ओ, औ
ओई की रोटी ओई की दार, ओई की टटिया लगी दुआर. यह एक बुन्देलखंडी पहेलीनुमा कहावत है जिस का उत्तर है चना. चने की रोटी को चने की दाल से खाओ और चने का पर्दा (टट्टर) बना कर दरवाजे पर लगाओ.
ओई बाँस के डला टोकरी, ओई के चलनी सूप. उसी बाँस के डलिया – टोकरी बनता हैं, और उसी के चलनी – सूप. दो सगे भाइयों अथवा भाई-बहिनों में परस्पर प्रेम जताने के लिए कहते हैं.
ओखली में सर दिया तो मूसलों से क्या डरना. जब कोई कठिन काम हाथ में लिया है तो उस में आने वाली परेशानियों से क्या डरना.
ओखली में हाथ डाले, मूसली को दोष देवे. जाहिर है कि ओखली में हाथ डालोगे तो मूसल की चोट पड़ेगी. ऐसे में मूसल को क्या दोष देना. स्वयं गलती करके कष्ट उठाने वाला व्यक्ति यदि दूसरे को दोष दे तो.
ओछा आते भी काटे और जाते भी काटे. दुष्ट सुनार लेते समय भी कम तौलता है और देते समय भी.
ओछा आदमी निहोरे करने पर ज्यादा नखरे दिखाता है. ओछे आदमी से यदि किसी काम के लिए मनुहार करो तो वह और अधिक नखरे दिखाता है.
ओछा ठाकुर मुजरे का भूखा. मुजरा – झुक कर सलाम करना. ठाकुर से तात्पर्य यहाँ सामंतशाही व्यवस्था के उन बड़े लोगों से है जो जनता को गुलाम बना कर रखना चाहते थे.
ओछा बनिया, गोद का छोरा, ओछे की प्रीत, बालू की भीत, कभी सुख नहीं देते. दुष्ट बनिया, गोद लिया हुआ लड़का, नीच व्यक्ति से प्रेम और बालू से बनी दीवार, कभी सुख नहीं देते,
ओछी पूंजी, खसमो खाए. गलत तरीके से कमाया गया धन व्यक्ति का सर्वनाश कर देता है. (खसम – स्वामी)
ओछी रांड उधार गिनावे. निकृष्ट किस्म की स्त्रियाँ हर समय अपने द्वारा किए गये एहसान गिनाती रहती हैं.
ओछी लकड़ी झाऊ की, बिन बयार फर्राए, ओछों के संग बैठ के, सुघड़ों की पत जाए. झाऊ का एक पेड़ होता है जो बिना हवा चले ही आवाज करता है, मतलब पेड़ बिना बात आवाज़ कर रहा है और हवा का नाम बदनाम हो रहा है. ओछे लोगों के साथ बैठ कर अच्छे लोगों का सम्मान कम होता है.
ओछे का ऋण नहिं खाए, अकुलीन की लड़की न ब्याहे. ओछे आदमी से ऋण नहीं लेना चाहिए, क्योंकि वह मौके बेमौके तकादा कर के परेशान करता है, नीचे कुल की लड़की से विवाह करने से वंश बिगड़ता है.
ओछे की प्रीत, कटारी को मरबो. ओछे मनुष्य की प्रीति और कटारी से मरना दोनों समान होते हैं.
ओछे की यारी, गधे की सवारी. ओछे से दोस्ती करोगे तो कभी न कभी ऐसे फंसोगे कि मुँह काला कर के गधे पर चढ़ा कर घुमाया जाएगा. रूपान्तर – ओछे की प्रीत, बालू की भीत.
ओछे की सेवा, नाम मिले न मेवा. ओछे आदमी की सेवा करने से कोई लाभ नहीं है. न तो नाम होगा और न ही कोई इनाम मिलेगा.
ओछे के घर खाना, जनम जनम का ताना. छोटी सोच वाले व्यक्ति से किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए. इसमें बदनामी होती है और ताने सुनने पड़ते हैं.
ओछे के पेट में बड़ी बात नहीं पचती. ओछी बुद्धि वाले व्यक्ति के पेट में कोई बात नहीं पचती इसलिए उस को कोई महत्वपूर्ण या रहस्य की बात नहीं बतानी चाहिए.
ओछे के सर का जुआँ इतराए. ओछा हाकिम स्वयं तो अत्यधिक इतराता ही है उसके घर के सदस्य और नौकर चाकर भी अपने आपको तीसमारखां समझते हैं.
ओछे को संग, रहिमन तजो अंगार ज्यों. ओछे आदमी की संगत को उसी प्रकार छोड़ देना चाहिए जैसे हाथ में यदि अंगारा आ जाए तो तुरंत हाथ झटक के छोड़ देते हैं.
