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रंक रीझे तो रो दे. गरीब बेचारा किसी बात पर बहुत खुश भी होता है तो केवल रो ही सकता है.
रंग कौए का, नाम महताब कुंवर. रूप के विपरीत नाम (रंग एकदम काला है और नाम है चाँद).
रंग फूल का तीन दिनां, फिर बदरंग. फूल का रंग केवल तीन दिन स्थिर रहता है. मनुष्य का यौवन और जीवन भी इसी प्रकार क्षणभंगुर है.
रंग में भंग. जहाँ कोई आनंद दायक कार्य चल रहा हो वहाँ यदि अचानक कोई विघ्न बाधा उपस्थित हो जाए तो यह कहावत कही जाती है.
रंग लाती है हिना पत्थर पे घिसने के बाद. मेहँदी पत्थर पर घिसने के बाद ही रंग लाती है. संघर्षों के बाद ही आदमी निखरता है.
रंडियों की खरची और वकीलों का खरचा पेशगी ही दिया जाता है. वेश्याएं और वकील अपनी फीस पहले ही ले लेते हैं क्योंकि बाद में लोग मुकर जाते हैं.
रंडी पैसे की यार. अत्यधिक धन के लोभियों के लिए तिरस्कार पूर्वक ऐसे बोला जाता है.
रंडी मांगे रूपया, ले ले मेरी मैया, फक्कड़ मांगे पैसा, आगे बढ़ो भैया. वैश्या रुपये (अधिक धन) मांगती है तो ख़ुशी से दे देते हैं और भिखारी पैसा (छोटी सी राशि) मांगता है तो उसे टरका देते हैं.
रंडुआ गया सगाई को, खुद को लाभ या भाई को. विधुर आदमी (विशेषकर अधिक आयु का विधुर) शादी कर रहा है. इसका लाभ उसे अधिक होगा या उसके छोटे भाई को? बात सामाजिक मर्यादा के विरुद्ध है लेकिन कहावत में यह सीख दी गई है कि अधिक आयु के व्यक्ति को कम आयु की कन्या की मजबूरी का फायदा उठा कर उस से विवाह नहीं करना चाहिए.
रंडुए की बिटिया और रांड का लड़का, जे दोनुहिं बिगड़ जात. क्योंकि बेटी को माँ संभालती है और पुत्र को पिता.
रंधे भात को क्या रांधिये और गाये गीत को क्या गाइये. कही बात को बार-बार क्या कहना.
रख पत, रखा पत. अपनी प्रतिष्ठा के अनुकूल व्यवहार करोगे तभी लोग सम्मान करेंगे.
रखे तो प्रीत, नहीं तो पलीत. मुझसे प्रेम मानते हो तो मैं भी प्रेम रखूँगा, नहीं तो तुम मेरे लिए प्रेत समान हो.
रघुकुल रीत सदा चलि आई, प्राण जाई पर वचन न जाई. दशरथ जी ने कैकेयी को दिया वचन निभाने में अपने प्राण त्याग दिए क्योंकि वचन को निभाना उन के कुल की रीत थी (उनके पूर्वज महान राजा रघु के कारण उनके कुल को रघुकुल कहा गया है). जो लोग अपने कहे पर अडिग रहते हैं वे यह कहावत बोलते हैं.
रटंत विद्या, खोदन्त पानी. रटते रटते विद्या आती है और खोदते खोदते भूमि में से पानी निकल आता है. लगातार चेष्टा करने से ही सफलता मिलती है.
रण जीत लिया. बड़ा काम कर लिया. कोई छोटा सा काम कर के खुश हो रहा हो तो व्यंग्य में.
रत्तियों जोड़े तोलों खोवे, बाको लाभ कहाँ से होवे. जो व्यक्ति जोड़े तो बहुत कम और गंवाए बहुत ज्यादा , उसे लाभ कहाँ से हो जाएगा. 1 तोला = 96 रत्ती.
रत्ती देकर मांगे तोला, नाम बतावे अपना भोला. अपने आप को बहुत भोला भाला बता कर दूसरों को ठगने का प्रयास करने वालों के लिए. रत्ती भर चीज़ दे कर उसके बदले में तोला भर मांग रहे हैं.
रत्ती भर सगाई न गाड़ी भर आशनाई (राई भर नाता न पेटहा भर प्रीत). बहुत थोड़ा प्रेम भी नहीं और बहुत सारा प्रेम भी नहीं. आपसी रिश्तों में संतुलित व्यवहार करना चाहिए.
रत्ती रत्ती साधे तो द्वारे हाथी होय, रत्ती रत्ती खोवे तो द्वारे बैठा रोय. छोटी छोटी बचत कर के बहुत बड़ी राशि इकट्ठी की जा सकती है और छोटी छोटी रकम गंवा कर कोई रईस आदमी भी कंगाल बन सकता है.
रन जीता जाए, जन नहीं जीता जाए. आततायी राजा युद्ध जीत सकता है पर जनता का मन नहीं.
रन्दा गये वसूला आये. रंदा – जिस औजार से बढ़ई लकड़ी रेतते हैं, वसूला – जिस से बढ़ई लकड़ी छील कर सुडौल बनाते हैं. जब कोई बुरा आदमी जाए और उसकी जगह उससे भी कहीं ज्यादा बुरा आदमी आ जाए तो.
रमता जोगी बहता पानी. घूमता हुआ योगी बहते पानी के समान निर्मल रहता है. जैसे ठहरा पानी गंदा हो जाता है वैसे ही योगी कहीं ठहर जाए तो उसके पतित होने की सम्भावना हो जाती है.
रवि जल उखरे कमल को मारत जारत जात. सूर्य को देख कर कमल खिलता है, लेकिन जल कम होने पर वही सूर्य कमल को जला कर मार देता है. जारत – जला देता है. अपने को प्रेम करने वाले के साथ बुरा व्यवहार.
रवि नहिं लखियत बारि मसाल. लखियत – देखते हैं. बारि – जला कर. सूर्य को देखने के लिए मशाल नहीं जलानी पड़ती. महापुरुषों की महानता किसी परिचय या प्रशंसा की मोहताज नहीं होती.
रवि हू की इक दिवस में तीन अवस्था होए. कोई कितना भी बड़ा आदमी क्यों न हो, उतार चढ़ाव सभी के जीवन में होते हैं. सब को प्रकाश देने वाले सर्वशक्तिमान सूर्य को भी एक दिन में तीन अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है.
रस में बिस घोल दिया. रंग में भंग कर दिया.
रस में विष, सुरजन में दुरजन. अच्छे लोगों के बीच कोई बुरा आदमी. भले परिवार में जन्मा कोई नीच व्यक्ति.
रसोई का वामन, कसाई का कूकुर. रसोई बनाने वाले ब्राह्मण और कसाई के कुत्ते को मुफ्त माल खूब खाने को मिलता है.
रस्सी जल गयी ऐंठ न गयी. रस्सी के दो हिस्से होते हैं जिन्हें बट के रस्सी बनाई जाती है. रस्सी के बट को उसकी ऐंठ कहते हैं. यदि रस्सी को जला दिया जाए तो भी उसकी ऐंठ वैसी ही बनी रहती है. यह कहावत उन अहंकारी लोगों के लिए कही जाती है जो धन व पद न रहने पर भी अहंकार (ऐंठ) नहीं छोड़ते.
रहट की हंडिया भरी आए और खाली जाए. रहट की गति भी इस संसार के चक्र के समान है.
रहट के बारह मास, इन्दर की दो घड़ी. रहट जितना पानी बारह महीने में नहीं निकाल पाता, इंद्र देवता उससे अधिक पानी दो घड़ी में बरसा देते हैं. रहट उस यंत्र को कहते हैं जिसकी सहायता से कुएं से सिंचाई के लिए पानी निकाला जाता था. रहट देखने के लिए परिशिष्ट देखिये.
रहना है तो कहना नहीं, कहना है तो रहना नहीं. अगर तुम्हें शक्तिशाली और दबंग लोगों के बीच रहना है तो कुछ कहना नहीं है (किसी बात पर कोई आपत्ति नहीं करनी है), कुछ कहोगे तो तुम्हें यहाँ रहने नहीं दिया जाएगा.
रहम दिली बड़ाई की निशानी है. दूसरों पर दया करना और दूसरों की सहायता करना ये बड़प्पन की निशानी है.
रहमन सोई मीत है भीर परे ठहराय. मित्र वही है जो विपत्ति में साथ खड़ा हो. भीर – विपत्ति.
रहा निकम्मा तो घर गया, गया निकम्मा तो घर गया. निकम्मा आदमी घर में रहे तो भी घर की हानि करता है, चला जाए तो भी हानि कर के ही जाता है. जैसे शराबी आदमी पहले शराब पी कर घर बर्बाद करता है, फिर बीमारी में सारा घर बिकवा कर मरता है.
रहिए भुक्ख तो रहिए सुक्ख. भूख से कम खाने वाला व्यक्ति सुखी रहता है.
रहिमन अँसुआ नैन ढरि, जिय दुख प्रगट करेइ, जाहि निकारो गेह ते, कस न भेद कहि देइ. रावण ने विभीषण को घर से निकाला तो उस ने लंका के सारे भेद श्री राम को जा कर बता दिए. इसी प्रकार आंसू भी आँख से निकाले जाते हैं तो हृदय का भेद (दुख) सब पर प्रकट कर देते हैं.
