अधिकतर हिंदी कहावतें उस समय व्यवहार में आई हैं जब बोलचाल की भाषा, पहनावा, खान पान, सिक्के व मुद्रा, तौल की इकाइयाँ, रहन सहन का तरीका, खेती के तौर तरीके, लोक व्यवहार, घर मकानों की वास्तु शैली, शिक्षा, चिकित्सा पद्धति एवं लोक विश्वास आदि आज से बहुत भिन्न थे. आजकल की पीढ़ियों को उसका ज्ञान नहीं के बराबर है. कहावतों के अर्थ के साथ इन सभी बातों को बताने का पूरा प्रयास किया गया है. इस प्रकार की कुछ विशेष जानकारियाँ यहाँ अलग से प्रस्तुत की जा रही हैं. आशा है ये उपयोगी साबित होंगी.
मुद्रा (currency)
हमारी वर्तमान मुद्रा रुपये और पैसे पर आधारित है जिसमें सबसे छोटी इकाई एक पैसा है और सौ पैसे से एक रुपया बनता है. इनके अलग अलग राशि के नोट और सिक्के बनाए जाते हैं. हम में से अधिकतर लोगों ने 1, 2, 5, 10, 20, 25, 50 पैसे व 1, 2, 5, 10 रूपये के सिक्के देखे होंगे. एक रूपये से लेकर दो हजार रूपये तक के नोट तो सभी ने देखे होंगे. पहले के जमाने में पैसे की कीमत बहुत अधिक होने के कारण पैसे से भी छोटे सिक्के चलते थे. रूपये को सोलह आने में बांटा जाता था और एक आने में चार पैसे होते थे. उस समय उपलब्ध सिक्के इस प्रकार थे –
1 रुपया =1 6 आने (चौसठ पैसे), अठन्नी (अधेली) = आठ आने, चवन्नी = चार आने, 1 आना = चार पैसे,
अधन्ना (टका) = दो पैसे, 1 पैसा = दो अधेला = तीन पाई = चार छदाम, 1 छदाम = 2 दमड़ी, 1दमड़ी = 12 कौड़ी
एक रूपये में सोलह आने होते हैं इसलिए सौ प्रतिशत सही को सोलह आने सही भी बोला जाता है.
तौल की इकाइया (weights) भी उस समय एकदम अलग थीं
8 रत्ती = 1 माशा (रत्ती से छोटी तोल के लिए खसखस, चावल और धान का प्रयोग होता था)
12 माशे= 1 तोला, एक तोला = लगभग 11.66 ग्राम, 5 तोले = 1 छटांक, 4 छटांक =1 पाव, 4 पाव = 1 सेर
एक सेर = लगभग 933 ग्राम, 5 सेर = 1 पंसेरी (1 धड़ी) 40 सेर = 1 मन मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के बहुत से भागों में अनाज को तोलने के स्थान पर निश्चित माप वाले बर्तनों से मापते हैं. सोली में लगभग 500 ग्राम अनाज आता है. पैली (पायली) में लगभग 2 किग्रा अनाज समाता है.. 20 पैली = 1 खंडी
लम्बाई (length) की इकाइयाँ
1 इंच = 8 सूत = 2.54 सेंटीमीटर, 12 इंच = 1 फुट = 30.48 सेंटीमीटर, 3 फुट = 1 गज = 0.91 मीटर
1 मील = 8 फर्लांग = 1760 गज = 1.61 किलोमीटर, 1 फर्लांग = 220 गज, रस्सी = पचहत्तर हाथ जितनी दूरी.
दूरी नापने के लिए एक इकाई प्रयोग होती थी ‘कोस’ और एक पौराणिक इकाई है ‘योजन’. 1 योजन = 4 कोस
1 योजन में कितने किलोमीटर होते हैं इस पर एक मत नहीं है. यह 12.8 से 16 तक हो सकते हैं. 1 कोस = 2 मील.
कपड़े इत्यादि को नापने के लिए निम्न इकाइयाँ प्रचलन में थीं
1 गज = 2 हाथ, 1 हाथ = 8 गिरह, 1 गिरह = 3 अंगुल
क्षेत्रफल (area) की इकाइयाँ
1 बीघा = 20 बिस्वाय 1 बिस्वा = 20 बिस्वांसी, 1 एकड़ = 5.87 बीघा = 4840 गज
एक बीघे में बीस बिस्वे होते हैं इसलिए सौ प्रतिशत सही को बीसों बिस्वे सही भी कहा जाता है.
(1 बीघे में कितने वर्ग गज होते हैं यह हर स्थान पर अलग नाप है, कहीं 756, कहीं 825 तो कहीं 1600).
कहावतों में एक शब्द प्रयोग होता है ‘चप्पा’. इसका अर्थ है चार अंगुल जगह.
