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लंका के छोटे वीर, वो भी उन्चास हाथ के. किसी परिवार या समाज में छोटे व बड़े सभी लोग धूर्त हों तो.
लंका जीत आये. बड़ा काम कर आये.
लंका में सब बावन गज के. जहां सभी लोग एक से बढ़कर खुराफाती हों वहां यह कहावत प्रयोग की जाती है.
लंगड़ी गिलहरी, आसमान में घोंसला. अपनी हैसियत से बहुत बड़ा कोई काम करने की कोशिश.
लंगड़ी घोड़ी मसूर का दाना. अपात्र व्यक्ति को अनुचित सुविधाएँ.
लंगड़ी डाकिन, घरालों को ही खाए. लोक विश्वास है कि डाकिन आदमियों को खा जाती है. डाकिन लंगड़ी हो तो कहीं नहीं जा पाएगी और घर वालों को ही खाएगी. कोई निकृष्ट प्रवृत्ति वाला घर वालों को ही हानि पहुंचाए तो.
लंगड़ी बाई फूस बुहारो, कि दो जने पाँव उठाओ. बहुत कमजोर या गरीब आदमी से काम कराना चाहो तो उस में भी बहुत मुश्किलें हैं. लंगड़ी से झाड़ू लगवानी है तो दो लोग उस का पैर उठाने के लिए चाहिए.
लंगड़े लूले गए बरात, दो दो जूते दो दो लात. जो व्यक्ति काम का न हो उसकी कहीं इज्जत नहीं होती.
लंगोटी में फाग खेलें. बहुत गरीब हो कर भी उत्सव मनाना.
लंबा घूँघट, धीमी चाल, भीतर-ही-भीतर बहुत पंपाल. जो स्त्री लंबा घूँघट किए हो और धीमे चल रही हो वह आवश्यक नहीं कि लज्जावती ही हो, वह लड़ाका या चरित्रहीन भी हो सकती है.
लंबा पर सही रास्ता ही ठीक. हमेशा सही रास्ते पर ही चलना चाहिए चाहे वह लंबा ही क्यों न हो. सीढ़ियाँ चाहे कितनी भी घुमावदार क्यों न हों, हम सीढियों से ही उतारते हैं, जल्दी के चक्कर में छत से कूद नहीं पड़ते.
लंबी धोती मुख में पान, घर के हाल गुसैंया जान. रहन सहन ठाठ बात वाला है, घर का हाल भगवान ही जाने.
लंबी बांह दूर तक पसरे. उदार लोग दूर वालों की भी सहायता करते हैं.
लंबे की अक्ल घुटनों में. अधिक लम्बे पर कम बुद्धि वाले आदमी का मजाक उड़ाने के लिए.
लकड़ी की आग सुलगते सुलगते सुलगे. जो लोग हर कार्य में जल्दबाजी मचाते हैं उन्हें समझाने के लिए.
लकड़ी के बल बन्दर नाचे (लाठी के डर वानर नाचे). दंड के डर से ही आदमी काम करता हैं.
लकीर के फकीर. जो लोग अपनी मान्यताओं को बिलकुल बदलना नहीं चाहते (चाहे वे गलत ही क्यों न हों).
लक्खु या भिक्खु, दो ही सुखी. दुनिया में दो ही तरह के लोग सुखी हैं, लखपति या भिखारी.
लक्ष्मी आए, दलिद्दर जाए. दीवाली पर घर की सफाई करते समय घर की महिलाएं यह कामना करती हैं.
लक्ष्मी आते भी मारे और जाते भी मारे. धन आता है तो उसको संभालने की चिंता में आदमी मरता रहता है (सरकारी महकमे भी उसका तरह तरह से खून पीते हैं) और चला जाए तो उसके दुख में मरता है.
लक्ष्मी उद्यमी की चेरी होती है. लक्ष्मी उद्यम करने वाले की दासी बन कर रहती है.
लक्ष्मी और सरस्वती में बैर है. जो लोग विद्या अध्ययन को जीवन का लक्ष्य बनाते हैं वे अधिक धन नहीं कमा पाते.
लक्ष्मी किसी के यहाँ पीढ़ा डाल कर नहीं बैठती. धन किसी के पास नहीं रुकता. पीढ़े के लिए देखिए परिशिष्ट.
लक्ष्मी तेरे काज, काहे आवे लाज. धन कमाने के लिए कोई भी काम करना पड़े उस में लज्जा कैसी.
लक्ष्मी बिन आदर कौन करे. धन के बिना व्यक्ति का सम्मान नहीं होता.
लग गई जूती उड़ गई खेह, फूल पान सी हो गई देह. निर्लज्ज व्यक्ति के लिए. बेशर्म आदमी को जूते मारो तो कहता है कि मेरी धूल उड़ गई और शरीर हल्का हो गया.
लग जाय तो तीर, नहीं तो तुक्का. तुक्का – बिना फलक का तीर. जब कोई व्यक्ति अंदाज़े से कोई बात कहता है (कि ठीक बैठ जाए तो अच्छा है, नहीं तो कोई बात नहीं).
लगन में बिघन. शुभकार्य में विघ्न.
लगन लगी तब लाज कहां है. जब किसी से सच्चा प्रेम हो जाए तो लाज शर्म खत्म हो जाती है, प्रेम चाहे मनुष्य से हो या ईश्वर से (ईश्वर से प्रेम का सबसे बड़ा उदाहरण मीरा बाई हैं).
लगाओ तो बुझाओ. आग लगाईं है तो बुझाओ भी. तुम्हीं ने झगड़ा शुरू किया है तुम्हीं निबटाओ.
लगी में और लगती है. बुरे समय में और मुसीबतें आती हैं.
लगे उसी का नाम औषध. जिससे रोग अच्छा हो वही दवा मानी जाती है.
