आविष्कार नहीं हुआ था तो लोग चकमक रगड़ कर उससे सूखे घास फूस में आग पैदा करते थे. चकमक पत्थर को सौ गज पानी के नीचे डूबा कर रखो तब भी बाहर निकालने पर वह आग पैदा करता है. व्यक्ति में जो मौलिक गुण होता है वह विपरीत परिस्थियों में रहने पर भी नष्ट नहीं होता.

सौ गाथा सूआ पढ़े, अंत बिलाई खाय. तोते को कितना भी कुछ भी बोलना सिखा दो अंत में वह बिल्ली का भोजन बन जाता है. जो व्यक्ति स्वयं योग्य न हो केवल रट कर ही कुछ बोल लेता हो वह अपनी रक्षा स्वयं नहीं कर सकता.  विस्तार – चतुराई क्या कीजिये, जो नहि सब्द समाय, कोटिक गुन सूआ पढ़े, अंत बिलाई खाय.

सौ गुंडा न एक मुछमुंडा. किसी किसी समाज में जो लोग मूंछ मुंडवा देते हैं उन्हें लफंगा समझा जाता है. ऐसे ही समाज का कथन.

सौ घोड़ा सौ करहला पूत सपूती जोय, मेहा तो बरसत भला होनी हो सो होय. करहला – ऊँट. वर्षा की बाढ़ से किसी के सौ घोड़े, सौ ऊँट और स्त्री पुत्र बह गए तो भी उस ने कहा कि भले ही मेरा सर्वस्व बह गया पर मैं यही कहूँगा कि वर्षा होनी तो आवश्यक है (मनुष्य मात्र की भलाई के लिए).

सौ चंडाल न इक कंगाल. पुराने जमाने में श्मशानघाट में काम करने वाले व्यक्ति को समाज का सबसे निकृष्ट सदस्य माना जाता था और उसे चंडाल कहते थे. सभी वर्णों के लोग उस बेचारे से छुआछूत मानते थे. कंगाल आदमी को उससे भी गया गुज़रा बताया गया है.

सौ चाकर तबहुँ घर सूना. घर में कितने भी नौकर चाकर हों, अपने प्रिय व्यक्तियों के बिना घर सूना है.

सौ चोर न एक उठाईगीर. उठाईगीर चोरों से भी अधिक खतरनाक होता है.

सौ ज्योतिषी और एक बुढ़िया. सौ भविष्यवक्ताओं के किताबी ज्ञान की तुलना में एक अनुभवी व्यक्ति की बात ज्यादा सही और वजनदार होती है.

सौ डंडी एक बुन्देलखंडी. सौ कसरती जवानों की बराबरी एक बुन्देलखंडी करता है. (आत्म प्रशंसा का रोग)

सौ दवा एक हवा. प्रदूषण मुक्त शुद्ध वातावरण में रहना सौ दवा खाने के बराबर है.

सौ दिन का चोर एक दिन जरूर धराई. चोर कितना भी शातिर क्यों न हो और कितनी भी चोरियां क्यों न कर ले, एक दिन जरूर पकड़ा जाता है (जैसे आजकल के कुछ भ्रष्ट नेता).

सौ दिन सासू के एक दिन बहू का. सास बहू को तरह तरह से परेशान करती रहती है पर जब बहू का दांव लगता है तो वह एक ही बार में हिसाब बराबर कर लेती है.

सौ नकटों में एक नाक वाला नक्कू. जहां गलत विचारों के लोगों का बाहुल्य हो वहाँ पर सही विचार वाले हास्य  व्यंग्य के पात्र बन जाते हैं।

सौ पट्टा और एक लट्ठा. किसी स्थान पर मालिकाना हक जताने वाले सौ पट्टे दार हों, उन पर एक ही लठैत भारी होता है. रूपान्तर – कब्ज़ा सच्चा मुकदमा झूठा.

सौ बरस का कारीगर, और बारह वर्ष का मालिक. जहाँ कम आयु वाले अनुभवहीन लोगों के नीचे अधिक आयु वाले अनुभवी लोगों को काम करना पड़े. जैसे कुछ परिवारवादी राजनैतिक दलों में अनुभवहीन लडके अध्यक्ष बन जाते हैं और बुजुर्ग कार्यकर्ता उनके जूते उठाते हैं.

सौ बार चोर की, एक बार शाह की. चोर कितनी भी चोरियाँ कर ले अंततः पकड़ा जाता है और फिर उसे सारी कसर चुकानी पडती है. सन्दर्भ कथा – एक लड़का किसी बनिए की दूकान पर नौकर था. उसे रोज घड़े में से गुड़ चुराकर खाने की आदत पड़ गई थी. एक दिन बनिए ने अनुभव किया कि कोई गुड़ चुराकर खा लेता है, क्योंकि घड़ा बहुत खाली था. चोर को पकड़ने की गरज़ से उसने गुड़ के घड़े को अलग रख दिया और उसके स्थान पर बिरोजे से भरा एक दूसरा घड़ा रख दिया. दूसरे दिन रोज की तरह लड़का वहां पहुंचा और गुड़ के धोखे बिरोजा निकालकर मुँह में रख लिया, जिससे उसका मुंह चिपक गया. इस तरह बनिये को चोर का पता चल गया और लड़के की उसने खूब मरम्मत की.  

