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निन्यानवे के फेर में जो पड़ा वो दीन दुनिया से गया

इसके पीछे एक कहानी है. एक नेक लकड़हारा जंगल से लकड़ियाँ बीन कर दो पैसे रोज कमाता था और उनसे अपने परिवार का पेट पालता था. वह हर समय भगवान का नाम लेता था और बड़ा खुश रहता था. एक दिन भगवान विष्णु ने नारद जी से कहा कि देखो यह मेरा सबसे बड़ा भक्त है, इतनी कठिन परिस्थितियों में भी मेरा नाम लेता है और खुश रहता है. नारद जी बोले ठीक है प्रभु, कल से नहीं रहेगा. उस रात नारद जी ने एक थैली में निन्यानवे रुपये रख कर उस के आंगन में डाल दिए. सुबह पति पत्नी उठे तो रुपयों की थैली देखी. जल्दी जल्दी गिने, निन्यानवे थे. अब वे दोनों भजन कीर्तन भूल कर इसी फेर में लग गए कि एक एक पैसा बचा कर कैसे सौ रुपये पूरे कर लें. तब से यह कहावत बनी.