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जंगल देख के गूजर नाचे, चंग देख बैरागी, खीर देख के बामन नाचे, तन मन होवे राजी. गूजर जंगल देख कर खुश होता है क्योंकि उसे जानवर चराने होते हैं, बैरागी चंग नामक वाद्य यंत्र से प्रसन्न होता है और ब्राह्मण खीर देख कर. अपनी अपनी रूचि और अपने अपने लाभ के अनुसार व्यक्ति प्रसन्न होता है.

जंगल में मंगल, बस्ती में कड़ाका. उपयुक्त स्थान पर उपयुक्त काम न होना. जंगल में उत्सव हो रहा है और बस्ती में सन्नाटा है.

जंगल में मंगल, बस्ती में वीरान, जा घर भांग न संचरे, ता घर भूत समान (होत मसान). भांग खाने वालों द्वारा भांग का गुणगान.

जंगल में मोर नाचा किसने देखा. यदि कोई प्रतिभाशाली व्यक्ति ऐसी जगह अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करे जहाँ कोई देखने वाला ही न हो.

जंगली हाथी, हाकिम, चोर, इन के बिगड़े ओर न छोर. जंगली हाथी, सरकारी अधिकारी और चोर लुटेरे जब बिगड़ते हैं तो बहुत नुकसान कर सकते हैं.

जंगी घोड़े का भंगी असवार. युद्ध के घोड़े पर कोई अदना सा सफाई सेवक सवारी कर रहा है. बेमेल काम.

जंह जंह पाँव पड़े सन्तन के, तंह तंह बंटाढार. किसी व्यक्ति के आने से काम बिगड़ जाए तो मज़ाक में ऐसा कहते हैं. कलियुगी संतों के लिए भी कह सकते हैं.

जंह जंह संत मठा को गए, भैंस पड़ा दोउ मर गए. जब आपके भाग्य में कुछ न हो तो कहीं भी जाएं कुछ नहीं मिलने वाला. ऐसे संत जहाँ भी मट्ठा मांगने गए वहाँ भैंस और उस का कटरा दोनों मर गए.

जग कैसो, जग मों सो. जैसा मेरा चिंतन है संसार मुझे वैसा ही दिखाई देता है. तुलसीदास जी ने ईश्वर के लिए भी ऐसा ही कुछ कहा है – जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी. 

जग जानी देश बखानी. कोई बात जो सर्व विदित हो.

जग जीतना आसान पर मन जीतना मुश्किल. संसार को जीतना इतना कठिन नहीं है जितना अपने मन को.

जग जीता मोरी कानी, वर ठाड़ होए तब जानी. जब दो चतुर लोग एक दूसरे को बेबकूफ बनाने की कोशिश करें और दोनों ही बेबकूफ बन जाएं तो. एक साथ दो सन्दर्भ कथाएँ – कुछ लोगों ने धोखा देकर एक कानी लड़की का ब्याह एक लड़के के साथ तय कर दिया. वर पक्ष के लोगों को जब इसका पता चला, तो वे एक लंगड़े को दूल्हा बनाकर ले गए. ब्याह हो जाने पर कन्या के पिता ने कहा- ‘जग जीता मोरी कानी’, तब वर पक्ष की ओर से जवाब मिला ‘वर ठाढ़ होय तब जानी.’ अर्थात दूल्हा जब खड़ा हो, तब तुम्हें पता चलेगा कि जीत किसकी रही, तुम्हारी कानी लड़की की या हमारे लंगड़े वर की. इसी प्रकार की एक और कहानी है. एक लड़के वाले बिना बताए अपने काने लडके की शादी करवा कर बड़े खुश हो रहे थे. तो लड़की वालों ने कहा कि तुन चतुर हो तो हम भी होशियार हैं, कल सुबह अपनी बहू की आँख में ढेंढ देख लेना. ये भयो वो भयो, मेरो काना बेटा ब्याह गयो, तुम चतुर हम सुजान, बहू की ढेंढ निरखना विहान. ढेंढ – भेंगापन, विहान – सुबह.

जग में देखत ही का नाता. दुनिया में जो भी नाते हैं वे सब जब तक मनुष्य रहता है तभी तक हैं.

जगत कहे भगत पगला, भगत कहे जगत पगला. भक्त को देखकर संसार के लोग सोचते है कि यह व्यक्ति तो पागल है. और इधर भक्त संसार के लोगो को देखकर सोचता है कि ये सब लोग पागल है.

जगन्नाथ का भांटा, जिसमें झगड़ा न टांटा. जगन्नाथ जी का भात का प्रसाद सब के लिए समान रूप से सुलभ है, इसमें जाति वर्ण का कोई झगड़ा नहीं है. अर्थ है कि ईश्वर के दरबार में सब बराबर हैं.

जगन्नाथ को भात, जगत पसारे हाथ. उड़ीसा के जगन्नाथ जी के मन्दिर में सभी को भात का प्रसाद मिलता है. अर्थ है कि ईश्वर के सम्मुख सभी हाथ फैलाते हैं.

जजमान के जौ, जजमान का घी, बोल बराहमन स्वाहा. दूसरे के माल को बर्बाद करने में कष्ट न होना.

जजमान चाहे स्वर्ग जाए या नरक को, मुझे अपनी दही पूड़ी से काम. स्वार्थी ब्राह्मणों के लिए.

जटा बढ़ाए हरि मिले तो बरगद स्वर्ग सिधाये. हिन्दू धर्म के अंध विश्वास पर व्यंग्य.

जड़ काटते जाएं, पानी देते जाएं. (जड़ खोदते जाएं, पानी देते जाएं) (नीचे से जड़ खोदें, ऊपर से पानी दें). मूर्खता पूर्ण कार्य के लिए भी कह सकते हैं और धोखेबाज़ के लिए भी कह सकते हैं जो भीतर से आपकी जड़ काटता है और ऊपर से दिखाने के लिए पानी देता है.

जड़ काटे वा डार की, बैठे जाही डार. जिस डाल पर बैठा है उसी की जड़ काट रहा है. मूर्ख व्यक्ति.

जड़ खोद के मठा डाले. सर्वनाश पर उतारू व्यक्ति. चाणक्य ने नंदवंश का नाश करने की ठानी और यह प्रण किया कि जब तक नंद वंश का नाश न कर लूंगा शिखा नहीं बांधूंगा. एक दिन उनके पैर में कुश चुभ गया. उन्होंने उस कुश की जड़ को खोदकर मट्ठा डाल दिया ताकि फिर उगने की संभावना समाप्त हो जाए.

जड़ पकड़ो, तना पकड़े से क्या होये. कोई काम हो तो उस से संबंधित मूल व्यक्ति को ही पकड़ना चाहिए.

जड़ से बैर, पत्तों से यारी. मूर्खता पूर्ण सोच. अगर जड़ को नुकसान पहुँचाओगे तो पत्ते अपने आप खत्म हो जाएंगे.

जतिया से पतिया बड़ भारी. जतिया – जाति, पतिया – पत, प्रतिष्ठा. प्रतिष्ठित व्यक्ति की जाति कोई नहीं देखता.

जदपि जग दारुन दुख नाना, सब तें कठिन जाति अपमाना. जाति सूचक गाली दे कर किसी का अपमान नहीं करना चाहिए. नाना प्रकार के – बहुत से.

जनते समय मरे तो जमाई के सर न पड़े. किसी स्त्री की ससुराल में रहते हुए मृत्यु हो जाए तो उसके माता पिता दामाद को ही दोषी मानते हैं. केवल एक अपवाद है, यदि मृत्यु प्रसव के समय हो. 

जननी जन तो पूत जन कै दाता कै सूर, कै तो रह जा बाँझ ही काहे गंवाए नूर. महिलाओं से कहा जा रहा है कि पुत्र उत्पन्न करो तो ऐसा करो जो दाता हो या शूरवीर हो. वरना बाँझ रहना अच्छा है, प्रसव कर के अपना सौन्दर्य मत गंवाओ.

जनम का बिगड़ा क्या सुधरे. जो बचपन से गलत संगत में पड़ जाए उसका बड़े होने पर भी सुधरना मुश्किल है.

जनम की धुनियाइन, अब बन बैठी पंडिताइन. धुनियाइन – रुई धुनने वाली. कोई बहुत छोटा आदमी उच्च पद पर पहुँच कर घमंड करे तो.

जनम के कमबख्त नाम बख्तावर सिंह. गुण के विपरीत नाम. बख्तावर – भाग्यवान.

जनम के कोढ़ी. प्रायः ऐसे आदमी के लिए प्रयुक्त जो अपने बुरे कर्मों का फल भोग रहा हो

जनम के दुखिया करम के हीन, तिनको दैव तिलंगवा कीन. तिलंगा – अंग्रेजी फ़ौज का हिन्दुस्तानी सिपाही. जो हिन्दुस्तानी लोग अंग्रेजों की फ़ौज में नौकरी करते थे उनसे देशभक्त हिन्दुस्तानी लोग घृणा करते थे.  

जनम के दुखिया, नाम सदासुख. नाम के विपरीत गुण.

जनम के मंगता, नाम दाताराम. ऊपर वाली कहावत की भांति.

जनम के साथी हैं, करम के साथी नहीं. जन्म एक ही घर में हुआ है तो भी कर्म अलग अलग होते हैं.

जनम को कंटक टरौ. सदा की विपत्ति टली. किसी अवांछनीय व्यक्ति या वस्तु से पिंड छूटने पर.

जनम जनम का मारा बनिया, अजहूँ पूर न तौले. पाप कर्म करने के चक्कर में बनिये को बार बार जन्म लेना पड़ता है पर वह अब भी पूरा नहीं तौल रहा. खाली बनिया ही नहीं संसार के हर व्यक्ति के साथ यह समस्या है.

जनम देत माई बाप, करम होत अपना. माँ बाप जन्म दे सकते हैं, किसी को उसका भाग्य नहीं दे सकते.

जनम न देखी बोरिया, सुपने आई खाट. जिस गरीब ने जन्म से बोरी भी नहीं देखी वह खाट के सपने देख रहा है. अपनी हैसियत से बहुत ऊंचे सपने देखना. बोरी और खाट देखने के लिए देखिये परिशिष्ट.

जनम भरे में रूप धरा वो भी कोढ़ी का. भूले-बिसरे कोई अच्छा काम करने बैठे तो वह भी बेतुका.

जनमत होरिल पैठत बहुरिया. होरिल – नवजात शिशु, पैठत – आती हुई. बच्चे के जन्म के बाद और बहू के आने के बाद एक वर्ष तक घर में जो भी अच्छा बुरा होता है उस का सम्बन्ध बच्चे के जन्म या बहू के आने से जोड़ लिया जाता है. लोग कहते हैं कि बच्चे या बहू के पैर अच्छे हैं (या बुरे हैं).

जने–जने की लकड़ी, एक जने का बोझ. सब लोग मिल कर थोड़ी थोड़ी सहायता करें तो एक व्यक्ति की बहुत बड़ी सहायता हो जाती है. इंग्लिश में कहावत है – Many hands make work light.

जने-जने से मत कहो, कार भेद की बात. अपने रोजगार और भेद की बात हर एक व्यक्ति से नहीं कहनी चाहिए.

जन्म के दुखी, नाम चैनसुख. गुण के विपरीत नाम.

जप माला छापा तिलक, सरे न एको काम, मन काँचे नाचे वृथा, साँचे राँचे राम. यदि मन में राम न हों और मन इधर उधर भटकता हो तो जप करने, माला जपने और तिलक लगाने से कोई लाभ नहीं है.

जब अपना पैसा खोटा तो परखैय्या का क्या दोष (अपना सोना खोटा तो सुनार का क्या दोष). एक जमाना था जब सिक्कों की बड़ी कीमत हुआ करती थी. उस समय धातु के सिक्कों की नकल में रांग के नकली सिक्के बनाए जाते थे, जो खोटे सिक्के कहलाते थे. समझदार लोग फौरन यह परख लिया करते थे कि यह सिक्का खोटा है या खरा. यदि आपके मित्र या संबंधी में कुछ कमियां हो और कोई उसे बुरा कह रहा हो तो.

जब अपनी उतार ली तो दूसरे की उतारने में क्या लगता है. जिस की खुद की इज्जत उतर चुकी हो उसे दूसरे की इज्जत उतारने में देर नहीं लगती.

जब अपनेई लड़के में लच्छन नहिं तब दहेज़ की आसा क्या करना. जब अपना लड़का ही निकम्मा है तब दहेज की क्या आशा की जाय.

जब आया देही का अन्त, जैसा गदहा वैसा सन्त. सज्जन और दुर्जन, मूर्ख और ज्ञानी, सभी को मरना पड़ता है और मरते समय सब एक से हो जाते है.

जब आवे बरसन को चाव, पुरबा गिने न पछवा बाव. जब पानी बरसने को आता है तो पुरवा पछवा कोई भी हवा हो, बरसता ही है. बाव – वायु.

जब आवे संतोष धन सब धन धूरि समान. व्यक्ति के पास कितनी भी सम्पत्ति हो उसे सुख नहीं मिल सकता. सुख तभी मिलता है जब मन में संतोष करने की प्रवृत्ति हो. इसकी प्रथम पंक्ति है – गोधन, गजधन, बाजिधन और रतन धन खान (गाय, हाथी, घोड़े और जवाहरात).

जब एक कलम घसके तब बावन गाँव खसके. कचहरी और कायस्थों के लिए कहा गया है कि उनकी कलम चलने से कुछ का कुछ अनर्थ हो सकता है.

जब काम का बान प्रचण्ड चले, तब ग्यान हलक में घुस जाए. जब कोई ज्ञानी व्यक्ति काम वासना से उत्तेजित होता है तो सारा ज्ञान और उपदेश वापस उस के गले में घुस जाते हैं.

जब किस्मत मारे जोर, तब खेत निराएं चोर. भाग्य साथ दे तो चोर भी खेत निराते हैं. सन्दर्भ कथा – एक गरीब किसान अपने खेत की निराई के लिए परेशान था. अकेले वह पूरा खेत निरा नहीं सकता था और मजदूर बहुत महंगे थे. तभी कुछ चोर, सिपाहियों से बचते हुए उसके खेत में आ छिपे. किसान ने उन्हें ललकारा तो उन्होंने हाथ जोड़ते हुए कहा कि हम आप का खेत निरा देते हैं, आप सिपाहियों से कह देना कि हम मजदूर हैं. इस तरह किसान का काम मुफ्त में हो गया.

जब कुर्सी अफसर पर सवार तब उल्टी गंगा बहे. जब अफसर पर पद का अहंकार हावी हो जाता है तो वह सारी मर्यादाएँ भूल जाता है.

जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई, जब गुण को गाहक नहीं, कौड़ी बदले जाई. कबीर कहते हैं कि जब गुण को परखने वाला ग्राहक मिल जाता है तो गुण की कीमत होती है. पर जब ऐसा ग्राहक नहीं मिलता, तब गुण कौड़ी के भाव चला जाता है.

जब जंगल जावे, तभी लोटा याद आवे. जंगल जाना – शौच के लिए खुले में जाना. आवश्यकता होने पर ही कोई चीज़ याद आती है यह कहने का हास्यप्रद तरीका.

जब जागो तभी सवेरा. अगर कोई गलती से गलत रास्ते पर चल पड़ा हो तो निराश नहीं होना चाहिए. अच्छा जीवन कभी भी शुरू किया जा सकता है.

जब जैसो तब तैसो. जब जैसा समय हो तब वैसा ही करना चाहिए.

जब डाकनवारो चढ्यो सर पे तब लाज कहाँ खर पे चढ़िबै की. डाकनवारो – बुलाने वाला, खर – गधा. प्रियतम से मिलने की धुन सर पे सवार है तो गधे पर चढ़ने में भी कैसी शर्म.

जब तक ओझा के सर देवता अइहैं, तब तक लड़का मर जइहै. किसी गंभीर मसले में अनावश्यक देरी होने पर यह कहावत कही जाती है. ओझा से झाड़ फूंक कराने वाले उस के सर पर देवता के आने का इन्तजार करते हैं.

जब तक करूं बाबू बाबू, तब तक करूं अपने काबू (जब तक करूँ पूता पूता, तब तक कर लूँ अपने बूता). किसी काम को करने के लिए जब तक दूसरों की मनुहार करना पड़ेगी तब तक तो मैं खुद ही उस काम को कर लूँगा.

जब तक गंग जमुन जल धारा. जब तक गंगा व यमुना में जल रहेगा तब तक (अनंत काल तक).

जब तक जवान करे लोट पोट, तब तक बूढ़ा मारे तीन चोट. जब तक जवान आदमी हंसी मजाक में समय नष्ट करता है या सोचता है कि करूँ न करूँ, तब तक बूढ़ा (और अनुभवी आदमी) बहुत सा काम निबटा देता है.

जब तक जान तब तक साँसत, जब तक धन तब तक आफत. जब तक जीवन है तब तक मुसीबतें झेलनी पड़ेंगी. जब तक व्यक्ति के पास धन है तब तक उसको संभालने की आफत उठानी पड़ेगी.

जब तक जीना तब तक सीना. जब तक मनुष्य जीवित रहता है तब तक उसे कुछ न कुछ करना ही पड़ता है. सीना – सिलाई करना.

जब तक तेरे पुन्य का बीता नहीं करार, तब तक तुझ को माफ़ है औगुन करे हजार. जब तक पिछले जन्मों के पुण्य समाप्त नहीं हो जाते तब तक ही तुम पाप कर्म कर के भी सुरक्षित हो. (इसके बाद दंड अवश्य मिलेगा)

जब तक दम है, तब तक गम है. जब तक जीवन है तब तक कुछ न कुछ दुख लगे ही रहते हैं.

जब तक पढ़बै क ख खइय्या, तब तक जोतबै तीन हरय्या. कहावत उस समय की है जब गांवों में पढ़ाई लिखाई का कोई महत्व नहीं था. बड़े लोग कहते थे जब तक क, ख, ग पढोगे तब तक तीन बार हल जोत लोगे.

जब तक पैसा गाँठ में, तब तक यार हजार. पैसा पास हो तो बहुत दोस्त बन जाते हैं.

जब तक लालाजी पाग संभालेंगे, तब तक दरबार उठ जाएगा. श्रृंगार करने और तैयार होने में बहुत देर लगाने वालों पर व्यंग्य. रूपान्तर – जब तक कानी का सिंगार होगा, मेला उठ जाएगा.

जब तक साँस, तब तक आस (जबलग सांसा, तबलग आसा). कोई व्यक्ति गम्भीर रूप से बीमार हो तो यह कहावत कही जाती है, जब तक उस की सांस चल रही है तब तक उस के ठीक होने की आशा लगी रहती है.

जब दम लगा घटने, तो खैरात लगी बंटने. जब मृत्यु निकट आती है तो आदमी को दान धर्म सूझने लगता है.

जब दाँत न थे तब दूध दियो अब दाँत भए का अन्न न देहें. नवजात शिशु (जिसके दांत नहीं होते) उसके लिए जिस ईश्वर ने दूध की व्यवस्था की है (माँ का दूध) वह दांत वालों को अन्न भी देगा.

जब दांत थे तब चने न थे, जब चने भए तो दांत नहीं. जब शरीर स्वस्थ होता है तो मनुष्य के पास आनन्द उठाने के साधन नहीं होते और जब तक साधन इकट्ठे हो पाते हैं तब तक शरीर अशक्त हो चुका होता है.

जब बरखा चित्रा में होए, सगरी खेती जावे खोय. घाघ कहते हैं कि यदि चित्रा नक्षत्र में वर्षा होती है तो खेती नष्ट हो जाती है.

जब बरसे तो बांधे क्यारी, बड़ा किसान जो हाथ कुदारी, पानी बरसे बह न पावे, तौ खेती का मजा दिखावे. जो किसान कुदाली ले कर अपने हाथ से काम करे और वर्षा के पानी को सहेज ले, वही असली किसान है.

जब बरसेगा उत्तरा, नाज न खावे कुत्तरा. उत्तरा नक्षत्र में वर्षा हो तो इतना अन्न पैदा होता है कि कुत्ते भी खाते खाते थक जाएं.

जब बांझ बिआनी तो सोंठ हेरानी. बिआनी – बच्चा पैदा हुआ, हेरानी – खो गई. बच्चा पैदा होने पर सोंठ खिलाना आवश्यक माना जाता था. बड़ी मुश्किल से बाँझ स्त्री के बच्चा हुआ तब तक सोंठ खो गई. कोई काम बड़ी मुश्किल से संपन्न हुआ हो और उसमें कोई व्यवधान हो जाए तो मजाक में यह कहावत कही जाती है.

जब बाप का जूता बेटे के पैर में आ जाए तो उसको दोस्त समझना चाहिए. जब बेटा जवान हो जाए तो उससे मित्रवत व्यवहार करना चाहिए. रूपान्तर – बाप का जूता बेटे के पैर में आ जाए तो उसकी शादी कर दो.

जब बिगड़े तब सुघड़ नर, क्या बिगड़ेगा कूढ़, मट्ठे का क्या बिगड़ना, जब बिगड़े तब दूध. जिसके पास कुछ है ही नहीं उसका क्या बिगड़ेगा. रूपान्तर – जब बिगड़े तो सुघड़ नारी, फूहड़ क्या बिगड़े बेचारी.

जब बूढा भया शेर तो कौवे मंडराय लागे. जब शेर बूढ़ा व कमज़ोर हो जाता है तो कौवे भी उसको तंग करते हैं और वह चुपचाप बैठा देखता रहता है. शरीर अशक्त होने के बाद हर व्यक्ति मजबूर हो जाता है.

जब बोलो तब राम ही राम, ठाली जिव्हा कौने काम. खाली जीभ के लिए सबसे अच्छा काम यह है कि वह बार बार राम राम बोले.

जब भए सौ तो भाग गया भौ. जब बहुत से लोग इकट्ठे होते हैं तो भय भाग जाता है. भौ – भय.

जब भूख लगी भड़ुए को तो तंदूर की सूझी और पेट भरा तो दूर की सूझी. आम सांसारिक लोग पहले भूख और खाने की ही चिंता करते हैं. जब पेट भर जाए तो तभी कुछ और सोच पाते हैं.

जब माँ की चूड़ी बेटी के हाथ में आ जाए तो उसकी शादी कर देनी चाहिए. अर्थ स्पष्ट है.

जब मैं था तब गुरु नहीं, अब गुरु हैं मैं नाहिं, प्रेम गली अति सांकरी, जा में दो न समाहिं. जब मेरे अंदर अहंकार था तब मैं किसी को गुरु नहीं बना पाया, अब मुझे गुरु मिले हैं तो मेरा अहंकार चला गया है. प्रेम की गली बहुत पतली है, इस में गुरु और अहंकार दोनों नहीं समा सकते. मैं – अहंकार, सांकरी – संकरी, पतली.

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नांहि (सब अँधियारा मिट गया, दीपक रेखा मांहि).  कबीर दास जी कहते हैं कि जब मेरे अंदर अहंकार (मैं) था, तब मेरे हृदय में ईश्वर का वास नहीं था. और अब मेरे हृदय में ईश्वर का वास है तो अहंकार नहीं है.

जब राम तकें सब दुख भागें. जब भगवान की कृपा दृष्टि होती है तो सब दुख दूर हो जाते हैं. 

जब लक्ष्मी तिलक करती हो, तब मुहँ धोने नहीं जाना चाहिए. अवसर को खोने की मूर्खता नहीं करना चाहिए.

जब लग खुद को न पहचानो, सभी साधना झूठी. जब तक व्यक्ति स्वयं को न पहचाने (अपने जीवन का उद्देश्य न जाने और अपनी कमियों को न पहचाने) तब तक साधना करने का कोई लाभ नहीं है.

जब लग चलें हाथ और पाँव, तब लग पूजे सारा गाँव. जब तक व्यक्ति के हाथ पाँव चलते हैं तभी तक उसका सम्मान होता है.

जब लाद ली तब लाज क्या. जब बेशर्मी लाद ली तो शर्म किस बात की.

जब लौं निर्धन तब लौं सधुआई, धन के पाये साधु बौराई. जब तक आदमी के पास ऐश आराम के साधन न हों तब तक वह साधु रहता है किन्तु जैसे ही संपन्नता आती है, वैसे ही वह बौरा जाता है.

जब सब कोई सोवें तो परदेसी चूल्हा फूंके. परदेस में रह कर काम करने वाले को स्वयं खाना भी बनाना पड़ता है. काम से लौटने के बाद जब सब लोग आराम करते हैं तब वह बेचारा चूल्हा फूंकता है.

जब साजन की होए लुगाई, तोड़े कोट और फांदे खाई. प्रेम में व्यक्ति किला तोड़ सकता है, खाई फांद सकता है.

जब से उगे बाल, तब से यही हवाल. जब से वयस्क हुए तब से यही बुरा हाल है.

जब से जानी तब से मानी. किसी बात की पूर्ण जानकारी होने पर उसे माना जा सकता है.

जब हांडी पे ढकना न होवे तो बिलैया की लाज काहे चाहो. हंडिया पे ढक्कन न होगा तो बिल्ली दूध पीने में शरम क्यों करेगी. अपनी चीज की सुरक्षा नहीं करोगे तो चोर चोरी क्यों नहीं करेगा.

जब ही तब ही दंडै करे, ताल नहाय ओस में परै, दैव न मारे आपै मरे. जो कभी कभी ही व्यायाम करता है और तालाब में नहा कर ओस में लेटता है उसे भगवान नहीं मारते, वह खुद ही मर जाता है. (घाघ कवि)

जब होवें करमन के फेर, मकड़ी जाल में फंस जाए शेर. (बुन्देलखंडी कहावत) भाग्य का फेर हो तो शेर भी मकड़ी के जाल में फंस सकता है. भाग्य सब से प्रबल है.

जब होवें बिधना विपरीत तब ऊँट चढ़े पर कूकर काटे. जब भाग्य विपरीत हो तो ऊँट पर बैठे व्यक्ति को भी कुत्ता काट सकता है.

जबर की जोय महतारी लागे, निबल की जोय मोरी साली. बलवान की पत्नी माँ जैसी लगती है और निर्बल की पत्नी साली. अर्थ है कि कमजोर को सब दबाते हैं.

जबर के जबरई, अबरा के नियाव. (भोजपुरी कहावत) दबंग अपनी जबरदस्ती पर विश्वास रखता है और कमजोर न्याय तन्त्र का मुँह देखता है (यह अलग बात है कि न्याय उसे वहाँ भी नहीं मिलता). 

जबर मेहरारू कुल की नास. जबरदस्ती अपनी बात मनवाने वाली स्त्री कुटुंब का नाश करती है.

जबरदस्त के दो भाग. किसी चीज़ के कई हिस्से किये जाएँ तो ताकतवर आदमी उसमें से दो हिस्से लेता है.

जबरदस्त के बीसों बिस्वे. जो जबरदस्त है वह सारा हिस्सा खुद लेना चाहता है. एक बीघे में बीस बिस्वे होते हैं.

जबरदस्त सबका जमाई. जैसे जमाई की सबको इज्ज़त करनी पडती है वैसे ही दबंग आदमी से सबको दबना पड़ता है.

जबरदस्ती का ठेंगा सिर पर. अर्थ ऊपर वाली दोनों कहावतों के समान.

जबरा की जोरू, गाँव भर की ताई. दबंग व्यक्ति के नाते रिश्तेदारों से भी सब डरते हैं.

जबरा मारे और रोने न दे. जो जबरदस्त होता है वह मारता है और किसी से फ़रियाद भी नहीं करने देता.

