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माया तू है सुलक्खनी

एक सेठ के जगराम नाम का एक ही लड़का था। घर में लक्ष्मी का ठाट-बाट था और जगराम की शादी भी सम्पन्न घर में हुई थी। लेकिन अपने पिता के मरने पर जगराम ने कुसंगति में पड़ कर सारी सम्पत्ति नष्ट कर डाली और घर में फाके की नौबत आ गई। उसकी स्त्री बच्चों को ले कर अपने पीहर चली गई। तंग ग्राकर जगराम भी मजदूरी की तलाश में निकला और भटकते भटकते अपनी सुसराल पहुँच गया। इस फटे हाल में सुसराल वालों ने भी उसे नहीं पहचाना और उसे नौकर रख लिया। वह पानी लाने, आग में लकड़ी झोंकने आदि का काम करने लगा और उसका नाम झोकिया पड़ गया। एक दिन जगराम की स्त्री अपनी माँ से कह रही थी कि तुम्हारे दामाद ने और सब कुछ तो बर्बाद कर डाला, लेकिन मेरी सास ने मुँह दिखलाई में मुझे जो चार बहुमूल्य लाल दिये थे, वे उसके हाथ नहीं लगे, क्योंकि उनको मैंने अमुक स्थान पर छिपा दिया था। झोकिया रूपी जगरामने उन
दोनों की बात सुन ली। वह नौकरी छोड़कर अपने घर आ गया। उसने चारों लाल निकाले और उन्हें बेचकर पुनः कारोबार प्रारम्भ किया तथा शीघ्र ही पहले की तरह मालदार बन गया। अब वह अपनी स्त्री को लेने सुसराल पहुँचा तो सुसराल वालों ने उसकी खूब खातिर की। इस पर वह बोला- माया तू है सुलक्खनी, नाम हुआ जगराम, एही  आंगन फिर गया, धरा झोकिया नाम|

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