लगे को बिगाड़ो न, बिन लगे को हिलाओ न. जिससे अपना सम्बंध है उससे बिगाड़ो नहीं और जो अनजान है उस को सर पर मत चढ़ाओ. हिलाने से तात्पर्य यहाँ पालतू बनाने से है.
लगे खुशामद सब को प्यारी. खुशामद सबको अच्छी लगती है.
लगे दम, मिटे गम. नशा करने वाले यह कहते हुए पाए जाते हैं कि दम लगाने से दुख मिट जाते हैं.
लगे रगड़ा, मिटे झगड़ा. भांग पीने वालों का कथन. भांग को घोट कर (रगड़ कर) तैयार करते हैं इसलिए.
लगे सो दवा और रीझे सो देव. बीमारी को ठीक करने के लिए भांति भांति की चीजें प्रयोग की जाती हैं. जिससे बीमारी ठीक हो जाए, वही दवा मानी जाएगी. इसी प्रकार बहुत देवी देवता हैं, जिस की पूजा करने से आप का काम बन जाए उसी को आप देवता मान लेंगे.
लघुता ते प्रभुता मिले, प्रभुता ते प्रभु दूर, चिट्टी सक्कर लै चली, हाथी के सिर धूर. छोटा बनने से (विनम्रता से) आदमी बड़ा बनता है. छोटी सी चीटी शक्कर ले जाती है और बड़े हाथी के सर पे धूल होती है.
लछमी जाए तो लच्छन भी जाएं. धन जब तक रहता है व्यक्ति संभ्रांत माना जाता है, धन जाते ही वह घटिया लोगों की श्रेणी में मान लिया जाता है. (उस के व्यवहार में स्वाभाविक रूप से बदलाव भी आ जाता है).
लजाउर बहुरिया, सराय में डेरा. सराय इस प्रकार का स्थान होता था जहाँ यात्री लोग ठहरते थे. वहाँ पर अक्सर चोर बदमाश और वेश्यागामी लोगों का भी डेरा होता था. ऐसे स्थान में लज्जावान कुलवधू का क्या काम.
लजाया लड़का ढोंढी टटोले. बच्चे को शर्म आती है तो अपनी नाभि टटोलता है.
लटा हाथी बिटौरे बराबर. बिटौरा – कंडों का ढेर. हाथी कमज़ोर हो जाए तो उसकी हैसियत कंडों के ढेर के बराबर हो जाती है.
लड़का जने बीबी, पट्टी बांधें मियाँ. कष्ट पत्नी को हो रहा है और दिखावा पति कर रहा है.
लड़का ठाकुर बूढ़ दीवान, मामला बिगड़े सांझ विहान. (भोजपुरी कहावत) जहाँ उच्छ्रंखल युवा शासक बन जाते हैं वहाँ समझदार और अनुभवी कर्मचारियों को कोई नहीं पूछता वहाँ अराजकता फ़ैल जाती है. विहान – सवेरा.
लड़का रोवे बालों को, नाई रोवे मुड़ाई को. लड़का कह रहा है कि मेरे बाल ठीक से नहीं कटे और नाई कह रहा है कि मुझे पैसे कम मिले. सबको अपनी ही चिंता है.
लड़की और ककड़ी जल्दी बढती हैं. जैसे ककड़ी बहुत तेजी से बढती है वैसे ही लड़की बहुत जल्दी बड़ी हो जाती है (और माँ बाप के मन में उसकी शादी की चिंता हो जाती है).
लड़के की यारी, गदहे की सवारी. दोनों समान रूप से निरर्थक हैं. लड़के से अर्थ यहाँ नादान से है.
लड़के के भाग से लड़कोरी जीवे. लड़कोरी–बच्चे की माँ. बच्चे के भाग्य का लाभ उस की माँ को भी मिलता है.
लड़के को अंगोछा नहीं, बिलाई को कुर्ती. घर के आदमी को न पूछ कर बाहर के फालतू लोगों को लाभ पहुँचाना.
लड़के को जब भेड़िया ले गया, तब टट्टी बांधी. नुकसान उठाने के बाद बचाव का प्रबंध करना. टट्टी – सींकों का पर्दा या दीवार.
लड़के को मुंह लगाओ तो दाढ़ी नोचे, कुत्ते को मुंह लगाओ तो मुंह चाटे. छोटे बच्चे और कुत्ते को अधिक सर नहीं चढ़ाना चाहिए.
लड़कों का मन बादशाह जैसा. बच्चे बिलकुल दरियादिल होते हैं
लड़कों की आँख में भूख, पेट में नाहीं. बच्चों को खाने पीने की चीजें देख कर ही भूख लग आती है.
लड़कों में लड़का, बुड्ढों में बुड्ढा. जो व्यक्ति बच्चों में बच्चा बन जाए और बड़ों के बीच में बड़ा.
लड़ना दे पर बिछुड़ना न दे. दोस्तों और रिश्तेदारों से थोड़ा बहुत झगड़ा या कहासुनी हो जाये तो कोई बात नहीं है पर ईश्वर करे कभी कोई किसी से बिछड़े नहीं.
लड़ाई और आग का भड़काना क्या. ये अपने आप भड़कती हैं.
लड़ाई का मुँह काला. युद्ध हमेशा दुखदायी ही होता है.
लड़ाई के मैदान से दूर, सभी बहादुर. अपने अपने घरों में बैठ कर सभी लोग बहादुरी की बातें हांकते हैं. विशेष तौर पर ऐसे वीर पुरुष आजकल सोशल मीडिया पर बहुत देखने को मिलते हैं.
लड़ाई पीछे सबहिं सूरमा. लड़ाई खत्म होने के बाद सब अपनी अपनी बहादुरी की डींगें हांकने लगते हैं.
लड़ाई में तो सिर ही फूटते हैं, लड्डू थोड़े ही फूटते हैं. मन में लड्डू फूटना एक मुहावरा है जो सुखद अनुभव के लिए प्रयोग करते हैं और सर फूटना भी एक मुहावरा है जो भयंकर लड़ाई के प्रयोग करते हैं.
