- आ गई तो ईद बरात नहीं तो काली जुम्मेरात। भाग्य ने साथ दिया तो मौज ही मौज वरना परेशानी तो है ही.
- आ पड़ोसन लड़ें. जो लोग बिना बात लड़ने पर उतारू रहते हैं उनके लिए.
- आ बला गले लग. जबरदस्ती मुसीबत बुलाना.
- आ बे पत्थर पड़ मेरे गाँव. जबरदस्ती मुसीबत मोल लेना.
- आ बैल मुझे मार। बिना बात किसी को उकसाना.
- आँख एक नहीं, कजरौटा दस-दस। कजरौटा – काजल रखने की डिब्बी. आवश्यकता के बिना आडम्बर की वस्तुएं इकट्ठी करना.
- आँख ओट पहाड़ ओट। जो आँखों से दूर हो जाता है वह बहुत दूर हो जाता है.
- आँख और कान में चार अंगुल का फ़र्क़। (अंतर अंगुली चार का आँख कान में होए) देखे और सुने में बहुत अंतर होता है. सुना हुआ अक्सर गलत हो सकता है इस लिए देखे बिना किसी बात पर विशवास नहीं करना चाहिए.
- आँख का अंधा गाँठ का पूरा। यहाँ पर आँख का अंधा का अर्थ है मूर्ख. गाँठ का पूरा याने जिसकी धोती की गाँठ में खूब पैसे बंधे हों. धनी परन्तु मूर्ख व्यक्ति (जिसको आसानी से ठगा जा सके).
- आँख के अंधे नाम नयनसुख। गुण के विरुद्ध नाम.
- आँख न दीदा, काढ़े कसीदा। किसी काम को करने का शऊर न होने पर भी वह काम करना.
- आँख न नाक, बन्नी चाँद सी. अपनी चीज़ जैसी भी हो, बढ़ा चढ़ा के बताना.
- आँख फड़के दहिनी, मां मिले कि बहिनी, आँख फड़के बाँई, भाई मिले कि सांई. दाहिनी आँख फड़कती है तो माँ या बहन से मुलाकात होती है, बांयी आँख फड़के तो भाई या पति से.
- आँख फूटी पीर गयी। किसी की आँख बहुत लम्बे समय से बहुत तकलीफ दे रही है और ठीक भी नहीं हो रही है. अंततः आँख की रौशनी चली जाती है पर तकलीफ ख़तम हो जाती है. उसे आँख जाने का दुःख तो है पर पीड़ा ख़तम होने का सुख भी है. कोई नालायक बेटा बहू माँ बाप को बहुत परेशान कर रहे हैं. अंत में वे अलग हो जाते हैं, ऐसे में पिता यह कहावत कहता है.
- आँख फूटे भौंह नहीं भाती. जब तक आँखें होती हैं तब तक भौंह अच्छी लगती हैं, आँख फूट जाए तो भौंह भी अच्छी नहीं लगती. जैसे लड़की की म्रत्यु हो जाए तो दामाद अच्छा नहीं लगता.
- आँख फूटेगी तो क्या भौं से देखेंगे. मुख्य वस्तु नहीं रहेगी तो किस चीज़ से काम चलाएंगे.
- आँख फेरे तोते की सी, बातें करे मैना की सी. जो व्यक्ति बातें तो मीठी करे पर प्रेम न करता हो.
- आँख बची माल दोस्तों का। ऐसे धोखे बाज दोस्तों के लिए जो मौका मिलते ही चूना लगाने से बाज नहीं आते.
- आँख सुख कलेजे ठंडक। जिन चीजों को देखने से आँखों को सुख मिलता है उनसे कलेजे को भी ठंडक (हृदय को शान्ति) मिलती है.
- आँख से दूर, दिल से दूर. प्रेम बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि मिलते जुलते रहा जाए. बहुत दिन तक दूर रहने से स्नेह भी कम हो जाता है.
- आँखें हुईं चार तो मन में आया प्यार, आँखें हुईं ओट तो जी में आया खोट. जब तक व्यक्ति सामने रहता है तब तक उससे प्रेम बना रहता है. दूर हो जाने पर वह बात नहीं रहती.
- आँखों का नूर, दिल की ठंडक. अत्यधिक प्रिय व्यक्ति.
