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बंद है मुठ्ठी तो लाख की, खुल गई तो फिर ख़ाक की.

जब तक कोई रहस्य खुलता नहीं है तब तक लोगों को उसके विषय में बहुत उत्सुकता रहती है. रहस्य खुलने के बाद उसकी पूछ खत्म हो जाती है. इस विषय में एक कहानी कही जाती है. एक बार एक राजा ने घोषणा की कि वह अमुक मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए अमुक दिन जाएगा. इतना सुनते ही मंदिर के पुजारी ने मंदिर की सजावट करना शुरू कर दिया, इस खर्चे के लिए उसने छः हजार रुपये का कर्ज भी लिया. तय दिन पर राजा मंदिर में पूजा के लिए पहुंचे. जब राजा के सामने आरती की थाली लाई गई तो राजा ने उस में चार आने रखे और प्रस्थान कर गए.

पुजारी को इस पर बड़ा गुस्सा आया. उसे चिंता भी सताने लगी कि वह अपना क़र्ज़ कैसे भरेगा. बहुत सोच कर उसने एक तरकीब निकाली. उसने गांव भर में ढिंढोरा पिटवाया कि राजा की दी हुई वस्तु को वह नीलाम कर रहा है. नीलामी की बोली लगाते समय उसने अपनी मुट्ठी बंद रखी. लोग समझे कि राजा की दी हुई वस्तु बहुत अमूल्य होगी इसलिए बोली दस हजार रूपये से शुरू हुई और बढ़ते बढ़ते पचास हजार तक पहुंच गई. पुजारी ने उस समय नीलामी स्थगित कर दी और दूसरे दिन नीलामी को पचास हजार से आगे बढ़ाने की बात कही. इसी बीच यह बात राजा के कानों तक पहुंच गई कि पुजारी उस की दी हुई चीज़ को नीलाम कर रहा है. राजा ने अपने सैनिकों को भेज कर पुजारी को बुलवाया और कहा कि मेरी वस्तु को नीलाम न करो, मैं तुम्हें लाख रुपए देता हूं. इस प्रकार राजा ने अपनी इज्जत को बचाया और पुजारी को भी बहुत बड़ा लाभ हो गया. तब से यह कहावत बनी.

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