लड़ाई में लड्डू नहीं बंटते हैं. लड़ाई कोई आनंद का विषय नहीं है. इस में दोनों पक्षों को बहुत हानि होती है.
लड़ाई लड़ाई माफ़ करो, कुत्ते का गू साफ़ करो. बच्चों की कहावत. बच्चों की आपस की लड़ाई इस कहावत से खत्म हो जाती है.
लड़ाका के चार कान होत. लड़ाका व्यक्ति कुछ का कुछ सुन कर जबरदस्ती लड़ने के बहाने ढूँढ़ता है.
लड़ें न भिड़ें, तरकस पहने फिरें. युद्ध में कभी नहीं गए पर तरकश बांधे ऐसे घूमते हैं जैसे बहुत बड़े योद्धा हों. दिखाने के वीर. (तरकश में तीर रखे जाते है – देखिए परिशिष्ट)
लड़ें लोह पाहन दोउ, बीच रुई जल जाए. लोहा और पत्थर टकराते हैं तो चिंगारी निकलती है जिस से रूई में आग लग जाती है. दो शक्तिशाली लोगों की लड़ाई में कमजोर लोग बेकार में मारे जाते हैं.
लड़ो सर फोड़ के, खाओ मुहँ जोड़ के. जहां घर में कई लोग होते हैं वहां थोड़े बहुत मतभेद या खटपट होना स्वाभाविक है. लेकिन लड़ाई चाहे जितनी भी हो तीज त्यौहार साथ मनाना चाहिए, और सुख दुख में साथ निभाना चाहिए. इससे परिवार में एकता बनी रहती है.
लड्डू पर तो भगवान का भी मन चले. एक बार लड्डू भगवान के पास अपनी फरियाद ले कर गया कि सब मुझे खाना चाहते हैं, मैं क्या करूँ. भगवान बोले – तुम हो ही इतने अच्छे. मेरा मन भी चल रहा है.
लड्डू लड़ें, चूरा झड़े. जब दो व्यक्ति आपस में लड़ते हैं तो दोनों का ही नुकसान होता है.
लड्डू लुढ़क रहे हैं. घुल मिल कर बड़े प्रेम की बातें हो रही हैं.
लत लागत लागत लागे, भय भागत भागत भागे. किसी चीज की लत धीमे धीमे ही लगती है और मन का डर भी धीरे धीरे ही भागता है.
लदनिये ही लादे जाते हैं. जो अधिक काम करते हैं उन पर ही काम लादा जाता है.
लपकी गाय गुलेंदे खाय, दौड़ दौड़ महुआ तले जाय. गुलेंदा – महुआ का फल. जिस गाय को गुलेंदे खाने की लत लग जाती है वह दौड़ दौड़ कर महुआ के पेड़ तक जाती है. जिस चीज़ का शौक लग जाए उस के लिए इंसान दौड़ भाग करता है.
लबार, सौगंध खाए हजार. कोई इंसान बहुत कसमें खा रहा हो तो समझ लो कि झूठा है.
लम्पट कुतिया के लम्पट पिल्ले. किसी चरित्रहीन स्त्री के बच्चे भी उसी की तरह हों तो.
लला को सिर पर बिठावो तो वह कानहिं मूतिहै. (भोजपुरी कहावत) बच्चे को सर पर बिठाओगे तो वह कान में ही मूतेगा. अधिक लाड़ प्यार से बच्चे बिगड़ जाते हैं इस बात को मजेदार ढंग से कहा गया है.
ललाट की फूटी अच्छी, हिय की फूटी बुरी. लड़ाई किसी भी प्रकार की अच्छी नहीं होती लेकिन यदि लड़ना ही हो तो दिलों में दरार पैदा करने के मुकाबले हाथ पैर से लड़ना और सर फोड़ना बेहतर है.
लहंगे का नाड़ा ढीला हो तो नाचना नहीं चाहिए. जब अपनी स्थिति कमजोर हो तो ज्यादा इतराना नहीं चाहिए.
लहकाया कुत्ता टंगड़ी पकड़े. जो लोग किसी के उकसाने से बिना भला बुरा सोचे कुछ भी गलत सही करने पर उतारू हो जाते हैं उन पर व्यंग्य.
ला साले मेरी चने की दाल. किसी छोटे से मूर्खतापूर्ण कार्य का बहुत एहसान जताना. सन्दर्भ कथा – यह कहावत बच्चों की एक कहानी में से निकली है. एक शेखचिल्ली ने एक सिपाही से दोस्ती कर ली. दोनों साथ साथ कहीं जा रहे थे. एक स्थान पर शेखचिल्ली को चना पड़ा हुआ मिला. उसने आधा चना खुद खा लिया और आधा सिपाही को खिला दिया (आधे चने को चने की दाल कहते हैं). दोनों आगे चले तो शेखचिल्ली ने सिपाही से कोई मूर्खतापूर्ण काम करने के लिए कहा. सिपाही ने मना किया तो शेखचिल्ली बोला – ला साले मेरी चने की दाल. सिपाही ने मजबूरी में वह काम कर दिया. उस के बाद जब भी सिपाही किसी काम के लिए मना करता, शेखचिल्ली उसे धौंस देता – ला साले मेरी चने की दाल. कोई मूर्ख व्यक्ति किसी का बहुत छोटा सा कार्य कर के बहुत एहसान जता रहा हो तो मजाक में यह कहावत कही जाती है.
लाएगा दारा तो खाएगी दारी, न लाएगा दारा तो होगी ख्वारी. पति कमा कर लाएगा तो पत्नी खाएगी. नहीं लाएगा तो झगड़े होंगे.
लाओ तामझाम. मूर्खतापूर्ण व व्यर्थ की शान दिखाना. एक मूर्ख व्यक्ति को दहेज़ में पालकी और कहार मिल गए तो वह छोटे से छोटे काम के लिए भी पालकी पर चढ़ कर ही जाता था.