समय (time) की इकाइयाँ
पलक झपकने के समय को निमेष कहते हैं. 1 निमेष = 0.43 सेकंड, 3 निमेष = 1 क्षण, 1 घड़ी = 60 पल = 24 मिनट,
1 मुहूर्त = 2 घड़ी = 48 मिनट, 30 मुहूर्त = 60 घड़ी = 24 घंटे, 7 दिन = 1 सप्ताह, 2 सप्ताह = 1 पक्ष (कृष्ण व शुक्ल)
2 पक्ष = 1 चन्द्र मास, 2 मास = 1 ऋतु, 6 ऋतुएँ = 1 वर्ष, 6 ऋतुएँ हैं दृ बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर, हेमंत
कहावतों की भाषा में ऐसे बहुत से शब्द प्रयोग होते हैं जो अब हिंदी भाषा में प्रचलित नहीं हैं. इनका अर्थ जाने बिना बहुत सी कहावतों का अर्थ समझने में कठिनाई होती है, इसलिए इनके अर्थ यहाँ दिए जा रहे हैं-
परिवार के रिश्ते –
पुत्र – बेटा, लाल, जाया, छोरा, पुत्री – बेटी, धी, धिया, जाई, छोरी, माँ – माई, अम्मा, महतारी
पत्नी – घरवाली, घराली, जोरू, जुरुआ, जोय, मेहरी, मेहरारू, तिरिया पति-भतार, भरतार, घरवाला, खसम
बेटी का पति – दामाद, जमाई, बहन का बेटा – भांजा, भनैज माँ की बहन – मौसी, खाला
बेटे की बहू – बहू,पतोहू, पुत्रवधू , भाई की पत्नी – भावज, भाभी, भौजी, भौजाई, पति की दूसरी पत्नी-सौत
पति का बड़ा भाई – जेठ, भसुर साले की पत्नी – सलहज, सलैज मामा की पत्नी – मामी, मुमानी
जिस स्त्री के पति की मृत्यु हो जाए – विधवा, रांड (रांड शब्द को स्त्री के लिए अपमान सूचक संबोधन के लिए एवं चरित्रहीन स्त्री के
लिए भी प्रयोग करते हैं) जिस पुरुष की पत्नी की मृत्यु हो जाए – विधुर, रंडुआ
अन्य शब्द –
अघाना, अघाया हुआ – जिसका पेट भरा हो, अनकर, अनका – दूसरे का, आन्हर, अन्हरा – अंधा
उतावल, तावल – उतावलापन, जल्दबाजी, ऊसर – बंजर भूमि, कथरी – गुदड़ी, करम – कर्म, कर्मफल (भाग्य),
कूकुर, कूकर – कुत्ता, कोइरी – सब्जी उगाने वाला किसान, कोरी – बुनकर, गँवार – अनपढ़ या मूर्ख
गिरहकट – जेबकतरा, गोर – कब्र (उर्दू), गेंवड़ा – गाँव के बाहर का हिस्सा,
गौन – घोड़े या ऊंट पर सामान लादने का थैला, घूरा – कूड़े का ढेर छिनाल – दुश्चरित्र स्त्री, छिनाला – चरित्र हीनता का कार्य, जती – यति, यती (सन्यासी), जरख – लकडबग्घा ठिया – स्थान, ठीकरे – टुकड़े, ठौर – स्थान, ढोर – पालतू पशु (गाय, भैंस, बकरी आदि), तत्ता – गरम
ताजी, तुर्की – घोड़ों की किस्में, तिरिया, नार – त्रिया, स्त्री, तिलंगा – अंग्रेजी फौज का भारतीय सिपाही.
तीत, तीता – कड़वा, तिताई – कड़वाहट, तुरक, तुर्क – तुर्की का वासी (कहावतों में मुस्लिम के लिए प्रयुक्त)
द्वारे – घर से बाहर, पाहुना – अतिथि, मेहमान, पनही, पन्हैया – जूता, पीर – 1. पीड़ा, 2. मुसलमानों के धर्मगुरु,
पैंठ – बाजार, बटाऊ – राहगीर, बतास – हवा, बनिज – व्यापार, बरद, बरधा – बैल, बांचना – पढ़ना, बाट जोहना – प्रतीक्षा करना, बामन, बाभन – ब्राह्मण, ब्यारी, ब्यालू – रात का भोजन,
ब्याहना – 1. विवाह कर देना, 2. गाय भैंस आदि का बच्चा जनना, भड़भूजा – भाड़ भूनने वाला, मुस, मूसा – चूहा,
मूंड़, मूंड़ी – सिर (मुंड), मोरी – नाली, रांधना – पकाना, रार – झगड़ा, लुआठ – जलती हुई लकड़ी,
सखी – 1.सहेली, 2. दानी व्यक्ति (उर्दू), सूम – कंजूस, हगास – शौच जाने की इच्छा,
खेती सम्बन्धी कहावतों में कई स्थान पर नक्षत्रों का नाम आता है –
कुल 27 नक्षत्र हैं जिन्हें 3 समूहों में बांटा गया है. शुभ नक्षत्र – रोहिणी, आश्विन, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, चित्रा, रेवती, श्रवण, स्वाति, अनुराधा, उत्तराभाद्रपद, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा फाल्गुनी, धनिष्ठा एवं पुनर्वसु. मध्यम नक्षत्र – पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, विशाखा, ज्येष्ठा, आर्द्रा, मूल और शतभिषा आते हैं. अशुभ नक्षत्र – भरणी, कृतिका, माघ, अश्लेषा. इन 27 नक्षत्रों के अतिरिक्त एक नक्षत्र और भी होता है जिसे अभिजित कहते हैं
कहावतों में दिशाओं के नाम भी आतें हैं –
दसों दिशाओं के नाम हैं- 1. अग्निकोण-पूर्व दक्षिण का कोना, 2. ईषानकोण-उत्तर पूर्व का कोना, 3. नैऋत्य कोण-दक्षिण पश्चिम का कोना, 4. वायव्य कोण-पश्चिम उत्तर का कोना, 5. पूर्व, 6. पश्चिम, 7. उत्तर, 8. दक्षिण, 9. पाताल (अधो दिशा), 10. आकाश (ऊर्ध्वदिशा)।