ईर्ष्या की पराकाष्ठा. दूसरे को नुकसान पहुंचाने के लिए खुद भी नुकसान उठाने को तैयार रहने वाले ईर्ष्या में अंधे व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है. इस विषय में एक कथा कही जाती है. एक व्यक्ति को अपने पड़ोसी से बड़ी ईर्ष्या थी. वह सोते जागते हर समय अपने पड़ोसी को नुकसान पहुँचाने के विषय में सोचता रहता था. जब उस का वश नहीं चला तो उस ने कड़ी तपस्या कर के भगवान को प्रसन्न किया. भगवान ने उससे कहा कि वत्स, जो वर मांगोगे मैं तुम्हें दूँगा, पर तुम्हारा पड़ोसी भी मेरा भक्त है और बहुत भला आदमी है इसलिए मेरी शर्त यह है कि तुम्हें जो दूंगा, तुम्हारे पड़ोसी को उससे दुगुना दूँगा. तब काफी सोच समझ कर उसने माँगा कि मेरी एक आँख फूट जाए.
मेरी एक आंख फूटे कोई गम नहीं, पडोसी की दोनों फूटनी चाहिए
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