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कंकड़ बीनते हीरा मिला. किसी बहुत छोटे काम को करते समय बड़ा लाभ हो जाना.
कंकड़ से गाड़ी अटक गई. नाम मात्र की बाधा से कार्य की प्रगति रुक गयी.
कंगाल का कलेजा कच्चा. गरीब बेचारा हर समय डर डर के जीता है.
कंगाल की छोरी और लड्डू के लिए रूठे. व्यक्ति को उसी चीज की मांग करनी चाहिए जो उस की पहुँच में हो.
कंगाल को महुआ मीठा. गरीब आदमी को जो भी खाने को मिल जाए उसी में आनंद अनुभव करता है.
कंगाल छैल गाँव को भारी. जिसके पास पैसे न हों और तरह तरह के शौक करना चाहता हो वह चोरी ठगी करके अपने शौक पूरे करता है इसलिए सारे समाज के लिए बोझ बन जाता है.
कंगाली (गरीबी) में आटा गीला. एक अत्यधिक गरीब व्यक्ति बहुत मुश्किल से आटा ले कर आता है लेकिन पानी गिरने से वह आटा बेकार हो जाता है. कोई व्यक्ति पहले से ही मुश्किल में हों और ऊपर से कोई और परेशानी खड़ी हो जाए तो यह कहावत कही जाती है.
कंचन जैसी ऊजली उत्तर बीच सुहाए, अग्गम देवे सूचना बेगी बरखा आए. यदि उत्तर दिशा में बादलों के बीच बिजली चमकती हो तो अच्छी वर्षा होने की संभावना होती है.
कंजड़ की कुतिया कहाँ जा के ब्याहेगी. राजस्थान की घुमंतू जाति के लोगों को कंजड़ भी कहते हैं. उनका कोई एक ठिकाना नहीं होता यह बताने के लिए मजाक में इस प्रकार से कहा गया है.
कंजूस कै धन सैतान खात. कंजूस के धन का इस्तेमाल कोई दूसरा दुष्ट व्यक्ति करता है, या बेकार जाता है.
कंठ मिलावै पिय को लाई, कांधे पड़य विजय दरसाई. कवि भड्डरी कहते हैं छिपकली यदि कंठ के ऊपर गिरती है तो प्रियतम से मिलन होता है, यदि कंधे के ऊपर गिरती है तो यह जीत होने का लक्षण है.
कंठी टीका मधुरी बानी, दगाबाज़ की यही निशानी. जो व्यक्ति गले में कंठी पहने हो, टीका लगाए हो और मीठा बोल रहा हो उससे सावधान रहिए.
कंडा कंडा जोड़े बिटौरा जुरत. बिटौरा – कंडों का ढेर. थोड़ा-थोड़ा इकट्ठा करके बहुत हो जाता है.
कंत न पूछे बात, मेरा धरा सुहागन नाम. कंत – पति. जब किसी घर, विभाग या संगठन में किसी व्यक्ति की पूछ न हो रही हो और फिर भी वह अपना महत्त्व जताने की कोशिश करे तो.
कंह कुम्भज, कंह सिन्धु अपारा. अगस्त्य मुनि को कुम्भ (घड़े) से उत्पन्न हुआ माना जाता है. उन के विषय में कहा जाता है कि उनहोंने समुद्र को पी लिया था. उन्हीं के ऊपर कहावत बनी है कि कहाँ एक मनुष्य और कहाँ अथाह समुद्र. कोई मनुष्य कोई असंभव सा लगने वाला काम करे या करने जा रहा हो तो ऐसा बोलते हैं.
क ख ग के लूर ना, दे माई पोथी. (भोजपुरी कहावत) क ख ग जानते नहीं हैं और पोथी पढ़ने को मांग रहे हैं. जिस चीज को प्रयोग करना नहीं आता उस की मांग करना.
ककड़ी के चोर को कनेठी ही काफी है. कनेठी – कान उमेठना. छोटी चोरी के लिए छोटी सी सजा पर्याप्त है. रूपान्तर – ककड़ी के चोर को लकड़ी. छोटे अपराध के लिए छोटी सी सजा (लाठी से पिटाई) ही काफी है.
ककड़ी के चोर को फांसी नहीं दी जाती. छोटे अपराध के लिए बड़ी सजा नहीं दी जाती. देखिए सन्दर्भ कथा 85.
कचरे से कचरा बढ़े. जहाँ एक बार कूड़ा डालना शुरू कर दो वहाँ और कूड़ा पड़ने लगता है.
कचहरी में दीवार भी हाथ फैलाती है. न्यायालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर व्यंग्य.
कच्चा तो कचौड़ी मांगे, पूरी मांगे पूरा, नोन मिर्च तो कायस्थ मांगे, बामन मांगे बूरा. कच्चा माने छोटी उम्र का बालक, पूरा माने वयस्क. बालक कचौड़ी मांगता है, वयस्क पूड़ी खाना चाहता है, कायस्थ को मिर्च मसाले पसंद आते हैं और ब्राह्मण मीठे से प्रसन्न होता है. (ब्राह्मणं मधुर: प्रियं)
कच्ची कली कनेर की तोड़त ही कुम्हलाए. जो बच्चे बहुत नाजों से पले होते हैं वे थोड़े से कष्ट से ही विचलित हो जाते हैं.
कच्ची शीशी मत भरो, जिसमें पड़ीं लकीर, बालेपन की आशिकी गले पड़ी जंजीर. बहुत छोटी आयु में इश्क प्रेम के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए.
कच्चे घड़े में पानी नहीं भर सकता. अपरिपक्व व्यक्ति कोई सार्थक कार्य नहीं कर सकता.
कच्चे बांस का लवेदा. कमजोर साधन. लवेदा – डंडा.
कछु इन मूँछन की निभाओ. पति पत्नी से कह रहा है कि कुछ हमारी भी लाज रख लो.
कछु कहि नीच न छेड़िए, भलो न वाको संग, पाथर डारै कीच मैं, उछरि बिगारै अंग. नीच को छेड़ने में अपने मान सम्मान को ही खतरा होता है. कीचड़ में पत्थर फेंको तो अपने ऊपर छींटें आती हैं.
कछु दिन जदपि लुभत संसार, सदा न निभे कपट व्यौहार. कपट पूर्ण व्यवहार कर के कुछ दिन आप संसार को लुभा सकते हैं लेकिन अंत में भेद खुल ही जाता है.
कछु बसाय नहि सबल सों, करै निबल पर जोर, चलै न अचल उखारि तरु, डारत पवन झकोर. शक्तिशाली पर बस न चले तो दुर्बल पर सब जोर दिखाते हैं. पवन पर्वत को नहीं हिला सकता तो वृक्षों को ही उखाड़ देता है.
कछुए का काटा कठौती से डरे. कठौती – काठ का बर्तन जिस में पानी भर कर रखते हैं. किसी को कछुए ने काट लिया हो तो वह पानी भरे बर्तन से डरने लगता है.
कज़ा के आगे हकीम अहमक. किसी की मौत आ गई हो तो हकीम की क्या हैसियत है.
कटखनी कुतिया मखमल की झूल. कोई बदतमीज आदमी बड़ा हाकिम बन जाए तो.
कटखनी कुतिया मरखनी गाय, उस के द्वारे कोई न जाय. जिस के घर में काट खाने वाली कुतिया हो और सींग या लात मारने वाली गाय हो, उस के घर जाने से बचना चाहिए.
कटड़े की मां तलै नौ मन दूध, पर कटड़े का क्या. (हरयाणवी कहावत) गाय के थनों में नौ मन दूध है पर कटड़े को उस का कोई लाभ नहीं मिलता. कोई बड़ा आदमी अपने घर वालों के काम न आता हो तो.
कटरे धोए कहीं बछड़े हुआ करें. भैंस के बच्चे को कितना भी रगड़ रगड़ कर धो लो वह गाय का बछड़ा नहीं बन सकता. कितना भी प्रयास कर लीजिए अयोग्य व्यक्ति को योग्य नहीं बना सकते.
कटे पे नोन मिर्च मत बुरको. जले को और मत जलाओ.
कड़की कहीं और गिरी कहीं. बिजली कहीं कड़कती है और कहीं गिरती है. अनिष्ट की आशंका कहीं और थी और हो कहीं और गया. कर्कशा स्त्रियों का मजाक उड़ाने के लिए भी ऐसे बोलते हैं.
कड़वा बोली माई, मीठा बोले लोग, सच कहती थी माई, झूठ कहे थे लोग. माँ जब बचपन में डांटती थी तो उस की बात बहुत कड़वी लगती थी और अन्य लोगों की बातें अच्छी लगती थीं. बड़े हो कर समझ में आया कि माँ सच कहती थी और बाकी लोग झूठ बोलते थे.
कड़वी बात भी हँस कर कही जाय, तो मीठी हो जाती है. अर्थ स्पष्ट है. समझ सकें तो बहुत उपयोगी बात है.
कड़वी बेल की कड़वी तूमड़ी, अडसठ तीर्थ नहाई, गंग नहाई गोमती नहाई मिटी नहीं कड़वाई. तूमड़ी एक लौकी के समान फल होता है जिस को सुखा कर सन्यासी लोग कमंडल बना लेते हैं. सन्यासी के साथ तूमड़ी भी सब तीर्थों के जल में डुबकी लगा लेती है लेकिन उसकी कड़वाहट नहीं जाती. कहावत का अर्थ है कि अच्छी संगत पा कर और तीर्थ यात्रा कर के भी दुष्टों का स्वभाव नहीं बदलता. (देखिये परिशिष्ट).
कडवी बेल की तूमड़ी उस से भी कड़वी. किसी निम्न श्रेणी के झगड़ालू परिवार का कोई व्यक्ति और अधिक झगड़ालू हो तो.
कड़वी बेल तेज़ी से बढती है. जिस में बहुत से अवगुण हों वह तेजी से बढ़ता है. इंग्लिश में कहते हैं – An ill weed grows apace.
कड़वी भेषज बिन पिए, मिटे न तन का ताप. बुखार कड़वी दवा से ही उतरता है. किसी भी परेशानी को हल करने के लिए कुछ कष्ट उठाना पड़ता है.
कड़ी काट बेलन बनाया. पहले के मकानों में लकड़ी की छतें हुआ करती थीं. उन में लम्बी मजबूत लकडियाँ (कड़ियां) एक दीवार से दूसरी दीवार तक लगाते थे और उन पर तख्ते लगा कर छत बनाते थे. बेलन जैसी छोटी सी चीज़ को बनाने के लिए कड़ी जैसी बड़ी चीज़ को काट कर बर्बाद करना अर्थात बहुत मूर्खता पूर्ण कार्य.
कड़ुआ स्वभाव, डूबती नाव. जिस को मीठा बोलना न आता हो वह किसी काम में सफल नहीं हो सकता.
कड़ुए से मिल के रहो, मीठे से डर के रहो. कड़वा आदमी खरी लेकिन भले की बात कहता है. मीठा आदमी मीठी लगने वाली लेकिन झूठी बात कह कर आपको खुश करता है और आपको नुकसान पहुँचा सकता है.
कड़ेरे के ब्याह, कुँदेरो हात जोरत फिरे. कड़ेरा – हथियार बनाने वाली जाति, कुंदेरा – खराद आदि का काम
करने वाला व्यक्ति. कड़ेरे के यहाँ शादी और कुँदेरा हाथ जोड़ता फिर रहा है. बेमेल काम. रूपान्तर – कोरी का ब्याह, कड़ेरा हाथ जोड़े फिरे. कोरी – बुनकर.
कड़ेरे के लड़का, कुँदेरे को बधाई. कड़ेरे के घर बेटा हुआ और बधाई कुंदेरे को दे रहे हैं. बेमेल काम.
कढ़ाई से निकले चूल्हे में पड़े (तवे से उतरी, चूल्हे में पड़ी), (खटाई से निकले अमचूर में पड़े). एक मुसीबत से निकल कर दूसरी में पड़ जाना. इंग्लिश में कहावत है – Out of frying pan, into the fire.
कढ़ी हमें खान दो के फैलान दो. हमें नहीं मिलेगा तो हम किसी को नहीं मिलने देंगे. जबर्दस्ती गले पड़ना.
कण कण भीतर राम जी, ज्यूँ चकमक में आग. चकमक पत्थर को रगड़ने से आग निकलती है पर ऊपर से आग नहीं दिखती. इसी प्रकार कण कण में राम हैं जिन्हें हम देख नहीं पाते.
कण थोड़े और कंकड़ ज्यादा (कन थोड़ा कांकर घना). अनाज के दाने कम और कंकड़ ज्यादा. उपयोगी वस्तुएं कम और फ़ालतू चीजें अधिक. मतलब की बात कम और व्यर्थ की बकवास अधिक
कतवारी को सुधरे, बतवारी को बिगड़े. कतवारी – सूत कातने वाली (यहाँ काम करने वाली स्त्री से तात्पर्य है), बतवारी – बातें बनाने वाली. काम काज करने वाली स्त्री के बच्चे अच्छे निकलते हैं और बातें बनाने वाली व काम न करने वाली स्त्री के बच्चे बिगड़ जाते हैं.
कत्त्थर गुद्दर सोवैं, मरजादी बैठे रोवैं. मरजादी – प्रतिष्ठित व्यक्ति (मर्यादा से बना है). कथरी गुदड़ी ओढ़ने वाला आराम से सो रहा है लेकिन फैशन करने वाला परेशान बैठा है. अर्थ है कि सादा जीवन जीने वाले सुखी रहते हैं.
कथनी मीठी खांड़ सी, करनी विष की लोय. जो बातें मीठी मीठी करे और पीठ में छुरा भोंके.
कथनी से करनी भली. केवल कहते रहने से कर के दिखाना बेहतर है. इंग्लिश में कहावत है – Actions speak louder than the words. रूपान्तर – कथनी से करनी बड़ी.
कथनी से न बहक, करनी को परख. कोई व्यक्ति बढ़ चढ़ कर बातें हांक रहा हो तो फौरन उस का विश्वास न करके उसके कृतित्व को देखना चाहिए.
कथरी ओढ़ के घी पिया. ऊपर से गरीबी का प्रदर्शन करना और अंदर ठाठ से रहना.
कथा सुनी भागवत सुनी, भौत भई खुसी, हृदय ज्ञान लागो नहीं, चिन्ता राँड़ घुसी. सांसारिक चिन्ताओं से ग्रस्त आदमी को ज्ञान की कोई बात नहीं सुहाती.
कदम कदम पर कुनबा डूबे, आगे धरमराज दरबार. किसी काम में कदम कदम पर बाधाएं आने के कारण नुकसान हो रहा है, और आगे काम पूरा करके हिसाब देना है.
कदली और काँटों में कैसी प्रीत. केले और काँटों में प्रेम नहीं हो सकता. कांटे की प्रवृत्ति यही है कि वह केले को चुभ कर कष्ट पहुंचाएगा. (कह रहीम कैसे निभे केर बेर को संग)
कदली काटे ही फले. केले का पेड़ काटने के बाद ही फल देता है. मूर्ख व दुष्ट व्यक्ति दंड मिलने पर ही कार्य करते हैं.
कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन. स्वाति नक्षत्र की बूंद केले पर गिरती है तो कपूर बनती है, सीप में गिरे तो मोती और सांप के मुँह में गिरे तो विष बनती है. अर्थात संगत से ही सब कुछ होता है. रूपांतर – स्वाति बूंद सीपी मुकुत, कदली भयो कपूर, कारे के मुख बिख भयो, संगति सोभा सूर.
कद्र उल्लू की उल्लू जानता है. मूर्ख आदमी की कद्र मूर्ख ही कर सकता है.
कद्र खो देता है रोज का आना जाना. बार बार कहीं जाने से आदमी की कद्र कम हो जाती है. संस्कृत में कहावत है – अति परिचयादवज्ञा सतत गमनमनादरो सन्ति.
कद्रदान की जूतियाँ उठाइये, नाकद्रे को जूतियाँ मारने भी न जाइए. जो आपकी कद्र करता हो उसका हर काम करिए और जो कद्र न करता हो उसकी उपेक्षा कीजिए.
कन कन जोड़े मन जुड़े, खावत निबड़े सोय. एक एक कण जोड़ने से एक मन (चालीस सेर) इकठ्ठा हो सकता है. थोड़ा थोड़ा जोड़ने से बड़ी राशि इकठ्ठी की जा सकती है. लेकिन बैठ कर खाने से सब समाप्त हो जाता है.
कन का चोर सो मन का चोर. चोर तो चोर है, कण भर चुराए या मन भर (चालीस सेर) चुराए.
कनक कनक तें सौ गुनी मादकता अधिकाय, वा खाये बौराय जग, या पाये बौराय. कनक– धतूरा, कनक– सोना. सोने में धतूरे से सौ गुना नशा है. धतूरे को खा कर आदमी बौराता है, सोने को तो पा कर ही बौरा जाता है.
कनखजूरे का एक पैर टूटने से वह लंगड़ा नहीं हो जाता (कनखजूरे के कै पाँव टूटेंगे). कनखजूरे के सैकड़ों पैर होते हैं, दो चार टूट जाएंगे तो क्या फर्क पड़ेगा. बहुत धनी व्यक्ति को थोड़ा बहुत नुकसान भी हो जाएगा तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. कनखजूरे के चित्र के लिए देखिए परिशिष्ट.
कनवा पांडे पांय लागूं (काणे दादा पांय लागूँ), वोहे लड़ाई के लच्छन. काने को काना कह के पुकारोगे तो लड़ाई तो होगी ही. किसी को उसकी कमी के बारे में सीधे सीधे नहीं बताना चाहिए.
कनवा बैल बयारे सनके. कनवा – काना, बयारे – हवा चलने से. काना बैल ठीक से देख नहीं पाता इसलिए हवा चलने से ही बिदक जाता है. जो व्यक्ति सही गलत में भेद नहीं कर सकता वह बिना कारण के सनक जाता है.
कनवा से कनवा नहीं कहा जात. किसी को उसके मुँह पर उसकी कमी नहीं बताना चाहिए.
कन्या कानें जाड़, हथिया हस्ते जाड़, चित्रा चित्ते जाड़. जाड़े की तीव्रता राशि नक्षत्रों के अनुसार अलग अलग होती है. कन्याराशि के समय कानों में, हस्ति के समय हाथों में और चित्रा के समय चित्त (हृदय) में जाड़ा लगता है.
कन्या की बुआ और वर की मौसी. दोनों पक्षों से सम्बन्ध बताने वाले चतुर व्यक्ति के लिए.
कपटी की प्रीत, मरन की रीत. कपटी व्यक्ति से प्रेम करने पर बहुत कष्ट उठाना पड़ता है.
कपड़ा कहे तू मेरी इज्जत रख, मैं तेरी इज्जत रखूँ (कुल और कपड़ा रखने से रहें). कपड़े को संभाल कर रखा जाए व पहना जाए तो वह व्यक्ति की शोभा बढ़ाता है. रूपांतर – कपड़ा कहे तू मुझे कर तह, मैं तुझे दूँ शह.
कपड़ा पहने तीन वार, बुध, बृहस्पत, शुक्करवार. पुराने लोग मानते थे कि नए कपड़े को पहली बार इन तीन में से किसी दिन ही पहनना चाहिए.
कपड़ा मत देख मिजाज देख, देह मत देख दिमाग देख. किसी के कपड़े देख कर उसका आकलन नहीं करना चाहिए आचार व्यवहार देखना चाहिए एवं शरीर न देख कर बुद्धिमत्ता देखना चाहिए.
कपड़े का पेट बड़ा. कपड़े के व्यापार में अधिक मुनाफे की गुंजाइश होती है.
कपड़े फटे हैं तो क्या, घर दिल्ली है. वास्तविकता कुछ भी हो अपने को बड़ा बताने की कोशिश करना.
कपार फूटे तो फूटे, पेट न फूटे. चोरों को सिखाया जाता है कि कितनी भी मार कुटाई हो भेद नहीं बताना है.
कपास के खेत में गीदड़ गया, क्या ओढ़ेगा और क्या पहनेगा. वस्तु कितनी भी मूल्यवान क्यों न हो, जो उस का उपयोग नहीं कर सकता उसके लिए तो बेकार ही है.
कपास तो ओंटने को बनो. कपास तो ओटे जाने के लिए ही बना है. दीन-हीन तो पीड़ित होने के लिए ही बने हैं.
कपूत कलाल के जावे और सपूत सुनार के. कपूत कलाल के यहाँ जा कर शराब पीने में पैसे उड़ाते हैं और सपूत सुनार के यहाँ जा कर गहने आदि बनवाते हैं जिनसे बरक्कत होती है.
कपूत न जायो भलो, न आयो. कुपुत्र न तो पैदा किया अच्छा होता है न गोद लिया हुआ. जाया – पैदा किया हुआ. आया – गोद लिया हुआ.
कपूत बेटा मरा भला. कपूत बेटा कष्ट और बदनामी ही देगा इसलिए उस का मर जाना अच्छा.
कपूत भी अरथी में कंधा देता है. कुपुत्र भी कभी न कभी काम आता है.
कपूत से तो निपूती भली. पुत्र कुपुत्र निकल जाए इससे तो निस्संतान होना अच्छा.
कपूतन से पिंड की आस. पुत्र अयोग्य हो तो भी उससे मरणोपरांत पिंडदान की आशा तो रहती है.
कपूतों की अलग बस्ती नहीं होती. समाज में अच्छे और बुरे लोग एक साथ मिल कर रहते हैं.
कफन में जेब ना दफन में मेव. ज्यादा जोड़ कर कहाँ ले जाओगे, कफन में जेब नहीं होती और कब्र की दीवार में आले नहीं होते.
कब दादा मरेंगे कब बेल बंटेगी. बेल एक तरह का नेग होता है जो गमी के अवसर पर नाई इत्यादि को दिया जाता है. किसी एक कार्य की वज़ह से बहुत से काम अटके पड़े हों तो.
कब नटनी बांस चढ़े, कब भोजन पावे. मेहनतकश व्यक्ति मेहनत करके ही जी सकता है.
कब बाँझ ब्यावे और कब ढोल बाजे. ऐसा काम जिसके कभी होने की उम्मीद ही न हो.
कब मरे कब कीड़े पड़ें. दिल से निकली हुई बद्दुआ.
कब मुआ, कब राक्षस हुआ. किसी बहुत दुष्ट आदमी को कोसने के लिए कहे जाने वाले शब्द.
कब से भैया राजा भये, कोदों के दिन बिसर गए. कोदों एक घटिया अनाज है जिसे गरीब लोग खाते हैं. कोई मामूली व्यक्ति बड़ा आदमी बन जाए और अपने पुराने दिन भूल जाए तो लोग ऐसा बोलते हैं.
कबड्डी का खेल, नीम का तेल. नीम का तेल जैसे रोग निवारक होता और लाभदायक है, उसी तरह कबड्डी का खेल भी लाभदायक होता है.
कबहुं न धावे स्यार पर, बरु भूखो मृगराज. धावे – दौड़े, मृगराज – सिंह. शेर कितना भी भूखा क्यों न हो, सियार का शिकार नहीं करता. ऊंची प्रकृति के लोग निम्न कार्य नहीं करते.
कबहूँ नाहीं होते दूबर, रसोई के बामन, कसाई के कूकर. दूबर – दुर्बल. रसोइये का काम करने वाला ब्राह्मण और कसाई का कुत्ता कभी दुबले नहीं होते, क्योंकि उन्हें खूब खाने को मिलता है.
कबाड़ी के छप्पर पर फूस नहीं. जिस चीज़ की बहुतायत होनी चाहिए उसी का अकाल.
कबाब में हड्डी. अवांछनीय व्यक्ति. मांस को बारीक पीस कर उससे कबाब बनाए जाते हैं जो कि बहुत मुलायम होते हैं, यदि उस में हड्डी का टुकड़ा आ जाए तो कबाब का सारा मज़ा खराब कर देता है.
कबिरा आप ठगाइए, और न ठगिए कोय, आप ठगे सुख होत है, और ठगे दुख होय. कबीर कहते हैं कि कभी किसी को धोखा मत दो, चाहे आपको कोई ठग ले. इंग्लिश में कहावत है – Better suffer ill than do ill.
कबिरा खड़ा बाजार में लिए लुकाठी हाथ, जो घर फूंके आपना चले हमारे साथ. कबीर दास कहते हैं कि उनके साथ भक्ति के मार्ग पर चलना है तो अपनी गृहस्थी बर्बाद करनी पड़ेगी.
कबिरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर, ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर. इस संसार में आकर कबीर बस यही चाहते हैं कि सबका भला हो. न किसी से अनावश्यक दोस्ती करते हैं न दुश्मनी.
कबिरा गरब न कीजिए, कबहूँ न हंसिए कोय (अजहूँ नाव समुद्र में क्या जाने क्या होय). हम को अपने धन या पद पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए और किसी का उपहास नहीं करना चाहिए. संसार में रहते हुए किसी के साथ कभी भी कोई अनहोनी हो सकती है.
कबिरा जब पैदा हुए, जग हँस्या हम रोये, ऐसी करनी कर चलो, आप हँसे जग रोये. कबीर दास जी कहते हैं कि जब हम पैदा हुए थे उस समय सब खुश हुए और हम रो रहे थे. जीवन में कुछ ऐसा काम करके जाओ कि जब हम मरें तो दुनिया रोये और हम हँसें.
कबिरा यह संसार है, जैसो सेमल फूल, दिन दस के व्यवहार में, झूठे रंग न भूल. यह संसार सेमल के फूल की भांति रंग बिरंगा परन्तु क्षण भंगुर है इसलिए धनदौलत और उच्च पद पर अभिमान मत करो.
कबिरा ये घर प्रेम का खाला का घर नांहि. खाला – मौसी. मौसी का घर वह स्थान है जहाँ सब तरह का आराम मिलता है (अपने घर पर तो डांट भी पडती है). प्रभु की भक्ति करनी है तो यह समझ लो कि यह मौसी का घर नहीं है. यहाँ केवल ईश्वर से प्रेम ही करना है, सारे आराम भूल जाओ. इसकी अगली पंक्ति है – सीस उतारे भुईं धरे, तो पैठे घर मांहि. अपना सर उतार कर भूमि पर रखो (अपना अहम छोडो) तभी यहाँ बैठो.
कबिरा वो दिन याद कर पग ऊपर तल शीश, मृत्यु लोक में आनकर भूल गया जगदीश. कबीर कहते हैं कि जब तू माँ के गर्भ में था तो पैर ऊपर और सर नीचे कर के कष्ट में रह रहा था. अब मृत्युलोक में आ कर मोह माया में तू भगवान को ही भूल गया है.
कबिरा संगत साधु की ज्यों गंधी को बास, जो कुछ गंधी दे नहीं तो भी बास सुबास. साधु की संगत वैसी ही है जैसे सुगंध बेचने वाले के पास बैठना. गंधी कुछ न भी दे तो भी सुगंध आती है. उसी प्रकार साधु के साथ बैठने से सुविचार आते हैं.
कबिरा सोई पीर है जो जाने पर पीर, जो पर पीर न जानहीं सो काहे को पीर. मुसलमानों में कुछ लोगों को पीर (पहुँचे हुए संत) का दर्जा दिया जाता है. कबीर दास जी कहते हैं कि जो इंसान दूसरे की पीड़ा को समझता है वही पीर है. जो दूसरे की पीड़ा ना समझ सके वह कैसा संत. पीर – पीड़ा.
कबीर कहा गरबियौ, ऊंचे देखि आवास, काल्हि परयौ भू लेटना ऊपरि जामे घास. कबीर कहते है कि ऊंचे भवनों को देख कर क्या गर्व करते हो. कल आप धरती पर लेट जाएंगे और ऊपर से घास उग आएगी.
कबीर पढ़िबा दूरि करि पुस्तक दे बहाइ, बाबन आखर सोधि करि ररै ममै चित लाइ. कबीर दास जी कहते हैं कि व्यर्थ की पढ़ाई बंद कर के केवल दो अक्षर ‘र’ और ‘म’ में मन लगाओ.
कबीर सो धन संचये, जो आगे को होय, सीस चढ़ाए पोटली, जात न देख्यो कोय. कबीर कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो परलोक में काम आए. सर पर धन की गठरी बाँध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा.
कबीरदास की उलटी बान, मूते इन्द्री बांधे कान. कबीरदास जी कहते हैं कि दुनिया में सब उल्टा पुल्टा है, मूत्र विसर्जन तो जननेन्द्रिय करती है पर बाँधा कान को जाता है (जो लोग जनेऊ बांधते हैं वे पेशाब करते समय जनेऊ को कान पर बाँध लेते हैं).
कबीरदास की उलटी बानी, बरसे कंबल भीगे पानी. दुनिया का उल्टा चलन देख कर कबीरदास का व्यंग्य.
