एक बार भगवान राम अपनी ससुराल जनकपुरी गए. काफी दिन बीत गए पर सास जी स्नेहवश उन्हें जाने नहीं दे रही थीं. इधर दशरथ जी को भी प्रिय पुत्र और पुत्रवधू का मुँह देखे बिना बेचैनी होने लगी. सीधे सीधे बुलावा भेजना मर्यादा के विरुद्ध था. तो जनक जी के पास एक चिट्ठी भेजी कि कृपया एक कुमानुष हमारे यहाँ भेज दीजिए. जनकजी के दरबार में तरह तरह के डोम, बहेलिए, भिश्ती, जुलाहे, सफाईकर्मी, मल्लाह इत्यादि बुलाए गए. उन सब ने कहा कि राजन, हम तो समाज के लिए बहुत उपयोगी मनुष्य हैं, हम कुमानुष कैसे हो सकते हैं. हार कर जनक जी ने उन लोगों से पूछा, तो कुमानुष कौन हुआ. तब उन में से एक ने बताया – कुमानुस कहें काको, ससुरार में बसे ताको. राजा जनक फ़ौरन समझ गए कि राम का बुलावा है और उन्हों ने प्रेमपूर्वक राम को विदा कर दिया.
कुमानुस कहें काको, ससुराल में बसे बाको
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