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अंग लगी मक्खियाँ पीछा न छोड़तीं. जो लोग कोई लाभ पाने के लिए किसी के पीछे ही पड़ जाएं उन के लिए यह कहावत प्रयोग करते हैं. जानवर के घाव पर अगर मक्खियाँ लग जायें तो उसकी जान तक ले लेती हैं.
अंगनवा न टेढ़ बहुरिया टेढ़. आंगन टेढ़ा नहीं है, बहू की चाल ही टेढ़ी है. इस से मिलती जुलती कहावत है – नाच न आवे आंगन टेढ़ा.
अंगिया का ही ओढ़ना, अंगिया का ही बिछौना. अत्यधिक निर्धनता एवं साधनहीनता की स्थिति.
अंगूर खट्टे हैं. जब कोई चीज प्रयास के बाबजूद प्राप्त न हो सके तो उसमे दोष निकालकर उस वस्तु की उपेक्षा कर देना. सन्दर्भ कथा – एक बार एक लोमड़ी अंगूरों के बाग से गुजर रही थी. अंगूरों को देखकर लोमड़ी के मुंह में बार-बार पानी भर आता था. लोमड़ी उछल कर अंगूरों के गुच्छों तक पहुंचने की कोशिश करने लगी. पर अंगूर के गुच्छे उसकी उछाल से कुछ ही दूर रह जाते थे. अंत में लोमड़ी थक हार कर अपने घर की ओर चल दी. पास ही में पेड़ पर बैठे एक कौवे ने पूछा, क्या बात है, अंगूर नहीं खाओगी? तो लोमड़ी तमक कर बोली, अरे भैया ये अंगूर खट्टे हैं. कौआ हंस कर बोला, जो वस्तु प्राप्त नहीं हो सकती उसे खराब बताना ही ठीक है. इसी प्रकार की एक कहावत है – हाथ न पहुंचे, थू कौड़ी.
अंग्रेजी राज, न तन को कपड़ा न पेट को नाज. अंग्रेजों के राज में भारतीयों की दशा बहुत खराब थी यह बताने वाली कहावत.
अंजन न सहें, आँख का जाना सह लें. काजल लगाने का कष्ट सहन नहीं करेंगे, आँख चली जाए वह मंजूर है. छोटे से कष्ट से बचने के लिए बड़ा खतरा मोल लेना.
अंटी तर, दिल चाहे सो कर. अंटी तर होना माने गाँठ में पैसा होना. पास में पैसा हो तो जो चाहे सो करो.
अंटी में न धेला, देखन चली मेला. पहले के लोग धोती या पाजामा पहनते थे जिस में जेब नहीं होती थी. पैसे इत्यादि को एक छोटी सी थैली में रख कर धोती की फेंट में बाँध लेते थे या पजामे में खोंस लेते थे. इसको बोलचाल की भाषा में अंटी कहते थे. धेला एक सिक्का होता था जो कि पैसे से आधी कीमत का होता था. कहावत का अर्थ है – रुपये पैसे पास नहीं हों फिर भी तरह तरह के शौक सूझना.
अंडा चींटी बाहर लावै, घर भागो अब वर्षा आवै. लोक मान्यता है कि चींटी अगर चींटी अगर अपने अंडे एक जगह से दूसरे स्थान पर ले जा रही हो तो वर्षा आने की अत्यधिक संभावना होती है.
अंडा पेट में, बच्चा निकल के उड़ गया. समय से बहुत पहले ही कोई काम करने की कोशिश करने वाले अति उत्साही व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए.
अंडा सिखावे बच्चे को कि चीं चीं न कर. जब कोई आयु, बुद्धि या पद में छोटा व्यक्ति अपने से बड़े व बुद्धिमान व्यक्ति को कोई अनावश्यक सीख देता है तो यह कहावत कही जाती है.
अंडुवा बैल, जी का जवाल. स्वतंत्र और उच्छृंखल व्यक्ति को सांड के समान बताया गया है जिसे संभालना मुश्किल काम होता है. (अंडुवा – बिना बधियाया हुआ बैल अर्थात सांड. सांड से खेती नहीं कराई जा सकती इस लिए बछड़े के अंडकोष नष्ट कर के उसे बैल बना दिया जाता है जोकि नपुंसक और शांत स्वभाव का होता है).
अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई. जब मेहनत कोई और करे और उसका लाभ कोई दूसरा उठाए तो यह कहावत कही जाती है. कोयल इतनी चालाक होती है कि कौए के घोंसले में अंडे दे आती है. कौआ उन्हें अपने अंडे समझ कर सेता है. अंडे में से बच्चे निकलते हैं तो मालूम होता है कि वे कोयल के बच्चे हैं. सन्दर्भ कथा 2. कौए और कोयल के विषय में एक कहानी कही जाती है. कोयल इतनी चालाक होती है कि खुद घोंसला नहीं बनाती है. जब अंडे देने का समय आता है तो वह कौए के घोंसले में अंडे दे आती है. कौआ बेचारा इतना मूर्ख होता है कि उन्हें अपने अंडे समझ कर सेता है और उन की रक्षा करता है. अंडे में से बच्चे निकलते हैं तो मालूम होता है कि वे कोयल के बच्चे हैं. जब मेहनत कोई और करे और उसका लाभ कोई दूसरा उठाए तो यह कहावत कही जाती है.
अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे. इसका शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट ही है. इस का उदाहरण इस तरह दे सकते हैं- किसी व्यापार में बहुत नुकसान होता है लेकिन व्यापार बंद करने की नौबत नहीं आती. तो सयाने लोग बच्चों से कहते हैं – बेटा कोई बात नहीं! व्यापार बचा रहेगा तो बाद में बहुतेरा लाभ हो जाएगा.
अंत बुरे का बुरा. जो हमेशा सब का बुरा करता है उसका अंत भी बुरा ही होता है.
अंत बुरे का सब बुरा. अंत बढिया तो गुजरा हुआ सब बढिया अंत बुरा तो सब बुरा.
अंत भला तो सब भला. किसी कार्य में कितने भी उतार चढ़ाव या बाधाएं आएं, यदि अंत में कार्य सफलता पूर्वक संपन्न हो जाए तो यह कहावत कही जाती है. इंग्लिश में इस प्रकार कहा जाता है All is well that ends well.
अंत भले का भला. जो सब का भला करता है अंत में उसका भला अवश्य होता है.
अंतड़ी का गोश्त गोश्त नहीं, खुशामदी दोस्त दोस्त नहीं. जिस प्रकार आंत को गोश्त नहीं माना जाता उसी प्रकार खुशामद करने वाले को दोस्त नहीं माना जा सकता.
अंतड़ी में रूप, बकची में छब. अच्छा भोजन करने से रूप निखरता है और क्योंकि भोजन आँतों में पचता है इसलिए कहा गया है कि रूप आँतों में बसता है. छवि को निखारने वाले अच्छे कपड़े और गहने बक्से (बकची) में रखे जाते हैं इसलिए कहा गया कि छवि (सुन्दरता) बकची में बसती है.
अंतर अंगुली चार का झूठ सांच में होय. आँख और कान में चार अंगुल की दूरी होती है. आँख का देखा सच और कान का सुना झूठ. इंग्लिश में कहावत है – The eyes believe themselves, the ears believe others.
अंतर राखे जो मिले, तासों मिले बलाय. जो मन में अंतर रखता हो उस से मिलने की कोई जरूरत नहीं.
अंतरगति औरै कछू, मुख रसना कछु और, दादू करनी और कछु, तिनको नांही ठौर. रसना – जीभ, ठौर – स्थान. जिन के मन में कुछ, जबान पे कुछ और करनी कुछ और है उनको मुक्ति नहीं मिल सकती.
अंदर से काले, बाहर से गोरे. जो लोग अंदर से बेईमान और चरित्रहीन होते हैं और बाहर से बहुत ईमानदार होने का दिखावा करते हैं (सफेदपोश).
अंदर होवे सांच तो कोठी चढ़ के नाच. जिस के मन में सच हो उसे किसी का डर नहीं, वह छत पर चढ़ कर नाच सकता है. (कोठी, कोठा – छत).
अंध कंध चढ़ि पंगु ज्यों, सबै सुधारत काज. पंगु – लंगड़ा. अंधा देख नहीं सकता और लंगड़ा चल नहीं सकता. यदि अंधे के कंधे पर लंगड़ा बैठ जाए तो दोनों एक दूसरे के पूरक हो जाते हैं.
अंधरी गैया, धरम रखवाली. अंधी गाय धर्म की रक्षा करने वाली होती है, अर्थात उसकी सेवा से विशेष पुण्य मिलता है. भाव यह है कि जो अत्यधिक दीन-हीन हो उसकी सेवा से अधिक पुण्य मिलता है..