जबरा हारे तो भी मारे, न हारे तो भी मारे. दबंग व्यक्ति हार जाए तो भी अपने को हारा हुआ नहीं मानता और मार पीट पर उतारू हो जाता है और जीत जाए तब तो परेशान करता ही है.

जबरे की जात कोई न पूछे. पहले के जमाने में लोग जात पांत का बहुत विचार करते थे. ऊँची जाति वालों का सम्मान और निम्न जाति वालों का अपमान आम बात थी. पर उस समय भी जो ताकतवर होता था उसकी जाति कोई नहीं पूछता था. नीची जाति वालों को कुएँ से पानी नहीं भरने देते थे पर म्लेच्छों से कुछ नहीं कहते थे.

जबरे को जबरा ही मारे, या मारे करतार. आतताई को दूसरा आतताई ही मार सकता है या ईश्वर.

जबरे ने दी गाली तो मजाक में टाली. दबंग आदमी गाली देता है तो लोग हँस के टाल देते हैं.

जबलग सनहकी में भात, तब लग तेरो मेरो साथ. जब तक तुम्हारे यहाँ खाने पीने की जुगाड़ है तब तक का ही तुम्हारा मेरा साथ है. निपट स्वार्थ. सनहकी – खाना पकाने का बर्तन.

जबान को लगाम चाहिए. जो कुछ हम बोलते हैं उस पर हमारा पूरा नियन्त्रण होना चाहिए.

जबान से ही घर उजड़ते हैं, जबान से ही घर बसते हैं. मीठी बोली प्रेम सम्बंध बना कर घर बसा सकती है और कड़वी बोली दुश्मनी करवा कर घर उजाड़ सकती है.

जबान हारी तो सब हारा. वचन दिया तो सर्वस्व दिया.

जबान ही हलाल है, जबान ही मुरदार है. जिस जानवर को इस्लामिक विधि से मारा गया हो उसे खाना मुसलमान हलाल (धर्मसंगत) मानते हैं और जो अपनी मौत मरा हो (मुरदार) उसे खाना पाप मानते हैं. कहावत में यह कहा गया है कि जीभ ही धर्म की बात करती है और जीभ ही अधर्म की.

जबान ही हाथी चढ़ाए, ज़बान ही सिर कटाए. बात को चतुराई से कहने पर हाथी इनाम में मिल सकता है और मूर्खता से कहने पर सर काटने की सजा मिल सकती है. (बातन हाथी पाइए, बातन हाथीपाँव).

जम की भैन बरात. बारात की खातिरदारी करना बड़ा ही खतरनाक काम है. इसीलिए बारात को यमराज की बहन कहा गया है.

जम के पानी बरसे स्वाती, कुरमिनि पहिरै सोने की पाती. स्वाति नक्षत्र में पानी बरसे तो किसान को बहुत लाभ होता है (उसकी पत्नी सोने के गहने बनवाती है).  

जम से जबर बनिया. बनिया उधार की उगाही करने के मामले में यमराज से भी अधिक खतरनाक होता है.

जमा लगे सरकार की और मिर्ज़ा खेलें फाग. सरकार के धन का दुरुपयोग करने वालों के लिए.

जमाई के घर घोड़ा और सास हिनहिनाए. कोई व्यक्ति साधन सम्पन्न हो तो उस के सगे सम्बन्धी भी इतराने लगते हैं. ऐसे लोगों का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है.  

जमाई जम का भाई (जमाई जम के समान होता है). दामाद यमराज की तरह डरावना और खतरनाक होता है.

जमाई तो रूठा ही भला. दामाद के रूठने से बड़ा फायदा है, न बार बार घर आएगा, न खातिर करनी पड़ेगी.

जमाई रूठे घर बसे, बेटा रूठे घर खसे. जमाई रूठता है तो लेन देन में होने वाला खर्च बच जाता है, इसलिए घर भरता है. बेटा रूठे तो घर में कमाई देना बंद कर देता है इसलिए घर डूब जाता है.

जमात में करामात. संगठन में शक्ति है.

जमीं जोरू जोर की, जोर हटया और की (खेती जोरू जोर की, जोर घट्या तो और की).  जायदाद और स्त्री बलवान के पास ही ठहर सकती है. बल घटते ही दूसरे बलवान लोग उसे छीन लेते हैं.

जमींदार की जड़ हरी. जमींदार हमेशा फलता फूलता है.(अकाल पड़ेगा तो किसान मरेगा, जमींदार फिर भी फलेगा).

जयपुर जइयो तो एक चक्की ले अइयो. कहीं जाने वाले व्यक्ति को अपने फालतू के काम बताना. काम बताने वाला यह भी नहीं सोचता कि चक्की ले कर आना कितना कठिन काम है.

जर का जर्रा भी आफताब है, बेजर की मिट्टी खराब है. जर – खजाना, आफताब – सूर्य, बेजर – निर्धन. धन का कण भी सूर्य के समान तेजवान लगता है. जिस के पास धन नहीं है उस की कोई पूछ नहीं है.

ज़र का जोर पूरा है, और सब अधूरा है. पैसे में जितनी ताकत है उतनी किसी चीज़ में नहीं है.

जर का मर्द नाहर, चाहे घर रहे या बाहर, बेजर का मर्द बिल्ली, चाहे घर रहे या दिल्ली. जर – संपत्ति, नाहर – शेर, बेजर – संपत्ति हीन. जो मर्द पैसे वाला है वह चाहे घर रहे या परदेश में, वह हमेशा शेर की तरह रहता है और जो पैसा नहीं कमा पा रहा है, वह चाहे कहीं भी रहे, भीगी बिल्ली बना रहता है.

ज़र गया ज़र्दी छाई, ज़र आया सुर्खी आई. धन न रहने पर आदमी उदास हो जाता है और धन आ जाने से प्रसन्न. (जर्दी – पीलापन, सुर्खी – ललामी)

जर नेस्त, इश्क टें टें. जर – खजाना, नेस्त – समाप्त. पैसा खत्म तो प्रेम भी खत्म.

जर पल्ले तो उजाड़ में चल्ले (उजाड़ में बल्ले बल्ले). पैसा पास हो तो आदमी जंगल में मंगल कर सकता है.

जर है तो घर है, नहीं तो खंडहर है. जर – धन. पास में पैसा हो तभी घर बस सकता है और चल सकता है.

जर है तो नर है नहीं तो पंछी बेपर है. रुपया पैसा पास हो तभी आदमी की इज्जत है.

जर है तो नर, नहीं तो पूरा खर. पैसा पास हो तो आदमी नहीं तो गधे के बराबर.

जरा जरा सा कर लिया और अपना पल्ला भर लिया. थोड़ी थोड़ी बचत भी बहुत महत्वपूर्ण होती है.

जरा सा खावे बहुत बतावे वह है बहू सुघड़ेली, ज्यादा खावे कम बतलावे वह बहुतहि बिगड़ेली. जो बहू सुघड़ होती है वह कम खाती है और कहती है कि उसने बहुत खा लिया है, जो बहू बिगडैल होती है वह अधिक खाती है और कहती है कि उसे कुछ नहीं मिला.

जरा सा मुँह, बड़ा सा पेट. जो बोलता कम हो और पेट में ज्यादा बात रखता हो. उसके लिए भी जो देखने में दुबला पतला हो पर खाता अधिक हो.

जरूरत पड़ने पर लोग गधे को भी बाप बना लेते हैं. स्वार्थ सिद्धि की लिए मनुष्य कुछ भी कर सकता है.

जल और कुल मिलते देर नहीं लगती. पानी और एक कुल के आदमियों को परस्पर मिलने में देर नहीं लगती. आजकल कुल से अधिक काम महत्वपूर्ण है. दो डॉक्टर या दो वकील कहीं मिलते हैं तो फौरन घुल मिल जाते हैं.

जल की मछलिया जल में ही प्यासी. जिस चीज़ की बहुतायत होनी चाहिए उसी की कमी हो तो.

जल की मछली जल ही में भली. जो जहाँ का होता है उसे वहीं अच्छा लगता है.

जल में खड़ी प्यासों मरे. साधन सम्पन्न होने पर भी परेशान होना.

जल में जो मूते वही जाने. नदी या तालाब में नहाते समय किसने पानी के अंदर पेशाब की है यह केवल करने वाला ही जान सकता है. जो गलत काम छिप के किया जाता है उसे केवल करने वाला ही जान सकता है.

जल में डूबा तैर निकले, तिरिया में डूबा बह जाए. एक बार को पानी में डूबा आदमी तैर कर निकल सकता है पर जो स्त्री के मोह में डूब गया वह निश्चित रूप से बह जाता है.

जल में रहे मगर से बैर. जहां आप रहते हैं वहाँ रहने वाले शक्तिशाली लोगों से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहिए. 

जल लकीर जिमि जीवनों है, स्थिर रह्यो नाहिं. जीवन पानी पर खींची लकीर की भांति क्षणभंगुर है.

जल सूर बामन, रन सूर छत्री, कलम सूर कायस्थ और डर सूर खत्री. ब्राह्मण ठन्डे पानी में रोज नहाता है (जल शूर), क्षत्रिय युद्ध करने (रण) में शूर होता है, कायस्थ कलम का वीर होता है और खत्री महा डरपोक होता है. कहावत तो कहावत है, खत्रियों से निवेदन है कि इस का बुरा न मानें.

जलता घर भगवान् को अर्पण. जो चीज़ हाथ से जा रही हो उस को भगवान को अर्पण कर के भक्त होने का नाटक करना.

जली तो जली पर सिकी खूब. काम बिगड़ तो गया पर आनंद खूब आया.

जले को क्या जलाना. 1. जो कष्ट में हो उसे और कष्ट नहीं देना चाहिए. 2. कोई आपसे ईर्ष्या करता हो तो उसके सामने ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे वह और अधिक जले.

जले घर की बलेंडी. बलेंडी – छप्पर की लम्बी लकड़ी. व्यापार में बहुत नुकसान हुआ पर जो कोई एक बड़ा अदद बच गया उस के लिए ऐसा कहते हैं.

जले पराया घी और हंसें बटाऊ लोग. दूसरे का नुकसान होते देख कर कुछ लोग आनंद लेते हैं. बटाऊ – राहगीर. 

जले पांव की बिल्ली. ऐसा व्यक्ति जो घर घर घूम कर झगड़े की आग लगा देता है. सन्दर्भ कथा – किसी गाँव के साहूकार ने एक बिल्ली पाल रखी थी. एक बार बिल्ली के पाँव में चोट लग गई तो साहूकार ने मिट्टी के तेल में कपड़ा भिगोकर उस के पाँव में पट्टी बाँध दी. अचानक वह बिल्ली रसोई घर में चूल्हे के पास चली गई तो उस कपड़े में आग लग गई. आग लगने से वह बिल्ली घर में इधर-उधर भागने लगी. साहूकार के घर में कई अन्य व्यापारियों के कपड़े के गट्ठर और रुई रखी थी जिनमें आग लग गई. इसके बाद बिल्ली बदहवासी में घर से बाहर निकल गई और उस ने इधर उधर भागते हुए कई घरों में आग लगा दी. कहावत किसी ऐसे व्यक्ति के लिए प्रयोग की जाती है जो अपनी धूर्तता द्वारा सब जगह झगड़े की आग लगा देता है.

जलेबी की तरह सीधा. जलेबी बहुत टेढ़ी मेढ़ी होती है. अगर कोई धूर्त व्यक्ति अपने को सीधा बताने का प्रयास करता है तो उस के लिए मजाक में ऐसे बोलते हैं. 

जलो मगर दीपक की तरह. जो लोग दूसरों की सफलता और सम्पन्नता से जलते हैं उन को सीख दी गई है कि अगर जलना ही है तो दीपक की तरह जलो जो स्वयं जल कर औरों को प्रकाश देता है.

जलो मत रीस करो. रीस – स्पर्धा. किसी की सम्पन्नता से जलने की बजाय उससे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा करना और उस के बराबर बनने की कोशिश करना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – Envy never enriched any man.

जल्दबाजी करो तो भी धीरे धीरे. कभी कोई काम जल्दी में करना पड़े तो भी जितना संयम हो सके रखना चाहिए.

जल्दबाजी काम शैतान का, सुघड़ काम रहमान का. जल्दबाजी में काम खराब हो जाता है.

जवान जाए पताल, बुढ़िया मांगे भतार. बुढ़िया कह रही है कि जवान स्त्री भाड़ में जाए मुझे ब्याह करना है. बुढ़ापे में कुछ लोग बहुत स्वार्थी हो जाते हैं, उनके लिए.

जवान डरे भगने से, बूढ़ा डरे मरने से. जवान युद्ध भूमि से भागने से डरता है और बूढ़ा मरने से डरता है.

जवान रांड, बूढ़े सांड. 1. जवान विधवा को देख कर बूढ़े लोग नीयत खराब कर रहे हों तब. 2. दुश्चरित्र जवान स्त्री और रंगीन मिजाज बूढ़े लोगों का गठबंधन.

जवानी के सौ यार. युवतियों को सावधान करने के लिए कहा गया है.

जवानी में गधी पर भी जोवन होता है. स्त्री कुरूप हो तब भी युवावस्था में उस पर भी मद छाता है.

जवानी में शादी, नहीं तो बरबादी. युवावस्था में विवाह न हो पाए तो आदमी बर्बाद हो जाता है.

जवानी में हाजी, बुढ़ापे में पाजी. जो व्यक्ति जवानी में धर्मात्मा हो पर बुढ़ापे में दुश्चरित्र हो जाए.

जवानी मौत अच्छी, जवानी अधपेटा न अच्छी. जवानी में भरपेट खाने को न मिले इससे तो मृत्यु अच्छी.

जवानों को चला चली, बुढ़िया को ब्याह की पड़ी. जवानों की तो जान जोखिम में है और बुढिया को ब्याह करने का शौक सूझ रहा है. बुढ़ापे में मनुष्य स्वार्थी हो जाता है इस पर व्यंग्य.

जस केले के पात में पात पात में पात, तस ग्यानी की बात में बात बात में बात. जैसे केले के एक पत्ते में बहुत से पत्ते होते हैं वैसे ही ज्ञानी आदमी की बात में गूढ़ अर्थ छिपे होते हैं.

जस दुल्हा तस बनी बराता. जैसा नायक वैसे ही अनुयायी, जैसा नेता वैसी जनता, जैसा राजा वैसी प्रजा.

जस मतंग तस पादन घोड़ी, बिधना भली मिलाई जोड़ी. एक साथ काम करने वाले दो लोग जब एक से बढ़ कर एक निकम्मे हों तो. मतंग – कोई (मूर्ख) व्यक्ति, पादन घोड़ी – पादने वाली घोड़ी, बिधना – ईश्वर.

जस-जस बिटिवा बाढ़े, तस-तस गुन काढ़े. जब कोई मूर्ख कन्या बड़ी होने के साथ-साथ और अधिक मूर्खता के काम करने शुरू कर देती है तब व्यंग्य में यह कहावत कहते हैं

जहँ आपा तहँ आपदा, जहँ संशय तहँ रोग. जहाँ स्वार्थ और अहंकार का बोलबाला है वहाँ संकट है और जहाँ शंकालु प्रवृत्ति है वहाँ आप स्वस्थ मन से काम नहीं कर सकते.

जहँ एका तहँ लक्ष्मी, जहाँ कलह वहाँ काल. घर हो व्यापार हो या समाज, जहाँ लोगों में एकता है वहाँ उन्नति है, जहाँ लड़ाई झगड़े है वहाँ दुर्गति.

जहँ लूट पड़ी वहां टूट पड़ी जहँ मार पड़ी वहां भाग पड़ी. जहाँ माल की खुल्लम खुल्ला लूट मच रही हो वहाँ कायर और लालची लोग टूट पड़ते हैं और जहाँ मार पड़ने का डर हो वहाँ से भाग खड़े होते हैं.

जहर को जहर ही मारता है. दुष्ट का नाश दुष्टता से ही किया जा सकता है. (संस्कृत – विषस्य विषं औषधम् ).

जहर खाने की फुर्सत नहीं. काम से बिलकुल अवकाश नहीं होना.

जहाँ अचानक होत है, अति आदर सम्मान, तहाँ सदा संकित रहे, जो चाहे कल्यान. जहां पर सदैव आदर होता हो वहाँ तो ठीक है पर यदि कहीं अचानक से सम्मान होने लगे तो सावधान हो जाना चाहिए.

जहाँ कलह तहँ सुख नहीं कलह सुखनि को सूल. जहाँ झगड़ा है वहाँ सुख शान्ति नहीं हो सकती. सूल – शूल.

जहाँ का पीवे पानी, वहीं की बोले बानी. जहाँ रहो वहीं के अनुकूल बात करनी चाहिए.

जहाँ काम, वहीं राम. जहाँ उद्यम है, वहीं ईश्वर का वास है.

जहाँ के ठाकुर अइसन, वहाँ के दलिद्दर कइसन. अइसन – ऐसे, कइसन – कैसे. जहाँ के गणमान्य लोग ऐसे गये गुजरे हैं वहाँ के निम्न वर्ग के लोग कैसे होंगे.

जहाँ के मुरदे तहाँ ही गड़ते हैं. जो काम जहां का है उसे वहीं निबटाना चाहिए.

जहाँ खर्च नहीं वहाँ हर एक गाँठ का पूरा. जहाँ लोगों की आदत व्यर्थ खर्च करने की नहीं होती वहाँ हर व्यक्ति सम्पन्न होता है.

जहाँ खैरात बंटे वहाँ मंगते अपने आप पहुँचें. अर्थ स्पष्ट है.

जहाँ गंग, वहाँ रंग. जहाँ गंगा है, वहाँ आनंद हैं. प्राचीन समय में नदियों के किनारे ही नगर बसते थे.

जहाँ गंगा तहाँ झाऊ, जहां बाभन तहाँ नाऊ. जिस प्रकार नदियों के पास झाऊ के पेड़ अवश्य पाए जाते हैं उसी प्रकार धार्मिक कर्मकांडों में पंडितों के साथ नाई भी अवश्य पाए जाते हैं. देखिए परिशिष्ट.

जहाँ गंज, वहाँ रंज. जहाँ ख़ुशी है वहाँ दुख भी अवश्य है.

जहाँ गाय वहाँ बछड़ा, जहाँ गुरु वहाँ चेला. जैसे बछड़ा गाय पर पूरी तरह निर्भर है वैसे ही चेला भी पूरी तरह गुरु पर आश्रित है.

जहाँ चने हैं वहाँ दांत नहीं, जहाँ दांत हैं वहाँ चने नहीं. जहाँ सुविधाएँ उपलब्ध हैं वहाँ उन्हें भोगने वाले नहीं हैं, जहाँ भोगने वाले बहुतेरे हैं वहाँ सुविधाएँ नहीं हैं.

जहाँ चार गगरी तहाँ लड़बे करी. (भोजपुरी कहावत) जहाँ चार पनिहारिनें होंगी वहाँ आपस में लड़ाई तो होगी ही. स्त्रियों की बिना कोई ठोस कारण आपस में लड़ने की आदत पर व्यंग्य. 

जहाँ चार रजपूत, वहाँ बात मजबूत. राजपूत अकेला हो तो भी अपनी बात का पक्का होता है, और अगर चार राजपूत मिल जाएं तो क्या कहना.

जहाँ जाएं बाले मियाँ तहाँ जाए पूँछ. चमचों पर व्यंग्य करने के लिए.

जहाँ जाट, वहाँ ठाठ. जाट बड़े दरियादिल और मस्त माने जाते हैं उसी पर बनी कहावत.

जहाँ तेल देखा वहीँ जनने को बैठ गई. बच्चे का जन्म कराने के लिए दाइयों को तेल की आवश्यकता होती थी. एक ऐसी स्त्री का ज़िक्र किया गया है जो कहीं पर तेल देख कर बच्चे का प्रसव करने बैठ जाती है. कहावत उस निर्लज्ज व्यक्ति के लिए कही गई है जो मुफ्त की चीज पाने के लिए कुछ भी कर सकता है.

जहाँ दया तहँ धर्म है, जहाँ लोभ तहँ पाप, जहाँ क्रोध तहँ ताप है, जहाँ क्षमा तंह आप. जहाँ दया है वहाँ धर्म, जहाँ लोभ है वहाँ पाप. जो लोग क्रोध करते हैं वे कष्ट उठाते हैं और जहाँ क्षमा वहाँ ईश्वर का वास होता है.

जहाँ दूल्हा वहीँ बरात. जो महत्वपूर्ण व्यक्ति है उसी के इर्द गिर्द सब लोग रहना चाहते हैं.

जहाँ नहीं पेड़ वहाँ अरंड ही पेड़ (जहाँ रूख नहीं वहाँ अरंडा ही रूख). अरंड का पेड़ बहुत घटिया पेड़ माना जाता है. लेकिन जहाँ पेड़ ही न हों वहाँ अरंड को ही पेड़ मान सकते हैं. काम चलाने वाली बात. 

जहाँ नाश वहाँ सवा सत्यानाश. जहाँ नुकसान हो रहा है वहाँ थोड़ा और नुकसान सही. इस को इस प्रकार भी कहते हैं – जहाँ लादी वहाँ सवा लादी.

जहाँ पड़े मूसल, वहीं क्षेम कुशल. 1.मूसल से मसाले कूटे जाते हैं और चूरमा बनता है, इसलिए जहाँ खुशहाली हो वहीं मूसल का प्रयोग होता है. 2. कुटाई के डर से ही सारी व्यवस्थाएं सुचारू रूप से चलती हैं. (देखिए परिशिष्ट)

जहाँ पाँच पंच तहाँ परमेश्वर. जहाँ पांच पंच मिल कर न्याय करते हैं वहाँ अन्याय की गुंजाइश कम हो जाती है.

जहाँ फूल वहाँ काँटा (जहाँ गुलाब, वहाँ कांटे). ईश्वर ने जहाँ सुख दिए हैं वहाँ कुछ न कुछ दुख भी दिए हैं. इंग्लिश में कहावत है – There are no rose without thorns.

जहाँ बस्ती होती है वहाँ कुत्ते भी होते हैं. 1. अच्छे इंसानों के बीच बुरे लोग भी अवश्य होते हैं. 2. जहाँ सम्पन्नता होती है वहाँ उस का लाभ लेने वाले बहुत से निम्न श्रेणी के लोग पहुँच जाते हैं.

जहाँ बहू का पीसना, वहीं ससुर की खाट. जहाँ बहू चक्की पीस रही है वहीं ससुर खाट डाले बैठे हैं. बेतुका काम.

जहाँ बूढ़ न होंय, उहां भिनसार (सुबह) न होय. जहां बुजुर्ग न हों वहां घर के लोग देर तक सोते ही रह जाएंगे.

जहाँ मिले पाँच माली, वहाँ बाग़ सदा खाली. साझे का काम हमेशा गड़बड़ होता है. रूपान्तर – ज्यादा जोगी मठ उजाड़. इंग्लिश में कहावत है – Too many cooks, spoil the broth.

जहाँ रहे गुनवन्त नर, ताकी शोभा होत, जहाँ धरे दीपक तहाँ, निहचै करत उदोत. निहचै – निश्चय ही, उदोत – प्रकाश. गुणी मानव दीपक के सामान होता है, जहाँ भी रहे अवश्य ही वहाँ प्रकाश करता है.

जहाँ लाख, वहाँ सवा लाख. जहाँ बहुत अधिक खर्च हो रहा हो वहाँ थोड़ा और सही.

जहाँ साहुओं का घर, वहीं चोरों का डेरा. 1, साहू – सेठ. जहाँ व्यापारी बसते हैं, वहीं पर चोरों का बसना स्वाभाविक ही है. 2. भले लोगों के बीच में चोरों का रहना अभिशाप सा लगता है.

जहाँ हाथी तुलें, वहाँ गधे पासंग. कोई सामान तोलने से पहले तराजू के हल्के पलड़े में थोड़ा वजन बाँध कर दोनों पलड़ों को बराबर करते हैं. इसे पासंग कहते हैं. जहाँ हाथी जैसी बड़ी चीज़ तोलने का काम हो रहा वहाँ गधे की औकात पासंग जितनी ही है.  

जहां काम आवे सुई, कहा करे तलवार. आपके सम्बन्ध कितने भी बड़े बड़े लोगों से क्यों न हों आपको छोटे लोगों को भी सम्मान और महत्त्व देना चाहिए. सन्दर्भ कथा – एक शेर अपनी मांद में सो रहा था. तभी भूल से एक चूहा उसके ऊपर चढ़ गया. शेर जाग गया और उस ने चूहे को पकड़ लिया. चूहा गिड़गिड़ाया, मालिक मैं अनजाने में आपके ऊपर चढ़ गया था. मुझे छोड़ दीजिये, हो सकता है मैं कभी आपके काम आऊँ. शेर को हंसी आ गई.

जहां गड्ढा होता है पानी वहीँ भरता है. इस का शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट है पर कहावत के रूप में इसका अर्थ थोड़ा सूक्ष्म है. कहीं चार लोग बैठे हों तो आप किसी एक राजनैतिक दल की बुराई करना शुरू कर दीजिए. जो उस दल का समर्थक होगा उसे बुरा लगेगा और वह फ़ौरन विरोध करेगा. आप सोशल मीडिया पर किसी ग्रुप में किसी एक व्यवसाय की बुराई कीजिए. उस ग्रुप में उस व्यवसाय से संबंधित जो लोग होंगे वे फौरन आपत्ति करेंगे. इसे कहते हैं जहां गड्ढा होता है वहीं पानी भरता है.

जहां गुड़ होगा वहां मक्खियाँ आयेंगी ही (जहां मीठा होइ, उहाँ चिउंटी लगबे करी). जिसके पास धन व अधिकार हो उसके बहुत से मित्र बन जाते हैं. जहाँ लाभ होने की संभावना होती है वहाँ बहुत से लाभार्थी पहुँच जाते हैं.

जहां चाह वहां राह. व्यक्ति यदि कोई कार्य करना मन से चाहता है तो उसके लिए रास्ता निकाल लेता है. इंग्लिश में कहावत है – Where there is a will, there is a way.

जहां जाय भूखा, वहां पड़े सूखा. अभागा व्यक्ति कहीं भी जाए दुर्भाग्य उसका साथ नहीं छोड़ता.

जहां जाये दूला रानी, वहाँ पड़े पाथर पानी. पाथर पानी – ओला वृष्टि. किसी अभागे व्यक्ति पर व्यंग्य है कि वह जहाँ जाता है वहाँ कुछ न कुछ अनर्थ हो जाता है.

जहां ढेर मउगी, तहँ मरद उपास. (भोजपुरी कहावत) ढेर – बहुत सारी, मउगी – पत्नी, उपास – उपवास. जिस आदमी की कई पत्नियाँ होती हैं उसे भूखा रहना पड़ता है. (क्योंकि सभी एक दूसरे पर काम टालती हैं).

जहां देखी रोटी, वहीं मुड़ाई चोटी. चोटी कटाने से दोनों अर्थ हो सकते हैं, सिर मुंडा कर सन्यासी बनना या चोटी कटा कर सन्यासी से पुनः सांसारिक बनना. अर्थ यह है कि रोटी के कारण व्यक्ति कुछ भी कर सकता है.

जहां देखे तवा परात, वहीँ बितावे सारी रात. जहाँ खाने पीने का इंतजाम हो वहीँ रहने की इच्छा करने वाले लोग.