लाख कमाया जो जीता लौट आया. कोई व्यक्ति धन कमाने के लिए बाहर जाए और वहाँ किसी खतरे में फंस जाए तो उसके सही सलामत लौट आने को लाखों कमाने से बेहतर मानना चाहिए.
लाख का घर ख़ाक कर दिया. यहाँ लाख का अर्थ लाख रूपये भी हो सकता है और सील लगाने वाली लाख से भी हो सकता है जो बहुत जल्दी आग पकड़ती है. (पांडवों को जला कर मारने के लिए दुर्योधन ने लाक्षागृह बनवाया था). कोई व्यक्ति अपनी मूर्खताओं से बना बनाया काम या घर बर्बाद कर दे तो.
लाख चुरा लो मोती, कफ़न में जेब नहीं होती. आदमी कितनी भी पाप की कमाई कर ले अपने साथ कुछ ले नहीं जा सकता. इंग्लिश में कहावत है – Our last garment is made without pockets.
लाख जाए पर साख न जाए. पैसा कितना भी खर्च हो जाए साख नहीं जानी चाहिए.
लाचारी पर्वत से भारी. लाचारी किसी भी इंसान के लिए सबसे बड़ा बोझ है.
लाचारी में विचार क्या. जब व्यक्ति बहुत अधिक मजबूरी में हो तो उसे अच्छे बुरे का ज्यादा विचार नहीं करना चाहिए. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – लाचार के बिचार क्या.
लाज की आँख, जहाज से भारी. पहले के जमाने में पानी का जहाज दुनिया की सबसे भारी चीज हुआ करता था इसलिए उसका उदाहरण दिया गया है. यदि किसी ने आप पर एहसान किया है या आप के किसी निकट सम्बन्धी ने कोई बहुत गलत काम किया है तो आप की आँख शर्म से झुक जाती है. कहावत में कहा गया है कि ऐसी हालत में आँखों पर जो शर्म का बोझ होता है वह जहाज के बोझ से भी ज्यादा होता है.
लाज तो आँखों की होती है. कोई स्त्री घूँघट या पर्दा न भी करे तो भी उसकी भाव भंगिमा से यह मालूम हो जाता है कि वह लज्जाशील है या नहीं.
लाजू मरे, ढीठू जिए. ढीठू-ढीठ. संकोची और सज्जन व्यक्ति परेशान रहते हैं और निर्लज्ज लोग मौज करते हैं.
लाजे भावज बोले न और सवादे जेठ छोड़े न. लज्जा के कारण छोटे भाई की पत्नी कुछ बोल नहीं पा रही है तो जेठ उस के साथ अमर्यादित आचरण कर रहा है. किसी की शराफत का नाजायज फायदा उठाना.
लाठी कपाल पे लगी नहीं, झूठ मूठ बाप रे बाप. नुकसान न होने पर भी बहुत हाय तौबा करना. (भोजपुरी में इस कहावत को इस प्रकार से कहा गया है – लाठी कपारे भेंट नाहीं अउरी बाप-बाप चिल्ला).
लाठी के हाथ मालगुजारी बेबाक. मालगुजारी – जमीन का लगान. पहले जमाने में लाठी डंडे के जोर से जमीन का कर वसूल किया जाता था. शासन का काम भय दिखाए बिना नहीं हो सकता.
लाठी टूटे न भांडा फूटे. बर्तन पर इस तरह लाठी मारी जा रही है कि लाठी भी न टूटे और बर्तन भी न फूटे. दिखावटी लड़ाई, जिसमे किसी का भी नुकसान न हो. (नूरा कुश्ती).
लाठी पकड़ी जा सकती है, जीभ नहीं पकड़ी जा सकती. किसी को शारीरिक बल प्रयोग से रोका जा सकता है, कटु वचन बोलने से नहीं.
लाठी बल बिनु काम न आवे, बैरी छीन तुझे हड़कावे. यदि आप में शक्ति और कौशल न हो तो लाठी आप के किसी काम की नहीं. दुश्मन आप से लाठी छीन कर आप को ही हड़काएगा.
लाठी मारने से पानी अलग नहीं होता. जोर जबरदस्ती से परस्पर प्रेम करने वाले लोगों को अलग नहीं किया जा सकता (चाहे सच्चे दोस्त हों, प्रेमी हों या निकट सम्बन्धी हों).
लाठी मारे ना मरें, फूल मारे मर जायें. जो प्रताड़ना से नहीं डरते, उन्हें प्रेम से वश में किया जा सकता है.
लाठी में गुन बहुत हैं, सदा राखिए संग. गाँव के लोग जिन विषम परिस्थितियों में रहते हैं उनके लिए लाठी एक बहुत उपयोगी वस्तु है. (गिरधर कवि की कुंडलियों से, यह पूरी कविता बहुत सुंदर और व्यवहारिक है)
लाठी हाथ की, भाई साथ का. लाठी वह काम की है जो हर समय आपके हाथ में हो और भाई वह अच्छा है जो हर समय साथ खड़ा हो.
लाठी हाथ में तो सब साथ में. जिस के पास शक्ति है उस का सब समर्थन करते हैं.
लाड़ला लड़का जुआरी, लाड़ली लड़की छिनाल. ज्यादा लाड़ला बेटा बुरी संगत में पड़ कर जुआ खेलना सीख जाता है और ज्यादा लाड़ली बेटी गलत हाथों में पड़ कर चरित्रहीन हो जाती है.
लातों के भूत बातों से नहीं मानते. जो लात खा कर काम करने के आदी हैं वे सिर्फ कहने से काम नहीं करते. इंग्लिश में कहावत है – Rod is the logic of fools.
लाद दे लदावन दे हांकने वाला साथ दे (लाद दे लदवा दे, घर तक पहुँचा दे). बेशर्म मांगने वालों के लिए (हमें फलाना सामान दो, सामान लादने वाला दो, साथ में गाड़ी और हांकने वाला भी दो).