- आँखों के आगे नाक, तो सूझे क्या ख़ाक। विवेक के आगे जब व्यक्ति का अहम आ जाता है तो उसे कुछ भला बुरा नहीं दीखता.
- आँखों के आगे पलकों की बुराई। किसी व्यक्ति के सामने उसके बहुत प्रिय व्यक्ति की बुराई करना.
- आँखों देखे सो पतियाय. स्वयं अपनी आंखों से देख कर ही किसी बात पर पूरी तरह से विश्वास किया जा सकता है. (seeing is believing.)
- आँखों पर पलकों का बोझ नहीं होता। अपने प्रिय व्यक्ति के लिए कुछ करना पड़े तो हमें उसका बोझ नहीं लगता इस कहावत को इस प्रकार भी कहा गया है गाय को उसके सींग भारी नहीं होते.
- आँसू एक नहीं कलेजा टूक-टूक। दिखावटी शोक. शोक बहुत दिखा रहे हैं और आंसू एक भी नहीं आ रहा है.
- आंत भारी तो माथ भारी। पेट में भारीपन हो तो सर भी भारी होता है
- आंधर कूकर, बतास (हवा) भूँके. अँधा कुत्ता हवा चलने पर भौंकने लगता है. अंधा व्यक्ति शक्की हो जाता है (क्योंकि वह देख नहीं पाता इसलिए बात बात पर शक करता है). इस का अर्थ यह भी हो सकता है कि अन्धविश्वासी व्यक्ति को अनजाने भय बहुत सताते हैं (भूत प्रेत आदि).
- आंधर कूटे, बहिर कूटे, चावल से काम. काम चाहे कैसे भी हो, काम होने से मतलब.
- आंधर के गाय बियाइल, टहरी (मटकी) लेके दौरलन. अंधे की गाय ब्याही तो सब मटकी ले कर दौड़े चले आ रहे हैं. अर्थ है कि मजबूर आदमी का सब फायदा उठाना चाहते हैं.
- आंधी आवे बैठ जाए, पानी आवे भाग जाए. सीख दी गई है – आंधी आने पर बैठ जाओ, खड़े रहने पर गिर सकते हो. पानी बरसे तो वहाँ से हट जाओ, खड़े हो कर भीगो नहीं.
- आंधी के आगे पंखे की हवा. उसी अर्थ में है जैसे कहते हैं – सूरज को दिया दिखाना.
- आंधी के आम और ब्याह के दाम किसने गिने हैं। शादी में अनाप-शनाप खर्च होता है इस बात को आंधी में अनगिनत आम टूटते हैं इस बात की उपमा देकर बताया गया है.
- आंधी
के आम. कोई वस्तु
बहुत अधिक मात्रा में और कम दाम में मिल जाए तो.
- आंधी में पेड़ गिर जाते हैं घास बच जाती है। जो लोग कठिन परिस्थितियों में लचीला रुख अपनाते हैं वह उन परिस्थितियों से सफलतापूर्वक बाहर निकल आते हैं जो अड़ियल रुख अपनाते हैं वे समाप्त हो जाते हैं.
- आई तो रमाई, नहीं तो फ़कत चारपाई. मिल गया तो मौज कर लो नहीं तो शांति से बैठो. (रमाई मतलब धूनी रमाई).
- आई तो रोजी नहीं तो रोजा। भाग्य ने साथ दिया तो रोजी रोटी मिल जाएगी नहीं तो भूखे रहना पड़ेगा.
- आई थी मिलने, बिठाली दलने। आप किसी से ऐसे ही मिलने जाएँ और वह आप को किसी काम में लगा ले. (दलने का मतलब दाल दलने से है).
- आई न गई, कौन नाते बहिन. जबरदस्ती रिश्ता जोड़ने वाले के लिए.
- आई न गई, कौले लग ग्याभन भई. कोई कुआंरी या विधवा स्त्री गर्भवती हो गई और अपने को निर्दोष बता रही है, तो अन्य स्त्रियाँ उस से पूछ रही हैं कि तू कहीं आई गई नहीं तो यह कैसे हो गया. कोई दोषी व्यक्ति अपने को निर्दोष सिद्ध करने का प्रयास करे तो. (कौले लग – गले लग के, ग्याभन गर्भवती)
- आई बहू आयो काम, गई बहू गयो काम. बहू के आते ही सारे काम दिखाई देने लगते हैं (बहू से कराने के लिए) और बहू के जाते ही काम दिखाई पड़ना बंद हो जाते हैं.