रहिमन असमय के परे, हित अनहित होई जाय. रहीम कवि कहते हैं कि बुरा समय आने पर मित्र भी शत्रु हो जाते हैं.
रहिमन ओछे नरन सों बैर भला न प्रीत, काटे चाटे स्वान के दोहु भांत विपरीत. ओछी प्रकृति के व्यक्ति से प्रेम भी नहीं करना चाहिए और दुश्मनी भी नहीं. कुत्ते से दुश्मनी करोगे तो आपको काट लेगा, प्यार जताओगे तो मुँह चाट लेगा. रूपान्तर-हितहू भलो न नीच को, नाहें भलो अहेत, चाट अपावन तन करे, काट स्वान दुख देत.
रहिमन चाक कुमार का माँगे दिया न देय, छेद में डंडा डार के चहे नाँद ले लेय. कुम्हार का चाक मांगने से एक दिये जैसी छोटी चीज़ भी नहीं देता और डंडा मारने पर नांद जैसी बड़ी चीज़ भी दे देता है.
रहिमन छोटे नरन सों बड़ो बनत नहीं काम. बहुत सारे छोटे लोग मिल कर भी कोई बड़ा काम नहीं कर सकते.
रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग पताल, आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल. जीभ कुछ भी बोल कर चुपचाप मुँह के अंदर चली जाती है और सर उसके बदले में जूते खाता है.
रहिमन तीन प्रकार ते हित अनहित पहिचान, पर बस परे, परोस बसि, परे मामला जान. कोई आपका हितैषी है या नहीं इसकी पहचान तीन परिस्थितियों में होती है – आप को कहीं पराधीन होना पड़े उस स्थिति में उस का व्यवहार कैसा है, या फिर उसके पड़ोस में रह कर, या जब उससे कोई काम अटके.
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि, जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि. कितने भी बड़े लोगों से आपके सम्बन्ध क्यों न हों, छोटे लोगों का अनादर और उपेक्षा नहीं करना चाहिए. जो काम सुई करती है तलवार नहीं कर सकती.
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय, टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय. आवेश में आ कर किसी के साथ सम्बन्ध तोड़ना नहीं चाहिए. जिस प्रकार धागा टूटने के बाद जोड़ा जाए तो उसमें गाँठ पड़ जाती है, उसी प्रकार सम्बन्ध टूटने के बाद जोड़ा जाए तो उसमें भी गाँठ पड़ जाती है.
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय, सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय. अपने मन की व्यथा को अपने तक सीमित रखना चाहिए दूसरों से नहीं कहना चाहिए. दूसरे लोग सुन कर हंसते हैं, कोई आपका दुख नहीं बांटता.
रहिमन नीचन संग बसि, लगत कलंक न काहि, दूध कलारी कर गहे, मद समुझै सब ताहि. नीच लोगों के संग रहने से कलंक लगने का खतरा रहता है. शराब बेचने वाली स्त्री अगर दूध का गिलास भी पकड़े हो तो सब उसे शराब ही समझते हैं. (कलारी – शराब बेचने वाली).
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून. बिना स्वाभिमान के मनुष्य बेकार है. इसके आगे की पंक्ति है – पानी गए न ऊबरे, मोती मानुस चून.
रहिमन बहु भेषज करत, ब्याधि न छाँड़त साथ, खग मृग बसत अरोग बन, हरि अनाथ के नाथ. मनुष्य बीमार होने पर तरह तरह की दवाएं करता है लेकिन बीमारी ठीक नहीं होती, जबकि पशु पक्षी वन में निरोग रहते हैं (क्योंकि प्रभु उन सब के रक्षक हैं जिन का कोई नहीं है).
रहिमन बिपदाहू भली, जो थोरे दिन होय, हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय. विपत्ति यदि थोड़े दिन की हो तो उस से एक लाभ भी होता है. यह पता चल जाता है कि मुसीबत में कौन हमारा साथ देने वाला है. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – बिपद बराबर सुख नही, जो थोड़े दिन होय.
रहिमन मोहिं न सुहाए, अमिय पियावत मान बिनु, जो विष देत बुलाय, मान सहित मरिवो भलो. अपमान सह कर अमृत पीने के मुकाबले सम्मान सहित विष पीना बेहतर है.
रहिमन या संसार में, सब सौं मिलिये धाइ, ना जानैं केहि रूप में, नारायण मिलि जाइ. इस संसार में सब से आदर पूर्वक मिलना चाहिए. क्या मालूम प्रभु कौन सा रूप धर कर हमारी परीक्षा ले लें. भक्त नामदेव ने रोटियाँ सेंक कर रखीं तो कुत्ता उन्हें ले कर भागा. नामदेव कुत्ते के पीछे घी का डब्बा ले कर दौड़े, प्रभु घी तो लगवा लो.
रहिमन रहिला हूँ भली जो परसै चित लाय, परसत मन मैला करै सो मैदा जरि जाय. रहिला – चना. रहीम कहते हैं कि प्रेम से परोसा हुआ सूखा चना, अनमने से परोसी गई मैदा से अच्छा है.
रहिमन वे नर मर चुके जे कहुं मांगन जाएं, उनते पहले वे मुए जिन मुख निकसत नाहिं. किसी से मांगना बहुत निकृष्ट कार्य है लेकिन मांगने वाले को मना करना उस से भी निकृष्ट है.
रहिमन यह तन सूप है, लीजे जगत पछोर, हलुकन को उड़ि जान दे, गरुए राखि बटोर. यह शरीर सूप के समान है जिससे दुनिया में जो कुछ भी है उसे पछोर लेना (फटक लेना) चाहिए. जो हल्का अर्थात सारहीन हो, उसे उड़ जाने दो, और जो भारी अर्थात् सारमय हो, उसे रख लो.
रहिये लटपट काट दिन, बरु घामें मा सोय, छाँय न बाकी बैठिये जो तरु पतला होय. किसी प्रकार दिन काट लीजिये, भले ही धूप में सोना पड़े, लेकिन पतले पेड़ की छाँव में मत बैठिये. ओछे का सहारा नहीं लेना चाहिए.
रहे अंत मोची के मोची. सदा दुर्दशा में रहना.
रहे के ठेकान ना पंड़ाइन मांगस डेरा. भोजपुरी कहावत. अपने रहने का ठिकाना नहीं है और पंडितानी घर में रहने को कह रही हैं.
रहे जीव तो खाए घीव. जान रहेगी तभी तो घी खाओगे. स्वास्थ्य का ध्यान रखना सभी के लिए आवश्यक है.
रहे तो आप से, नहीं तो जाय सगे बाप से. 1. स्त्री सच्चरित्र रह सकती है तो अपने आप ही, अन्यथा अपने बाप के साथ भी बिगड़ सकती है. 2. स्त्री सच्चरित्र रह सकती है तो अपने आप ही अपने बाप के कहने से नहीं.
रहे निरोगी जो कम खाय, बिगरे काम न, जो गम खाय. जो कम खाते हैं वे जल्दी बीमार नहीं पड़ते. जो संतोष करना जानते हैं उनके काम नहीं बिगड़ते.
रहे बजावत दुंदुभी, दसकंधर के द्वार, कलजुग में वो ही भए, जात बंस भुमिहार. भूमिहार – मुख्यत: बिहार में बसने वाली खेतिहर ब्राह्मणों की एक उपजाति, दसकंधर – रावण. भूमिहारों से द्वेष रखने वाले लोगों का कथन है कि ये लोग रावण के द्वार पर दुंदुभी बजाने वालों के वंशज हैं.
रहै का कोरियाने भूँके का चमराने. ऐसा कुत्ता जो रहता और खाता कोरी के घर है और पहरेदारी चमार की करता है. कृतघ्न लोगों के लिए कही कहावत. कोरियाना – बुनकरों की बस्ती. चमराना – चमारों का गाँव.
राँड़ मांड ही में मगन. मांड – उबले हुए चावल को छानने के बाद बचने वाला स्टार्च युक्त पानी. गरीब और वंचित व्यक्ति को जो मिल जाए उसी में खुश हो जाता है.
रांघड़ गूजर दो, कुत्ता बिल्ली दो, ये चारों न हों तो खुले किवाड़ों सो. रांघड़ – मुस्लिम राजपूतों की एक जाति, गूजर – कुछ संपन्न और कुछ खानाबदोश जाति के लोग (कहावत में खानाबदोश गूजरों से ही तात्पर्य है). रांघड़ और गूजरों पर अक्सर चोरियां करने का इल्जाम लगाया जाता है. कहावत में भी यही कहा गया है कि ये दोनों न हों और कुत्ते बिल्लियाँ न हों तो आप किवाड़ खोल कर भी सो सकते हैं.
रांड और खांड का जोवन रात को. दुश्चरित्र स्त्री और मिठाई रात में अपने यौवन पर आती हैं.
रांड का रोना और पुरबा का बहना व्यर्थ नहीं जाते. यदि पुरबा हवा बहे तो वर्षा अवश्य होती है और विधवा स्त्री विलाप करे (दुखी हो कर श्राप दे) तो अमंगल अवश्य होता है).
रांड के रोने में भी बान. विधवा स्त्री विलाप करती है तो भी कुल की मर्यादा का ध्यान रखती है.