कबूतर को कुआं ही दीखता है. जो जहाँ सुरक्षित हो वहीं रहना चाहता है.
कब्जा सच्चा, मुकदमा झूठा. जायदाद पर किसी का कब्ज़ा हो तो आप बीसियों साल मुक़दमा लड़ कर भी उसे छुड़ा नहीं सकते. यह अपने देश की न्याय व्यवस्था पर बहुत सटीक व्यंग्य है.
कब्र का मुंह झाँक कर आए हैं. मौत के मुँह से निकल कर आए हैं. बहुत गंभीर बीमारी से ठीक होना.
कब्र का हाल मुर्दा ही जानता है. कोई व्यक्ति कितनी कठिन परिस्थितियों में रह रहा है इसके बारे में वही जान सकता है.
कब्र देख सब्र आवे. कब्रिस्तान में जा कर ही इंसान को जीवन की वास्तविकता का ज्ञान होता है.
कब्र पर कब्र नहीं बनती. पुराने लोगों का विचार था कि विधवा को विवाह नहीं करना चाहिए, इस आशय का कथन. दूसरा अर्थ यह हो सकता है कि क़र्ज़ से दबे आदमी को और क़र्ज़ नहीं देना चाहिए.
कब्र में छोटे बड़े सब बराबर. अपने जीवन काल में हमें घमंड नहीं करना चाहिए इस को याद दिलाने के लिए बताया गया है कि मरने के बाद सब बराबर हो जाते हैं.
कब्र में पैर लटकाए बैठे हैं. मृत्यु के करीब हैं.
कब्र में रख के खबर को न आया कोई, मुए का कोई नहीं जीते का सब कोई. अपने लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए पाप कर्म नहीं करना चाहिए, आपके मरने के बाद कोई सगा सम्बन्धी आपको याद नहीं करेगा.
कभी कभी तो गधे को भी गवास लगती है. किसी बहुत बेसुरे व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए.
कभी कभी दर्द इलाज से बेहतर होता है. यदि इलाज बीमारी से अधिक कष्टदायक हो तो ऐसा सोचना पड़ता है. देश और समाज के सामने भी कभी कभी ऐसी समस्याएँ आती हैं.
कभी के दिन बड़े, कभी की रात. सब दिन एक से नहीं होते.
कभी घी घना, कभी मुठ्ठी चना, कभी वह भी मना. मनुष्य का भाग्य सदा एक सा नहीं रहता. कभी खूब घी, पकवान खाने को मिलते हैं, कभी मुट्ठी भर चने पर गुज़ारा करना पड़ता है और कभी वह भी नहीं मिलता.
कभी दूध था, बूरा थी, कटोरा था, कटोरे में दूध ले कर उस में बूरा डाल कर उंगली से घोल कर पीते थे. अब तो बस उंगली ही बची है. पुराने दिनों की शान बघारने वालों का मजाक उड़ाने के लिए.
कभी न घोड़ा हींसिया, कभी न खींची तंग, कभी न कायर रण चढ़ा, कभी न बाजी बंब. जो कायर पुरुष कभी भी रण भूमि में नहीं गया, उसका मजाक उड़ाने के लिए. .
कभी नाव गाड़ी पर, कभी गाड़ी नाव पर. (कभी नाव गाड़ी में कभी गाड़ी नाव में). किसी का भी समय बदल सकता है. आज आप जिस को आसरा दे रहे हैं कल हो सकता है कि वह आप को आसरा दे.
कभी बिल्ली को मंगल गाते नहीं देखा. ओछे व्यक्ति कभी किसी का भला नहीं सोच सकते.
कभी बोरा गधे पर, कभी गधा बोरे पर. वक्त वक्त की बात है. कभी गधा बोरे पर बैठता है कभी बोरा गधे पर लादा जाता है.
कभी बोरे बोरे नून, कभी रोटिहुँ पर नहिं नून (कहीं बोरी बोरी नोन, कहीं रोटी पर न नोन). कभी आवश्यक वस्तु की अधिकता कभी नितांत अभाव.
कभी रंज, कभी गंज. गंज – बहुत सा. दुनिया में कभी बहुत कम मिलता है कभी बहुत अधिक मिल सकता है.
कम खर्च, बालानशीन. जो वस्तु कम कीमत की लेकिन उच्च गुणवत्ता वाली हो. बालानशीन – उत्कृष्ट.
कम खाना और गम खाना अच्छा (कम खा लो, गम खा लो). कम खाओ और मन को समझा कर रखो यह अधिक अच्छा है. अधिक पाने की लिप्सा में आदमी गलत काम करता है और अधिक खाने के चक्कर में स्वास्थ्य खराब कर लेता है. कुछ लोग इस तरह से बोलते हैं – कम खाना, गम खाना और किनारे से चलना.
कम खानें और गम खानें, न हकीम के जाने, न हाकिम के जाने. (बुन्देलखंडी कहावत) कम खाओ और संतोष रखो तो न तो वैद्यों के चक्कर लगाने पड़ेंगे न कचहरी के.
कम जोर और गुस्सा ज्यादा, यही मार खाने का इरादा. कमजोर आदमी ज्यादा गुस्सा दिखाएगा तो पिटेगा.
कम मोल की और बहुत दुधारी. गाय की तारीफ़ में कही गई बात. कोई वस्तु कम कीमत की हो और बहुत उपयोगी हो तो यह कहावत कही जाती है.
कमउआ आवें डरते, निखट्टू आवें लड़ते. किसी घर में चार पुरुष हैं दो कमाने वाले हैं और दो निखट्टू हैं. जो कमाऊ हैं वे तो घर में गंभीर और चिंतित मुद्रा में घुसते हैं, क्योंकि उनके ऊपर जिम्मेदारियों का बोझ होता है. पर जो निखट्टू हैं वे झगड़ते हुए ही घर में घुसते हैं. हमारा फला काम क्यों नहीं हुआ. हमारे लिए फलानी चीज क्यों नहीं बनी. अमुक व्यक्ति की हमसे ऐसा बोलने की हिम्मत कैसे हुई वगैरा-वगैरा.
कमजोर काठ को कीड़ा खाय. दुष्ट और दुर्जन, कमजोर लोगों को ही सताते हैं.
कमजोर देही में बहुत रीसि होला. (भोजपुरी कहावत) कमजोर शरीर में बहुत गुस्सा होता है. जो शक्तिशाली हैं वे गंभीर होते हैं.
कमबख्त गए हाट, न मिली तराजू न मिले बांट. भाग्य साथ न दे तो कहीं कुछ भी नहीं मिलता है.
कमबख्ती की निशानी, सूख गया कुएं का पानी. अभागा आदमी पानी पीने गया तो कुँए का पानी ही सूख गया.
कमर का मोल है, तलवार का नहीं. ताकत तलवार में नहीं उसे बांधने वाले में होती है.
कमर टूटे रंडी की और भडुवे ओढें दुशाला. वैश्या बेचारी नाच नाच कर अपनी कमर तोड़ लेती है (मेहनत करती है) और दलाल लोग (बिना कुछ किए) गुलछर्रे उड़ाते हैं.
कमर न बूता, सांझे सूता. जो व्यक्ति पौरुष शक्ति न होने के कारण शाम को जल्दी सो जाता है.
कमर में तोसा, बड़ा भरोसा. तोसा – खाने का सामान. अपनी आवश्यकता का सामान अपने पास हो तो मन में बड़ी संतुष्टि और आत्म विश्वास रहता है.
कमर में लंगोटी, नाम पीताम्बरदास. नाम के विपरीत गुण.
कमरिया छोड़े तब तो हम छोड़ें. कमरिया–कम्बल. अनजाने में मुसीबत में फंस जाना. सन्दर्भ कथा – एक साधु अपने एक शिष्य के साथ कहीं जा रहा था. रास्ते में एक नदी मिली. नदी में एक भालू बहा जा रहा था. केवल उसकी पीठ नजर आ रही थी. साधु ने समझा कोई कम्बल बहा जा रहा है. उन्होंने अपने शिष्य को उसे लाने का आदेश दिया. शिष्य उनकी आज्ञा के पालन हेतु नदी में घुसा और भालू द्वारा पकड़ लिया गया. कुछ देर बीत जाने पर साधु ने कहा, देर क्यों हो रही है बेटा, अगर कम्बल नहीं आ पा रहा है, तो उसे छोड़ दो. इसपर शिष्य ने जवाब दिया, मैंने तो कम्बल छोड़ दिया है, लेकिन कम्बल मुझे छोड़े तब न.
कमला काहू की न भई. लक्ष्मी किसी की सदा के लिए नहीं होती.
कमला नारी कूपजल, और बरगद की छांय, गरमी में शीतल रहें सरदी में गरमाय. लक्ष्मी स्वरूपा स्त्री, कुएं का जल और बरगद की छाँव, ये गर्मी में शीतल रहते हैं और सर्दी में गर्म.
कमली ओढ़ने से कोई फ़कीर नहीं होता. साधुओं जैसा वेश धर लेने से कोई साधु नहीं हो जाता.
कमा कर खाने में नहीं चुरा कर खाने में दोष है. पैसा कमाने के लिए यदि कोई छोटे से छोटा काम भी करना पड़े, तो वह चुरा कर खाने से अच्छा है.
कमाई गैल समाई. आय के अनुसार ही खर्च होना चाहिए.
कमाई न धमाई, रोज चाहें मलाई. उन लोगों के लिए जो काम नहीं करना चाहते केवल मौज करना चाहते हैं.
कमाई में हाथ गंदे करने ही पड़ते हैं. केवल ईमानदारी से व्यापार नहीं किया जा सकता.
कमाई सब को दिखती है, दुख किसी को नहीं दिखता. कोई व्यक्ति दिन रात मेहनत कर के किसी मुकाम पर पहुँचा हो अभी भी तरह तरह के कष्ट उठा कर पैसा कमा रहा हो तो उस के कष्ट किसी को नहीं दीखते, बस उस की कमाई दिखती है.
कमाऊ खसम कौन न चाहे. सभी स्त्रियाँ चाहती हैं कि उन्हें अच्छा कमाने वाला पति मिले. लाभ के पद पर बैठे व्यक्ति से सब दोस्ती करना चाहते हैं.
कमाऊ पूत किसे अच्छा नहीं लगता. स्पष्ट.
कमाऊ पूत की दूर बला. कमाने वाला पुत्र सब परेशानियों से दूर रहता है.
कमाए के टका, उड़ाए के रुपया. जो व्यक्ति कमाए बहुत कम और फ़ालतू खर्च बहुत करे.
कमाए तो भात, बैठे तो उपास. काम धाम करोगे तो खाने को मिलेगा. बैठे रहोगे तो भूखों मरोगे.
कमाए थोड़ो खरचे घनो, पहलो मूरख उस को गिनो. जो व्यक्ति आमदनी से अधिक खर्च करता है वह सबसे बड़ा मूर्ख होता है.
कमाए न धमाए, बार बार देखन को धाए. ऐसा पति जो काम धाम कुछ नहीं करता, बार बार पत्नी का मुँह देखने को दौड़ दौड़ कर आता रहता है.
कमान से निकला तीर और जुबान से निकली बात कभी वापस नहीं आती. बात सोच समझ कर बोलना चाहिए क्योंकि मुँह से निकली बात वापस नहीं ली जा सकती.
कमानी न पहिया, गाड़ी जोत मेरे भैया. साधन न होते हुए भी जबरदस्ती काम करने के लिए कहना.
कमाय न धमाय, मोको भूंज भूंज खाय. निठल्ले पति के लिए पत्नी का कथन, निठल्ले बेटे के लिए माँ या बाप का कथन.
कमावे तो वर, नहीं कुआंरा ही मर. कमाने की सामर्थ्य हो तभी विवाह करना चाहिए नहीं तो कुआंरा ही रहना चाहिए.
कमावे धोती वाला, उड़ावे टोपी वाला. कमाए कोई और उड़ाए दूसरा कोई. यहाँ पर अभिप्राय इस बात से भी है कि मेहनतकश (धोतीवाला) कमाए और नेता और अफसर (टोपीवाले) खाएं.
कम्बल कम्बल में गाँठ नाहीं लगत. कम्बल कम्बल में गाँठ नहीं लगती. बड़ों में समझौता कराना कठिन होता है
कर की नाड़ी कर ही जाने. हाथ की नब्ज़ को हाथ से ही टटोला जाता है.
कर खेती परदेसे जाय, ताको जनम अकारथ जाय. खेती करके परदेश चला जाय उसकी खेती सफल नहीं होती.
कर तो डर, न कर तो भी खुदा के गज़ब से डर. यदि हम कोई काम गलत करते हैं तो हमें डरना चाहिए. यदि गलत काम नहीं भी करते हैं तो भी ईश्वर के कोप से डरना चाहिए. सन्दर्भ कथा – बुरा काम करे या न करे, पर हर हालत में ईश्वर के कोप से तो डरना ही चाहिए किसी जगह दो फकीर रहते थे. एक बार एक ने कहा, “कर तो डर, न कर तो भी डर.” दूसरा बोला, “मैं करूं नहीं तो डरूं क्यों.” पहला बिना कुछ कहे चला गया. इसके कुछ दिनों पश्चात राजा के महल में चोरी हुई. चोरों का उसूल था कि वे चोरी के माल में से एक एक वस्तु किसी फकीर को भेंट किया करते थे. उन्होंने एक सोने का हार ले जाकर उस फकीर के गले में डाल दिया. आंखें मूंदकर ध्यान-मग्न होने के कारण उसे इसका कुछ पता नहीं चला. दूसरे दिन जब उसके गले में हार पाया गया, तो उसे चोर समझकर फांसी की सज़ा दी गई.
कर देखो दगा, जो बच जाय पगा. पगा – पगड़ी. किसी को धोखा देने के बाद इज्जत बचना असंभव है.
कर भला हो भला. जो दूसरों का भला करता है उस का भला अवश्य होता है.
कर ले सो काम, भज ले सो राम. जो कुछ करना हो उसे शीघ्र कर लेना चाहिए, उसमें आलस्य नहीं करना चाहिए, और संसार में जो कुछ भी समय मिला है उसमें ईश्वर को भी याद करना चाहिए.
कर सेवा तो खा मेवा. (बिन सेवा मेवा नहीं). बड़ों की सेवा करने से ही फल मिलता है.
करके खाना और मौज उड़ाना. खूब मेहनत करो, खूब कमाओ और प्रसन्न रहो. यदि कोई अपनी मेहनत की कमाई खर्च कर के मौज उड़ा रहा है तो इसमें क्या बुराई है.
करघा छोड़ तमाशे जाए, करम की चोट जुलाहा खाए. पहले जमाने में जब टीवी, सिनेमा इत्यादि नहीं थे तो लोगों के मनोरंजन के मुख्य साधन मेला और तमाशा हुआ करते थे. भीड़ भाड़ वाले स्थान पर कुछ कलाकार इकट्ठे हो कर नाच गाना, नाटक, मदारी का खेल, नट का खेल, जादू इत्यादि दिखाते थे और उसके बाद लोगों से पैसा मांगते थे उसी को तमाशा कहते थे. कहावत में कहा गया है कि जो व्यक्ति अपना रोज़गार छोड़ कर तमाशा देखने जाएगा वह बहुत नुकसान उठाएगा.
करघा बीच जुलाहा सोहे, हल पर सोहे हाली, फौजन बीच सिपाही सोहे, बाग़ में सोहे माली. अपने अपने काम में हर व्यक्ति शोभा देता है. कहावत में यह सन्देश भी दिया गया है कि कोई काम छोटा नहीं होता, सब का अपना महत्त्व है. हाली – हल चलाने वाला.
करछुल रखें हाथ जलाने को कि हाथ बचाने को (करछुल राखा हाथ बचाए, करछुल हाथ जलाए). करछुल का प्रयोग हाथ को जलने से बचाने के लिए किया जाता है, यदि करछुल से हाथ जलने लगे तो उस का क्या लाभ.
करजदार, पत्थर खाए हर बार. कर्ज़दार व्यक्ति को बहुत जलालत झेलनी पड़ती है.
करजा भला ना बाप का बेटी भली ना एक, करमा के लेख उघाड़ उघाड़ देख. कर्ज हमेशा बुरा होता है (चाहे पिता से ही क्यों न लिया हो) और एक ही सन्तान हो वह भी बेटी यह भी अच्छा नहीं होता.
करत करत अभ्यास के जड़ मति होत सुजान. जड़ मति का अर्थ है कोई कम बुद्धि वाला अकुशल व्यक्ति. सुजान का अर्थ है चतुर और कार्य कुशल. कहावत का अर्थ स्पष्ट है. इस दोहे की अगली पंक्ति है – रस्सी आवत जात से सिल पर परत निशान. कुँए में से पानी निकालने वाली बाल्टी की रस्सी से पत्थर पर निशान बन जाता है. इंग्लिश में इस कहावत को इस प्रकार कहते हैं – practice makes a man perfect.
करत न कूकर वृन्द की कछु गयंद परवाह. कूकर वृन्द – कुत्तों का झुण्ड, गयंद – हाथी. हाथी कुत्तों के झुण्ड की परवाह नहीं करता. योग्य और उत्तम व्यक्ति बुरा भला कहने वालों की परवाह नहीं करते.
करतब की विद्या है. विद्या अभ्यास करने से ही आती है.
करता गुरु, न करता चेला. जो अभ्यास करता रहता है वह कुशल हो जाता है (गुरु बन जाता है), जो अभ्यास नहीं करता वह कभी नहीं सीख सकता बल्कि सीखा हुआ भी भूल जाता है (हमेशा चेला ही बना रहता है).
करता था सो क्यों किया, अब कर क्यों पछिताय, बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से खाय. जब गलत काम कर रहे थे उस समय कुछ सोचा नहीं, अब पछता रहे हो. बबूल का पेड़ बोया है तो आम खाने को कैसे मिल जाएगा.
करते से न करे वो बावला, न करते से करे वो भी बावला. अपने साथ बुरा करने वाले से जो बदला न ले वह मूर्ख है और जो बुरा न करने वाले के साथ बुरा करे वह और बड़ा मूर्ख है.
करना चाहे आशिकी और मामाजी से डरे. आशिकी करना चाह रहे हैं और घर के बड़े लोगों से डर भी लग रहा है. डर डर के काम करने वालों के लिए.
करना चाहे काम, बसना चाहे गाँव. अगर काम करना चाहते हो (व्यापार, खेती या नौकरी) तो घर पर मिलने वाली सुविधाओं का लालच छोड़ना पड़ेगा.
करनी करे तो क्यों डरे, कर के क्या पछताए. कोई गलत काम किया है तो अब क्या डरना या पछताना.
करनी कुछ नहीं रुपया इनाम. बिना कुछ काम किए इनाम चाहने वालों के लिए.
करनी कुत्ते सी, नाम लछन देव. नाम के विपरीत गुण.
करनी के ओर न छोर. मनुष्य बहुत छोटे से ले कर बहुत बड़े काम तक कर सकता है.
करनी न करतूत, कहलाएं पूत सपूत. पुत्र करते कुछ नहीं हैं पर माँ बाप उन की प्रशंसा में फूले नहीं समा रहे हैं.
करनी न करतूत, लड़ने को मजबूत. जो व्यक्ति काम तो कुछ न करे पर लड़ने- झगड़ने में तेज हो.
करनी न खाक की, बातें मारे लाख की. जो व्यक्ति करता धरता कुछ न हो और बातें बड़ी बड़ी बनाता हो.
करनी ना धरनी, धियवा ओठ बिदोरनी. (भोजपुरी कहावत) धियवा – धी, बेटी, होठ बिदोरनी – मुँह बनाने वाली. कुछ काम भी न करना और दूसरे के काम में कमियाँ निकालना.
करनी ही संग जात है, जब जावे छूट शरीर, कोई साथ न दे सके, मात पिता सुत वीर. अंत समय पर कोई नाते रिश्तेदार साथ नहीं जाते केवल आपके सत्कर्म ही साथ जाते है.
करम और करम आधे आध. किसी की सफलता में कर्म (परिश्रम) और कर्म (कर्मफल, भाग्य) दोनों का आधा आधा महत्व है.
करम और परछाई साथ कभी न छोड़ें. भाग्य और परछाईं कभी साथ नहीं छोड़ते. करम – कर्मफल.
करम करो सुख पाओ. सुख केवल कर्म कर के ही प्राप्त किया जा सकता है. यदि फल मिले तब तो सुख है ही और यदि फल न भी मिले तो इस बात का संतोष होता है कि हमने प्रयास तो किया.
करम की गति कोई न जाने. भाग्य की गति नहीं जानी जा सकती.
करम के बलिया, रांधी खीर हो गयो दलिया. कर्मों के बलिहारी जाएं. भाग्य से ही सब कुछ मिलता है. कर्महीन व्यक्ति ने खीर बनाई तो दलिया बन गया.
करम गति टारे नाहिं टरी. यह सही है कि मनुष्य को पुरुषार्थ के बिना कुछ नहीं मिलता पर यह भी सही है कि वह कितना भी पुरुषार्थ कर ले, अपने कर्मों के फल अर्थात प्रारब्ध को नहीं टाल सकता.
करम चले दो डग आगे. आप कहीं भी जाएँ, भाग्य उस से पहले ही वहाँ पहुँच जाता है.
करम छिपे न भभूत रमाए. दुष्कर्मी साधुओं के लिए कहा गया है. भभूत लगा लेने से उन की असलियत नहीं छिप जाती.
करम दरिद्री नाम चैनसुख. कहावतों में करम का अर्थ कर्म (पुरुषार्थ) से भी होता है और कर्मफल (भाग्य) से भी. किसी दरिद्र व्यक्ति का नाम चैनसुख है अर्थात गुण के विपरीत नाम.
करम निगोड़िया, मन दरिया. करते धरते कुछ नहीं हैं पर बड़े दरियादिल हैं.
करम फूटे का इलाज हो सकता है पर घर फूटे का कोई इलाज नहीं. भाग्य खराब हो इस का इलाज तो हो सकता है, पर घर में फूट पड़ जाए तो उस का कोई इलाज नहीं हो सकता.
करम फूटे को अकल फूटा ही मिले. जिसका भाग्य खराब हो उसे मूर्ख लोग ही मिलते हैं.
करम बिना नर कौड़ी न पावै. 1. कर्म किए बिना हम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते. 2. भाग्य में न लिखा हो तो कुछ नहीं मिल सकता.
करम में कंकर लिखे और हीरों की चाह करे. भाग्य में कुछ न होते हुए भी बहुत इच्छाएँ रखना.
करम में कौए का पंजा. बिल्कुल भाग्यहीन व्यक्ति.
करम में लिख्या कंकर, तो के करें शिव शंकर. जिसके भाग्य में कुछ न मिलना लिखा हो उसकी सहायता ईश्वर भी नहीं कर सकते. सन्दर्भ कथा – एक बूढा और उसकी बुढिया जंगल से लकड़ियाँ लाकर शहर में बेचते और अपने पेट पालते थे. एक दिन जिस रास्ते से वे लकड़ियों का गट्ठर लेकर जा रहे थे, उसी रास्ते से शिव-पार्वती भी गुजर रहे थे. उन दोनों की दशा देख कर पार्वती को बड़ी दया आई. उन्होंने शिवजी से कहा कि इन पर कृपा कर के आप इन्हें धन दे दीजिए.
शिवजी ने उत्तर दिया कि इनके भाग्य में धन लिखा ही नहीं है तो मैं कैसे दे दूँ? लेकिन पार्वती नहीं मानीं तो शिवजी ने रुपयों से भरी एक थैली उनकी राह में डाल दीउधर उन दोनों ने विचार किया कि हम बूढे तो हो गये लेकिन यदि अन्धे भी हो जाएँ तो कैसे चल पाएँगे. इस बात का अनुभव करने के लिए वे दोनों अंधे बन कर चलने लगे और रुपयों की थैली को लांघ कर निकल गये. इस पर शिवजी ने पार्वती से कहा कि देख लो, इनके भाग्य में ही धन नहीं है.
करम से करम. करम – कर्म, करम – भाग्य. मनुष्य कर्म कर के ही भाग्य का निर्माण करता है.
करम हीन जब होत हैं, सबहु होत हैं बाम, छाँव जान जंह बैठते, तहां होत है घाम. जब भाग्य साथ न दे रहा हो तो सभी आपके विपरीत हो जाते हैं. जहाँ आप छाँव समझ कर बैठते हैं वहाँ कड़ी धूप आ जाती है.
करमहीन को न मिले भली वस्तु का भोग. वैसे तो इस कहावत का अर्थ स्पष्ट है लेकिन इसे मजाक में भी प्रयोग करते हैं. जो बच्चे घर में भरपूर दूध फल इत्यादि होने पर भी खाने में आनाकानी करते हैं उनके माँ बाप मजाक में इस प्रकार बोलते हैं.
करमहीन खेती करे, बैल मरे सूखा पड़े. भाग्य के बिना सफलता नहीं मिलती. अभागे व्यक्ति ने खेती करना चाही तो बैल मर गए और सूखा पड़ गया.
करमहीन लंबा जिए. अभागे व्यक्ति को मौत भी जल्दी नहीं आती.
करमहीन सागर गए, जहां रतन को ढेर, कर छूअत घोंघा भए, यही करम को फेर. अभागा व्यक्ति समुद्र के किनारे गया, वहाँ रत्नों का ढेर लगा था. लेकिन कर्मों का फेर देखिये, हाथ लगते ही वे रत्न घोंघा बन गए.
करमू चले बरात, करम गत संगै जैहै. (बुन्देलखंडी कहावत) भाग्यहीन व्यक्ति कहीं भी चला जाए, कर्मों की गति उसका साथ नहीं छोड़ती (उसको बरात में भी अपमान झेलना पड़ता है).
करमे खेती, करमे नार, करमे मिलें हितू दो चार. हिंदी कहावतों में एक बड़ी मजेदार बात है कि यहाँ करम का अर्थ कर्म (उद्यम) से भी है और कर्मफल (भाग्य) से भी. संसार में सभी वस्तुएँ इन दोनों से ही मिलती हैं.
करवा कुम्हार को, घी जजमान को, का लगे बाप को स्वाहा. करवा कुम्हार का है, घी जजमान का है, पंडित जी के बाप का क्या जा रहा है, खूब स्वाहा करो. दूसरों के माल को बेदर्दी से खर्च करने वालों के लिए.
करा तो लीं पर ढकेगा कौन. आवारा कुत्तों को रोकने के लिए फूहड़ स्त्री के घर किवाड़ें लगवा भी ली गईं तो उन्हें बंद कौन करेगा? सन्दर्भ कथा – एक फूहड़ स्त्री के घर में किवाड़ नहीं थे, इसलिए उसके घर में कुत्ते बे रोक टोक आते-जाते थे और जो कुछ इधर-उधर रखा मिल जाता, खा जाते थे. उसका पति विदेश से आया तो घर की दुर्दशा देख कर उसे बड़ा अफसोस हुआ और उसने लकड़ी के किवाड़ बनवा दिये. इससे कुत्तों में बड़ी घबराहट फैल गई कि गाँव में उनका एक मात्र आश्रय-स्थल ही बंद हो गया और उन्होंने उस गाँव को छोड़कर रेवाड़ी जाने का निश्चय कर लिया.
जब वे चलने को हुए तो बूढ़े काने कुत्ते ने शकुन विचार कर शेष कुत्तों से कहा, यह तो ठीक है कि फूहड़ के घर में किवाड़ लग गये हैं, लेकिन उन्हें बंद कौन करेगा? वे तो सदा खुले ही पड़े रहेंगे और हम सब उसके घर में पहले की तरह ही आराम से आते जाते रहेंगे. इसलिए हमें कहीं भी जाने की आवश्यकता नहीं है. इसकी पूरी कविता इस प्रकार है – फूहड़ के घर लगीं किवाड़ी, सारे कुत्ते चले रिवाड़ी, काना कुत्ता तोड़ा मौन, करा तो लीं पर ढकेगा कौन.
करा नहीं तो कर देखो, जिसने किया उसका घर देखो. किसी का बुरा नहीं किया तो अब कर के देख लो. जिसने किसी का बुरा किया हो उसके घर जा कर उसका हाल देख लो.
करि कुचाल अंतहि पछतानी. कुचाल – नीच कार्य. निम्न श्रेणी के कार्य करोगे तो अंत में पछताना पड़ेगा.
करिया को मंत्र मिल जाए, पर गड़ंता को नाहिं मिलत. गड़ंता (करैत) एक जहरीला सर्प जो कि शान्त परन्तु अधिक जहरीला होता है और चुपचाप काटता है. काले सर्प (कोबरा) का मंत्र मिल जाता है, परन्तु गड़ंता का नहीं मिलता. धोखे से गहरी मार मारने वाले व्यक्ति के लिए कहावत का प्रयोग करते हैं. देखिए परिशिष्ट.