लापरवाई सदा दुखदाई. किसी भी काम में लापरवाही बहुत दुखदाई होती है.
लाभे लोहा ढोइये, बिन लाभ न ढोए रुई. यदि किसी को कोई लाभ हो रहा होगा तो वह भारी वजन का लोहा भी ढोने को तैयार हो जाएगा और लाभ नहीं होगा तो हल्की सी रूई भी नहीं ढोएगा.
लाम और काम का बैर है. जल्दबाजी से काम बिगड़ जाता है. लाम – जल्दबाजी.
लारा लीरी का यार, कभी न उतरे पार. लारा लीरी – ऊहापोह. जो व्यक्ति अनिर्णय की स्थिति में रहता है, वह कभी कोई ठोस काम नहीं कर सकता.
लाल किताब उठ बोली यों, तेली बैल लड़ाया क्यों, खिला खिला कर किया मुसंड, बैल का बैल और दंड का दंड. लाल किताब-संविधान की किताब. न्याय व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार पर व्यंग्य. सन्दर्भ कथा – खबर आई कि किसी तेली के बैल ने एक काज़ी के बैल को मार डाला. इस पर काज़ी ने तेली से कहा कि तुम ने अपने बैल को खिला-पिलाकर मुसंड बनाया जिससे मेरा बैल मारा गया. अब तुम्हें मेरा बैल और जुर्माना दोनों देना होगा. बाद में पता चला कि काजी के ही बैल ने तेली के बैल को मार डाला है, तो उसने यह कहकर मामले को खत्म कर दिया कि जानवर ही तो था वह बेचारा क्या जाने. न्याय व्यवस्था में आदिकाल से व्याप्त भ्रष्टाचार पर व्यंग्य. लाल किताब से अर्थ संविधान की किताब से है
लाल गुदड़ी में भी नहीं छिपते. जो होनहार होते हैं वे अभावों में पल कर भी अपनी पहचान बना लेते हैं.
लाल प्यारा लाल का ख्याल प्यारा. अपना बच्चा बहुत प्यारा होता है,उस के बारे में सोच कर भी सुख मिलता है.
लाल बुझक्कड़ बूझिए और न बूझा कोय, कड़ी बरंगा टार के ऊपर ही को लेय. कोई अपने को अक्लमंद समझने वाला जब किसी समस्या का मूर्खतापूर्ण हल सुझाता है तो यह कहावत कही जाती है. सन्दर्भ कथा – आज कल के बच्चे लाल बुझक्कड़ का अर्थ नहीं जानते होंगे. किसी गाँव में लाल नाम के सज्जन थे जो नितांत मूर्ख गाँव वालों के बीच थोड़े से बुद्धिमान अर्थात अंधों में काने राजा थे. लोग उनके पास समस्याएँ ले कर आते थे और वह अपनी बुद्धि के अनुसार उनका हल निकालते थे. (गाँव की भाषा में हल निकालने को बूझना भी कहते हैं इस लिए उन का नाम लाल बुझक्कड़ पड़ गया). एक बार गाँव में झोपड़ी के अंदर एक बच्चा बल्ली को पकड़े खड़ा था. किसी ने उसे चने दिए तो बच्चे ने बल्ली के दोनों ओर हाथ किये किये दोनों हाथों का चुल्लू बना कर उस में चने ले लिए. तभी बच्चे की माँ ने उससे घर चलने के लिए कहा. अब बच्चा अगर बंधे हुए हाथ खोलता है तो चने गिर जाएंगे, और हाथ नहीं खोलता है तो जाएगा कैसे, लिहाजा वह चीख चीख कर रोने लगा. सारा गाँव इकट्ठा हो गया, सब एक से बढ़ कर एक मूर्ख अपनी अपनी राय देने लगे. और कोई रास्ता समझ नहीं आया तो यह तय हुआ कि लड़के के हाथ काटने पड़ेंगे. तब तक लाल बुझक्कड़ आ गए. वह इस बात से बहुत नाराज हुए. उन्होंने ने राय दी कि छप्पर की कड़ियाँ और फूस हटा कर लडके को बल्ली के सहारे सहारे ऊपर उठाओ और बल्ली से बाहर निकाल दो.
लाल बुझक्कड़ बूझिए और न बूझा कोय, हो न हो अल्लाह की सुरमादानी होय. सन्दर्भ कथा – एक गाँव के लोगों ने कभी ओखली मूसल नहीं देखा था. एक बार सुबह सुबह गाँव का कोई व्यक्ति गाँव के बाहर गया तो उसे वहाँ ओखली मूसल रखा दिखाई दिया. वह चक्कर में पड़ गया कि यह क्या चीज़ हो सकती है. उसने अन्य गाँव वालों को इकठ्ठा किया और सब के सब यह कयास लगाने लगे कि यह क्या हो सकता है. कोई हल न निकलने पर लाल बुझक्कड़ बुलाए गए. उनहोंने बहुत सोच कर यह राय दी कि हो न हो यह अल्लाह मियाँ की सुरमे दानी होगी
लाल बुझक्कड़ बूझिए, और न बूझा कोय; पाँव में चाकी बाँध के, हिरना कूदा होय. सन्दर्भ कथा – एक बार किसी गाँव के पास से रात में कोई हाथी निकल कर गया. उस गाँव के लोगों ने कभी हाथी नहीं देखा था. सुबह उठ के लोगों ने हाथी के पैरों के बड़े बड़े गोल निशान देखे. सब लोग कौतूहलवश इकट्ठे हो गए. तरह तरह के अनुमान लगने लगे. किसी की समझ में कुछ नहीं आया तो लाल बुझक्कड़ बुलाए गए. लाल बुझक्कड़ ने दिमाग लगा कर इस पहेली को बूझा, बोले पैर में चक्की बाँध के हिरन कूदा होगा.
