एक सेठ का विदेश में बहुत अच्छा कारोबार था। सेठ की मृत्यु हो जाने पर उसके बेटे ने नये-नये आदमियों को रख लिया और पुराने मुनीमों की छुट्टी कर दी। वे सारे नौसिखिये थे और सेठ के बेटे को भी कारोबार को संभालने का कोई अनुभव नहीं था, अतः कारोबार चौपट होने लगा। एक दिन उसके ऊपर एक बड़ी हुंडी आई। हुंडी दर्शनी थी, अतः उसके रुपये तत्काल दिये जाने आवश्यक थे। लेकिन रोकड़ में रुपये नहीं थे। हुंडी न देने का मतलब था दिवालिया घोषित हो जाना।
तब सेठ के लड़के ने अपनी मां के कहने से पुराने मुनीम को बुलाया। जाड़े की ऋतु थी, मुनीम काफी वृद्ध था और जाड़े के कारण कांप रहा था। सेठ ने उसके तापने के लिए अंगीठी मंगवाई। इतने में हुंडी वाले का आदमी भुगतान लेने के लिए आ गया । वृद्ध मुनीम हुंडी को पढ़ने लगा और पढ़ते पढ़ते ही उसने अपने कांपते हाथों से हुंडी अंगीठी में डाल दी। फिर मुनीम ने अफसोस प्रकट करते हुए हुंडी वाले से कहा कि भैया हुंडी तो आग में जल गई, तुम इसकी पैठ (नकल) मंगवा लो। वह बोला कि कोई बात नहीं, पैठ मंगवा ली जाएगी। मुनीम की इस चतुराई से सेठ के बेटे को रुपया एकत्र करने के लिए समय मिल गया।
(जब बैंक नहीं होते थे तो लोग बड़ी धनराशि को इधर से उधर ले जाने के स्थान पर हुंडियों का प्रयोग करते थे. यह एक प्रकार का बैंक ड्राफ्ट होता था. किसी एक बड़े सेठ के यहाँ रूपये जमा कर के उससे हुंडी लिखवा ली जाती थी और दूसरे स्थान पर जा कर दूसरे सेठ के यहाँ उस का भुगतान ले लिया जाता था. वे सेठ लोग अपने आपसी व्यापार में उनका जमा खर्च कर लेते थे. मियादी हुंडी का भुगतान हुंडी में लिखी मियाद पूरी होने पर किया जाता था, लेकिन दर्शनी हुंडी का भुगतान तत्काल करना होता था। यदि कोई सेठ हुंडी का भगतान न कर पाए तो बाजार में उसकी भद पिट जाती थी. हुंडी के गुम हो जाने या नष्ट हो जाने पर उसकी पैठ और पैठ के गुम हो जाने पर पर- पैठ लिखी जाती थी।)
पुराना सो सयाना
01
May