जहां दो बर्तन होते हैं, खड़कते ही हैं (जहाँ चार बासन होत सो खटकतई हैं). जहाँ चार आदमी इकट्ठे रहते हैं वहाँ आपस में खटपट हो ही जाती है. जब दो लोग एक साथ रहते हैं तो कभी न कभी मनमुटाव हो ही जाता है.

जहां धुंआ वहां आग जरूर होगी. (आग बिन धुंआ नहीं). अगर कहीं धुंआ दिखाई दे रहा है तो इसका अर्थ यह है कि कहीं न कहीं आग जरूर लगी हुई है. अगर दो लोगों के रिश्तों में तनाव दिखाई दे रहा है तो इसका अर्थ यह है कि अंदरखाने कुछ मनमुटाव जरूर होगा.

जहां न जाए रवि, वहां जाए कवि (जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि). कवियों की कल्पना के विषय में कहा गया है कि वह कहाँ नहीं पहुँच सकती.

जहां न जाए रेलगाड़ी, वहां जाए मारवाड़ी. मारवाड़ी लोग दूर दूर तक व्यापार करते हैं उसके लिए मजाक.

जहां बालों (बालकों) का संग वहां बाजे मृदंग, जहां बुड्ढों का संग वहां खरचे से तंग. जहां बालक होते हैं वहां मौज मस्ती होती है और जहां केवल बूढ़े लोग हों वहां केवल परेशानियों की चर्चा होती है.

जहां मुर्गा नहीं होता वहां क्या सवेरा नहीं होता. मुर्गे को यह गलतफहमी होती है कि उसके बांग देने से ही सवेरा होता है. इसी प्रकार कुछ लोगों को यह भ्रान्ति होती है कि अमुक संस्था उन के कारण से चल रही है. ऐसे लोगों को उनकी हैसियत बताने के लिए यह कहावत कही जाती है.

जहां मेरो सैयां, वहां मेरो गइयां. मेरा गाँव वहीँ है जहां मेरा पति रहता है. सुहागिन स्त्रियों का कथन. गइंया–गाँव.

जहां राजा बसे, वहीं राजधानी. महत्वपूर्ण व्यक्ति जहाँ रहेगा वही स्थान महत्वपूर्ण हो जाएगा.

जहां रोजगार, वहीं घरबार. व्यक्ति को जहाँ रोजगार मिलता है वह वहीँ घर बसाता है.

जहां शहद वहां माखी. जो लाभ का स्थान होगा वहाँ बहुत से लोभी लोगों का जुटना स्वाभाविक ही है.

जहां सुमति तंह सम्पति नाना. जहाँ अच्छी मति होगी वहाँ सब प्रकार के सुख होंगे. 

जहाज का घाटा चरखे से पूरा नहीं होता. बहुत बड़े व्यापार का घाटा छोटे छोटे कामों से पूरा नहीं हो सकता.

जा कान सुनी बा कान निकार दई. एक कान से सुनी दूसरे से निकाल दी. किसी बात पर ध्यान न देना.

जा के रखवाल गोपाल धनी ताको बलभद्र कहा डर रे. जिसके रखवाले स्वयं श्रीकृष्ण हों, उस को बलराम से क्या डर. जिसके रखवाले स्वयं ईश्वर हों उसे किसी मनुष्य से क्या डरना. देखिए सन्दर्भ कथा 91.

जा घट प्रेम न संचरै, ता घट जानि मसान. जिस व्यक्ति के हृदय में प्रेम का वास नहीं है वह प्रेत के समान है. जिस स्थान पर प्रेम का वास नहीं है वह श्मशान के समान है.

जा घर के सब नकटई नकटा. किसी घर में एक से निर्लज्ज व्यक्तियों का होना.

जा मन होय मलीन, सो पर सम्पदा सहे ना. जिस के मन में ईर्ष्या की भावना होटी है उसे पराई सम्पत्ति देख कर कष्ट होता है.

जा मुख राम न उच्चरे, वा मुख लोह जड़ाइ. जिस मुख से राम का नाम न निकले उस को लोहे की कीलों से जड़ देना चाहिए. उच्चरे – उच्चारित हो, जड़ाई – जड़ दें.    

जा री बिल्ली, कुत्ते को मार. किसी गरीब और छोटे आदमी को जबरदस्ती मुसीबत में धकेलना.

जाँते पे बैठ के सब गाते हैं. जांता – हाथ की चक्की. चक्की पर बैठ कर सबको गाना सूझता है. इसका कारण यह भी है कि गाना गाने से थकान और ऊब कम होती है.

जाँतो फूटो, नातो टूटो. लड़की की मृत्यु हो जाने पर उसकी ससुराल वालों से फिर कोई विशेष संबंध नहीं रहता.

जाइए दुख में पहले, सुख में पीछे. किसी की यहां कोई दुख का अवसर हो उस में फौरन जाना चाहिए चाहें सुख के प्रसंग में बाद में चले जाएं.

जाए जान, रहे ईमान. चाहे जान चली जाए पर ईमान नहीं जाना चाहिए.

जाए लाख, रहे साख (लाख जाए पर साख न जाए). चाहे लाखों रुपये खर्च हो जाएं अपनी साख नहीं जानी चाहिए.

जाएँ उत्तर, बतायें दक्खिन. कुछ का कुछ बताना

जाएगा तो मालिक का, रहेगा तो भी मालिक का. स्वार्थी नौकरों का कथन.

जाओ चाहे नेपाल, साथ जायगा कपाल (जावो कलकत्ते से आगे, करम साथ में जावे). चाहे कहीं भी चले जाओ, भाग्य आपके साथ जाएगा.

जाका ऊंचा बैठना, जाका खेत निचान, ताका बैरी क्या करे, जाका मीत दिवान. जिस का बड़े लोगों में उठना बैठना हो, खेत नीची जगह पर हो और मंत्री या कोतवाल जिसके मित्र हों उसका कोई क्या बिगाड़ सकता है.

जाका कोड़ा ताका घोड़ा. घोड़ा उसी का है जिसके पास कोड़ा है. जिसके पास ताकत है उसी का संपत्ति पर अधिकार होता है. इस प्रकार की दूसरी कहावत है – जिसकी लाठी उसकी भैंस.

जाका गुरु भी अँधला, चेला खरा निरंध, अंधहि अंधा ठेलिया, दोनों कूप पडंत. यदि गुरु भी अँधा हो और चेला भी अँधा हो तो दोनों कुँए में गिरते हैं. 

जाकी अच्छी सास बाका ही घर वास, जाकी सास नकारा, ताका कहाँ गुजारा. जिस बहू की सास अच्छी हो उसका घर स्वर्ग है और सास अगर दुष्ट हो तो जीवन काटना मुश्किल है.

जाकी अपकीरति छाय रही जग, सो यमलोक गयो न गयो. जिसकी समाज में बदनामी हो जाए वह जिन्दा भी मरे के बराबर है.

जाकी छाति न एकौ बार, उनसे सब रहियो हुशियार (जाकी छाती जमे न बार, उनसे रहना तुम होशियार). एक पुरानी सोच है कि जिनकी छाती पर बाल नहीं होते वे कुटिल प्रवृत्ति के होते हैं.

जाकी छाया रहिए, ताकी हीसी कहिए. जिसकी संरक्षता में रहना हो उसी के मन की बात करना चाहिए.

जाकी जात के जौन हैं ताकी पाँत के तौन, बाघ बाज के पूत को मार सिखावत कौन. (बुन्देलखंडी कहावत) जौन – जो भी, तौन – वही. जो जिस जाति के हैं उस के गुण अपने आप विकसित कर लेते हैं. शेर और बाज के बच्चों को शिकार करना कौन सिखाता है. 

जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी. जब भगवान राम सीता स्वयम्बर में धनुष तोड़ने के लिए उठे तो अलग अलग लोगों को उनके अलग अलग रूप दिखाई दिए. कहावत का अर्थ है कि आप किसी को उसी रूप में देखते हैं जैसी आप के मन में उसके प्रति भावना होती है.

जाके कारन पहनी सारी, वही लगा अब टांग उघारी. प्राय: लडकियां शादी के पहले कुर्ता सलवार आदि पहनती थीं और शादी के बाद साड़ी. इस आशय में साड़ी पहनने का अर्थ विवाह करने से है. जिससे विवाह किया वही बदनाम करने पर तुला हुआ है.

जाके घर में नौ सौ गाय, सो क्यों छाछ पराई खाय. जिस के घर में बहुत सारी गाएं हों वह दूसरे से मांग कर छाछ क्यों खाएगा. जो स्वयं साधन सम्पन्न है वह दूसरों से कुछ क्यों मांगेगा.

जाके घर में माई, ताकी राम बनाई. जिस घर में माँ होती है वह स्वर्ग हो जाता है.

जाके ढिंग माल है ताकी न्योती चूल, जाके ढिंग कछु नहीं ताकी गई सुध भूल. चूल न्योतना – घर भर को भोजन के लिए आमंत्रित करना. पैसे वाले का सब आदर-सत्कार करते हैं.

जाके पाँव न फटी बिबाई, वो क्या जाने पीर पराई. पैर की एड़ी और तलवे में खाल के फटने से जो गहरी दरारें हो जाती हैं उन्हें बिवाई कहते हैं. इनमें बहुत दर्द होता है. जिनके पैर में बिबाई ना हुई हो वे उसका दर्द नहीं जान सकते. जो खुद किसी खास परेशानी से न गुजरा हो वह दूसरे को होने वाले कष्ट को कैसे जान सकता है.

जाके पास रहिए, ताकी ही सी कहिए. जैसा परिवेश हो वैसी ही बात कहनी चाहिए.

जाके सिर पे बोझ है, सोई करे निबाह. जिस के ऊपर पड़ती है उसी को निभाना पड़ता है.

जाके हित चोरी करों, सोई बनावे चोर. जिसको लाभ पहुँचाने के लिए चोरी की, वही आपको चोर ठहरा रहा है.

जाको जहं स्वारथ सधे, सोई ताहि सुहात, चोर न प्यारी चांदनी, जैसी कारी रात. जिसका स्वार्थ जहाँ पूरा होता है उसको वहीं अच्छा लगता है. चोर को चांदनी नहीं काली रात अच्छी लगती है.

जाको जेहिपर सत्य सनेहू, सो तेहि मिलेहि न कछु सन्देहू. जो सच्चे मन से किसी को चाहता है उसे वह जरूर मिलता है. विशेषकर ईश्वर के मिलने के लिए कहा गया है.

जाको जौन स्वभाव जाय नहिं जी से, नीम न मीठा होय सींचो गुड़ घी से. व्यक्ति के स्वभाव को नहीं बदला जा सकता. नीम को गुड़ घी से सींचो तब भी कड़वा ही रहता है. आमतौर पर बाद वाला भाग ही बोला जाता है.

जाको डंडा ताकी गाय, करो न कोई हाय हाय. जिसके पास डंडा होगा वही गाय को ले जाएगा, इसमें किसी को आपत्ति नहीं होना चाहिए. अर्थ है कि सम्पत्ति पर अधिकार बलवान का ही होता है. जिसकी लाठी उसकी भैंस.

जाको प्रभु दारुण दुख देहीं, ताकी मति पहले हर लेहीं. जिसको प्रभु दुख देना चाहते हैं उसकी बुद्धि भ्रष्ट कर देते हैं. यदि कोई व्यक्ति इस प्रकार के काम कर रहा हो जिस से वह बहुत परेशानी में पड़ सकता है (और समझाने पर मान भी न रहा हो) तो यह कहावत कही जती है.

जाको मारा चाहिए बिन मारे बिन घाव, बाको यही बताइये घुइंया पूरी खाव. पुराने लोग मानते थे कि घुइंया (अरबी) बहुत बादी होती है और नुकसान करती है, और अगर पूड़ी के साथ खाई जाए तब तो और भी अधिक. घाघ कवि कहते हैं कि जिस को आप बिना घाव के मारना चाहते हैं उसे घुइंया पूड़ी खाने की सलाह दीजिये.

जाको राखे सांइयाँ मार सके न कोय, बाल न बांका करि सकै जो जग बैरी होय. ईश्वर जिसका रखवाला हो उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. आमतौर पर इसका पहले वाला भाग ही बोला जाता है.

जाको राम रक्खे, ताको कौन चक्खे. (जाका राम रच्छक, ताको कौन भच्छक). जिसका राम रखवाला हो उसका कौन भक्षण कर सकता है.

जाग मछन्दर गोरख आयो. मछन्दर नाथ (शुद्ध नाम मत्स्येन्द्र नाथ) गोरख़ नाथ के गुरु थे. एक बार मत्स्येन्द्र नाथ आसक्ति में पड़ गए तो गोरखनाथ ने आ कर उन्हें बोध कराया. आम तौर पर गुरु शिष्य को रास्ता दिखाते हैं पर यदि शिष्य को यह काम करना पड़े तो यह कहावत कही जाती है.

जागते को कौन जगाए. सोते हुए को जगाया जा सकता है पर जो स्वयं जाग रहा हो उसे कौन जगा सकता है.

जागे जिस के देह में दूख, जागे जिस को लागे भूख. जिस के शरीर में कोई कष्ट होता है वह जागता है या जो भूखा होता है वह जागता है.

जागे जो हो धन का धनी, जागे जिसको चिंता घनी. जिसके पास अधिक धन हो वह उस को सम्भालने की फ़िक्र में नहीं सो पाता है या जिस को कोई बड़ी चिंता हो वह नहीं सो पाता है.

जाट एक दमड़ी पे लहू-लुहान, बानिया सौ पे भी न खींचा-तान. जाट छोटी सी रकम के नुकसान पर भी मार काट पर उतारू हो जाता है, जबकि बनिया बड़े नुकसान को भी शान्ति से सहन कर लेता है.

जाट कहे शरमाय, पर लड़े न शरमाए. जाट बोलने में शर्माता है पर लड़ने में नहीं.

जाट कहे सुन जाटनी तोको इसी गाँव में रहना, ऊँट बिलाई लै गई तो हांजी हांजी कहना. जाट अपनी पत्नी को समझा रहा है की तुझे इसी गाँव में रहना है. कोई प्रभावशाली आदमी अगर यह कहे कि बिल्ली ऊँट को उठा ले गई, तो भी उसकी हाँ में हाँ मिलाना. जिस समाज में आप रह रहे हैं वहाँ की बहुत सी गलत बातें न चाहते हुए भी स्वीकारनी पड़ती हैं.

जाट का बैरी जाट, काठ का बैरी काठ. जाटों के आपसी वैमनस्य के ऊपर कहावत है. बात को समझाने के लिए लकड़ी का उदाहरण दिया गया है. लकड़ी को काटने वाली कुल्हाड़ी का बट लकड़ी का ही बना होता है

जाट किसी को घी-दूध खिलावे तो गले में रस्सा डाल के. जाट जिस किसी पर अहसान करता है, उसे गुलाम बना कर रखना चाहता है.

जाट की पंचायत और ऊँटनी का गर्भ छिपते नहीं हैं. जाटों की पंचायत में शोर शराबा और तू तड़ाक बहुत होती है इसलिए वह छिपती नहीं है. ऊँटनी का पेट ऊँचाई पर होता है और सब को दिखाई देता है इसलिए उस का गर्भ भी नहीं छिपता.

जाट की हांसी आम आदमी की पसली चटका दे. जाट का अट्टाहस इतना खतरनाक होता है कि सामान्य व्यक्ति की पसली ही चटक जाए.

जाट को मारै जाट या मारे करतार. जाट को विश्वासघाती जाट मार सकता है या फिर ईश्वर ही मार सकता है.

जाट क्या जाने लौंग का भाव. जाट दिल के कितने भी साफ़ हों, स्वभाव से थोड़े अक्खड़ होते हैं. जाटों में नज़ाकत का अभाव होता है इसी को ले कर यह कहावत बनाई गई है.

जाट जब आपे से बाहर हो जाए तो खुदा ही उसे थाम सके. अर्थ स्पष्ट है.

जाट जाट को मारता यही है भारी खोट, ये सारे मिल जायें तो अजेय इनका कोट. जाट वीर होते हैं पर आपसी रंजिश के चलते मात खाते हैं. अगर इन में एकता हो जाए तो ये अजेय हो जाएँ. कोट – किला.

जाट जाटनी से पार न पावे तो बैल को चाबुक मारे. बलवान पर बस न चले तो लोग कमजोर पर गुस्सा उतारते हैं. रूपान्तर – कुम्हार पे बस न चला तो गधे के कान मरोड़े.

जाट बुढ़ापे में बिगड़ा करे. (हरयाणवी कहावत) जाट बूढ़े होने पर ज्यादा मनचले हो जाते हैं.

जाट मरा तब जानिये, जब तेरई हो जाए (जब चालीसा होए). जाटों की तरक्की से जलने वाले दूसरी जातियों के लोग तरह तरह से उनका मजाक उड़ाते हैं. इस कहावत का शाब्दिक अर्थ तो यह है कि जाट का मरना आसान नहीं होता. जब उसकी तेरहवीं हो जाए तो समझो कि जाट वाकई मर गया. इस कहावत का प्रयोग इस प्रकार करते हैं कि कोई भी काम तब तक पूरा हुआ मत मानो जब तक उस से सम्बन्धित सारे काम पूरे न हो जाएं.

जाट रांडा मरे वो दुर्भागा, बामन भूखा मरे वो दुर्भागा. जाट का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है उसकी शादी न होना और ब्राह्मण का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है उसे भोजन न मिलना.

जाट रे जाट तेरे सर पे खाट, तेली रे तेली तेरे सर पे कोल्हू. किसी तेली ने जाट का मजाक उड़ाने के लिए कहा कि रे जाट तेरे सिर पर खाट. जाट ने तुरंत जवाब दिया कि तेली तेरे सिर पर कोल्हू. तेली बोला जाट भाई कुछ तुकबंदी नहीं बनी, जाट बोला तो क्या हुआ, तू बोझ से तो मरा.

जाट से यारी और शेर की सवारी. दोनों एक सी खतरनाक हैं.

जाट, जमाई, भांजा और सुनार, कभी न होवे आपनो कर देखो उपकार. कहावत का अर्थ स्पष्ट है. किसी सयाने ने अपने व्यक्तिगत अनुभव को सब के साथ साझा करने का प्रयास किया है. इससे सहमत होना जरूरी नहीं है.

जाट, बैरागी, नटवा, चौथा राज-दरबार, ये चारों बांधे भले, खुल्ले करें बिगाड़. अर्थ स्पष्ट है.

जाट-जाट का दुश्मन, इस से जाट की छत्तीस कौम दुश्मन. जाटों में एका नहीं होता इसलिए अन्य जातियां जाटों से दुश्मनी करने का साहस कर पाती हैं.

जाड़ कहे हम तोड़ें हड्डी, आग करे धरहरिया. जाड़ा धमकी देता है कि मैं तुम्हारी हड्डियाँ तोड़ दूंगा तो आग बीच बचाव करती है. धरहरिया – बीच बचाव करने वाला.

जाड़ लाग, जाड़ लाग जड़नपुरी, बुढ़िया का हगास लागि बिपति परी. जाड़े के मारे सबकी हालत खराब है और ऐसे जाड़े की रात में बुढ़िया अम्मा को शौच लग रही है. बड़ी विपत्ति आ पड़ी है कि उसे लेके बाहर कौन जाए.

जाड़ा गए रजाई और जोवन गए भतार. जाड़ा बीतने के बाद रजाई मिले तो किस काम की और स्त्री का यौवन बीतने के बाद पति मिले तो किस काम का.

जाड़ा जाए रुई से या दुई से. जाड़ा या तो रुई के गद्दे व रजाई से जाएगा या दो लोग एक साथ सोएं तो जाएगा.

जाड़ा जाड़ा कहाँ चले, गोरे को काला करने, काले को और खराब करने. जाड़े का कहना है कि जो गोरी चमड़ी के हैं उन्हें काला करने जा रहा हूँ और जो काले हैं उनको और ज्यादा खराब करने.

जाड़ा न पाला कथरिया ओढ़े लाला. कम सर्दी या बिना सर्दी कोई अधिक वस्त्र पहने या ओढ़े तो.

जाड़े की क्यों करे चिरौरी, कम्बल पर जब होय पिछौरी. कम्बल पर ऊपर से डालने के लिए एक चादर हो तो जाड़े के निहोरे क्यों किए जाएँ. पिछौरी – बहू को पीछे से उढ़ाने वाली चादर.

जाड़ो ठाड़ो खेत में, सुन रे मेरे लाल, मोरे दुसमन तीन हैं, रुई, आग और प्याल. खेत में खड़ा जाड़ा कह रहा है कि मेरे तीन दुश्मन हैं – रुई, अलाव और पुआल.

जात का छोटा होना अच्छा, जूते का नहीं. छोटी कद काठी होने के मुकाबले छोटी जाति का होना बेहतर है.

जात का बामन. करम कसाई. उच्च जाति में जन्म लेने वाला कोई निम्न श्रेणी का निर्दयी व्यक्ति.

जात की बैरी जात. अधिकतर जाति के लोगों में अपनी ही जाति के दूसरे लोगों की काट करने की प्रवृत्ति पाई जाती है.

जात के खाए दाम, कुत्ता के खाए चाम. अपने सगे सम्बन्धी ने जो धन खा लिया हो वह, और कुत्ते ने जो चमड़ा खा लिया हो वह, वापस मिलने की आशा नहीं होती.

जात के बामन, करनी चमार की. मुगलों और अंग्रेजों ने हिन्दुओं को बांटने का जो काम किया उस से समाज के विभिन्न वर्गों के बीच गहरी खाई बन गई. मेहनतकश गरीब लोगों को निम्न कुल का माना जाने लगा. उस समय ब्राह्मण कितना भी धूर्त हो उसे उच्च कुल का और चर्मकार कितना भी सज्जन हो उसे नीच माना जाता था.

जात खाय या जाँत खाय. जाँत – चक्की. घर का अनाज जात बिरादरी के लोग खाते हैं या चक्की खाती है. कई जातियों में हर छोटे-छोटे अवसर पर(मृत्यु पर भी) पूरी बिरादरी वालों को खिलाना पड़ता है, उसी से अभिप्राय है.

जात पांत पूछे नहिं कोई, वर्दी पहिन सिपहिया होई. जो व्यक्ति सिपाही बन जाता है उस की जाति कोई नहीं पूछता. वह किसी भी जाति का क्यों न हो, सब के लिए आदरणीय हो जाता है.

जात पात पूछे नहिं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई. हमारे समाज में जाति भेद की बुराई कितनी भी व्याप्त हो ईश्वर के दरबार में सब बराबर हैं. संत रैदास जाति के चमार थे लेकिन सब उन का आदर करते थे.

जात सुभाय न जाय कभी, माँगना ही भावै, रानी हो गई डोमनी, आले धर खावे. मनुष्य का जातिगत स्वभाव कभी जाता नहीं है. डोमनी रानी बन गई तो बीमार रहने लगी. फिर उसने अपने लिए एक अलग महल बनवाया. वहां वह खाने के टुकड़े कर के आले में रख देती थी और आले से मांग कर खाती थी.

जात सुभाव ना छूटे, कुकुर टाँग उठा के मूते.  व्यक्ति के जन्मजात स्वभाव छूटते नहीं हैं (जिस प्रकार कुत्ता टांग उठा कर ही मूतता है, चाहे वह कितने भी बड़े आदमी के यहाँ पल रहा हो).

जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान, मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान. व्यवहार में इस कहावत को आधा ही बोला जाता है. साधु की जाति नहीं पूछनी चाहिए ज्ञान देखना चाहिए. इस कहावत से यह बात भी सिद्ध होती है कि हमारे देश में तथाकथित नीची जाति के साधु संतों को भी पूरा सम्मान मिलता था

जातो गंवाए, भातो न खाए. बात उस समय की है जब देश में जात पाँत और छुआछूत का काफी जोर था. यदि कोई उच्च कुलीन व्यक्ति नीची जाति वाले के साथ खाना खा ले तो वह जाति से निकाल दिया जाता था. कहावत में ऐसे व्यक्ति का ज़िक्र किया गया है जो बढ़िया बढ़िया खाना भी नहीं खा पाया और नीची जाति वाले के साथ बैठने के कारण जाति से निकाल दिया गया. कोई व्यक्ति अनुचित लाभ उठाने के लिए अपने स्तर से नीचे गिर कर काम करे और उसे वह लाभ भी न मिल पाए तो यह कहावत कही जाएगी.

जादू टोना हे सखी भूल करो मत कोय, पिया कहे सो कीजिए आपहि बस में होय. पति को वश में करना है तो उसके लिए जादू टोना न करो बल्कि जो पति कहे वह करो.

जादू वह जो सर चढ़ कर बोले. असली जादू वह है जिसकी अनायास ही हर कोई प्रशंसा करे.

जान की जान गई, ईमान का ईमान. बहुत से लोग जान दे कर ईमान की रक्षा करते हैं और कुछ लोग जान बचाने के लिए ईमान बेच देते हैं, पर अगर कोई व्यक्ति अपनी मूर्खता से दोनों ही चीज़ गंवा दे तो.

जान के साथ जेवड़ा. यह जंजीर जिन्दगी भर पड़ी रहेगी. जेवड़ा, जेवड़ी – जंजीर.

जान को देत सुजान को देत अजान को देत सो तोहू को देहै. जो ईश्वर ज्ञानी, अज्ञानी मनुष्यों और पशुओं को भोजन देता है वह तुम्हें भी देगा. (कामचोर लोगों का कथन)

जान जाए पर माल न जाए. कंजूस व्यक्ति के लिए.

जान जाय तो जाय, जबान न जाय. प्राण जाई पर वचन न जाई.

जान जाय पर हक़ न जाय. जो लोग अपना अधिकार, अपना हिस्सा नहीं छोड़ना चाहते उन पर व्यंग्य.

जान न पहचान, खाला बड़ी सलाम. अपने मतलब के लिए किसी से जबरदस्ती जान पहचान निकालना.

जान न पहचान, मैं तेरा मेहमान (मान न मान मैं तेरा मेहमान). ऊपर वाली कहावत की भांति.

जान बची तो लाखों पाए, लौट के बुद्धू घर को आए. कोई व्यक्ति कुछ काम करने गया. काम तो नहीं हुआ उलटे खतरे में फंसते फंसते बचा, तो लौट के आने पर और लोग उसका मजाक उड़ाने के लिए यह कहते हैं.

जान बची, लाखों पाए. किसी आदमी पर कोई खतरा आया और टल गया तो यह कहावत बोली जाती है. 

जान भले ही जाए पर रोजी न जाए (जी जाए जीविका न जाए). जीविका का छिन जाना, मृत्यु से भी अधिक दुखदायी है.

जान मारे बनिया, पहचान मारे चोर. बनिया जानने वाले को चूना लगाता है और चोर पहचान की जगह पर चोरी करता है.

जान लीन्ह बामन के लच्छन, बाप का नाम फीरोज़ अली. कोई मुसलमान ब्राहण का बहरूप बनाए और पकड़ा जाए तो. आजकल के एकाध प्रसिद्ध नेताओं पर भी यह कहावत फिट बैठती है.

जान समझ के कुएँ में ढकेल दिया. प्रायः लड़की के लिए कहते हैं कि जान-समझ कर अयोग्य वर को सौंप दी.

जान है तो जहान है. जब तक हम जीवित हैं तभी तक संसार है. कोई काम करने में बहुत लाभ होने की सम्भावना हो पर जान का खतरा भी हो तो बुज़ुर्ग लोग उस काम के लिए मना करते हुए यह कहावत बोलते हैं. 

जानहार पैसा मुट्ठी में से चलो जात. जो हानि होने वाली होती है वह होकर रहती है.

