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इंचा खिंचा वह फिरे, जो पराए बीच में पड़े. जो दूसरों के मसलों में बीच में पड़ता है वह खुद ही परेशानी में पड़ जाता है (अपनी टांगें खिंचवाता है) .
इंतजार का फल मीठा. जो उतावली न कर के प्रतीक्षा करता है उसे लाभ अवश्य मिलता है.
इंदर का बरसा, माता का परसा. खेत बादल बरसने से ही भरता है और पेट माँ के परसने से ही भरता है.
इंशाअल्लाहताला, बिल्ली का मुँह काला. मुस्लिम लोग मुँह से कोई गन्दी बात निकल जाए तो ऐसा कहते हैं.
इंसान अपने दुख से इतना दुखी नहीं है जितना औरों के सुख से है. अर्थ स्पष्ट है.
इंसान जन्म से नहीं कर्म से महान होता है. अर्थ स्पष्ट है. हिन्दू धर्म जन्म को नहीं कर्म को प्रधानता देता है.
इंसान बनना है तो दारू पियो, दूध तो साले कुत्ते भी पीते हैं. यूँ तो शराब पीने वाले अपने आप को सही ठहराने के लिए बहुत से बहाने बताते हैं पर इस से ज्यादा मजेदार शायद ही कोई होगा.
इक कंचन इक कुचन पे, को न पसारे हाथ. सोने पर और स्त्री के शरीर पर कौन हाथ नहीं पसारता. कुच – स्तन.
इक तो बड़ों बड़ों में नाँव, दूजे बीच गैल में गाँव, ऊपै भए पैसन से हीन, दद्दा हम पै विपदा तीन. कोई सज्जन अपनी तीन विपदाएं बता रहे हैं – एक तो लोग हमें धनी समझते हैं (इसलिए सहायता मांगने आते हैं), दूसरे मुख्य मार्ग पर गाँव स्थित है (इसलिए अधिक लोग आते हैं) और तीसरे यह कि अब हम पर अब धन नहीं रहा.
इक तो बुढ़िया नचनी, दूजे घर भया नाती. बुढ़िया नाचने की शौक़ीन थी और ऊपर से घर में पोते का जन्म हो गया तो वह नाचे ही जा रही है. किसी सुअवसर पर अधिक प्रसन्न होने वालों पर व्यंग्य.
इक नागिन अरू पंख लगाई. एक खतरनाक चीज़ जब और खतरनाक हो जाए.
इकली लकड़ी ना जले, नाहिं उजाला होय. अकेला व्यक्ति कोई महत्वपूर्ण काम नहीं कर सकता.
इक्का, वकील और गधा, पटना शहर में सदा. किसी भुक्तभोगी ने पटना शहर की तारीफ़ यह कह कर की है कि वहाँ इक्के, वकील और गधे हमेशा मिलते है.
इक्के चढ़ कर जाए, पैसे दे कर धक्के खाए. इक्के की सवारी में धक्के बहुत लगते थे, उस पर मजाक.
इक्के दुक्के का अल्लाह बेली. पुराने समय में यात्रा पर जाने वाले लोग समूह में तो सुरक्षित होते थे पर यदि वे अकेले दुकेले हों तो चोर डाकुओं के आतंक से भगवान ही उनका रक्षा कर सकता था. सन्दर्भ कथा – फरीदा नाम की एक बुढ़िया जंगल से होकर जाने वाली एक सड़क के किनारे अपने बदमाश लड़कों के साथ झोपड़ी डाल कर रहती थी. उस के लड़के दिन के समय पास के एक नाले के पीछे छिपे रहते थे. जब उस सड़क से कोई इक्का दुक्का मुसाफिर निकलते थे तो वह जोर से बोलती – इक्के दुक्के का अल्ला बेली. उसके डकैत बेटे समझ लेते कि कोई अकेला-दुकेला मुसाफिर है. वे नाले से निकलकर उसे लूट लेते थे. जब यात्री समूह में होते तो बुढ़िया पुकारती – जमात में करामात है. डकैत समझ जाते कि बहुत सारे हैं और छिपे रहते. इसी तरह बहुत दिनों तक चलता रहा. आखिर एक दिन उसके सब डाकू बेटे पकड़े गए और फांसी पर चढ़ा दिए गए. इस पर बुढ़िया को बड़ा पछतावा हुआ और अपने छली जीवन से उसे घृणा हो गई. अपने पास के पैसों से उसने उस नाले का पुल बनवा दिया. बुढ़िया के नाम पर उस जगह का नाम फरीदाबाद पड़ गया.