लाल, पीयर जब होय अकास, तब नइखे बरसा के आस. (भोजपुरी कहावत) अगर आकाश का रंग लाल और पीला हो तो बारिश की संभावना नहीं होती.
लालच बस परलोक नसाया. लालच में पड़ कर आदमी गलत काम करता है और अपने परलोक का सत्यानाश कर लेता है.
लालच बुरी बलाए. बला माने कोई मुसीबत, दैवी आपदा. लालच सबसे बुरी बला है.
लाला का घोड़ा, खाए बहुत चले थोड़ा. लाला के घोड़े को खाने को खूब मिलता है और काम कोई ख़ास होता नहीं है इसलिए उस की आदतें खराब हो जाती हैं. बड़े आदमियों के नौकर चाकरों के लिए यह कहावत कही जाती है.
लाला जी तोर बतिया कहि देब. यदि किसी के मन में चोर हो तो कोई सामान्य रूप से कही गई बात भी उस को रहस्य खोलने की धमकी लग सकती है. सन्दर्भ कथा – कोई लालाजी बेर के पेड़ के नीचे बैठ कर शौच कर रहे थे. तभी पेड़ से एक पका हुआ बेर टूट कर उनके सामने गिरा. लाला जी से नहीं रहा गया. उनहोंने वह बेर उठा कर खा लिया. उसी दिन उस गाँव में एक बरात आई थी. बरात की महफिल में एक वैश्या गाने लगी, लाला जी तोर बतिया कहि देब. वहाँ बैठे लालाजी ने समझा कि वैश्या ने पाखाना करते समय उन को बेर खाते देख लिया है. अतः लालाजी वैश्या के सम्मुख रुपये फेंकने लगे, ताकि वह चुप हो जाय.
वैश्या ने समझा कि लालाजी को उसका गाना खूब पसंद आ रहा है अतः वह बार-बार वही पद दुहराती रही और लालाजी रुपयों की वर्षा करते रहे. अन्त में तंग भाकर लालाजी ने कहा, ‘क्या कहेगी, यही न कि मैं सुबह पाखाना करते समय बेर खा रहा था. कह दे, अब मैं और रूपये नहीं दूंगा. तात्पर्य है कि दोषी व्यक्ति को अपने-आप पर सदैव शंका बनी रहती है
लिखतम के आगे बकतम नहीं चलती. लिखा-पढ़ी के सामने जबानी बात नहीं चल सकती.
लिखना आवे नहीं, मिटावें दोनों हाथ. खुद काम करना आता नहीं है, दूसरों का किया काम बिगाड़ते हैं.
लिखना न आवे कलम टेढ़ी. लिखना नहीं आता है तो कलम को टेढ़ी बता रहे हैं. (नाच न आवे आंगन टेढ़ा).
लिखना पढ़ना सीखे जोई, गाड़ी घोड़ा पावे सोई. पढ़ लिख कर ही कोई व्यक्ति उन्नति कर सकता है.
लिखे न पढ़े, ऊपर चढ़े. जो लोग अनपढ़ होते हुए भी तिकड़म से अच्छा स्थान प्राप्त कर लें उन पर व्यंग्य.
लिखे न पढ़े, कान में कलम. झूठा दिखावा करने वालों के लिए.
लिखे न पढ़े, नाम मुहम्मद फाजिल. फ़ाज़िल – विद्वान. गुण के विपरीत नाम.
लिखे मूसा पढ़े ईसा. बहुत गंदी लिखावट.
लिखे लोढ़ा पढ़े पत्थर, सोलह दूनी आठ. अनपढ़ मूर्ख व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए.
लिवा भैया लाए, पर काम तो भौजाई से परे. ससुराल से मायके आयी लड़की से कहा जा रहा है कि तुम्हें भैया लिवा लाये हैं पर काम तो भावज से ही पड़ेगा. जब कोई किसी एक के बूते पर दूसरे की अवज्ञा करना चाहे तब.
लीक लीक गाड़ी चले, लीकहिं चले कपूत, लीक छोड़ तीनहिं चलें, शायर सूर सपूत. पहले के जमाने में जब कच्ची सड़कें हुआ करती और घोड़ागाड़ी व बैलगाड़ियों में लकड़ी के पहिए हुआ करते थे तो सड़क पर पहियों की लकीरें खुद जाती थीं जिन्हें लीक कहते थे. ज्यादातर गाड़ियाँ लीक में ही चलती थीं. इसी प्रकार समाज के अधिकतर लोग समाज की बनी बनाई मान्यताओं का ही अनुसरण करते हैं केवल कुछ लोग ही उस से अलग हट कर चलने का प्रयास करते हैं. (शायर, शूरवीर और योग्य पुत्र).
लुगरी में डोरे की हानि. पुराने कपड़े को सिलने की कोशिश करने में धागा ही नष्ट होता है. बिगड़े हुए काम को संवारने की कोशिश में जो भी लागत लगती है, वह सब व्यर्थ ही जाती है.
लुगाई एक घर के दो करा दे. झगड़ालू स्त्रियाँ घर का बंटवारा करा देती हैं. लुगाई – स्त्री.
लुगाई की लाज घूँघट में. हमारे देश में लम्बे घूँघट का प्रचलन पहले नहीं था. घूँघट का सामान्य अर्थ था सर और माथे पर हल्का सा पल्लू डाल कर बड़ों के प्रति आदर दिखाना और बाहरी लोगों से दूरी बनाना. कामुक, लुटेरे, वहशी आक्रान्ताओं के कारण यहाँ की महिलाओं को परदे में कैद होना पड़ा.
लुगाई के पेट में बच्चा समा जाता है बात नहीं समा सकती. स्त्रियाँ नौ महीने बच्चे को पेट में रख सकती हैं पर दो मिनट कोई बात उनके पेट में नहीं पच सकती.