जानहार बहू, बलेंडे को दोष. बलेंडा – वह लट्ठा जिस पर छप्पर के छावन की लकड़ियाँ रखी जाती हैं. बहू तो मरने को थी, दोष देते हैं बलेंडे को, कि उसके गिरने से मरी. होनहार के लिए दूसरे को दोष देना.

जाना अपने बस, आना पराए बस. आप कहीं भी जाते तो अपनी इच्छा से हैं पर लौटना अपने वश में नहीं होता. जिसके यहाँ गए हैं उसकी इच्छा क्या है और ईश्वर की इच्छा क्या है दोनों पर निर्भर करता है.

जाना चोर ही सेंध लगाए. जो व्यक्ति घर के राज जानता है उसे मालूम होता है कि सेंध कहाँ लगानी है.

जाना है रहना नहीं, मोए अंदेसा और, जगह बनाई है नहीं बैठेगा किस ठौर. इस संसार में सदा के लिए किसी को नहीं रहना है, इसलिए कुछ ऐसे कर्म अवश्य करने चाहिए जिनसे परलोक में जगह मिल सके.

जानि गरल जे संग्रह करहीं, कहहु उमा ते काहे न मरहीं. गरल – विष. शंकर जी पार्वती से कहते हैं कि जो मनुष्य जानबूझ कर विष का संग्रह करेगा अर्थात् बुराई में लिप्त रहेगा वह अपने कर्मों से मरेगा.

जानि न जाय निसाचर माया. दुष्ट मनुष्य का भेद जानना कठिन होता है.

जाने को बकरी आने को ऊँट. अगर कोई घर से जाते समय ना नुकुर कर कर रहा हो और वापस आते समय तेजी से आए तो. जो लोग घर से जाना नहीं चाहते उन का मजाक उड़ाने के लिए.

जाने चोंच दी वही चुग्गा देगा. जिसने हमें जन्म दिया वही हमें भोजन भी देगा. आलसी एवं अकर्मण्य लोगों का कथन. रोजी रोटी के लिए बहुत प्रयास करने पर भी यदि सफलता न मिले तो निराशा से उबारने के लिए भी सयाने लोग ऐसा बोलते हैं.

जाने न बूझे, कठौती से जूझे. बिना किसी काम के विषय में जाने उस में सर खपाना.

जाने वाली चीज के पाँव निकल आते हैं. जो नुकसान होना होता है उसके हज़ार बहाने बन जाते हैं.

जाने वाले के हज़ार रास्ते, ढूँढने वाले का एक. खोए हुए व्यक्ति या वस्तु को ढूँढना बहुत कठिन है यह बताने के लिए यह कहावत कही जाती है.

जाने वाले को भूल जाएं पर आने वालों को नहीं भूलते. जिस की मृत्यु हो जाए उसे लोग भूल जाते हैं, पर उस समय जो लोग आ कर दुख में सम्मिलित होते हैं उन्हें लोग याद रखते हैं.

जानो नहिं जिस गाँव में कहा बूझनो नाम, तिन सखान की क्या कथा जिनसों नहिं कछु काम. जिस जगह जाना नहीं है उसका पता पूछ कर समय क्यों नष्ट करें और जिन लोगों से कुछ काम नहीं उन की चर्चा क्यों करें.

जाप की ओट में पाप. ढोंगी और पापी महात्माओं के लिए.

जामिन हो मत चोर का, सींग पकड़ मत ढोर का. चोर की जमानत मत दो और जानवर का सींग मत पकड़ो. जामिन – जमानत देने वाला.

जामिन होना, धन का खोना. किसी की जमानत देने में अपना धन खोना पड़ सकता है. 

जाया नाम जनम से हो तो रहना किस विधि होय. जाया का अर्थ उत्पन्न हुआ (संतान) भी है और जाया का अर्थ व्यर्थ में बर्बाद करने से भी है.   

जाये की पीर मताई को होत. जाया – संतान, मताई – माँ. संतान के सुख-दुख की चिन्ता माता को ही होती है.

जालिम गुजर जाए, जुल्म बाकी रह जाए (जालिम मर जाता है पर कानून छोड़ जाता है). अत्याचारियों के मरने के बाद भी उन के बनाए कानून बाकी रह जाते हैं और दुष्टता की कथाएँ रह जाती हैं.

जासु राज में प्रजा दुखारी, सो नृप अवसि नरक अधिकारी. जासु – जिसके, अवसि – अवश्य. जिस राजा के राज में प्रजा कष्ट पाती है वह नर्क में जाता है.

जासे जाको काम, सोई ताको राम. जिससे आपका काम बनता हो वही आपके लिए ईश्वर के बराबर है.

जासों खाना पीना नहिं तासों कौन प्रीत रे. प्रीति के छह लक्षण हैं-लेना, देना, गुप्त बातें सुनना व सुनाना, भोजन करना व कराना. कहावत का अर्थ है जिससे खाना पीना, उठना बैठना नहीं है, उससे कैसी प्रीति.

जासौ निबहे जीविका, करिए सो अभ्यास, वैश्या राखे लाज तो कैसे पूरे आस. जो भी जीविका का साधन हो उस में सहायक बनने वाली आदतें डालनी चाहिए. वैश्या लज्जावान होगी तो कैसे जीविका कमाएगी. 

जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए. जिन परिस्थितियों में व्यक्ति रहता है उन्हीं में संतोष करना सीखना चाहिए. पुराने लोग इसके पहले ‘सीताराम सीताराम सीताराम कहिए’ भी बोलते हैं.

जिंदगी जिन्दादिली का नाम है, मुर्दादिल क्या ख़ाक जिया करते हैं. अर्थ स्पष्ट है. यह उर्दू का एक प्रसिद्ध शेर है जो कहावत की तरह प्रयोग होता है.

जिए बाप को कोई न पूछे, मुए बाप पे छाती पीटे. उन लोगों पर व्यंग्य जो जिन्दा माँ बाप की कद्र नहीं करते और उनके मरने पर दिखावे के लिए छाती पीटते हैं.

जितना अधिक धन उतनी अधिक चिंता. धन आने के साथ उसको संभालने की चिंता भी बढ़ती जाती है.

जितना कमावे मेरो परदेसिया, उतने के चाबे पान. पति पैसा कमाने के लिए परदेस गया है, लेकिन जो कुछ भी वहाँ कमाता है उतना फिजूलखर्ची में उड़ा भी देता है. किसी गृहस्थिन का अपने उड़ाऊ पति पर व्यंग्य.

जितना करम में लिखा उतना ही मिलेगा. जितना भाग्य में लिखा है उतना ही मिलेगा.

जितना खाबे सारी बरात, उतना खाबे दूल्हे का बाप. किसी एक आदमी के आदर-सत्कार में बहुत खर्च हो जाना.

जितना खाय, उतना ललचाय. मनुष्य को जितना प्राप्त होता है उतना ही उसका लालच बढ़ता जाता है.

जितना खावे उतना परसावे. जितना खा सके उतना ही भोजन परसवाना चाहिए. भोजन फेंकना महापाप है.

जितना गधा बनोगे उतने ही लादे जाओगे (अपने आप को गधा बना लोगे तो और लादे जाओगे). जो लोग सिधाई से और ईमानदारी से काम करते हैं उन्हीं पर और काम लादा जाता है.

जितना गर्माएगा, उतना ही बरसेगा (जितना तपेगा, उतना बरसेगा). बरसात के मौसम में पानी बरसने से पहले गर्मी और उमस हो जाती है. जितनी अधिक गर्मी होती है उतनी ही अधिक वारिश होती है. इस कहावत का दूसरा अर्थ यह भी है कि आपसी वाद विवाद में जितनी अधिक गरमा गरमी होगी उतने ही परिणाम बुरे होंगे.

जितना गहिरा जोते खेत, बीज परे फल अच्छा देत. खेत को जितना गहरा जोतें उतनी अच्छी फसल होती है.

जितना गुड़ डालोगे उतना ही मीठा होगा. जितना खर्च करोगे उतना ही अच्छा काम होगा. रूपान्तर – जितना घी डालोगे उतना स्वाद होगा.

जितना छानो, उतना ही किरकिरा. जितनी मीन मेख निकालोगे, उतने ही दोष नज़र आएँगे.

जितना छोटा, उतना ही खोटा. छोटे कद वालों का मजाक उड़ाने के लिए.

जितना जाने उतना बखाने. किसी भी विषय में व्यक्ति जितना जानता है उतनी ही बात कर सकता है.

जितना तवा गरम रहे, उतनी जल्दी रोटी निकलें.  जितना उत्साह होता है उतनी ही शीघ्र कार्य होता है.

जितना तेल उतना खेल. जितने साधन होंगे उतना ही काम होगा. इसका दूसरा अभिप्राय नटों के खेल से है. नट अपनी छोटी बच्चियों को खूब तेल पिलाते थे और तेल की मालिश करते थे जिससे उन के अंग लचीले हो जाएँ.

जितना नींबू निचोड़ो, उतना तीता होय. नींबू को बहुत अधिक निचोड़ो तो कड़वा हो जाता है. किसी भी व्यक्ति को सीमा से अधिक परेशान करो तो वह क्रोधित हो जाता है.

जितना पुरखे दान दीन, लड़के उतनी भीख मांगीन. पुरखों ने जितना दान दिया, लड़कों ने उतनी भीख माँगी. 

जितना बादल गरजे, उतना बरसे नहीं. उन लोगों के लिए जो बोलते बहुत हैं पर काम कम करते हैं.

जितना भोग, उतना सोग. सोग – शोक, दुख. भोग में जितना लिप्त होगे उतना ही दुख उठाना पड़ेगा.

जितना मुटाय, उतना मिमियाय. बकरा जितना मोटा होता जाता है उतना ही में में करता है. मनुष्य के पास भी जितना धन बढ़ता जाता है वह उतनी अधिक मैं मैं करता है (अहंकारी होता जाता है). मैं – अहंकार.

जितना लंबा सांप, उतनी ही गोह चौड़ी. जब दो धूर्त एक से बढ़ कर एक हों तो (गोह – बिस्खोपड़ी).

जितना लाभ उतना लोभ (जितनी आमद, उतना लालच). जैसे जैसे व्यापार में लाभ होता है. वैसे वैसे व्यापारी का लोभ बढ़ता जाता है. किसी भी व्यक्ति की जितनी जितनी आय बढ़ती है उतना ही लालच बढ़ता जाता है.

जितना सयाना, उतना दीवाना (वहमी). 1.जो व्यक्ति जितना अनुभवी होता है वह उतना ही अधिक किसी बात के भले बुरे पहलू पर विचार करता है. अपने आप को बहुत बुद्धिमान समझने वाले नौसिखिये लोग उसे दीवाना और वहमी करार देते है. 2. जो जितना बड़ा मूर्ख होता वह अपने को उतना ही होशियार समझता है.

जितना सरे, उतना करे. जितनी सामर्थ्य हो उतना ही काम करना चाहिए. सरे – कर मिले.

जितनी भेड़ नाहीं उतने गड़ेर. काम कम, करने वाले अधिक. गड़ेर – गड़रिया.

जितनी मियां की लंबी दाढ़ी, उतना गांव गुलजार. मियांओं की दाढ़ियाँ इतनी लंबी हैं तो अवश्य ही गाँव फला-फूला होगा. सलीके से रखी हुई लम्बी दाढ़ी व्यक्ति की सम्पन्नता का प्रतीक है.

जितनी मोटी मुर्गी, उतने अंडे कम. जैसे जैसे व्यक्ति धनवान होता जाता है, वैसे वैसे कंजूस होता जाता है.

जितनी विरह, उतना सनेह. जितना लंबा बिछोह का समय होगा, उतना ही प्रेम उमड़ेगा.

जितने का बबुआ नहीं, उतने का झुनझुना. मूल वस्तु की कीमत कम और रखरखाव की ज्यादा.

जितने काले, मेरे बाप के साले. जितने भी चोर बदमाश हैं सब मेरे रिश्तेदार हैं. जैसे आजकल के कुछ नेता.

जितने की ताल नहीं बजी उतने का मंजीरा फूट गया. जितना लाभ नहीं कमाया, उससे अधिक नुकसान हो गया.

जितने के बबुआ नाहीं, उतने के झुनझुना. (भोजपुरी कहावत) वस्तु की कीमत कम, रख रखाव का खर्च अधिक. 

जितने ठाकुर मरें, उतने जुहार कम हों. जुहार – झुक कर सलाम कटना. मुगलों और अंग्रेजों के जमाने में लोगों को ठाकुरों और जमीदारों को झुक कर सलाम करना पड़ता था. ऐसा कोई सताया हुआ व्यक्ति ठाकुरों के मरने की कामना कर रहा है, जिस से उसे जुहार कम करनी पड़ें. 

जितने नर उतनी बुद्धि. हर आदमी के अलग-अलग विचार होते हैं. शक्ल मिल सकती है, अक्ल नहीं.

जितने फेरे उतनी वसूली. हाकिम जितनी बार अपने क्षेत्र में जाएगा उतनी ही उगाही कर के लाएगा. 

जितने बड़के गाजी मियाँ, उतना बड़की मोंछ. अधिक तड़क भड़क और दिखावा करने वालों पर व्यंग्य. 

जितने भाई, उतने घर. आज के जमाने में एक ही घर में कई भाइयों का रहना संभव नहीं है. हर एक भाई को अलग घर चाहिए.

जितने मानुस उतनी राह. हर आदमी के अपने अलग-अलग रास्ते होते हैं.सभी के विचार अलग-अलग होते हैं.

जितने मुहँ उतनी बातें. यदि किसी विषय में बहुत से लोगों की अलग अलग राय हों तो. 

जित्तो करम में लिखो उत्तो कऊँ नाहिं जात. जितना भाग्य में लिखा है उतना मिल कर ही रहता है.

जिद पर आई दुगुना पीसे. कुछ लोग या तो काम करते नहीं हैं, और जिद पर आ जाएँ तो अनावश्यक रूप से करते ही चले जाते हैं.

जिधर जलता देखें, उधर तापें. जहाँ भी लाभ की संभावना हो वहाँ जाने वाले लोगों के लिए.

जिधर रब, उधर सब. जिसके साथ ईश्वर की कृपा है, उस का सब साथ देते हैं. 

जिन की यहाँ जरूरत, उन की वहाँ भी जरूरत (जिनकी यहाँ चाह, उनकी वहाँ भी चाह). अच्छे लोगों की इस दुनिया में भी जरूरत है और उस दुनिया में भी, इसीलिए अच्छे लोगों की मृत्यु जल्दी हो जाती है. इंग्लिश में कहावत है – Heaven gives its favourites early death.

जिन के दामन में दाग हों वे दूसरों पर कीचड़ न उछालें. जिनके अंदर खुद कमियां हैं उन्हें दूसरों को बुरा भला नहीं कहना चाहिए.

जिन के पास न हो कौड़ी, वो कौड़ी के तीन. जिन के पास पैसा न हो उन की कोई इज्ज़त नहीं है.

जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ (मैं बपुरा बूड़न डरयो, रहा किनारे बैठ). जो हिम्मत करता है और परिश्रम करता है वही फल पाता है. पैठना – नीचे बैठना, बपुरा – बेचारा, बूड़ना – डूबना.

जिन घर साधु न पूजिये घर की सेवा नांहि, ते घर मरघट जानिए, भूत बसे तिन मांहि. (कबीर) जिस घर में साधु की पूजा नहीं होती,  वह घर तो मरघट के समान है.

जिन जाए उन्हहिं लजाए. जिन जाए – जिन्होंने पैदा किया. अपने मां बाप को लज्जित करने वाला.

जिन पायन पनही नहीं, उन्हें देत गजराज, विष देते विषया मिले, साहब गरीब नवाज. पनहीं – जूता, जिनके पांव में जूता नहीं उसे भगवान हाथी देते हैं और जिसे विष देने को कहा जाता है, उस से लड़की से विवाह करवा देते हैं.  सन्दर्भ कथा – पायन – पैरों में. पनहीं – जूता. जिनके पांव में जूता नहीं उसे भगवान हाथी देते हैं और जिसे विष देने को कहा जाता है, उस से लड़की का विवाह करवा देते हैं. एक सेठ के पास एक भिखारी नित्य भीख मांगने आया करता था. तंग आकर एक दिन सेठ ने आढ़तियों को लिख दिया कि इसे विष दे दो. आढ़तिये की बेटी का नाम विषया था. वह समझा कि सेठ जी ने विषया को देने के लिए लिखा है. उसने बड़े प्रेम से अपनी पुत्री का विवाह भिखारी के साथ करके उसे हाथी पर चढ़ाकर विदा कर दिया.

जिन मोलों आई, उन्हीं मोलों गंवाई. कोई चीज़ बहुत सस्ते में मिली थी और सस्ते में ही हाथ से निकल गई.

जिनके घर शीशे के बने हैं वे दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकते. शाब्दिक अर्थ है कि यदि आप कांच से बने घर में रह रहे हैं तो आप दूसरों पर पत्थर न फेंके क्योंकि यदि उसने पत्थर फेंक दिया तो आपका घर टूट जाएगा. तात्पर्य है कि जिनके अंदर खुद कमियां हैं उन्हें दूसरों को बुरा भला नहीं कहना चाहिए.

जिनके पशु प्यासे बंधे, तिरियां करें कलेश, उनकी रक्षा ना करें, ब्रह्मा विष्णु महेश. जिन घरों में पालतू पशुओं की देखभाल न हो (पशु प्यासे बंधे हो) और स्त्रियाँ कलेश करती हों, उनकी ईश्वर भी रक्षा नहीं करते.

जिनके बड़े बिछाई खाट, उनका कुनबा बारह बाट. जिस खानदान में बड़े लोग खाट बिछा कर बैठ जाएं (अर्थात कुछ काम न करें) उसका सत्यानाश होना तय है.

जिनके मर गए बादशाह, रोते फिरें वजीर. जब राजा की मृत्यु हो जाती है तो उसके अधीनस्थ कर्मचारियों की दशा बहुत दयनीय हो जाती है.

जिनके मुच्छ नहीं उनके कुच्छ नहीं. जिन लोगों को बड़ी बड़ी मूंछें रखने का शौक होता है वे बिना मूंछ वालों को हिकारत की नजर से देखते हैं और यह कहावत बोलते हैं.

जिनके लाड़ घनेरे, उनको दुख बहुतेरे. जो बच्चे अधिक लाड़ प्यार में पलते हैं, वे अधिक दुखी रहते हैं. 

जिनके होंगे पूत, वो पूजेगें भूत. कोई व्यक्ति कितना भी वैज्ञानिक सोच वाला और नास्तिक क्यों न हो जब अपना बच्चा बीमार हो तो वह भूत प्रेतों और ग्रह नक्षत्रों को मानने लगता है.

जिनको चाव घनेरा, उनको दुख बहुतेरा. जितनी अधिक अपेक्षाएं उतना अधिक दुख.

जिन्दगी अचरजों का मेला है. जीवन में एक से एक आश्चर्य देखने को मिलते हैं. इंग्लिश में इस प्रकार की एक कहावत है – Life is a series of surprizes.

जिन्ने न पी गांजे की कली, उस लड़के से लड़की भली. (बुन्देलखंडी कहावत) नशा करने वाले मूर्ख लोग अपने को बड़ा मर्द समझते हैं, उनके अनुसार नशा न करने वाले लोग नामर्द होते हैं. 

जिन्ह सन करत सनेहु, तिन्ह की सब सहि लेहु. (बुन्देलखंडी कहावत) जिन से प्रेम हो उनकी अच्छी बुरी सब बात सहन कर ली जाती है. सनेहू – स्नेह, प्रेम.  

जिन्हें जल्दी थी वो चले गये. सड़क पर चलने में जो बहुत जल्दबाज़ी करते हैं वे दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं.

जिन्हें मुस्कुराना नहीं आता, उन्हें व्यापार नहीं करना चाहिए. व्यापार चलाने के लिए व्यक्ति को हंसमुख होना आवश्यक है.

जिब्बो चलेगी, चन्दो पिटेगी. (जिब्बो – जिव्हा, जीभ. चन्दो – चांद, खोपड़ी). जीभ जितना अधिक अंट शंट बोलेगी खोपड़ी उतना ही पिटेगी.

जिभ्या रोगों की जड़ है. जीभ के स्वाद के लिए मनुष्य आलतू फ़ालतू चीजें खाता है और बीमार पड़ता है, इसलिए जीभ ही रोगों की जड़ है. जीभ अंट शंट बोलती है इसलिए फसादों की जड़ भी है.

जिम्मेदारी ले उतनी, संभल सके जितनी. जितनी जिम्मेदारी संभाल पाओ उतनी ही लेनी चाहिए.

जिय बिनु देह नदी बिन वारी, तैसेहि नाथ पुरुस बिनु नारी. जैसे आत्मा के बिना शरीर और पानी के बिना नदी अर्थहीन है वैसे ही पति के बिना स्त्री है.

जियत पिता की करी न सेवा, बाद मरन के लड्डू मेवा. जब माता पिता जीवित थे तब उनकी सेवा नहीं की और उनके मरने के बाद उन्हें प्रसन्न करने का ढोंग कर रहे हैं. 

जियत पिता की पूछी न बात, मरे पिता को दूध और भात. जो लोग जीवित माता पिता को नहीं पूछते और उनके मरने पर श्राद्ध करने का ढोंग करते हैं उन पर व्यंग्य.

जियत पिता से जंगम जंगा, बाद मरन के हर हर गंगा. जीवित माता पिता से झगड़ा करते रहे और उनके मरने के बाद उन्हें गंगा ले जा कर उनके भक्त होने का नाटक कर रहे हैं.

जियेगा नर तो फिर बसाएगा घर. कितनी भी बड़ी आपदा आए, यदि मनुष्य जीवित रहेगा तो फिर से घर बसाएगा. इसीलिए कहते हैं कि विषम परिस्थितियों में जीवन रक्षा पर ध्यान देना चाहिए.

जियो और जीने दो. जिस प्रकार आप स्वयं एक अच्छा जीवन जीना चाहते हैं उसी प्रकार औरों को भी जीने दें. इंग्लिश में कहावत है – Live and let live.

जिस आंगुली चोट लगे, दर्द उसी में होय. बात बड़ी स्पष्ट है, अपना अपना दर्द सबको स्वयं ही झेलना पड़ता है, कोई उसको बंटा नहीं सकता.

जिस का अगुआ अंधा, उसका लश्कर कुआं में. लश्कर माने सेना. सेना अपने नायक के पीछे आँख बंद कर के चलती है. यदि नायक अंधा होगा तो कुँए में गिरेगा और पीछे पीछे सेना भी कुँए में गिरेगी. अर्थ है कि यदि नेता मूर्ख हो तो जनता को ले डूबता है और गुरु मूर्ख हो तो शिष्यों को ले डूबता है.

जिस का आँडू बिके, वह बधिया क्यों करे. गाय का बछड़ा बड़ा हो कर सांड बनता है जोकि स्वेच्छाचारी होता है और खेती के काम नहीं आ सकता, केवल प्रजनन के काम आता है (इसलिए बिकता भी नहीं है). बचपन में ही उस के अंडकोष नष्ट कर दिए जाते हैं जिससे वह बधिया हो जाता है और बैल बन कर खेती के काम आता है. आँडू का अर्थ है सांड (जिसके अंडकोष सलामत हैं) और बधिया का अर्थ है बैल. किसी का घटिया उत्पाद बिक रहा हो तो वह उस को बढ़िया बनाने की कोशिश क्यों करेगा.

जिस का काम उसी को साजे, और करे तो डंडा बाजे. जो काम जिसके करने का वही करे तो ठीक रहता है, और कोई करे तो उस को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. देखिए सन्दर्भ कथा 94.

जिस का खसम पूछा न करे, उस की मांग में भर भर सिन्दूर. (भोजपुरी कहावत) जिस स्त्री का पति उसको नहीं पूछता वह औरों को दिखाने के लिए अपनी मांग में अधिक सिदूर भरती है.

जिस का खा कर आओगे उसे खिलाना भी पड़ेगा. किसी के यहाँ विवाह आदि आयोजन में दावत खाओगे उसे फिर अपने यहाँ भी आमंत्रित करना पड़ेगा. किसी का एहसान लोगे तो उसको चुकाना भी पड़ेगा.

जिस का खाओ, उसका गाओ (जिसका खाना उसका बजाना).  जिससे लाभ होता हो उसी की प्रशंसा करनी चाहिए.

जिस का खावै टीकड़ा, उसका गावै गीतड़ा. (हरयाणवी कहावत) जिसकी रोटी खाओ, उसके गीत गाओ.

जिस का गुइंया नहीं उसका कूकुर गुइयां. जिसका कोई दोस्त नहीं उसका कुत्ता ही दोस्त होता है. गुइंया – दोस्त.

जिस का चाम, उसी की सीवन. पहले के समय में चमड़े को सिलने के लिए चमड़े की ही डोरी बनाई जाती थी. अर्थ है कि जिस प्रकार के लोगों से काम लेना हो उसी प्रकार का कर्मचारी रखना चाहिए.

जिस का जाए, वही चोर कहलाए. हिन्दुस्तान में कुछ भी हो सकता है. यहाँ यह भी हो सकता है कि जिसके घर में चोरी हो उसी को पुलिस या आम जनता चोर ठहरा दे.

जिस का जूता उसी का सर (मियां की जूती मियां के सर) मेरी ही चीज़ से कोई मुझे ही नुकसान पहुंचाए तो.

जिस का ढुलक जाय, सो रूखा खाय. जिसका घी गिर जाता है वही रूखा खाता है. जिसकी हानि वही भुगते.

जिस का नहीं साला, उसके घर में ताला. कुछ कहावतें केवल आपसी हंसी मजाक के लिए बनाई गई हैं. 

जिस का पल्ला भारी, उसी के साथ यारी. विशद्ध स्वार्थ. जो जीत रहा हो उसी के साथ दोस्ती करना.

जिस का बनिया यार, उसे दुश्मन की क्या दरकार. बनियों के बारे में कहा गया है कि वे अपने दोस्तों तक की जेब काट लेते हैं. इसी बात पर किसी ने कहा है कि जिस का बनिया दोस्त हो उसे दुश्मनों की क्या जरूरत.

जिस का बाप बिजली से मरे, वो कड़क देख के डरे. अर्थ स्पष्ट है.

जिस का ब्याह उसी के गीत (जिस का मंड़वा, उसके गीत). समय देख कर ही काम करना चाहिए. जिस से लाभ हो उसी की प्रशंसा करो. जैसा परिवेश हो वैसी ही बात करनी चाहिए. मंडवा – विवाह का मंडप.

जिस का मरा सो रोवे, गंगादास सुख से सोवे. जो लोग कोई सामाजिक सरोकार नहीं रखते उन पर व्यंग्य. समाज का नियम तो यह है कि चाहे ख़ुशी में किसी के घर न जाओ, पर दुख में अवश्य जाओ.

जिस का लेना कभी न देना, क्या जग में फिर आना है. चार्वाकवादी किसी व्यक्ति का कथन. उधार ले कर खाओ पिओ और मौज करो. वापस करने की चिंता मत करो. इस संसार में दुबारा किस को आना है.

जिस की आँख में तिल, वह बड़ा बेदिल. जिसकी आँख में तिल होता है वह निष्ठुर होता है. 

जिस की खाओ बाजरी, उसकी भरो हाजरी. जिसका अन्न खाओ उसी का काम करो.