करिया बादर जी डरियावे, भूरा बादर पानी लावे (काली घटा डरावनी और भूरी बरसनहार). काले बादल को देख कर डर जरूर लगता है पर वह वर्षा नहीं करता, वर्षा भूरे बादल से होती है.
करी कमाई खो बैठे. परिश्रम व्यर्थ गया.
करी भलाई आपनो चित सों दे बिसराय, मानो डारी कूप में काहू सों न जनाय. किसी के साथ भलाई कर के भूल जाना चाहिए, किसी को जताना नहीं चाहिए. रूपान्तर – नेकी कर कूएँ में डाल.
करील का काँटा, साढ़े सोलह हाथ लम्बा. गप्प हाँकना.
करे एक, भरें सब. किसी एक व्यक्ति की गलती का खामियाजा बहुत से लोगों को उठाना पड़ता है.
करे कारिन्दा नाम बरियार का, लड़े सिपाही नाम सरदार का. छोटे लोग काम करते हैं परन्तु नाम उनके सरदार का होता है.
करे कोई भरे कोई. गलती किसी और की है भरपाई किसी दूसरे को करनी पड़ रही है.
करे गोत पर, पड़े पूत पर. जो अपनी जाति वालों के साथ धोखा करते हैं उनकी संतानों पर संकट आता है.
करे दाढ़ीवाला, पकड़ा जाए मुँछोंवाला. अपराध कोई और कर रहा है, सजा किसी और को मिल रही है.
करे न धरे, सनीचर को दोस. कुछ काम नहीं करते हैं और भाग्य में शनि बैठा होने का बहाना करते हैं.
करे पाप तो खावे धाप, करे धरम तो फूटे करम. कलियुग में पाप कर्म करने वाला मलाई खाता है और सत्कर्म करने वाला कष्ट उठाता है.
करे प्रपंच, कहलावे पंच. कहावत उन लोगों के लिए है जो छल कपट कर के भी समाज में सम्माननीय बने रहते है. भ्रष्ट न्याय व्यवस्था पर भी व्यंग्य है.
करे बनत या दिए बनत. कोई काम या तो स्वयं अपने हाथ से करने से होता है अथवा पैसा देने से.
करे सो डरे. अर्थ दो प्रकार से है- 1. जो जिम्मेदार व्यक्ति होता है वह डरता है कि कहीं कुछ गलत न हो जाए. जो कुछ करे ही नहीं उसे किस बात का डर. 2. जो अपराध या पाप करता है वह डरता भी रहता है.
करे सो भरे, खोदे सो पड़े. जो किसी का बुरा करता है वह उसका दंड भरता है, जो दूसरों के लिए खाई खोदता है वह स्वयं उसमें गिरता है.
करें कल्लू, भरें लल्लू. गलती कोई और कर रहा है, खामियाजा कोई और भुगत रहा है.
करेगा टहल तो पाएगा महल. बड़े लोगों की सेवा करोगे तो उपयुक्त पुरस्कार पाओगे.
करेगा सो भरेगा. जो गलत काम करेगा वह उसका खामियाजा भी भुगतेगा.
करेला वो भी नीम चढ़ा (गिलोय और नीम चढ़ी). कोई मूर्ख या दुष्ट व्यक्ति और अधिक दुर्गुणों से लैस हो जाए.
करो खेती और भरो दंड. खेती करने वाला बेचारा खेती में भी पिसता है और लगान भी देता है. जो कुछ नहीं करते उन्हें कोई टैक्स वैक्स नहीं देना होता.
करो तो सबाब नहीं, न करो तो अजाब नहीं. अजाब – पाप का दंड. कोई ऐसा काम जिसे करने में पुण्य न मिले और न करने में पाप भी न हो.
क़र्ज़ काढ़ करे व्यवहार, मेहरारू से रूठे जो भतार, बेपूछे बोले दरबार, ये तीनों पूंछ के बार. यहाँ व्यवहार से मतलब है सामाजिक लेन देन. जो सामाजिक लेन देन के लिए क़र्ज़ लेता है, जो पति अपनी पत्नी से रूठता है और जो बिना पूछे दरबार में बोलता है, ये सब निकृष्ट लोग होते हैं.
कर्ज काढ़ व्यौहार चलावे, छप्पर डारे ताला, साले संग बहिनी को पठावे, तीनहुं का मुँह काला. उधार ले कर सामाजिक लेन देन करना, छप्पर पर ताला डालना और साले के संग अपनी बहन को कहीं भेजना, ये तीनों मूर्खतापूर्ण कार्य हैं.
क़र्ज़ बाप का भी बुरा. कर्ज पिता से भी नहीं लेना चाहिए.
कर्ज, मर्ज और फर्ज को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए. क़र्ज़ न चुकाएँ तो ब्याज लग कर बढ़ता जाएगा इसलिए उसको हलके में न लें, बीमारी छोटी सी दिखती हो तो भी एकदम से बढ़ कर खतरनाक हो सकती है इसलिए हलके में नहीं लेना चाहिए और अपने कर्तव्य को भी कभी हलके में नहीं लेना चाहिए.
कर्ज, सात जनम का मर्ज. कोई व्यक्ति कर्ज लेता है तो उसकी कई पीढ़ियों को चुकाना पड़ सकता है.
कर्ज़दार छाती पर सवार. उलटी बात. जिसने आपसे क़र्ज़ लिया है वही आपकी छाती पर सवार है.
कर्ज़दार दो घरों को पालता है. कर्ज लेने वाला व्यक्ति व्यापार आदि कर के अपने परिवार को पालता है और ब्याज चुका कर साहूकार के परिवार को भी पालता है.
कर्ता से कर्तार हारे. परिश्रम करने वाले के आगे ईश्वर भी नतमस्तक हो जाते हैं.
कर्मे खेती कर्मे नार, कर्मे मिले कुटुम परिवार (सुजन दो चार). अच्छी खेती, अच्छी स्त्री और अच्छा परिवार भाग्य से ही मिलते हैं.
कल का लीपा देओ बहाय, आज का लीपा देखो आय. कल की बात को भूल जाओ. आज की योजना बनाओ. पहले जमाने में चूल्हे चौके को और घर की दीवारों को मिट्टी या गोबर से लीपा जाता था.
कल के जोगी, पैर तक जटा. नए नए पैसे वाले अधिक शान शौकत दिखाएँ तो.
कल देवेगा कल पाएगा, कलपाएगा कल पाएगा. कल – चैन, कलपाना – तड़पाना. दूसरों को सुख चैन देगा तो खुद भी सुख चैन पाएगा. किसी को दुख देगा तो वैसा ही दुख कल को स्वयं भी पाएगा.
कल मरी सासू, आज आया आंसू. बनावटी दुख.
कलकत्ता की कमाई जूता छाता में लगाई. बड़े शहरों में कमाई अधिक होती है लेकिन वहाँ का रहन सहन भी बहुत महंगा होता है.
कलकत्ते का धारा, बाप से बेटा न्यारा. न्यारा – अलग. छोटे शहरों और गाँवों में रहने वालों को यह बात बहुत अजीब लगती है कि बड़े शहरों में बेटे माता पिता से अलग रहते हैं.
कलकत्ते नहिं जाना, चाहे जहर खाय मर जाना. गाँव या छोटे शहर में रहने वाले सीधे साधे व्यक्ति से जब कहा जाता है कि बड़े शहर में जा कर जीविका कमाओ तो वह बहुत घबरा जाता है.
कलजुग उपकार हत्या बरोबर. कलियुग में किसी का भला करना अपने लिए मुसीबत मोल लेना है.
कलजुग के लइका करै कचहरी, बुढ़वा जोतै हल. कलियुग में लड़का संपत्ति के लिए कचहरी के चक्कर लगाता है और बूढ़े बाप को खेत मे हल चलाना पड़ता है.
कलम और तलवार वाले कभी भूखे नहीं मरते. पढ़े लिखे व्यक्ति और योद्धा को भूखे मरने की नौबत नहीं आती.
कलयुग के जोगी भाई भाई. कलयुग के साधु सब एक से.
कलयुग में झूठ ही फले. कलयुग में झूठे लोग मजे मारते हैं और सच्चे कष्ट झेलते हैं. सन्दर्भ कथा – एक सेठ ने अपने एक गरीब मित्र को काम-धंधा करने के लिए दो हजार रुपये उधार दिये थे. कुछ समय बाद सेठ मर गया. उसके मरने के बाद शीघ्र ही उसका सारा कारोबार चौपट हो गया. सेठ की स्त्री और पुत्र को दो जून भोजन मिलना भी दूभर हो गया. उधर सेठ के उस गरीब मित्र के पास अपार सम्पदा हो गई.
एक दिन मृत सेठ की विधवा अपने पुत्र को साथ लेकर नये सेठ के यहाँ पहुँची और उससे अपने पति द्वारा दिये गये रुपयों की मांग की. नये सेठ ने उसे दुत्कारते हुए कहा कि मेरे पास रुपयों की क्या कमी थी जो मैं तुम्हारे पति से दो हजार रुपये उधार लेता. पास बैठे हुए लोगों ने सेठ की विधवा से कहा कि तुम्हारे पास कोई सबूत या लिखा-पढी हो तो दिखलाओ. विधवा ने उत्तर दिया कि मेरे पास कोई लिखा-पढी तो नहीं है, लेकिन यदि मैं झूठ बोलती होऊं तो मेरा यह इकलौता लड़का मर जाए. उसके इतना कहते ही लड़का तुरन्त मर गया और सभी लोग उसे झूठी मान कर उसकी भर्त्सना करने लगे.
वह बेचारी अपने भाग्य को कोसती हुई सेठ की हवेली से बाहर निकल रही थी कि उसे पुरुष वेशधारी ‘कलियुग’ मिला. विधवा ने उसके सामने अपना दुखड़ा रोया तो वह बोला कि तुमने सतयुग की बात कही, इसलिए तुम्हारा लड़का मर गया. यह युग मेरा है, इसमें झूठ बोलने से ही फल की प्राप्ति होती है. अब तुम पुन. सेठ के पास जाकर कहो कि मेरे पति ने तुम्हें बीस हजार रुपये दिये थे, मैंने भूल से दो हजार बतला दिये और इसीलिए मेरा लड़का मर गया. यदि मेरे पति ने तुम्हें बीस हजार रुपये दिये हों तो मेरा लड़का तुरन्त जी उठे. विधवा ने वैसा ही किया. उस के यह कहते ही लड़का जी उठा और नये सेठ को झख मार कर बीस हजार रुपये देने पड़े
कलहारी कल कल करे, दूहारी छू होए, अपनी अपनी बान से कभी न चूके कोय. कलहारी (लड़ाका स्त्री) लड़ती रहती है और दूहारी (आपस में झगड़ा कराने वाली) झगड़ा करा के गायब हो जाती है. इनमें से कोई कम नहीं है.
कलार की दुकान पर पानी पियो तो भी शराब का शक होता है. कलार – शराब बेचने वाला. इस कहावत में सीख दी गई है कि बदनाम लोगों से किसी प्रकार का भी मेलजोल नहीं रखना चाहिए.
कलाली की बेटी डूबने चली, लोग कहें मतवाली (कलार का लड़का भूखा मरे और लोग कहें मतवाला) (कलाल की लड़की को मिर्गी आवे, लोग कहें मस्त है). शराब बेचने वाले की बेटी डूबने चली तो लोग समझते हैं कि वह नशे में है. अगर आप गलत लोगों के साथ रहते हैं तो मुसीबत के समय भी लोग आप को गलत ही समझेंगे.
कवित्त सोहे भाट ने और खेती सोहे जाट ने. भाट को कविता पढ़ना शोभा देता है और जाट को खेती करना. सबको अपना अपना काम शोभा देता है.
कश्मीरी बेपीरी, जिनमें लज्ज़त न शीरीं. काश्मीरी लोग बेमुरव्वत होते हैं.
कश्मीरी से गोरा सो कोढ़ी. काश्मीरी लोग बहुत गोरे होते हैं. इसलिए ऐसा कहा गया कि उन से गोरा केवल कुष्ठ रोगी ही हो सकता है. सामान्य लोग कुष्ठ रोग और सफ़ेद दाग की बीमारी (leukoderma) में अंतर नहीं जानते इसलिए वे ल्यूकोडर्मा के रोगी को भी कोढ़ी समझ लेते हैं. कुष्ठ रोगियों में अलग प्रकार के दाग होते हैं.
कसम और तरकारी खाने के लिए ही बने हैं. कसम खा कर मुकर जाने वाला बेशर्म आदमी इस प्रकार बोलता है.
कसाई का अनाज और पाड़ा खा जाए. कसाई जैसे खतरनाक इंसान का अनाज बछड़े जैसा निरीह प्राणी कैसे खा सकता है.
कसाई का खूँटा और खाली रहे. कसाई के खूंटे पर लगातार कोई न कोई जानवर बंधा रहता है. किसी भी चलते हुए व्यापार में काम आने वाले उपकरण कभी खाली नहीं रहते.
कसाई की लौंडिया, छिछ्ड़ों की भूखी. जहाँ जिस चीज़ की बहुतायत होना चाहिए वहाँ उस का अभाव हो तो.
कसाई रोवे मांस को बकरा रोवे जान को. बकरा इस बात से परेशान है कि उस की जान जा रही है, कसाई इस बात से परेशान है कि बकरे में माल कम निकला. सब की अपनी अपनी परेशानी, सब के अपने अपने दृष्टिकोण.
कस्तुरी कुँडलि बसै, मृग ढूँढे बन माहिँ, ऐसे घट घट राम हैं, दुनिया देखे नाहिँ. कस्तूरी मृग की नाभि में कस्तूरी होती है पर वह सारे वन में ढूँढता फिरता है कि यह सुगंध कहाँ से आ रही है. इसी प्रकार ईश्वर सभी के भीतर विद्यमान हैं और मनुष्य सब जगह ढूँढता फिरता है.
कस्तूरी की गंध सौगंध की मोहताज नहीं. जो वास्तविक गुण होते हैं उन्हें किसी के द्वारा प्रमाणपत्र दिए जाने की आवश्यकता नहीं होती.
कह कर खाने वाली डायन नहीं कहलाती (कह कर खाए वो डायन कैसी). 1.खुल्लम खुल्ला अनाचार करने वाले लोग भ्रष्ट नहीं कहलाते (दुष्ट कहलाते हैं). 2.उन को भ्रष्ट कहने की हिम्मत कोई नहीं करता.
कहत बड़े जन सांच है, बात हवा ले जात. मुँह से निकली हुई बात बहुत तेज़ी से फैलती है.
कहना सरल है करना कठिन. अर्थ स्पष्ट है.
कहने को रानी, चुरावे चमरौधा. चमरौधा – जूता. कहने को तो बड़े आदमी की स्त्री हैं पर जूता चुराती हैं.
कहने से करना भला. 1.जो लोग बातें बड़ी बड़ी करते हैं पर काम कुछ नहीं करते उनको सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है. 2. उपदेश देने के मुकाबले किसी काम को कर के दिखाने से अधिक प्रभाव पड़ता है.
कहने से कुम्हार गधे पर नहीं चढ़ता है. बहुत से कुम्हार बर्तन वगैरह ढोने के लिए गधा पालते हैं कभी-कभी मस्ती लेने के लिए खुद भी गधे की सवारी कर लेते हैं. लेकिन यदि आप उससे कहें कि भैया जरा गधे पर चढ़ के दिखाओ तो वह गधे पर नहीं चढ़ता. यदि किसी व्यक्ति या बच्चे की ऐसी आदत हो कि वह कहने पर कोई काम न करे केवल अपने मन से ही करे तो उसका मजाक बनाने के लिए यह कहावत कही जाती है.
कहबे की लाज, न सुनबे की सरम. निर्लज्ज व्यक्ति के लिए.
कहवे को अबला, बोलवे को सबला. लड़ाका स्त्रियों के लिए.
कहा न अबला करि सके, कहा न सिन्धु समाय, कहा न पावक में जरे, कहा काल न खाय. स्त्री अबला होते हुए भी क्या नहीं कर सकती (अर्थात सब कुछ कर सकती है), समुद्र में क्या नहीं समा सकता, आग में क्या नहीं जल जाता और काल किसे नहीं खा लेता? इसके उत्तर में किसी ने कहा है – सुत नहिं अबला करि सकै (पुरुष के बिना), मन नहिं सिन्धु समाय, धर्म न पावक में जरे, नाम काल नहिं खाय.
कहा भयो जो धन भयो, आदर गुन ते होई. किसी के पास धन संपत्ति आ गई तो क्या हुआ, आदर तो गुणों से प्राप्त होता है.
कहा भी न जाए चुप रहा भी न जाए. किसी परिस्थिति में जब आप कुछ कहने का साहस न जुटा पा रहे हों और चुप रहने में भी कष्ट हो रहा हो. भोजपुरी कहावत – का कहीं कुछ कही ना जाता, कहले बिना रही ना जाता.
कहाँ कहाँ मन रुच करे, मिलो यो तन छन भंग. जीवन इतना छोटा है, इस में व्यक्ति किस किस चीज़ में रूचि ले, कहाँ कहाँ मन लगाए. रूपांतर – नन्हीं सी जान और इतने अरमान.
कहाँ गरजा, कहाँ बरसा. बादल गरजा कहीं और बरसा कहीं और. कोई व्यक्ति गाली गलौज कहीं पर करे और मारपीट कहीं और तो.
कहाँ रसे, कहाँ बसे, कहाँ आय के चूतड़ घिसे. 1.जीविका के लिए व्यक्ति को अपना जन्म स्थान छोड़ कर कहाँ कहाँ जाना पड़ता है. 2.अपना स्वार्थ साधने के लिए व्यक्ति बड़ी दूर दूर जा कर खुशामद करता फिरता है.
कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली. जब दो लोगों के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक स्तर में बहुत अंतर हो तो.
कहाँ राम राम, कहाँ टांय टांय. तोता टांय टांय करता है पर सिखाने पर राम राम बोलने लगता है. असभ्य अशिक्षित व्यक्ति शिक्षा पा कर योग्य बन जाता है. इसका दूसरा अर्थ यह है कि तोते तोते में कितना फर्क होता है, एक राम राम कहता है और दूसरा टांय टांय ही करता है.
कहानी बिना कैसा व्रत. हर व्रत की कोई न कोई कहानी होती है. पहले के समय घर की बड़ी बूढियाँ, बहू-बेटों पोती-पोतों को वे कहानियाँ सुनाया करती थीं.
कहावत भुला भले ही दी जाए, झुठलाई नहीं जा सकती. लोग कहावतों को भूलते जा रहे हैं पर इसका अर्थ यह नहीं है कि वे सारहीन हैं.
कहीं आग कहीं पानी. कहीं लोग गर्मी से परेशान हैं कहीं अतिवृष्टि से. आग और पानी का अर्थ लड़ाई और शांति से भी हो सकता है.
कहीं आग कहीं शोले. आग कहीं और लगी है और उसका असर कहीं और हो रहा है.
कहीं कल से काम हो तो कहीं बल से. कल – मशीन. कहीं युक्ति से काम होता है तो कहीं शक्ति से.
कहीं की ईट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा. बिलकुल बेमेल चीजों को जोड़ कर बेतुकी चीज़ बना देना.
कहीं जूतों से भी साँप मरे हैं. दुष्ट को समाप्त करने के लिए तो पूरे साधन चाहिए.
कहीं डूबे भी तिरे हैं. जो डूब जाएँ वे फिर सतह पर नहीं आते. एक बार नाम और सम्मान खो जाने पर वापस नहीं आ सकता. व्यापार चौपट होने के बाद दोबारा खड़ा नहीं हो सकता.
कहीं डूबे, कहीं निकले. दिखाना कुछ और, करना कुछ और.
कहीं तो सूहा चूनरी, और कहीं ढेले लात. सूहा – एक प्रकार का गहरा लाल रंग. अपना अपना भाग्य है, कहीं स्त्री को सुहाग का जोड़ा पहनने को मिल रहा है और कहीं लात घूंसे और पत्थर खाने पड़ रहे हैं.
कहीं नाखून भी गोश्त से जुदा हुआ है (उंगलियों से नाखून अलग नहीं होते). जो अपने हैं वे अपने ही रहते हैं.
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना. ऊपर से कुछ और दिखाना पर मन में कुछ और होना.
कहीं भूखे मरें कहीं अन्न सड़े. कहीं अन्न का अभाव कहीं बर्बादी.
कहीं सूखे दरख़्त भी हरे हुए हैं. एक बार सूखने के बाद पेड़ दोबारा हरा भरा नहीं हो सकता. रिश्तों के विषय में और व्यक्ति के मान सम्मान के विषय में भी ऐसा ही कहा जाता है.
कहु रहीम कैसे निभै, बेर केर को संग, वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग. केले का पेड़ बेर के पेड़ के पास लगा है. बेर हवा चलने पर झूमता है तो उसके काँटों से केले का कोमल तना फट जाता है. कहावत का अर्थ है कि दो विपरीत प्रकृति वाले लोगों का साथ नहीं निभ सकता.
कहूँ तो माँ मार खाय, न कहूँ तो बाप कुत्ता खाय. दुविधा की स्थिति. सन्दर्भ कथा – एक बार एक स्त्री ने अपने पति के खाने के लिए बकरे के धोखे में (या जान कर) कुत्ते का मांस पका दिया. उसके बेटे को यह बात मालूम थी. बाप खाना खाने बैठा तो बेटे के सामने यह दुविधा थी कि बाप को बता देता है कि यह कुत्ते का मांस है तो बाप माँ को पीटेगा, और नहीं बताता है तो बाप को कुत्ता खाने का पाप लगेगा. दुविधा की स्थिति में पड़े व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है
कहूँ तो मारी जाऊँ, न कहूँ तो इज्जत गवाऊँ. यदि घर का कोई सम्मानित व्यक्ति घर की किसी महिला के साथ अशोभनीय व्यवहार करता है तो उस के सामने इस प्रकार की द्विविधा होती है.
कहे कबीर दुई नाव चढ़िए, एक बूड़े तो दूजी से पार उतरिए. आम विश्वास यह है कि दो नावों पर सवार नहीं होना चाहिए. उस से उलट यह नये प्रकार की सोच है.
कहे से कोई कुँए में नहीं गिरता. कोई आपका कितना भी बड़ा समर्थक या प्रेमी क्यों न हो आपके कहने से कुँए में नहीं गिरेगा.
कहें खेत की, सुनें खलिहान की (कहें जमीन की, सुनें आसमान की) (कहें कुछ, सुनें कुछ). कुछ का कुछ सुनना.
कहें घाघ घाघिन से रोय, बहु संतान दरिद्री होय. अधिक संतानों को पालने में व्यक्ति दरिद्र हो जाता है.
कहें रणधीर, भाग जात पात खरके सों. अपने को बड़ा वीर बताते हैं और पत्ता खड़कने से भाग जाते हैं.
कहो बाई, काहे पे रूठीं, कही सूप छलनी पे. किसी ने पूछा – क्यों बहिन क्यों रूठी हो. कहा – सूप छलनी पर. व्यर्थ की बातों पर रूठनेवाली स्त्रियों पर व्यंग्य.
कहो बात, कटे रात. एक दूसरे की बात सुनने और ढाढस बंधाने से दुख के दिन कट जाते हैं.
का टेसू के फूल, का हल्दी को रंग, का बदली की छाँव, का परदेसी को संग. यह सभी चीजें क्षणिक होती हैं. कहावत के द्वारा यह सन्देश दिया गया है कि परदेसियों से प्रेम नहीं करना चाहिए.
का बर्षा जब कृषी सुखानी, (समय चूकि पुनि का पछितानी). खेती के सूखने के बाद वर्षा हो तो उससे क्या फायदा. समय पर कोई काम नहीं किया तो अब क्यों पछताते हो.
काँख पाद बहुतेरी, खाय के डेढ़ पसेरी. उन स्त्रियों के लिए जो काम करने के नाम पर तो कांखने लगती हैं और खाना पूरे डेढ़ पसेरी खा जाती हैं. कांखना – शौच के लिए जोर लगाना, पसेरी पांच सेर.
काँख बल सो निज बल. कांख – बगल. अपने शरीर का बल ही सच्चा बल है.
काँटा बुरा करील का और बदली की घाम, सौत बुरी है चून की और साझे को काम. करील का काँटा बुरा होता है और बादलों के साथ जो धूप होती है वह बुरी होती है (क्योंकि वह बहुत तेज होती है). सौत चाहे आटे की बनी हुई क्यों न हो बुरी होती है और साझे का काम बुरा होता है (इस कहावत का सबसे मुख्य सन्देश यही है).
कांकर तीत, कांकर के बियो तीत. कांकर – ककड़ी. बिया – बीज, तीत – कड़वा. किसी दुष्ट आदमी की औलादें भी दुष्ट हों तो.
कांट कंटीली झांखड़ी, लागे मीठा बेर. बेर जैसा मीठा फल कंटीली झाड़ियों में ही लगता है. मनचाही वस्तु को प्राप्त करने के लिए बहुत से संकटों से गुजरना पड़ता है.
कांटे से कांटा निकलता है (काँटे से काँटो निकरत). दुष्ट व्यक्ति को दुष्टता से ही ठीक किया जा सकता है.
कांटे से कांटो बिंधो. काँटे से काँटा बिंधा है (मामला अटक गया है). जैसे को तैसा मिल गया है.
कांटों से बाड़ और वचनों से राड़. काँटों से बाड़ बनती है और दुर्वचनों से राड़ (झगड़ा).
कांधिये किराए पर नहीं मिलते. कांधिये – अर्थी को कंधा देने वाले. जो लोग धन के घमंड में अपने नातेदारों का आदर नहीं करते उन्हें सीख देने के लिए.
कांधे डाली झोली, डोम छोड़ा न कोली. भीख मांगने वाले किसी को नहीं छोड़ते. डोम – श्मशान में काम करने वाले लोग. कोली – मछुआरा.
कांसी, कुत्ती, कुभार्या, बिन छेड़े कूकंत. कांसे की थाली, कुतिया और झगड़ालू पत्नी बिना छेड़े ही बोलती हैं.
कांसे को सुर कांसे में ही रहन दो. कांसा – मिश्र धातु जो ताँबा और जस्ते से मिल कर बनती है. इसके बने बर्तन थोड़ी सी ठोकर लगने से खनकते हैं. काँसे का सुर काँसे में ही रहने दो, अर्थात घर की बात घर में ही रहने दो.
काक कहहिं पिक कंठ कठोरा. कौआ कह रहा है कि कोयल की आवाज कर्कश है. कोई मूर्ख व्यक्ति किसी विद्वान पर आक्षेप करे तो.
काका काहू के न भए. जो व्यक्ति अपने ही लोगों को धोखा दे उस के लिए मज़ाक में.
काका की भैंस, भतीजा लड़े कुश्ती. अपने रिश्तेदारों के बल पर उछलने वाले व्यक्तियों के लिए.
काका के हाथ में कुलहाड़ी हल्की मालूम होती है. जब खुद उठानी पड़े तो मालूम होता है कि कुलहाड़ी कितनी भारी है. बच्चों को पालने में कितनी मेहनत पड़ती है यह तब मालूम पड़ता है जब खुद बच्चे पालने पड़ते हैं.
काका छबीली ने मोह लये. जब कोई अपने से बड़ा और समझदार व्यक्ति किसी स्त्री के मोहजाल में फंस जाए या दूसरों की बातों में आ जाय तब कहते हैं.
काका जी को मरता देख मरने से मन हट गया. जो लोग बात बात पर मरने की धमकी देते हैं उन पर व्यंग्य. दूसरा अर्थ है कि अपने किसी सम्बंधी की मृत्यु होने पर मालूम पड़ता है कि मृत्यु कितना भयावह अनुभव है.
काका ने पी, भतीजे को चढ़ी. जो लोग अपने रिश्तेदारों के बल पर ऐंठ दिखाते हैं उन पर व्यंग्य.
काग कुल्हाड़ी कुटिल नर काटे ही काटे, सुई सुहागा सत्पुरुष सांठे ही सांठे. कौवा, कुल्हाड़ी और दुष्ट पुरुष केवल काटना ही जानते हैं जबकि सुई, सुहागा और सत्पुरुष केवल जोड़ते ही हैं.
काग दाहिने खेत सुहाये, सुफल मनोरथ समझो भाये. यात्रा पर जाते समय यदि दाहिनी ओर खेत में कौवा दिखाई दे तो शुभ शगुन माना जाता है. सुहाये – शोभित हो.