- आई माई को काजर नहीं, बिलैय्या को भर मांग. अपनी माँ के लिए काजल भी नहीं है और बिल्ली के लिए ढेर सारा सिंदूर. अपने लोगों की उपेक्षा कर के दूसरों के काम करना.
- आई मौज फ़कीर की, दिया झोपड़ा फूँक। (दी मढैया फूँक) बेफिक्रा और मनमौजी आदमी कुछ भी कर सकता है.
- आई है जान के साथ, जाएगी जनाज़े के साथ। कोई असाध्य बीमारी.
- आए का मान करो, जाते का सम्मान करो। घर में कोई भी आए उसका मान करना चाहिए. कोई छोटा आदमी हो तो भी उससे उचित व्यवहार करना चाहिए. जब कोई जा रहा हो तो उसको सम्मान के साथ विदा करना चाहिए.
- आए की खुशी न गए का गम. हर हालत में संतोष होना।
- आए चैत सुहावन, फूहड़ मैल छुड़ावन. ऐसे व्यक्ति के लिए कहा गया है जो जाड़े भर नहीं नहाता और चैत आने पर मैल छुड़ाने बैठा है. व्यवहार में ऐसे व्यक्ति के लिए प्रयोग करते हैं जो कभी कभी ही सफाई करता हो.
- आए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास। सांसारिकता में फंस कर अपने जीवन का उद्देश्य भूल जाना.
- आए वीर, भागे पीर. वीर पुरुषों के सामने भूत प्रेत सब भाग जाते हैं.
- आए हैं सो जायेंगे, राजा, रंक, फ़कीर। (आया है तो जायगा क्या राजा क्या रंक।) सभी लोगों को इस दुनिया से जाना है. अर्थ यह है कि हमें अपने पद और धन का अहंकार नहीं करना चाहिए.
- आओ पूत सुलच्छने, घर ही का ले जाव. अपने कुपुत्र से दुखी होकर पिता कह रहा है कि तुम कुछ कमा कर तो नहीं ला सकते, घर का ही ले जाओ.
- आओ-आओ घर तुम्हारा, खाना माँगे दुश्मन हमारा। झूठा स्वागत सत्कार.
- आकाश बांधू, पाताल बांधू, घर की टट्टी खुली। उन लोगों के लिए जो बड़ी बड़ी योजनाएं बनाते हैं और छोटा सा काम भी नहीं कर सकते. टट्टी का अर्थ है सींकों से बना हुआ पर्दा.
- आग और पानी को कम न समझें. आग थोड़ी सी भी बढ़ के विकराल रूप धारण कर सकती है और बाढ़ का पानी आज थोडा हो तो भी कल बढ़ कर बहुत नुकसान पहुँचा सकता है.
- आग और वैरी को कम न समझो. आग और शत्रु को छोटा नहीं समझना चाहिए.
- आग कह देने से मुँह नहीं जल जाता। अर्थ स्पष्ट है.
- आग को दामन से ढकना. किसी खतरे को टालने के लिए ऐसा उपाय करना जिससे और बड़ा नुकसान हो जाए.
- आग खाएगा तो अंगार उगलेगा. 1.गलत काम का नतीज़ा गलत ही होता है. 2.व्यक्ति अगर गलत शिक्षा ग्रहण करेगा तो गलत बातें ही बोलेगा.
- आग खाओगे तो अंगार हगोगे। गलत तरीकों से कमाया हुआ धन अंततः व्यक्ति को कष्ट ही पहुंचाता है.
- आग खाय मुँह जरे, उधार खाय पेट जरे. आग खाने से मुँह जल जाता है और उधार ले कर खाने पर उसे चुकाने की चिंता आदमी को ही जला देती है.
- आग बिना धुआँ नहीं। अगर कहीं धुआं दिख रहा है तो आग जरूर होगी. अगर किसी परिवार में या संगठन के लोगों में बाहर से कुछ खटपट दिख रही है तो इस का मतलब यह है कि अंदरूनी क्लेश अवश्य होगा.