इज्जत भरम की, कमाई करम की, लुगाई सरम की. बाजार में जो आदमी जितनी हवा बना कर रखता है उस की उतनी अधिक इज्जत होती है, कमाई अपने भाग्य से होती है या अपने कर्म से होती है (यहाँ करम का अर्थ कर्मफल अर्थात भाग्य से भी है और उद्यम से भी) और स्त्री लज्जाशील ही अच्छी होती है. भरम – भ्रम.
इज्जत मांगने से नहीं मिलती. मान सम्मान मांगने से नहीं मिलता, कड़ी मेहनत से मिलता है. रूपान्तर – इज्जत हुकुम देने से नहीं मिलती. इंग्लिश में कहा है – Respect is earned not commanded.
इज्जत वाले की कमबख्ती है. जिसकी कोई इज्जत नहीं उसे कोई चिंता नहीं, प्रतिष्ठित व्यक्ति को ही अपनी साख बचाने के लिए सब झंझट करने पड़ते हैं.
इडिल-मिडिल की छोड़ो आस, लेऊ खुरपिया खोदो घास. पहले जमाने में आठवाँ पास को मिडिल पास कहते थे. जिस का मन पढ़ाई में न लग रहा हो उस से बड़े बूढ़े कह रहे हैं कि तुम तो खुरपा पकड़ो और घास खोदो.
इतना ऊपर न देखो की सर पर रखा टोप ही नीचे गिर जाय. आदमी को अपनी हैसियत से ज्यादा का सपना नहीं देखना चाहिए.
इतना कहना मान सहेली, पर नर संग न बैठ अकेली. पराए पुरुष के साथ में बैठने से स्त्री बदनाम हो जाती है.
इतना नफा खाओ जितना आटे में नोन. व्यापार में थोड़ा ही मुनाफा खाना चाहिए. ज्यादा मुनाफाखोरी से व्यापार चौपट हो सकता है और लोगों की हाय भी लगती है.
इतना हंसिए कि रोना न पड़े (इतना न हंसो कि रोना पड़े). सफलता मिलने पर या किसी शुभ अवसर पर बहुत अधिक खुश नहीं होना चाहिए. समय बड़ा बलवान है, कभी भी पलट सकता है.
इतनी चिकनी हांडी होती तो कुत्ते न चाट लेते. इतना आसान काम होता तो भी ऐरा गैरा भी कर लेता.
इतनी बड़ाई और फटी रजाई. जो लोग डींगें बहुत हांकते हैं और अन्दर से खोखले होते हैं.
इतनी सी जान गज भर की जबान. जब कोई लड़का या छोटा आदमी बहुत बढ़-चढ़ कर बातें करता है.
इत्तेफाक से कुतिया मरी, ढोंगी कहे मेरी बानी फली. कुतिया तो इत्तेफाक से मरी थी, ढोंगी बाबा को यह कहने का मौका मिल गया कि देखो मैंने श्राप दिया इसलिए मर गई. संयोग का फायदा उठाने वाले कुटिल लोगों के लिए.
इधर का दिन उधर उग आया. आशा के विपरीत लाभ किसी और को हो गया.
इधर काटा उधर पलट गया. सांप के लिए कहते हैं कि वह काटते ही पलट जाता है तभी उसका जहर चढ़ता है. इस कहावत को ऐसे आदमी के लिए प्रयोग करते हैं जो धोखा देता है और अपनी बात पर कायम नहीं रहता.
इधर कुआं उधर खाई. (आगे कुआं पीछे खाई) (इधर गिरूँ तो कुआं, उधर गिरूँ तो खाई). जब व्यक्ति किसी ऐसी परिस्थिति में फंस जाए जिसमें दोनों ही विकल्प खतरनाक हों तब यह कहावत प्रयोग की जाती है
इधर के बराती, न उधर के न्योतार. कहीं के भी नहीं.