काग पढ़ायो पीन्जरो, पढ़ गयो चारों वेद, समझायो समझो नहीं, रह्यो ढेढ को ढेढ. कहावत का अर्थ है कि कितना भी प्रयास करो मूर्ख आदमी मूर्ख ही रहता है. सन्दर्भ कथा – एक महात्मा जी अपनी विद्या पर बड़ा गुमान था. उन्होंने एक कौवे को पिंजरे में बंद कर के अपनी विद्या के बल पर चारों वेद पढ़ा दिए. पर जैसे ही पिंजड़े का दरवाजा खोला वह बाहर निकल कर विष्टा खाने को भागा.
कागज की नाव ज्यादा देर नहीं चलती (कागज़ की नाव, आज न डूबी कल डूबी). कागज़ की नाव पानी में अधिक देर नहीं चल सकती, कुछ देर बाद गल जाएगी. झूठ के सहारे या अपर्याप्त साधनों के सहारे खड़ा किया गया व्यापार अधिक दिन नहीं चल सकता.
कागज की भसम किन भस्मों में, बिन ब्याहा खसम किन खसमों में. कोई स्त्री बिना विवाह के किसी पुरुष को पति नहीं मान सकती. ऐसा सम्बन्ध उतना ही महत्वहीन है जितनी कागज़ की राख. आजकल बहुत सी लड़कियाँ किसी पुरुष के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहती हैं. उन के लिए सीख.
कागज थोड़ा प्रेम घना. कागज में स्थान इतना कम है कि लिख कर प्रेम प्रकट नहीं किया जा सकता.
कागज हो तो हर कोई बांचे, भाग न बांचा जाए. कागज पर लिखा हर कोई पढ़ सकता है पर भाग्य में क्या लिखा है यह कोई नहीं पढ़ सकता. रूपान्तर – चिठिया हो तो हर कोई बांचे, भाग न बांचे कोय.
कागभगोड़ा न खावे न खावन दे. खेत में बांस की खपच्चियों को कुरता पहना कर उसके ऊपर उल्टा मटका रख देते हैं कि दूर से कोई आदमी खड़ा हुआ लगता है. इस को देख कर पक्षी डर कर खेत में नहीं आते. कोई ईमानदार हाकिम न खुद रिश्वत लेता हो और न लेने देता हो तो उस के मातहत चिढ़ कर ऐसे बोलते हैं.
कागा कहा कपूर चुगाए, श्वान न्हवाए गंग. कौवे को कपूर खिलाओ और कुत्ते को गंगा में नहलाओ तो भी इनका स्वभाव नहीं बदलेगा.
कागा किस का धन हरे, कोयल किस को देय, मीठ बोल के कारने जग अपनो कर लेय. न कौवा किसी का कोई नुकसान करते है और न ही कोयल किसी को कुछ देती है. कौवे की बोली कर्कश है इसलिए सब उससे चिढ़ते हैं और कोयल मीठा बोलती है इसलिए सब को अपना बना लेती है.
कागा कूकुर और कुमानुस तीनों जात कुजात. कौवा, कुत्ता और कुमानुष तीनों ही निकृष्ट श्रेणी के जीव होते हैं.
कागा कोयल औ खरगोस, ये तीनहुँ नहिं मानें पोस. इन तीनों को पालतू नहीं बनाया जा सकता. इस से मिलती जुलती कहावत है – तुरुक तीतरा और खरगोस, ये तीनहुँ नहिं मानें पोस.
कागा बोले, पड़ गए रौले. 1.भोर होते ही कागा बोलता है और दुनिया की दौड़ भाग शुरू हो जाती है. 2.कुटिल आदमी कुछ का कुछ बोल कर झगड़े शुरू करा देते हैं.
कागा रे तू मल मल नहाए, तेरी कालिख कभी न जाए. कौवा कितना भी मल मल कर नहा ले उस की कालिख कभी नहीं जाती. कोई दुष्ट पापी व्यक्ति गंगा में स्नान कर रहा हो तो उस पर व्यंग्य.
काचर का बीज, एक ही काफी. काचर – एक छोटी ककड़ी जिस का बीज खट्टा और कड़वा होता है और एक ही बीज मनों दूध को फाड़ देता है. झगड़ा कराने वाले कुटिल व्यक्ति के लिए.
काछ काछें और, नाच नाचें और. काछ – पहनावा. दिखावा कुछ और करना, काम कुछ और करना.
काज परै कछु और है, काज सरै कछु और. ऐसे लोगों के लिए जिनका व्यवहार काम पड़ने पर कुछ और होता है और काम निकल जाने पर कुछ और होता है. रूपान्तर – काम परे कछु और है, काम सरे कछु और.
काज से काज कि बकबक से काज. कोई आदमी अच्छा काम करता हो लेकिन बकबक भी बहुत करता हो तो उस की बातों का बुरा न मान कर केवल उसके काम से काम रखना चाहिए.
काजर गया बिहार, बहुरिया निहुरी ही है. निहुरी – झुकी हुई. कोई व्यक्ति किसी वस्तु की प्रतीक्षा में बैठा रह जाय तो मजाक में कहा जाता है कि वह चीज तो बहुत दूर चली गई. तुम कब तक यूँ ही बैठे रहोगे.
काजल की कोठरी में कैसो भी सयानो जाय, एक लीक काजल की लागे रे लागे रे भाई. गलत काम को आदमी कितनी भी होशियारी से करे कुछ न कुछ दाग लग ही जाता है.
काजल लगाते आँख फूटी. अच्छा काम करने की कोशिश में भारी नुकसान हो जाना.
काजी का प्यादा घोड़े पे सवार. अफसरों के मातहत अपने आपको अफसरों से कम नहीं समझते.
काजी काज करें, निकम्मे छींटे कसें. काम करने वाले काम करते हैं तो निकम्मे लोग उन का मजाक उड़ाते हैं.
काजी की कुतिया कहाँ जा के ब्याहेगी. जो आदमी अपने को बहुत होशियार समझता हो और एक सामान खरीदने के लिए पच्चीसों दुकानें देखता हो उस का मजाक उड़ाने के लिए दुकानदार ऐसा बोलते हैं.
काजी की घोड़ी कोई घी थोड़े ही मूतती है. बड़े आदमी के नौकर चाकर जानवर सब अपने आप को वीआईपी समझने लगते हैं, उनका मजाक उड़ाने के लिए.
काजी की मारी हलाल होवे. मुसलमानों में किसी पशु का वध करने का खास तरीका होता है. उसी तरह करने पर उसके मांस को हलाल (धर्म सम्मत) माना जाता है नहीं तो वह हराम (निषिद्ध) हो जाता है. कोई अति प्रभावशाली व्यक्ति अगर किसी जानवर को मारे तो सब उसे हलाल मान लेते हैं चाहे उसने कैसे भी किया हो.
काजी की लौंडी मरी सारा शहर आया, काजी मरे कोई न आया. जब आदमी ऊँचे पद पर होता है तो उसके मातहतों तक की बड़ी पूछ होती है और जब वह पद पर नहीं रहता तो उसे भी कोई नहीं पूछता.
काजी के घर के चूहे भी सयाने. बड़े आदमी के नौकर, चाकर, चमचे आदि अपने को बहुत होशियार समझते हैं.
काजी के मरने से क्या शहर सूना हो जाएगा. कोई कितना बड़ा आदमी क्यों न हो, उसके मरने से संसार के कार्य रुकते नहीं हैं.
काजी जी दुबले क्यों, शहर के अंदेशे से. (काजी जी तुम क्यों दुबले, शहर का अंदेशा). जिम्मेदार व्यक्ति को हमेशा कोई न कोई चिंता लगी रहती है.
काजी जी पहले अपना आगा ढको, पीछे नसीहत देना. जो बड़े हाकिम खुद तो भ्रष्ट हों और दूसरों को ईमानदारी का उपदेश दे रहे हों, उन को आईना दिखाने के लिए यह कहावत कही जाती है.
काटन आई चारा, खेत पर इजारा. इजारा – ठेका, पट्टा. चारा काटने को आई और खेत पर अपना दावा ठोंकने लगी. अनधिकार चेष्टा करने वालों के लिए.
काटना छोड़ दिया तो फुंकारते तो जाओ (काटबो छोड़ दओ तो फुंकारत तौ जाओ). सीधे सरल व्यक्ति को लोग जीने नहीं देते. इसलिए कभी कभी थोड़ा-बहुत भय भी दिखाना पड़ता है. सन्दर्भ कथा – एक समय किसी सर्प ने एक साधू के उपदेश से काटना बिलकुल छोड़ दिया. इस पर लोग उसे बड़ा तंग करने लगे. जो आता ढेला मारता. गुरू को जब इसका पता चला तो उन्होंने कहा, भाई काटना छोड़ दिया, ठीक किया. परन्तु थोड़ा-बहुत फुंकारते जाया करो, जिससे लोग तुमसे डरते रहें, क्योंकि उसके बिना दुनिया में काम नहीं चलता.
काटने वाले को थोड़ा और बटोरने वाले को बहुत. अनाज की कटाई के बाद बचे खुचे गिरे हुए अनाज को बटोरने के लिए लोग लगाए जाते हैं. बटोरे हुए अनाज का कुछ हिस्सा बटोरने वालों को दे दिया जाता है. जहाँ मुख्य काम करने वाले को कम और आलतू फ़ालतू लोगों को ज्यादा मिल जाए वहां यह कहावत कहते हैं.
काटे कटे, न मारे मरे. आसानी से जो काम न हो. कोई आदमी बहुत प्रयास के बाद भी काबू न आए तो भी.
काटेहि पर कदरी फरे, कोटि जतन कोउ सींच, बिनय न मान खगेस सुनु, डाटेहि पइ नव नीच. केले के पेड़ को कितना भी सींचो, वह काटने पर ही फल देता है. नीच व्यक्ति विनम्रता से नहीं डांटने से ही मानता है.
काटो सांप जहाँ मन भावे. दुश्मन से परेशान होकर उसके हवाले अपने को सौंपना.
काठ की घोड़ी पाँवों नहीं चलती. बनावटी चीज़ असल की तरह काम नहीं कर सकती.
काठ की तलवार, क्या करेगी वार. उपरोक्त के सामान.
काठ की भवानी को मकरा के अच्छत. जो जैसा हो उसका सम्मान भी वैसा ही होता है. लकड़ी की प्रतिमा है तो मकरा (एक घटिया अनाज) का अच्छत चढ़ाकर ही पूजा की जाएगी.
काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती है. (फेर न ह्वैहैं कपट सों, जो कीजै ब्यौपार, जैसे हांडी काठ की, चढै न दूजी बार). अगर कोई हंडिया लकड़ी की बनी हो तो आप उस में बार बार खाना नहीं पका सकते. एक आध बार में ही वह जल जाएगी. झूठ और बहाने बाजी से एकाध बार ही काम निकाला जा सकता है पर बार-बार नहीं.
काठ छीलो तो चिकना, बात छीलो तो रूखी. आपसी बातचीत में बहुत बहस नहीं करनी चाहिए और किसी से कोई बात बहुत खोद खोद कर नहीं पूछनी चाहिए (इससे संबंधों में रूखापन आ जाता है).
काणी अपनी टेंट न निहारे, दूजे को पर पर झांके. जो लोग अपनी कमियाँ न देख कर दूसरे की गलतियाँ निकालते रहते हैं उनके लिए.
काणी का संग सहा न जाए, कानी बिना भी रहा न जाए. किसी व्यक्ति की पत्नी कानी है तो उसके साथ रहने में भी परेशानी है और उसके बिना काम भी नहीं चलता.
काणी को सराहे काणी को बाप (कानी को सराहे कानी की माँ). औलाद कैसी भी हो माँ बाप हमेशा उसकी तारीफ़ ही करते हैं. क्योंकि उन्हें अपना बच्चा प्रिय होता है और इसलिए भी क्योंकि वे उसका उत्साह बढ़ाना चाहते हैं.
काणे की आंख में डाला घी और यूँ कहे मेरी फोड़ दी. (हरयाणवी कहावत) किसी का भला करने की कोशिश करो और वह आपसे लड़ने को आ जाए तो.
कातिक कुतिया, माघ बिलाई, चैते चिड़िया, सदा लुगाई. कुतिया कार्तिक माह में, बिल्ली माघ में और चिड़िया चैत्र में रजस्वला होती हैं जबकि मानव स्त्रियाँ प्रत्येक माह में रजस्वला होती हैं.
कातिक जो आंवर तले खाय, कुटुम समेत बैकुंठ जाय. आंवर – आंवला. कार्तिक माह में जो आंवले की पूजा करता है वह बैकुंठ जाता है.
कातिक मास रात हर जोतौ, टांग पसार घरै मत सोतौ. (बुन्देलखंडी कहावत) कार्तिक माह में घर पर न सो कर रात को भी हल जोतो तो जुताई पूरी हो पाती है.
कातिक में जो सीत पिये तो पावे लाभ, जो भादों में पिये कोऊ तो ताप चढ़ावे. सीत- मट्ठा. कार्तिक माह में मट्ठा पीने से लाभ होता है और यदि भादों के महीने में पियें तो बुखार हो सकता है.
कान छिदाय सो गुड़ खाय. पहले के समय में गुड़ भी नियामत होता था, कभी कभी ही खाने को मिलता था. कान छिदाने के लिए बच्चे को गुड़ का लालच दिया जाता था. जो बच्चा कान छिदवाएगा उसी को गुड़ खाने को मिलेगा. कहावत का अर्थ है जो कष्ट उठाएगा वही इनाम पाएगा.
कान धरी छेरी. छेरी – बकरी. बकरी का कान पकड़ लेने से वह फिर भागने नहीं पाती. ऐसा मनुष्य जो पूर्णरूप से दूसरे के वश में हो और जो कहा जाय वही करे. प्रायः क्वाँरी लड़की के लिए प्रयुक्त.
कान प्यारे तो बालियाँ, जोरू प्यारी तो सालियाँ. मजाक की तुकबंदी है. कुछ लोग ऐसे भी बोलते हैं – कान से प्यारी बालियाँ, जोरू से प्यारी सालियाँ.
काना कुबड़ा तिरपटा, मूढ़ में गंजा होय, इन से बातें जब करो, हाथ में डंडा होय. (बुन्देलखंडी कहावत) तिरपटा – भेंगा, एंचा ताना. कुछ लोक विश्वास बड़े बेसिरपैर के होते हैं. इसी प्रकार का एक विश्वास यह भी है कि काना व्यक्ति, कुबड़ा, भेंगा और गंजा आदमी. ये सब दुष्ट होते हैं.
काना खसम भी घूर कर देखे. पति खुद काना है तब भी सुन्दर पत्नी पर रौब दिखा रहा है.
काना भी आँख मारे. किसी काम के लायक न होने पर भी करने की कोशिश करने वाले पर व्यंग्य.
काना मुझको भाय नहीं, काने बिन भी सुहाय नहीं. किसी स्त्री का पति काना है. वह उसे सुहाता नहीं है लेकिन उसके बिना भी काम नहीं चलता. इसी प्रकार की दुविधा वाली परिस्थिति में कहावत का प्रयोग होता है.
काना, कंजा, तंग गर्दनिया, इन तीनों से हारी दुनिया. कुछ लोगों के अनुसार काना, भूरी आँख वाला और छोटी गर्दन वाला ये तीनों बहुत धूर्त माने जाते हैं.
कानाफूसी में ही खड़गपुर का राज गया. अंदरूनी लोगों के षड्यंत्र से ही बहुत से राज्यों का पतन हुआ है.
कानी अपने मने सुहानी. कानी भी अपने आप को सुंदर समझती है.
कानी आँख देखे भले न, खटकती जरूर है. कानी आँख किसी काम की नहीं होती पर तकलीफ देती है. घर में कोई आदमी निकम्मा हो तो काम तो कुछ नहीं करेगा पर सब को परेशान जरूर करेगा.
कानी की आँख में कुस गयो, कानी को मिस भयो. कानी की आँख में तिनका गया तो उसे बहाना मिल गया कि तिनके से मेरी आँख फूट गयी. अपनी कमी छिपाने के लिए बहाना ढूँढना.
कानी के ब्याह को नौ सौ जोखें (कानी के ब्याह में फेरों तक खोट), (कानी की बरात में सब असगुन असगुन). जोखें – जोखिम, परेशानियाँ. कानी लड़की की शादी करना बहुत मुश्किल काम है. किसी मुश्किलकाम में बहुत सारी परेशानियाँ आ रही हों तो इस प्रकार से कहते हैं.
कानी को काजल न सुहाए. कानी को काजल अच्छा नहीं लगता(उस के लिए काजल की कोई उपयोगिता नहीं है).
कानी को काना प्यारा, रानी को राना प्यारा. अपना अपना सगा सम्बन्धी सब को प्यारा होता है.
कानी कौड़ी पास नहीं, नाम करोड़ीमल. गुण के विपरीत नाम.
कानी गदही सोने की लगाम. अपात्र के लिए विशेष सुविधाएँ.
कानी गाय के अलग बथान. कानी गाय अलग बंधना चाहती है क्योंकि उसे घास खाने में कठिनाई होती है. कमजोर बच्चा या व्यक्ति अलग से परवरिश चाहता है. रूपान्तर – कानी बिलरिया के अलगे डेरा.
कानी गाय बाह्मन के दान. घटिया चीज़ दान कर के पुण्य कमाने की कोशिश करना.
कानी गीदड़ी का ब्याह. जब धूप भी निकल रही हो और पानी बरस रहा हो तो बच्चे कहते हैं कि कानी गीदड़ी का ब्याह हो रहा है. कुछ लोग काले चोर का ब्याह बोलते हैं.
कानी बिना रहा न जाये, कानी को देख के अंखियाँ पिराएँ. कानी को देख कर मन कुढ़ता भी है और उस के बिना काम भी नहीं चलता.
कानी बिल्ली घर में सिकार. बिल्ली कानी है (अपाहिज है) तो बाहर न जा कर घर में ही शिकार करेगी. कोई अयोग्य व्यक्ति घर वालों को ही धोखा दे तो.
कानून के हाथ लम्बे होते हैं. कानून से बचने के लिए कोई कितनी भी दूर भाग जाए, कहीं भी छिप जाए, कानून अंततः उसे पकड़ ही लेता है.
कानून न कायदा, जी हुजूरी में फायदा. जो लोग कायदे और कानून की बात करते हैं वे पीछे रह जाते हैं और चमचागीरी करने वाले आगे बढ़ जाते हैं.
कानूनगो की खोपड़ी मरी भी दगा दे. कहावत कहने वाले के अनुसार कानूनगो इतने धोखेबाज़ होते हैं कि उनकी मरी हुई खोपड़ी भी इंसान के साथ दगा कर सकती है.
काने का नाम कमलनयन. गुण के विपरीत नाम.
काने की एक रग सिवा होती है. काने के पास धोड़ी सी अतिरिक्त कुटिलता होती है.
काने पे अंधा हंसे. कोई मूर्ख व्यक्ति अपने से अधिक बुद्धि वाले पर हंसे तो.
काने से काना कहो तब तो जानो टूटी, धीरे धीरे पूछो भैया कैसे तेरी फूटी. काने को अगर सीधे सीधे काना कह कर सम्बोधित करोगे तब वह बहुत नाराज होगा (संबंध ही टूट जाएगा). उससे हलके से पूछो कि भैया तेरी आँख में क्या हुआ था. रूपान्तर – कनवाँ से कनवाँ कहो तुरतईं जावे रूठ, हाँ हाँ के पूछिये कैसे गई थी फूट.
काने, टूंडे और लंगड़े में एक ऐब फालतू पाया जाता है. क्योंकि ये सभी हीन भावना से ग्रस्त होते हैं.
कानों में भलामानुस बिरला ही होय. काने लोगों में भले लोग मुश्किल से ही मिलते हैं.
काबुल में मेवा दई, ब्रज में दई करील. (काबुल में मेवा रच्यो, ब्रज में रच्यो करील). ईश्वर की अजीब माया है, काबुल जैसे गधों के देश में मेवा ही मेवा पैदा की है जबकि बृज जैसे पवित्र और प्रिय स्थान पर काँटों भरा करील.
काबुल में सब गधे ही गधे. जहाँ सब एक से बढ़ कर एक मूर्ख भरे हों वहाँ के लिए.
काबू आई गूजरी, गहरा बर्तन लाओ. ग्वालन कब्जे में आ गई है, गहरा बर्तन लाओ, ज्यादा दूध मिल जाएगा. किसी से लाभ पाने का मौका हाथ आया हो तो.
काम और लाम में बैर है. लाम – जल्दबाजी. जल्दबाजी में काम बिगड़ना तय है.
काम करने से कराना कठिन. अपने हाथ से काम करना कहीं आसान है, दूसरों से कराना बहुत कठिन है.
काम काज को थर थर काँपे, खाने को मरदानी. काम करने के नाम पर कमजोरी और बुखार, खाने के लिए पूरी ताकत के साथ तैयार.
काम की न काज की ढाई सेर अनाज की (काम का न काज का, दुश्मन अनाज का). जो काम काज कुछ न करे केवल खाने में होशियार हो. जो स्त्रियाँ अधिक खाती हैं उनके लिए घर की अन्य महिलाएं ऐसा बोलती हैं.
काम को काम सिखाता है. अनुभव से ही काम करना आता है. इस को इस प्रकार भी कह सकते हैं कि एक व्यक्ति के अनुभव से बहुत से लोग सीखते हैं.
काम को सलाम है. काम की ही प्रशंसा होती है.
काम क्रोध मद लोभ की जौं लों मन में खान, का पंडित का मूरखा दोउ एक समान. जब तक मन में काम, क्रोध, अहंकार और लोभ हैं तब तक पंडित और मूर्ख सामान ही हैं. इन को जीत कर ही व्यक्ति पंडित बन सकता है.
काम चोर, निवाले हाजिर. काम के नाम पर गायब और खाने के वक्त मौजूद.
काम जो आवे कामरी, का ले करे किमखाब (कुलांच). कामरी – कम्बल, किमखाब, कुलांच – महंगा ऊनी वस्त्र. जहाँ कम्बल काम आना हो वहाँ कुलांच ले कर क्या करेंगे.
काम दाई का नाम भौजाई का. असल काम कोई और करे पर श्रेय किसी और को मिले तो.
काम धाम में आलसी भोजन में होशियार. काम के नाम पर सबसे पीछे और खाने पीने में चौकस.
काम न कोउ का बनि जाय, काटी अँगुरी मूतत नाँय (काटी उंगली पे न मूते). यदि किसी की कटी हुई उँगली इनके मूतने से ठीक हो जाए तो ये वह भी नहीं करेंगे. अत्यधिक स्वार्थी लोगों के लिए. (पुराने लोग मानते थे कि छोटे मोटे घाव पर मूत्र लगा देने से वह ठीक हो जाता है).
काम न धाम, साढ़े तीन हिस्सा. बिना कोई योगदान दिए बंटवारे में बहुत बड़ा हिस्सा माँगना.
काम न पड़ने तक सब दोस्त अच्छे. सारे दोस्त व रिश्तेदार तभी तक आपकी आवभगत करते हैं जब तक उनसे किसी काम के लिए न कहा जाए.
काम पड़े ते जानिए जो नर जैसो होए. कौन व्यक्ति कैसा है यह तभी समझ में आता है जब उस से कोई काम पड़ता है.
काम पड़े मूर्ख से तो मौन गहे रहिए. मूर्ख व्यक्ति से काम पड़े तो चुप रहना चाहिए. अगर आप चुप रहेंगे तब तो वह शायद काम कर भी दे, पर कहने से कभी नहीं करेगा.
काम रहे तक काजी, न रहा तो पाजी (काम रहे तो काजी न रहे तो पाजी). 1.जब तक किसी से काम अटका रहा तब तक उस की जी हुजूरी करते रहे, काम निकलते ही गालियाँ देने लगे. 2. जब तक व्यक्ति जीविका के लिए काम रहता है तब तक ही उस की इज्ज़त रहती है.
काम सरा दुख बीसरा, छाछ न देत अहीर. जब तक अहीर को आपसे काम था तब तक वह छाछ ला कर दे रहा था. अब काम निकल गया और उस की परेशानी दूर हो गई तो वह छाछ क्यों ला कर देगा.
काम ही करता तो घर ही बहुत काम था. कामचोर आदमी जो काम से बचने के लिए घर छोड़ कर भागा है उससे काम करने के लिए कहा जाए तो वह ऐसे बोलता है.
कामिनि गरभ औ खेती पकी, ये दोनों ही दुर्बल बदी. गर्भवती स्त्री और पक कर तैयार फसल, ये दोनों ही कमजोर माने जाते हैं. बच्चा सुरक्षित हो जाय व खेती का अनाज घर आ जाय तो समझो कि अब लाभ मिला.
कामिनी मोहिनी रूप है. स्त्री अपने मोहपाश में सब को बाँध सकती है.
कामी की साख नहीं, लोभी की नाक नहीं. कामुक व्यक्ति का कोई सम्मान नहीं करता और लोभी का अपना कोई आत्मसम्मान नहीं होता. नाक से अर्थ यहाँ आत्मसम्मान से है.
कामी क्रोधी लालची, इनसे भक्ति न होय, भक्ति करे कोई सूरमा, जाति बरन कुल खोए. कबीर दास जी कहते हैं कि कामी, क्रोधी और लालची, ऐसे व्यक्तियों से भक्ति नहीं हो पाती. भक्ति तो कोई सूरमा ही कर सकता है जो अपनी जाति, कुल, अहंकार सबका त्याग कर देता है.
कायथ के गाँव में धोबी पटवारी. उलटी बात. कायस्थों जैसे कानूनचियों के गाँव में घोबी जैसा अनपढ़ आदमी कैसे पटवारी बन सकता है.
कायर का हिमायती भी हारा है (बुजदिल का हिमायती भी हारे). कायर आदमी कभी नहीं जीत सकता. यहाँ तक कि उसका पक्ष लेने वाला भी हार जाता है.
कायस्थ का बच्चा कभी न सच्चा. कायस्थों से अत्यधिक द्वेष रखने वाले (या सताए गए) व्यक्ति का कथन. समाज के सभी वर्गों के लोगों के लिए इस प्रकार की कहावतें मिलती हैं, और ये कहावतें सच नहीं होतीं इसलिए इनका बुरा नहीं मानना चाहिए. कुछ लोग इसके आगे भी बोलते हैं – जब सच्चा तो – – – का बच्चा.
कायस्थ का बेटा, पढ़ा भला या मरा भला. कायस्थों के यहाँ केवल नौकरी करने का रिवाज़ होता है जिसके लिए पढ़ना लिखना जरूरी है, जो नहीं पढ़ा वह मरे के समान.
कायस्थ मीत ना कीजिए, सुन कंता नादान, राजी हो तो धन हरें, बैरी हो तो जान. कायस्थ से दोस्ती नहीं करनी चाहिए वह आपको कोर्ट कचहरी के दंड फंड में फंसा कर कुछ भी कर सकता है. वह दोस्ती का दिखावा कर के आपका धन हर लेगा और कहीं दुश्मनी हो गई तो जान ही ले लेगा.
कायस्थों की घुट्टी में भी शराब. कायस्थों में शराब के अत्यधिक चलन पर व्यंग्य. खुद बच्चन जी ने ‘मधुशाला’ में लिखा है – मैं कायस्थ कुलोद्भव मेरे पुरखों ने इतना ढाला, मेरे तन के लोहू में है पचहत्तर प्रतिशत हाला.
काया और माया का क्या भरोसा (काया और माया का गर्व कैसा). ये दोनों क्षण भंगुर हैं. काया ढल जाती है और माया चली जाती है.
काया कष्ट है, जान जोखिम नहीं. ऐसी बीमारी जो जानलेवा न हो.
काया का पेट भर जाए पर माया का न भरे. शरीर की भूख मिट सकती है पर मन का लालच नहीं.
काया पापी अच्छा, मन पापी बुरा. दिखा कर पाप करने वाला इतना बुरा नहीं जितना मन में पाप पालने वाला.
काया रहै निरोग जो कम खावै, उसका बिगड़ै ना काम जो गम खावै. कम खाने वाला स्वस्थ रहता है और संतोषी व्यक्ति का काम नहीं बिगड़ता. गम खाना – मन में संतोष रखना.
काया राखे धर्म है. हम धर्म का पालन तभी कर सकते हैं जब शरीर स्वस्थ हो. इसलिए अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए. संस्कृत में कहा गया है – शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्.
काया राखे धर्म, पूंजी राखे बनिज (व्यापार). काया को ठीक रखोगे तो धर्म कर्म कर पाओगे और धर्म तुम्हारी काया की रक्षा करेगा. इसी प्रकार पूंजी बना कर रखोगे तो व्यापार कर पाओगे और व्यापार पूंजी की रक्षा करेगा.
काया राम की माया राज की. शरीर भगवान का बनाया हुआ है इसलिए उस पर उन्हीं का अधिकार है, जब कि धन धान्य राज्य की संपत्ति है. मनुष्य का अपना कुछ नहीं है, न धन न शरीर.