रांड को साँड़. विधवा का लड़का, जो पिता के न होने से प्रायः उच्छृंखल बन जाता है.
रांड नानी के घर नाती भतार. विधवा नानी के घर पर धेवता ही घर का मालिक बन जाता है.
रांड रंडापा तब काटे, जब रंडुए काटन देंय. कोई युवा विधवा स्त्री मर्यादा के भीतर रह कर संयम के साथ अपने वैधव्य के दिन काट रही है लेकिन आस पड़ोस के मनचले कुंवारे लड़के उसके आस पास मंडराते रहते हैं और उसको उकसाते रहते हैं. कोई डायबिटीज़ का मरीज़ बेचारा परहेज़ करना चाहता है लेकिन और लोग उससे जिद करते रहते हैं कि यह खा लो वह खा लो.
रांड रोवे मांग खातिर, निपूती रोवे कोख खातिर. विधवा स्त्री सुहाग के लिए तरसती है और निस्संतान स्त्री संतान के लिए. इस संसार में सब के अपने अपने दुख हैं.
रांड रोवे, कुँवारी रोवे, साथ लगी सतखसमी रोवे. विधवा स्त्री अपने कष्टों के कारण रो रही है, साथ में कुँवारी भी मन में डर के कारण रो रही है लेकिन ये सात पतियों वाली क्यों रो रही है.
रांड, भांड और सांड बिगड़े बुरे. दुश्चरित्र स्त्री, हिजड़े और सांड, बिगड़ें तो बहुत नुकसान पहुँचा सकते है.
रांड, सांड और नकटा भैंसा, ये बिगड़ें तो होवे कैसा. दुश्चरित्र स्त्री, सांड और नाथने वाली रस्सी से नाक कटा हुआ भैंसा, ये बिगड़ जाएं बहुत नुकसान कर सकते हैं. हिंसक प्रवृत्ति के पुरुषों के लिए भी प्रयोग करते हैं.
रांड, सांड, सीढ़ी, सन्यासी, इनसे बचे तो देखे काशी. काशी में बहुत सी विधवा स्त्रियाँ स्थान स्थान से आ कर रहती हैं और भिक्षा मांग कर गुजारा करती हैं, वहाँ की तंग गलियों में सांड भी खूब घूमते हैं, काशी के घाटों की सीढ़ियाँ खतरनाक रूप से टूटी फूटी और फिसलन भरी हैं जिनसे आसानी से कोई दुर्घटना का शिकार हो सकता है और काशी में सन्यासी भी बहुत हैं जिनमें से अधिकतर भिक्षा मांगते हैं. इन सब से बचे तो काशी घूमे.
रांडें रोवें सेर सेर, सुहागिन रोवें दो दो सेर. दुखियों का रोना ठीक है, पर जो सुखी हैं वे उनसे भी अधिक रोते हैं.
राई घटे न तिल बढ़े, बेमाता का लेख. (बेमाता – विधाता). विधाता के लिखे को कोई थोड़ा नहीं बदल सकता.
राई सों परवत करे परवत राई माहिं. ईश्वर सर्वशक्तिमान है, वह राई को पर्वत और पर्वत को राई बना सकता है. इसकी पहली पंक्ति है – साईँ से सब होत है बंदे ते कछु नाहिं.
राख से आग नहीं छिपती. किसी ज्वलंत समस्या को ऊपर से ढंकने की कोशिश करो तो भी छिपती नहीं है.
राखन हार भए भुज चार, तो क्या बिगड़े दो भुज के बिगाड़े. चतुर्भुज भगवान जिस की रक्षा करने वाले हों उसका दो भुजाओं वाला मनुष्य क्या बिगाड़ सकता है.
राखो लाख कपूर में हींग न होय सुगंध. हींग को कपूर में कितना भी रख लो उसमें सुगंध नहीं आ सकती. दुष्ट व्यक्ति सज्जनों के बीच रह कर भी नहीं सुधर सकता.
राग ताल का नाम न जाने दोऊ हाथ मजीरा. कुछ भी ज्ञान न होते हुए भी दिखावा करना.
राग, रसायन, नृत्य शास्त्र, नटबाजी, वैद्यंग; अश्वारोहण, व्याकरण ज्ञान, जाने ज्योतिष अंग; धनुष वाण, रथ हांकना, चितचोरी, ब्रह्मज्ञान; जल तैरना घीरज वचन चौदह विद्या निधान. जो मनुष्य इन चौदह विद्याओं में निष्णात हो वह पुरुषोत्तम माना जाता है.
राग, रसोई, पागड़ी, कभी कभी बन पाए. गाने वाला कितना भी कुशल हो राग कभी कभी ही बहुत अच्छा निकल पाता है. इसी प्रकार रसोई कभी कभी ही अच्छी बनती है और पगड़ी कभी कभी ही बहुत अच्छी बंध पाती है.
राज का राज में, ब्याज का ब्याज में, नाज का नाज में. राजा जितना धन इकट्ठा करता है वह सब राजकाज में लग जाता है, सूदखोर जितना ब्याज से कमाता है वह फिर से ब्याज पर चढ़ा देता है और किसान जितना खेती से कमाता है वह सब फिर खेती में लग जाता है.
राज के लुटे और फागुन के कुटे को कोई न पूछत. राजा के द्वारा लूटे गये और होली के अवसर पर पिट गये व्यक्ति से कोई सहानुभूति नहीं दिखाता.
राज सफल तब जानिए, प्रजा सुखी जब होय. कोई भी राज तभी सफल माना जाता है जब प्रजा सुखी हो.
राज हंस बिन को करे, नीर छीर को दोय. राज हंस ही दूध और पानी को अलग कर सकता है. विवेकी व्यक्ति ही गलत सही का उचित मूल्यांकन कर सकता है.
राजा का एक राज, प्रजा के सौ राज. राजा के लिए एक ही राज्य होता है जबकि जनता कहीं भी बस सकती है.
राजा का ओढ़ना, धोबी का बिछौना. किसी व्यक्ति के लिए मूल्यवान कोई वस्तु दूसरे के लिए साधारण वस्तु हो सकती है. राजा जिस ओढ़ने को संभाल कर ओढ़ता है धोबी जब उसे धोने ले जाता है तो उसे बेकद्री से बिछा लेता है. रूपान्तर – सासू का ओढ़ना, बहू का नकपोंछना. नकपोंछना – नाक पोंछने का कपड़ा.
राजा का जी चेरी में, चेरी का जी महेरी में. हर आदमी की रूचि और स्वार्थ अलग अलग वस्तुओं से सिद्ध होते हैं. राजा दासी को भोगना चाहता है और दासी की रुचि पेट भरने में है. महेरी – एक खाद्य पदार्थ.
राजा का दान, प्रजा का स्नान. 1. प्राचीन काल में अच्छे राजा प्रजा के हित के लिए कुँए तालाब आदि खुदवाते थे. 2. राजा का थोड़ा सा दान भी प्रजा के लिए बहुत साबित होता है.
राजा का धन तीन खाएँ, घोड़ा, रोड़ा और दंत निपोड़ा. घोड़ा – फ़ौज, रोड़ा – ईंट, पत्थर, बिल्डिंग (महल, किले आदि) और दंत निपोड़ा – दांत निपोरने वाला,चापलूस. इन्हीं तीनों पर राजा धन लुटाता है.
राजा का परचाना और सांप का खिलाना बराबर है. परचाना – परिचय. राजा से घनिष्ठता बढ़ाना खतरनाक हो सकता है (राजा नाराज हो गया तो सीधे प्राणदण्ड ही देगा).
राजा की कुतिया को कुतिया दीदी कहना पड़ता है. (बुन्देलखंडी कहावत) अर्थ स्पष्ट है. राजा से संबंधित हर चीज का जबरदस्ती आदर करना पड़ता है.
राजा की बेटी से मंगते का ब्याह. भाग्य से कुछ भी हो सकता है.
राजा की सभा नरक को जाए. राजा की सभा में अधिकतर लोग चाटुकार होते हैं जो अन्याय का विरोध न कर के केवल राजा की हाँ में हाँ मिलाते हैं. इसलिए ये सभी लोग नरक के भागी होते हैं.
राजा के घर मोतियों का अकाल? जिस चीज़ की बहुतायत होनी चाहिए उस की कमी हो तो.
राजा के दरबार में रोता जाए वो भी मार खाए, हँसता जाए वो भी मारा जाए (राजा के हुआ बेटा, राजा का मरा बाप, न हंसते बने, न रोते बने). दुविधा की स्थिति हो तो बुद्धि से काम लेना चाहिए. सन्दर्भ कथा – किसी दिन एक राजा की माँ मर गई. ठीक उसी दिन उसको प्रथम बार पुत्र पैदा हुआ. अब उसके यहाँ माँ की मृत्यु के कारण, जो रोता हुआ जाता, उसे भी वह दंड देता था और जो पुत्र-जन्म की खुशी में हंसता हुआ जाता, उसे भी. अन्त में एक चतुर भाट विचित्र भाव-भंगिमा बनाये, अस्त-व्यस्त अवस्था में वहाँ पहुँचा. राजा ने उसकी ऐसी स्थिति का कारण पूछा, तो उसने बताया – सुना है, सरकार की माँ मर गई हैं और उसी समय सरकार को पुत्र भी पैदा हुआ है. ऐसी दशा में समझ नहीं आ रहा कि में हँसू या रोऊँ. राजा उसके ऐसे स्पष्टीकरण से बहुत प्रसन्न हुआ और उसने उसे पर्याप्त पुरस्कार दिया.