- आग में तप के सोना और खरा हो जाता है। गुणवान व्यक्ति कठिनाइयों से जूझ कर और निखर जाता है.
- आग लगन्ते झोपड़ी, जो निकले सो लब्ध। झोंपड़ी में आग लग गई हो तो जो कुछ भी बचा कर निकाल सको उसी में अपने को भाग्यशाली मानना चाहिए.
- आग लगाकर पानी को दौड़े. पहले परेशानी पैदा करना और फिर उस का हल खोजने के लिए दौड़ भाग करना.
- आगे जाएं घुटने टूटें, पीछे देखें आँखें फूटें। किसी काम के दो विकल्प हैं और दोनों में ही बराबर संकट है.
- आगे दौड़, पीछे छोड़. आगे बढ़ने का प्रयास करो, पीछे जो गलतियाँ हुईं उनका दुःख मनाने में समय मत गंवाओ.
- आगे नाथ न पीछे पगहा, सबसे भला कुम्हार का गदहा। बैल के नथुने में छेद कर के रस्सी डाल देते हैं जिसे नाथ कहते है, घोड़े और हाथी के पिछले पैर में रस्सी या जंजीर बाँध देते हैं जिसे पगहा कहते हैं. धोबी के गधे को न तो नथा जाता है और न ही उस के पैर में पगहा पहनाया जाता है (क्योंकि वह स्वभाव से बहुत सीधा होता है). कहावत का प्रयोग उन लोगों के लिए करते हैं जिन पर परिवार का कोई बंधन न हो.
- आगे पग से पत बढ़े, पाछे से पत जाए. अपने मार्ग पर आगे बढ़ने से व्यक्ति का सम्मान बढ़ता है और पीछे हटने पर सम्मान कम होता है.
- आगे बैजू पीछे नाथ। जब कोई बिना सोचे समझे किसी का अंधानुकरण करे.
- आछे दिन पाछे गये, गुरु (हरि) सों किया न हेत, अब पछितावे होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत. आम तौर पर इसका बाद वाला हिस्सा ही बोला जाता है. यह कहावत ऐसे व्यक्ति के लिए कही जाती है जो आलस में समय पर जरूरी काम नहीं करता और जब काम बिगड़ जाता है तो पछताता है।
- आज का बनिया कल का सेठ। जो आज मेहनत करता है वही कल को बड़ा आदमी बन सकता है.
- आज की कसौटी बीता हुआ कल है. कसौटी माने वह पत्थर जिस पर रगड़ कर सोने के असली होने की पहचान करते हैं अर्थात किसी चीज़ को परखने का साधन. कोई व्यक्ति आज क्या है इसको परखने के लिए उसके बीते हुए कल को अवश्य देखना चाहिए.
- आज के थपे आज ही नहीं जलते. उपलों (गोबर से बने कंडे) को जिस दिन थापते (बनाते) हैं उसी दिन नहीं जलाते (पहले सूखने देते हैं). अर्थ है कि किसी काम फल मिलने के लिए उतावलापन नहीं करना चाहिए कुछ समय प्रतीक्षा करनी चाहिए.
- आज नगद कल उधार। उधार देने से मना करने के लिएदुकानों पर अक्सर लोग यह लिख कर लगाते हैं.
- आज निपूती कल निपूती, टेसू फूला सदा निपूती. बाँझ स्त्री के लिए अपमान जनक कथन.
- आज मेरी कल तेरी. स्वार्थी व्यक्ति के लिए.
- आज मेरी मँगनी, कल मेरा ब्याह, टूट गई टंगड़ी, रह गया ब्याह। हम भांति भांति की योजनाएं बनाते हैं, पर किसके साथ क्या होना है यह कोई नहीं जानता.
- आज हमारी कल तुम्हारी, देखो लोगों फेरा फारी. संसार परिवर्तनशील है किसी को अपनी वर्तमान स्थिति पर न तो अहंकार करना चाहिए न अफ़सोस.
- आजमाए को आजमावे, नामाकूल कहावे। जिसके साथ नुकसान उठा चुके हो उसको दोबारा आजमाने वाला मूर्ख कहलाता है।
- आटा नहीं तो दलिया जब भी हो जाएगा. काम पूरी तरह नहीं होगा तो भी कुछ न कुछ तो निबट ही जाएगा.