लुगाई बूढ़ी हो जावे तो भी पीहर की याद आवे. स्त्री बूढ़ी हो जाए तो भी मायके को याद करती है.
लुगाई से उसकी उमर न पूछो. स्त्री से उसकी आयु पूछना बहुत असभ्यता की निशानी है.
लुच्चे की जोरू को सदा तलाक. चरित्रहीन व्यक्ति की पत्नी को सदा इस बात का डर सताता है कि उसका पति उसे छोड़ कर नई स्त्री ला सकता है. मुस्लिम स्त्रियाँ भी सदैव इसी प्रकार के डर में जीती हैं.
लुटने के बाद क्या डर (डर कैसा). जिस के पास कोई कीमती सामान हो उस को लुटने का डर होता है. अगर उसका वह माल छिन जाए तो फिर किस बात का डर.
लुटने के बाद डोमनी बारह कोस भागी. नुकसान उठाने के बाद बचने का उपाय करना.
लुटा बनिया और पिटा ठाकुर ये राज नहीं खोलते. बनिया कहीं से लुट कर या ठग कर आया हो और ठाकुर पिट कर आया हो तो ये किसी को बताते नहीं हैं (क्योंकि लोग इन पर हंसते हैं).
लुटिया चोर, टिकिया चोर, बड़ा चोर. जो चोर आज लोटे और साबुन की टिकिया जैसी छोटी चीज़ चुरा रहा है वही कल को बड़ा चोर बन जाता है.
लूट का क्या भाव, मरने का क्या चाव. लूटी हुई चीज या चोरी की हुई चीज़ का कोई भाव नहीं होता (वह जितने में भी बिक जाए). इसके साथ एक असम्बद्ध बात जोड़ दी गई है कि मरने का किसी को शौक नहीं होता.
लूट का चरखा भी नफ़ा (लूट का मूसल भी भला). चरखा या मूसल वैसे तो बहुत सस्ती चीज़ है लेकिन लूट में मिल जाए तो क्या बुरा है.
लूली लीपे तो दो जनें उसकी कमर थामें. लूली – ऐसी स्त्री जिसके हाथ न हों या कमजोर हों. अपंग या कमजोर आदमी से कोई काम कराओ तो उसे सहारा देने के लिए दो लोग और चाहिए.
ले दे के उतरे गंगा पार. जैसे तैसे काम बन गया.
लेकर दिया, कमा कर खाया वो क्या झख मारने जग में आया (लेकर दिया तो जनम काहे को लिया). उधार ले कर वापस कर दिया और खुद कमा कर खाया तो दुनिया में आने का फायदा ही क्या हुआ.
लेखनी, पुस्तक, नारी पराए हाथ न दो. फाउंटेन पेन को दूसरा व्यक्ति चलाए तो उस की निब खराब हो जाती है इसलिए किसी को नहीं देना चाहिए. पुस्तक को कुछ लोग बड़ी बेकद्री से रखते हैं इसलिए किसी को नहीं देना चाहिए और स्त्री को किसी के सुपुर्द करने के विषय में सोचना भी नहीं चाहिए.
लेखा चोखा, प्रेम चौगुना (लेखे का नाम चोखा). व्यापार हो या आपसी व्यवहार, लिखत पढ़त और लेन देन ठीक रखा जाए तो प्रेम बना रहता है.
लेखा जौ जौ, बख्शी सौ सौ. जहाँ बात लिखत पढ़त की आती है वहाँ जौ का भी हिसाब रखना चाहिए, चाहे आप उस सैकड़ों रुपये बख्शीश में दे देते हों. आपस दारी में भी जब बात हिसाब किताब की आती है तो छोटी छोटी चीजों का भी पूरा हिसाब रखना चाहिए. इस को इस प्रकार भी कहते हैं – हिसाब बाप बेटे का, बख्शीश लाख की.
लेते लेते जनम बिताया, लिया है फिर लेंगे, देने का अक्षर न जानें दिया है न देंगे. विशुद्ध स्वार्थ.
लेन देन पर ख़ाक, मुहब्बत रक्खो पाक. इस कहावत को दो प्रकार से प्रयोग करते हैं – 1. थोड़े बहुत लेन देन के पीछे प्रेम सम्बन्ध नहीं तोड़ना चाहिए. 2. जो लोग क़र्ज़ ले कर वापस नहीं करना चाहते वे इस प्रकार की बहाने बाजी करते हैं. रूपान्तर – लेने देने के मुंह में ख़ाक, मुहब्बत बड़ी चीज़ है.
लेन देन में थोड़मथोड़, पांय लगन में ताबड़तोड़. ऐसे लोगों के लिए जो आपसी लेन देन में अधिक विश्वास नहीं रखते लेकिन दिखावटी आदर करने और मक्खन लगाने में बहुत माहिर होते हैं.
लेनदेन में लाज कैसी. लेन देन के मामले में औपचारिकता नहीं करनी चाहिए, लिखत पढ़त पूरी करनी चाहिए.
लेना एक न देना दो. 1. जिस चीज़ से कोई सम्बन्ध न हो, न कुछ लेना हो न कुछ देना हो. 2. ऐसा व्यक्ति जिसे सांसारिकता से कोई मतलब न हो.
लेना देना कुछ नहीं लड़ने को मौजूद. जो लोग फ़ालतू की बात पर लड़ने को तैयार रहते हैं उन के लिए.
लेना देना साढ़े बाईस. व्यर्थ का मोल भाव करना.
लेना न देना बजाओ जी बजाओ. मांगलिक अवसरों पर ढोल शहनाई आदि बजाने वालों को ईनाम दिया जाता है. जहाँ पर ईनाम कोई न दे रहा हो और काम करने को कहा जा रहा हो वहाँ यह कहावत कही जाती है.
लैनो करके देनों करिये, मरत न होओ तो वैसेहि मरिये. जो किसी एक से ऋण लेकर किसी दूसरे को ऋण देता है वह बेमौत मरता है.