जिस की खातिर नाक कटाई, वो ही कहे नकटा. जिस को लाभ पहुंचाने के लिए कोई गलत काम किया, वही आप को गलत ठहरा रहा हो तो यह कहावत कही जाती है.  

जिस की गाड़ी रेत में उसी का बुद्धू नाम. जिस की गाड़ी रेत में फंस जाए उसी को लोग बुद्धू समझते हैं. जिस का काम बिगड़ जाए उसे ही सब मूर्ख कहते हैं.

जिस की गूजर खीर खाए, उसी की भैंस चुरा ले जाए. कहावत में गूजर को कृतघ्न बताया गया है. 

जिस की गोद में बैठे उसी की दाढ़ी नोचे. आश्रय देने वाले को नुकसान पहुँचाने वाला.

जिस की छाती बार नाहीं, उस का एतबार नाहीं. यह भी एक पुरानी मान्यता है.

जिस की जीभ चलती है उसके नौ हल चलते हैं. जो जबान का धनी है वह अपने सब काम करा लेता है.

जिस की तेग उसकी देग. जिसके पास ताकत होगी वही खाद्य सामग्री और अन्य संसाधनों पर कब्ज़ा कर लेगा. तेग – तलवार (युद्ध करने की क्षमता), देग – बड़ी हंडिया (भोजन का प्रबंध). (देखिए परिशिष्ट)

जिस की देग, उसकी तेग. देग माने भोजन पकाने का बड़ा बर्तन. जिसके पास फ़ौज को खिलाने का इंतज़ाम होगा वही युद्ध जीतेगा.

जिस की फ़िक्र, उसका ज़िक्र. हम जिस के विषय में हर समय सोचते हैं उसी की बात करते हैं.

जिस की बंदरी वही नचावे, और नचावे तो काटन धावे. जो जिस का काम है वही उस को काम को करे तो काम ठीक से होता है, दूसरा उसे करने की कोशिश करे तो काम बिगड़ जाता है.

जिस की बहिन अंदर उस का भाई सिकंदर. जिस भाई की बहन किसी बड़े नेता या अधिकारी के घर ब्याही हो वह बेखौफ उस घर में आता जाता है. रूपान्तर – जिस की जोरू अंदर, उसका नसीबा सिकन्दर. जिस आदमी की पत्नी को बड़े लोगों के घर में नौकरी मिल जाए उस को बहुत सी सुविधाएं मिल जाती हैं.

जिस की बीवी से पहचान, उसकी लौंडी से क्या काम. जहाँ बड़े हाकिम से जान पहचान हो वहाँ चपरासी को क्यों पूछें. (लौंडी – दासी).

जिस की महल में मैया, मांगे पैसा मिले रुपैय्या. महल में नौकरी करने वालों की बड़ी ऐश होती है. महल में नौकरी करने वाली किसी महिला का बच्चा खर्चे के लिए पैसा माँग रहा है तो माँ उसे रुपया दे रही है. आजकल भी लाभ के पदों पर सरकारी नौकरी करने वालों का काफ़ी कुछ यही हाल है.

जिस की लाठी उसकी भैंस. यहाँ लाठी का अर्थ ताकत से और भैंस का अर्थ चल अचल संपत्ति से है. जिसके पास ताकत होती है वह संपत्ति पर कब्ज़ा कर लेता है. सन्दर्भ कथा. – एक ब्राह्मण को कहीं से यजमानी में एक भैंस मिली. उसे लेकर वह घर की ओर रवाना हुआ. सुनसान रास्ते में उसे एक चोर मिला. उसके हाथ में मोटा डण्डा था और शरीर से भी वो अच्छा तगड़ा था. उसने ब्राह्मण को देखते ही कहा, क्यों ब्राह्मण देवता, दक्षिणा अच्छी मिली लगती है, पर यह भैंस तो मेरे साथ जाएगी. ब्राह्मण ने कहा, क्यों भाई? चोर बोला, क्यों क्या? भैंस छोड़ कर चुपचाप यहाँ से चलते बनो, वरना लाठी देखी है, तुम्हारी खोपड़ी के टुकड़े-टुकड़े कर दूँगा. अब तो ब्राह्मण को काटो तो खून नहीं. पर खाली हाथ वह करे भी तो क्या.

विपरीत समय में उसने बुद्धिबल से काम लिया. बोला, ठीक है भाई, भैंस भले ही ले लो, पर ब्राह्मण की चीज यों छीन लेने से तुम्हें पाप लगेगा. बदले में कुछ देकर भैंस लेते तो पाप से बच जाते. चोर बोला, यहाँ मेरे पास देने को धरा क्या है? ब्राह्मण ने झट कहा, और कुछ न सही, भैंस के बदले में लाठी ही दे दो. चोर ने खुश हो कर लाठी ब्राह्मण को पकड़ा दी और भैंस पर दोंनो हाथ रख कर खड़ा हो गया. तभी ब्राह्मण कड़क कर बोला, चल हट भैंस के पास से, नहीं तो अभी खोपड़ी के दो टुकड़े कर दूंगा चोर ने पूछा, क्यों? ब्राह्मण बोला, क्यों क्या? जिस की लाठी उस की भैंस. चोर को अपनी बेवकूफी समझ आ गयी और उसने वहाँ से भागने में ही भलाई समझी.

जिस की सीरत अच्छी, उसकी सूरत भी अच्छी. जो आदत का अच्छा होता है वह अपने सौम्य स्वभाव के कारण देखने में भी अच्छा लगने लगता है.

जिस के एक खसम न हो उसके सौ खसम हो जाते हैं. जिस स्त्री का पति न रहे सभी लोग उस पर अपनी हुकूमत चलाते हैं या उस का शोषण करना चाहते हैं.

जिस के कारण हिस्से किए वही आया हिस्से. जिस चीज़ से परेशान हो कर बंटवारा किया वही हिस्से में आई.

जिस के कारन जोगन भई, वह सैंया परदेस. जिसके कारण घर परिवार छोड़ा वही छोड़ कर चला गया.

जिस के घर में बेरी का पेड़ है, उसके घर में ढेले आयेंगे ही. यदि आपके पास कोई नायाब चीज़ है और आप ठीक से उसकी रक्षा नहीं कर सकते तो लोग उस पर कुदृष्टि तो रखेंगे ही.

जिस के जहां सींग समाए. जिस को जहाँ स्थान मिला.

जिस के पास न पैसा, वह भलामानस कैसा. जिसके पास धन होता है उसको लोग भलामानस समझते हैं, निर्धन को लोग भलामानस नहीं समझते.

जिस के पास पूत नहीं, वह क्या जाने माया. जिनके संतान नहीं होती वे पैसे के महत्व को नहीं समझते (पैसे को महत्वपूर्ण नहीं मानते).

जिस के पुरखे मांगें भीख, वो क्या जाने धरम की रीत. जिसके बड़े बुजुर्ग भीख मांगकर जीवनयापन करते रहें, वह दान पुण्य क्या करेगा. किसी नवधनाढ्य के घर से कोई याचक खाली हाथ लौटे तो ऐसे बोलता है.

जिस के माथे परत सोई जानत. जिस पर बीतती है वही जानता है.

जिस के राम धनी, उसे कौन कमी. जो भगवान के भरोसे रहता है, उसे किसी चीज की कमी नहीं होती.

जिस के लिए चोरी की वही कहे चोर. कभी कभी मजबूरी में अपने किसी बहुत प्रिय व्यक्ति की खातिर आपको गलत काम करना पड़ता है. जिसके लिए ऐसा काम किया वही आपको चोर कहने लगे तो.

जिस के वास्ते रोए, उसकी आँखों में आंसू नहीं. जिस से हमदर्दी जताने के लिए आप रो रहे हैं वह अपने दुख से इतना दुखी नहीं है.

जिस के सर पर ताज, उसके सर में खाज. किसी भी परिवार या संगठन में जो मुखिया होता है उसी को सारे झंझट झेलने पड़ते हैं.

जिस के हाथ डोई उसका सब कोई. डोई – करछी. यहाँ डोई का तात्पर्य खाने पीने की सुविधा से है. अर्थ है कि सब लोग सामर्थ्यवान का साथ देते हैं और उसी की खुशामद करते हैं.

जिस के होय न पैसा पास, उस को मेला लगे उदास. मेले में मस्ती करनी हो तो खर्च करने के लिए पैसा चाहिए. जिसके पास पैसा न हो उसे मेला उदास लगता है.

जिस को आदत है मेहनत की, उसको कमी नहीं है दौलत की. जो मेहनत करते हैं वे इतना पैसा तो कमा ही लेते हैं कि उनको अभावों में न रहना पड़े.

जिस को चलना हो बाट, उसे कैसे सुहावै खाट. जिसको दूर जाना है वह खाट पर आराम कैसे कर सकता है.

जिस को न दे मौला, उसको दे आसफुद्दौला. आसफुद्दौला लखनऊ के एक प्रसिद्द नवाब हुए हैं जो बड़े दानी माने जाते थे. उन्ही के लिए यह कहावत प्रसिद्द थी.

जिस को पिया चाहे वही सुहागन. 1. केवल विवाह कर लेने मात्र से कोई स्त्री सुहागिन नहीं हो जाती. सही मानों में सुहागिन वही है जिसका पति उसे प्रेम करता हो. 2. जिस मातहत पर हाकिम की कृपादृष्टि हो जाए उसी की मौज है.

जिस को लगे उसी को दुखे. जिसको चोट लगती है वही उस के कष्ट को जान सकता है. वह चोट चाहे शरीर पर लगी हो या मन पर.

जिस खेती पे खसम न जावे, वह खेती खसम को खावे. जिस खेती का मालिक स्वयं अपनी खेती को देखने नहीं जाता, वह खेती मालिक को ही खा लेती है.

जिस गाँव जाना नहीं, उसके कोस क्या गिनने (जिस राह ही नहीं चलना उसके कोस गिनने से क्या काम). जो काम करना ही नहीं है उसके नुकसान फायदे गिनने में समय क्यों खपाएं.

जिस घर जाई, उसी घर ब्याई. मुसलमानों में बहुत निकट सम्बन्धियों में विवाह सम्बन्ध हो जाते हैं उस पर व्यंग्य. जाई – पैदा हुई, ब्याई – विवाह हो कर गई.

जिस घर दूहे काली, उस घर नित दीवाली. जिस घर में काली गाय दूध दे रही हो वहाँ नित्य ही उत्सव का माहौल रहता है. वैसे काली तो भैंस भी होती है, लेकिन कहावतों में भैंस को इतना महत्त्व नहीं दिया जाता.

जिस घर नारी फूहड़, वह घर जानो कूहड़. जिस घर में गृहणी फूहड़ होती है वह कूड़े का ढेर हो जाता है.

जिस घर बड़े न बूझिए, दीपक जले न सांझ, वह घर ऊजड़ जानिए, जाकी तिरिया बाँझ. जिस घर में बड़े लोगों से सलाह नहीं ली जाती, शाम से दीपक नहीं जलाया जाता और स्त्री बाँझ है उस घर का उजड़ना निश्चित है.

जिस घर बड्डा ना मानिये ढोरी पड़ै ना घास, सास-बहू की हो लड़ाई उज्जड़ हो-ज्या बास. (हरयाणवी कहावत) जिस घर में बड़ों की बात नहीं मानी जाती, जानवरों को समय पर दाना पानी नहीं डाला जाता और सास बहू में लड़ाई होती है, वह घर उजड़ जाता है.

जिस घर में खाना, उसी में आग लगाना. निकृष्ट और कृतघ्न लोगों के लिए. जैसे देश में रहने वाले कुछ लोग यहाँ का खाते हैं और देश की अर्थ व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करते रहते हैं.

जिस घर में नहिं बूढा, वो घर जानो बूड़ा. बूढ़ा – वृद्ध, बुजुर्ग, बूड़ा – डूबा. जिस घर में बुजुर्ग लोग न हों वह उचित सलाह के अभाव में ड़ूब जाता है.

जिस घर में संपत नहीं, तासे भला विदेस. घर में बहुत अधिक गरीबी हो तो परदेस जा कर जीविका तलाशना अधिक अच्छा है.

जिस घर विजया ना बसे वो घर भूत समान. विजया – भांग. भांग पीने वाले कहते हैं कि जिस घर में भांग नहीं पी जाती, वह घर भूतों के डेरे के समान है. 

जिस घर सौंफ महकनी उस घर जीरा कौन लिवाल, जिस घर सास मटकनी, उस घर बहू को कौन हवाल. बेटे की शादी हो जाए और बहू घर में आ जाए उस के बाद भी कुछ औरतें बहुत चटक मटक से रहती हैं, उन्हीं के ऊपर व्यंग्य. लिवाल – लेने वाला.

जिस घर होए कुचलिया नारी, सांझ भोर हो उसकी ख्वारी. घर में स्त्री बदचलन हो तो बर्बादी होना तय है.

जिस घर होवे पुरुष कुचलिया, उस घर होवे खीर का दलिया. जिस घर में पुरुष दुश्चरित्र हो वहाँ पूरी अर्थ व्यवस्था बिगड़ जाती है.

जिस तन लागे वह तन जाने (जिस पे बीते सोई जाने). जिस को कष्ट उठाना पड़ता है वही जान सकता है.

जिस थाली में खाए उसी में हगे (जिस पत्तल पर खाए उसी पत्तल पर हगे). अत्यंत नीच और कृतघ्न व्यक्ति.

जिस थाली में खाये उसी में छेद करे. जिस के बूते खाना पानी मिल रहा हो उसी को नुकसान पहुँचाना.

जिस दिन हँसे नहीं वह दिन बर्बाद समझो. जीवन में सुखी रहने के लिए हँसना जरूरी है. हंसने के लिए कोई न कोई बहाना ढूँढना चाहिए.

जिस ने दिया तन को देगा वही कफन को. जिसने शरीर के निर्वाह के लिए साधन दिए हैं वही कफन का इंतजाम भी करेगा. आलसी लोगों का कथन.

जिस ने देखी ना दिल्‍ली, वो कुत्‍ता न बिल्‍ली. जिसने दिल्ली नहीं देखी वह कुत्ते बिल्ली से भी गया बीता है.

जिस ने पढ़ा गीता, उसने घर में दिया पलीता. वैसे यह बात गीता के मुकाबले महाभारत के साथ अधिक सही बैठती है. जो महाभारत पढ़ता है वह घर में भी वैसे ही लड़ाई झगड़े करता है. इसीलिए पुराने लोग लोगों को महाभारत नहीं बल्कि रामायण पढने की सलाह देते हैं. गीता पढ़ने से भी लोगों के मन में वैराग्य का भाव आ सकता है जो कि गृहस्थ के लिए अच्छा नहीं माना जाता है.

जिस ने वैश्या को चाहा वह भी तबाह और जिसे वैश्या ने चाहा वह भी तबाह. वेश्याओं के चक्कर में पड़ने से हर तरह से बर्बादी ही बर्बादी है.

जिस पर पड़े वही दुख जाने, और लोग सब धोखा मानें. जिस पर दुख पड़ता है वही उस को समझ सकता है.

जिस पेड़ की छाँव में बैठा, उसी की डाल काटे. उपकार करने वाले को नुकसान पहुँचाने वाला कृतघ्न व्यक्ति.

जिस वन सुआ न सारिका, वहाँ कौए खाएं कपूर. जिस वन में तोता मैना न हों वहाँ कौओं को कपूर खाने को मिलता है. जहाँ योग्य व्यक्ति न हों वहाँ अयोग्य व्यक्तियों की मौज हो जाती है. सुआ-तोता, सारिका–मैना.

जिस से चोरी का डर हो उसी से कहो रखवाली करे. बहुत ही व्यवहारिक सुझाव है. 

जिस हंडिया में हमारा हिस्सा नहीं, वह भले ही चूल्हे पर चढ़ते ही टूटे. जिस आयोजन से हमें कोई लाभ नहीं होने वाला वह पूरा हो या उसका बंटाढार हो जाए, हमें क्या. 

जिसका घर उसी की जुगत. अपने घर में कहाँ क्या युक्ति काम करेगी यह घरवाला ही जान सकता है.

जिसका धन जाता है उसका धर्म भी चला जाता है. इसका एक अर्थ यह है कि गरीब को लोग धर्मात्मा नहीं मानते, झूठा और लुच्चा ही मानते है. दूसरा अर्थ है कि धन जाने पर आदमी उसे वापस पाने के लिए अनैतिक कार्य भी करता है.  रूपान्तर  धन जाए तो धरम भी जाए.

जिसका पेट पिराय सो अजवाइन ढूँढे. जिसे जिस वस्तु की आवश्यकता होती है वह उसे स्वयं खोजता फिरता है. ऐसा माना जाता है कि अजवाइन वायु रोग को कम करती है.

जिसकी कोठरी में धान, उसकी खोपड़ी में ज्ञान. जो धन धान्य से पूर्ण है वही ज्ञानी माना जाता है.

जिसकी जुबान झूठी उसका करार क्या, जिसका पिया परदेस उसका सिंगार क्या. अर्थ स्पष्ट है.

जिसके कारन आँख फूटी, वही कहे काना. जिस का भला करने के लिए इतना बड़ा नुकसान उठाया वही कमी निकाल रहा है.

जिसके घेंघा वो न रोवे, देखने वाले रोवें. जिस में कमी है वह परेशान नहीं है, दूसरे उस से अधिक परेशान हैं.

जिसके लिए बकरी मारी, वो हड्डी पे रूठा. जिस को खुश करने के लिए इतना बड़ा पाप किया, वह छोटी सी बात पर रूठ गया.

जिसके लिए मरे वही लाठी ले के दौड़े. जिसके लिए सब कुछ गंवाया वह मारने दौड़ रहा है.

जिसके हाथ जोर, उसके हाथ बटोर. जिसके बल व पुरुषार्थ है वही धन-संपदा समेट पाता है.

जिसके हाथ हांडी डोई, वो ही मरे भूखा. जो सब को खिला रहा है वह बेचारा खुद भूखा मर रहा है.

जिससे रखिए घनी प्रीत, उससे रखिए लेखा नीत. लेखा जोखा सही हो तभी प्रेम निभता है.

जिसे आकाश में खोजा वह धरती पर मिला. कोई व्यक्ति बहुत ढूँढने के बाद मिले तो.

जिसे खाने को मिले यूँ, वह कमाने जाए क्यूँ. जिसे घर बैठे खाने को मिले वह पैसा कमाने के लिए मेहनत क्यों करेगा. मुफ्त की रेवड़ियों का लालच दे कर जनता को अकर्मण्य नहीं बनाना चाहिए.

जिसे मरने का डर नहीं, उसे मारने वाला कोई नहीं. युद्ध में जो व्यक्ति जीवन का मोह छोड़ कर लड़ता है उसे हराना बहुत मुश्किल है.

जिस्म तोड़े तो घर बने. घर बनाने के लिए अत्यधिक श्रम करना पड़ता है.

जी कहीं लगता नहीं, जब जी कहीं लग जाए है. किसी से प्रेम हो जाए तो कहीं मन नहीं लगता. यह प्रेम स्त्री पुरुष का भी हो सकता है और आत्मा परमात्मा का भी.

जी कहो जी कहलाओ (जी न कहो तो जी न सुनोगे). यदि तुम दूसरों का आदर करोगे, तो लोग भी तुम्हारा आदर करेंगे.

जी का बैरी जी. 1. मनुष्य स्वयं अपना सबसे बड़ा शत्रु है. 2. जीव ही जीव का शत्रु है. इंग्लिश में कहावत है – Man is his own worst enemy.

जी के बदले जी. 1.जान के बदले जान लेने की इच्छा. बदला लेने की भावना. 2.प्रेम के बदले प्रेम मिलता है.

जी चाहे बैराग को, कुनबा छोड़े नाहिं. 1. कोई व्यक्ति वास्तव में वैराग्य लेना चाहता है लेकिन कुटुम्ब के लोग उसे छोड़ नहीं रहे हैं. 2. कोई व्यक्ति वैराग्य लेने का ढोंग रच रहा है और कह रहा है कि मैं तो वैराग्य लेना चाहता हूँ पर क्या करूँ परिवार के लोग जाने नहीं दे रहे हैं.

जी जाए, घी न जाए. चाहे जान चली जाए पर घी खर्च न हो. महा कंजूस व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए.

जी बहुत चलता है मगर टट्टू नहीं चलता. बुढ़ापे में इन्द्रियाँ कमज़ोर हो जाने पर.

जी से जीविका प्यारी. रोजगार प्राणों से प्यारा होता है.

जी ही से जहान है. यदि जीवन है तो सब कुछ है. इसलिए सब तरह से प्राण-रक्षा की चेष्टा करनी चाहिए.

जी हुजूरी को कभी जोखिम नहीं. चमचागिरी करने में नफा ही नफा है, जोखिम कोई नहीं.

जीजा के माल पे साली मतवाली. अपने रिश्तेदारों के बल पर घमंड करना.

जीजा हमारे इत्ते शर्मीले, इक परसो दो छोड़त हैं. (बुन्देलखंडी कहावत) खाने पीने में ज्यादा तकल्लुफ करने वाले लोगों पर हास्य पूर्ण व्यंग्य.  

जीततों में अगाड़ी, हारतों में पिछाड़ी. ऐसे स्वार्थी लोगों के लिए जो जीतने वाली फ़ौज में आगे दिखाई देते हैं और हारती हुई फ़ौज में सबसे पीछे.

जीता सो भी हारा, और हारा सो मुआ. मुकदमा जीतने वाला इंसान भी बहुत परेशानी उठाता है (अत्यधिक मानसिक तनाव और खर्च के कारण) और अगर हार गया तब तो बिलकुल ही मरा. जुए के खेल में भी ऐसा ही है. जीतने वाला भी पैसे को ऐसे ही बर्बाद कर देता है और अगर हार गया तब तो बर्बाद होना ही है.

जीती मक्खी कोई न निगले. कोई अपमानजनक या घृणित चीज़ अनजाने में तो आप सह सकते हैं पर जानते बूझते कोई नहीं सह सकता.

जीते आसा, मुए निरासा. जीवन के साथ आशा की डोर बंधी है जो मरते ही समाप्त हो जाती है. इस का अर्थ यह भी हो सकता है कि आशावादी व्यक्ति की जीत होती है और निराशावादी मरे हुए के समान है.

जीते चाव चाव, मुए दाब दाब. जीवित व्यक्ति से सब प्रेम रखते हैं पर उसके मरते ही दफनाने की जल्दी होने लगती है.

जीते जी पुजवायें औ मर कर भी पुजवायें, जीते जी भी खाएँ और मरने पर भी खाएँ. (भोजपुरी कहावत) ब्राह्मणों के ऊपर व्यंग्य. जब मनुष्य जीवित होता है तब भी इनको पूजे और मरे तो भी इन को पूजे. जीवित हो तब भी इन को खिलाए और मरे तो भी इन को खिलाए.

जीते तो हाथ काला, हारे तो मुँह काला. जुआरियों के लिए. जीतेंगे तो धन उड़ा देंगे, हारेंगे तो बेइज्ज़त होंगे.

जीते थे तो लीखों भरे, मर गए तो मोतियों जड़े. लीख कहते हैं जूँ के अंडे को. जीते जी तो माँ बाप की इतनी बेकदरी कि उन के सर में जूएँ पड़ गईं और उन के मरने के बाद उनकी मोतियों जड़ी तस्वीरें लगाई जा रही हैं.

जीना कठिन है पर मरना और भी ज्यादा कठिन. अर्थ स्पष्ट है.

जीने के लिए खाओ, खाने के लिए मत जिओ. कुछ लोग हर समय खाने के विषय में ही सोचते हैं. उनके लिए यह शिक्षा है कि उतना ही खाना चाहिए जितना स्वस्थ जीवन जीने के लिए आवश्यक है. 

जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है. कम बोलने, कम खाने और कम खर्च करने से बड़ा लाभ होता है.

जीभ की सी कहूँ या तलवे की सी. द्विविधा की स्थिति. सन्दर्भ कथा – एक बार एक काजी की अदालत में एक मुकदमा पहुँचा. मुकदमा लड़ने वालों में से एक ने काजी के घर पाँच सेर बढ़िया मिठाई भेज दी. दूसरे पक्ष के व्यक्ति ने काजी के जूते के नीचे एक सोने की मोहर रख दी. काजी ने दूसरे व्यक्ति के पक्ष में फैसला सुना दिया. पहले व्यक्ति ने जब काजी को अपनी मिठाई की याद दिलाई तो काजी ने जवाब दिया, जीभ की सी कहूँ या तलवे की सी.

जीभ भी जली और स्वाद भी न पाया. जब कोई काम करने में आनंद भी नहीं मिला और नुकसान अलग हुआ.

जीभ में ही अमृत बसे और जीभ में ही जहर. मीठी बोली द्वारा किसी मृतप्राय व्यक्ति को जिलाया जा सकता है, और कड़वी बोली द्वारा किसी को मृत्यु जैसी प्रताड़ना दी जा सकती है.

जीम के छोड़े पाहुना, प्रान ले छोड़े व्याधि. पाहुना भोजन करके और पुराना रोग प्राण लेकर ही पिंड छोड़ता है.

जीमना और झगड़ना पराए घर ही अच्छे लगते हैं. जो मजा दूसरे के घर पर जीमने (खाने) में है वह अपने घर पर खाने में नहीं है. इसी तरह झगड़ा करने का मजा भी दूसरे के घर पर ही आता है.

जीमना न जूठना, न कंघी न खाट, साँपों के ब्याह में बस जीभों की लपलपाट. दुष्टों के जमावड़े में कोई एक दूसरे की आवभगत नहीं करता, सब एक दूसरे को निगल जाने की फ़िराक में रहते हैं.

जीवे मेरा भाई, गली गली भौजाई. ननद की भाभी से लड़ाई हुई तो वह कहती है कि मेरा भाई जीता रहे, तेरे जैसी भाभियाँ तो गली गली में मिल जाएंगी.

जुआरी का खर्चा बादशाह भी पूरा नहीं कर सकता (जुआरी हमेशा मुफ़लिस). जुआरी के पास कितना भी पैसा हो, वह सब जुए में हार सकता है. अगर जीत जाए तो पैसे को उड़ा देता है, और हार जाए तो कंगाल हो जाता है.

जुआरी को अपना ही दांव सूझता है. स्वार्थी आदमी अपना स्वार्थ ही देखता है.

जुए में हारा और मेहरारू का मारा भेद न खोले. जुए में हारा हुआ व्यक्ति और पत्नी से मार खाया हुआ व्यक्ति किसी को अपना भेद बताता नहीं है. रूपान्तर – आपन हारे मेहरी के मारे, केहू से न कहे, जो कहे सो भंडुआ.

जुए से बैल भी हारा है. जुआ सभी के लिए बुरा है चाहे आदमी हो या जानवर, इसको अलंकारिक रूप में इस तरह कहा गया है. क्योंकि कि जुए का एक अर्थ वह लकड़ी भी है जिसके द्वारा बैल हल से बांधे जाते हैं.

जुओं के मारे सर कौन कटाए. छोटी परेशानी से बचने के लिए बहुत बड़ा नुकसान कौन करता है.

जुग जुग जीओ, दूध बतासा पीओ. बड़े लोगों का बच्चों को प्यार भरा आशीर्वाद.

जुगनू बोले सूर्य सों हम बिन जग अंधियार. किसी महत्वहीन व्यक्ति द्वारा अपने को बहुत महत्वपूर्ण बता कर अहंकार करना.

जुगल जोड़ी सलामत रहे. पति पत्नी को एक साथ दिया जाने वाला आशीवाद.