ओछे नर के पेट में रहे न मोटी बात, आध सेर के पात्र में कैसे सेर समात. आमतौर पर इसका बाद वाला हिस्सा ही बोला जाता है. अर्थ है कि किसी मूर्ख व्यक्ति में अधिक ज्ञान कहाँ से समा सकता है, या ओछा अधिक आदमी धन पाने पर इतराने लगता है.
ओछे पर एहसान करना, जैसे बालू में मूतना. बालू में पेशाब करने पर उसका निशान नहीं पड़ता इसी प्रकार ओछे व्यक्ति का कितना भी बड़ा काम करो वह उसका एहसान नहीं मानता.
ओछो मन्त्री राजै नासै, ताल बिनासै काई, सुक्ख साहिबी फूट बिनासै, घग्घा पैर बिवाई. ओछा मंत्री राज्य का विनाश कर देता है, तालाब को काई बिगाड़ देती है, राज्य और शासन को आपसी फूट खत्म कर देती है और बिबाई पैर को बेकार कर देती है.
ओछों के ढिंग बैठ कर अपनी भी पत जाए. ओछे व्यक्तियों के साथ बैठ कर अपना स्वयं का मान सम्मान कम होता है.
ओझा कमिया, बैद किसान, आँड़ बैल अर खेत मसान. ओझागिरी करने वाला हलवाहा, वैद्य किसान, बिना बधिया किया बैल (सांड), और श्मशान का खेत, ये चारों विपत्ति के कारण होते हैं.
ओझा पूछे भूत, बैद पूछे रोग. किसी बीमार को ले कर ओझा के पास जाओ तो वह भूत प्रेत की बात करता है और वैद्य के पास जाओ तो वह शारीरिक बीमारी के लक्षण पूछता है.
ओढ़नी की बतास (हवा) लगी. स्त्री की गुलामी करने लगा. (कहते हैं– फलाने को ओढ़नी की हवा लग गई है).
ओनामासी धम बाप पढ़े न हम. ॐ नम: सिद्धं का अपभ्रंश. जो बच्चे पढ़ने से जी चुराते हैं उन के लिए.
ओलती का पानी मंगरे पर नहीं चढ़ता. ओलती – छप्पर का किनारा जहाँ से वारिश का पानी नीचे गिरता है. मंगरा – छत या छप्पर का ऊपरी भाग. कोई उलटी बात कर रहा हो तो उसे समझाने के लिए.
ओलती तले का भूत, सत्तर पुरखों का नाम जाने. घर के अन्दर का आदमी घर का सब हाल जानता है.
ओलों का मारा खेत, बाकी का मारा गाँव और चिलम का मारा चूल्हा कभी न पनपें. जो फसल ओले गिरने से बर्बाद हुई हो, जिस गाँव ने लगान न दी हो और जिस चूल्हे से कोयले निकाल कर बार बार चिलम भरी जाती हो, वे कभी नहीं पनपते.
ओस चाटे प्यास नहीं बुझती. कहावत का अर्थ है किसी को आवश्यकता से बहुत कम चीज़ मुहैया कराना. रूपान्तर – होंठ चाटने से प्यास नहीं बुझती.
ओस से घड़े नहीं भरते. अत्यंत सीमित साधनों से बड़े कार्य नहीं किए जा सकते.
औंघते को ठेलने का सहारा. जरा सी सलाह से असमंजस दूर हो जाना. जो आदमी सोया हो उसे तो जोर से धक्का दे कर उठाना पड़ता है पर जो ऊंघ रहा हो वह हलके से ठेलने से ही सावधान हो जाता है.
औंधी खोपड़ी उल्टा मत. मूर्ख का विचार उल्टा ही होता है.
औंधे घड़े का पानी, मूरख की कही कहानी. जिस प्रकार उलटे रखे हुए घड़े में पानी नहीं होता उसी प्रकार मूर्ख की बात में कोई सार नहीं होता.
औंधे मुँह गिरे तो दंडवत. कोई किसी के सामने अचानक औंधे मुँह गिर पड़ा तो बोला कि मैं दंडवत कर रहा हूँ. बिगड़े हुए काम को संभालने की चतुराई. अचानक आई परेशानी से भी लाभ उठाने की कला.
औगुन ऊपर गुण करे, ताको नाम सपूत. सबसे श्रेष्ठ आदमी वही है जो बुराई का बदला भलाई से दे.
औघट चले न चौपट गिरे. बहुत तेज या गलत तरीके से चलोगे तो धड़ाम से गिरोगे. गलत काम नहीं करोगे तो नुकसान होने का डर नहीं होगा.
और किसहू की भूख न जानें, अपनी भूख आटा सानें. स्वार्थी व्यक्ति के लिए. और किसी की भूख की परवाह नहीं है, खुद को भूख लगी तो आटा मलने चले.
और की औषध है सजनी, सुभाव की औषध है न कछू. और बहुत सी बातों का इलाज है पर गलत स्वभाव का कोई इलाज नहीं है.