राजा के दुआरे दावत भई, कुकुर की जान ख़ुसी में गई. राजा के घर में दावत हुई तो कुत्ते ने सोचा कि खूब सारी झूठन खाने को मिलेगी. ख़ुशी के मारे ही वह मर गया. नदीदे लोगों का मजाक उड़ाने के लिए.
राजा के नौकर महाराज. राजा के नौकर अपने को राजा से बढ़ कर समझते हैं.
राजा को दूसरो, अरंड को मूसरो और बकरिया को तीसरो, ये कमजोर रहते हैं. राजा अपना राज्य और सारे अधिकार बड़े बेटे को देता है इसलिए दूसरा बेटा कमजोर रहता है, अरंड की लकड़ी कमजोर होती है इसलिए उस का डंडा मजबूत नहीं होता और बकरी के दो थन होते हैं लिहाजा तीसरे बच्चे को दूध नहीं मिल पाता, इसलिए वह कमज़ोर रहता है.
राजा को पतै नहीं, बनजारे बन बांट लिहै. राजा को पता ही न चल पाया और बंजारों ने वन आपस में बांट लिया. सरकारी संपत्ति के कुप्रबंधन पर व्यंग्य. आज भी सरकारी भूमि पर गाँव और कालोनियां बन जाती हैं.
राजा गए बिदेसवा मैं कहाँ कहाँ जाऊं, सासु गई हाट मैं क्या क्या खाऊं. बहू कहती है कि पति परदेस गए हैं, मैं कहाँ कहाँ घूम लूँ, और सास बाजार गई हैं तो क्या-क्या बनाकर खा लूं.
राजा छुए और रानी होय. जिस पर राजा की कृपादृष्टि हो जाए उस की मौज है.
राजा दुखिया, प्रजा दुखिया, जोगी का दुख दूना. संसार में सबको अपने अपने दुख हैं लेकिन जोगी को इन सब से ज्यादा दुख है क्योंकि वह सारे संसार के दुख में दुखी है.
राजा नटे तो किससे कहे. जब न्याय देने वाला राजा ही अपनी बात से मुकर जाए तो किससे गुहार लगाएँ.
राजा नल पर बिपत परी, भूनी मछली जल में तिरी. जब व्यक्ति पर विपत्ति आती है तो कुछ भी अनर्थ हो सकता है. राजा नल पर विपत्ति पड़ी तो भूनी हुई मछली वापस जल में तैर गई. सन्दर्भ कथा – बुरे दिन आने पर सभी बातें उल्टी हो जाती हैं. जब राजा नल जुए में अपना राजपाट हार गए, तो रानी दमयंती को लेकर जंगल में चले गए. वहां एक दिन उन्हें कुछ खाने को नहीं मिला, तब भूख से व्याकुल होकर उन्होंने तालाब में से मछली पकड़ी और उसे आग में भूना. यह देखकर कि उसमें बहुत राख लगी है, रानी जब उसे पानी में धोने गई, तो वह ज़िंदा हो गई और तैर कर चली गई
राजा फल मांगता है तो दरबारी पेड़ उखाड़ लाते हैं. चाटुकार लोग अपने मालिक को खुश करने के लिए आगे से आगे बढ़ कर काम करते हैं. कुछ नेताओं के चमचे भी ऐसी हरकतें करते हैं.
राजा बांधे दल, बैद बांधे मल. राजा लोगों के दल को बाँध कर (संगठित कर के) सेना का गठन करता है और वैद्य दवाओं द्वारा मल को बाँध कर दस्तों को रोकने का काम करता है.
राजा बुलावे, ठाड़े आवे. राजा के बुलाने पर हर आदमी को दौड़ कर आना पड़ता है.
राजा माने सो रानी, और भरें सब पानी. राजा के रनिवास में अनेक रानियाँ होती हैं. जो राजा को सबसे प्रिय हो वही महारानी बनती है, और सब को उस की गुलामी करनी पड़ती है. इसी प्रकार किसी भी महकमे में जिस पर बड़े हाकिम मेहरबान हो उसी कर्मचारी की मौज है.
राजा रिसियाये राज लेय, क्या किसी का भाग लेय. रिसियाये – नाराज हो जाए. राजा यदि नाराज होगा तो अपने राज्य से निकाल देगा या दी हुई सुविधाएं वापस ले लेगा, किसी की किस्मत थोड़े ही ले लेगा. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – राजा रूठेगा (रूसेगा) तो अपनी नगरी लेगा, किसी का भाग तो नहीं लेगा.
राजा रीझे तो दोनों कान सोन, बनिया रीझे तो छटांक भर नोन. राजा खुश होगा तो दोनों कानों में सोने के कुंडल पहना देगा, बनिया खुश होगा तो छटांक भर नमक दे देगा. अपना अपना दिल, अपनी अपनी औकात.
राजा, योगी, अग्नि, जल इनकी उलटी रीति, डरते रहियो परसुराम थोड़ी राखें प्रीति. परसुराम नाम के कोई सयाने व्यक्ति यह बता रहे हैं कि राजा, योगी, अग्नि और जल ये किसी से अधिक प्रीति नहीं रखते (कभी भी अत्यधिक नुकसान पहुँचा सकते हैं), इसलिए इन से डर कर रहना चाहिए.
राजी बिरजी दो जनें, झक मारें सौ जनें. दो आदमी किसी मामले में राजी हों तो कोई क्या कर सकता है.
राजी से सब कोउ नवे, जबरन नवे न कोय. आपसी सहमति और प्रेम से सब का विश्वास जीता जा सकता है, जबरदस्ती से नहीं.
राड़ में जाए न रण में जूझे, अपनी कहे न पराई बूझे. दूसरों से कोई सरोकार न रखने वाला व्यक्ति.
राड़ से बाड़ भली (रार से दीवार भली). घर में रोज रोज के झगड़े के मुकाबले दीवार खींच कर घर अलग कर लेना अधिक अच्छा है.राड़ – झगड़ा, बाड़ – दीवार.
राड़म् रेड़म् पवित्रम् राड़ – झगड़ालू व्यक्ति, रेड़ – पिटाई. दुष्ट लोग मारने पीटने से ही राह पर आते हैं.
रात की कमाई, पड़ी पाई. रात तो सोने में ही नष्ट हो जाती है इसलिए रात में यदि कोई लाभदायक काम कर लिया तो यह समझो जैसे कोई चीज पड़ी मिल गई.
रात की नीयत हराम. रात में अनैतिक काम और अपराध अधिक होते हैं इसलिए ऐसा कहा गया है.
रात को झाड़ू देनी मनहूस है. पुराने लोग कहते हैं कि रात को झाडू नहीं देनी चाहिए, इससे लक्ष्मी घर से चली जाती है. इस प्रकार की पुरानी बातों के पीछे अक्सर कोई तर्क छिपा होता है. दिए की मद्धिम रोशनी में ईंटों के फर्श पर झाड़ू लगाने में इस बात का खतरा था कि यदि कोई बहुमूल्य वस्तु जमीन पर गिर गई होगी तो दिखाई नहीं देगी और कूड़े के साथ चली जाएगी.
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय, हीरा जन्म अमोल सा, कौड़ी बदले जाय. कबीर दास जी कहते हैं कि रात सो कर गँवा दी और दिन खाते खाते गँवा दिया. जो ये अनमोल जीवन मिला है वो कोड़ियों में जा रहा है.
रात गई बात गई. रात में जो भी कोई अप्रिय घटना, मनमुटाव, क्लेश इत्यादि हुआ हो उसको रात बीतने के साथ भुला दो. नए दिन को नई सोच के साथ आरंभ करो.
रात थोड़ी कहानी बड़ी (रात थोरी, स्वाँग भौत). स्वांग – नाटक. समय कम है काम बहुत है.
रात नर्बदा उतरीं, दिन को कुआँ देख डरीं. रात समय तो नर्मदा नदी तैर कर पार उतर गई और दिन को कुंआ देखकर डर गई. अपनी बहादुरी की झूठी डींगें हांकने वालों का मजाक उड़ाने के लिए.
रात पिया गोद सोवे तो दिन घूँघट कैसा. रात को पति की गोद में सोई तो दिन में पति से पर्दा क्यूँ. छिप कर भ्रष्टाचार करने और बाहर से अपने को सज्जन और संकोची प्रदर्शित करने वालों के लिए.
रात भर गाई बजाई, लड़के के नूनी ही नहीं. नूनी – लिंग. लड़का पैदा होने की ख़ुशी में रात भर गा बजा लिए, सुबह देखा कि लड़का तो शिखंडी है. एक जमाने में समाज का यह नियम था कि जिन बच्चों का लिंग निर्धारण न हो पा रहा हो (कि वह लड़का है या लड़की) उसको परिवार के लोग नहीं रख सकते थे. उसको हिजड़ों को सौंपना होता था. कोई काम ठीक से पूरा हुआ या नहीं यह जाने बिना बहुत जल्दी खुश नहीं होना चाहिए.