- आटा निबड़ा, बूचा सटका. बूचा माने कान कटा कुत्ता. खाना ख़तम होते ही कुत्ता अपनी राह निकल लेता है. यह कहावत स्वार्थी लोगों के लिए कही गई है.
- आटे का चिराग, घर रखूँ तो चूहा खाए, बाहर रखूँ तो कौआ ले जाए। ऐसी चीज़ जिसकी सुरक्षा कठिन हो.
- आठ कनौजिया नौ चूल्हे। जिस समाज के लोगों में एकता न हो.
- आठ खावे नौ लटकावे। बहुत दिखावा करने वाले के लिए.
- आठ जुलाहे नौ हुक्का, तिस पर भी थुक्कम थुक्का. जितने लोग हैं उससे अधिक उपयोग की वस्तुएं हैं, फिर भी आपस में लड़ रहे हैं.
- आठ बार नौ त्यौहार। आठ दिन में नौ त्यौहार. सदा आनंद मनाना। हिन्दुओं में तीज त्यौहार बहुत होते हैं इसको लेकर मजाक.
- आता तो सब ही भला, थोड़ा, बहुता, कुच्छ, जाते तो दो ही भले दलिद्दर और दुक्ख. आता तो सब अच्छा लगता है, थोड़ा आये या बहुत, जाती हुई दो ही चीज़ें अच्छी लगती हैं दुःख और दारिद्र्य.
- आता हो तो आने दीजे, जाता हो तो गम न कीजे. जो आता हो उसे छोड़ो नहीं, जो चला जाए उसका गम मत करो.
- आती बहू जनमता पूत सबको अच्छा लगता है. जो लोग बहू के आने पर या पुत्र के जन्म पर बहुत अधिक खुश हो रहे होते हैं उन्हें सयाने लोग यह सीख देते हैं कि जरूरत से ज्यादा खुश मत हो, आगे क्या होगा यह कोई नहीं जानता.
- आते जाते मैना न फंसी, तू क्यों फंसा रे कौए. भोला भाला व्यक्ति एक बार को न फंसे अपने आप को ज्यादा सयाना समझने वाला जरूर फंसता है, उसी पर कोई व्यंग्य कर रहा है.
- आत्मा में पड़े तो परमात्मा की सूझे. पेट में रोटी पड़े तभी भगवान् की भक्ति कर सकते हैं.
- आदमियों में नउआ, जानवरों में कउआ। जिस प्रकार जानवरों में कौए को धूर्त प्राणी माना जाता है उसी प्रकार मनुष्यों में नाई को चंट चालाक माना गया है. यहाँ नाई से तात्पर्यहज्जाम से नहीं बल्कि हिन्दुओं में रीति रिवाज़ कराने वाले नाई से है.
- आदमी अनाज का कीड़ा है. अन्न मनुष्य की प्रथम आवश्यकता है.
- आदमी का तोल एक बोल में पहचानिए. अनुभवी लोग किसी मनुष्य से थोड़ी बहुत बात कर के ही उसके गुणों का अंदाज़ लगा लेते हैं.
- आदमी की दवा आदमी. मनुष्य ही मनुष्य को सुधार सकता है.
- आदमी की पैठ पुजती है. मनुष्य की नहीं उस की पहुँच की कद्र होती है.
- आदमी जाने बसे, सोना जाने कसे। सोना कसौटी पर कस के पहचाना जाता है और व्यक्ति को उसके साथ रह कर ही पहचाना जा सकता है.
- आदमी पेट का कुत्ता है. आदमी पेट का गुलाम है.
- आदमी फूले भात खाकर, खेत फूले खाद खाकर। जिस प्रकार मनुष्य अच्छा भोजन कर के स्वस्थ होता है उसी प्रकार खेत उपयुक्त खाद लगाने से अच्छी उपज देता है.
- आदमी भगवान् और शैतान को एक साथ खुश नहीं कर सकता. पाप और पुन्य एक साथ नहीं किए जा सकते.
- आदमी भूल चूक का पुतला है. भूल सभी से हो सकती है. कोई यह नहीं कह सकता कि उस ने कभी भूल नहीं की.
- आदमी–आदमी अंतर, कोई हीरा कोई कंकर। सब मनुष्य एक से नहीं हो सकते. कुछ अच्छे, कुछ साधारण व कुछ बुरे भी हो सकते हैं.