सौ बार तेरी, एक बार मेरी. 1. बार बार तेरी बात मानी जाती है एक बार मेरी भी मानी जानी चाहिए. 2. तूने सौ बार मुझे धोखा दिया है, अब एक बार तू मेरा दांव देख. 

सौ भैंसियों में एक पाड़ा, राकड़सिंह नाम. सौ मूर्खों में एक बुद्धिमान बड़े ठाट से उन पर रुआब जमाता है.

सौ मन अनाज की एक मुट्ठी बानगी. जिस प्रकार किसी अनाज की गुणवत्ता जानने के लिए उस के ढेर में से एक मुट्ठी अनाज पका कर देखते हैं (इसे बानगी कहते हैं), उसी प्रकार किसी जाति या समाज के बारे में जानने के लिए कुछ लोगों से ही बात कर के जानकारी प्राप्त की जा सकती है.

सौ मन इल्म एक मन अकल. सौ विद्याओं से एक बुद्धि बड़ी है.

सौ मन का कुठला भर जाय पर सवा सेर का पेट नही भरता. मनुष्य का लालच इतना बड़ा है कि उसे कितना भी मिल जाए, उसका पेट नहीं भरता.

सौ मारे और एक गिने (सौ मारूँगा और एक गिनूँगा). बेहिसाब मारने वाला.

सौ में फुली सहस में काना, सवा लाख में एंचकताना, एंचकताना करे पुकार, मैं मानी कैरा से हार, कैरा बुद्धि बिनासी, करे बाप की हांसी, जिनकी नइयाँ छतियन बार, उनसे कैरा मानी हार. (बुन्देलखंडी कहावत) फुली – जिसकी आँख में फुल्ली की बीमारी हो, एन्चकताना – भेंगा (टेपंखा), कैरा – कंजा (भूरी आँख वाला). लोक विश्वास है कि उपरोक्त सभी प्रकार के लोग धूर्त होते हैं. सौ लोगों में एक की आँख में फुल्ली होती है, हजार में एक काना होता है और सवा लाख में एक एन्चकताना. कंजा आदमी एन्चकताने से भी अधिक धूर्त होता है और जिसकी छाती पर बाल न हों उस से कंजा भी हार मान लेता है.

सौ में शूर और हजार में दानवीर. सौ में कोई एक व्यक्ति वीर होता है और हजार में एक दानवीर.

सौ में सती, लाख में जती. सैकड़ों स्त्रियों में एक सती (पतिव्रता) होती है, और लाखों पुरुषों में एक यती (योगी).

सौ में सूर सहस में काना, एक लाख में ऐंचक ताना, ऐचंक ताना करे पुकार, कंजा से रहियो हुशियार, जाके हिये न एकहु बार, ताको कंजा ताबेदार, छोट गर्दना करे पुकार, कहा करे छाती को बार. अर्थ ऊपर वाली कहावत की भांति. फुल्ली के स्थान पर अंधे का वर्णन है. छोटी गर्दन वाला इन सभी से अधिक धूर्त बताया गया है.

सौ लावे राँड़ी, एक न लावे छाँड़ी. सौ विधवा भले ही रख ले, परन्तु किसी की छोड़ी हुई स्त्री कभी न रखे.

सौ सयाने एक मत. बुद्धिमान लोगों का किसी विषय पर एक ही मत होता है. सन्दर्भ कथा – निन्नानवे घड़े दूध में एक घड़ा पानी क्या जाना जाय? एक बार अकबर बादशाह ने बीरबल से पूछा कि किस जाति के लोग सबसे अधिक चतुर होते हैं. बीरबल ने जवाब दिया ‘ग्वाले’. अकबर ने कहा,  सिद्ध करो. बीरबल ने अपने कथन की सत्यता को सिद्ध करने के लिए आगरे के सब ग्वालों को बुलवाया और उनसे कहा कि एक बड़े हौज़ को रात में दूध से भरना है, इस के लिए हर ग्वाले को एक घड़ा दूध हौज में डालना है. हरेक ग्वाले ने अपने मन में सोचा कि सब लोग तो दूध डालेंगे ही, यदि वह उसमें एक घड़ा पानी डाल देगा तो किसी को पता नहीं चलेगा. यही समझकर सबने दूध की जगह पानी ही डाला और जब दूसरे दिन सुबह बादशाह और बीरबल हौज़ को देखने गए, तो उसे पानी से भरा पाया.