जुड़ती नहीं धुर की टूटी, धरी रहें सब दारु बूटी. धुर की टूटी का अर्थ है जिस गाड़ी की धुरी टूटी गई हो. यहाँ इशारा किसी ऐसी बीमारी से है जो शरीर को बिलकुल तोड़ दे. ऐसी बीमारी का इलाज नहीं हो पाता.

जुड़े मांड़ न, खोजें ताड़ी (जुड़े मियाँ के मांड़ न, ताड़ी की फरमाइश). चावल का मांड़ तक उपलब्ध नहीं है और ताड़ी पीने को मांग रहे हैं. ताड़ी – ताड़ के दूध को फर्मेंट कर के बनने वाला अल्कोहलिक पेय पदार्थ.  

जुत जुत मरें बैलवा बैठे खाएं तुरंग. बैल बिचारे हल जोत जोत कर जान देते हैं और घोड़े बैठे बैठे खाते हैं. मेहनतकश लोग मेहनत करते हैं और धनी लोग व हाकिम लोग उसका लाभ उठाते हैं.

जुते बैल हांफे कुत्ता. मेहनत कोई और करे परेशान कोई दूसरा हो तो.

जुबान बिना हड्डी की, फिरने में क्या देर लगे. जो लोग अपनी बात पर कायम नहीं रहते उन के ऊपर व्यंग्य.

जुबान में ही रस, जुबान में ही विष. जुबान से ही मीठी बोली बोली जाती है और जुबान से ही कड़वी बोली.

जुमा छोड़ सनीचर नहाए, उसका सनीचर कभी न जाए. लोक विश्वास है कि जो व्यक्ति शुक्रवार को न नहा कर शनिवार को नहाता है उसके सर से शनिश्चर नहीं हटता.

जुलाहा क्या जाने जौ की कटाई. जो जिसका कार्य है वही उसे कर सकता है. सन्दर्भ कथा – एक बार एक काजी की अदालत में एक मुकदमा पहुँचा. मुकदमा लड़ने वालों में से एक ने काजी के घर पाँच सेर बढ़िया मिठाई भेज दी. दूसरे पक्ष के व्यक्ति ने काजी के जूते के नीचे एक सोने की मोहर रख दी. काजी ने दूसरे व्यक्ति के पक्ष में फैसला सुना दिया. पहले व्यक्ति ने जब काजी को अपनी मिठाई की याद दिलाई तो काजी ने जवाब दिया, जीभ की सी कहूँ या तलवे की सी.

जुलाहे का बेगारी पठान. असंभव और हास्यास्पद बात. बेगारी अपने से कमजोर व्यक्ति से कराई जाती है.

जूँ बिना खाज नहीं, कुल बिना लाज नहीं. दोनों बातों का आपस में सम्बंध नहीं है, केवल तुकबंदी करने के लिए साथ कही गई हैं. सर में खुजली जूँ के कारण से होती है और लज्जा कुलीन लोगों में ही पाई जाती है. 

जूं के कारण गुदड़ी नहीं फेंकी जाती. किसी छोटी सी कमी के कारण उपयोगी वस्तु या व्यक्ति का तिरस्कार नहीं करना चाहिए. रूपान्तर – चीलरन के दुख कथरी नईं छोड़ी जात.

जूठा खाए मीठे को. (जूठा खाए मीठे के लालच). मीठा खाने के लालच में मनुष्य झूठा भी खा लेता है. मनुष्य नीच काम तभी करता है जब लाभ अधिक हो.

जूठे हाथ से कुत्ता भी नहीं मारते. 1. किसी छोटे से छोटे व्यक्ति को भी अपमानित नहीं करना चाहिए. 2. अत्यधिक कंजूस व्यक्ति के लिए.

जूता मारे और कहे बनारसी है. निर्लज्जता पूर्ण तरीके से किसी का अपमान करना. 

जूती तंग और रिश्तेदार नंग, सारी जगह चुभें. नंग – बेशर्म. तंग जूता और बेशर्म संबंधी बहुत कष्ट देते हैं.

जूती तो हमेशा पाँव के नीचे ही रहेगी. जो लोग स्त्री को पाँव की जूती समझते हैं (पुरुष से बहुत नीचा समझते हैं) और दबा कर रखना चाहते हैं वे इस प्रकार से बोलते हैं. 

जूते का घाव, मियाँ जाने या पाँव. जूते से होने वाले घाव की पीड़ा वही जान सकता है जिस पर बीतती है.

जूते का मारा ऊपर को और टुकड़े का मारा नीचे को देखता है. जिस को जूता मारोगे वह आक्रोश दिखाएगा, जिस को टुकड़ा पकड़ा दोगे वह निगाह झुका लेगा.

जूते दान करने के लिए गाय की हत्या. अपने किसी छोटे से स्वार्थ के लिए किसी का बहुत बड़ा नुकसान करना.

जे खाय गाय के गोश्त, ते कैसे हिन्दू के दोस्त. जो गाय का मांस खाते हैं वे हिन्दुओं के दोस्त कैसे हो सकते हैं (दोस्ती में दूसरों की भावनाओं का ध्यान रखना आवश्यक होता है).

जे गरीब पर हित करैं, ते रहीम बड़ लोग, कहाँ सुदामा बापुरो, कृष्‍ण मिताई जोग. व्यवहार में इसका पूर्वार्ध ही बोला जाता है. वास्तव में वही लोग बड़े कहलाने योग्य हैं जो निर्धन का हित करते हैं. (श्री कृष्ण का उदाहरण दिया गया है जिन्होंने राजा होते हुए भी अत्यंत निर्धन सुदामा से मित्रता निभाई).

जे न मित्र दुख होहिं दुखारी, तिन्हहिं विलोकति पातक भारी. जो मित्र के दुख में दुखी नहीं होते उन्हें देखने मात्र से ही भारी पाप लगता है.

जे परनारी लावे दीठी, लाल लोह से दागो पीठी. जो पराई स्त्री को बुरी नजर से देखे, उसको कड़ा दंड देना चाहिए. (गरम लोहे से उनकी पीठ दागना चाहिए).

जेठ के भरोसे पेट. जब कोई मनुष्य बहुत निर्धन होता है (या उस की मृत्यु हो जाए) और उसके परिवार का पालन उसका बड़ा भाई (स्त्री का जेठ) करता है तब कहते हैं.

जेठ के सो पेट के. जेठ के पुत्र भी अपने बेटों जैसे हैं.

जेठ चले पुरवाई, सावन सूखा जाई. अगर जेठ के महीने में पुरबाई चले तो सावन में वारिश नहीं होती. रूपान्तर – जै दिन जेठ चलै पुरवाई, तै दिन भादौ सूखा जाई.

जेठ भया हेठ, बैसाख भया ऊपर. जहाँ बड़ों की उपेक्षा कर के छोटों को प्राथमिकता दी जाए.

जेठा बेटा भाई बराबर. बड़े बेटे को भाई की तरह महत्व देना चाहिए. जेठा – ज्येष्ठ, बड़ा.

जेठे लड़का लड़की की शादी जेठ में न करो. पुरानी मान्यता है कि बड़े लड़के या लड़की की शादी जेठ के महीने में नहीं करना चाहिए, अनिष्ट हो सकता है.

जेते जग में मनुज हैं तेते अहैं विचार. संसार में सभी मनुष्यों की प्रकृति, प्रवृत्ति तथा अभिरुचि भिन्न-भिन्न हुआ करती है.

जेते मुख तेती वार्ता. (जितने मुंह उतनी बात). सभी लोगों का सोचने का ढंग अलग अलग होता है.

जेब खाली तो काजी बहरा. न्याय व्यवस्था पर व्यंग्य है. जिस के पास पैसा न हो उसकी कोई सुनवाई नहीं.

जेब जितनी भारी, दिल उतना हल्का. पैसा आने के साथ आदमी और अधिक स्वार्थी और कंजूस होता जाता है.

जेर से ही सेर होवे. आज का बालक कल बलवान बन सकता है. इसलिए बच्चों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए.

जेवड़ी से नाड़ घिसनी है. जिसका परिस्थिति से निजात नहीं मिल सकती उस को सहन करना ही होगा. (पालतू जानवर जिस जेवरी (रस्सी) से बंधे रहते हैं, उसी से अपनी गर्दन घिसते रहते हैं).

जेहि घर साला सारथी, अरु तिरिया की हो सीख, सावन में बिन हल रहे, तीनहु मांगें भीख. जो घर साले की सलाह से चले, जिस घर में पत्नी की चले एवं जो किसान सावन में बिना हल के रहे इन तीनों की बर्बादी निश्चित है. रूपान्तर – बैरी को मत मानबो, अरु तिरिया की सीख, क्वार करे हल जोतनी, तीनहुं मांगें भीख. 

जेहि घर हींग न हरदा, तेहि घर जीमे बरधा. हरदा – हल्दी, बरधा – बैल. जिसके घर में खाने में हल्दी हींग आदि का प्रयोग नहीं होता उसके घर खाना आदमी नहीं बैलों के खाने योग्य होता है.

जेहि पर कृपा राम की होई, तेहि पर कृपा करें सब कोई. अर्थ स्पष्ट है.

जेहि महतारी सो ही बाप की मेहरारू. एक ही बात को शिष्ट और अशिष्ट दोनों ढंगों से कहा जा सकता है. माँ कहना आदर प्रदर्शित करता है और बाप की जोरू कहना अनादर. रूपान्तर – जो मामा वही बाप का साला.

जेहिं घर दीया जले सबेरा, वह घर लछमी लेय बसेरा. सबेरा – जल्दी ही. जिसके घर में दीप जल्दी जलता है उसके घर में लक्ष्मी सदैव निवास करतीं है .

जै कन्हैया लाल की, मदन गोपाल की, लड़कों को हाथी घोड़ा, बूढ़ों को पालकी. छोटे बच्चों को खिलाने के लिए.

जै घर में सुरती नहीं, नहीं पान सैं हेत, ते घर ऐसे जाएंगे, ज्यों मूली को खेत. सुरती – तम्बाखू. तम्बाखू प्रेमी कहते हैं कि जिस घर में पान तम्बाखू से प्रेम नहीं होता वह मूली के खेत की तरह नष्ट हो जाता है. 

जै दिन जेठ चले पुरवाई, तै दिन सावन धूल उड़ाई. जेठ के महीने में पुरवाई चले तो सावन में सूखा पड़ता है.

जै दिन भादों बहे पछार, तै दिन पूस में पड़े तुसार. जितने दिन भादों माह में पछुवा हवा बहती है उतने दिन पूस माह में पाला पड़ता है, ऐसा घाघ कवि का कहना है.

जैसन को तैसन, सुकटी को बैंगन. किसी दुबली पतली लड़की की शादी काले मोटे लड़के से हो जाए तो.

जैसन देखे गाँव की रीत, तैसन करे लोग से प्रीत. जैसी परिस्थितियाँ और परिवेश हों वैसा ही व्यवहार करना चाहिए.

जैसा अंश, वैसा वंश. माता पिता का जैसा अंश बच्चों में आता है वैसा ही उनका वंश बनता है. आधुनिक विज्ञान का आनुवंशिकता का सिद्धांत भी यही कहता है.

जैसा अन्न खावे, वैसी डकार आवे. आदमी जिस प्रकार का कार्य करता है उसके वैसे ही परिणाम होते हैं.

जैसा ऊँट लम्बा, वैसा गधा खवास. जब एक ही प्रकार के दो मूर्खों का साथ हो.

जैसा कन भर, वैसा मन भर. जैसे बोरी में से एक चावल देखकर चावल की क्वालिटी मालूम हो जाती है, वैसे ही व्यक्ति के एक काम को देख कर उसके विषय में अंदाज़ लग जाता है.

जैसा करेगा, वैसा भरेगा. व्यक्ति जैसे कार्य करता है वैसा ही फल पाता है.

जैसा काछ काछे वैसा नाच नाचे. काछ – परिधान (विशेषकर नटों या अभिनेताओं द्वारा धारण किया हुआ वेष). कहावत का अर्थ यह भी हो सकता है कि नट लोग जैसा वेश पहनते हैं वैसा ही अभिनय करते हैं और यह भी हो सकता है कि जैसा परिवेश हो वैसा ही व्यवहार हमें करना चाहिए.

जैसा काम तैसा दाम. काम के अनुसार दाम दिये जाते हैं.

जैसा खुदा, वैसे ही फ़रिश्ते. जब कोई अफसर या नेता भ्रष्ट हो और उसके मातहत भी बेईमान हों. 

जैसा जामन वैसा दही. 1. जामन अगर अच्छा होगा तो दही भी अच्छा जमेगा. जितना अच्छे साधन होंगे उतना ही अच्छा कार्य होगा. 2. बच्चे को जैसे संस्कार दोगे वह वह वैसा ही बनेगा.

जैसा जिसका सुभाव, वैसा उसका निभाव. जिसका जैसा स्वभाव हो, उससे वैसा ही निर्वाह किया जाता है.

जैसा ढोर वैसी घास. जैसा अतिथि उसका वैसा ही सत्कार. जैसा हाकिम वैसी रिश्वत.

जैसा तेरा ताना-बाना वैसी मेरी भरनी. जैसा व्यवहार तुम मेरे साथ करोगे, वैसा ही मैं तुम्हारे साथ करूँगा. ताना बाना और भरनी कपड़ा बुनने में प्रयोग होने वाले शब्द हैं.

जैसा दिया वैसा पाया. जब कोई व्यक्ति किसी को धोखा देने की कोशिश करे और बदले में खुद भी धोखे का शिकार हो जाए. सन्दर्भ कथा – एक चालाक अहीर पांच सेर की एक मटकी में नीचे साढ़े चार सेर गोबर और ऊपर से खूब अच्छा आधा सेर ताजा घी फैलाकर बेचने चला. रास्ते में उसे एक आदमी मिला, जो एक चमकीली तलवार को बाजार में बेचने जा रहा था. वह तलवार दरअसल लकड़ी की थी जिसके ऊपर उसने रुपहली पत्ती चिपका रखी थी. अहीर ने सोचा घी के बदले में यह खूबसूरत तलवार मिल जाए तो मेरे भाग्य खुल जाएं. उस ने कहा, एक तलवार तो मुझे भी खरीदनी थी, लेकिन सौदा करूंगा घी बिकने पर. तलवार वाले ने सोचा, तलवार के बदले में अगर यह घी की मटकी मुझे मिल जाए तो खूब घी-खिचड़ी का मजा आएगा. अहीर से बोला,  मुझे भी तलवार बेचकर घी ही लेना है, आओ सौदा कर लें. मैं तुम्हें घी के बदले तलवार दे दूँगा. दोनों ने मन में सोचा कि हम सामने वाले को उल्लू बना रहे हैं. घर जाकर जब दोनों ने असलियत जानी तो समझ गये – जैसा दिया वैसा पाया.

जैसा दुद्ध, वैसी बुद्ध. जैसा दूध पिया वैसी ही बुद्धि बनेगी ( लोक विश्वास है कि भैंस का दूध पीने से भैंस जैसी बुद्धि बनेगी और गाय का दूध पीने से गाय जैसी).

जैसा दूध धौला, वैसी छाछ धौली. 1. जितना अच्छा दूध होगा उतनी ही अच्छी छाछ बनेगी. जितना उच्च कोटि का कच्चा माल होगा उतना ही अच्छा उत्पाद (product) होगा. 2. योग्य माँ बाप की योग्य संतान के लिए.

जैसा देवर वैसी भौजी. (भोजपुरी कहावत) जैसा देवर वैसी भाभी. दोनों एक से ठिठोली करने वाले.

जैसा देवे वैसा पावे, पूत भतार के आगे आवे. कोई स्त्री दूसरी से कह रही है कि जैसे सब के साथ करोगी वैसा ही तुम्हारे साथ होगा. औरों के साथ बुरा करोगी तो तुम्हारे पुत्र और पति के साथ बुरा होगा. सन्दर्भ कथा – किसी स्त्री ने एक साधु से छुटकारा पाने के लिए दो रोटियों में विष मिलाकर उसे दे दीं. उसने उन रोटियों को अपनी कुटी में ले जाकर रख छोड़ा. संयोग से उसी स्त्री का पति और लड़का कहीं से थके-हारे उस स्थान पर आ पहुंचे और साधु से पानी मांगा. साधु ने उन्हें भूखा जानकर वे दोनों रोटियां उन्हें खिला दीं, और पानी पिला दिया. वे दोनों रोटियां खाकर मर गए.

जैसा देस वैसा भेस. जहां रहो वहीँ के हिसाब से अपने को ढाल लो.

जैसा पशु, तैसा पगहा. पगहा माने जानवर के पिछले पैर या गले में बांधे जाने वाली रस्सी या जंजीर. जितना शक्तिशाली और गुस्सैल जानवर होता है उतने ही मजबूत पगहे से उस को बाँधा जाता है. समाज के लोगों के साथ व्यवहार में भी इसी सिद्धांत का प्रयोग किया जाता है. कौन से अफसर, सरकारी मुलाजिम या बदमाश से कैसे निबटना है इस के लिए भी यही कहावत चरितार्थ होती है. 

जैसा पीवे पानी, वैसी बोले वानी. व्यक्ति का खान पान जैसा होता है उसका व्यवहार भी वैसा ही हो जाता है. 

जैसा पैसा गाँठ का, तैसा मीत न कोय (जैसी गठरी आपनी, वैसो मीत न कोय). अपने पास का पैसा ही सबसे अच्छा मित्र है.

जैसा बाप वैसा पूत. 1. पुत्र अमूमन पिता के आदर्शों पर ही चलते हैं. 2. अगर कोई बाप बेटा एक से बढ़ कर एक हों तो (चाहे खुराफाती हों या बुद्धिमान).

जैसा बीज वैसा फल. जैसे कार्य करोगे वैसा ही फल मिलेगा. बोया बीज बबूल का आम कहाँ से खाय.

जैसा बेटा रानी का, वैसा बेटा कानी का. सभी स्त्रियों को अपना पुत्र प्यारा होता है. 

जैसा बोओगे वैसा काटोगे. जैसा व्यवहार औरों के साथ करोगे वैसा ही फल आपको मिलेगा. यदि दूसरों के खिलाफ़ षड्यंत्र रचोगे तो खुद भी किसी षड्यंत्र का शिकार होगे.

जैसा बोले डोकरा, वैसा बोले छोकरा (जो घर में बोलें डोकरा, सो बाहर बोले छोकरा). घर के बड़े बूढ़े जैसी बोली बोलते हैं वैसी ही बोली बच्चे सीख जाते हैं. (डोकरा – बूढ़ा आदमी)

जैसा ब्याह वैसा नेग. जैसा अवसर वैसा ही ईनाम.

जैसा मन हराम में वैसा हरि में होए, चला जाए बैकुंठ को रोक सके न कोए. जितना मन खुराफात में लगता है उतना अगर ईश्वर की भक्ति में लगाएं तो मोक्ष मिल जाएगा.

जैसा माल वैसा मोल. जैसा माल होगा वैसा ही उसका मूल्य मिलेगा.

जैसा मुँह वैसा थप्पड़ (जैसा मुंह वैसी चपेट). गलती की सजा भी व्यक्ति का मुँह देख कर दी जाती है.

जैसा मुँह, वैसा तिलक. व्यक्ति की हैसियत के अनुसार उसका सम्मान होता है.

जैसा सांचा वैसा ढांचा. जैसा सांचा होगा चीज वैसी ही बनेगी. जैसा साधन, वैसा उत्पादन.

जैसा साजन वैसा भोजन. अतिथि की योग्यता के अनुसार ही उसका सम्मान होता है.

जैसा सूत वैसा फेंटा, जैसा बाप वैसा बेटा. जिस गुणवत्ता का कच्चा माल होगा, उसी के अनुरूप उत्पाद होगा.

जैसा सोचे, वैसा पावे. जो बड़ी सोच रखते हैं वे बड़ी उपलब्धियाँ पा जाते हैं, जो छोटी सोच रखते हैं उनकी उपलब्धियाँ भी सीमित होती हैं.

जैसा सोता वैसी धारा. जैसा स्रोत होगा वैसी ही जल की धारा होगी. कोई संगठन या परिवार जिन विचारों से प्रेरित होगा वैसे ही कार्य करेगा. घृणा और हिंसा फैलाने वाले देशों में आतंकवादी ही पैदा होंगे.

जैसी कमाई वैसी समाई. समाई – खर्च. कमाई जितनी हो खर्च भी उतना ही करना चाहिए.

जैसी करनी वैसी भरनी. जैसे कर्म करोगे वैसे ही फल भुगतने पड़ेंगे. कुछ लोग इस के आगे बोलते हैं – जैसी करनी वैसी भरनी, न माने तो कर के देख.

जैसी खान वैसा ही हीरा, ऐसी बहन का ऐसा ही वीरा. हीरों की कुछ खानें उच्च कोटि के हीरों के लिए प्रसिद्ध हैं, अर्थात उच्च कोटि की खान से निकला हीरा भी उच्च कोटि का होगा. जैसे योग्य माता पिता वैसा ही योग्य पुत्र, जैसी योग्य बहन, वैसा ही योग्य भाई. 

जैसी गंगा नहाए, तैसी सिद्धि पाए. जैसी पूजा वैसा फल.

जैसी छिनरी आप छिनार, वैसा जाने सब संसार. जो स्त्री दुश्चरित्र होती है वह सब को दुश्चरित्र समझती है.

जैसी जाकी चोट पिराय, वैसे हरदी मोल बिकाय. जिसकी जैसी आवश्यकता होती है उसी के हिसाब से वस्तु का मूल्य बढ़ता है. किसी ने पूछा कि हल्दी का क्या भाव है? तो दुकानदार ने कहा- जैसी जिसके चोट लगी हो.

जैसी जाकी पांयलगी, वैसा आसीर्वाद. कोई श्रद्धा से झुककर प्रणाम और चरण स्पर्श करता है तो कोई केवल पाँव छूने का दिखावा करता है. उसी के अनुसार आशीर्वाद भी मिलता है. पांयलगी – पैर छूना.

जैसी जाकी बुद्धि है, तैसी कहै बनाय, ताको बुरा न मानिए, लेन कहाँ सो जाय. यदि कोई मूर्खतापूर्ण बात करता है तो उसका बुरा मत मानिए. जिस के पास जैसी बुद्धि है वह वैसी ही बात कर सकता है. रूपान्तर – जामें जित्ती बुद्धि है उत्ती देय बताय, बाको बुरौ न मानिये, और कहाँ से लाय.

जैसी जाकी भावना तैसी ताकी सिद्धि. जिसकी जैसी भावना होती है उसको वैसी ही सिद्धि मिलती है. दुष्ट प्रकृति के लोग नीच शक्तियाँ सिद्ध करते हैं, उत्तम प्रकृति के लोग परोपकारी भावनाओं को सिद्ध करते हैं. राक्षस लोग तपस्या करते थे तो भगवान से शक्तियाँ और दिव्यास्त्र मांगते थे, ऋषि मुनि तपस्या करते थे तो लोक कल्याण के साधन मांगते थे.

जैसी जात वैसी बात. आदमी अपनी जात के अनुसार ही बात करता है. इस बात को जातिवाद (जन्म के अनुसार जो जाति है) से जोड़ कर नहीं देखना चाहिए. यह सच है कि जो व्यक्ति जैसे माहौल में पैदा हुआ और पला बढ़ा है वह अधिकतर अपने उसी परिवेश के अनुरूप ही बात करता है.

जैसी झूठी बधाई, वैसी कड़वी मिठाई. आपने किसी को झूठी बधाई दी. बदले में उसने आप को जो मिठाई खिलाई वह आपको कड़वी लगी तो शिकायत किस बात की.

जैसी तेरी तिल चावली, वैसे मेरे गीत. विवाह या संतान जन्म पर जो स्त्रियाँ गीत गाती है उन्हें तिल चावल भेंट में दिए जाते हैं. यदि गाने वालियों को घटिया तिल चावल मिला तो वे बेकार के गीत गायेंगी.

जैसी देखी गाँव की रीती वैसी उठाईं अपनी भीती.  जैसी गाँव की रीति देखें वैसी अपनी दीवार बनाएँ. माहौल को देखते हुए काम करना चाहिए. रूपान्तर – जैसी देखे गाँव की रीत, वैसी करिए लोगों से प्रीत.

जैसी देवी तैसे पंडा. जैसे नेता वैसे चमचे, जैसा हाकिम वैसा नौकर. एक से लोगों का मिल जाना.

जैसी देवी सीतला वैसा वाहन खर. शीतला माता को खतरनाक देवी माना गया है क्योंकि उन के प्रकोप से चेचक निकलती है. जैसी देवी हैं वैसा ही उनका वाहन है गधा. हाकिम और मातहत दोनों ही अजीबोगारीब हों तब.

जैसी धूप वैसी छतरी. जैसी परिस्थिति हो वैसा ही प्रबंध करना चाहिए.

जैसी नाच कूद, वैसी वार फेर. जैसा नाचोगे वैसी न्यौछावर मिलेगी. वारना – न्यौछावर करना.

जैसी नीयत, वैसी बरकत. जैसी जिसकी मनोवृत्ति हो उसी हिसाब से उसकी उन्नति या पतन होता है.

जैसी पड़े मुसीबत, वैसी सहे शरीर. जैसी परेशानी आती है शरीर वैसा ही अपने को ढालता है.

जैसी बंदगी, वैसा ईनाम. बंदगी शब्द के अर्थ में पूजा, सलाम और गुलामी का मिश्रण है. जितनी लगन और सच्चाई से बंदगी की जाएगी उतना ही अच्छा इनाम मिलेगा.

जैसी बहे बयार, पीठ तब तैसी कीजे. जैसा माहौल हो उसी के अनुसार व्यवहार कीजिए.

जैसी भाई की प्रीत, वैसे बहन के गीत. भाई के यहाँ कोई शुभ कार्य होता है तो बहनें बड़े चाव से गीत गाती हैं. यदि भाई की प्रीत में खोट होगा तो बहनों के गीत भी फीके होंगे.

जैसी मति, तैसी गति. जैसी व्यक्ति की मति (सोच) होती है उसको वैसी ही गति (परिणति) प्राप्त होती है.

जैसी माई वैसी धिया,  जैसी काकड़ वैसी बिया. (भोजपुरी कहावत) धिया – बेटी, बिया – बीज, काकड़ – ककड़ी. जैसी माँ वैसी ही बेटी, जैसी ककड़ी वैसा बीज.

जैसी माई, वैसी जाई. जाई माने बेटी. जैसी माँ वैसी बेटी.

जैसी रूह वैसे फ़रिश्ते. व्यक्ति ने जैसे कर्म किए हों उसे वैसा ही फल मिलेगा. दुष्ट आत्माओं को लेने के लिए दुष्ट फरिश्ते आएँगे और नेक आत्माओं को लेने अच्छे फरिश्ते आएँगे.

जैसी संगत बैठिये, तैसो ही गुण होत (जैसी संगत, वैसी रंगत). व्यक्ति वैसे ही गुण सीखता है जैसी उसकी संगत होती है. व्यक्ति जैसे लोगों के साथ रहता है वैसे ही उस के आचार विचार हो जाते हैं.

जैसी होत होतव्यता, तैसी उपजे बुद्धि, होनहार हिरदै बसे, बिसर जाए सब सुद्धि. जैसी होनहार होती है वैसी ही आदमी की बुद्धि हो जाती है. जब कुछ अनिष्ट होने वाला होता है तो आदमी सारी समझदारी भूल जाता है.

जैसे उदई वैसे भान, ना इनके चुनई ना उनके कान. दो मूर्ख एक सा व्यवहार करते हैं.