- आदर न भाव, झूठे माल खाव. किसी को अनादर के साथ खिलाना.
- आधा आप घर, आधा सब घर. स्वार्थी आदमी आधा खुद रख लेता है और आधे में सब को निबटा देता है.
- आधा ज्ञान, जी की हान. अधूरा ज्ञान खतरनाक है.
- आधा तजे पंडित, सारा तजे गंवार। संकट के समय मूर्ख व्यक्ति सब कुछ गँवा देता है जबकि समझदार व्यक्ति आधे को दांव पर लगा कर आधा बचा लेता है.
- आधा तीतर आधा बटेर। ऐसा व्यक्ति जिस का कोई एक दीन ईमान या विचारधारा न हो.
- आधी छोड़ सारी को धावे, आधी मिले न सारी पावे। इस कहावत के पीछे एक कुत्ते की कहानी कही जाती है जिस को रोटी का आधा टुकड़ा मिल गया. टुकड़ा मुंह में दबा कर वह नदी के किनारे गया तो पानी में अपनी परछाईं देख कर समझा कि यह कोई दूसरा कुत्ता है जोकि मुँह में रोटी दबाए हुए है. वह उससे रोटी छीनने के लिए झपटा तो उस की रोटी भी नदी में गिर कर बह गई.
- आधी रात को जम्भाई आए, शाम से मुंह फैलाए. कोई काम शुरू करने से बहुत पहले से ही दिखावा करने लगना.
- आधी रोटी बस, कायस्थ हैं की पस (पशु). कायस्थों की तकल्लुफ बाजी पर व्यंग है – ये कायस्थ हैं कोई जानवर थोड़े ही हैं, इन्हें बस आधी रोटी परोसो.
- आधे आसाढ़ तो बैरी के भी बरसे. आधे आषाढ़ तो वर्षा अवश्य होती है.
- आधे गाँव दीवाली आधे गाँव फाग। समाज के लोगों का एकमत न होना.
- आधे माघे, कंबली कांधे. आधा माघ बीत गया जाड़ा कम हो गया, अब कंबली ओढ़ो मत कंधे पर रख लो.
- आन पड़ी सिर आपने, छोड़ पराई आस. अगर अपने ऊपर कोई मुसीबत पड़ी है तो खुद ही भुगतनी पड़ेगी, पराई आस छोड़ दो.
- आन से मारे, तान से मारे, फिर भी न मरे तो रान से मारे. वैश्या के लिए कहा गया है.
- आप काज सो महा काज। सबसे अच्छा यही कि इसका उसका मुँह देखने की बजाए अपना काम अपने आप कर लो.
- आप खाय, बिलाई बताय. चालाक बच्चे ने खुद रबड़ी खा ली और बिल्ली का नाम लगा रहा है. खुद चोरी करके दूसरों पर इल्ज़ाम लगाने वाले लिए.
- आप गुरु जी बैंगन खाएँ, औरों को उपदेश पिलाएँ। पुराने लोग बैंगन को कुपथ्य मानते थे (मालूम नहीं क्यों). कहावत उन गुरुओं के लिए है जो खुद गलत काम करते हैं और दूसरों को उपदेश देते हैं.
- आप डूबे तो जग डूबा। यदि किसी की इज्ज़त चली जाए तो संसार उसके लिए बेकार ही है.
- आप डूबे बामना, जिजमाने ले डूबे. ऐसा ब्राह्मण जो खुद भी डूबे और यजमान को भी ले डूबे.
- आप तो मियां हफ्ताहजारी, घर में रोए कर्मों की मारी. हफ्ताहजारी माने जिसकी एक हफ्ते में एक हजार रुपये की आमदनी हो, याने पुराने हिसाब से बहुत बड़ा आदमी. मियाँ तो बहुत बड़े आदमी हैं और घर में बीबी काम में पिस रही है और भाग्य को कोस रही है
- आप न जाए सासुरे, औरन को सिख देय। खुद तो ससुराल जाने को मना कर रही है और दूसरी लड़कियों को ससुराल जाने को समझा रही हैं.
- आप बड़े हम छोटे. अपने आप को छोटा मानना सबसे बड़ा बड़प्पन है.