सौ सुनार की, एक लोहार की. (खुट खुट सुनार की, एक चोट लोहार की). 1. छोटे व्यापारी थोड़ा थोड़ा कमाते हैं, बड़ा व्यापारी एक ही सौदे में सारी कसर पूरी कर लेता है.  2.कोई दुश्मन को थोड़ा थोड़ा नुकसान पहुँचा रहा हो और दुश्मन एक ही वार में काम तमाम कर दे. भोजपुरी – सोनरवा की ठुक ठुक, लोहरवा की धम्म.

सौ सौ जूते खाएं, तमासा घुस कर देखें. ऐसे बेशर्म लोगों के लिए जो कितना भी अपमान सह कर तमाशा देखने के लिए कहीं भी घुस जाते हैं.

सौ सौ तरह के नाच नचाती हैं रोटियाँ. जीविका के लिए आदमी को क्या क्या नहीं करना पड़ता.

सौ हत्या पे बाघ भी मरे. अत्याचारी कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, जब अत्याचार की अति हो जाती है तो कभी न कभी वह भी मारा जाता है.

सौत का गुस्सा कठौत पर. कठौत – लकड़ी का बर्तन. गुस्सा किसी और का और निकालना किसी और पर.

सौत की मूरत भी बुरी (सौत तो चून की भी बुरी). सौत कभी अच्छी हो ही नहीं सकती हमेशा बुरी ही होती है.

सौत मरी हुई भी सताती है. किसी स्त्री की सब से बड़ी शत्रु उस की सौत होती है. जीवित सौत तो परेशान करती ही है, पति के मन में बसीं पूर्व पत्नी की स्मृतियाँ भी नई पत्नी के लिए परेशानी का कारण बनती हैं.

सौतों में खटपट, सास बदनाम. सौतों में आपस में खटपट होती रहती है, सास बेचारी बेकार में बदनाम होती है.

सौदा बिक गया, दूकान रह गई. वैश्या के बुढापे के लिए मजाक में ऐसा कहा जाता है.

सौदा लाभ का, राजा दाब का. सौदा वही अच्छा है जिसमें लाभ हो, राजा वही अच्छा जो रौब दाब रखता हो.

सौदा लीजे देख कर और रोटी खाइए सेंक कर. कोई भी चीज़ देख परख कर ही लेना चाहिए और रोटी को ठीक से सेंक कर ही खाना चाहिए.

सौर की टूटी मेहरारू, कातिक के टूटे बरधा, नहीं संभरते. बच्चा होने के बाद स्त्री की और कार्तिक की कठिन मेहनत के बाद बैलों की ढंग से खिलाई-पिलाई न की जाए तो उनका शरीर हमेशा के लिए दुर्बल हो जाता है.

स्यार आपनी खोह में परे परे सरि जाहिं, सिंह पराए देस में जहं मारे तहं खाए. सियार (कायर व्यक्ति) अपने घर में डर कर घुस के बैठा रहता है और सिंह (वीर पुरुष) दूसरे देश में भी अपना शिकार ढूँढ लेता है.

स्याही गई सफेदी आई, तो भी तुझे समझ ना आई. बाल काले से सफेद हो गए (उम्र बढ़ गई) फिर भी अक्ल नहीं आई.

स्याही बालों की गई, दिल की आरज़ू न गई. बूढ़े हो गए पर मनचलापन नहीं गया.

स्वर्ग की गुलामी से नरक का राज भला (स्वर्ग की मातहती से नरक की दरोगाई भली). गुलामी किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं है.

स्वांग बहुत रात थोड़ी. स्वांग भरना माने नाटक करना. पहले के लोग मनोरंजन के लिए चौराहों पर रात में इस प्रकार के कार्यक्रम करवाते थे. काम बहुत हो और समय बहुत कम तो यह कहावत कही जाती है.

स्वांग भी लाए तो कौड़ी का. बहुत छोटी सोच रखना.

स्वान धुनें जो अंग, अथवा लोटे भूमि पे, तो निज कारज भंग, अति ही असगुन मानिए. जो लोग शगुन अपशगुन विचार करते हैं उनके लिए कहावत है कि यदि आप किसी काम के लिए निकलें और कुत्ता जमीन पर लोटता दिख जाए तो काम नहीं होगा. (घाघ और भड्डरी की कहावतें)

स्वामी होनो सहज है दुर्लभ होनो दास. सच्चे अर्थों में किसी का दास बन कर रहना बहुत कठिन है.

स्वारथ के सब ही सगे, बिन स्वारथ कोउ नाहिं, सेवें पक्षी सरस तरु, निरस भये उड़ जाहिं. जब तक व्यक्ति के पास साधन रहते हैं, सब उससे मित्रता करते हैं. हरे पेड़ पर पक्षी निवास करते हैं, पेड़ सूखने पर उड़ जाते हैं.

स्वारथ न परमारथ. जो व्यक्ति न अपने लाभ के ले काम करे न समाज के लिए. उदासीन व इकलखोर.

स्वार्थ आदमी को अंधा बना देता है. अर्थ स्पष्ट है.

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