इधर तलैया उधर बाघ. दोनों ओर संकट का होना.
इधर न उधर यह बला किधर. जब कोई अत्यधिक बीमार व्यक्ति न मरे न ही ठीक हो, तब कहते हैं.
इन तिलों में तेल नहीं. निचुड़ा हुआ आदमी.
इन नैनन का यही विसेख, वह भी देखा यह भी देख. इन आँखों की विशेषता यही है कि ये अच्छा भी देखती हैं और बुरा भी. तात्पर्य है कि व्यक्ति को अच्छे बुरे सभी तरह के दिन देखने पड़ते हैं.
इनकी नाक पर गुस्से का मस्सा. जो लोग हर समय गुस्से में रहते हैं उन पर व्यंग्य.
इनको भी लिखो. कोई व्यक्ति मूर्खतापूर्ण प्रश्न करे तो उस का मजाक उड़ाने के लिए. सन्दर्भ कथा – एक बार अकबर बादशाह ने बीरबल से पूछा कि संसार में अंधों की संख्या अधिक है या आंख वालों की. बीरबल ने जवाब दिया – जहांपनाह, अंधों की संख्या अधिक है. बादशाह ने कहा – साबित करो. बीरबल राज महल के दरवाजे पर बैठ गए और जूते गांठने लगे. एक मुंशी को उन्होंने अपनी बगल में बिठा लिया. वहाँ से निकलने वालों में जो यह पूछता कि आप यह क्या कर रहे हैं, उसका नाम तो अंधों में लिखवाते और जो पूछता कि आज आप जूते कैसे गाँठ रहे हैं, उनका नाम आँख वालों में. कुछ देर बाद अकबर वहाँ से गुजरे. उनहोंने भी पूछा बीरबल यह क्या कर रहे हो. बीरबल ने मुंशी से कहा, इनको भी लिखो. अकबर ने कहा, क्या मतलब? बीरबल ने तुरंत उनको अपनी लिस्ट दिखाई. अंधों की लिस्ट आँख वालों से बहुत लम्बी थी.
इन्दर की जाई पानी को तिसाई. जाई – बेटी, तिसाई – प्यासी (तृषित). वर्षा के देवता इंद्र की पुत्री पानी को तरस रही है. जहाँ किसी वस्तु की अधिकता होनी चाहिए वहाँ उसकी कमी हो तो.
इन्दर राजा गरजा, म्हारा जिया लरजा. बरसात आने पर गल्ले का व्यापारी घबरा रहा है कि सामान कहाँ रखूँ, जो भीग कर खराब न हो. (कुम्हार के लिए भी).
इब्तदाये इश्क है रोता है क्या, आगे- आगे देखिए होता है क्या. किसी काम को शुरू करने पर जो लोग ज्यादा उत्साह दिखाते हैं या ज्यादा घबराते हैं उन के लिए.
इमली के पत्ते पे कुलाबाती खाओ. इमली का पत्ता बहुत छोटा सा होता है, उस पर कुलाबाती (कलाबाजी, forward roll) करने का आशीर्वाद दिया जा रहा है. अवसर चूके व्यक्ति के लिए प्रायः व्यंग्य में प्रयुक्त.
इमली बूढ़ी हो जाए पर खटाई नहीं छोड़ती. बूढ़ा होने पर भी व्यक्ति का स्वभाव नहीं बदलता.
इराकी पर जोर न चला, गधी के कान उमेठे. इराकी – घुड़सवार. कायर लोग ताकतवर पर वश न चले तो कमज़ोर पर ताकत दिखाते हैं.
इर्ष्या द्वेष कभी न कीजे, आयु घटे तन छीजे. किसी से ईर्ष्या करने पर उसका कोई नुकसान नहीं होता, अपना स्वास्थ्य खराब होता है और आयु कम होती है. दूसरों की सुख समृद्धि देख कर जलना नहीं चाहिए..
