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ढंग से करो तो गेंडे को भी गुदगुदी होती है. गेंडे की खाल इतनी मोटी होती है कि उसे गुदगुदी होना असंभव सी बात है, लेकिन युक्ति पूर्वक करने से उसे भी गुदगुदी हो सकती है. कहावत में हास्य का सहारा ले कर यह बताया गया है कि प्रयास करने पर कठोर हृदय और नीरस व्यक्तियों की भावनाओं को भी जगाया जा सकता है. ऐसे भी कह सकते हैं कि प्रयास करने पर कंजूस आदमी से भी खर्च कराया जा सकता है.

ढका हुआ ना उघाड़ बहू, घर तेरा ही है. बहू ससुराल वालों की बुराई कर रही है तो सास बहू को सीख दे रही है कि घर की बदनामी वाली कोई बात मत उघाड़ो. अब यह घर तुम्हारा ही है.

ढपोर शंख.  ढपोर शंख की कथा कही जाती है कि उस से कोई एक चीज़ मांगो तो वह कहता था कि मैं तुम्हें दो दूँगा, पर देता कुछ नहीं था. आजकल के बहुत से नेता भी ऐसे ही हैं. सन्दर्भ कथा – एक समय एक ब्राह्मण गरीबी के कारण भिक्षाटन से अपने परिवार का पेट पालता था. जब भुखमरी की नौबत आ गयी तो किसी ने बताया कि समुद्र देवता यदि प्रसन्न हो जाएं तो उसकी गरीबी दूर हो  जाएगी. ब्राह्मण समुद्र के तट पर पहुँच कर तपस्या करने लगा. समुद्र देवता तपस्या से प्रसन्न हुए और प्रकट होकर वरदान माँगने को कहा. ब्राह्मण ने अपनी व्यथा बताई तो. समुद्र देव ने ब्राह्मण को एक शंख दिया और कहा कि रोज स्नानादि करने के बाद पूजा-पाठ से निवृत्त होकर जो भी इस शंख से मांगोगे वह मिल जाएगा. ब्राह्मण प्रसन्न होकर घर की ओर चल पड़ा. रास्ते में शाम हो गयी, और उसे एक वणिक के घर रुकना पड़ा. रात में ब्राह्मण ने शंख से भोजन प्रदान करने की प्रार्थना की. तत्काल ब्राह्मण और वणिक के परिवार के लिए स्वादिष्ट भोजन का आ गया. चमत्कृत वणिक ने पूछा तो ब्राह्मण ने पूरी कहानी उसे सुना दी. लालची वणिक के मन में लोभ का संचार हो गया. उसने रात में सो रहे ब्राह्मण की पोटली से शंख चुराकर दूसरा साधारण शंख रख दिया.

ब्राह्मण ने घर पहुँचकर झट स्नान और पूजा कर के शंख से भोजन मांगा. जब कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो उसने उल्टे पाँव वणिक के पास पहुँच कर अपनी विपदा सुनायी. चतुर वणिक ने कहा कि यह गड़बड़ जरूर समुद्र ने की होगी. हो सकता है वह शंख एक बार प्रयोग हेतु ही बना रहा हो. भोला ब्राह्मण फिर समुद्र तट पर जा पहुँचा और तपस्या प्रारम्भ कर दी. समुद्र देव प्रकट हुए तो ब्राह्मण ने पूरी कहानी सुनाई, और समस्या के स्थायी समाधान की प्रार्थना की सबकुछ जानकर समुद्र देवता ने एक दूसरा शंख दिया और बोले, इसे ले जाओ पर घर जाने से पहले पोटली से बाहर मत निकालना. इससे जो भी मांगोगे हर बार उससे दूना देने को तैयार रहेगा. ब्राह्मण दूनी प्रसन्नता से घर की ओर चला. उसी वणिक के घर रुका. लालची वणिक ने उसका खूब सत्कार किया. ब्राह्मण ने पूरी बात बतायी और यह भी बता दिया कि दूसरा शंख घर ही जाकर बाहर निकालेगा. दूना देने की बात भी बता दी. लोभी वणिक ने ब्राह्मण के सो जाने के बाद पोटली से शंख निकाला और उसके स्थान पर पहले वाला शंख रख दिया

ब्राह्मण सुबह उठकर अपने घर के लिए चल दिया.वणिक ने अगले दिन जल्दी-जल्दी स्नान करके नया शंख निकाला और पूजा कर के शंख से माँगना शुरू किया, महल जैसा मकान दें. शंख से आवाज आयी, एक नहीं दो ले लो. वणिक प्रसन्न होकर मांगने लगा, अप्सरा जैसी पत्नी दें, फिर आवाज आयी, एक नहीं दो ले लो, सर्वगुण सम्पन्न पुत्र दें, एक नहीं दो ले लो, सात घोड़ों वाला रथ दें. एक नहीं दो ले लो. काफी समय बीत गया पर सामान कोइ प्रकट नहीं हुआ. परेशान होकर वणिक ने शंख से पूछा, आप कैसे दाता हैं जी, पहले वाले शंख ने तो जो भी मांगा, तुरन्त दे दिया था. शंख हँसकर बोला, अरे मूर्ख, देने वाला शंख तो वही था जिसे उसका असली अधिकारी ले गया. मैं ढपोर शंख हूँ, लेना देना कुछ नहीं, हामी भरूँ करोड़

ढब से खेती, ढब से न्याव, ढब से होवे बूढ़े कौ ब्याव. खेती, न्याय और बूढ़े का विवाह करने में बुद्धिमत्ता से काम लेना पड़ता है. ढब – काम करने का बुद्धिमत्ता पूर्ण सलीका.