रात भर मिमियाई, एको न ब्याही. बकरी रात भर में में करती रही और एक बच्चा भी नहीं ब्याहा. शोर बहुत मचाया, काम कुछ नहीं किया.
रात भरे दिन रीते, इन पेटन ने जग जीते. रात को भर पेट खाना मिल भी जाए तो दिन में फिर पेट खाली हो जाता है. पेट भरने के लिए व्यक्ति को निरंतर प्रयास करना पड़ता है. पेट ने दुनिया को गुलाम बना कर रखा है.
रात में बोलै कागला, दिन में बोलै स्याल, तो यूँ भाखै भड्डरी, निशचै पड़े अकाल. भड्डरी कवि कहते हैं कि रात में कौआ बोले और दिन में सियार बोले तो अकाल पड़ना निश्चित है. भाखे – बोले.
रातों रोई एक न मरा. बहुत कोसा पर किसी का कुछ नहीं बिगड़ा.
राधे राधे रटत हैं आक ढाक अरु कैर, तुलसी या ब्रजभूमि में कहा राम से बैर. ब्रजभूमि में पेड़ पौधे तक राधे राधे रटते हैं. तुलसी को इस बात का आश्चर्य है कि यहाँ राम का नाम कोई नहीं लेता. तुलसी दास चाहते थे कि सभी हिन्दू लोग प्रभु राम से प्रेरणा ले कर अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करें. उन्होंने वृन्दावन में भगवान कृष्ण की मूर्ति देख कर कहा था – कहा कहूँ छवि आप की भले बने हो नाथ, तुलसी मस्तक जब नवे, धनुष वान लेउ हाथ.
रानी को कानी कौन कहे. जो सामर्थ्यवान है (विशेषकर जो आपको नुकसान पहुंचा सकता है) उसकी बुराई कोई नहीं कर सकता.
रानी को कौन कहे आगा ढक. जो शक्तिशाली है उसे नसीहत देने में खतरा है.
रानी को राना प्यारा, कानी को काना प्यारा. सभी स्त्रियों को अपना पति प्यारा होता है (वह कैसा भी हो).
रानी गईं हाट, लाईं रीझ कर चक्की का पाट. रानी बाज़ार गईं तो लोग सोच रहे थे कि कोई बड़ी नायाब चीज़ लाएंगी, पर वह चक्की का पाट ले कर आयीं. बड़ा आदमी कोई छोटा और तुच्छ काम करे तो.
रानी जी जब तक सिंगार करेंगी, तब तक राजा जी सो जाएंगे. राजा को रिझाने के लिए रानी श्रृंगार ही करती रहीं और राजा जी सो गए. किसी काम में इतनी देर लगा देना कि उस का लाभ ही न रहे.
रानी जी राग गावें तो सौ जनी सिर हिलावें. रानी कोई भी काम करें तो उसकी तारीफ़ करनी पड़ती है.
रानी दीवानी हुईं, औरों को पत्थर, अपनों को लड्डू मारें. बनावटी पागल. कोई स्त्री पागल होने का नाटक कर रही है, औरों को तो पत्थर मार रही है और अपने लोगों पर लड्डू फेंक रही है.
रानी रूठेंगी अपना सुहाग लेंगी, कोई भाग तो न लेंगी. राजा रानी किसी स्त्री से उसका धन, घरबार या पति छीन सकते हैं, उसका भाग्य नहीं छीन सकते. कुछ लोग रानी का अर्थ पार्वती देवी से बताते हैं.
राम कहो आराम मिलेगा. शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के कष्ट राम का नाम लेने से कम महसूस होते हैं. कुछ लोग बोलते हैं – राम कहो आराम मिलेगा, कृष्ण कहो कुछ और मिलेगा.
राम का खाये, रावण का गीत गाये. जो लाभ किसी सज्जन से प्राप्त करे और प्रशंसा किसी दुर्जन की करे. जैसे देश में रहने वाले कुछ लोग जो सरकारी लाभ प्राप्त करने में आगे रहते हैं पर भला पड़ोसी देशों का चाहते हैं.
राम का नाम प्रात की बेरा. सुबह सुबह राम का नाम ही लेना चाहिए, किसी का बुरा नहीं सोचना चाहिए एवं कोई अशुभ बात या अपशब्द नहीं बोलना चाहिए.
राम की भी जय और रावण की भी जय. जो लोग अपने स्वार्थ के लिए अच्छे बुरे सब से मिला कर चलते हैं.
राम के दिन भले बन जइहें, सीता के दिन वियोगे जइहें. कष्ट के दिनों में व्यक्ति को दिलासा देने के लिए.
राम के भगत काठ के गुरिया, दिन भर माला रात के घुसकुरिया. उन पाखंडी साधुओं के लिए जो दिन में माला जपते हैं और रात में घर में घुस कर मौज मनाते हैं.
राम के लिखल रहे वन, और कैकयी के अपजस. (भोजपुरी कहावत) भाग्य से ही सब होता है. राम के भाग्य में वनवास लिखा था और कैकेयी के भाग्य में अपयश.
राम झरोखा बैठ कर सबका मुजरा लेय, जैसी जाकी चाकरी वैसा बाको देय. ईश्वर सब कुछ देखता है कि कौन क्या कर रहा है और उसी के अनुसार सब को उसका फल देता है.
राम न जाते हिरन संग सीय न रावन साथ, जो रहीम भावी कतहुं होत आपने हाथ. भविष्य में क्या होने वाला है यह कोई नहीं जान सकता. यदि जान सकते होते तो ऐसा होने ही क्यों देते.
राम न रूठे, सब जग रूठे. हम सब यही चाहते हैं कि ईश्वर हम पर कुपित न हों.
राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट, अंत काल पछताएगा, जब प्राण जाएंगे छूट. राम नाम का खजाना खुला हुआ है, इस जग में रहते हुए जितना लूट सको उतना लूट लो. प्राण छूटने के बाद पछताओगे कि समय रहते यह काम क्यों नहीं किया.
राम नाम के कारने सब धन डारो खोय, मूरख जाने खो गया दिन दिन दूना होय. ईश्वर की भक्ति में अपना सब धन लुटा दो. मूर्ख लोग समझते हैं उनका धन खो गया, जबकि ज्ञानी लोग जानते हैं कि धन दूना हो रहा है.
राम नाम जपना (राम राम जपना), पराया माल अपना, जो लोग धर्म-कर्म और पूजा पाठ का दिखावा तो बहुत करते हैं लेकिन लोगों के साथ धोखाधड़ी और ठगी करते हैं उनके लिए यह कहावत है.
राम नाम में आलसी भोजन में होशियार, तुलसी ऐसे जीव को बार बार धिक्कार. ऐसे लोगों को धिक्कारा गया है जिनको प्रभु का नाम लेने में आलस आता है पर खाने पीने में सबसे आगे रहते हैं.
राम नाम लड्डू, गोपाल नाम घी, हर का नाम मिश्री, तू घोल घोल पी. भगवान के नाम में बहुत मिठास है इस को पीने वाला ही जान सकता है.
राम नाम ले सो धक्का पावे, चूतड़ हिलावे सो टक्का पावे. आजकल के समय में भगवान का भजन करने वाला तो धक्के खा रहा है और फूहड़ पन से नाचने वाला (जैसे सिनेमा के नायक नायिकाएँ) पैसा कमा रहा है.
राम नाम सत्य है, सत्य बोले मुक्ति है. वैसे तो बिलकुल सामान्य सा कथन है लेकिन क्योंकि अर्थी ले जाते समय इस कथन का उच्चारण बार बार किया जाता है इसलिए लोकभाषा में इस का प्रयोग मृत्यु होने के लिए ही करते हैं. अर्थ यह है कि जीवन में कुछ भी करें, अंतिम सत्य राम का नाम ही है.
राम बढ़ावे सो बढ़े, बल कर बढ़ा न कोय, बल करके रावन बढ़ा, छिन में डाला खोय. मनुष्य ईश्वर की कृपा से बड़ा बनता है अपने बल से नहीं. बल से बड़ा बनने की कोशिश करने वाले रावण के समान नष्ट हो जाते हैं.
राम बिना दुख कौन हरे, माता बिन भोजन कौन धरे, बरखा बिन सागर कौन भरे, नारी बिन धीरज कौन धरे. राम के अतिरिक्त दुख कौन हर सकता है, माँ के अतिरिक्त भोजन कौन करा सकता है, वर्षा न हो तो सागर को कौन भर सकता है और नारी के सामान धीरज कौन धर सकता है.
राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय, जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय. जब मृत्यु का समय नजदीक आया तो कबीर दास जी रो पड़े क्यूंकि जो आनंद संतों की संगति में है वह आनंद तो स्वर्ग में भी नहीं होगा.
राम भये जेहि दाहिने, सबै दाहिने ताहि. जिस के सहायक ईश्वर हैं उसके सब सहायक हो जाते हैं.
राम भरोसे जो रहें परवत पर हरियाएं (तुलसी बिरवा बाग़ के सींचत हूँ कुम्हलाएँ). बाग़ में लगे पौधे सींचने के बाद भी मुरझा सकते हैं और प्रभु की कृपा पा कर पर्वत पर भी पेड़ लहरा सकते हैं. इस कहावत में यह सीख भी है कि बच्चों का बहुत लाड़ कर के कोमल नहीं बनाना चाहिए, कुछ आत्म निर्भर और मजबूत भी बनाना चाहिए.