लैला की खूबसूरती देखनी हो तो मंजनू की निगाह से देखो. जिस को आप प्रेम करते हैं वह आप को बहुत सुंदर दिखाई देता है.
लोक वाणी सो देव वाणी. 1.जनता जिस भाषा को समझती है वही देवताओं की वाणी मानी जानी चाहिए. 2. जनता के मत को ईश्वर की आज्ञा मानना चाहिए.
लोग राजा रामचन्द्र के भी न हुए. जनता किसी की सगी नहीं होती और किसी का उपकार नहीं मानती.
लोटा ले के हगन गए और टट्टी हो गई बंद, भजो राधे गोविन्द. कोई बड़बोला आदमी बड़े ताव में आ कर कोई काम करने जाए और असफल हो कर लौटे तो बाकी लोग उस का मज़ाक उड़ाने के लिए बोलते है.
लोढ़ा डूबे, सिल तिरे. उल्टी बात. कायदे में सिल लोढ़े से भारी होती है इसलिए पहले डूबना चाहिए.
लोबान जले और मुरदा चेते. स्वार्थ की बात सुन कर मुर्दा भी सजग हो जाता है.
लोभ का पेट सदा खाली. लोभी व्यक्ति को कितना भी मिल जाए उसकी भूख कभी मिटती नहीं है.
लोभी का माल झूठा खाए (लोभी जहाँ बसते हैं वहाँ झूठे भूखों नहीं मरते) (लोभी के घर ठग उपास ना करे). लोभी को झूठ बोल कर ठगना आसान होता है. वह लालच के कारण आसानी से प्रलोभन में आ जाता है.
लोभी गुरू लालची चेला, दोनों नरक में ठेलम ठेला. अर्थ स्पष्ट है.
लोभी घर में ठग उपास. ऊपर वाली कहावत से उलट. लोभी के घर में ठग को भी कुछ खाने को नहीं मिलता. लालची व्यक्ति के सामने ठग की भी दाल नहीं गलती.
लोमड़ी के ब्याह में गीदड़ गीत गावें. ओछे लोगों के घटिया लोग ही मित्र होते हैं.
लोमड़ी के लाख उपाय. धूर्त आदमी कुछ न कुछ तिकड़म कर के अपना काम निकाल ही लेता है.
लोमड़ी के शिकार को जाओ तो भी शेर के लायक सामान लाओ. छोटे काम के लिए जाओ तो भी तैयारी पूरी करनी चाहिए (क्या मालूम अचानक से कोई बड़ी विपदा आ जाए).
लोमड़ी ने पादा ओर सियार ने हामी भरी. धूर्त लोग आपस में एक दूसरे के हर सही या गलत क्रियाकलाप का बिना शर्त समर्थन करते हैं.
लोहा जाने लुहार जाने, धौंकने वाले की बला जाने. धौंकनी से हवा फूँकने वाले को इस बात से मतलब नहीं है कि लोहे का क्या हो रहा है और लोहार सही कर रहा है या गलत, उसे तो जो काम मिला है वह कर रहा है.
लोहा जाने लुहार जाने, बढ़ई की बला जाने. कोई चीज बनाने में कहाँ से कच्चा माल आया, कितनी परेशानी से उसे बनाया गया, इस सब से हमें क्या लेना देना. हमें तो इस्तेमाल करने से मतलब है.
लोहार की झाड़ू, आग पानी दोनों में. कोई व्यक्ति सब प्रकार की परिस्थितियों में काम आता हो तो.
लोहारिक का बैल, कुम्हारिन ले के सती होए. लोहार का बैल मर गया, कुम्हार की पत्नी उसे ले कर सती हो रही है. किसी असंबंधित व्यक्ति के दुख में बहुत अधिक दुखी होना.
लोहू लगा कर शहीदों में दाखिल. शहीद होने का नाटक करना (लड़ाई होती देख कर छिप गए और बाद में कपड़ों पर किसी घायल का खून लगा कर बताने लगे कि मैं बहुत बहादुरी से लड़ा).
लोहे की मंडी में मार ही मार. लोहे की मंडी में सब तरफ ठोक पीट और उठा पटक की आवाजें आती हैं. जिस स्थान पर बहुत शोर शराबा और गतिविधियाँ हों वहाँ के लिए.
लोहे को लोहा काटता है (लोहे को लोहा ही पकड़े). लोहे को पकड़ने और काटने के लिए लोहा ही काम आता है. जो जैसा हो उस उसी प्रकार की युक्ति से हराया जा सकता है. रूपान्तर – लोहे को लोहा काटे और जात को जात.
लौंडी की जात क्या, रंडी का साथ क्या, भेड़ की लात क्या, औरत की बात क्या. लौंडी – दासी. चार अलग अलग बातें तुकबन्दी के साथ बताई गई हैं. दासी किसी भी जाति की हो उससे क्या अंतर पड़ता है, वैश्या किसी का साथ नहीं देती, भेड़ की लात से चोट नहीं लगती और स्त्री की बात का कोई महत्व नहीं है.
लौंडी बन कर कमाओ और बीबी बन कर खाओ. मेहनत कर के और छोटा बन कर कमाओ तो बड़े बन जाओगे और इज्ज़त से खाने को मिलेगा.
लौटो बराती और गुजरो गवाह, जे फिर नहीं पूछे जाते. बरात में बारातियों की बड़ी पूछ होती है. लड़के वाला और लड़की वाला दोनों ही बड़ा ध्यान रखते हैं. बरात से लौटने के बाद भी वे उसी प्रकार के व्यवहार की उम्मीद करते हैं पर फिर कोई उन्हें नहीं पूछता. ऐसे ही किसी मुकदमे में कोई गवाह होता है तो गवाही होने तक उसकी बड़ी पूछ होती है, बाद में उसे कोई नहीं पूछता. काम निकलने के बाद किसी की पूछ नहीं होती.