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एक की सैर, दो का तमाशा, तीन का पिटना, चार का स्यापा

 एक आदमी की मौज होती है, दो हो जाएं तो काम कुछ नहीं केवल तमाशा होगा, तीन में मार पीट झगड़ा और कहीं चार मिल गए तब तो रोने पीटने ही पड़ जाएंगे. यह कहावत उन कहावतों की एकदम उलट है जिनमें एक और एक ग्यारह और जमात में करामात जैसी बातें बताई गई हैं. इस बारे में एक कहानी कही जाती है. एक व्यक्ति के चार बेटे थे. उनको एकता का महत्त्व समझाने के लिए उसने उन चारों को एक एक लकड़ी दी और उसे तोड़ने कहा. सबने फ़ौरन लकड़ी तोड़ दी. फिर उसने चार लकड़ियाँ बाँध कर गट्ठर बना दिया और तब तोड़ने को कहा. तब उसे कोई नहीं तोड़ पाया. उसने लड़कों को समझाया कि मिल कर रहोगे तो सब का फायदा होगा. उसकी इस बात का जबाब देने के लिए छोटा लड़का पाँच गमले ले कर आया. एक गमले में चार छोटे छोटे सूखे सूखे पौधे लगे थे, और चार गमलों में एक एक भरा पूरा पौधा लगा था. उसने कहा – देखो बापू! जो साथ साथ रह रहे हैं उन में से कोई नहीं पनप पा रहा है, और जो अलग अलग रह रहे हैं वे सब तरक्की कर रहे हैं.

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