राम मरे तो मैं मरूं मरे मेरी बलाय, अविनासी का बालका कभी ने मारा जाए. यदि कोई मेरे मरने की कामना करता है तो यह उसकी मूर्खता है. जैसे ईश्वर अजर अमर है वैसे ही मेरी आत्मा अजर अमर है.
राम मिलाइ जोड़ी इक अंधा इक कोढ़ी. दो एक से मूर्ख या बेकार लोगों की जोड़ी.
राम राम कहते रहो, जब लग घट में प्रान, कबहुं तो दीनदयाल के भनक परेगी कान. जब तक शरीर में प्राण है राम का नाम जपते रहो, कभी न कभी तो ईश्वर आपकी प्रार्थना सुनेंगे.
राम रूठे तो हो वो दुनिया खोटी, रुपया रूठे तो इस जग में मिले न रोटी. परलोक सुधारने के लिए ईश्वर की कृपा हो यह तो आवश्यक है ही लेकिन सांसारिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए धन भी आवश्यक है.
राम वाम तो सभै वाम. वाम – प्रतिकूल. ईश्वर रुष्ट हों तो अपने सगे संबंधी भी प्रतिकूल हो जाते हैं.
राम विमुख सिधि सपनेहूं नाहीं. जो राम की भक्ति नहीं करता वह सपने में भी सफलता नहीं प्राप्त कर सकता.
रामजी की चिरई, राम जी का खेत, खा ले चिरई भर भर पेट. दूसरे के खेत को चिड़ियाँ चुग रही हैं तो हमें कोई चिंता नहीं है.
रामलली के तीन सौ, रामलाल के तीन. 1. रामलली कोई नर्तकी हैं जिनको देखने तीन सौ लोग आते हैं. रामलाल रामकथा सुनाते हैं जिस में तीन लोग आते हैं. 2. नर्तकी को तीन सौ रूपये मेहनताना मिलता है और कथावाचक को तीन रूपये. जिन्होंने प्रेमचन्द की कहानी ‘रामलीला‘ पढ़ी है वे इस बात को भलीभांति समझ सकेंगे.
रार (राड़) के सर पैर नहीं होते. झगड़े के सर पैर नहीं होते. वह बिना बात पैदा होता है और बिना बात बढ़ता है.
राव न जाने भाव. 1.राजा लोग चीजों के दाम की क्या चिंता करें. 2.राजा किसी की भावना की कद्र नहीं करता.
रावन ने जब जनम लिया, थीं बीस भुजा दस सीस, मात अचम्भे हो रही, किस मुख में दूँ खीस. 1. विचित्र समस्या से पाला पड़ना. 2. बहुत सारी समस्याएँ एक साथ आ जाएं तो किससे पहले निबटें?
रास्ता न मालूम हो तो धीरे चलो. जिस काम का पर्याप्त अनुभव न हो उस में जल्दबाजी नहीं करना चाहिए.
राह के पत्थर पे बंदूक का पहरा. मूर्खतापूर्ण कार्य. जो पत्थर रास्ते में पड़ा है, उस की सुरक्षा की क्या जरूरत है.
राह न हारे, चलने वाला हारे. किसी ने पूछा – यह रास्ता कहाँ जाता है, जवाब मिला – रास्ता कहीं नहीं जाता, चलने वाले जाते हैं. रास्ते कभी ख़त्म नहीं होते, चलने वाले ही हार कर रुक जाते हैं.
राह बतावे सो आगे चले. जो रास्ता बताता है उसी से आगे चल कर राह दिखाने को कहा जाता है.
रिन के सोच न धन के सोच, वे धमधूसर काहे न मोट. रिन – ऋण (कर्ज), धमधूसर – मस्त और मोटा आदमी. जिसको न धन की चिंता है और न कर्ज अदायगी की वह खा के मोटा क्यों न होगा.
रिनकर्ता पिता शत्रु. ज्यादा ऋण लेने वाला पिता शत्रु के समान है क्योंकि संतान को वह ऋण चुकाना पड़ता है.
रियासत के बगैर सियासत नहीं होती. 1. राजनीति में पाँव जमाने के लिए धन बल एवं जन बल का होना आवश्यक है. 2. राज्य हथियाने के लिए ही राजनीति की जाती है.
रिश्ता कीजे जानकर और पानी पीजे छानकर. कहीं शादी ब्याह का रिश्ता करना हो तो पहले पूरी छानबीन कर लेनी चाहिए और पानी हमेशा छान कर पीना चाहिए.
रिश्वत के चार भेद, नज़राना, शुक्राना, मेहनताना और जबराना. रिश्वत चार प्रकार की होती है. होली दीवाली हाकिम को भेंट दे आओ यह नज़राना, काम कराने के बाद अपने मन से कुछ भेंट दे आओ यह शुक्राना, काम कराने के बाद काम के हिसाब से पैसा दो यह मेहनताना और हाकिम या बाबू ये कहे कि तू रिश्वत नहीं देगा तो काम नहीं करूंगा तो यह जबराना.
रिश्वत लेता पकड़ा गया, रिश्वत दे कर छूट गया. रिश्वत की महिमा न्यारी है. जो रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया हो वह भी रिश्वत ही दे कर ही छूटता है.
रिस खाय आप को, बुद्धि खाय आन को. रिस – क्रोध, आप – स्वयं, आन – अन्य. क्रोध करके व्यक्ति केवल अपने तन मन को नुकसान पहुँचाता है और बुद्धि का प्रयोग करके दूसरे को नुकसान पहुँचा सकता है.
रिस मारे रसायन पैदा होता है. द्वेष और क्रोध को मारने से ही प्रेम भाव पैदा होता है.
रीछ का एक बाल भी बहुत है. 1. पुराना विश्वास है कि रीछ के बाल को तावीज़ में रख कर पहनाने से नज़र नहीं लगती. 2. बड़े लोगों की छोटी सी अनुकम्पा भी गरीब के लिए बहुत माने रखती है.
रीझे तो निहाल करे खीजे तो पैमाल. यह बात राजा और ईश्वर दोनों के लिए कही जा सकती है कि वे अगर प्रसन्न हों तो निहाल कर दें और नाराज़ हो जाएँ तो दुर्दशा कर दें.
रीता थोथा लाड़ बंदरिया का. बंदरिया अपने बच्चे को छाती से चिपकाए रहती है लेकिन अगर वह खाने को मांगता है तो कुछ नहीं देती. दिखावटी प्यार के लिए इस कहावत को प्रयोग करते हैं.
रीता प्रेम हत्या बराबर. दिखावटी प्रेम बहुत बड़ा पाप है.
रीती भरे भरी ढुलकावे, मेहर करे तो फेरि भरावे. रीता–खाली, मेहर-कृपा. ईश्वर जब कृपा करता है तो खाली कुप्पे को भर देता है, जब कुपित होता है तो भरे हुए को लुढ़का देता है, फिर प्रसन्न होता है तो फिर भर देता है.
रीते कुँए पत्तों से नहीं भरते. बहुत बड़ी डिमांड को थोड़ी सी सप्लाई से पूरा नहीं किया जा सकता. लालची व्यक्ति थोड़े में संतुष्ट नहीं होते.
रीस अच्छी, हौंस बुरी. रीस – स्पर्धा, हौंस – ईर्ष्या. किसी की उन्नति देख कर स्वयं उस के जैसा बनने के प्रयास करना चाहिए, उस से ईर्ष्या नहीं करना चाहिए.
रीस करता आगे बढ़े, दिलजला जल कर मरे. किसी को आगे बढ़ता देख कर जो स्वस्थ प्रतिस्पर्धा करता है वह आगे बढ़ता है, जो ईर्ष्या करता रहता है वह जल कर मरता रहता है.
रुके हुए काम तो रावण के भी रह गए थे. रावण आकाश तक जाने वाली सीढियां बनाना चाहता था और सोने में सुगंध मिलाना चाहता था लेकिन नहीं कर पाया.
रुपया परखे बार बार, आदमी परखे एक बार. चाहे रूपये को बार बार परखो (कि असली है या नहीं) पर आदमी को एक ही बार में परख लेना चाहिए कि वह विश्वसनीय है या नहीं.
रुपया है तो शेख, नहीं तो जुलाहा. धन से ही आदमी की इज्ज़त होती है.
रुपये को रूपया खींचता है. पूँजी से ही पूँजी पैदा होती है. सन्दर्भ कथा – किसी मूर्ख व्यक्ति ने यह सुन रखा था कि रुपया ही रुपये को खींचता है. उसने इसका प्रयोग करना चाहा. उसने कहीं कुछ व्यक्तियों को रुपये गिन-गिनकर थोक में रखते देखा. वह वहीं थोड़ी दूर पर बैठ गया और अपनी टेंट से एक रुपया निकालकर रुपये की थोक के आमने- सामने दिखाने लगा. वह बहुत देर तक वैसा करता रहा, लेकिन थोक से निकलकर एक भी रुपया उसके पास नहीं आया. रुपये गिनने वालों ने उसे ऐसा करते हुए देखा तो वे समझे कि उस ने इन्हीं रुपयों में से चोरी कर ती है और दो चपत्त लगाते हुए उसका रुपया छीनकर रुपयों को थोक में रख दिया. उस मूर्ख व्यक्ति ने रोते-गिड़गिड़ाते हुए अपने प्रयोग को पूरी कहानी कह सुनाई. इस पर वे लोग बोले तुमने ठीक ही तो सुना है कि रुपया को रुपया खींचता है. इसी का यह फल है कि तुम्हारा रुपया खिंच कर रुपयों की थोक में आ मिला.