कारज धीरे होत है काहे होत अधीर. कोई भी काम धीरे धीरे ही पूरा होता है, इसलिए बेचैन नहीं होना चाहिए.
कारज पीछे कीजिए, पहले जतन विचारि. पहले सोच समझ कर तब कोई काम करना चाहिए.
कारी कबरी कुछ तो करो. उजला काम न कर सको तो काला या चितकबरा कुछ तो करो. कुछ न करने से अच्छा है कि प्रयास करो चाहे गलत ही क्यों न हो जाए.
कार्तिक का मेह कटक बराबर. कटक – फ़ौज. कार्तिक कि वर्षा फसलों का उतना ही नुकसान करती है जितना वहाँ से गुजरने वाली फ़ौज.
कार्तिक की छांट बुरी, बनिये की नाट बुरी, भाइयों की आंट बुरी, हाकिम की डांट बुरी. कार्तिक महीने की वर्षा बुरी, उधार देने के लिए बनिए की मनाही बुरी, भाइयों की अनबन बुरी और हाकिम की डांट-डपट बुरी होती है.
काल आ जाए पर कल नहीं आता. ख़ास तौर पर उधार चुकाने के मामले में.
काल आ जाए पर कलंक न आए. सम्मानित लोग ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि मृत्यु भले ही आ जाए पर कलंक न लगे.
काल औ कर्ज़, किसान को खाएं. किसान को अकाल (अनावृष्टि) और कर्ज़ बर्बाद कर देते हैं.
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में परलय होएगी, बहुरि करैगो कब. हर कार्य समय पर करना चाहिए, टालना नहीं चाहिए. क्या मालूम कल क्या हो जाए.
काल कहीं नहीं जाता, हम ही चले जाते हैं. अत्यधिक स्वार्थी लोगों को सीख देने के लिए.
काल का मारा, सब जग हारा. काल के आगे सब बेबस हैं. इस से भिन्न एक और कहावत नीचे दी गई है –
काल का मारा, सब जगह हारा. समय का मारा व्यक्ति सब जगह नुकसान ही उठाता है.
काल के मारे न मरें, बामन बकरी ऊँट, वो मांगे, वो इत उत चरे, वो चाबे सूखा ठूँठ. ब्राह्मण, बकरी और ऊँट अकाल पड़ने पर भी जीवित रहते हैं. ब्राह्मण भिक्षा मांग कर, बकरी इधर उधर कुछ भी चर के और ऊँट सूखे ठूँठ खा कर काम चला लेता है.
काल के हाथ कमान, बूढ़ा बचे न जवान (काल न छोड़े राजा, न छोड़े रंक). काल किसी को नहीं छोड़ता, न बूढ़े को न न बच्चे को, न राजा को न गरीब को.
काल गया पर कहावत रह गई. समय बीत जाता है पर जो कुछ हम ने किया है (अच्छा या बुरा) उसकी कहानियाँ रह जाती हैं. जो कहावतें हम पढ़ रहे हैं यह भी काल के साथ समाप्त नहीं होतीं.
काल जाए पर कलंक न जाए. समय बीतने के बाद भी किसी के ऊपर लगा हुआ कलंक नहीं जाता.
काल टले कलाल न टले. आदमी मौत के पंजे से निकल सकता है पर शराब के पंजे से नहीं.
काल पड़े पे कोदो मीठ. यूँ तो कोदों एक घटिया अनाज माना जाता है लेकिन अकाल पड़ने पर वह भी अच्छा लगता है.
काला अक्षर भैंस बराबर. अनपढ़ व्यक्ति का मज़ाक उड़ाने के लिए यह कहावत बोली जाती है.
काला करम का धौला धरम का. जब तक बाल काले हैं (युवावस्था है) तब तक कर्म करना चाहिए, जब बाल सफ़ेद होने लगें तो धार्मिक कार्यों पर ध्यान देना चाहिए.
काला कुत्ता, मोती नाम. गुण के विपरीत नाम.
काला मुँह करील के दांत. अत्यधिक कुरूप व्यक्ति.
काला हिरन न मारियो, सत्तर होवें रांड. काला हिरन बहुत सी मादाओं के बहुत बड़े झुंड में अकेला नर होता है. कहावत का अर्थ है कि ऐसे व्यक्ति को बेसहारा मत करो या मत मारो जिस पर बहुत लोग आश्रित हों.
काली ऊन और कुमानुस चढ़े न दूजो रंग. काली ऊन पर दूसरा रंग नहीं चढ़ता, इसी प्रकार कुमानुष को अच्छे संस्कार नहीं दिए जा सकते.
काली भली न सेत, दोनहूँ मारो एकहि खेत. जब दोनों ही विकल्प खतरनाक हों तो दोनों से छुटकारा पा लेना चाहिए. सन्दर्भ कथा – जब दोनों ही विकल्प खतरनाक हों तो दोनों से छुटकारा पा लेना चाहिए. एक राजा के दो रानियाँ थीं. राजा को नहीं मालूम था कि वे दोनों ही जादूगरनी थीं. वे दोनों राजा को अपने वश में करना चाहती थीं. एक ने सफ़ेद (श्वेत, सेत) चिड़िया बन गई और एक काली और आसमान में उड़ कर एक दूसरे पर हमला करने लगीं. राजा को मालूम हुआ तो उसने मंत्री से पूछा इनमें से किस जादूगरनी को मार दूँ. इस पर मंत्री ने जवाब दिया कि काली और सफ़ेद दोनों ही खतरनाक हैं दोनों को एक साथ मार दो. कहीं कहीं इस कहानी में चार रानियों का जिक्र है – काली भली न कबरी, भूरी भली न सेत, चारों मारो एकहि खेत.
काली माई करिया, भवानी माई गोर. ईश्वर की हर रचना अपने आप में विशिष्ट है, काले भी अच्छे हैं और गोरे भी. हिन्दू लोग रंगभेद नहीं करते, काले और गोरे दोनों को पूजते हैं.
काली मिर्च कुलंजन सक्कर, तीनों पीसें भाग बरोबर, आधो तोला फंकी मारें, मानो कोकिल राग उचारें. (बुन्देलखंडी कहावत) उपरोक्त तीनों चीजों का सेवन करने से स्वर मधुर हो जाता है.
काली मुर्गियां भी सफ़ेद अंडे देती हैं. मुर्गी चाहे किसी भी रंग की हो, अंडा सफेद रंग का ही देती है. मनुष्य की उपयोगिता को उस के बाहरी रंग रूप या आकार से नहीं उसके कम से ही आँका जा सकता है.
काले कपड़े पर काला दाग नहीं दीखता. चरित्रहीन और बदनाम व्यक्ति कितने भी गलत काम करे उन पर कोई ध्यान नहीं देता.
काले का काटा पानी नहीं मांगता. काले नाग द्वारा डसा हुआ व्यक्ति तुरंत मर जाता है. बहुत धूर्त व्यक्ति के लिए कहावत कही गई है कि उस से धोखा खाया आदमी फिर उबर नहीं सकता. देखिए परिशिष्ट.
काले का क्या काला होगा. कलुषित चरित्र वाले पर और अधिक कालिख क्या लगेगी.
काले काले किशन जी के साले. यूँ तो यह बच्चों की कहावत है, लेकिन बड़े लोगों के भी काम आ सकती है. काले लोगों को अपने को कम करके नहीं आंकना चाहिए.
काले काले राम के, भूरे भूरे हराम के. जो काले हैं वे भगवान राम के वंशज हैं, भूरे रंग के हैं वे अवश्य ही वर्ण संकर होंगे. हिन्दुस्तानी लोग अंग्रेजों के लिए इस प्रकार से बोलते थे.
काले के आगे दिया नहीं जलता. लोक विश्वास है कि काले नाग के आगे दिया नहीं जलता. संस्कृत में इस कहावत को इस प्रकार से कहा गया है – समीपे कृष्णसर्पस्य दीपो नैव प्रकाशते.
काले के काटे का यंत्र न तंत्र. काले नाग के काटने पर कोई तंत्र मंत्र काम नहीं करता.
काले के काला नही तो चितकबरा जरूर जन्मे. दुष्ट व्यक्ति की संतान पूरी दुष्ट न भी हो तो भी उस में कुछ न ओछापन तो अवश्य ही आ जाता है. संतान में माता पिता के कुछ गुण अवश्य आते हैं.
काले के संग बैठ कर कालिख ही लगती है (काली हांडी के पास बैठ कर कालिख जरूर लगती है). बदनाम लोगों की संगत में बदनामी अवश्य होती है. दुर्जन का संग करने से कलंकित होना पड़ता है.
काले को उजला कब सुहावे. बुरी मानसिकता वाले व्यक्ति को भले लोग अच्छे नहीं लगते.
काले कौए खा कर नहीं आया है. एक पुराना विश्वास है कि काले कौए खाने से आदमी अमर हो सकता है. रूपान्तर – काले कौए खाए कोई अमर नहीं होता.
काले फूल न पाया पानी, धान मरा अधबीच जवानी. जब धान के फूल काले होते हैं तब पानी देना आवश्यक होता है. उस समय पानी न देने से धान मर जाता है.
काले सर का एक न छोड़ा. यहाँ काले सर से अर्थ है जवान आदमी. दुश्चरित्र स्त्री के लिए कहा गया है.
काल्ह कुँवर आज राकस भया. कल का राजकुमार आज राक्षस हो गया. कोई भला व्यक्ति अचानक अपना चरित्र बदल कर दुष्ट और आततायी बन जाए तो.
काशी दुर्लभ ज्ञान पुंज, विश्वनाथ को धाम, मुअले पे गंगा मिले जीते लंगड़ा आम. काशी में रानी अहिल्याबाई होल्कर ने काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कर के एक परम्परा शुरू की थी जो अब भी चालू है. सन्दर्भ कथा – सावन कृष्ण पक्ष एकादशी को बाबा विश्नाथ को 551 लंगड़े आमों का भोग लगाया जाता है. इसी पर यह कहावत बनी कि काशी दुर्लभ ज्ञान का क्षेत्र है, बाबा विश्वनाथ का धाम है. यहाँ मरने पर गंगा मिलती हैं और जीते जी लंगड़ा आम. जिस प्रकार दशहरी आम लखनऊ का है उसी प्रकार लंगड़ा आम मूलत: बनारस का है इसीलिए उसे लंगड़ा बनारसी भी कहते हैं
कासा भर खाना और आसा भर सोना. भर पेट खाना (कांसा भर) और इच्छानुसार सोना, मतलब बिलकुल आराम का जीवन. कांसा एक मिश्र धातु है जिस से बर्तन बनाए जाते थे.
काहु समय में दिन बड़ा. काहु समय में रात. मनुष्य के दिन सदा एक से नहीं रहते. कभी सुख अधिक होता है, कभी दुख.
काहू पे हंसिये नहीं, हंसी कलह की मूल. किसी की हंसी नहीं उड़ानी चाहिए, क्योंकि इससे लड़ाई होने का डर रहता है. महाभारत का युद्ध भी इसी हंसी के कारण हुआ था.
काहे को अनका लड़का रुलाए, अपना गुड़ छुपा कर खाए. अनका – दूसरे का. अपने पास जो कुछ है उसका प्रदर्शन कर के दूसरों का दुख मत बढ़ाओ.
किए धरे पर गू का लीपा. अच्छा ख़ासा काम कर के सत्यानाश कर देना.
किच्ची किच्ची कौआ खाए, दूध मलाई मुन्ना खाए. कौवा नाक से निकलने वाली रैंट को खा जाता है. बच्चे की नाक साफ़ करते समय बच्चे का ध्यान बंटाने के लिए माँ बोलती हैं कि यह गंदगी तो कौवे के लिए है मेरा मुन्ना दूध मलाई खाएगा.
कित काशी, कित काश्मीर, खुरासान, गुजरात, दाना पानी परसुराम बांह पकड़ ले जात. मनुष्य अपनी इच्छा से कहीं नहीं जाता, दाना पानी उसे वहां ले जाता है.
कितनहिं चिड़िया उड़े अकास, फेरि करे धरती की आस. चिड़िया कितनी भी आकाश में उड़ ले, फिर धरती पर लौटने की इच्छा करती है. कोई व्यक्ति कितना भी ऊँचा उठ जाए, अपनी जड़ों तक लौटने की इच्छा रखता है.
कितना अहिरा होय सयाना, लोरिक छोड़ न गावे गाना. लोरिक – अहीरों की वीरता का गीत. कहावतों में अहीरों का खूब मजाक उड़ाया जाता है. अहीर कितना भी होशियार हो, लोरिक के अलावा कुछ नहीं गा सकता.
कितना भी धाओ, करम लिखा सो पाओ. धाओ – दौड़ो. व्यक्ति कितनी भी दौड़ भाग कर ले, जितना भाग्य में लिखा है उतना ही पाता है.
कितना सा सपना और कितनी सी रात. जीवन कितना छोटा सा है, इस में कितने सपने देख लोगे.
कितनो अहीर पढ़े पुरान, तीन बात से हीन, उठना बैठना बोलना, लिए विधाता छीन. अहीर कितना भी पढ़ लिख जाए सभ्य समाज के शिष्टाचार नहीं सीख सकता.
किनारे पर भी कई नाव डूबी हैं. कार्य पूरा होने से बिलकुल पहले भी बिगड़ सकता है, इसलिए कार्य सम्पूर्ण होने तक पूरी सावधानी रखनी चाहिए.
किया चाहे चाकरी, राखा चाहे मान. नौकरी करने में बहुत सम्मान नहीं मिल सकता. कहावत का अर्थ है की अगर आप नौकरी करना चाहते हैं तो व्यर्थ की हेकड़ी न रखें.
किया चाहे नौकरी, सोया चाहे घर. नौकरी करने वाला अपनी इच्छानुसार घर पर आराम नहीं कर सकता.
किरपन (कृपण) के दालद (दारिद्र्य) नहीं, नहिं सूरा के सीस, दातारों के धन नहीं, न कायर के रीस. कंजूस व्यक्ति दरिद्र नहीं हो सकता, शूरवीर अपना सर हथेली पर लिए घूमते हैं (अर्थात उनका सर नहीं होता), दानी लोगों के पास धन नहीं ठहरता और कायर लोग क्रोध एवं स्पर्धा नहीं कर सकते.
किलाकोट, मंदिर, महल, द्विज, छत्री, गज, बाज, ये दस ऊँचे चाहिए, बैद ईख अरु नाज. (बुन्देलखंडी कहावत) किले का परकोटा, मंदिर, महल, ब्राहण, क्षत्रिय, हाथी, घोड़ा, वैद्य, गन्ना, और अनाज के पौधे, ये दस चीजें जितनी ऊँची हों उतनी अच्छी मानी जाती हैं. बाज शब्द का अर्थ यहाँ घोड़े से है (घोड़े को बाजि भी कहते हैं).
किले के पीछे से और मंदिर के आगे से निकलना चाहिए. किले में आगे पहरेदार होते हैं जो आने जाने वालों से बदसलूकी करते हैं इसलिए किले के सामने से नहीं निकलना चाहिए. मंदिर के सामने से ही निकलना चाहिए जिससे भगवान के दर्शन हो सकें.
किस किस का मन राखिए, बीच राह में खेत. रास्ते से लगा हुआ खेत हो तो किसान की बड़ी मुसीबत होती है. रास्ता चलने वाले सभी परिचित लोग उस से कुछ न कुछ सुविधा चाहते हैं.
किस चक्की का पिसा आटा खाया है. मोटे आदमी का मजाक उड़ाने के लिए.
किस बिरते पर तत्ता पानी. आजकल तो सभी लोग गर्म पानी से नहाते हैं. पहले के जमाने में नहाने के लिए गरम पानी बिरले लोगों को ही मिलता था. कोई ऐरा गैरा आदमी गरम पानी मांग रहा है तो उस से पूछा जा रहा है कि तुम्हारे अंदर क्या खास बात है कि जो तुम्हें गरम पानी दिया जाए. कोई अपात्र विशेष सुविधाएँ मांगे तो.
किस में हिम्मत है जो छेड़े दिलेर को, गर्दिश में घेर लेते हैं कुत्ते भी शेर को. जब शेर के बुरे दिन आते हैं तो उसे कुत्ते भी घेर लेते हैं, वैसे मज़ाल है कोई उस के आस पास भी फटक जाए.
किसने खोदी और कौन पड़ा. खाई किसी और ने खोदी और उसमें गिरा कोई और. किसी के कुकर्मों का फल कोई दूसरा भुगते तो.
किसने तुम्हें पीले चावल दिए थे. ब्याह आदि में पीले चावल देकर सगे-संबंधियों को न्योतने की प्रथा है. तुम्हें यहाँ कौन बुलाने गया था. जब कोई अनधिकृत रूप से दूसरे के काम में हस्तक्षेप करने पहुँच जाय.
किसान उपजाय, बनिया पाय, बनिक पूत खाय. किसान मेहनत कर के फसल उगाता है, बनिया उसे उधार वसूली के बहाने हड़प लेता है लेकिन कंजूस होने के कारण वह उस का उपभोग नहीं करता. अंततः बनिए का बेटा उससे गुलछर्रे उड़ाता है.
किसान को जमींदार जैसे बच्चे को मसान. किसान के लिए जमींदार उतना ही डरावना होता है जितना बच्चों के लिए प्रेत.
किसान चाहे वर्षा, कुम्हार चाहे सूखा. संसार में सभी व्यक्ति केवल अपना ही हित चाहते हैं. किसान भगवान् से प्रार्थना करता है वर्षा करने के लिए और कुम्हार प्रार्थना करता है वर्षा न करने के लिए. सन्दर्भ कथा – एक महात्मा जी के दो बेटियाँ थीं. एक का विवाह किसान के साथ हुआ था और दूसरी का कुम्हार के साथ. एक बार वह अपनी बेटियों से मिलने के लिए निकले. पहले वह किसान परिवार से मिलने पहुँचे. समधी और दामाद ने उनका स्वागत किया लेकिन वे सभी वर्षा न होने से चिंतित थे. बेटी ने कहा, पिता जी आप भगवान से प्रार्थना कीजिए कि वे जल्दी ही वर्षा करें, नहीं तो हमें भूखे मरने की नौबत आ जाएगी.
महात्माजी मन ही मन वर्षा के लिए प्रार्थना करते हुए दूसरी बेटी के घर पहुंचे. वहाँ बहुत सारे मिटटी के बर्तन भांडे धूप में सूख रहे थे. उन की बेटी ने प्रसन्न होते हुए बोली कि वर्षा न होने से उन्हें बहुत लाभ हुआ है. उस ने पिता से कहा कि वे भगवान से प्रार्थना करें कि अभी एकाध महीने और वर्षा न हो. कहावत का अर्थ है कि संसार में सभी व्यक्ति केवल अपना ही हित चाहते हैं
किसी का ऊँचा मस्तक देखकर अपना मस्तक मत फोड़ लो. किसी की उन्नति देख कर ईर्ष्या से मत जलो. भोजपुरी में कहावत है – केहू के ऊँच लिलार देखि के आपन लिलार फोड़ी नाहीं लेहल जाला.
किसी का गीत किसी का राग. कहानी किसी और की सुना कोई और रहा है.
किसी का घर जले कोई हाथ सेंके. नीच स्वार्थी लोगों के लिए जो दूसरों के कष्ट में अपना लाभ ढूँढ़ते हैं. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – किसी का घर जले, गुंडे हाथ सेकें.
किसी का चाम घिसे, किसी के दाम घिसें. कोई शरीर से मेहनत करता है तो कोई पैसा खर्च कर के काम कराता है. दोनों का काम एक दूसरे से चलता है. यही समाज की कार्य प्रणाली है.
किसी का पेट दुखे किसी की पीठ दुखे. कोई पेट की भूख से परेशान है और किसी को लेट कर आराम करते करते पीठ में दर्द हो गया है. सब का अपना अपना प्रारब्ध है.
किसी का मुँह चले किसी का हाथ (किसी की जीभ चलती है, किसी के हाथ चलते हैं). जो बोलने में तेज होता है वह बोली द्वारा दूसरे को कष्ट पहुँचाता है. जो बोलने में नहीं जीत पाता वह खिसिया कर हाथ उठाता है.
किसी का लड़का, कोई मन्नत माने. दूसरे की चीज़ के लिए आवश्यकता से अधिक चिंतित होना.
किसी का हाथी मरा, किसी की हांडी फूटी, पंडा बोले काली चीजों पे ग्रह है. कहीं की बात कहीं जोड़ कर लोगों को मूर्ख बनाने वाले पंडितों पर व्यंग्य.
किसी की जान गई, आपकी अदा ठहरी. 1. जो लोग कुटिल चाल चल कर मासूम बनने की कोशिश करते हैं उन पर व्यंग्य. 2. कुछ लोग अपने भोलेपन में अनजाने ही किसी का नुकसान कर बैठते हैं.
किसी की जोरू मरे, किसी को सपने में आवे. दूसरे के कष्ट में अनावश्यक भागीदारी.
किसी की बहू, कोई बरा बदलावे. बरा – कोहनी से ऊपर हाथ में पहनने का आभूषण. किसी की बहू और कोई सर्राफ की दूकान पर उसका बरा बदलवाने जाय. जब कोई बुरी नीयत से किसी की सहायता को उद्यत हो.
किसी की साई किसी को बधाई. साई माने वह रकम जो कोई काम करने से पहले पेशगी ली जाती है. मतलब पैसा किसी से लिया, काम किसी और का कर रहे हो.
किसी के पौ बारह, किसी के तीन काने. चौपड़ के खेल में पाव बारह एक अत्यंत लाभ की स्थिति है जबकि तीन काने बहुत हानि की. संसार में कोई बहुत मजे में है और कोई बहुत कष्ट में है, इस के ऊपर कहावत.
किसी के लिए कुआं खोदो तो अपने लिए खाई तैयार समझो. (खाई खने जो और को ताको कूप तैयार). जो दूसरों का बुरा करते हैं उनका बुरा अवश्य होता है.
किसी को अपना कर लो या किसी के हो के रहो. संसार में जीने का सर्वोत्तम रास्ता है प्रेम और बंधुत्व का.
किसी को तवे में दिखाई देता है, किसी को आरसी में. अपनी अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही कार्य करना चाहिए. अगर हमारे पास आरसी नहीं है तो हम तवे में मुँह देख कर काम चलाएं.
किसी को बैंगन बाबरे, किसी को पथ्य समान. एक ही चीज़ किसी के लिए हानिकारक को सकती है और किसी के लिए लाभकारी. इंग्लिश में कहावत है – One man’s meat is another man’s poison.
किस्मत और औरतें, बेबकूफों पर मेहरबान. जो लोग जीवन में असफल रहते हैं वे आम तौर पर यह कहते पाए जाते हैं कि भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया या भाग्य केवल मूर्खों का साथ देता है. इसी प्रकार जो लोग स्त्रियों को प्रभावित नहीं कर पाते वे भी ऐसा ही बोलते हैं.
किस्मत किसी को तख़्त देती है किसी को तलवार. भाग्य से ही कोई सिंहासन पर बैठ जाता है और कोई तलवार के घाट उतार दिया जाता है. इस कहावत को इस प्रकार भी कहा गया है – तख़्त या तख्ता अर्थात भाग्य से ही सिंहासन और भाग्य से ही फांसी का तख्ता.
किस्मत दे यारी, तो क्यों हो ख्वारी. भाग्य से अच्छे मित्र मिल जाएँ तो बर्बादी क्यों हो.
किस्मत न दे यारी, तो क्यों करे फौजदारी. यदि कोई व्यक्ति आपसे दोस्ती करना नहीं कहता (भाग्य में उससे दोस्ती नहीं लिखी है) तो उससे मारपीट तो मत करो. एकतरफा प्रेम करने वालों के लिए सीख.
किस्मत बहादुरों का साथ देती है. जो हिम्मत कर के आगे बढ़ता है, भाग्य भी उसी का साथ देता है.
किस्सों में साग जल गया. कोई काम करने के बीच में कहानी किस्से शुरू हो जाएं तो काम बिगड़ जाता है.
किहूँ भांत सोहत नहीं, केहरि ससक विरोध. सोहत नहीं – शोभा नहीं देता, केहरि – सिंह, ससक – शशक (खरगोश). सिंह को खरगोश से लड़ना शोभा नहीं देता. दोहे की पहली पंक्ति-अपने ते जे छुद्र अति, तिन्ह पै करिउ न क्रोध.
कीचड़ का आदी सूअर सफाई देख कर नाक भौं चढ़ाता है. जिस आदमी को गंदगी में रहने की आदत हो उसे सफाई अच्छी नहीं लगती. जिस आदमी के संस्कार घटिया हों उसे न्याय और धर्म की बातें अच्छी नहीं लगतीं.
कीड़ी को कन भर, हाथी को मन भर. कीड़ी – चींटी. ईश्वर सभी को उन की आवश्यकता के अनुसार देता है.
कीड़ी को तिनका पहाड़. चींटी के लिए तिनका भी पहाड़ के सामान है. छोटे आदमी के लिए छोटी छोटी समस्याएँ भी बहुत बड़ी होती हैं.
कीड़ी चाली सासरे, नौ मन सुरमा डाल. नौ मन सुरमा आँखों में डाल कर चींटी ससुराल जा रही है. कोई लम्बी चौड़ी हाँक रहा हो तो उसका मजाक उड़ाने के लिए.
कीड़ी संचे तीतर खाय, पापी को धन पर ले जाय. चींटी जो इकठ्ठा करती है उसे तीतर खा जाता है. इसी प्रकार पापी का धन दूसरा ले जाता है. इस कहावत में एक बात गलत है. चींटी द्वारा मेहनत से इकट्ठे किए गए सामान की तुलना पापी के धन से की गई है.
कीर्ति के गढ़ कभी नहीं ढहते. ईंट पत्थर का बना किला समय के साथ ढह जाता है लेकिन सत्पुरुषों की कीर्ति अमर रहती है.
कुँआरे को भी ससुराल की याद आये. कोई व्यक्ति किसी ऐसी बात पर उदास हो रहा हो जिस से उसका कोई लेना देना न हो, तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
कुँए की छाँई कुअई में रहत. कुएँ की छाया कुएं में ही रहती है. बुद्धिमान लोग मन की बात मन में ही रखते हैं. पूरा दोहा इस प्रकार है – बात प्रेम की राखिये अपने ही मन माँहि, जैसे छाया कूप की बाहर निकसत नाँहि.
कुँए की मिट्टी कुँए में ही लगती है. कुआँ खोदने में जो मिट्टी निकलती है वह कुएँ की मुंडेर और चबूतरा बनाने में लग जाती है. व्यापार से व्यक्ति धन कमाता है लेकिन उस में से अधिकतर धन व्यापार में ही लग जाता है.
कुँए की मेंढकी क्या जाने समन्दर का फांट. संकुचित बुद्धि वाले लोग व्यापक सोच वाली बात नहीं समझ सकते.
कुँए में की मेंढकी करे सिन्धु की बात. जब कोई बहुत छोटी बुद्धि वाला आदमी बहुत बड़ी बड़ी बातें करे तो.
कुँए में पानी बहुतेरा, जो निकालो सो ही अपना. प्रकृति में संसाधनों की कमी नहीं है, उनका उपयोग करने वाला पुरुषार्थ चाहिए.
कुँए से कुआँ नहीं मिल सकता. दो बड़े व्यक्ति अपने अपने अहम के कारण एक दूसरे से न मिलते हों तो उन पर व्यंग्य.
कुंआरों का क्या अलग गांव बसता है. समाज में अलग अलग प्रकार के लोगों की बस्तियाँ अलग नहीं होतीं, सब मिल जुल कर एक साथ ही रहते हैं.
कुंजड़न अपने बेरों को खट्टा नहीं बतावे. अपने माल की बुराई कोई नहीं करता.
कुंजड़न की अगाड़ी और कसाई की पिछाड़ी. सब्जी वाली ताजी सब्जी आगे लगाती है इसलिए उससे आगे वाला माल लेना चाहिए. कसाई ताजा गोश्त पीछे लगाता है इसलिए उससे पीछे वाला माल लेना चाहिए.
कुंजड़े का गधा मरे और तेली सर मुंडाए. दूसरे के दुख में अनावश्यक दुखी होना.
कुंद हथियार और किया भतार किसी के काम नहीं आते. किया भतार – ऐसा पुरुष जिससे स्त्री का विधिवत विवाह न हुआ हो (केवल पति मान कर साथ रहती हो). जिस प्रकार बिना धार वाला हथियार किसी काम का नहीं होता, उसी प्रकार माना हुआ पति किसी काम का नहीं होता. लिव इन रिलेशन वालों के लिए सीख.
कुआँ – बावरी लाँघत फिरत. मूर्खता के काम करते घूम रहे हैं और मारे-मारे फिर रहे हैं.