और की बुराई, अपने आगे आई. 1. किसी और द्वारा किये गये गलत काम का फल हमको मिला. 2. हमने दूसरे का बुरा किया वही बाद में हमारे आगे आया.
और दिन खीर पूड़ी, परब के दिन दांत निपोड़ी. सामान्य दिनों में इतने गुलछर्रे उड़ाना कि त्यौहार के दिन जेब खाली रहे. (दांत निपोड़ना – खिसियाहट भरी हंसी हँसना).
और बात खोटी, सही दाल रोटी. मनुष्य की सबसे प्रधान आवश्यकता भोजन है. जब तक पेट न भरे सारे
औरत का काम प्यारा होता है चाम नहीं (चाम से क्या प्रीत, काम से प्रीत). स्त्री की सुन्दरता कुछ दिन तक सब को आकर्षित कर सकती है, अंततः उस का आदर उस के काम से ही होता है.
औरत का खसम मर्द, मर्द का खसम रोज़गार. स्त्री का सहारा उसका पति होता है और पति का सहारा उसका रोज़गार जिससे वह घर चलाता है.
औरत किसकी, जो पास रखे उसकी. स्त्री उसी को अपना समझती है जो सब प्रकार से उसका ध्यान रखे.
औरत की जात, केरा के पात. स्त्री जाति केले के पत्ते के समान कोमल होती है.
औरतों की मति चोटी में होती है. किसी दिलजले मर्द का कथन.
औरों की नजर इधर उधर, चोर की नजर बकरी पर. चोर का ध्यान केवल उसी चीज़ पर रहता है जिसे वह चुराना चाहता है.
औरों को नसीहत, खुद मियां फजीहत. खुद गलत काम करना व औरों को उपदेश देना.
औषध बाको दीजिये, जाके रोग शरीर. जिसको कोई बीमारी हो उसी को दवा देनी चाहिए.
औसत मेरा ज्यों का त्यों, कुनबा मेरा डूबा क्यों. किसी पढ़े लिखे मूर्ख व्यक्ति द्वारा बिना बुद्धि का प्रयोग किए किताबी ज्ञान द्वारा कोई काम करने पर यह कहावत प्रयोग करते हैं. सन्दर्भ कथा – गणित के एक शिक्षक अपने परिवार के साथ एक छोटी नदी पार कर रहे थे. नदी के बीच में पहुँचे तो पत्नी ने कहा, सुनो नदी गहरी है, कहीं हम डूब तो नहीं जाएंगे. इस पर उन्होंने फीता निकाल कर नदी की गहराई नापी जो चार फुट थी. फिर उन्होंने अपनी, अपनी पत्नी की और बच्चों की लम्बाई नाप कर उसका औसत निकाला तो साढ़े चार फुट आया. उन्होंने सोचा सब निकल जाएंगे.
परिवार जब नदी पार करने लगा तो पत्नी और बच्चे डूबने लगे. किनारे बैठे लोगों ने उन्हें बचाया. शिक्षक महोदय ने किनारे पहुँच कर सोचा कि हिसाब लगाने में कोई गलती तो नहीं हुई. फिर हिसाब जोड़ा तो वही साढ़े चार फुट आया. किसी पढ़े लिखे मूर्ख व्यक्ति द्वारा बिना बुद्धि का प्रयोग किए किताबी ज्ञान द्वारा कोई काम करने पर यह कहावत प्रयोग करते हैं.
औसर का चूका आदमी और डाल का चूका बन्दर फिर नहीं संभलते. बन्दर अक्सर एक डाल से दूसरी पर छलांग लगाते हैं. अगर कोई बन्दर डाल पकड़ने में चूक जाए तो संभल नहीं सकता. इसी का उदाहरण दे कर बताया गया है कि कोई व्यक्ति एक बार अवसर का लाभ उठाने से चूक जाए तो फिर वह अवसर हाथ नहीं आता.
औसर के गीत औसर पे गाये जात. अवसर के अनुकूल ही काम अच्छा लगता है
औसर चूकी डोमनी, गावे ताल बेताल. यदि अवसर हाथ से निकल जाए तो व्यक्ति अत्यधिक परेशानी उठाता है. सन्दर्भ कथा – डोमनियां डोम जाति की स्त्रियां होती हैं, जो शादी-ब्याह में लोगों के घर जाकर गाती-बजाती हैं और उसके लिए इनाम पाती हैं. अगर डोमनी मौके पर न पहुँच कर देर से पहुँचती है तो उसे इनाम नहीं मिलता. वह वहाँ इनाम लेने की जिद करती है और अंट शंट व बेसुरा गाने लगती है. कोई मौका हाथ से निकल जाने पर आदमी का दिमाग सही न रहे और वह अंड बंड काम करने लगे तब यह कहावत कही जाती है
औसर चूके, जगत थूके. यदि व्यक्ति सही अवसर पर चूक जाता है तो सभी उसकी थुक्का फजीहत करते हैं.