- आप बुरा तो जग बुरा। यदि आप सब के बारे में बुरा सोचते हैं या बुरा चाहते हैं तो दुनिया भी आप के लिए बुरी है.
- आप भला तो जग भला। आप सब की भलाई करते हैं तो दुनिया भी आप के लिए भली है.
- आप मरे जग परलै। जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसके लिए दुनिया ख़त्म हो जाती है.
- आप महान हैं, प्रभु के समान हैं. अपने आप को बहुत महान समझने वाले व्यक्ति का मज़ाक उड़ाने के लिए.
- आप मियां मंगते, द्वार खड़े दरवेश। खुद तो मांग कर खाते हैं और दरवाजे पर पहरेदार खड़े कर रखे हैं. झूठी शान दिखाने वालों के लिए.
- आप रहें उत्तर, काम करें पच्छम. बेतरतीब काम करने वाले के लिए.
- आप लिखे खुदा पढ़े. बहुत खराब लिखावट वालों के लिए.
- आप सुखी जग सुखी। जब आप स्वयं सुखी होते हैं तो सारा संसार सुखी लगता है.
- आप से आवे तो आने दे. जो चीज़ बिना कोई प्रयास किए मिल रही हो उसे मना मत करो.
- आप हारे और बहू को मारे। अपनी हार का गुस्सा पत्नी/बहू पर निकालना.
- आपके चेहरे पर लगी कालिख औरों को दिखती है आपको नहीं. आपके चरित्र पर धब्बा आपको स्वयं नहीं दिखता, औरों को दिखता है.
- आपत काल में सब जायज़. जब जान पर संकट हो तो अपनी सुरक्षा के लिए सब कुछ जायज़ है.
- आपन मामा मर मर गइलन, जुलहा धुनिया मामा भइलन. अपने मामा मर गए उन्हें कभी पूछा नहीं, अब बेकार के लोगों से संबंध बनाते घूम रहे हैं.
- आपम धाप कड़ाकड़ बीते, जो मारे सो जीते. एक तरह से बच्चों की कहावत. अर्थ है कि जो आगे बढ़ के मारता है वही जीतता है.
- आपसे गया तो जहान से गया. जो अपनी नज़रों से गिर गया वह दुनिया की नज़रों से गिर जाता है.
- आपा तजे तो हरि को भजे। अहं को छोड़ोगे तभी प्रभु को पा सकते हो.
- आब गई, आदर गया, नैनन गया सनेह, यह तीनों तब ही गये, जबहिं कहा कुछ देह. जब आप किसी से कुछ मांगते हैं तो आपका सम्मान और आपसी प्रेम ख़त्म हो जाते हैं.
- आम खाने से काम, पेड़ गिनने से क्या फायदा। व्यक्ति को अपने काम से काम रखना चाहिए व्यर्थ की नुक्ताचीनी में नहीं पड़ना चाहिए.
- आम टूट मस्तक पर पड़े, याको को जतन कहा कोऊ करे. आलसी व्यक्ति चाहता है कि बैठे बिठाए सब कुछ मिल जाए.
- आम फले झुक जाए, अरंड फले इतराए। (आम फले नीचे झुके, ऐरण्ड ऊँचो जाए)। समझदार व्यक्ति सफलता पाने पर विनम्र हो जाता है, छोटी बुद्धि वाला व्यक्ति सफलता पाने पर घमंड करने लगता है.
- आम बोओ आम खाओ, इमली बोओ इमली खाओ. जैसा करोगे वैसा ही फल पाओगे.
- आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया। आय से अधिक खर्च होना. जिन लोगों की आय तो सीमित है पर वे दिखावे के लिए खर्च अधिक करते हैं उनको सीख देने के लिए यह सरल गणित समझाई गई है. कुछ लोग इसके आगे भी बोलते हैं – नतीज़ा ठन ठन गोपाल.
- आमों की कमाई, नीबुओं में गँवाई। एक स्रोत से कमाया और दूसरे में उतना नुकसान कर बैठे.
- आम्बा, नीबू, बनिया, ज्यों दाबो रस देयं, कायस्थ, कौआ किरकिटा (चींटी) मुर्दा हूँ से लेय। आम, नीबू और बनिया दबाने से रस देते हैं, कायस्थ, कौआ और चींटी मुर्दे को भी नोंच लेते हैं. बनिए डरपोक होते हैं, डरने पर पैसा निकालते हैं, कायस्थ कागज़ी कार्यवाही में फंसा कर मरने के बाद भी आदमी से कुछ न कुछ कमा लेते हैं.