कुआँ पनघट बैठ के, गोड़ लिए लटकाय, पीठ मलावें सौत से, मरने करें उपाय. मूर्खतापूर्ण कार्य करने वालों के लिए. कुएँ में पैर लटकाए बैठी हैं और सौत से पीठ मलवा रही हैं. सौत अगर मौका पा कर जरा सा धक्का दे देगी तो सीधे कुएँ में जा पड़ेंगी.
कुआँ बेचा है कुएं का पानी नहीं बेचा. माल बेचने के बाद बेइमानी करना. सन्दर्भ कथा – गाँव के एक ठाकुर ने किसी बनिए को अपना कुआँ बेचा. जब बनिया कुँए से पानी निकालने पहुँचा तो ठाकुर ने कहा कि मैंने तुम्हें कुआँ बेचा है कुएं का पानी नहीं बेचा है, पानी के लिए अलग से पैसा दो. विवाद बढ़ा तो बात पंचायत में पहुँची. सरपंच ने जब सारी कहानी सुनी तो उस की समझ में सारा माजरा आ गया. उसने बेईमान ठाकुर को सबक सिखाने के लिए फैसला दिया कि कुआँ बनिए का है और पानी ठाकुर का. ठाकुर को अपना पानी कुँए में रखने के लिए सौ रुपये रोज किराया बनिए को देना होगा
कुआं खुदाया बावड़ी, छोड़ गया परदेस. ऐसे व्यक्ति के लिए जिसने ऐश्वर्य के साधन जुटाए लेकिन छोड़ कर चला गया या जाना पड़ा.
कुआं तेरी माँ मरी, कुआं तेरी माँ मरी. कुएं में मुंह डाल कर जो बोलोगे वही आवाज प्रतिध्वनि (echo) द्वारा कुएं में से आएगी. कुआँ कुछ सोच समझ कर जवाब नहीं देता है. जो लोग बिना समझे दूसरों की बात दोहराते हैं उन पर व्यंग्य (जैसे आजकल सोशल मीडिया पर बिना सोचे समझे मैसेज फॉरवर्ड करने वाले लोग).
कुआंरा सब से आला, जिसके लड़का न साला (कुआंरा सब से आला है, न जोरू है न साला है). कुआंरेपन का अपना अलग ही आनंद है.
कुआंरी को सदा बसंत. वैश्या के लिए व्यंग्य.
कुआंरी खाय रोटियाँ, ब्याही खाय बोटियाँ. लड़की की शादी के बाद माँ बाप की मुश्किलें और बढ़ जाती हैं. बेटी घर में हो तब तक तो केवल रोटी का ही खर्च होता है, उसकी शादी के बाद ससुराल वालों का पेट भरते भरते वे बर्बाद हो जाते हैं. (दुर्भाग्य से हिन्दुस्तान में आज भी ऐसे बहुत से घर हैं).
कुएँ में गिर कर कोई भी सूखा नहीं निकलता. संसार में आ कर सभी मोह माया में लिप्त हो ही जाते हैं.
कुएँ में नथ गिर गई, मैं जानूँ ननद को दे दी (खोई नथ ननद के खाते). खोई हुई चीज को दान किया हुआ मान लेना. इससे मन को संतोष मिलता है.
कुएं के मेंढक को कुआं जहान. संकुचित सोच वाला अपने संकुचित दायरे में ही खुश रहता है.
कुकुर की चले तौ कठौतिऐ खाय डारै. कठौता- लकड़ी का परातनुमा बर्तन. कुत्ते का बस चले तो वह कठौती में रखी खाने पीने की वस्तुएं तो क्या कठौती को ही खा ले. खाने के लालची व्यक्तियों पर व्यंग्य.
कुकृत्य से नाम या सुकृत्य से नाम. अच्छा काम करोगे तो भी नाम होगा और बुरा काम करोगे तो भी. वह अलग बात है कि बुरे काम से जो नाम होता है उसे बदनाम कहा जाता है.
कुच बिन कामिनी, मुच्छ बिन जवान, ये तीनों फीके लगें, बिना सुपारी पान. स्त्री बिना स्तन के, युवा बिना मूँछ के और पान बिना सुपारी के आकर्षक नहीं लगते. अपनी मूंछों पर गर्व करने वाले लोगों का कथन.
कुचाल संग फिरना, आप मूत में गिरना. गलत आचरण वाले के साथ रहने वाला अपनी दुर्गति स्वयं करता है.
कुचाल संग हांसी, जीव जाल की फांसी. गलत चाल चलन वाली स्त्री के साथ हंसी मज़ाक करना अपने लिए मुसीबत बन सकता है. इसी प्रकार गृहस्थ स्त्री को भी दुष्चरित्र आदमी से हंसी मजाक नहीं करना चाहिए.
कुछ कमान झुके कुछ गोशा. गोशा – कमान का सिरा जिसमें तांत अटकाई जाती है. कोई कार्य करना हो या कोई मसला हल करना हो तो थोड़ी थोड़ी सब पक्षों को गुंजाइश करनी चाहिए.
कुछ करनी, कुछ करमगति. कुछ अपना प्रयास और कुछ भाग्य, दोनों से मिला कर प्रारब्ध बनता है.
कुछ कर्मों से हीन, कुछ लच्छनों से हीन. जिस आदमी का भाग्य भी साथ न दे रहा हो और जो मेहनत भी न करना चाहता हो.
कुछ काम करोगे ना जी, जलपान करोगे हाँ जी. काम करने के नाम बहाने, खाने पीने को मुस्तैद.
कुछ खाना और कुछ बाँध कर ले जाना. ऐसे लोगों के लिए जो खाते हैं और घर के लिए भी ले जाते हैं.
कुछ खो कर ही सीखते हैं. मनुष्य धोखा खा कर ही सीखता है.
कुछ तुम समझे, कुछ हम समझे. दो चालाक लोग एक दूसरे की चालाकी के बारे में समझ जाएं तो.
कुछ तुम समझो, कुछ हम समझें. 1. किसी के साथ कोई सौदा या साझा करने से पहले दोनों ही लोगों को एक दूसरे को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए. 2. दो लोगों में अनबन हो तो दोनों को ही एक दूसरे की बात समझ कर कुछ झुकना चाहिए.
कुछ तो खरबूजा मीठा, कुछ ऊपर से कंद. एक साथ दो दो अच्छाइयाँ.
कुछ तो खलल है जिस से यह खलल है. कहीं भी कोई खराबी पैदा हो रही है तो उस के पीछे कोई न कोई कारण जरूर होता है.
कुछ तो गेहूँ गीली, ऊपर से जिंदरी ढीली. गेहूँ गीला है इसलिए पिसने में दिक्कत है ऊपर से चक्की की कीली (जिंदरी) ढीली है इसलिए और नहीं पिस पा रहा है. परेशानी में परेशानी.
कुछ तो बावली, कुछ भूतों खदेड़ी. एक तो बावली ऊपर से भूत बाधा से ग्रस्त. जैसे कोई व्यक्ति डिप्रेशन जैसे मानसिक रोग से ग्रस्त हो और ऊपर से व्यापार में घाटे का तनाव हो जाए.
कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना. आप कोई भी काम भी करिए, दुनिया के लोग उसमें कमियाँ जरूर निकालते हैं. उन के कहने में आ कर अपना काम नहीं बिगाड़ना चाहिए. सन्दर्भ कथा – एक बार एक बाप-बेटा एक गधे को लेकर जा रहे थे. उन्हें इस तरह खाली गधे को ले जाते देख रस्ते में कुछ लोग बोले, देखो, कैसे मूर्ख हैं. गधे को खाली लिए जा रहे हैं और खुद पैदल चल रहे हैं. यह सुनकर पिता बेटे से बोला कि तुम गधे पर बैठ जाओ. कुछ दूर बढ़े तो लोगों ने कहा, कैसा स्वार्थी और नाकारा बेटा है. बूढ़ा बाप बेचारा पैदल चल रहा है और ये खुद गधे पर सवार है. यह सुनकर बेटा उतर गया और पिता से बोला कि आप बैठ जाइए.
वो फिर कुछ दूर आगे बढ़े तो लोगों को बोलते सुना, कैसा जालिम बाप है. खुद गधे पर सवार है और बेटा बेचारा पैदल चल रहा है. यह सुनकर इस बार दोनों एक साथ गधे पर बैठ गए. अब लोगों ने ताने दिए, कितने निष्ठुर हैं, दोनों हट्टे-कट्टे एक साथ गधे पर सवार हैं. बेचारे, गधे की तो जान ही निकली जा रही है. ये तो इस लायक हैं कि गधे को भी लाद सकते हैं. अब तो दोनों बड़े परेशान हुए. बहुत सोच कर उन्होंने लोगों को खुश करने की खातिर गधे को एक लाठी से बाँध कर उल्टा लटका लिया और कन्धों पर लाद कर चलने लगे. आगे एक नदी का पुल आया. अचानक गधा जोर से मचला और उन दोनों की पकड़ से छूट कर नदी में जा गिरा
कुछ तोर कुछ मोर कुछ खा गए चोर. सरकारी दफ्तरों में रिश्वत का पैसा इस तरह बंटता है – कुछ अफसर को, कुछ मातहतों को और कुछ बिचौलियों को.
कुछ दिए कुछ दिलाए, कुछ का देना ही क्या है. उधार लेकर न देने वालों का कथन.
कुछ पाने की इच्छा हो तो पहले उसके लायक बनो. आदमी बहुत कुछ पाने की इच्छा करता है पर पहले उस वस्तु का उपयोग करने लायक बनना आवश्यक है. इंग्लिश में कहावत है – First deserve then desire.
कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है. जीवन में कुछ प्राप्त करने के लिए कुछ नुकसान भी उठाना पड़ सकता है. इंग्लिश में कहावत है – You can’t make an omlette without breaking eggs.
कुछ लेना न देना मगन रहना. संसार में जो लोग इस नीति पर चलते हैं वे ही सबसे प्रसन्न रहते हैं.
कुछ लोग पैसे के मालिक होते हैं, कुछ गुलाम. कुछ लोग पैसा कमाते हैं और उसे ठीक से उपयोग भी करते हैं, वे पैसे के मालिक कहलाते हैं, जबकि कुछ लोग केवल पैसे की रखवाली करते रहते हैं. कहावत के द्वारा यह बताने का प्रयास किया गया है कि मनुष्य को पैसे का गुलाम नहीं बनना चाहिए.
कुछ लोहा खोटा, कुछ लोहार खोटा. सामान भी घटिया हो और बनाने वाला भी अयोग्य हो तो माल कैसे बनेगा.
कुछ स्वार्थ कुछ परमार्थ. अपना भी ध्यान रखो और समाज के लिए भी करो. रूपान्तर – घर में दिया जला कर मस्जिद में दिया जलाना. इस से मिलती जुलती एक कहावत इंग्लिश में भी है – Charity begins at home.
कुजात मनाया सर पर चढ़े, सुजात मनाया पांवों पड़े (सज्जन मनाए पैरों पड़े, दुर्जन मनाए सर चढ़े). नीच व्यक्ति की मनौवल करोगे तो और ऐंठ दिखाता है, सज्जन व्यक्ति को मनाओगे तो वह विनम्रता से झुक जाता है.
कुटनी से तो राम बचावे, प्यार दिखा कर पत उतरावे. दुश्चरित्र स्त्री से बच कर रहना चाहिए, वह प्यार दिखा कर आपकी इज्ज़त उतार सकती है.
कुठले में दाना, मूरख बौराना. कुठला – अनाज रखने का बर्तन, बौराना – घमंड में पागल. ओछा व्यक्ति थोड़ी सी धन दौलत से ही बौरा जाता है.
कुठाँव का घाव, ससुर ओझा (कुठौर फोड़ा, ससुर वैद्य). किसी स्त्री के निजी अंग में घाव या फोड़ा हो और उसका ससुर ही वैद्य हो तो कितनी कठिन परिस्थिति होगी.
कुतिया के छिनाले में फंसे हैं. छिनाला – दुश्चरित्रता. किसी दुश्चरित्र स्त्री के दुष्चक्र में फंसे व्यक्ति के लिए.
कुतिया के पिल्ले, सब एक जैसे. नीच माता पिता की संतानें निम्न प्रवृत्ति की ही होती हैं.
कुतिया क्यूँ भूंसे, टुकड़ों की खातिर. कोई हाकिम ज्यादा गुर्राता है तो लोग कहते हैं कि टुकड़ा डाल दो.
कुतिया गई और पट्टा भी ले गई. बड़े नुकसान के साथ एक छोटा नुकसान भी.
कुतिया गई काशी (कुतिया चली प्रयाग नहाए). कोई चरित्रहीन या पापी आदमी पुण्यात्मा बनने का ढोंग करे तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
कुतिया बैठी नांद में, न खाए न खाने दे. भैंस की नांद में कुतिया आ कर बैठ गई है, न तो खुद भुस खाएगी न किसी को खाने देगी. कोई ईमानदार हाकिम जो खुद भी घूस न खाए और किसी को खाने भी न दे उस से परेशान अन्य विभागीय लोगों का कथन.
कुतिया मिल गई चोर से तो पहरा किसका होए (चोरों कुतिया मिल गई, पहरा दे अब कौन). जिस को आप ने पहरेदारी के लिए पाला है वही चोर से मिल जाए तो पहरा कौन देगा. जिस को गद्दी पर बिठाया वही नेता अगर दुश्मन से मिल जाए तो देश की रक्षा कैसे होगी.
कुत्ता अपनी पूँछ को टेढ़ी कब कहता है (कुकुर सराहे अपनी पूँछ). अपनी वस्तु को घटिया कोई नहीं बताता.
कुत्ता अपनी ही दुम के चक्कर लगाता फिरे. निकृष्ट प्रवृत्ति के लोग केवल अपने स्वार्थ के विषय में सोचते हैं.
कुत्ता अपने मालिक पर नहीं भौंकता. कोई व्यक्ति कितना भी निकृष्ट क्यों न हो, उस को नुकसान नहीं पहुँचाता या बुरा भला नहीं कहता जिससे उसे लाभ होता हो.
कुत्ता कपास का क्या करे. कपास कितनी भी उपयोगी वस्तु क्यों न हो, कुत्ते के किसी काम की नहीं है. कोई मूर्ख या ओछा व्यक्ति किसी बहुमूल्य वस्तु का उपहास कर रहा हो तो.
कुत्ता काटे अनजान के और बनिया काटे पहचान के. कुत्ता अपरिचित को काटता है और बनिया पहचान वाले की जेब काटता है.
कुत्ता कुत्ता भूंसे, राजा राजा चुप. यह एक प्रकार से बच्चों की कहावत है. कुछ बच्चे मिलकर किसी एक को चिढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. वह यह कहावत कह कर सबको चुप कर देता है.
कुत्ता क्या कभी आग से जले. छोटी मोटी आपदाएँ ओछे व्यक्तियों को नुकसान नहीं पहुँचा सकतीं.
कुत्ता घसीटी में पड़े. ऐसे काम में पड़ना जिसमें व्यर्थ की खींचातानी सहनी पड़े.
कुत्ता घास खाय तो सभी न पाल लें. कहावत उस समय की है जब घास बहुत सस्ती मिलती थी और अक्सर लोग मुफ्त में भी खोद लाते थे (अब तो घास भी बहुत महँगी है). कुत्ते को दूध, रोटी, अंडा, मांस वगैरा खिलाना पड़ता है इसलिए उसे कुछ ही लोग पाल सकते हैं. अगर कुत्ता घास खाता होता तो सब पाल लेते.
कुत्ता चौक चढ़ाए, चपनी चाटन जाए. (कुत्ता चौक चढ़ाइए चाकी चाटन जाए). चौक चढ़ाना – विवाह के समय वस्त्राभूषण पहनाने के लिए कन्या को मंडप के नीचे बिठाना. कुत्ते का कितना भी लाड़ प्यार करो, वह मौका देखते ही थाली चाट लेता है. नीच व्यक्ति को कितना भी सम्मान दो या प्रेम करो वह नीचता से बाज नहीं आता.
कुत्ता टेढ़ी पूंछरी, कभी न सीधी होय. कुत्ते की टेढ़ी पूंछ बारह साल पाइप के अन्दर रखी फिर भी टेढ़ी निकली. कोई ढीठ आदमी लगातार दंड देने से भी ठीक न हो रहा हो तो.
कुत्ता देखे आइना, भूंक भूंक पगलाय (कुत्ते ने आईना देखा, भौंक भौंक के मर गया). कुत्ता दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब देख कर उसे दूसरा कुत्ता समझ कर खूब भौंकता है. मूर्ख व्यक्तियों का मजाक उड़ाने के लिए.
कुत्ता न देख, कुत्ते के मालिक को देख. कुत्ते की अहमियत कुत्ते के मालिक के अनुसार आंकी जाती है.
कुत्ता न देखेगा न भौंकेगा. कहावत में कानून की नज़र बचा कर चुपचाप अपराध करने की सलाह दी गई है.
कुत्ता पाए तो सवा मन खाए, नहीं तो दिया ही चाट कर रह जाए. कुत्ते को मिल जाए तो ढेर सारा खा लेता है और न मिले तो बेचारा दिये में लगा तेल चाट कर ही रह जाता है. गरीब बेसहारा लोग ऐसे ही जीवन काटते हैं.
कुत्ता पाले और पहरा दे. पहरा देने को कुत्ता पाला और खुद पहरा दे रहे हैं. मूर्ख लोगों के लिए. इस आशय की इंग्लिश में कहावत है – Do not keep a dog and bark yourself.
कुत्ता पाले वह कुत्ता, कुत्ता मारे वो कुत्ता, बहन के घर भाई कुत्ता, ससुरे के घर जमाई कुत्ता, सब कुत्तों का वह सरदार, जो रहे बेटी के द्वार. पहले जमाने में कुत्ता पालने को अति निकृष्ट कार्य माना जाता था, इसलिए कुत्ता पालने वाले को कुत्ता कहा गया है.(कुत्ता प्रेमियों से क्षमा याचना सहित). कुत्ते जैसे निरीह पशु को मारना भी निकृष्ट काम माना गया है. शादी शुदा बहन के घर यदि भाई रहे और दामाद ससुराल में रहे तो उन का सम्मान नहीं होता इस लिए उन्हें निकृष्ट बताया गया है. इन सबसे अधिक घटिया आदमी वह है जो बेटी के घर में रहे.
कुत्ता भी दो घर छोड़ के मूतता है. पालतू कुत्ता अपने घर के आगे कभी नहीं मूतता. जो अपने ही लोगों को धोखा दे या अपने ही इलाके में गंदगी फैला रहा हो उसको उलाहना देने के लिए.
कुत्ता भी बैठता है तो दुम हिला कर बैठता है. कुत्ता बैठने के पहले पूंछ हिला कर जमीन की मिट्टी को झाड़ कर साफ़ करता है. गंदे और आलसी लोगों को उलाहना देने के लिए.
कुत्ता भौंक भौंक कर मरे, मालिक को परवाह ही नहीं. निष्ठुर लोगों को सेवकों के कष्टों की चिंता नहीं होती.
कुत्ता भौंके, काफ़िला सिधारे. काफिला निकलता है तो कुत्ते भौंकते हैं, पर काफिला अपने रास्ते चलता जाता है. सामाजिक कार्य करने वाले संगठन मूर्ख निंदकों की चिंता नहीं करते.
कुत्ता मरे अपनी पीर, मियाँ मांगे शिकार. बहुत से लोग शिकार के लिए कुत्ता पालते हैं. कहावत में कहा गया है कि कुत्ता तो दर्द से मर रहा है और मियाँ को सिर्फ शिकार से मतलब है. नौकरों की तकलीफ न देख कर केवल अपना स्वार्थ देखना.
कुत्ता मरे तो चीलर भी मरें. किसी की मृत्यु होने पर उस पर आश्रित लोग बेसहारा हो जाते हैं. भले ही वे आश्रित मरने वाले का खून चूसने वाले ही क्यों न हों. रूपान्तर – ऊँट मरे तो चींचड़ा भी मरे.
कुत्ता मरे पर किल्ली रहें. ऊपर वाली कहावत से उलट. बेचारा कुत्ता मर गया तो खून चूसने वाली किल्लियाँ दूसरे शिकार की तलाश में घूम रही हैं.
कुत्ता मुँह लगाने से सर चढ़े. नीच व्यक्ति को मुँह लगाने से वह सिर पर चढ़ता है.
कुत्ता मूते जहाँ जहाँ, सौ सौ गाली पाए. कुत्ता कभी जमीन पर नहीं मूतता, किसी वस्तु पर ही मूतता है और गाली खाता है. फिर भी अपनी आदत नहीं छोड़ता. गालियाँ खा कर भी गलत आदत न छोड़ने वालों के लिए.
कुत्ता हो कर भी न भौंके. कुत्ता यदि भौंकेगा ही नहीं तो किस काम का. कोई कामचोर कर्मचारी अपने लिए नियत किए गए काम को करने में हीला हवाला करे तो.
कुत्ते और गोती गाँव गाँव में मिलें. कुत्ते और अपने गोत्र वाले हर गाँव में मिल जाते हैं.
कुत्ते का जोर गली में. कुत्ते का अधिकार क्षेत्र अपनी गली तक ही सीमित होता है. बदमाश और रंगबाज अपने अपने इलाके में ही प्रभावी होते हैं.
कुत्ते की किल्ली काढ़ लीं, कहे हमारे मोती काढ़ लिए. कुत्ते के शरीर में चिपकी किल्लियों को निकाल दिया तो कहने लगा कि मेरे शरीर में मोती लगे थे उन्हें निकाल लिया. मूर्ख व्यक्ति का भला करो तो उल्टा समझता है.
कुत्ते की छूत, बिल्ली को नहीं लगती. कुत्ते को यदि कोई छूत की बीमारी है तो वह उस से बिल्ली में नहीं फैलती. गलत काम करने वालों के अलग अलग ढंग होते हैं, वे एक दूसरे से नहीं सीखते.
कुत्ते की पूँछ में कितना भी घी लगाइए, वह टेड़ी की टेड़ी ही रहेगी. नीच व्यक्ति की कितनी भी सेवा करो या मक्खन लगाओ, वह खुश नहीं होता.
कुत्ते की पूंछ पे गठरी बंधी है. जिस को धन को उपयोग करना नहीं आता उस के पास धन हो तो क्या लाभ. कंजूस आदमी पर व्यंग्य. कोई नीच प्रकृति का व्यक्ति धनवान बन जाए तब भी.
कुत्ते की मार अढ़ाई घड़ी. कुत्ता मार खाने के बाद बहुत जल्दी भूल जाता है, और फिर ड्योढ़ी पर आ कर बैठ जाता है. जो व्यक्ति अपमान के बाद भी किसी के पीछे लगा रहे उस पर व्यंग्य.
कुत्ते की मौत आए तो मस्जिद में मूते. कुत्ता यदि मस्जिद में पेशाब करेगा तो धर्मांध लोग उसे मार डालेंगे. कभी कभी छोटी सी गलती भी मृत्यु का कारण बन सकती है.
कुत्ते की मौत आती है तब खोपड़ी में कीड़े पड़ते हैं. शरीर में और जगह कीड़े पड़ें तो कुत्ता उन्हें चाट चाट कर साफ़ कर देता है. सर में कीड़े पड़ें तो नहीं चाट पाता है. कहावत का अर्थ इस प्रकार कर सकते हैं कि मूर्ख व्यक्ति का विनाश नजदीक आता है तो उस के दिमाग में तरह तरह के कीड़े कुलबुलाने लगते हैं.
कुत्ते की सी झपकी. (कुत्ते की नींद) अत्यधिक चौकन्नी नींद.
कुत्ते के पाँव जा, बिल्ली के पाँव आ. काम को जल्दी से जल्दी करने के लिए निर्देश.
कुत्ते को आटा दोगे तो क्या रोटी पकाएगा. जिस वस्तु की किसी व्यक्ति के लिए कोई उपयोगिता नहीं है उसे देने से क्या लाभ.
कुत्ते को खम्बा ही सूझे. (कुत्ता खम्बे पर पेशाब करता है) ओछे व्यक्ति को अपने मतलब की चीज़ ही दिखती है.
कुत्ते को घी नहीं पचता (कुत्तों को घी हजम नहीं होता). नीच आदमी को उत्तम विचार समझ में नहीं आते.
कुत्ते को टुकड़ा डालते तो क्यूँ भूँकता. नीच हाकिम को रिश्वत दे देते तो वह तुम पर नहीं गुर्राता.
कुत्ते को मस्जिद से क्या काम. मस्जिद में कुत्ते को कुछ नहीं मिलेगा, बल्कि मार खाने का डर है. ऐसी जगह जाने से क्या लाभ. मंदिर में जाएगा तो कुछ खाने को भी मिलेगा और सुरक्षित भी रहेगा.
कुत्ते को हड्डी का ही चाव (कुत्ते को हड्डी ही अच्छी लगती है). नीच व्यक्ति को घटिया बातें ही अच्छी लगती हैं. घूसखोर को केवल घूस ही चाहिए होती है.
कुत्ते डाली इलायची, सूँघ सूँघ मर जाए. (बुन्देलखंडी कहावत) कुत्ते के सामने इलायची डालोगे तो खाएगा नहीं, सूँघता ही रहेगा. जो पारखी न हो उसे उत्तम वस्तु नहीं देनी चाहिए.
कुत्ते तेरा लिहाज नहीं तेरे मालिक का लिहाज है (कुत्ते ये तेरा मुँह नहीं तेरे मालिक का मुँह है). कुत्ता अपने मालिक के बल पर ही भौंकता है. कुत्ते की अहमियत उस के मालिक के अनुसार ही होती है.
कुत्ते भूंकें तो चन्द्रमा को क्या. ओछे लोग कितनी भी आलोचना करें, बड़े लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.
कुत्ते वाली योनि पूरी कर रहा है. सनातन मान्यता के अनुसार मनुष्य को चौरासी लाख योनियों में भटक कर फिर मनुष्य का जन्म मिलता है. कोई व्यक्ति बहुत नीचता दिखा रहा हो तो लोग घृणा वश ऐसा बोलते हैं.
कुत्तों का एका हँड़िया पकने तक. जब तक गोश्त पकता है तब तक कुत्ते बड़े अनुशासित रह कर इंतज़ार करते हैं. परोसने की बारी आने पर उनमें झगड़ा शुरू होता है. दलों के गठबंधन में भी यही बात देखने को मिलती है.
कुत्तों की टोली में आटे का दीपक कब तक टिके. कुत्ते मौका पा कर उसे खा ही जाएंगे.
कुत्तों के गाँव नहीं बसते. आपस में लड़ने झगड़ने के कारण. जो लोग आपस में बहुत लड़ते हों उन को उलाहना देने के लिए बड़े लोग ऐसा बोलते हैं.
कुत्तों के भौंकने से बादल नहीं बिखरते. क्षुद्र लोगों के शोर मचाने से कोई बड़ा नुकसान नहीं हो सकता.
कुत्तों को दूँ, पर तुझे न दूँ. किसी से बहुत घृणा करना.
कुत्तों में एका हो गंगा जी न नहा आवें. किसी भी समुदाय में एकता हो तो वे बड़े से बड़ा काम कर सकते हैं.
कुनबा खीर खाए और पुरखे राजी हों. श्राद्ध पक्ष में लोग पितरों को खुश करने की आड़ में खुद भी माल खाते हैं उस पर व्यंग्य.
कुबड़े वाली लात (कूबड़े लात, बन गई बात). किसी व्यक्ति ने गुस्से में आ कर कुबड़े की पीठ पर जोर से लात मारी तो उसकी कूबड़ ठीक हो गई. कोई किसी को नुकसान पहुँचाना चाहे और नुकसान के स्थान पर उस का काम बन जाय तब.
कुमानुस कहें काको, ससुराल में बसे बाको. आदिकाल से ही ससुराल में बसने वाले पुरुष को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता. देखिए सन्दर्भ कथा – एक बार भगवान राम अपनी ससुराल जनकपुरी गए. काफी दिन बीत गए पर सास जी स्नेहवश उन्हें जाने नहीं दे रही थीं. इधर दशरथ जी को भी प्रिय पुत्र और पुत्रवधू का मुँह देखे बिना बेचैनी होने लगी. सीधे सीधे बुलावा भेजना मर्यादा के विरुद्ध था. तो जनक जी के पास एक चिट्ठी भेजी कि कृपया एक कुमानुष हमारे यहाँ भेज दीजिए. जनकजी के दरबार में तरह तरह के डोम, बहेलिए, भिश्ती, जुलाहे, सफाईकर्मी, मल्लाह इत्यादि बुलाए गए.