जैसे उदई वैसेहि खान, न उनके चुटिया, न उनके ईमान. जो लोग अपने धर्म में आस्था न रखते हों उनके लिए. ऊदई कोई हिन्दू हैं जो चुटिया नहीं रखते और खान कोई मुसलमान हैं जो अपने धर्म पर ईमान नहीं रखते.

जैसे उधौ वैसे माधौ. जब दो मूर्ख एक से हों तो.

जैसे कंता घर रहे वैसे रहे विदेस, जैसे ओढ़ी कामली वैसे ओढ़ा खेस. पत्नी को प्रेम न करने वाला पति या निकम्मा पति घर में रहे या विदेश में पत्नी को कोई फर्क नहीं पड़ता. कम्बल ओढ़ो या सूती चादर क्या फर्क पड़ता है. राजस्थान में इस का दूसरा प्रारूप भी प्रचलित है – कदे न हँस कर कुच गह्यो, कदे न रिस कर केस, जैसे कंता घर रह्यो, वैसे ही परदेस (पति ने कभी हँस कर शरीर को हाथ नहीं लगाया और न ही क्रोध में बाल पकड़े, जैसे परदेस में रहा वैसे ही घर में रहा). 

जैसे कुम्हड़ा छप्पर पर, वैसे कुम्हड़ा नीचे. स्थान या पद बदलने के बाद भी यदि व्यक्ति की हैसियत वही रहे तो मजाक में ऐसे कहा जाता है.

जैसे को तैसा मिला ज्यों बामन को नाई, इनने आशीर्वाद कही उन आरसी काढ़ दिखाई. ब्राह्मण किसी को आशीर्वाद देते हैं तो बदले में दक्षिणा की आशा रखते हैं. नाई जब किसी को आरसी में मुँह दिखाता है तो बदले में इनाम की आशा करता है. ब्राह्मण देवता ने दक्षिणा की जुगाड़ में नाई को आशीर्वाद दिया तो नाई ने बदले में आरसी निकाल कर दिखा दी. दो कुटिल व्यक्ति एक दूसरे को कुटिलता दिखाएं तो यह कहावत कही जाएगी.

जैसे को तैसा मिला, मिली खीर में खाँड़, तू जात की बेड़नी, मैं जात का भाँड़. एक दूसरे को धोखा देना. ग्रामीण वैश्या ने ब्राह्मण के धोखे में भांड को भोजन करा दिया. देखिए सन्दर्भ कथा 98.

जैसे को तैसा मिले सुन रे राजा भील, लोहे को चूहा खा गया लड़का ले गई चील. कुटिल व्यक्ति को कुटिलता से ही ठीक किया जा सकता है. सन्दर्भ कथा – जैसे को तैसा मिले सुन रे राजा भील, लोहे को चूहा खा गया लड़का ले गई चील. एक व्यक्ति ने अपने किसी मित्र से लोहे के बर्तन उधार लिए. जब लौटाने का वक्त आया तो वह यह कह कर मुकर गया कि बर्तनों को चूहा खा गया. उधार देने वाला समझ गया कि मित्र के मन में खोट आ गया है, पर वह उस समय कुछ नहीं बोला.

कुछ दिन बाद उस ने इसी मित्र के बेटे को अपने घर बुलाया और छिपा लिया. बहुत देर तक जब लड़का घर नहीं पहुँचा तो मित्र उसे ढूँढता हुआ आया. इस व्यक्ति ने कहा कि लड़के को चील ले गई है. मित्र बिगड़ कर बोला कि यह कैसे संभव है. तुम झूठ बोल रहे हो. झगड़ा बढ़ा तो बात राजा के पास पहुँची. उस समय राजा भील नाम का राजा राज्य करता था. राजा के पास पहुँच कर उस व्यक्ति ने कहा कि महाराज और कुछ नहीं जैसे को तैसा मिल गया है, जब लोहे को चूहा खा सकता है तो लड़के को चील क्यों नहीं ले जा सकती

जैसे को तैसा मिले, मिले कुल्हाड़ी बेंट, कानी को काना मिले, लिए आँख में टेंट. जिस की जैसी प्रवृत्ति होती है उस को वैसा ही साथ मिल जाता है.

जैसे को तैसा. कोई व्यक्ति किसी के साथ धूर्तता करे और दूसरा व्यक्ति उसी की भाषा में उसका जवाब दे तो.

जैसे गनू ओझा पान के खवइया, वैसा उन का चमड़े का पानदान. घटिया लोगों का सामान घटिया ही होता है.

जैसे गुरू तैसे चेला. जहाँ गुरु और चेला एक से बढ़ कर एक हों.

जैसे जल, वैसे मच्छ. जितनी बड़ी नदी, तालाब या समुद्र होगा उतनी ही बड़ी मछलियाँ और मगरमच्छ उसमे होंगे. बड़े शहर में बड़े व्यापारी और बड़े अपराधी होंगे.

जैसे तेरी बाँसुरी, वैसे मेरे गीत. जैसे साधन तुम मुझे उपलब्ध कराओगे वैसा ही काम मैं कर के दूंगा.

जैसे नब्बे तैसे सौ. जहाँ अधिक खर्च हो रहा है वहाँ थोड़ा और सही.

जैसे नाग नाथ वैसे साँप नाथ. दो कुटिल लोग एक से मिल जाएँ तो.

जैसे नीमनाथ, वैसे बकायननाथ. बकायन – नीम की जाति का एक पेड़, महानिम्ब. यह भी नीम जैसा कड़वा होता है. कोई दो व्यक्ति एक से बढ़ कर एक बदमिजाज हों तो.

जैसे फूल गुलाब का सूखे तऊं बसाय, तैसी प्रीत सुशील की दिन पर दिन अधिकाय. बसाय – बास (सुगंध) देता है. जैसे गुलाब का फूल सूख कर भी सुगंध देता है, वैसे ही सुशील व्यक्ति की प्रीति समय के साथ बढ़ती है. 

जैसे बाई के कोदों, तैसी हींग हमार. जैसा घटिया कोदों अनाज तुमने दिया वैसी घटिया हींग हम ने दी.

जैसे बाबा आप लबार, वैसा उनका कुल परिवार. लबार – झूठ बोलने वाला, गप्पें हांकने वाला. घर का बड़ा बूढ़ा झूठ बोलने वाला हो तो सारा घर वैसा ही हो जाता है.

जैसे मुर्दे पर सौ मन मिट्टी वैसे हजार मन. मुर्दे के ऊपर सौ मन मिटटी हो या हजार मन, मुर्दे को क्या फर्क पड़ता है. काम में पिसने वाली घर की महिला या काम के बोझ से दबे कर्मचारी पर जब और काम लादा जाता है तो वह ऐसे बोलता है. क़र्ज़ के बोझ तले दबा आदमी और अधिक क़र्ज़ लेने के लिए भी ऐसे बोलता है.

जैसे लहंगा ऊपर सारी, वैसे दुसरी मेहर प्यारी. लहंगा खोने के बाद साड़ी पहनने को मिल जाए तो ज्यादा अच्छी लगती है, उसी प्रकार से एक पत्नी की मृत्यु हो जाने पर दूसरी पत्नी अधिक प्रिय लगती है.

जैसे साजन आए, तैसे बिछौना बिछाए (जैसे साजन आए, तैसी सेज बिछाए). जैसा मेहमान वैसा सत्कार.

जैसो पावणों, वैसो ही जीमावणों. (राजस्थानी कहावत) जैसा मेहमान वैसा ही सत्कार. पावणा – पाहुना, अतिथि, जिमावणा – जीमाना, खाना खिलाना.

जो अति आतप व्याकुल होई, तरु छाया सुख जाने सोई : आतप – सूर्य का ताप. जब व्यक्ति तेज धूप से व्याकुल होता है तभी उसे पेड़ की छाया का महत्व समझ में आता है. व्यक्ति जितनी बड़ी विपत्ति का सामना करता है उतना ही अधिक वह विपत्ति हटने पर आनंद पाता है.

जो अनमनी सासरे जावे, वो क्या निहाल करे. जो लड़की ससुराल जाने में आनाकानी करे वह ससुराल जा कर कैसे निभेगी. कार्य के आरम्भ में ही जो कोई अनिच्छा जाहिर करे वह उस काम को पूरा कैसे करेगा.

जो अपने काम न आए, सो चूल्हे भाड़ में जाए. कोई कितना भी बड़ा या महत्वपूर्ण व्यक्ति क्यों न हो, हमारे काम न आए तो उस का बड़प्पन हमारे किस काम का. इस से मिलती जुलती कहावत है – बारह गाँव का चौधरी, अस्सी गाँव का राय, हमारे काम न आए तो ऐसी तैसी में जाए.

जो अपने पर विश्वास नहीं करता, वह किसी पर विश्वास नहीं कर सकता. अर्थ स्पष्ट है.

जो आ के न जाय वो बुढ़ापा, जो जा के न आय वो जवानी. अर्थ स्पष्ट है.

जो आया है वह खाएगा जो कमायेगा वह खिलाएगा. इस संसार में जिसने जन्म लिया है उसको भोजन मिलना चाहिए. यदि किसी के पास खाने को नहीं है तो सम्पन्न लोगों का कर्तव्य है कि उस की सहायता करें.

जो इच्छा करिहौं मन माहिं, हरि कृपा कछु दुर्लभ नाहिं. आप मन में कोई भी इच्छा कर लीजिए, ईश्वर की कृपा हो तो कुछ भी दुर्लभ नहीं है.

जो ऊँट की पीठ पे न लदे वो उसके गले बंधे. यदि कोई सामान ऊँट की पीठ पर नहीं लद पाता है तो उसे ऊँट के गले में बाँध कर लटका देते हैं. काम को हर हाल में गरीब आदमी पर ही लादा जाता है.

जो एक ऊँगली दिखाए, उसको दो दिखाओ. ईंट का जवाब पत्थर से.

जो कबीर काशी में मरिहें, रामहिं कौन निहोरा. काशी में मरने से स्वर्ग जाने की गारंटी हो तो भगवान का इस में क्या एहसान.

जो करता है वह कहता नहीं फिरता, जो कहता फिरता है वह करता नहीं. अर्थ स्पष्ट है.

जो करे धरम, उसके फूटे करम, जो करता है पाप कमाई, वो खाता है दूध मलाई. कलियुग की सच्चाई यही है.

जो करे फाटका, घर का रहे न घाट का. (फाटका – सट्टा) सट्टेबाजी करने वाले कि सारी कमाई डूब जाती है.

जो करे बिरानी आस, वो जीते जी मर जाय. दूसरों पर आश्रित होना, जीते जी मरने के समान है.

जो करे शरम उसके फूटे करम, जो करता है बेशर्माई वो खाता है दूध मलाई. यह कहावत आधी भी बोली जाती है और पूरी भी. संकोच करने वाला सदा नुकसान में रहता है.

जो करे होड़, सो मरे सिर फोड़. अपनी क्षमताओं और सीमाओं को जाने बिना दूसरों से होड़ करने वाला व्यक्ति हमेशा पछताता है.

जो कहुं माघे बरसे जल, सब नाजों में होगा फल. माघ के महीने में जल बरसता है तो सभी अनाजों की पैदावार अच्छी होती है. माघ की वर्षा को आम भाषा में महोटे कहते हैं.

जो काम हिकमत से निकलता है वो हुकूमत से नहीं निकलता. युक्ति द्वारा जो काम किया जा सकता है वह तानाशाही और जोर जबरदस्ती से नहीं किया जा सकता.

जो किसी से न हारे वो अपने से हारे. अपने से – स्वयं से, अपने से – अपनों से. 1. गलत काम कर के आगे बढ़ने वाला अंततः अपनी अंतरात्मा को जवाब नहीं दे पाता. 2. जो किसी से नहीं हारता है उसे किसी अपने (सगे) से हारना पड़ता है. एक से एक वीर पुरुष अपनों के द्वारा ही धोखे से मरवाए गए.

जो कोऊ जिये सो खेले होरी (जीयेगा तो खेलेगा फाग). जीवन का आनंद लेने के लिए जीवित रहना जरूरी है.

जो कोऊ हमें देख के जरे बरे, ओकी आंखन में राई नोन परे. जलने वाले को लानत भेजने के लिए ऐसा बोला जाता है. कहीं कहीं महिलाएं राई और नमक से बच्चों की नजर उतारते समय इस प्रकार बोलती हैं.

जो कोसत बैरी मरे, मन चितवे धन होय, जल में घी निकसन लगे तो रूखा खाय न कोय. शत्रु अगर कोसने से मर जाए, इच्छा करने से धन मिल जाए, पानी मथने से घी निकल आए तो सभी सुखी हो जाएंगे.

जो खड़े मूते उसे छींटों का क्या डर. जान बूझ कर गलत काम करने वाले को उसके दुष्परिणामों और लोकनिंदा की चिंता नहीं होती.

जो खाते में लजाए, वो जाते में पछताए. दावत में जो शर्म के कारण ठीक से नहीं खाता,वह बाद में पछताता है.

जो खेत में मोती फरे, तबहूँ बनिया न खेती करे. बनिए बहुत चालाक होते हैं, वे खेती जैसा मेहनत और खतरे से भरा काम कभी नहीं करते.

जो गंवार पिंगल पढ़े, तीन वस्तु से हीन, बोली, चाली, बैठकी, लीन्ह विधाता छीन. गंवार यदि पढ़ लिख भी जाए तो भी उसकी बोली और चाल ढाल संभ्रान्त लोगों जैसी नहीं हो सकती. पिंगल का अर्थ है छंद शास्त्र.

जो गरजते हैं वो बरसते नहीं. (गरजें सो बरसें नहीं) (गरजता बादल बरसता नहीं, बरसता है सो गरजता नहीं). बादलों के विषय में कहा जाता है कि गरजने वाले बादल बरसते नहीं हैं. कहावत के रूप में इस का अर्थ यह है कि जो बहुत बढ़ चढ़ कर बोलते हैं वे कुछ कर के नहीं दिखाते.

जो गुड़ देने से मर जाए, उसे जहर क्यों दिया जाए (रस के मरे को विष क्यों देय). जो मीठी बातों में फंस कर आपका काम कर दे उस के साथ रुखाई क्यों की जाए. रूपान्तर – सुख दिखाय दुख दीजिये, खल सों लरिये नाहि, जो गुर दीने ही मरे, क्यों विष दीजे ताहि.

जो घर चलावे सो घर का बैरी, जो गॉव चलावे सो गाँव का बैरी (घर का अगुआ घर का बैरी, गाँव का अगुआ गाँव का बैरी). घर का मुखिया सभी का हित चाहता है लेकिन सब उससे नाराज रहते हैं. प्रत्येक व्यक्ति को लगता है कि उसी के साथ अन्याय हो रहा है. यही बात गाँव और देश के मुखिया पर भी लागू होती है.

जो चढ़ेगा सो गिरेगा. इसका अर्थ दो तरह से है – 1. जो उन्नति करता है वह कभी न कभी गिरेगा भी. 2. जो चढ़ने का साहस करेगा वही तो गिरेगा. जो चढ़ेगा ही नहीं वह गिरेगा क्या.

जो चोरी करता है, मोरी देख के रखता है. चोर चोरी करने से पहले अपने निकलने की जगह देख कर रखता है.

जो छावे सो सुख पावे. छावे से अर्थ यहाँ छप्पर छाने से है. जो समय रहते अपने सुरक्षित आवास की व्यवस्था कर लेता है वही सुख पाता है.

जो जाके मन में बसे सो सपने दर्शाए (जो मन में बसे सो सुपने दसे). आपके मन में जो विचार होते हैं वही आपको सपने में दिखते हैं.

जो जाने जाड़े को भेद, सो ढांके कंबल को छेद. जिसको मालूम है कि कम्बल में छेद हो तो उससे जाड़ा दूर नहीं हो सकता वह समय रहते कम्बल के छेद को ढक देता है.

जो जीता वही सिकंदर. जब दो धुरंधरों में लड़ाई होती है तो जो जीतता है वही श्रेष्ठ कहलाता है चाहे वह अपनी वीरता से जीता हो, अधर्म और कुटिलता से जीता हो या धुप्पल में जीत गया हो. 

जो जैसा करता है, वो वैसा भरता है (जैसा करोगे वैसा भरोगे). अर्थ स्पष्ट है.

जो जैसी करनी करे सो तैसो फल पाए, बेटी पहुँची राजमहल साधु बंदरा खाए. धूर्त साधु ने राजकुमारी को हथियाने का षड्यंत्र किया जिस की उसी उचित सजा मिली. सन्दर्भ कथा – एक बार एक साधु किसी राजा के महल में गया. राजा ने उसका बड़ा सत्कार किया. राजा की सुंदर बेटी को देख कर साधु के मन में पाप आ गया. बहुत सोच कर उसने एक चाल चली. उसने राजा से कहा कि ये कन्या बहुत अशुभ है, ये सारे कुल के नाश का कारण बनेगी. राजा घबरा गया और साधु से इस से बचने का उपाय पूछने लगा. साधु ने कहा, इसे लकड़ी के बक्से में रख कर नदी में बहा दो. राजा उस की बातों में आ गया और उस ने ऐसा ही किया. साधु की योजना यह थी कि वहाँ से काफी दूर नदी किनारे बने अपने आश्रम में जल्दी जल्दी पहुँच जाए और नदी में बह कर आने वाले बक्से को नदी से निकाल कर राजकुमारी को अपने कब्जे में ले ले. तेज चाल से चल कर वह अपने आश्रम में पहुँच गया और बक्से के आने का इंतज़ार करने लगा.

उधर बीच जंगल में शिकार पर निकले एक राजकुमार ने नदी में बहते बक्से को देखा तो कौतूहल वश उसे बाहर निकाल कर खोला. बक्से में से राजकुमारी ने बाहर निकल कर उसे साधु की चालबाजी की सारी कहानी बताई. राजकुमार ने एक कटखना बंदर पकड़ा और उसे बक्से में बंद कर के बक्सा नदी में बहा दिया. साधु तो बेसब्री से बक्से का इंतज़ार कर ही रहा था. जैसे ही बक्सा बहता हुआ उसके आश्रम के पास पहुँचा उसने झट उसे निकाल कर खोला. खिसियाये हुए बंदर ने उसे काट काट कर लहुलुहान कर दिया. दुष्टता करने वाले को उसकी करनी का फल मिले तो यह कहावत बोली जाती है

जो जो धरें धरम पथ पाँव, उनको लगे कलेजे घाव. जो धर्म के कार्य करना चाहते हैं वे बहुत कष्ट उठाते हैं.

जो ज्यादा करीब सो ज्यादा रकीब. जो आपके अधिक निकट है वही अधिक स्पर्धा और ईर्ष्या करता है. सगे भाइयों में भी अक्सर एक दूसरे के प्रति बहुत ईर्ष्या देखी जाती है. (रकीब – प्रतिद्वंद्वी).

जो ज्यादा काम करता है उसी पर और लादा जाता है. जो अधिक काम करता है और ठीक काम करता है, सब उसी से काम करवाना चाहते हैं. एक प्रकार से यह भलमनसाहत का नुकसान है.

जो टट्टू जीते संग्राम, क्यों खरचें तुर्की के दाम. टट्टू और खच्चर सामान ढोने वाले सस्ते जानवर होते हैं जबकि तुर्की उन्नत किस्म का लड़ाई में काम आने वाला घोड़ा होता है जो कि बहुत महंगा होता है. कहावत का अर्थ है कि यदि सस्ती और कामचलाऊ चीज़ से काम चल जाए तो महंगी चीज़ क्यों खरीदी जाएगी.

जो डरता है उसे और डराया जाता है, जो चिढ़ता है उसे और चिढ़ाया जाता है. अर्थ स्पष्ट है.

जो तिल हद से ज्यादा हुआ सो मस्सा हुआ. अति हर चीज़ की बुरी होती है. तिल चेहरे की सुन्दरता बढ़ाता है और मस्सा बुरा लगता है.

जो तीन पाव से गया वह तीन लोक से गया. जिसने कभी किसी भूखे को भरपेट (तीन पाव) भोजन नहीं कराया, उस का जन्म व्यर्थ है. उसका लोक परलोक सब गया.

जो तुम करन फैसला चाहो, दोउ जने गम खाओ. गम खाना – कष्ट सहना. दो लोगों में विवाद हो और फैसला कराना चाह रहे हों, तो दोनों को थोड़ा थोड़ा दबना पड़ता है. 

जो तुम्हें कह गया, वह मुझे भी कह गया. जिसने तुम्हें सद्बुद्धि दी उसी ने मुझे भी दी. एक बुढ़िया और घुड़सवार की कहानी. सन्दर्भ कथा – एक राह चलती बुढ़िया ने किसी घुड़सवार से अपनी पोटली ले चलने के लिए कहा. घुड़सवार ने यह कहकर इनकार कर दिया कि घोड़े के सवार और बुढ़िया माई का क्या साथ. कुछ आगे चलकर सवार ने सोचा कि अच्छा होता यदि मैं उस बुढ़िया की पोटली ले लेता, उसमें जो कुछ है उसे आसानी से हथिया लेता. वह लौट पड़ा और बुढ़िया के पास पहुँचकर कहने लगा – ला माई पोटली, तुझे कष्ट हो रहा होगा. मैं घोड़े की पीठ पर लाद लेता हूँ.

इधर बुढ़िया के दिल में भी यह सदबुद्धि जागृत हो गई थी कि अच्छा हुआ जो मैं ने अपनी पोटली घुड़सवार को न दी, कहीं वह लेकर चम्पत हो जाता तो मैं क्‍या करती. किसी अनजान का विश्वास ही क्‍या.  बुढ़िया ने उत्तर दिया – जो तुम्हें कह गया, वह मुझे भी कह गया.

जो तेजी से जले वो जल्दी बुझे. जो वस्तु जल्दी आग पकड़ती है वह जल्दी बुझ भी जाती है. जो लोग जल्दी क्रोध में आ जाते हैं वे जल्दी ठंडे भी हो जाते हैं. जो जल्दी उत्तेजित होते हैं वे जल्दी स्खलित भी होते हैं.

जो तोकु कांटा बुवे, ताहि बोय तू फूल, (तोकू फूल के फूल है, बाकू है त्रिशूल). जो तुम्हारे साथ बुराई करे उसके साथ भी भलाई करो. आप भलाई कर के खुश रहोगे, वह बुराई कर के मन में परेशान रहेगा.

जो दम गुजरे सो गनीमत. संसार में रहते हुए जितना समय आसानी से निकल जाए उतना ही गनीमत समझो.

जो दिया खाया सोई अपना. जो दूसरों को दिया अथवा स्वयं खाया वही सार्थक, जो जोड़ कर रखा वह बेकार.

जो दूसरों के लिए कुआं खोदते हैं उनके लिए पहले ही खाई खुद जाती है. (खाई खने जो और को, बाको कूप तैयार) जो दूसरों को हानि पहुंचाने के लिए षड्यंत्र रचते हैं वे स्वयं भी किसी न किसी प्रकार से उसी षड्यंत्र (या किसी और परेशानी) का शिकार हो जाते हैं.

जो दे उसका भी भला, जो न दे उसका भी भला. भीख मांगने वाले ऐसा बोल कर सब को खुश करते हैं.

जो देखे चौथी का चंद, बिन चोरी के लागे फंद. मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा को देखने से चोरी का झूठा कलंक लगता है. इस दिन चंद्रमा देखने से कृष्ण पर स्यमंतक मणि की चोरी का इल्जाम लगा था.

जो देगा वह गाएगा, जो लेगा वह छिपाएगा. जो किसी को कुछ देता है वह सब लोगों से कहना चाहता है जिससे सब उस की बड़ाई करें. जो लेने वाला है वह छिपाना चाहता है क्योंकि उसे इसमें अपना अपमान लगता है.

जो धन दीखे जात, आधा दीजे बाँट. यदि धन जाता दिखे तो उसमें से आधा लुटा कर बाकी को बचाने का प्रयास करना चाहिए.

जो धरती पे आया, उसे धरती ने ही खाया. जो भी इस मिटटी से पैदा हुआ है उसे इस मिटटी में ही मिलना है.

जो धार पर चले, सो फूलों पर सोए. यहाँ धार पर चलने का अर्थ है तलवार की धार पर चलना. जो कठिन परिश्रम करता है और खतरों से खेलता है वही उसके बाद सुख भोगता है.

जो धावे सो पावे, जो सोवे वो खोवे. जो कुछ पाने के लिए दौड़ भाग करता है वही कुछ पाता है, जो सोता रहता है (आलस करता है) उसे कुछ नहीं मिलता.

जो न करे माँस आहारा, चौंसठ जन्म गिद्ध अवतारा. मांस भक्षी लोग कहते हैं कि जो लोग इस जन्म में मांस नहीं खाएंगे उन्हें दंड स्वरूप गिद्ध की योनी में चौंसठ बार जन्म लेना पड़ेगा.

जो न भावे आप, सो देय बहू के बाप. जो वस्तु स्वयं अच्छी न लगे उसे दूसरे के मत्थे मढ़ना.

जो न मानें बड़न की सीख, ले खपरिया मांगें भीख. जो बड़ों की सीख नहीं मानते, उन्हें खप्पर ले कर भीख मांगनी पड़ती है.

जो न मिले तिरलोक से, सो मिले संतोख से. जो तीन लोकों में न मिले वह संतोष से प्राप्त हो सकता है.

जो नंगी नाचै, सोई पूतै खाय. सच्चा व्यक्ति बेशर्म नहीं हो सकता, दुष्ट ही हो सकता है. सन्दर्भ कथा – किसी मनुष्य के दो स्त्रियां थीं. बड़ी की गोद में छ: महीने का बालक था. जिसे देख कर छोटी बहुत कुढ़ती थी. एक दिन मौका पाकर छोटी ने उस बच्चे को गला दबा कर मार डाला और कहना शुरू कर दिया कि बड़ी ने मुझे बदनाम करने के लिए यह काम किया है. बड़ी ने लोगों के सामने रोकर कहा,कोई मां होकर अपने लड़के को कैसे मार डालेगी. अंत में मामला गांव के मुखिया के पास पहुँचा.

उसने दोनों स्त्रियों को बुला कर कहा, अच्छी बात है मैं अभी इस बात का फैसला करता हूँ कि लड़के को किसने मारा. तुम दो में से जो स्त्री हम लोगों के सामने बिलकुल नंगी होकर नाचे उसी को हम निर्दोष समझ लेंगे. सुन कर बड़ी ने कहा, मेरा लड़का भी गया और ऊपर से अपनी लाज शरम भी खोऊँ. ऐसा मैं नहीं कर सकती भले ही आप मुझे अपराधी समझ लें. छोटी ने कहा, मैंने जब कोई बुरा काम किया ही नहीं तो मुझे नंगी होकर नाचने में क्या डर, और वह कपड़े उतारने के लिए तैयार हो गयी. यह देख कर मुखिया ने तुरंत कहा, बस बस फैसला हो गया. यही असली अपराधिनी है

जो नर वचनों से फिरे वह पत देत गंवाए. जो अपना वचन नहीं निभाते उन का कोई सम्मान नहीं करता.

जो नवे सो भारी (जो पल्ला भारी सो झुके). तराजू का जो पलड़ा झुक जाता है वही भारी माना जाता है. आपसी मतभेद में जो व्यक्ति अधिक वजनदार (गंभीर) है उसी को झुकना पड़ता है.

जो नहिं सीखा बोलना, सब सीखा बेकार. संसार में वही व्यक्ति दूसरे लोगों को प्रभावित कर सकता है जिसे बोलने की कला आती हो.