अंधा आगे ढोल बाजै, ये डमडमी क्या है. अंधे के आगे ढोल बजाओ तो वह कुछ नहीं समझ पाता. इसी प्रकार यदि किसी मूर्ख व्यक्ति के सामने कला का प्रदर्शन करने से कोई लाभ नहीं होता.
अंधा आगे रस्सी बंटे, पीछे बछड़ा खाए. अंधा आदमी बेचारा बैठा बैठा रस्सी बंट रहा है और पीछे से बछड़ा उसे खाता जा रहा है. जब मनुष्य अपने परिश्रम से उपार्जित धन की रक्षा न कर सके और दूसरे उसका उपभोग करें तब कहते हैं. सरकार अंधी हो तो जन हित के कामों का भी यही अंजाम होता है.
अंधा एक बार ही लकड़ी खोता है. अंधे की लकड़ी अगर खो जाए तो उसे इतनी परेशानी होती है कि वह आगे से उसका बहुत ध्यान रखता है. कोई बड़ी गलती एक बार हो जाने पर व्यक्ति आगे के लिए सतर्क हो जाता है.
अंधा और बदमिजाज. अंधा व्यक्ति काफी कुछ दूसरों की सहायता पर निर्भर होता है. यदि वह बदमिजाज होगा तो कोई उस की सहायता नहीं करेगा और वह ज्यादा दुख पाएगा. लाचार व्यक्ति को हमेशा विनम्र होना चाहिए.
अंधा कहे ये जग अंधा. जब किसी व्यक्ति में कोई कमी हो और वह बहस करे कि यह कमी तो सब में है.
अंधा किसकी तरफ उंगली उठाए. अंधा खुद कुछ नहीं देख सकता इसलिए किसी पर आरोप नहीं लगा सकता.
अंधा क्या चाहे दो आँखे. अंधे व्यक्ति की सबसे बड़ी इच्छा होती है की उसे दो आँखें मिल जाएं. व्यक्ति को जिस चीज़ की अत्यधिक आवश्यकता है यदि वही देने के लिए आप उससे पूछें तो यह कहावत कही जाएगी. रूपान्तर – लंगड़ा क्या चाहे, दुई गोड़. गोड़ – पैर.
अंधा क्या जाने बसंत की बहार. वसंत ऋतु में प्रकृति का सौंदर्य अद्भुत होता है, पर जो बेचारा अंधा है वह तो उसका आनंद नहीं ले सकता. उदाहरण के तौर पर श्री कृष्ण की बाल लीलाओं के वर्णन में जो रस की प्राप्ति होती है उसे अधर्मी और विधर्मी लोग कैसे जान सकते हैं.
अंधा खोदे काँदी, मेह गिने न आंधी. अंधा आदमी घास खोदते समय न तो मेह की परवा करता है, न आँधी की. भले बुरे की परवाह किए बिना आँख मूंद कर काम करना.
अंधा गाए बहरा बजाए. जहाँ दो अयोग्य व्यक्ति मिल कर कोई काम करें.
अंधा गुरू बहरा चेला, मागें गुड़ देवे ढेला (मांगे हरड़ दे बहेड़ा). जब दो विपरीत गुण वाले व्यक्ति एक साथ हो जाएँ. न गुरु को चेले में कोई कमी दिखती है, न चेले को गुरु की कोई बात समझ में आती है.
अंधा घोड़ा थोथा चना, जितना खिलाओ उतना घना (अंधा चूहा, थोथे धान). गरीब और अपाहिज व्यक्ति को जो कुछ भी मिल जाए वही उस के लिए बहुत है. (थोथा – घुना हुआ, खोखला), (घना – अधिक मात्रा में)
अंधा घोड़ा बहिर (बहरा) सवार, दे परमेसुर ढूँढ़नहार. घोड़ा अंधा होगा तो कहां का कहां पहुंचेगा, सवार बहरा होगा तो किसी से रास्ता कैसे पूछेगा, दो अयोग्य लोगों की जोड़ी की तो भगवान ही सहायता कर सकता है.
अंधा जाने आँखों की सार. आँखों की कीमत क्या है यह अंधा ही जान सकता है, आँख वाले नहीं. व्यक्ति को जो सुख सुविधाएँ मिली हुई हैं उनकी कीमत वह नहीं समझता.
अंधा जाने, अंधे की बला जाने. माना कि अंधे व्यक्ति को बहुत परेशानियाँ हैं लेकिन मैं भी किस किस के लिए और कहाँ तक परेशान होऊं. किसी की सहायता करते करते जब आप परेशान हो जाते हैं तब ऐसा बोलते हैं.
