एक गुरुजी ने एक कौवे को पकड़ कर पिंजड़े में बंद कर दिया और अपनी विद्या के बल से उसे चारों वेद पढा दिये। लेकिन जैसे ही पिंजड़े का द्वार खोला गया कौवा उड़ कर विष्टा के ढेर पर जा बैठा और उसमें चोंच मारने लगा। कहावत का आशय है कि पढने लिखने से व्यक्ति का मूल स्वभाव नहीं बदलता.
काग पढ़ायो पीन्जरो. पढ़ गया चारों वेद, समझायो समझे नहीं, रहयो ढेढ को ढेढ
09
May