प्राचीन समय में एक ब्राह्मण गरीबी के कारण भिक्षाटन से अपने परिवार का पेट पालता था। जब भुखमरी की नौबत आ गयी तो किसी ने बताया कि समुद्र देवता यदि प्रसन्न हो जाएं तो उसकी गरीबी दूर हो जाएगी। ब्राह्मण समुद्र के तट पर पहुँच कर तपस्या करने लगा।
समुद्र देवता तपस्या से प्रसन्न हुए और प्रकट होकर वरदान माँगने को कहा।
ब्राह्मण बोला, “हे देव! मैं भीख मांगकर भी बच्चों का पेट भरने में असमर्थ हो गया हूँ। पूजा-पाठ, करने का समय भी नहीं मिल पाता। मेरी इस समस्या का कोई समाधान कर दें।
समुद्र देव ने ब्राह्मण को एक शंख देकर कहा – रोज स्नानादि करने के बाद पूजा-पाठ से निवृत्त होकर पवित्र मन से जो भी इस शंख से मांगोगे वह मिल जाएगा।
ब्राह्मण प्रसन्न होकर घर की ओर चल पड़ा। रास्ते में शाम हो गयी, और उसे एक वणिक के घर रुकना पड़ा। रात में ब्राह्मण ने शंख से भोजन प्रदान करने की प्रार्थना की। तत्काल ब्राह्मण और वणिक के परिवार के लिए स्वादिष्ट भोजन का आ गया। चमत्कृत वणिक ने पूछा तो ब्राह्मण ने पूरी कहानी उसे सुना दी, और निश्चिन्त हो कर सो गया।
लालची वणिक के मन में लोभ का संचार हो गया। उसने रात में सो रहे ब्राह्मण की पोटली से शंख चुराकर दूसरा साधारण शंख रख दिया।
ब्राह्मण ने घर पहुँचकर झट स्नान और पूजा कर के शंख से भोजन मांगा। जब कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो उसने उल्टे पाँव वणिक के पास पहुँच कर अपनी विपदा सुनायी। चतुर वणिक ने कहा कि यह गड़बड़ जरूर समुद्र ने की होगी। हो सकता है वह शंख एक बार प्रयोग हेतु ही बना रहा हो। भोला ब्राह्मण फिर समुद्र तट पर जा पहुँचा और तपस्या प्रारम्भ कर दी। समुद्र देव प्रकट हुए तो ब्राह्मण ने पूरी कहानी सुनाई, और समस्या के स्थायी समाधान की प्रार्थना की।
सबकुछ जानकर समुद्र देवता ने एक दूसरा शंख दिया और बोले – इसे ले जाओ… घर जाने से पहले पोटली से बाहर मत निकालना। इससे जो भी मांगोगे हर बार उससे दूना देने को तैयार रहेगा।
ब्राह्मण दूनी प्रसन्नता से घर की ओर चला। उसी वणिक के घर रुका। लालची वणिक ने उसका खूब सत्कार किया। ब्राह्मण ने पूरी बात बतायी और यह भी बता दिया कि दूसरा शंख घर ही जाकर बाहर निकालेगा। दूना देने की बात भी बता दी।
लोभी वणिक ने ब्राह्मण के सो जाने के बाद पोटली से शंख निकाला और उसके स्थान पर पहले वाला शंख रख दिया। ब्राह्मण मुँह-अन्धेरे उठकर अपने घर के लिए चल दिया।
वणिक ने अगले दिन जल्दी-जल्दी स्नान करके नया शंख निकाला और पूजा कर के शंख से माँगना शुरू किया।
“महल जैसा मकान दें!”
शंख से आवाज आयी- “एक नहीं दो ले लो…”
वणिक प्रसन्न होकर मांगने लगा।
“अप्सरा जैसी पत्नी दें!”
फिर आवाज आयी, “एक नहीं दो ले लो…!”
“सर्वगुण सम्पन्न पुत्र दें!”
“एक नहीं दो ले लो…”
“सात घोड़ों वाला रथ दें”
“एक नहीं दो ले लो…”
काफी समय बीत गया पर सामान कोइ प्रकट नहीं हुआ। परेशान होकर वणिक ने शंख से पूछा, “आप कैसे दाता हैं जी, पहले वाले शंख ने तो जो भी मांगा, तुरन्त दे दिया था।”
शंख हँसकर बोला, “ अरे मूर्ख, देने वाला शंख तो वही था जिसे उसका असली अधिकारी ले गया। मैं ढपोर शंख हूँ, लेना देना कुछ नहीं, हामी भरूँ करोड़।
ढपोर शंख
28
Nov