जो निकले सो भाग धनी के. खेती करने वाला मजदूर कहता है कि जो उपज होगी वह मालिक के भाग्य से होगी. हमें तो फ़कत बंधी हुई मजदूरी मिलनी है.

जो निर्दोष को देवे दोष, उसकी होय गति न मोक्ष. जो स्वयं बचने के लिए निर्दोष व्यक्ति को फंसाता है वह अत्यधिक पाप का भागी बनता है.

जो पंडित विवाह कराता है वही पिंडदान भी. यह संसार का चक्र है, जिसका जन्म हुआ उसको जीवन के विभिन्न संस्कारों से गुजरना होता है और अंत में उसकी मृत्यु भी होती है. बेचारे पंडित को यर सभी काम कराने होते हैं.

जो पकड़ा गया सो ही चोर. चोरी तो बहुत से लोग करते हैं, जो पकड जाए वही चोर कहलाता है.

जो पजामा सिलाता है, वो मूतने का रास्ता रख लेता है. समझदार आदमी कोई भी काम करता है तो उसमें होनी वाली संभावित परेशानियों का हल पहले ही सोच कर रखता है.

जो पहले कीजे जतन सो पाछे फल दाए, आग लगे खोदे कुआँ कैसे आग बुझाए. आम तौर पर इसका बाद वाला हिस्सा बोला जाता है. यदि पहले से प्रयास किया जाए तभी समय पर कार्य सिद्ध होता है. आग लगने पर कुआं खोदना आरम्भ करोगे तो आग कैसे बुझेगी. इंग्लिश में कहावत है – Dig a well before you are thirsty.

जो पहले मारे सो मीर. लड़ाई में जो पहले मारता है वह मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल कर लेता है.

जो पुरवा पुरबाई पावे, झूरी नदिया नाव चलावे. पूर्वा नक्षत्र में पुरबाई हवा चले तो सूखी नदी में भी नाव चलने लगेगी, अर्थात बहुत वर्षा होगी. (घाघ की कहावतें) 

जो पूत दरबारी भए, देव पितर सब से गए. मुगलों के दरबार में नौकरी करने वालों के लिए कहा गया है कि वे सब संस्कार हीन हो जाते थे.

जो प्रतिपाले सोई नरेसू. जो प्रजा का पालन करे वही राजा कहलाने योग्य है.

जो फल चक्खा नहीं वही मीठा. जो चीज़ अपने को उपलब्ध नहीं है उसको हम बहुत अच्छा समझते हैं.

जो बन आवे सहज में, वाही में चित देय. जो काम आसानी से सिद्ध हो उसी पर ध्यान देना चाहिए.

जो बल से न हो वह कल से हो जावे. कुछ काम ऐसे होते हैं जो कितना भी बल प्रयोग करो नहीं होते, लेकिन युक्ति से या मशीन से फौरन हो जाते हैं.

जो बात से नहीं मरा, वह लात से क्या मरेगा (जो नजर से न मरे वो मार से का मरे). जो सज्जन व्यक्ति है वह केवल अपना दोष बताए जाने से ही लज्जित हो जाता है. जो निर्लज्ज है उसको आप कितना भी बुरा भला कह लो, डांट फटकार लो या लात भी मार लो उस पर कोई असर नहीं होता.

जो बामन की जीभ पर सो बामन की पोथी में. जिस बात से पंडित को लाभ होता हो वही वह पोथी में देख कर बताता है.

जो बिगड़ी बनावे सो बनिया. बनिए जुगाड़ करने में बहुत तेज होते हैं. कोई सामान खराब हो रहा हो उस से भी पैसा कमा लेते हैं.

जो बिजया की निन्दा करे, उसे भखे कालका माई, सिद्धों मरदों पियो प्याला, कूद जाओ नदिया नाला. भंगेड़ी लोग भांग की प्रशंसा में इस प्रकार की बातें करते हैं.

जो बिल्ली पहने दस्ताने, तो चूहे पकड़े कौन. कहावत के द्वारा यह बताया गया है कि घर गृहस्थी या व्यापार के काम नजाकत से नहीं किए जा सकते.

जो बीत गई सो बात गई. जो बात बीत गई उसे भूल जाना चाहिए. (जो चला गया उसे भूल जा).

जो बैरी हों बहुत से और तू होवे एक, मीठा बन कर निकस जा यही जतन है नेक. अगर बहुत से शत्रुओं के बीच फंस जाओ तो मीठी बातें कर के उन्हें खुश करो और वहाँ से सुरक्षित निकल लो.

जो बोले सो कुंडी खोले. घर के भीतर कई लोग बैठे हों और कोई बाहर से दरवाज़ा खटखटाए, तो जो बोलेगा वही कुण्डी खोलेगा. कोई काम करने के लिए कई लोग उपलब्ध हों तो जो आगे बढ़ कर अपनी राय देगा उससे ही काम करने को कहा जाएगा. रूपान्तर – जो बोले सो बछड़ा खोले.

जो बोले सो घी को जाय. किसी काम में मूर्खतापूर्ण हठ की पराकाष्ठ.  मजेदार सन्दर्भ कथा – एक बार चार मूर्खों ने मिलकर रसोई बनाने का इरादा किया. अब इस बात को लेकर उन चारों में झगड़ा होने लगा कि घी कौन लाए. अंत में उन्होंने तय किया कि जो पहले बोलेगा, उसी को घी लाने जाना पड़ेगा. वे चारों मौन साधे बैठे थे तभी एक पहरेदार वहां आ गया. उसने पूछा, तुम लोग कौन हो, यहां क्या कर रहे हो आदि. अपने प्रश्नों का कोई उत्तर न पाकर वह उन्हें पकड़ कर कोतवाली ले गया. वहां कोतवाल के पूछने पर भी जब उन लोगों ने कोई जवाब नहीं दिया, तो उन्हें कोड़े लगाने का हुक्म मिला. उनमें से एक कोड़ा लगते ही जोर से रो उठा. तब बाकी तीनों बोल उठे, बस तुम्हीं घी लेने जाओ.

जो भादों में बरखा होए, काल पछोतर जाकर रोए. भादों में वर्षा हो तो अकाल पिछवाड़े जा कर रोता है अर्थात खूब फसल होती है.

जो भावे न आप को, सो देऊ बहू के बाप को. जो चीज अपने काम की नहीं है वह किसी को उपहार में दे दो. निम्न कोटि की सोच.

जो भौंकते हैं वो काटते नहीं. जो अधिक शोर मचाते हैं वे उतना नुकसान नहीं पहुँचाते.

जो मना करे उसे ही मनुहार कर के खिलाया जाता है. अर्थ स्पष्ट है.

जो माँ से ज्यादा चाहे सो डायन. माँ से अधिक अपनी संतान को कोई नहीं चाह सकता. यदि कोई स्त्री उससे अधिक प्रेम दिखा रही है तो अवश्य ही उस के मन में कपट है.

जो मालिक को काटे वो बटाऊ को क्या बख्शे. मालिक को काटने वाला कुत्ता राहगीर का क्या लिहाज करेगा. अपने स्वामी से विश्वासघात करने वाला सेवक किसी अन्य को क्यों छोड़ेगा.

जो मीठा खाएगा वह कडुआ भी खाएगा. जो किसी चीज़ का लाभ उठाएगा उसे उस से संबंधित कुछ न कुछ कष्ट भी सहने पड़ेंगे.

जो मुसीबतें ढूँढ़ता रहता है, उसे वे मिल भी जाती हैं. जो जान बूझ कर बेबकूफियों के काम करता है वह अंततः परेशानी में जरूर पड़ता है.

जो मैं ऐसा जानती प्रीत किये दुख होए, नगर ढिंढोरा पीटती प्रीत न करियो कोए. प्रेम कर के दुख उठाने वाली स्त्री का कथन.

जो मोय जोते तोड़ मरोड़, बाकी कुठिया देहों फोड़. खेत कहता है, जो किसान मुझे अच्छी तरह तोड़-मरोड़ कर जोतता है, उसको मैं इतनी फसल देता हूँ कि अनाज रखने वाली कुठिया ही टूट जाए.

जो रहीम उत्‍तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग, (चंदन विष व्‍यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग). व्यवहार में इसकी केवल पहली पंक्ति ही बोली जाती है. जो लोग उच्च और दृढ़ चरित्र वाले होते हैं उन पर बुरी संगत का कोई कुप्रभाव नहीं पड़ता. चन्दन के पेड़ पर सांप लिपटे रहते हैं लेकिन उस में विष नहीं फैलता.

जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय, प्‍यादे सों फरजी भयो, टेढ़ों टेढ़ो जाय. रहीम के नीति के दोहे एक से बढ़ कर एक हैं. अधिकतर दोहों में पहली पंक्ति में कोई नीति का उपदेश होता है और दूसरी पंक्ति में उदाहरण दे कर उसे सिद्ध किया जाता है. शतरंज के खेल में जो पैदल मोहरा (प्यादा) होता है वह एक बार में केवल एक घर चल सकता है वह भी सीधा. वही पैदल आखिरी खाने में पहुंच जाए तो वज़ीर (फरजी) बन जाता है और फिर वह आड़ा तिरछा कई घर चल सकता है. कहावत में कहा गया है कि तुच्छ मानसिकता वाले व्यक्ति को यदि बड़ा पद मिल जाए तो वह बहुत इतराने लगता है.

जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय, बारे उजियारी करे बढ़े अंधेरो होय. इस दोहे में बारे के दो अर्थ है – बालपन और जलना. इसी प्रकार बढ़े के दो अर्थ हैं – बड़ा होना और बुझना (दीपक को बुझाने के लिए बाती को बढ़ा देते हैं). कुपुत्र दीपक की भाँति होता है. दीपक जलता है तो प्रकाश देता है बुझता है तो अँधेरा हो जाता है. कुपुत्र बालपन में उल्लास रूपी प्रकाश देता है और बड़े होने पर घर में निराशा रूपी अँधेरा देता है.

जो राजपूत की तलवार से न मरे वह कायस्थ की कलम से मर जाए. एक समय था जब कोर्ट कचहरी का सारा काम कायस्थों के कब्जे में था. वे जिसको चाहे कानूनी दांवपेंचों में फंसा देते थे.

जो राह बताए सो आगे चले. जो किसी परेशानी का हल सुझाए उसे ही आगे कर दिया जाता है.

जो रुचे सो पचे. जो अच्छा लगता है वही पचता है और वही शरीर को लगता है.

जो रोज मरे, उसे कहाँ तक रोए. जिस के दुखों का कोई अंत न हो उस की कितनी सहायता की जा सकती है.

जो वर देख ताप मोहे आवे, सोई वर मोहे ब्याहने आवे. कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि जिस वर को देख कर मुझे बुखार चढ़ जाता है (कष्ट होता है या गुस्सा आता है) वही मुझसे शादी करने आ रहा है. अर्थात जिस काम से मैं हर हाल में बचना चाहती हूँ वही मुझे करना पड़ रहा है.

जो विधि लिखी ललाट पर, मेट सके न कोय. विधि ने जो भाग्य में लिख दिया है उसे कोई मिटा नहीं सकता.

जो विषया संतन तजी, मूढ़ ताहि लपटाय, ज्‍यों नर डारत वमन कर, स्‍वान स्‍वाद सों खाय. संत लोग जिन विषय भोग की वस्तुओं को त्याग देते हैं, मूर्ख सांसारिक लोग उन्हीं में लिपटे रहते हैं. जैसे मनुष्य जो भोजन उल्टी कर देता है कुत्ता उसे स्वाद से खाता है.

जो सबको हुइये, सो हमरो हुइये. जो सबका होगा सो हमारा होगा. सबके साथ हम परिणाम भुगतने को तैयार हैं.

जो सिर उठा कर चलेगा सो ठोकर खाएगा. यहाँ सर उठा कर चलने से अर्थ है अपने चाल चलन में अहंकार प्रदर्शित करना. अर्थ है कि जो अहंकार दिखाएगा उसे नीचा देखना पड़ेगा. चलते समय नीचे देख कर चलना चाहिए अर्थात विनम्र व्यवहार करना चाहिए.

जो सुख चाहो देह का चीजें त्यागो चार, चोरी, चुगली, जामनी और पराई नार. जामनी – किसी की जमानत देना. चैन से रहना चाहते हो तो इन चार चीजों को त्याग दो.

जो सुख छज्जू के चौबारे में, सो न बलख बुखारे में. जो सुख अपने घर और गाँव के लोगों के बीच में मिलता है वह किसी सम्पन्न विदेश में नहीं मिल सकता.

जो सेर से मरे उसे पसेरी क्या मारना. जब छोटे साधन से काम चल सकता हो तो बड़े की क्या जरूरत है.

जो सोवेगा सो खोवेगा, जो जागेगा सो पावेगा. चाहे पढ़ाई हो या व्यापार, जो आलस करेगा और सोएगा उसे कुछ प्राप्त नहीं होगा. जो जागेगा, उद्योग करेगा वही कुछ पाएगा.

जो हतिया पूँछ डुलावे, तौ पैसा पैली बिकावे. हस्त नक्षत्र के जाते समय वर्षा होने पर रबी की फसल को इतना लाभ होता है कि पैसा डोलचों में भर कर मिलता है. पैली – अनाज नापने का नपना.

जो हमरे, सो तुमरे, काहे दांत निपोरे. कोई जब बिना बात किसी को नीचा दिखाना चाहता है तो उस से कहा जाता है कि किसलिये हंस रहे हो. जो मेरे पास है, वही तुम्हारे पास भी है, फिर क्यों मज़ाक बनाते हो.

जो हल जोतै खेती वाकी, और नहीं तो जाकी ताकी. खेती का लाभ उसी को हो सकता है जो स्वयं खेती करे. दूसरों पर खेती छोड़ने से दूसरे लोग ही उसका लाभ उठाते हैं.

जो हांडी में होगा सो रकाबी में आएगा.  कुछ लोग बहुत उतावले होते हैं. कहीं भी कोई काम हो रहा हो वे बार बार पूछते हैं कि क्या हो रहा है, आगे क्या होने वाला है आदि. उनको समझाने के लिए यह कहावत कही जाती है. रकाबी – तश्तरी, थाली.

जोंक की कौन माई कौन बाप. खून चूसने वाले लोग किसी को नहीं छोड़ते व कोई रिश्ता नहीं मानते. 

जोंक को जोंक नहीं लगती (जोंक से जोंक न सटे). समाज के परजीवी लोग केवल मेहनत कर के कमाने वालों का ही खून चूसते हैं, दूसरे परजीवियों का नहीं.

जोग में भोग की आस. ऐसे बनावटी साधुओं पर व्यंग्य जो सुख भोगने की लालसा रखते हैं.

जोगी का बेटा खेलेगा तो साँप से. संपेरे को जोगी भी बोलते हैं. बच्चा अपने घर परिवेश में जो देखता है वही करता है. संपेरे का बेटा सांप से ही खेलेगा. आतंकवादियों के बच्चे बंदूकों से ही खेलते हैं.

जोगी किसके पाहुने, राजा किसके मीत. पाहुना माने अतिथि. सन्यासी किसी के घर टिकते नहीं हैं, वे तो आज यहाँ तो कल वहाँ. ऐसे ही राजा और हाकिम किसी के सगे नहीं होते, जब आपका काम पड़े तो वे काम नहीं आते. इंग्लिश में कहावत है – Kings are always ungrateful.

जोगी किसके मीत और पातुर किसकी नार. पातुर – वैश्या. जोगी किसी के मित्र नहीं होते और वैश्या किसी की पत्नी नहीं होती.

जोगी किसके मीत कलंदर किसके साथी, (जोगी काके मीत, कलन्दर किसके भाई). हिन्दुओं में साधुओं को जोगी कहा जाता है और मुसलमानों में फकीरों और सूफियों को कलंदर कहा जाता है. कहावत का अर्थ है कि ये किसी के मित्र नहीं होते.

जोगी की प्रीत क्या. जोगी से दिल लगाना ठीक नहीं (क्योंकि वह आज यहाँ तो कल और कहीं).

जोगी को बैल बला. जोगी को बैल दान में दे दिया जाए तो वह उस के लिए मुसीबत ही होगा.

जोगी जुगत जानी नहीं, कपड़े रंगे तो क्या हुआ. केवल भगवा कपड़े पहनने से कोई जोगी नहीं हो जाता, उसके लिए योग करना और ज्ञान होना आवश्यक है.

जोगी जुगत से जुग जुग जिए. योगी अपने संयमित जीवन और योग द्वारा लम्बे समय तक जीते हैं.

जोगी जोग को मरे, भोगी भोग को मरे. अर्थ स्पष्ट है.

जोगी जोगी लड़े खप्परों की हानि, (जोगियों की लड़ाई में खप्पर फूटते हैं). खप्पर – मिट्टी का बना भिक्षा मांगने का पात्र, खोपड़ी को भी खप्पर कहते हैं. कहावत का अर्थ है कि यदि किसी संगठन या परिवार के सदस्य आपस में लड़ते हैं तो घर और संगठन की हानि होती है.

जोगी था सो उठ गया आसन रही भभूत. भभूत – जो राख जोगी लोग अपने शरीर पर लगाते हैं (संभवतः विभूति का अपभ्रंश है). किसी व्यक्ति के चले जाने के बाद उसके अवशेष और स्मृतियाँ रह जाते हैं.

जोगी बढ़े, तूमड़ी बोवे (जोगी मंत्री, बुवाए तुम्बी). कोई छोटा आदमी यदि बड़े पद पर पहुँच जाए तो भी उस की सोच नहीं बदलती. जोगी को यदि बड़ी जायदाद मिल जाए तो वह उसमें तूमड़ी (तुम्बी) की खेती करेगा.

जोगी मारे छार हाथ. छार – राख, भभूत. जोगी को मारने से क्या मिलेगा, बस राख ही हाथ आएगी.

जोड़ जोड़ मर जाएंगे, माल जमाई खाएंगे. जो लोग दिन रात पैसा कमाने में लगे रहते हैं उन को समझाया गया है कि तुम तो पैसा जोड़ जोड़ कर मर जाओगे, ये सारा माल तुम्हारे उत्तराधिकारी खाएंगे.

जोड़ना जोड़े, भोगना भोगे. जिस को पैसा जोड़ने की लिप्सा हो वह पैसा जोड़ने में लगा रहता है, जिसे भोग की लालसा हो वह भोग में लगा रहता है.

जोड़ने में बनिया, पहनने में पठान, खाने में बामन, झेलने में किसान.  बनिया पैसा जोड़ने में, पठान कपड़े पहनने में, ब्राहण खाने में और किसान मुसीबतों को झेलने में सबसे माहिर होते हैं.  

जोड़ी टूटे गोटी पिटे. लूडो और चौपड़ के खेल में जब एक खाने में दो गोटियाँ होती हैं तो उन्हें कोई नहीं पीट सकता. जोड़ी में से एक गोटी चलनी पड़ जाए तो अकेली गोटी को पीटा जा सकता है. संगठन में शक्ति है.

जोतेगा हल पावेगा फल. जो खेती में मेहनत करेगा उसी को लाभ मिलेगा.

जोर बादशाह और दाँव वजीर. कुश्ती लड़ने वालों का कथन. ताकत (बादशाह) भी जरुरी है और दाँव (वजीर) भी.

जोरू का मरना और जूती का टूटना बराबर है. कुछ लोगों की सोच इतनी निकृष्ट होती है कि वे पत्नी को जूती के बराबर समझते हैं. वे समझते हैं कि जैसे जूती टूटने पर नई जूती खरीद ली जाती है वैसे ही पत्नी के मरने पर दूसरी पत्नी लाई जा सकती है.

जोरू खसम की लड़ाई, दूध की मलाई. पति पत्नी की लड़ाई मलाई की भांति मजेदार और अस्थायी होती है.

जोरू चिकनी मियाँ मजूर. जहाँ पत्नी बहुत बन ठन कर रहती हो और पति बेचारा काम में पिसता रहता हो.

जोरू टटोले गठरी, माँ टटोले अंतड़ी. पत्नी इस बात की चिंता करती है कि आदमी क्या कमा कर लाया है जबकि माँ इस बात की चिंता करती है कि बेटे ने कुछ खाया है कि नहीं.

जोरू न जाता, अल्लाह मियां से नाता. उन लोगों का मज़ाक उड़ाया गया है जिनके बीबी और औलाद न होने के कारण वे अल्लाह से नाता जोड़ लेते है. तुलसी दास जी ने भी ऐसे लोगों के लिए कहा है – नारी मुई भई सम्पति नासी, मूढ़ मुड़ाए भए सन्यासी.

जोवन था तब रूप था, ग्राहक था सब कोय, जोवन रतन गवांय के, बात न पूछे कोय. जब तक रूप और यौवन था तब तक सब कोई पूछते थे, यौवन बीत जाने के बाद अब कोई नहीं पूछता.

जौ की रोटी गबर गबर, सास से पतोहू जबर. बच्चों का मजाक.

जौ लों भूत गंगाजी गये, तौ लों मरघटा जुत गये. जब तक भूत प्रेत गंगा किनारे वाले श्मशान में गए, तब तक किसी ने मरघट को जोत कर सपाट कर दिया. जब तक एक काम पूरा करते तब तक दूसरा चौपट हो गया.

जौक में शौक दस्तूरी में लड़का. शौक का शौक किया लड़का इनाम में मिल गया. जब अपने मनोरंजन के लिए किए जा रहे किसी काम में अनचाहा लाभ ऊपर से मिल जाए.

ज्यादा खाय जल्द मरि जाय, सुखी रहे जो थोड़ा खाय. जो ज्यादा खाता है वह बीमार हो कर जल्दी मर जाता है, जो कम खाता है वह सुखी रहता है. आज की दुनिया में मोटापा सब से बड़ी बीमारी है.

ज्यादा जोगी मठ उजाड़. (बहुते जोगी मठ उजाड़). अधिक जोगी इकट्ठे हो जाएं तो मठ उजड़ जाता है. ज्यादा हिस्सेदार हों तो व्यापार चौपट हो जाता है. अधिक राय देने वाले हों तो काम चौपट हो जाता है.

ज्यादा दाइयां पेट फाड़ें. प्रसव कराने के लिए पहले दाइयां ही बुलाई जाती थीं. एक से ज्यादा दाइयां हों तो उससे लाभ होने की संभावना कम और खतरा अधिक होता है. 

ज्यादा नौकर, घर उजाड़. ज्यादा नौकर हों तो एक दूसरे से हिर्स करते हैं और एक दूसरे पर काम टालते हैं. घर की अर्थव्यवस्था भी बिगड़ती है.

ज्यादा पढ़े तो घर सों गए, थोड़ा पढ़े सो हर सों गए. हर – हल. ज्यादा पढ़ लिख कर बच्चे बाहर नौकरी करने चले जाते हैं याने घर से जाते हैं और थोड़ा बहुत पढ़ जाएँ तो हल चलाने में शर्म महसूस करने लगते हैं. 

ज्यादा बहुएं बटाऊओं की खातिर थोड़े ही हैं. अगर हमारे घर में अधिक बहुएं हैं तो राहगीरों की सेवा करने के लिए थोड़े ही हैं. चंदा मांगने वाले लोग धनी लोगों से कहते हैं कि आप के पास क्या कमी है. कोई व्यक्ति सम्पन्न है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह अपना धन आलतू फ़ालतू अनजान लोगों में बांट दे. 

ज्यादा मरोड़ने से लोहा भी टूट जाता है. धीर वीर पुरुष भी अत्यधिक अत्याचार या वेदना से टूट जाते हैं.

ज्यादा मेहनत से गधा हो जाता है. इतना अधिक परिश्रम नहीं करना चाहिए कि आदमी गधे से भी गया गुजरा हो जाए.

ज्यादा रंभाने वाली गाय दूध कम देती है. जो लोग शोर अधिक मचाते है वे काम कम करते हैं.

ज्यादा लज्जा करे छिनाल. चरित्रहीन स्त्री अधिक लज्जावान होने का दिखावा करती है.

ज्यादा लाड़ से बालक बिगड़े. बच्चों को लाड़ प्यार करना चाहिए लेकिन इतना अधिक नहीं कि वे बिगड़ जाएँ.

ज्यादा सेवा ओछा फल. किसी की भी सेवा एक सीमा तक ही करना चाहिए. फ़ालतू की चमचागिरी वाली सेवा का फल अच्छा नहीं होता.  

ज्यादा हाथ अच्छे, ज्यादा मुँह नहीं अच्छे. काम में हाथ बताने वाले जितने अधिक हों उतना अच्छा, खाने वाले और बातें करने वाले जितने अधिक हों उतना बुरा. (मुँह से अर्थ खाने से भी है और बातें बनाने से भी).

ज्यादा होशियार ज्यादा ठगा जाता है. जो अपने को अधिक बुद्धिमान समझता है और किसी पर विश्वास नहीं करता वह अधिक ठगा जाता है.  

ज्यों ज्यों कंचन तापिए, त्यों त्यों निर्मल होए. सोने को जितना तपाएं उतना शुद्ध हो जाता है. श्रेष्ठ लोग कठिनाइयों से जूझ कर और महान हो जाते हैं.

ज्यों ज्यों बड़ा हो त्यों त्यों पत्थर पड़ें. यहाँ पत्थर पड़ने से अर्थ अक्ल पर पत्थर पड़ने से है. ऐसा व्यक्ति जो बड़ा होने के साथ और अधिक मूर्खतापूर्ण व्यवहार करे.

ज्यों ज्यों बाय बहे पुरवाई, त्यों त्यों घायल अति दुख पाई. पुरबाई हवा चलने से चोटों का दर्द बढ़ जाता है.

ज्यों ज्यों मुर्गी मोटी होए, त्यों त्यों दुम सिकुड़े. जैसे जैसे व्यक्ति के पास पैसा बढ़ता है, वह कंजूस हो जाता है.

ज्यों तिल मांही तेल है, ज्यों चकमक में आग, तेरा सांई तुझमें, जाग सके तो जाग. तिल में तेल होता है पर ऊपर से नहीं दिखता, चकमक में से आग पैदा होती है पर चकमक के अंदर दिखाई नहीं देती. इसी प्रकार ईश्वर मनुष्य के मन में होता है पर वह उसे देख ही नहीं पाता.

ज्यों नकटे को आरसी देख होत है क्रोध. आरसी का अर्थ है छोटा दर्पण. नकटे को कोई शीशा दिखाए तो उसे गुस्सा आता है. किसी को उसकी कमी का एहसास कराओ तो उसे गुस्सा आता है.

ज्यों-ज्यों भीजे कामरी त्यों-त्यों भारी होय. 1.कम्बल जैसे जैसे भीगता है वैसे वैसे भारी होता जाता है. इसी प्रकार अधिक हठ या बहस करने से नाराजगी बढ़ती जाती है. 2. मनुष्य संसार में जितना ही लिप्त होकर रहता है उतना ही पाप का बोझ बढ़ता जाता है. इसकी पहली पंक्ति है – अति हठ मत कर हठ बढे, बात न करिहै कोय.

ज्वर, याचक और पाहुना, करजा मांगनहार, लंघन तीन कराए दो, फेर न आवें द्वार. लंघन कराना – भूखा रखना. पहले के लोग मानते थे कि भूखा रहने से ही बुखार उतरता है. कहावत में यह सुझाव दिया गया है कि कर्ज़ मांगने वाले, भीख मांगने वाले और मेहमान को तीन-चार बार टरका दो तो वह फिर नहीं आएगा.

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