अंधा तब पतियाए जब दो आँखों देखे. पतियाना – विश्वास करना. अंधा व्यक्ति किसी बात पर तभी पूरी तरह विश्वास कर सकता है जब वह स्वयं उसे देख ले. अर्थ है कि मूर्ख को हर बात का प्रत्यक्ष प्रमाण चाहिए.
अंधा देखे आरसी, कानी काजल देय. अपात्र को कोई वस्तु मिल जाना. अंधे के लिए आरसी (छोटा दर्पण) और कानी के लिए काजल की कोई उपयोगिता नहीं है.
अंधा बगुला कीचड़ खाय. मजबूरी में इंसान को बहुत कुछ सहन करना पड़ता है. अंधा बगुला मछली नहीं पकड़ सकता इसलिए बेचारा कीचड़ खाने पर मजबूर हो जाता है.
अंधा बजाज कपड़ा तौल कर देखे. अंधा बजाज कपड़े को देख नहीं सकता तो हाथ में उठा कर उसके वजन से अंदाज़ लगाता है कि यह कौन सा कपड़ा है.
अंधा बांटे रेवड़ी फिर फिर अपनेहु देय. स्वार्थ में अंधा व्यक्ति जब कुछ भी बांटता है तो अपने को या अपनों को ही देता है. आजकल के राजनीतिज्ञों पर यह कहावत बिलकुल सही बैठती है.
अंधा मुर्गा थोथा धान, जैसा नाई वैसा जजमान. अंधे मुर्गे को खोखले धान ही खाने को मिलेंगे. नाई घटिया होगा तो उसे जजमान भी घटिया मिलेंगे.
अंधा मुल्ला, टूटी मस्जिद. मुल्ला जी अंधे होंगे तो मस्जिद में जो भी टूट फूट होगी उसे दिखाई नहीं देगी. यदि घर का मुखिया अयोग्य और लापरवाह है तो घर में सब ओर अव्यवस्था दिखाई देगी.
अंधा राजा बहिर पतुरिया, नाचे जा सारी रात. बहिर – बहरी, पतुरिया – वैश्या या नर्तकी. भारी अव्यवस्था की स्थिति. राजा अंधा है उसे कुछ दिखता नहीं है और नर्तकी बहरी है वह न संगीत सुन सकती है और न कोई आदेश. लोकतंत्र में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका सभी की कुछ ऐसी ही दशा है.
अंधा शक्की, बहरा बहिश्ती. बहिश्त माने स्वर्ग. बहरे को बहिश्ती कहा गया क्योंकि वह कुछ सुनता ही नहीं है, लिहाजा भलाई बुराई से दूर रहता है. अंधे को कुछ दिखाई नहीं देता इसलिए वह हर आहट पर शक करता है.
अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने खूब मिलाई जोड़ी. दो अयोग्य व्यक्ति मिल कर कोई काम कर रहे हों तो उन का मज़ाक उड़ाने के लिए यह कहा जाता है.
अंधा हाथी अपनी ही फ़ौज को मारे (लेंड़ा हाथी अपनी ही फ़ौज मारे). लेंड़ा – डरपोक. हाथी अंधा होगा या डरपोक होगा तो इधर उधर भाग कर अपनी सेना को ही कुचलेगा.
अंधाधुंध की सायबी, घटाटोप को राज. सायबी – शासन. मूर्ख राजा के राज में कुटिल लोगों की बन आती है.
अंधाधुंध के राज में गधे पंजीरी खाएँ. जिस देश में बेईमानी और अराजकता हो वहाँ अयोग्य व्यक्तिओं की चांदी हो जाती है.
अंधाधुंध मनोहरा गाए. बिना किसी की परवाह किए कोई बेतुका काम करते जाना.
अंधियारे में परछाईं भी साथ छोड़ देती है. बुरे दिनों में निकट से निकट संबंधी और मित्र भी साथ नहीं देते.
अंधी आँख में काजल सोहे, लंगड़े पाँव में जूता. अपात्र को सुविधाएं मिलना.
अंधी घोड़ी खोखला चना, खावे थोड़ा बिखेरे घना. घोड़ी अंधी है इसलिए खा कम रही है, बिखेर ज्यादा रही है. (मूर्ख या अहंकारी व्यक्ति वस्तु का उपयोग कम और बर्बादी अधिक करता है).
