क्ष त्र ज्ञ
क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात. जो धीर गम्भीर और बड़े लोग हैं उन्हें अपने से छोटों की उद्दंडता को क्षमा कर देना चाहिए.
क्षिति जल पावक गगन समीरा, पञ्च तत्व से बना सरीरा. यह शरीर पांच तत्वों से मिल कर बना है – धरती, जल, अग्नि, आकाश और वायु.
क्षुद्र नदी जल भर उतराई. छोटी पहाड़ी नदी पानी भरने से उफन जाती है. ओछा व्यक्ति थोड़ा धन या ज्ञान पा कर इतराने लगता है.
क्षुधा कारने मर्यादाहीन. भूख के आगे मर्यादा भुलानी पड़ती है.
त्रियाचरित्र न जानै कोय. खसम मारि कै सत्ती होय. स्त्री के चरित्र को कोई नहीं जान सकता, वह किस बात पर जान की दुश्मन हो जाए और किस बात पर जान दे दे (पति को मार कर फिर उस के साथ सती हो जाए).
ज्ञान गले फंस जात, जब घर में ना हो नाज. यदि घर में खाने को अनाज न हो तो ज्ञान ध्यान सब गले की फांस बन जाता है.
ज्ञान गिने सो मूरख हारे, वो जीते जो पहले मारे. जो व्यक्ति तरह तरह की नीति अनीति की बात सोचता रहता है वह हार जाता है, जो पहले बढ़ कर मारता है वही जीतता है.
ज्ञान घटे जड़ मूढ़ की संगत, ध्यान घटे बिन धीरज लाए. मूर्ख व्यक्ति की संगत करने से ज्ञान घटता है और धैर्य न रखने से ध्यान नहीं लगा सकते.
ज्ञान ध्यान सबै बिसरौ जब हाथ पड़ी हल की मुठिया. हल चलाने जैसा कठिन काम करना पड़े तो ज्ञान ध्यान सब भूल जाता है.
ज्ञान बटोल लीजिए लेकिन पहले टटोल लीजिए. ज्ञान कहीं से भी मिले उसे ग्रहण करना चाहिए, लेकिन उसे आत्मसात करने से पहले उस के अच्छे बुरे पहलुओं पर विचार कर लेना चाहिए.
ज्ञान बढ़े सोच से, रोग बढ़े भोग से. चिंतन करने से ज्ञान बढ़ता है और भोग से रोग बढ़ते हैं. अर्थात आध्यात्मिक चिंतन वाला व्यक्ति ज्ञानी बनता है और भोग में फंसे रहने वाला व्यक्ति रोगी बन जाता है.
ज्ञान मुक्ति को द्वार है, मोह बंध को मूल. ज्ञान से मुक्ति मिलती है जबकि मोह बंधन की जड़ है.
ज्ञानी को ज्ञानी मिलै, रस की लूटम लूट, आनी को आनी मिलै, हौवै माथा कूट. ज्ञानी को ज्ञानी मिलता है तो ज्ञान की चर्चा में रस की धार बहती है, अहंकारी को अहंकारी मिलता है तो दोनों में अहं का टकराव होता है.
ज्ञानी से ज्ञानी मिले करे ज्ञान की बात, गदहे से गदहा मिले मारें लातई लात. ज्ञानी से ज्ञानी मिलता है तो दोनों ज्ञान की चर्चा करते हैं. गधे से गधा मिलता है तो एक दूसरे को लात मारते हैं.