रूख बिना न नगरी सोहे, बिन बरगे नहिं कड़ियाँ, पूत बिना न माता सोहे, लख सोने में जड़ियाँ. रूख – वृक्ष, बरगे – कड़ियों पर रखे जाने वाले लकड़ी के तख्ते. वृक्षों के बिना नगर शोभा नहीं देता और तख्तों के बिना छत की कड़ियाँ शोभा नहीं देतीं. इसी प्रकार स्त्री की शोभा पुत्र से ही है (सोने के गहने लादने से नहीं).
रूखा खाना, धरती सोना, नहिं आसान है फक्कड़ होना. फाकेमस्त होना आसान नहीं है. खाने को रूखा-सूखा मिलता है, जमीन पर सोने को मिलता है, कोई आराम की जिन्दगी नहीं होती.
रूखा भोजन भूत भोजन. रूखा भोजन करना बहुत कष्टकर कार्य है.
रूखा-सूखा खाना और खरा कमाना. सबसे अच्छा सिद्धांत है ईमानदारी से काम करके पैसा कमाना, चाहे रूखा सूखा ही खाने को मिले.
रूखी खाएँ, मूछन को घी चुपरें. मूर्खतापूर्ण कार्य. खाना चाहे रूखा खाना पड़े अकड़ पूरी रहना चाहिए.
रूठे बाबा, दाढ़ी हाथ. बूढ़ा आदमी नाराज होता है तो अपनी दाढ़ी पकड़ता है. इस को इस तरह भी कह सकते हैं कि बूढ़े आदमी की घर में कोई पूछ नहीं है, वह रूठेगा भी तो अपनी ही दाढ़ी नोचेगा.
रूठे भगवान, तो दे खोटी संतान. भगवान नाराज होते हैं और दंड देना चाहते हैं तो खोटी संतान दे देते हैं.
रूप की काली नाम कनको बाई. किसी महिला का रंग अच्छा खासा काला है. देखने में थोड़ी कुरूप भी है. पर नाम है कनक बाई (कनक माने सोना). जहां नाम, रूप व गुण में बहुत अंतर हो.
रूप की रोवे कर्मों की खाय, राजा की बेटी लकड़हारे को जाय. केवल रूप गुण ही व्यक्ति का भविष्य तय नहीं करते, भाग्य का भी उसमें बड़ा हाथ होता है. एक रूपवती राजकुमारी का उदाहरण दिया गया है जिसको उसके दुर्भाग्य के कारण (पिछले जन्म के कर्मों के फल कारण) लकड़हारे से शादी करनी पड़ती है.
रूप की रोवे, करमों की हँसे. 1. यहाँ कर्मों का अर्थ भाग्य (पिछले जन्म के कर्मों के अनुसार) समझें तो अर्थ यह हुआ कि जिस लड़की का भाग्य अच्छा न हो वह रूपवती हो कर भी दुखी रह सकती है और भाग्यवान रूपवती न हो तब भी खुशहाल हो सकती है. 2. करमों का अर्थ कामकाजी होने से समझें तो अर्थ हुआ कि रूप की नहीं कामकाज की कद्र होती है. (औरत का काम प्यारा होता है चाम नहीं).
रूप को क्या आभूषण. जो सही मानों में सुंदर हो उसे आभूषणों की क्या आवश्यकता.
रूप तो भगवान ने संवारा, बुद्धि से भी दुश्मनी. किसी कुरूप और मूर्ख व्यक्ति के लिए.
रूप देख रीझे सो पाछे पछताए. जो लोग केवल सुन्दरता देख कर विवाह कर लेते हैं वे बाद में पछताते हैं.
रूप लाल जी गुरू बाकी सब चेला. रुपया सब का गुरु है.
रूपये की जड़ कलेजे में होती है. रुपया सब को जान से भी प्यारा होता है.
रूपये वाले को रूपये की, पर मोको राम की आस. धनी को हर काम के लिए पैसे की आस होती है पर गरीब को तो भगवान का ही सहारा है.
रे मन अधिक न बोलिए, अति बोले पत जाए. अधिक बोलने वाले का लोग सम्मान नहीं करते.
रेंकते गधे को चोर ले गये. कोई चीज़ खुले आम सब के देखते देखते चोरी हो जाए तो.
रेशम कितना भी फट जाए, कहलाएगा रेशम ही. अर्थ स्पष्ट है.
रेशम पहन के भी बकरी बकरी ही रहती है. अच्छे कपड़े पहनने से कोई इज्ज़तदार नहीं हो जाता.
रैन गई अरु भोर भई, सुख नींद सोया के माला जपी. रात बीत गई है और सुबह हो गई है. बता तूने भगवान को याद किया कि नहीं (अब तो याद कर ले या सांसारिक सुखों में ही डूबा रहेगा).
रैन गई तो जान दे सजनी, दिन मत खोवे री. जो दुख के दिन बीत गए तो उन को याद कर कर के अब सुख के दिनों को मत खोवो.
रो के पूछ ले हंस के उड़ाता फिरे. ऐसा व्यक्ति जो सहानुभूति दिखा के किसी मन का भेद ले ले और फिर सब के बीच उसकी हंसी उड़ाए.
रो रो खाई, धो धो जाई. रो रो कर खाओगे तो शरीर को नहीं लगेगा, बार बार शौच जाओगे. जो भी खाने को मिले प्रसन्न मन से खाना चाहिए.
रोइ रोइके पाइये, रुपिया जिसका नाम, जब जाये फिर रोइये, इह सुख किसको काम. रुपया आता भी रो रो के है और जाता है तो भी आदमी को रुलाता है. ऐसा सुख किस काम का.
रोई काहे, कही नंद ने देख लिया. कोई स्त्री अकेले में भले ही अपने पति के हाथ से पिटती रहे, परन्तु कोई यदि देख ले, विशेषकर देखने वाली ननद हो, तो वह रो पड़ेगी. दूसरे के सामने अपमान बर्दाश्त नहीं होता.
रोउनी पतोहू, चुअना घर, नीक न होय कही बात खर. रोउनी-हर समय रोने वाली, पतोहू–पुत्र वधू, चुअना-जो घर पानी बरसने से टपकता हो. घर में हर समय रोने वाली बहू तथा घर की टूटी छत बुरे लक्षण हैं.
रोए पीटे जन पतियाएँ. जो अधिक रोता पीटता है उसे ही लोग दुखी मानते हैं.
रोग और राजा निर्बल को ही दबाते हैं. रोग भी कमज़ोर आदमी को जल्दी होता है और राजा भी निर्बल लोगों पर ही अपनी ताकत दिखाता है.
रोग का घर खांसी, लड़ाई का घर हाँसी. इस कहावत में एक सीख तो यह दी गई है कि यदि किसी को लगातार खांसी आती हो तो उसे कोई गंभीर बीमारी हो सकती है. दूसरी एक बहुत महत्वपूर्ण सीख दी गई है कि किसी की हंसी उड़ाना लड़ाई को न्योता देने के समान है. सन्दर्भ कथा – धृततराष्ट्र ने हस्तिनापुर का बंटवारा किया तो पांडवों को जंगल वाला हिस्सा दे दिया था. पांडवों ने अपनी कर्मठता से उसे बहुत सुंदर बना लिया और कौरव भाइयों को अपने यहाँ निमंत्रण दिया. वहाँ एक स्थान पर दुर्योधन भूमि के धोखे में पानी में गिर पड़ा तो द्रोपदी ने हंसकर कहा “अंधे का पुत्र अंधा.” महाभारत के युद्ध की जड़ यही हंसी थी
रोग गए वैद्य वैरी. रोग ठीक होने के बाद वैद्य (या डॉक्टर) दुश्मन लगने लगता है (उस की फीस भी भारी लगती है और वह परहेज वगैरा भी बताता है इसलिए).
रोग जिन बनायो तिन औषधी बनाई है. जिन प्रभु ने रोग बनाया है, उन्होंने उसकी दवा भी बनाई है. जब व्यक्ति रोग से पीड़ित हो कर निराश होता है तो उसे सांत्वना देने के लिए.
रोग, दोस, दुस्मन को कभी छोटा न समझो. अपने शरीर के रोग, अपने दोष और अपने शत्रु को कभी छोटा समझ कर नजरअंदाज़ नहीं करना चाहिए.
रोगिया भावे सो बैद बतावे. रोगी को जो अच्छा लगे चालाक वैद्य वही बताते हैं.
रोगी आधा बैद होय. बीमार व्यक्ति दवा खाते-खाते आधी दवाइयां खुद ही जान जाता है.
रोगी को रोगी मिला कहा नीम पी. दो रोगी मिलते हैं तो बीमारी और इलाज की ही बातें करते हैं.
रोगी ठगा जाए या भोगी ठगा जाए. रोगी को बीमारी का डर दिखा कर चिकित्सक और पंडे पुरोहित या झाड़ फूँक करने वाले ठगते हैं, भोगी को व्यापारी और दलाल लोग भांति भांति के आनंदों का लालच दे कर ठगते हैं.
