किसी गाँव के साहूकार ने एक बिल्ली पाल रखी थी. एक बार बिल्ली के पाँव में चोट लग गई तो साहूकार ने मिट्टी के तेल में कपड़ा भिगोकर उस के पाँव में पट्टी बाँध दी. अचानक वह बिल्ली रसोई घर में चूल्हे के पास चली गई तो उस कपड़े में आग लग गई. आग लगने से वह बिल्ली घर में इधर-उधर भागने लगी. साहूकार के घर में कई अन्य व्यापारियों के कपड़े के गट्ठर और रुई रखी थी जिनमें आग लग गई. इसके बाद बिल्ली बदहवासी में घर से बाहर निकल गई और उस ने इधर उधर भागते हुए कई घरों में आग लगा दी. कहावत किसी ऐसे व्यक्ति के लिए प्रयोग की जाती है जो अपनी धूर्तता द्वारा गाँव भर में घूम घूम कर झगड़े की आग लगा देता है
जले पांव की बिल्ली
15
May