इलाज से बड़ा परहेज. परहेज का महत्त्व दवा से भी अधिक है. इंग्लिश में – Prevention is better than cure.
इल्म का परखना और लोहे के चने चबाना बराबर है. किसी की सही योग्यता जान पाना बहुत कठिन है.
इल्म थोड़ा, गरूर ज्यादा. अल्पज्ञानी और अहंकारी व्यक्ति के लिए.
इल्लत जाए धोए धाय, आदत कभी न जाए. गन्दगी तो धोने से छूट सकती है पर गन्दी आदत कभी नहीं छूटती. इंग्लिश में कहते हैं – Old habits die hard.
इल्ली मसलने से आटा वापस नहीं मिलता. इल्ली कहते हैं अनाज में पलने वाले लार्वा को. यह बहुत तेज़ी से अनाज को खाता है. लेकिन अगर हम गुस्से में इल्ली को मसल दें तो वह अनाज वापस नहीं मिल सकता. किसी ने हमारा नुकसान किया हो तो उस को नुकसान पहुँचाने से अपने नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती.
इश्क और मुशक छिपाए नहीं छिपते. प्रेम और दुश्मनी छिपाने से नहीं छिपते (प्रकट हो ही जाते हैं). रहीम ने इसे और विस्तार से इस प्रकार कहा है – खैर, खून, खांसी, खुसी, बैर, प्रीत, मदपान; रहिमन दाबे न दबें, जानत सकल जहान. कत्थे का दाग, खून, खांसी, ख़ुशी, दुश्मनी, प्रेम और शराब पीना ये सब छिपाने से नहीं छिपते.
इश्क का मारा फिरे बावला. प्रेम का रोग जिसको लग जाए वह उचित अनुचित का बोध खो देता है.
इश्क की मारी कुतिया कीचड़ में लोटती है. विशेषकर दुश्चरित्र स्त्री की ओर संकेत है कि वह अपने प्रेमी को पाने के लिए कुछ भी कर सकती है.
इश्क की मारी गधी धूल में लोटे. गधी को भी इश्क हो जाए तो वह अपने काबू में नहीं रहती. प्रेम करने वालों पर व्यंग्य. ऊपर वाली कहावत में दुश्चरित्र स्त्री पर व्यंग्य किया गया है जबकि इस कहावत में मूर्ख स्त्री पर.
इश्क के कूचे में आशिक की हजामत होती है. प्रेम के चक्कर में आदमी लुट जाता है.
इश्क ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के. इश्क के चक्कर में पड़ कर अच्छे खासे कामकाजी लोग भी बरबाद हो जाते हैं. कोई अन्य परेशानी होने पर भी लोग मजाक में ऐसा बोलते हैं.
इश्क मुश्क खांसी ख़ुशी, सेवन मदिरा पान, जे नौ दाबे न दबें, पाप पुण्य औ स्यान. (बुन्देलखंडी कहावत) स्यान – चालाकी. प्रेम, शत्रुता, खांसी, ख़ुशी, मदिरा सेवन, पाप, पूण्य और चतुराई, ये सब छिपाने से नहीं छिपते.
इश्क में शाह और गधा बराबर. अर्थात दोनों की ही अक्ल घास चरने चली जाती है.
इस गाँव की चिरई, उस गाँव उड़ान. कोई व्यक्ति दूर दूर तक हाथ पैर मारे तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
इस घर का बाबा आदम ही निराला है. किसी घर के रीति रिवाज़ दुनिया से अलग हों तो.
इस दुनिया के तीन कसाई, पिस्सू, खटमल, बामन भाई. ये तीनों ही लोगों का खून चूसते हैं.
इस देवी ने बहुत से भक्त तारे हैं. किसी कुलटा स्त्री के प्रति व्यंग्य.
इस नदिया का यहि व्यौहार, खोलो धोती उतरो पार. कभी कभी व्यक्ति ऐसी परिस्थितियों में फंस जाता है कि उसे अपनी मर्यादा और गरिमा से नीचे जा कर भी काम करना पड़ता है.