ढाई आखर प्रेम को पढ़े सो पंडित होय(पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय). जिसने मनुष्य मात्र के प्रति प्रेम का भाव जगा लिया वही सच्चा पंडित है.

ढाई दिन की बादशाहत. यह कहावत अलिफ़ लैला के किस्सों के किसी किरदार पर आधारित है जिसे ढाई दिन की बादशाहत मिली थी. कोई छोटी मानसिकता वाला व्यक्ति थोड़े समय के लिए कोई महत्वपूर्ण पद मिल जाने पर इतराए तो लोग यह बोल कर उसे उसकी हैसियत याद दिलाते हैं.

ढाक के वही तीन पात. ढाक के एक पत्ते में तीन पत्तियाँ होती हैं. आप कितना भी ढूँढिए सारे पेड़ में तीन पत्तियों की तिकड़ी ही मिलेंगी, किसी में चार या पांच पत्तियाँ नहीं मिलेंगी. काफ़ी प्रयास करने के बाद भी समस्या वहीँ की वहीँ रहे तो यह कहावत कही जाती है.

ढाक तले की फूहड़, महुए तले की सुघड़. ढाक के पेड़ में न छाँव है न फल. उसके नीचे केवल मूर्ख स्त्री ही खड़ी होगी. महुए में छाँव भी है और फल भी इसलिए समझदार स्त्री उसी के नीचे खड़ी होगी.

ढाल तलवार सिरहाने और चूतड़ बन्दीखाने. कायर व्यक्ति के लिए. ढाल तलवार दिखाने के लिए रखी हुई है और खुद युद्ध भूमि में जाने की बजाए बन्दीखाने में बैठे हैं.

ढाल देख कर दौड़ने का मन करता है. यह एक मनुष्य की स्वभावगत कमजोरी है, जो कार्य आसानी से हो जाए उसे करने का सब का मन करता है.

ढीलों का भाग्य भी ढीला. (राजस्थानी कहावत) जो लोग अकर्मण्य होते हैं, उनका भाग्य भी साथ नहीं देता.

ढुलमुल बेंट कुदारी और हँस के बोले नारी. कुदाली की बेंट हिलती हुई हो और नारी हँस के बोले, इन दोनों से खतरा होता है.

ढेढ़ ढेढ़ई से मानत. मूर्ख को मूर्ख ही समझा सकता है. ढेढ़ – मूर्ख व्यक्ति.

ढोर को क्या पता कि खेत रिश्तेदारों का है. जानवर को जहाँ मौका मिलता है वह किसी भी खेत में घुस कर फसल खाना शुरू कर देता है, फिर वह खेत चाहे उसके मालिक के रिश्तेदार का ही क्यों न हो. कोई नासमझ आदमी अनजाने में ही अपने किसी आदमी को नुकसान पहुँचाए तो.

ढोर को समझाना आसान, मूर्ख को समझाना मुश्किल. एक बार को जानवर को समझाया जा सकता है पर मूर्ख व्यक्ति को समझाना बहुत कठिन है. (क्योंकि वह अपने को बहुत बुद्धिमान समझता है).

ढोर मरे कूकुर हरषाय. जानवर के मरने पर कुत्ता खुश होता है क्योंकि उसे मांस हड्डी आदि मिलती है. किसी की विपत्ति में कोई दुष्ट व्यक्ति प्रसन्न हो या लाभ उठाए तो यह कहावत कही जाती है.

ढोल के भीतर पोल. ढोल देखने में कितना भी बड़ा हो अंदर से खोखला होता है. जब किसी चीज़ में आडम्बर बहुत हो पर वास्तविकता में वह कुछ भी न हो तो यह कहावत कही जाती है. 

ढोल गले पड़ गया, बजाओ चाहे न बजाओ. कोई अनचाही जिम्मेदारी आ पड़ी है, अब यह आपके ऊपर है कि निभाएँ या मना कर दें.

ढोल में पोल है, बजे जितना बजा लो (भरोसा नहीं कब फूट जाए, इसलिए जब तक हो सके मौके का फायदा उठालो). जहाँ कोई सरकारी ठेकेदार अफसरों से मिलीभगत कर के घटिया निर्माण करा रहा हो वहाँ यह कहावत कही जा सकती है.

ढोलक न झांझ, चलो फाग गाएँ. बिना साधन के कोई काम करने की सोचना.

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