- आय हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर, एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बँधा जंजीर. सभी लोगों को इस दुनिया से जाना है चाहे वह सिंहासन पर बैठा राजा हो या जंजीरों में बंधा फकीर. अर्थ यह है कि हमें अपने पद और धन का अहंकार नहीं करना चाहिए.
- आया कनागत फले कांस, बामन उछलें नौ नौ बांस. श्राद्ध पक्ष आने पर ब्राह्मण बहुत प्रसन्न होते हैं.
- आया कर तू जाया कर, कुंडी मत खड़काया कर. उपेक्षा में कही गई बात.
- आया कुत्ता खा गया तू बैठी ढोल बजा. लापरवाही में गृहस्थी का नुकसान करने वाली महिलाओं के लिए.
- आरत कहा न करे कुकरमा। आरत – आर्त, कुकरमा – कुकर्म. आर्त व्यक्ति (अत्यधिक कष्ट में पड़ा हुआ व्यक्ति) कुछ भी गलत काम कर सकता है.
- आरती वक्त सोवे, भोग वक्त जागे। स्वार्थी व्यक्ति के लिए जिसे पूजा आरती से कोई मतलब नहीं, केवल खाने पीने से मतलब है.
- आलमगीर सानी, चूल्हे आग न घड़े पानी. औरंगजेब के जमाने में प्रजा बड़े कष्ट में थी उसी पर यह कहावत कही गई.
- आलस कबहु न करिए यार, चाहें काम परे हों हजार, मल की शंका तुरत मिटावे, वही सभी सुख पुनि पुनि पावे मलत्याग की इच्छा होते ही तुरंत उसके लिए चले जाना चाहिए, तभी स्वास्थ्य ठीक रहता है.
- आलस, निद्रा और जम्हाई, ये तीनों हैं काल के भाई. अधिक आलस्य और अधिक निद्रा रोग को बुलावा देते हैं.
- आलसी गिरा कुएं में, कहा यहाँ ही भले. आलस की पराकाष्ठा.
- आलसी सदा रोगी। आलसी आदमी कभी स्वस्थ नहीं रह सकता.
- आलस्य दरिद्रता का मूल है। (दरिद्रता को मूल एक आलस बखानिए). बिलकुल स्पष्ट एवं सत्य.
- आवाज़े खलक को नक्कारा ए खुदा समझो. जनता की आवाज को ईश्वर की आज्ञा मानो.
- आवे न जावे बृहस्पति कहावे. आता जाता कुछ नहीं है और खुद को बड़ा विद्वान घोषित करते हैं.
- आशा जिए, निराशा मरे. आशा और सकारात्मक सोच से ही आदमी जीवित रहता है, निराशा और नकारात्मक सोच मृत्यु को बुलावा देती हैं.
- आस पराई जो तके, जीवत ही मर जाए। प्रत्येकव्यक्ति को प्रयास यही करना चाहिए कि अपना काम अपने आप ही करे. दूसरे का आसरा देखने वाले को अक्सर धोखा खाना पड़ता है.
- आस पास बरसे, दिल्ली पड़ी तरसे। कहीं पर बहुतायत कहीं पर अभाव.
- आसमान के फटे को कहाँ तक थेगली (पैबंद) लगे. बहुत बिगड़ा हुआ काम कहाँ तक संभाला जा सकता है.
- आसमान पर थूको तो मुँह पर ही आता है। किसी सज्जन और सच्चरित्र व्यक्ति पर लांछन लगाने वाला व्यक्ति स्वयं ही सवालों के घेरे में आ जाता है.
- आसमान से गिरे खजूर में अटके। किसी एक परेशानी से निकल कर दूसरी में पड़ जाना.
- आहार चूके वह गया, व्यौहार चूके वह गया, दरबार चूके वह गया, ससुरार चूके वह गया. खाने पीने में, लोक व्यवहार में, दरबार में और ससुराल में जो संकोच करता है वह नुकसान में रहता है.
आहारे व्योहारे लज्जा न कारे. खाने में और लोक व्यवहार में लज्जा नहीं करनी चाहिए.