रोगी बियाहा बैद के भरोसे. घर में वैद्य है इस का अर्थ यह नहीं है कि रोगी से विवाह कर लो.
रोज कुआं खोदे, रोज पानी पीवे. दिहाड़ी मजदूर. जो जीविका के लिए अपने रोज के काम पर निर्भर हैं.
रोज के टपके से पत्थर भी घिस जाते हैं. पत्थर पर जिस जगह पानी टपकता है वह हिस्सा धीरे धीरे घिस जाता है. कोई कितना भी कठोर क्यों न हो लगातार प्रयास करने से उसको भी प्रभावित किया जा सकता है.
रोज़गार और दुश्मन बार बार नहीं मिलते. रोजगार (नौकरी या व्यापार करने का मौका) बार बार नहीं मिलता इसलिए जब मिले चूकना नहीं चाहिए. दुश्मन भी बार बार नहीं मिलता इसलिए जब मिले ठोक देना चाहिए.
रोज-रोज की दवाइ खुराक बन जात. छोटी-मोटी बीमारियों में रोज रोज दवा खाने की आदत नहीं डालनी चाहिए, व्यायाम और परहेज पर अधिक ध्यान देना चाहिए जिससे बीमारी हो ही नहीं.
रोजी का मारा दर-दर रोवे, पूत का मारा बैठ के रोवे. रोजी रोटी के लिए आर्त व्यक्ति दर दर भटकता और रोता है, पुत्र के द्वारा मारा हुआ पिता बैठ कर अपने दुर्भाग्य पर रोता है.
रोजे मेरी किस्मत में कहाँ, पर सहरी खा सकता हूँ. रोजे से बचना चाह रहे हैं इसलिए बहाना बना रहे हैं कि रोजे मेरी किस्मत में ही नहीं हैं. लेकिन सहरी के लिए बने माल भी खाना चाह रहे हैं. कष्ट बिना उठाए सुविधाएं चाहने वालों के लिए.
रोट से दिन छोट. रोट – मीठी पूड़ी. भादों के महीने में रोट का त्योहार पड़ता है जिसमें रोट बनाकर हनुमान जी को चढ़ाते हैं. तभी से दिन छोटा होना शुरू हो जाता है.
रोटी आधी कीजिए सब्जी को दोगुना, पानी तिगुना कीजिए हांसी को चौगुना. अच्छे स्वास्थ्य के लिए उपयोगी सुझाव है. रोटी जितनी खाते हैं उससे आधी खाएं और सब्जी दोगुनी खाएं, पानी तीन गुना पियें और खूब हंसें.
रोटी करो, सत्तू करो, भात बरोबर नाहीं, मौसी करो फूफी करो, माई बरोबर नाहीं. रोटी और सत्तू से पेट भरा जा सकता है लेकिन ये भात के बराबर नहीं हो सकते, मौसी और बुआ प्यार से रख सकती हैं पर माँ के बराबर फिर भी नहीं हो सकतीं.
रोटी कहे मंजिल पहुंचाऊं, बाटी कहे फेर ले आऊँ, भात कहे मेरा हल्का खाना मेरे भरोसे कहीं न जाना. भात सबसे जल्दी पच जाता है, रोटी उस से देर तक पेट में रहती है और बाटी सब से देर में पचती है.
रोटी कारन छोड़ कर कुटुम देस परिवार, लाख कोस जाकर बसें रोटी ढूंढनहार. रोटी कमाने के लिए आदमी क्या क्या नहीं करता. जीविका ढूँढने के लिए आदमी को परिवार और देश को छोड़ दूर देश जा कर बसना पड़ता है.
रोटी कारन जाल में फंसे पखेरू आए, रोटी कारन आदमी लाखों पाप कमाए. भोजन के लालच में पक्षी जाल में आ कर फंसता है, पेट भरने के लिए आदमी क्या क्या पाप नहीं करता.
रोटी कारन लश्करी रन में सीस कटाए, रोटी कारन रैन दिन गीत गवेसर गाए. जीविका के लिए सैनिक रणभूमि में शीश कटवाता है, जीविका के ही लिए गायक दिन रात गाना गाता है. लश्करी – लश्कर में रहने वाला सिपाही.
रोटी किस्मत की, हुक्का पाँव दौड़ी का. रोटी किस्मत से मिलती है जबकि समाज में इज्जत परिश्रम करने से मिलती है. पुराने समय में लोग अतिथि का स्वागत हुक्का पिला कर करते थे.
रोटी खाते भौंकते नहीं बनता. कुत्ता जब रोटी खा रहा होता है तो भौंक नहीं पाता. कोई हाकिम रिश्वत ले रहा होता है तो गुर्रा नहीं पाता.
रोटी गई मूँ में, जात गई गू में. पेट भरने के लिए आदमी जात पाँत सब भूल जाता है.
रोटी न कपड़ा, सेंत का भतार. पत्नी के लिए रोटी कपड़े का प्रबंध न करे तो पति किस बात का.
रोटी पकाने से कुछ न, नोन लगाने से सब कुछ. जिसने रोटी पकाने जैसा महत्वपूर्ण काम किया उसे कोई श्रेय नहीं मिला, जिसने बाद में थोड़ा नमक लगा दिया वह सारा श्रेय ले गया.
रोटी बनाने वाले की नाक पोंछने परत. जिस आदमी से काम लेना हो उसकी खुशामद करनी पड़ती है. रोटी बनाने वाले के हाथ आटे से सने रहते हैं, यदि उसकी नाक आ जाय तो दूसरे आदमी को पोंछनी पड़ती है.
रोटी बिन भोंड़े लगें सकल कुटुम के लोग, रोटी ही को जान लो ठेठ मिलन का जोग. रोटी का जुगाड़ न हो तो परिवार के लोग भी बुरे लगने लगते हैं, रोटी ही परिवार में मेल रखने का माध्यम है.
रोटी मोटी, जोय छोटी. जोय – जोरू,पत्नी. रोटी मोटी ही अच्छी होती है और स्त्री छोटे कद की भली होती है.
रोटी सांटे रोटी, क्या पतली क्या मोटी. रोटी के बदले रोटी देनी हो तो मोटी पतली क्या देखना.
रोता जाए और मारता जाए. कुछ लोग ऐसे होते हैं जो खुद गलत काम करते हैं और खुद को सताया हुआ सिद्ध करने के लिए रोते जाते हैं. इससे मिलती जुलती कहावत है – लड़े बराबर रोवे दून.
रोती को पुचकारा तो कहा साथ ले चलो (रोती को चुपाया तो साथ चलने को तैयार). किसी मुसीबत में पड़े व्यक्ति को ढाढस बंधाओ और वह पीछे ही पड़ जाए तो यह कहावत कही जाती है.
रोते हुए गए मरे की खबर लाए. जो लोग हमेशा अनिष्ट की आशंका से ग्रस्त रहते हैं उनका अनिष्ट ही होता है.
रोने को तो थी ही, इतने में आ गए भैया. कोई लड़की ससुराल में परेशान हो कर रुआंसी हो रही थी पर सास के डर से रो नहीं पा रही थी. इतने में उसका भाई मिलने आ गया तो वह भाई के सहारे फूट फूट कर रोने लगी. कोई काम करने का बहाना मिल जाए तो.
रोने से रोजी नहीं मिलती. रोने से नहीं मेहनत और दौड़भाग करने से रोजगार मिलता है.
रोम जल रहा था, नीरो बंसी बजा रहा था. रोम में नीरो नाम का एक राजा हुआ है जिसके बारे में यह कहा जाता है कि जब रोम अत्यधिक संकट से गुजर रहा था तब वह बांसुरी बजा रहा था. संकट के समय अपना उत्तरदायित्व न निभाने वाले व्यक्ति के लिए.
रोवनी को दाल भात, हंसनी को उपास. जो भूख लगने पर रोए उसे बढ़िया चीजें खाने को मिलती हैं, जो हँसता रहे उसे कोई खाने को नहीं पूछता. उपास – उपवास.
रोवे गावे तूरे तान, ओकर दुनिया राखे मान. निर्लज्ज होकर हंगामा करनेवाले की बात सब लोग मान लेते हैं. जो अपनी परेशानियों को लेकर ज्यादा रोता गाता है उस से सब को सहानुभूति हो जाती है.
रौन गौरई की कुतिया. कोई व्यक्ति दो स्थान पर लाभ लेने की कोशिश करे और कहीं कुछ न मिले तो यह कहावत कही जाती है. सन्दर्भ कथा – रौन और गौरई बुंदेलखंड में दो गाँव हैं जिनके बीच में ठीक ठाक दूरी है. एक कुतिया को खबर लगी कि दोनों गांवों में दावत है. उस के मन में लड्डू फूटने लगे. सोचा दोनों जगह खूब माल मिलेगा. वह पहले रौन गाँव में गई, वहाँ खाना शुरू होने में देर थी तो उसने सोचा कि गौरई जा कर माल उड़ा लूँ, फिर यहाँ आ जाऊँगी. गाँव दूर था, जब तक वहाँ पहुँची वहाँ सब निबट चुका था. लौट कर फिर रौन गाँव आई तो वहाँ भी सब निबट चुका था. टांगें भी टूटीं और भूखी भी रही.