इस मुर्दे का पीला पाँव, के पीछे पीछे तुम भी आओ. कुछ चोर सोने की मूर्ति चुरा कर अर्थी बना कर ले जा रहे थे. संयोग से मूर्ति का पैर दिखने लगा तो किसी आदमी ने यह सवाल पूछा. चोरों को लगा कि इस आदमी को शक हो गया है तो उस से बोले कि तुम भी साथ आ जाओ, तुम्हें भी हिस्सा दे देंगे. किसी घोटाले के उजागर होने पर घोटाला करने वाला हिस्सा देने की बात कहे तो यह कहावत कही जाती है. सन्दर्भ कथा 32. कुछ चोरों ने एक मंदिर से सोने की आदमकद मूर्ति चुराई. अब उसे शहर के बाहर अपने अड्डे तक ले कैसे जाएँ? तो उन्होंने इस के लिए एक नायाब तरीका निकाला. उन्होंने एक अर्थी बनाई और उस पर मूर्ति को रखा और बाकायदा कपड़ा ढक कर राम नाम सत्य बोलते हुए ले जाने लगे. राह में कुछ राहगीर भी अर्थी के साथ हो लिए.
संयोग से पैर के ऊपर ढंका कपड़ा कुछ उघड़ गया और मूर्ति का पैर दिखने लगा. किसी आदमी ने यह देखा तो पूछा कि इस मुर्दे का पाँव पीला कैसे है. चोरों को लगा कि इस आदमी को शक हो गया है तो उस से बोले कि तुम भी साथ आ जाओ, तुम्हें भी हिस्सा दे देंगे. किसी घोटाले के उजागर होने पर घोटाला करने वाला हिस्सा देने की बात कहे तो यह कहावत कही जाती है.
इस हाथ घोड़ा, उस हाथ गधा. जो आदमी जल्दी खुश हो जाए और उतनी ही जल्दी नाराज भी हो जाए.
इस हाथ ले, उस हाथ दे. इस का अर्थ दो प्रकार से है – एक तो यह कि धन संपत्ति के लिए अधिक लोभ और मोह नहीं करना चाहिए, यदि हम समाज से बहुत कुछ लेते हैं तो समाज को बहुत कुछ देना भी चाहिए. दूसरा यह कि उधार ली हुई रकम जितनी जल्दी हो सके लौटा देनी चाहिए. इस से मिलती जुलती कहावत है – क्या खूब सौदा नकद है, इस हाथ ले उस हाथ दे. अर्थात नकद सौदा है, इस हाथ पैसा दो उस हाथ माल लो.
इहाँ कुम्हड़बतिया कोऊ नाहीं, जे तर्जनी देखि मुरझाहीं. यहाँ कोई छुईमुई की पत्तियाँ नहीं है जो तुम्हारी उँगली देख कर मुरझा जाएंगी. राम ने जब शिवजी का धनुष तोड़ दिया तो परशुराम आ कर बहुत क्रोधित होने लगे. तब लक्ष्मण ने उन को ललकारते हुए यह कहा. कहावत का अर्थ है कि आप अपने को बहुत बलशाली समझते हो पर हम भी आप से कम नहीं है.
इहाँ न लागहिं राउरि माया. यहाँ आप की जालसाजी नहीं चलेगी. राउरि – आपकी.
इहाँ भी कद्दू उहाँ भी कद्दू, कद्दू की तरकारी, कौन घाट पे उतरा कद्दू, आय गया ससुरारी. एक व्यक्ति अपने घर में रोज रोज कद्दू की तरकारी खा के परेशान हो गया तो इस उम्मीद से ससुराल गया कि वहाँ कुछ अच्छा खाने को मिलेगा. लेकिन बदकिस्मती से उसे वहाँ भी कद्दू खाने को मिला.
इहि काल बली सौं बली नाहिं कोय. काल जितना बलवान कोई नहीं है.
इहे चाची झगड़ा लगाएँ, इहे चाची झगड़ा छुड़ाएं. उन धूर्त स्त्रियों के लिए जो परिवार के दो लोगों के बीच झगड़ा शुरू कराती हैं और फिर झगड़ा सुलटा कर सब की अच्छी बन जाती हैं.