उन सब ने कहा कि राजन, हम तो समाज के लिए बहुत उपयोगी मनुष्य हैं, हम कुमानुष कैसे हो सकते हैं. हार कर जनक जी ने उन लोगों से पूछा, तो कुमानुष कौन हुआ. तब उन में से एक ने बताया, कुमानुस कहें काको, ससुरार में बसे ताको. राजा जनक फ़ौरन समझ गए कि राम का बुलावा है और उन्हों ने प्रेमपूर्वक राम को विदा कर दिया
कुम्हार अपना ही घड़ा सराहता है. सब को अपना किया हुआ काम ही अच्छा लगता है.
कुम्हार कबहुँ साजे बासन में नहिं खात. साजे – साबुत, वासन – बर्तन. कुम्हार कभी साबुत बर्तन में खाना नहीं खाता. टूटे बर्तन में ही खाता है. अच्छे और साबित बर्त्तन वह बेचने के लिए रखता है.
कुम्हार का गधा, जिन के चूतड़ मिटटी देखे, उन्हीं के पीछे दौड़े. कुम्हार कच्ची जमीन पर बैठ कर काम करता है इसलिए उसके नितम्बों पर मिट्टी लग जाती है. कुम्हार के गधे ने किसी भी आदमी की धोती पे मिट्टी लगी देखी उसी को कुम्हार समझ कर उसके पीछे चल दिया. कहावत उन भोले भाले लोगों के लिए कही जा सकती है जो गेरुए वस्त्र पहनने वाले हर इंसान को महात्मा समझ कर उसके पीछे चल देते हैं.
कुम्हार की गधी, घर घर लदी (भाड़े की गधी, घर घर लदी). गरीब और लाचार आदमी पर सब काम लादते हैं.
कुम्हार के घर चुक्के का दुख (कुम्हार के घर वासन का अकाल). जिस चीज़ की बहुतायत जहाँ होनी चाहिए उसी की कमी हो तो. चुक्का – कुल्हड़. वासन – बर्तन.
कुम्हार ठीकरे में ही रांधे. (ठीकरा – बरतन का टुकड़ा). कुम्हार के घर बहुत से बर्तन होते हैं पर वह मिट्टी आदि सानने का काम टूटे हुए बर्तन में ही करता है.
कुम्हार पे बस न चला, गधी के कान उमेठ दिए. सबल आदमी पर बस न चले तो निर्बल पर गुस्सा उतारना.
कुयश और मौत बराबर. इज्जतदार लोगों के लिए अपयश मृत्यु के समान है.
कुरमी कुत्ता हाथी, तीनो जात के घाती. कुर्मी, कुत्ता और हाथी अपनी जाति वालों को ही हानि पहुंचाते हैं.
कुल और कपड़ा रखने से. कुल और कपड़े की अगर देखभाल नहीं होगी तो वे नष्ट हो जाएँगे.
कुलटा के यहाँ छिछोरे पहुंचेंगे ही. गलत काम करने वाले के यहाँ उसी प्रकार के लोगों का जमावड़ा होता है.
कुलिया में इतना तो हँड़िया में कितना. किसी व्यक्ति की सम्पन्नता को लक्ष्य कर के ऐसा कहा जाता है.
कुलिया में गुड़ नहीं फूटता. कुलिया (छोटा कुल्हड़) में रख कर गुड़ को तोड़ने की कोशिश करोगे तो कुलिया ही टूट जाएगी. अपर्याप्त साधनों से बड़े काम नहीं किए जा सकते.
कुलेल में गुलेल. पक्षियों का जोड़ा पेड़ की डाल पर बैठा किलोल कर रहा है कि किसी ने गुलेल चला दी तो रंग में भंग हो गया. खुशनुमा वातावरण में कोई विघ्न दाल दे तो. कुछ लोग कुलेल के स्थान पर कुरियाल बोलते हैं.
कुल्हड़ भरा और सीधी मायके. गरीब घर की लड़की यदि धनवान ससुराल में पहुँच जाए तो अपने मायके वालों के लिए बहुत कुछ करना चाहती है.
कुसमय करो शत्रु से हेत. जब समय खराब हो तो शत्रु से भी मिला कर चलना चाहिए. हेत – मित्रता.
कूटत कूटत हमार जान जाए, खावत खावत तोहार. गरीब आदमी काम की अधिकता व भरपेट खाना न मिलने से मरता है और अमीर भोजन की अधिकता से (मोटापे और बीमारियों से).
कूटनवारी कूटी गई, सास पतोहू एक भई. कूटनवारी – अनाज कूटने वाली. सास बहू की लड़ाई में अनाज कूटने वाली बीच में बोल दी. सास बहू फिर एक हो गईं और कूटने वाली पिट गई.
कूटें न पीसें न भरें पानी, बैठे खाएं मथुरा की रानी. मथुरा के पंडों के घर बैठे बिठाए इतनी दान दक्षिणा आ जाती है कि उनकी महिलाओं को कोई काम नहीं करना पड़ता.
कूड़े घर की गाय, फिर कूड़े घर में. जिसको गंदगी प्रिय है वह गंदगी में रहना ही पसंद करता है.
कूद कूद मछली बगुले को खाए. असंभव बात. कोरी गप्प.
कूदने से पहले चलना सीखो. अर्थ स्पष्ट है.
कूदा पेड़ खजूर से राम करे सो होय. कोई व्यक्ति यदि कोई दुस्साहसिक फैसला ले तो.
कूदे फांदे तोड़े तान, ताका दुनिया राखे मान. 1. जो दिखावा करने की कला में माहिर हो दुनिया उसी की इज्ज़त करती है. 2. नृत्य की वास्तविक कलाओं के मुकाबले आजकल भौंडे नाच को ज्यादा लोकप्रियता मिलती है.
कूवत थोड़ी मंज़िल भारी. ताकत थोड़ी बची है जबकि मंजिल अभी दूर है. सामर्थ्य कम है और काम बड़ा है.
कृपण के धन और स्त्री के मन को कोई न जाने. कंजूस के पास कितना धन है यह कोई नहीं जान सकता और स्त्री के मन में क्या है यह भी कोई नहीं जान सकता.
कृपण छिपावत दाम, चतुर छिपावत नाम. जिस प्रकार कंजूस आदमी अपने धन को औरों से छिपाता है, बुद्धिमान व सज्जन व्यक्ति किसी अच्छे काम में अपना नाम छिपाता है (उजागर करना नहीं चाहता).
कृष्ण चले बैकुंठ को राधा पकड़ी बांह, यहाँ तम्बाखू खाय लो वहाँ तम्बाखू नांह. तम्बाखू खाने वाले अपने आप को धोखा देने के लिए तरह तरह की बातें बनाते हैं. (भांग और शराब पीने वाले भी).
के पालत माय, के पालत गाय. बच्चा माँ का दूध पी कर पलता है या गाय का दूध पी कर. इसी लिए हमारे देश में गाय को गोमाता कह कर इतना महत्व दिया गया है.
केका केका लेवें नांव, कमली ओढ़े सारा गाँव. अलग से किस किस का नाम लें. यहाँ तो सभी गलत हैं.
केतनो अहिर पिंगल पढ़े, बात जंगल ही की बोले. (भोजपुरी कहावत) पिंगल – छंद शास्त्र. अहीर को कितनी भी उच्च शिक्षा दे दो वह जंगल की बात ही करेगा.
केतनौ भइया बैरी, तबहूं दाहिनी बाँह, केतनौ नीम कड़ुआ, तबहूँ सीतल छाँह. भाई कितना भी बैरी होगा, फिर भी वक्त पर दाहिने हाथ की तरह सहारा देगा. नीम कितना ही कड़वा होगा उसकी छाया एकदम ठंडी होगी.
केरा केकड़ा बिच्छू बाँस, इन चारों की जमले नाश. (भोजपुरी कहावत) जमला – संतान. केला, केकड़ा, बिच्छू और बांस, इन चारों की सन्तान ही इन का नाश कर देती हैं. देखिए परिशिष्ट.
केला काटने को ठीकरा ही काफी. केले जैसी नरम चीज को काटने के लिए टूटे घड़े का टुकड़ा ही काफी है. छोटे छोटे सरकारी मुलाजिम और छुटभैये बदमाश भी गरीब लोगों को खूब सताते हैं.
केवल मूर्ख और मृतक अपने विचार नहीं बदलते. मूर्ख लोग अपनी बात पर अड़े रहते हैं इस बात को अधिक जोर दे कर कहने के लिए इस प्रकार से कहा गया है.
केसन कहा बिगाड़िया, जो मूंडे सौ बार, मन को काहे न मूंडिए जामें विषै विकार. कबीरदास जी ने बाल मूंडने वाले सन्यासियों पर व्यंग्य किया है कि बालों ने क्या बिगाड़ा है जिन्हें बार बार मूंडते हो, मन को क्यों नहीं मूंडते जिसमें लोभ और मोह भरा हुआ है.
केसर की करिहे कहा कीमत, है न परख जहाँ हरदी की. जिन लोगों को हल्दी की परख तक न हो उनसे केसर की कीमत समझने की उम्मीद कैसे की जा सकती है.
केसव केसन अस करी, जो अरिहू न कराहिं, मधुर वचन मृग लोचनी, बाबा कहि कहि जाहिं. सन्दर्भ कथा – बालों ने वह किया जो शत्रु भी नहीं करेगा, मीठी बोली और हिरनी जैसी आँखों वाली बाबा कह कर जा रही हैं. केशव दास हिंदी के आरंभिक कवियों में से एक हैं. वे बहुत सौन्दर्य प्रेमी थे. उन के बाल जल्दी सफेद हो गये थे. एक बार कुछ स्त्रियों ने उनके बाल देख कर उन्हें बाबा कह कर सम्बोधित किया तो उन्होंने यह कविता कही
केहरि फंसा पींजरे में, क्या कर लेगा बल से. शेर यदि पिंजरे में फंस जाए तो अपनी ताकत से नहीं निकल सकता. जहाँ बुद्धि काम आती है वहाँ बल काम नहीं आता.
केहि की प्रभुता न घटी, पर घर गए रहीम. दूसरे के घर जा कर (विशेषकर कुछ मांगने के लिए) सभी का मान घट जाता है.
केहि न राजमद दीन्ह कलंकू. राजा होने पर किसे अहंकार नहीं होता, और अहंकार होने पर कलंक लगेगा ही.
केहू खाए खाए मुए और केहू बिना खाए मुए. (भोजपुरी कहावत) कोई ज्यादा खाने से मरे और कोई खाने के बिना मरे. कहीं पर किसी वस्तु की अधिकता और कहीं पर बहुत कमी. केहू – कोई, मुए – मरे.
केहू खाना खाय, केहू पैखाना जाय. केहू – कूई. करे कोई भरे कोई.
केहू हीरा चोर, केहू खीरा चोर. (भोजपुरी कहावत) कोई बहुत बड़ी चीज़ का चोर है और कोई बहुत छोटी चीज़ का.
कै जागे जोगी कै जागे भोगी. योग साधना के लिए योगी जागता है और भोग भोगने के लिए भोगी जागता है.
कै जागे बेटी को बाप, कै जागे जाके घर में सांप. या तो वह व्यक्ति चिंता में जागता है जिस की बेटी ब्याह योग्य हो, या वह जागता है जिस के घर में सांप छिपा बैठा हो.
कै तो घोड़ा काटे नहीं, और काटे तो फिर छोड़े नहीं. सामर्थ्यवान व्यक्ति सामान्यत: क्रोध नहीं करता. और क्रोध करता है तो मटियामेट कर देता है.
कै तो जीभ संभाल, कै खोपड़ो संभाल. (हरयाणवी कहावत) जीभ उल्टा सीधा बोलती है तो खोपड़ी पिटती है. जीभ को संभाल लो वरना खोपड़ी को संभालना पड़ेगा.
कै तो बावली सिर खुजावै ना, खुजावै तो लहू चला ले. (हरयाणवी कहावत) बावला आदमी या तो कोई काम करेगा नहीं, और करेगा तो उसे रोकना मुश्किल.
कै तो बिगड़े कुपंथ से, कै बिगड़े कुपथ्य से. आदमी गलत राह पर चलने से विनाश को प्राप्त होता है या गलत भोजन से.
कै तो बिलुआ चले न, और चले तो मेंड़ की मेंड़ ढहावे. हाथ से चलने वाली चक्की चलती है तो उसके चारों तरफ आटे की ढेरी बनती जाती है और जैसे जैसे नया आटा पिस कर आता है पुरानी ढेरी ढह कर नई ढेरी बनती जाती है. ढेरी की तुलना यहाँ खेत की मेड़ से की गई है. कहावत में यह कहा गया है कि या तो चक्की का पाट चलता नहीं है और चलता है तो मेड़ की मेड़ ढहाता है. कोई भी काम शुरू तो बहुत मुश्किल से हो पर फिर खूब तेज़ी से चले तो यह कहावत कही जाती है. (हाथ की चक्की के लिए देखिये परिशिष्ट के चित्र)
कै तो भर मांग सेंदुर, कै तो कतई रांड. कुछ लोग किसी काम को या तो पूरे जोर शोर से करते हैं, या बिलकुल कन्नी काट लेते हैं, उन्हीं पर व्यंग्य. सामान्यत: किसी भी परिस्थिति में मध्य मार्ग अपनाना चाहिए.
कै तो लड़े कूकुर, कै लड़े गँवार. लड़ने भिड़ने का काम मूर्ख लोग ही करते हैं.
कै दुख जाने दुखिया, कै दुखिया की माय, कै दुख जाने माछरी, जो थोरे जल मां सिराय. किसी के कष्टों को वह स्वयं समझ सकता है या उसकी माँ. जिस प्रकार पानी घटने के दुख को मछली ही समझ सकती है.
कै धन मिले धाए धाए, कै धन मिले पराया पाए, कै धन मिले नदी के कच्छ्न, कै धन मिले बहू के लच्छन. (बुन्देलखंडी कहावत) नदी के कच्छ्न – नदी किनारे की उपजाऊ जमीन. धन मिलता है या तो दौड़ भाग करने से, या कहीं पड़ा मिलने से, या नदी के कच्छ में खेती करने से, या अच्छे लक्षणों वाली बहू के घर में आने से.
कै बसे हजारी, कै बसे कबाड़ी. बड़े शहर में या तो धनाढ्य ही रह सकता है या फिर कबाड़ी.
कै मारे बदली की धूप, कै मारे बैरी को पूत. भादों की धूप मारती है या जिससे दुश्मनी हो उसकी संतान.
कै लड़े सूरमा, कै लड़े मूरख. आम तौर पर समझदार लोग लड़ाई भिड़ाई से दूर रहते हैं. या तो शूरवीर लोग लड़ना पसंद करते हैं या मूर्ख लोग जो अपना भला बुरा नहीं समझते.
कै सोवे राजा का पूत, कै सोवे योगी अवधूत. या तो राजा का पुत्र निश्चिन्त हो के सो सकता है (क्योंकि वह सब प्रकार से सुरक्षित होता है) या फिर योगी सन्यासी (क्योंकि उसे कोई सांसारिक चिंता नहीं होती).
कै हंसा मोती चुगे, कै भूखा रह जाए (लंघन करि जाय). ऐसा माना जाता है कि हंस केवल मोती चुगता है, गंदगी नहीं खाता. जो लोग उत्तम प्रकृति के होते हैं वे केवल उत्तम बातें ही ग्रहण करते हैं.
कैंची काटे ही काटे, सूई जोड़े ही जोड़े. जो लोग अच्छी मनोवृत्ति के है वे लोगों को जोड़ते हैं और जो दुष्ट प्रवृत्ति के होते हैं वे केवल लोगों में अलगाव पैदा करते हैं.
कैर का ठूंठ टूट जाए पर झुके नहीं. नासमझ लोग परिस्थितियों से समझौता करना नहीं जानते.
को कहि सके बड़ेन सों होत बड़ी नहिं भूल, दी ने दई गुलाब की इन डारन पर फूल. दी – दैव (ईश्वर). बड़े लोग भी कभी कभी भूल करते हैं. भगवान ने भी गुलाब की काँटों भरी डालियों में इतने सुंदर फूल दिए हैं.
को जग काम नचाव न जेही. संसार में ऐसा कोई नहीं जिसे कामदेव न नचाते हों.
को न कुसंगति पाय नसाई. कुसंगति पा कर सभी नष्ट हो जाते हैं. नसाई – नष्ट हो जाता है.
को नृप होहिं हमें का लाभ. कोई भी राजा हो हमें क्या फायदा होगा. जब राजा चुनने में प्रजा का कोई हाथ नहीं होता था तब तो यह सोच ठीक थी पर लोकतंत्र के जमाने में भी लोग ऐसी सोच रखते हैं ये ठीक नहीं है.
को नृप होहिं हमें का हानि. चेरि छांड़ि नहिं होऊ रानी. नृप – राजा, चेरी – दासी. कोई भी राजा हो. हमें क्या. हम दासी से रानी थोड़े ही हो जाएंगी.
कोइरिन हुई रानी, बैंगन को कहे टेंगन. किसी निम्न स्तर के व्यक्ति का ऊँचा पद पा जाने पर इतराना.
कोइरी की बिटिया के न मैके सुख न ससुरारे सुख. कोइरी – सब्जी बोने वाला किसान. गरीब की बेटी को सभी जगह काम अधिक करना पड़ता है और सुख सुविधाएं कहीं नहीं मिलतीं.
कोइरी के लड़का, करम के हीन, खुरपी ले के मोथा बीन. मोथा–एक खरपतवार. गरीब का भाग्य क्या होता है.
कोइरी सिपाही न बकरी मरखाही. किसान योद्धा नहीं बन सकता जैसे बकरी मरखनी नहीं हो सकती.
कोई अकल का यार, कोई रुपये का. कोई आदमी किसी से उसकी बुद्धि को देखकर मित्रता करता है और कोई पैसे को देखकर प्यार व मित्रता करता है.
कोई आँख का अंधा, कोई हिए का अंधा. कोई आँख का अंधा है और कोई हृदय का (भावना शून्य व्यक्ति).
कोई आइने में देखे तो कोई आरसी में देखे. कोई अपना मुख बड़े से शीशे में देखता है तो कोई छोटी सी आरसी में. दुनिया में सभी प्रकार के लोग हैं. किसी के पास वही वस्तु शानदार है, किसी के पास कामचलाऊ.
कोई ओढ़े शाल दुशाला, कोई ओढ़े कम्बल काला. भाग्य से किसी को कम और किसी को बहुत मिलता है.
कोई कह के सुनाये, कोई करके दिखाये. कोई ऐसे व्यक्ति हैं जो डींगें हांकते रहेंगे मगर काम नहीं करेंगे, कोई कहेंगे भी और काम भी करेंगे. पर कुछ तो ऐसे भी हैं जो बिना कुछ कहे सुने काम को पूरा करके रख देंगे.
कोई काम करे दाम से, कोई दाम करे काम से. कोई पैसा खर्च कर के लोगों से काम कराता है और कोई अपने हाथों से काम कर के पैसा कमाता है.
कोई खींचे लांग लंगोटी, कोई खींचे मूंछड़ियाँ, कोठे चढ़ कर देत दुहाई, कोऊ मत करियो दो जनियाँ. किसी व्यक्ति की दो पत्नियाँ हैं. वह छत पर चढ़ कर लोगों को समझा रहा है कि कोई दो बीबियाँ मत रखना. कोठा – छत
कोई घर रोवन कोई घर गीत, देखो रे दुनिया की रीत. दुनिया की यही रीत है कि कहीं दुख है और कहीं सुख.
कोई चढ़े हाथी-घोड़ा, कोई चढ़े भिटौरे. (भिटौरा – कंडों का ढेर). सब भाग्य का खेल है.
कोई तोलों कम, कोई मोलों कम, कोई मोल में भारी, कोई तोल में भारी. सभी प्रकार के लोग होते हैं. कोई तोल में कम है (उस में गुण कम हैं) कोई मोल में कम है (उसके पास धन दौलत कम है). इसी प्रकार किसी में गुण और गंभीरता अधिक हैं और किसी के पास पैसा अधिक है.
कोई दाब दाब भेंटै, कोई दूर-दूर भागे. अत्यधिक प्रेम दिखाने वाले से कोई दूर दूर भाग रहा हो तो.
कोई न दे तो जाए कहाँ, सब ही दें तो धरे कहाँ. गरीब मांगने वाला घर घर जा कर मांगता है. अगर उसे कोई कुछ न दे तो वह कहाँ जाएगा? और सब लोग दे दें तो वह रखेगा कहाँ?
कोई न बैरी कूकर बैरी. आप लाख कोशिश करें कि किसी से आपकी दुश्मनी न हो लेकिन कोई न कोई आपसे वैर भाव रखने वाला निकल ही आएगा. और कुछ नहीं तो मोहल्ले का कुत्ता ही बिना बात आप पर भौंकेगा.
कोई न मिले तो अहीर से बतलाय, कुछ न मिले तो सतुआ खाय. सत्तू को घटिया खाद्य पदार्थ माना गया है. कुछ न मिले तो मजबूरी में सत्तू खा कर काम चलाना चाहिए. इसी प्रकार अहीर से तभी बात करना चाहिए जब और कोई न मिले.
कोई नाचे कैसेई, ऊधौ नाचे वैसेई. कोई किसी प्रकार काम करे, ऊधौ अपने हिसाब से ही काम करेंगे.
कोई निरखे चूड़ी कंघी, कोई निरखे मनिहारी. मनिहारी – स्त्रियों के श्रृंगार आदि का सामान (विशेषकर चूड़ियाँ) बेचने वाली महिला. किसी की सामान देखने में रूचि है तो कोई मनिहारी को ही निहार रहा है.
कोई मरे किसी का घर भरे. किसी की हानि से किसी को लाभ होना
कोई मरे कोई अर्थी बनाए. कहीं पर मृत्यु होने से मातम हो रहा है और किसी को उससे जीविका मिल रही है.
कोई मरे कोई जीवे, सुथरा घोल बताशा पीवे. स्वार्थी लोगों के लिए.
कोई माँ के पेट से सीख के नहीं आता. अध्ययन और अभ्यास करने से ही सब काम आता है.
कोई माल में मस्त, तो कोई ख़याल में मस्त. कोई सम्पत्ति में खुश है तो कोई कोरी कल्पनाओं में ही मस्त है.
कोई मुझे न मारे तो मैं किसी को नहीं छोड़ूँ. कायर आदमी का कथन.
कोई राजा का भाई, कोई रानी का. कोई राजा का निकट संबंधी है तो कोई रानी का. किसको प्रसन्न किया जाय.
कोई रोवे कोई मल्हार गावे (कोई मरे कोई मल्हार गावे). 1.संसार में सब के दिन एक से नही होते. कोई प्रसन्न है तो कोई दुखी. 2. स्वार्थी लोगों को दूसरों का दुख नहीं दिखता, वे अपने राग रंग में मस्त रहता हैं.
कोई लाख करे चतुराई, करम का लेख मिटे न रे भाई. व्यक्ति कितनी भी बुद्धिमत्ता दिखा ले, भाग्य के लिखे को नहीं मिटा सकता.
कोई साथ आवे नहीं कोई साथ जावे नहीं. इस संसार में न तो कोई साथ आता है, न कोई साथ जाता है.
कोई स्यान मस्त कोई ध्यान मस्त कोई हाल मस्त कोई माल मस्त. दुनिया में सब प्रकार के लोग हैं. कोई ख्यालों में ही मस्त है, कोई धन धान्य में खुश है, कोई जैसे भी हाल में है उसी में खुश है.
कोऊ काटे मेरी नाक और कान, मैं न छोडूँ अपनी बान. अत्यधिक हठी व्यक्ति.
कोऊ को कल्पाए के, कोउ कैसे कल पाए. कलपाना – पीड़ित करना, कल पाए – चैन पाए. किसी को पीड़ित कर के कोई कैसे चैन पा सकता है.
कोऊ न काहू सुख दुख दाता. कोई किसी को सुख या दुख नहीं दे सकता, सब ईश्वर का दिया है.
कोऊ लांगड़ कोऊ लूल, कोऊ चले मटकावत कूल. ऐसा समाज जहाँ सारे लोगों में कोई न कोई कमी हो. लांगड़ – लंगड़ा, लूल – लूला (जिसका एक हाथ न हो). कूल से अर्थ यहाँ कूल्हे से है.
कोख से जन्मा सांप भी माँ को प्यारा लगे. माँ को अपना बच्चा हमेशा प्यारा लगता है, चाहे वह कैसा भी हो.
कोटहिं रंग दिखावत है जब अंग में आवे भंग भवानी. भंग – भांग. भंगेड़ियों द्वारा भांग की महिमा का बखान.
कोटिन काजू दाख खवावे, ऊँटहिं काठ झंकाड़हि भावे. दाख – द्राक्ष (अंगूर, किशमिश). ऊँट को कितना भी काजू किशमिश खिलाओ उसे झाड़ झंखाड़ ही अच्छे लगते हैं. मूर्ख व्यक्ति उत्तम वस्तुओं का मोल नहीं जानता, उसे निकृष्ट वस्तुएं ही प्रिय होती हैं.
कोठी कुठले को हाथ न लगाओ, घरबार सब तुम्हारा. कोठी – अनाज रखने का मिटटी का बड़ा बर्तन. कुठला – पानी भरने का बड़ा बर्तन. मेहमान से कह रहे हैं कि खाने पीने की बात मत करो, घरबार सब तुम्हारा ही है. दिखावे का आतिथ्य. (कोठी और कुठले के लिए देखिये परिशिष्ट)
कोठी धोए कीच हाथ लगे. अनाज रखने के बर्तन को धोने से कीचड़ हाथ लगती है.
कोठी में चावल, घर में उपवास. धन धान्य भरपूर मात्रा में है तब भी घर के लोग भूखे हैं. प्रबंधन में गड़बड़ी.
कोठी में धान तो मूढ़ में ज्ञान. घर में अनाज भरपूर मात्रा में हो तभी ज्ञान की बातें समझ में आती हैं.
कोठी वाला रोवे, छप्पर वाला सोवे. पैसे वाला आदमी हर समय चिंता में दुबला होता रहता है जबकि झोंपड़ी वाला चैन से सोता है.
कोठे से गिरा संभल सकता है, नजरों से गिरा नहीं. कोठा – छत. छत से गिरा आदमी उठ कर खड़ा हो सकता है लेकिन जो एक बार नजरों से गिर जाए वह नहीं.
कोड़े की मार घोड़ा सहे, शूल की मार हाथी. घोड़े को कोड़े से वश में लिया जाता है और हाथी को अंकुश से. अलग अलग व्यक्तियों को अलग अलग विधाओं से वश में किया जा सकता है.
कोढ़ मिट जाए पर दाग न जाए. एक बार इज्जत चली जाए तो वह बात दोबारा नहीं आती.
कोढ़ में खाज. परेशानी में परेशानी.
कोढ़ी का टका भी मंदिर में चढ़ता है. 1. भगवान् के यहाँ सब बराबर हैं. 2. कोढ़ी से वैसे तो सब लोग छुआछूत मानते हैं पर पैसा उस के हाथ से भी ले लेते हैं.
कोढ़ी का दिल शहजादी पर. अपनी हैसियत से बहुत अधिक इच्छा रखना.
कोढ़ी के जूँ नहीं पड़ती. लोक विश्वास है कि कोढ़ से ग्रसित व्यक्ति को जूँ नहीं होतीं. हालांकि बीमारी एक ईश्वरीय प्रकोप है और इस में कोढ़ी की कोई गलती नहीं होती फिर लोग उसे गन्दा और नीच मानते हैं. कहावत का अर्थ है कि नीच आदमी को छोटे मोटे कष्ट नहीं सताते.
कोढ़ी को दाल भात, कमाऊ सुत की जले आँत. कहावतों में कोढ़ी को ओछा और निकम्मा आदमी माना गया है (वैसे यह अनुचित है). जहाँ निकम्मे आदमी को बढ़िया भोजन मिले और पैसे कमाने वाले को कुछ भी नहीं.
कोढ़ी डराए थूक से. नीच आदमी अपनी नीचता से डराता है.
कोढ़ी मरे संगाती चाहे. संगाती – साथ जाने वाला. कोढ़ी चाहता है कि वह मरे तो उस के साथ रहने वाला भी उसके साथ परलोक जाए. नीच आदमी अपनी सहायता करने वाले का भी बुरा चाहता है.
कोतवाल को कोतवाली ही सिखाती है. किसी भी व्यवसाय को करने वाला व्यक्ति उस काम को करके ही उसकी बारीकियाँ सीखता है.
कोताही गर्दन, तंग पेसानी, दगाबाज की यही निसानी. पेसानी – माथा, कोताही – कम. कहावत के अनुसार छोटी गर्दन व कम मत्थे के आदमी बड़े खतरनाक, दगाबाज माने जाते हैं.
