1. नन्हीं नन्हीं बुँदियाँ रे, सावन का मेरा झूलना रे
नन्हीं नन्हीं बुँदियाँ रे, सावन का मेरा झूलना रे।
एक झूला डाला मैंने बाबाजी के राज में,
लंबी लंबी पेंगे रे, सावन का मेरा झूलना रे।
एक झूला डाला मैंने बाबुल जी के राज में,
लकड़ी की काठी रे, सावन का मेरा झूलना रे।
एक झूला डाला मैंने भैया जी के राज में,
गोद भतीजा रे, सावन का मेरा झूलना रे।
एक झूला डाला मैंने सासू जी के राज में,
लंबा लंबा घूंघट रे सावन का मेरा झूलना रे।
इस गीत को इस प्रकार से भी गाया जाता है
नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे, सावन का मेरा झूलना रे
एक सुख देखा मैंने अम्मा के राज में
हाथों में गुड़िया रे, सखियों संग मेरा खेलना रे
नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे…
एक सुख देखा मैंने, भाभी के राज में
गोद में भतीजा रे गलियों का मेरा घूमना रे
नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे…
एक सुख देखा मैंने बहना के राज में
हाथों में कसीदा रे फूलों का मेरा काढ़ना रे
नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे…
एक दु:ख देखा मैंने सासू के राज में
धड़ी भर गेहूँ रे चक्की का मेरा पीसना रे
नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे…
एक दुख देखा मैंने जिठनी के राज में
धड़ी भर आट्टा रे चूल्हे का मेरा फूँकना रे
नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे
सावन का मेरा झूलना रे
2. कच्ची नीम की निवौरी सावन जल्दी अइयो रे
कच्ची नीम की निवौरी सावन जल्दी अइयो रे।
बाबा दूर मति ब्यहियो दादी नहीं बुलायेगी।
कच्ची नीम की निबौरी …
बाबुल दूर मति ब्यहियो अम्मा नहीं बुलायेगी।
कच्ची नीम की निबौरी …
भइया दूर मति ब्यहियो भाभी नहीं बुलायेगी।
कच्ची नीम की निबौरी …
चाचा दूर मति ब्यहियो चाची नहीं बुलायेगी।
कच्ची नीम की निबौरी …
मामा दूर मति ब्यहियो मामी नहीं बुलायेगी।
कच्ची नीम की निबौरी …
3. हो कैसे खेलन जइहो सावन में कजरिया
हो कैसे खेलन जइहो सावन में कजरिया, बदरिया घिर आई ननदी।
तू तो जात है अकेली, कोई संग न सहेली,
हो छैला (कान्हा) रोक लिहैं तोहरी डगरिया, बदरिया घिर आई ननदी।
बिजली चम-2 चम-2 चमके, मेघा रिमझिम-2 बरसे,
हो काली नागिन जैसी रात अँधियारी, बदरिया घिर आई ननदी।
बादल गरज रहा घनघोर, घर में सैंया नाहीं मोर,
मैं तो ताकत रहिली पिय की डगरिया, बदरिया घिर आई ननदी।
कितने आशिक घायल होइहैं, कितने डामल फांसी पइहैं,
कितने पीसत होइहैं जेल में चकरिया, बदरिया घेरे आई ननदी।
हो कैसे खेलन जइहो सावन में कजरिया, बदरिया घिर आई ननदी।
4. शिव शंकर चले कैलाश कि बुंदियां पड़ने लगीं
शिव शंकर चले कैलाश कि बुंदियां पड़ने लगीं।
गौरा जी ने बो दी हरी हरी मेहंदी, शंकर ने बो दी भांग, कि बुंदियां पड़ने लगीं।
गौरा जी ने सींची हरी हरी मेहंदी, शंकर ने सींची भांग, कि बुंदियां पड़ने लगीं।
गौरा जी ने काटी हरी हरी मेहंदी, शंकर ने काटी भांग, कि बुंदियां पड़ने लगीं।
गौरा जी ने पीसी हरी हरी मेहंदी, शंकर ने घोटी भांग, कि बुंदियां पड़ने लगीं।
गौरा जी ने लगाई हरी हरी मेहंदी, शंकर ने पीली भांग, कि बुंदियां पड़ने लगीं।
गौरा जी के रच गई हरी हरी मेहंदी शंकर को चढ़ गई भांग, कि बुंदियां पड़ने लगीं।
5. झूला पड़ा कदम की डाली, झूलैं कृष्ण मुरारी रे
झूला पड़ा कदम की डाली, झूलैं कृष्ण मुरारी रे।
झूला झूलन राधा आयीं, संग में ललिता प्यारी रे।
झूला पड़ा कदम की डाली, झूलैं कृष्ण मुरारी रे।
पेंग मारिके श्याम झुलावें, सुधि-बुध खोवें, सारी रे।
झूला पड़ा कदम की डाली, झूलैं कृष्ण मुरारी रे।
6. अरी बहना तीजन की आई है बहार
अरी बहना तीजन की आई है बहार
बागन में चल के झूल लें –
संग की सहेली बहना सब चलीं
अरी बहना नख शिख करें श्रृंगार
बागन में –
मेहंदी रचाओ री बहना हाथ में – 2
अरी बहना नैनन में कजरा डार
बागन में –
रेशम की डोरी बहना ले चली – 2
अरी बहना पटली जड़ाऊ नमदार
बागन में –
हिलमिल के डारो झूला बाग में – 2
अरी बहना गावे गीत मल्हार
बागन में –
7. झूला तो पड़ गए, अम्बुआ की डार पे जी
झूला तो पड़ गए, अम्बुआ की डार पे जी,
एजी कोई राधा को, गोपाला बिन राधा को,
झुलावे झूला कौन,
झूला तो पड़ गए, अम्बुआ की डार पे जी,
धीरज धर ले, मन समझाए ले री,
एजी अगले सावन में, राधा री अगले सावन में झूलेंगे कान्हाँ संग,
धीरज धर ले, मन समझाए ले री,
राधा का जीवन श्याम बिना, रामायण जैसे राम बिना,
संग की सहेलियाँ, समझें ना बात को जी,
एजी कोई उन बिन, हांजी हमें उन बिन,
कछु ना सुहाए,
झूला तो पड़ गएँ, अम्बुआ की डार पे जी,
इन बागन में, इन फूलन में, हम झूले प्रीत की झूलन में,
अब ये फुलवा, चुभ रहे शूल से जी,
एजी इन बागन में, अकेले इन बागन में,
पड़े ना अब पाँव,
झूला तो पड़ गएँ, अम्बुआ की डार पे जी,
मन भावन ये रुत, सावन की, कछु साजन की, कछु बावन की,
बैरी पपीहरा, पिऊ पिऊ रट रह्यो जी,
एजी वोतो जाने ना, पपीहा बैरी जाने ना,
बिरहणी का हाल,
झूला तो पड़ गए, अम्बुआ की डार पे जी,
सावन में पपीहे के जैसे, बिरहा के दिन बीते ऐसे,
बंशी बजे ना, अब सखी चैन की जी,
एजी मेरा मनवा, ओ बहना मेरा मनवा,
हुआ बेचैन,
झूला तो पड़ गए, अम्बुआ की डार पे जी,