कोदों का भात किन भातों में, ममिया सास किन सासों में. कोदों एक घटिया अनाज होता है. कोदों से बने भात की गिनती भातों में नहीं होती. इसी प्रकार ममिया सास महत्वहीन सास है, उसकी गिनती सासों में नहीं होती.
कोदों की रोटी और काली लुगाई, पानी के दलिए में रामजी की क्या भलाई. कोदों की रोटी, काली स्त्री और दूध की जगह पानी में पका दलिया. यही सब मिलना है तो भला इसमें भी रामजी का क्या अहसान.
कोदों की रोटी पेट भरना, मरियल कंत करम ढकना. जिस प्रकार कोदों की रोटी केवल पेट भरने के लिए होती है, उसी प्रकार अत्यधिक दुर्बल पति भी केवल सौभाग्य की रक्षा के लिए होता है.
कोदों दे के नहीं पढ़े. हम मेहनत कर के पढ़े हैं, कोदों की रिश्वत दे कर नहीं. कोदों जैसी घटिया चीज दे के पढ़े होते तो शिक्षक भी घटिया मिलता और शिक्षा भी घटिया मिली होती.
कोदों दे के पूत पढ़ाए, सोलह दूनी आठ. घटिया शिक्षा का घटिया फल.
कोदों परस के मट्ठे को गये. कोदों को पचाने के लिए मट्ठा आवश्यक होता है. कोई व्यक्ति कोदों को थाली में परस कर मट्ठा मांगने गया है. ऐसे लोग जो योजना बना कर काम नहीं करते.
कोदों में घी खोवे, मूरख से दुख रोवे. कोदों जैसे घटिया अनाज में घी डालना बेकार है और मूर्ख व्यक्ति से अपना दुख कहना भी बेकार है,
कोदों सबा अन्न न, धी दामाद धन्न न. कोदों और सबा घटिया प्रकार के अनाज हैं, जिन्हें लोग अन्न की श्रेणी में नहीं मानते हैं. कहावत में तुकबन्दी कर के दूसरी बात और बताई गई है जो इस से सम्बंधित नहीं है. पुत्री और दामाद व्यक्ति का धन नहीं होते (बेटी को पराया धन कहा गया है), जबकि पुत्र एक प्रकार का धन है.
कोपीन की गिनती किन पोशाकों में. कोपीन जैसे न्यूनतम वस्त्र की पोशाकों में गिनती कैसे हो सकती है. कोई बहुत क्षुद्र व्यक्ति अपने को महत्वपूर्ण समझता हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
कोपै दई मेघ न होय, खेती सूखे, नैहर जोय, पूत बिदेसे, खाट पे कंत, कहे घाघ ई बिपति का अंत. कोपै दई-दैव का कोप, जोय-पत्नी, दैव के कोप से वर्षा न हो, खेती सूख जाय, स्त्री मायके में हो, पुत्र परदेश में बस गया हो और घर का स्वामी बीमार हो कर खाट पर पड़ा हो, इससे बढ़कर दूसरी कोई भी विपत्ति नहीं हो सकती.
कोमल डार ज्यों नमावो त्यों नमे (कच्चा बांस जिधर को नवाओ नव जाए). पेड़ या पौधे की कोमल डाल को या कच्चे बांस को जिस प्रकार मोड़ो मुड़ जाते हैं. इसी प्रकार छोटे बच्चे का मन कोमल होता है उसे किसी भी रूप में ढाला जा सकता है.
कोयल अम्बहिं लेत है, काग निम्बौरी लेत. कोयल मीठा आम खाती है जबकि कौवा कड़वी निम्बौली खाता है. हर व्यक्ति अपनी रूचि के अनुसार चीज़ चुनता है.
कोयल काले कौवे की जोरू. 1. बेमेल जोड़ा, क्योंकि कोयल सुरीली है और कौआ कर्कश. 2. उपयुक्त जोड़ा, क्योंकि दोनों काले हैं. 3. जहाँ पति पत्नी किसी अवगुण में एक से बढ़ कर एक हों.
कोयल की बोली कोयल क्या जाने. कोयल को अपनी बोली का मोल नहीं मालूम.
कोयला गर्म हो तो हाथ जलाए, ठंडा हो तो हाथ काला करे. नीच मनुष्य का साथ हर प्रकार से दुखदाई होता है.
कोयला होय न ऊजला, सौ मन साबुन धोय. चाहे सौ मन साबुन से धो लो, कोयला सफ़ेद नहीं हो सकता. दुष्ट व्यक्ति को सुधारने का कितना भी प्रयास कर लो वह नहीं सुधर सकता.
कोयले की दलाली में हाथ काले. आप कोई गलत काम स्वयं न भी करें, अगर उसमें बीच में भी पड़ते हैं तो आपको भी कुछ न कुछ बदनामी होने की संभावना रहेगी.
कोयले से हीरा, कीचड़ से फूल. कोयले जैसी घटिया चीज़ में से हीरा प्राप्त होता है और कीचड़ की गंदगी में कमल का फूल खिलता है. इसलिए निर्धन या पिछड़ी पृष्ठभूमि के लोगों का भी सम्मान करना चाहिए.
कोरी का बेगारी कुचबंदिया. कुचबंदिया – एक घुमक्कड़ जाति जो मूँज की रस्सी, सींके तथा कूँच आदि बनाती है. गरीब व्यक्ति शोषण करने के लिए अपने से अधिक गरीब को पकड़ता है.
कोरी का सुआ क्या पढ़े, सूत और पौनी. सूआ – तोता. जो जिसका धंधा होता है उसके घर में उसी की चर्चा होती रहती है और उसके घर में रहने वाले वही बातें सीखते हैं.
कोरी की भैंस ने कब खेत चरे. कोरी की भैंस में इतना साहस कहाँ जो रात्रि में दूसरों के खेतों को चरने जा सके. समाज का वंचित वर्ग इतना दुस्साहस कार्य कैसे कर सकता है.
कोरी ठकुराई और बगल में कंडा. झूठ मूठ के ठाकुर. राजस्थानी कहावत – ठाली ठकुराई कांख में छाण.
कोरी नून की पोवे. केवल नमक की रोटी बनाता है. जो बिल्कुल बिना सिर पैर की गप्प हाँकता हो.
कोल्हू के बैल को साथी की क्या दरकार. यदि एक ही आदमी से काम चलता हो तो दो लोग क्यों लगाए जाएँ.
कोल्हू से खल उतरी, भई बैलों जोग. तिल में से तेल निकलने के बाद खल बचती है जोकि केवल बैलों के खाने के काम आती है. महत्वपूर्ण व्यक्ति अपना पद खोने के बाद गरिमाहीन हो जाता है.
कोस कोस पर पानी बदले, बारह कोस पे बानी. हमारे देश में हर कोस पर पानी का स्वाद बदल जाता है और हर बारह कोस पर बोली में कुछ बदलाव आ जाता है.
कोस चली न, बाबा प्यासी. कोस भर भी नहीं चली और कहने लगी बाबा प्यास लग रही है. काम शुरू करते ही थकने का बहाना करना.
कोस-कोस पे गोड़े धोवे, दो-दो कोस पे खाय, ऐसा बोले भड्डरी, चाहे जहाँ लौं जाय. गोड़े – पैर, लौं – तक. पैदल यात्रा में थोड़ी-थोड़ी दूर पर शीतल जल से पैर धोने और कुछ खा लेने से थकान दूर होती है.
कोसे जिएँ, असीसे मरें. किसी को खूब कोसा गया फिर भी वह जीवित है, किसी को जुग जुग जीने की आशीष दी गई फिर भी वह मर गया. अर्थ है कि कोसने या असीस देने से कुछ नहीं होता, ईश्वर की मर्ज़ी से होता है.
कौआ अपने सिसुन को जानत सबसे सेत. (कौवा अपने बच्चों को ही सबसे सुंदर समझता है. सेत – श्वेत (यहाँ सुंदर से तात्पर्य है), सिसुन – शिशु. कौए को अपने बच्चे सबसे सुंदर लगते हैं. हर जीव जन्तु को अपनी संतान प्रिय होती है (चाहे वह कैसी भी हो).
कौआ कांय कांय कर मरे, हंस अपनी चाल चले. हंस को देख कर कौआ कितना भी जले, कितनी भी कांव कांव करे, हंस शान से अपनी चाल चलता रहता है.
कौआ के कोसे ढोर न मरे (गीदड़ के मनाए ढोर नहीं मरते) (कसाई के सरापे गाय नहीं मरती). किसी के कोसने से कोई नहीं मरता. अन्धविश्वासी लोगों को सीख दी गई है जो मंत्र तंत्र कर के किसी को हानि पहुँचाना चाहते हैं. रूपान्तर– चमार के मनाए ढोर नहीं मरते (चमार मनाता है कि किसी का जानवर मरे तो उसे चमड़ा मिले)
कौआ चढ़ा छप्पर पे, अब उतरेगा कैसे. मूर्ख व्यक्ति की मूर्खता की कोई सीमा नहीं होती. वह यही सोच कर परेशान है कि कौआ छप्पर पर से कैसे उतरेगा. वह सोच ही नहीं सकता कि कौआ तो उड़ सकता है.
कौआ चला हंस की चाल, अपनी चाल भी भूल गया. दूसरों की नकल करने में हम उसके जैसा भी नहीं बन पाते हैं और अपनी वास्तविकता एवं मौलिकता को भी भूल जाते हैं.
कौआ जैसे पंख मोर का अपनी दुम में बांधे. फूहड़पने से किसी की नकल करना.
कौआ बोले बेसी, घर आवे परदेसी. कौवा यदि बार बार बोलता है तो घर में कोई मेहमान आता है.
कौए की चोंच में अंगूर, हूर के पहलू में लंगूर. यदि किसी लल्लू पंजू आदमी को बहुत सुंदर पत्नी मिल जाए तो दूसरे लोग ईर्ष्या वश यह कहावत कहते हैं.
कौए की दुम में अनार की कली. उपरोक्त के समान.
कौए की नजर तो रैंट पर ही. नीच व्यक्ति को निम्न कोटि की वस्तुएँ ही पसंद आती हैं. (कौआ नाक से निकली रैंट को बड़े शौक से खाता है).
कौए के साथ हंस का जोड़ा. बेमेल जोड़ा.
कौए को सोने के पिंजरे में मोती चुगाओ तो भी राजहंस नहीं हो सकता. अर्थ स्पष्ट है.
कौए धोए कहीं बगुले हुआ करें. किसी खुराफाती आदमी को सुधारने की बहुत कोशिश की गई पर वह खुराफाती ही रहा तो यह कहावत कही गई. कोई काला या असुंदर व्यक्ति सुंदर दिखने के लिए तरह-तरह के साबुन और लेप लगाए तो भी उसका मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है.
कौए सब जगह काले ही काले. दुष्ट लोग सब जगह दुष्टता ही करते हैं.
कौए से भी गोरा. किसी अत्यधिक काले आदमी का मजाक उड़ाने के लिए.
कौओं के बजाए ढोल थोड़े ही फूटें. छोटे और महत्वहीन लोग बड़े लोगों का कोई नुकसान नहीं कर सकते.
कौड़ी कौड़ी जोड़ के निधन होत धनवान, अक्षर अक्षर के पढ़े मूरख होत सुजान. अर्थ स्पष्ट है.
कौड़ी कौड़ी बचाओ, लाखों रूपए पाओ (कौड़ी कौड़ी धन जुड़े). छोटी छोटी बचत अंततः बहुत बड़ी बन जाती हैं.
कौड़ी गाँठ की, जोरू साथ की. कौड़ी वही काम की है जो गाँठ में हो (मतलब पैसा वही काम का है जो पास में हो), पत्नी तभी काम की है जब साथ हो.
कौड़ी न चीन्हे बंधु अबंधु. धन अपना-पराया नहीं देखता. (उड़िया कहावत)
कौड़ी नहीं गाँठ, चले बाग की सैर. अपने पास कुछ न होते हुए भी तरह तरह के शौक सूझना.
कौडी नाहीं गाँठ में, करे ऊँट की बात. पास में पैसा न होते हुए भी बड़ी बड़ी बातें करने वालों के लिए.
कौड़ी बिना दो कौड़ी का. जिस के पास पैसा न हो उसे कोई नहीं पूछता.
कौड़ी में हाथी बिकाय, पर कौड़ी तो हो. कोई महंगी चीज बहुत सस्ती मिल रही है लेकिन हमारे पास तो उतने पैसे भी नहीं हैं.
कौन अकेली तुम्हारी माँ ने ही सोंठ पंजीरी खाई. अकेली तुम्हारी माँ ने ही सोंठ पंजीरी नहीं खायी है, हमारी माँ ने भी खायी है. हम भी कुछ बूता रखते हैं.
कौन ऐसा फूल जो शिव पर न चढ़े. किसी लालची हाकिम पर व्यंग्य जो सब तरह की रिश्वत ले लेता हो.
कौन कहे राजा जी नंगे हैं. जहाँ पर कोई गलत काम होता दिख रहा हो पर कहने की हिम्मत कोई न जुटा पा रहा हो वहाँ यह कहावत कहते हैं. सन्दर्भ कथा एक राजा के दरबार में दो लोग आए और राजा से बोले कि वे देवताओं के वस्त्र बनाते हैं. राजा लोग भी कैसे कैसे मूर्ख होते थे, उस ने उन लोगों की बात पर विश्वास भी कर लिया और उन से कहा कि मेरे लिए भी देवताओं जैसे वस्त्र बनाओ. उन्होंने राजा से एक महीने का समय माँगा और बहुत सा सोना, हीरे जवाहरात और रेशम, मखमल वगैरा ले कर महल के एक कमरे में काम शुरू कर दिया.
एक महीने बाद वे दरबार में आए और राजा से कहा कि हम आप को देवताओं के वस्त्र अपने हाथ से पहनाएंगे. वस्त्र तो ऐसे बने हैं कि जो देखेगा देखता रह जाएगा लेकिन इन वस्त्रों की एक विशेषता यह है कि ये उन्हीं लोगों को दिखाई देते हैं जो अपने बाप से पैदा हैं. उन्होंने राजा के कपडे उतरवाए और खाली मूली हवा में ही एक एक चीज़ राजा को पहनाने लगे. लीजिये महाराज यह मलमल का जांघिया, यह रेशम की धोती, यह हीरे मोती जड़ा कुर्ता आदि आदि. राजा को कुछ नहीं दिख रहा था लेकिन वह यह कैसे कहे. उसने सोचा कि हो न हो मैं अपने पिता महाराज की औलाद न हो कर किसी द्वारपाल की औलाद हूँ जो मुझे ये वस्त्र दिखाई नहीं दे रहे हैं.
राजा ने सब दरबारियों से पूछा कि कैसे लग रहे हैं मेरे नए वस्त्र? सब ने एक स्वर से कहा अद्वितीय महाराज, आप बिल्कुल देवता लग रहे हैं. हकीकत यह थी कि राजा बिल्कुल नंगा खड़ा था लेकिन कोई यह कह नहीं पा रहा था. जहाँ पर कोई गलत काम होता सब को दिख रहा हो पर कहने की हिम्मत कोई न जुटा पा रहा हो वहाँ यह कहावत कहते हैं. रूपान्तर-कौन राजा को कहै कि आपन ढांक के बइठौ.
कौन किसी के आवे जावे, दाना पानी खेंच लावे. कोई किसी के घर वैसे क्यों आएगा जाएगा, दाना पानी व्यक्ति को खींच लाता है.
कौन कौन गुन गायें अपने राम के. किसी की करतूतों का बखान करते समय व्यंग्य में कहा जाता है.
कौन जनम भरे की साई ली है. साई – पेशगी, बयाना. क्या काम करने का जन्म भर का ठेका लिया है.
कौन जाने किस विधि राजी राम. कोई नहीं जान सकता कि ईश्वर की इच्छा क्या है.
कौन तुम्हारी जमा गड़ी. अर्थात् यहाँ तुम्हारा क्या अधिकार
कौन पाप तुम किया पूत जो मोटी मिली जोय, सबरी खाट घेर सोएगी तुम्हरी क्या गति होय. जोय – पत्नी. किसी की पत्नी बहुत मोटी हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
कौन सिखावत है कहो, राजहंस को चाल. राजहंस की चाल राजसी होती है. लेकिन यह उस का जन्मजात गुण है. हमारे कुछ गुण जन्मजात होते हैं.
कौन सुने किससे कहें, ऐसी आन पड़ी, किस किस को समझाइये, कूएँ भांग पड़ी. जहाँ सभी एक से बढ़ कर एक महान हों.
कौन से जनम का कर्म कौन से जनम में उघड़ आवे. कोई नहीं जानता कि किस जन्म में किया पाप या पुण्य किस जन्म में अपना फल दिखाएगा.
कौन हाथी मारे कौन दाँत उखाड़े. इतना कठिन काम कौन करे.
कौनो बात को दुख नाहीं, बस खर्चे से तंग हैं. सभी के लिए यही सब से बड़ा दुख है.
कौवा कहे कोयल काली. अपनी कमियों को न देख कर दूसरों की खामियाँ ढूँढना. इंग्लिश में कहावत है – The pot calls the kettle black.
कौवा कान ले गया. मूर्ख व्यक्ति से कुछ भी कहो वह विशवास कर लेता है. किसी व्यक्ति ने एक मूर्ख से कहा – कौवा तेरा कान ले गया. मूर्ख तुरंत अपना कान टटोल कर देखने लगा. सन्दर्भ कथा-बिना सोच-विचारे दूसरे की बात पर विश्वास कर लेना. किसी मूर्ख से एक व्यक्ति ने कह दिया कि तेरा कान कौवा ले गया. सुनते ही वह झट से कौवे के पीछे दौड़ पड़ा. लोगों ने जब पूछा कि क्या बात है, तो उसने जवाब दिया कि मेरा कान कौवा ले गया है. उसे छीनने के लिए मैं उसके पीछे जा रहा हूं. इस पर किसी ने कहा कि कान तो तेरे दोनों लगे हैं. कौवा कहां से ले जाएगा? जब उसने अपने कान टटोल कर देखे, तो वास्तव में दोनों जहां के तहां मौजूद थे. तब वह अपनी मूर्खता पर लज्जित होने की बजाए उस व्यक्ति से लड़ने लगा
कौवा कोसे ढोर मरें तो रोज़ कोसे, रोज़ मारे, रोज़ खाए. कौए के कोसने से अगर ढोर (गाय भैंस आदि) मरने लगें तो कौया रोज कोस कोस कर उन्हें मार कर खाएगा. अन्धविश्वासी लोगों को सीख दी गई है.
कौवे से कवेला चतुर. कवेला – कौए का बच्चा. बेटा अगर बाप से भी अधिक धूर्त हो तो.
कौवों की बरात में बड़े कौए की पूछ. निकृष्ट लोगों के यहाँ कोई आयोजन होता है तो सब से निकृष्ट आदमी की विशेष पूछ होती है.
क्या अंधे का सोना और क्या उसका जागना. अंधा व्यक्ति चाहे सोए चाहे जागे, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता.
क्या उल्लू और क्या उल्लू का पट्ठा. किसी मूर्ख व्यक्ति और उसकी मूर्ख संतान के लिए हिकारत भरे शब्द.
क्या करे नर बांकुरो, जब थैली को मुख सांकरो. धन के अभाव में योग्य व्यक्ति भी असहाय हो जाता है.
क्या कहूँ कछु कहा न जाए, बिन कहे भी रहा न जाए, मन की बात मन में ही रही, सात गाँव बकरी चर गई. एक चरवाहे को राजा ने एक पत्ते पर सात गाँव का पट्टा लिख कर दे दिया. उसने यह बताने के लिए सब लोगों को इकठ्ठा किया. तब तक निगाह बचते ही बकरी उस पत्ते को खा गई. देखिए सन्दर्भ कथा-एक बार एक राजा शिकार खेलते समय अपने दल से अलग हो कर कहीं जंगल में भटक गया. राजा भूख प्यास से बेहाल था और ऊपर से जंगली जानवरों और डाकुओं का डर भी था. ऐसे में एक चरवाहे ने पानी पिला कर और रास्ता दिखा कर उस की जान बचाई. राजा बहुत खुश हुआ और उस ने एक पत्ते पर सात गाँव का पट्टा लिख कर उसे दे दिया.
चरवाहा ख़ुशी ख़ुशी अपने घर आया और यह बताने के लिए उस ने सब लोगों को इकठ्ठा किया. तब तक उसकी निगाह बचते ही उसकी बकरी पत्ते को खा गई. तब उस ने रोते हुए यह कहा. क्या कहूँ कछु कहा न जाए, बिन कहे भी रहा न जाए, मन की बात मन में ही रही, सात गाँव बकरी चर गई. किसी को अप्रत्याशित रूप से बड़ा नुकसान हो जाए तो यह कहावत कही जाती है
क्या कहें करम की बात, बकरी को मुर्गी मारे लात. भाग्य साथ न दे तो बकरी को मुर्गी भी लात मार सकती है.
क्या कुत्ते का मगज़ खाया है. कोई आदमी बहुत बकवास करे उसके लिए. (कुत्ता बहुत भौंकता है इसलिए).
क्या खुदा तेरी खुदाई, मारनी थी गधी मर गई गाइ. दूसरे का बुरा चाहने वाले का खुद का नुकसान हो जाना. सन्दर्भ कथा एक मियां के घर के पास ही कुम्हार का घर था. मियां की कुम्हार से अनबन हो गई तो उसने खुदा से फरियाद की कि वह कुम्हार की गधी को मार दे. लेकिन अगले ही दिन उनकी स्वयं की गाय मर गई. इस पर मियां ने ख़ुदा को उपालंभ देते हुए कहा कि या ख़ुदा ये तूने क्या किया? तुझे खुदाई करते इतने जुग बीत गये लेकिन अभी तक गाय और गधी का फर्क भी मालूम न हुआ. मैंने पड़ोसी को गधी मारने के लिए अर्ज की थी और तूने मेरी ही गाय मार दी.
क्या तत्ते पानी से घर जले है. गरम पानी से शरीर जल सकता है लेकिन घर नहीं जल सकता. छोटी छोटी चीजें बहुत बड़ा नुकसान नहीं कर सकती हैं.
क्या तुम्हारे खोदने से गंगा आई हैं. कोई यह समझता हो कि उस के करने से ही सारा काम हुआ है तो उस को उस की वास्तविकता का अहसास कराने के लिए यह कहावत कही जाती है.
क्या पता ऊँट किस करवट बैठे? अनिश्चितता की स्थिति. ऊँट के विषय में यह नहीं पता होता कि वह किस तरफ बैठेगा.
क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा. पिद्दी एक छोटी सी चिड़िया होती है. उसको पका कर खाने की कोशिश करोगे तो कितना मांस मिलेगा और कितना शोरबा. किसी छोटे और कमजोर आदमी का मजाक उड़ाने के लिए.
क्या भरोसा है जिंदगानी का, आदमी बुलबुला है पानी का. जीवन का कोई भरोसा नहीं, पानी के बुलबुले की तरह क्षणभंगुर है. (पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात – कबीर)
क्या भूख को बासन. क्या नींद को ओढ़न. भूख लगी हो तो बिना बर्तनों के भी खाया जा सकता है और नींद आ रही हो तो बिना ओढ़नी के भी सोया जा सकता है.
क्या मरते ही कीड़े पड़ जाएंगे. अर्थात क्या कार्य इतने शीघ्र बिगड़ जायगा कि सँभाला न जा सके.
क्या रखा इन बातों में, जूते ले लो हाथों में. जूते हाथों में लेने का अर्थ जूते ले कर भागने से भी है, जूते मारने से भी है. वैसे आम तौर पर इस कहावत को मजाक में प्रयोग करते हैं.
क्या ले गए राव और क्या ले गए उमराव. (क्या ले गया शेरशाह और क्या ले गया सलीमशाह). बड़े से बड़े लोग भी इस दुनिया से कुछ ले नहीं जा पाए. इसलिए किसी के साथ अन्याय करके धन नहीं कमाना चाहिए.
क्या सासू जी अटको मटको, क्या मटकाओ कूल्हा, डोली पर से जब उतरूंगी, जुदा करूंगी चूल्हा. जो महिलाएं बेटे की शादी में बहुत नाच कूद रही हों उन को सावधान किया गया है.
क्या सूक सनीचर जैसे ठाढ़े भये हो. सूक – शुक्र ग्रह. किसी मंगल कार्य में कोई व्यक्ति मनहूस शक्ल बनाए खड़ा हो तो यह कहावत व्यंग्य में कही जाती है.
क्या सूप का लाल सूपे में रहिहैं. सूप – छाज, जिससे अनाज साफ किया जाता है. गांवों में जब बच्चा पैदा होता है तो उसे सबसे पहिले सूप में ही लिटाया जाता है. जब कोई बच्चा बहुत दिन बाद मिलता है तो उसे देखकर कहने में आता है कि अरे बहुत बड़ा हो गया, तो जवाब मिलता है कि क्या जैसे सूप में लेटा था वैसा ही रहेगा.
क्या सौ रुपये की पूंजी, क्या एक बेटे की औलाद. जैसे सौ रुपये की पूंजी नाकाफ़ी है वैसे ही संतान के रूप में एक ही बेटा होना पर्याप्त नहीं है.
क्या हंसिया को बेच खाए, क्या खुरपी को गिरवी रखे. हंसिया को बेचने और खुरपी को गिरवी रखने से कितना पैसा मिल जाएगा. बहुत निर्धन व्यक्ति के लिए.
क्या हल्दी को रंग और क्या परदेसी को संग. जिस प्रकार हल्दी का रंग स्थायी नहीं होता उसी प्रकार परदेसी की प्रीत भी क्षणभंगुर होती है.
क्या हिजड़ों ने राह मारी है. क्या हिजड़ों ने तुम्हारी राह रोक ली थी. व्यर्थ के बहाने बनाने वाले के लिए.
क्यों अंधा न्योता और क्यों दो बुलाए. कोई ऐसा काम करना जिसमें अनावश्यक खर्च शामिल हो. (हरियाणवी कहावत) अंधा न्यौतै और दो बुलावै अर तीसरा गैला आवै. गैला – फ़ालतू.
क्यों कही और क्यों कहाई. न तुम कुछ कहते और न तुम्हें इतना सुनना पड़ता.
क्रोध की सबसे अच्छी दवा मौन है. अर्थ स्पष्ट है.
क्रोध विवेक का दुश्मन है. क्रोध में आदमी विवेक भूल जाता है. इंग्लिश में कहावत है – Anger is a short madness.
क्वाँरी कन्या को बर और धरती को बीज मिलई जात. क्वाँरी कन्या के लिए वर और खेत में बोने के लिए बीज कहीं न कहीं से मिल ही जाते हैं.
क्वांरी कन्या को सौ घर और सौ वर (क्वांरी कन्या सहस वर). ब्याहता स्त्री का तो एक ही वर होता है लेकिन क्वांरी कन्या के लिए सैकड़ों सम्भावित वर होते हैं. वैश्या के लिए भी व्यंग्य में ऐसा कहते हैं.
क्वार करेला चैत गुड़, भादों मूली खाय, पैसा खरचै गांठ को, रोग बिसावन जाय. क्वार में करेला, चैत में गुड़ और भादों में मूली खाना हानिकारक है. पैसा खर्च होता है और रोग भी आते हैं. घाघ ने इस तरह की बहुत सी बातें लिखी हैं जो उस समय के लोगों की स्वास्थ्य सम्बंधी मान्यताओं को दर्शाती हैं. आज के वैज्ञानिक युग में इन में से अधिकतर का कोई आधार नहीं है. रूपान्तर – क्वार करेला, कातिक दही, मरे नहीं तौ परे सही.
क्वार का सा झल्ला, आया बरसा चल्ला. क्वार के महीने में बहुत हल्की सी वारिश होती है (बहुत थोड़े समय के लिए). कोई व्यक्ति बहुत थोड़े समय के लिए आए तो मज़ाक में कहते हैं.
क्वार की घाम में चमार का चाम पाके. क्वार की धूप भादों जैसी तेज तो नहीं होती लेकिन ठीक ठाक तेज होती है, और क्वार में वर्षा का डर भी नहीं होता, इसलिए चर्मकार को चमड़ा सुखाने में आसानी होती है.
क्वार चैत के भरोसे किसान कर्जा लेत. चैत तथा क्वार के महीने में किसान को खेत से अनाज मिलता है. इन दो माहों में रबी तथा खरीफ की फसलें कटती हैं. इसी आशा में किसान क़र्ज़ लेता है.
क्वार जाड़े का द्वार. क्वार के एक महीने के बाद जाड़ा आता है.
क्वारी को अरमान, ब्याही परेशान. कुंआरी लड़की अपने विवाह को लेकर तरह तरह के सपने देख रही है, जबकि विवाहिता स्त्री गृहस्थी की मुसीबतों से परेशान है.