अंधी देवियाँ, लूले पुजारी. अयोग्य गुरु या शासक और उसके उतने ही नालायक चमचे. आजकल के परिप्रेक्ष्य में कुछ राजनैतिक दलों के विषय में ऐसा कहा जा सकता है.
अंधी नाइन, आइने की तलाश. कोई आदमी ऐसी चीज़ मांग रहा हो जिस का उस के लिए कोई उपयोग न हो.
अंधी पीसे कुत्ते खाएँ. चाहे घर की व्यवस्था हो या व्यापार हो, यदि आप आँखें बंद किए रहंगे तो चाटुकार लोग, धोखेबाज लोग और नौकर चाकर सब खा जाएंगे.
अंधी पीसे पीसना, कूकुर घुस घुस खात, जैसे मूरख जनों का, धन अहमक ले जात. ऊपर वाली कहावत की भांति.
अंधी भैंस वरूँ में चरे. वरूँ – जहां घास कम हो. मूर्ख या अभागे आदमी को अच्छे अवसरों की पहचान नहीं होती इसलिए वह उनसे वंचित रहता है.
अंधी मां निज पूतों का मुँह कभी न देखे. किसी अभागे व्यक्ति के लिए कही जाने वाली कहावत.
अंधे अंधा ठेलिया दोनों कूप पड़ंत (अंधे को अंधा राह दिखाए तो दोनों कुँए में गिरते हैं). अर्थ स्पष्ट है. कम से कम एक तो आँख वाला होना चाहिए.
अंधे का हाथ कंधे पे. अंधे को हमेशा किसी का सहारा लेना पड़ता है.
अंधे की गुलेल कहीं भी लगे. अंधा गुलेल चलाएगा तो पत्थर किसी को भी लग सकता है. मूर्ख और अहंकारी अक्ल के अंधे व्यक्ति के हाथ में ताकत आ जाए तो वह किसी को भी कुछ भी नुकसान पहुँचा सकता है.
अंधे की जोरू का राम रखवाला. अत्यधिक दीन हीन व्यक्ति का ईश्वर ही सहारा होता है.
अंधे की दोस्ती, जी का जंजाल. अंधे से दोस्ती करो तो हर समय उस की सहायता करनी होती है. लाचार व्यक्ति की सहायता करने में बहुत मुसीबतें हैं.
अंधे की पकड़ और बहरे को बटको, राम छुड़ावे तो छुटे नहीं तो सर ही पटको. बटका – दांतों की पकड़. अंधा आदमी बहुत कस के पकड़ता है और बहरा आदमी बहुत जोर से काटता है.
अंधे की बीबी, देवर रखवाला. 1.अंधे की पत्नी की रखवाली अगर किसी भी पर पुरुष को सौंप दी जाएगी (चाहे वह देवर ही क्यों न हो) तो खतरा हो सकता है. 2. अंधे की पत्नी की रखवाले अंधे के छोटे भाई बन जाते हैं.
अंधे की मक्खी राम उड़ावे. निर्बल का सहारा भगवान.
अंधे की लुगाई, जहाँ चाहे रमाई. अंधे की पत्नी यदि कोई गलत कार्य करे तो अंधा उसे रोक नहीं सकता. यहाँ अंधे से अर्थ केवल आँख के अंधे से ही नहीं, अक्ल के अंधे से भी है.
अंधे कुत्ते को खोलन ही खीर. खोलन – मूर्ति पर चढ़ाया जाने वाला दूध मिला जल. मजबूर आदमी को जो मिल जाए उसी में संतोष करना पड़ता है.
अंधे के आगे दीपक. अंधे को दीपक दिखाना या मूर्ख को ज्ञान देने का प्रयास करना बराबर है.
अंधे के आगे रोवे, अपने नैना खोवे. यदि कोई व्यक्ति बहुत परेशानी में है और किसी के आगे रो रहा है तो उसको देख कर दूसरे को दया आ जाती है. लेकिन यदि आप किसी अंधे के सामने रोएंगे तो उसे कुछ दिखेगा ही नहीं. आप रो रो कर अपनी ही आँखें खराब करेंगे. कहावत के द्वारा यह समझाया गया है कि ऐसे आदमी के सामने फरियाद करने से कोई फायदा नहीं जो अक्ल का अंधा हो या अहंकार में अंधा हो.
अंधे के लिए हीरा कंकर एक बराबर. हीरे की चमक को आँखों से ही देखा जा सकता है, टटोल कर नहीं. कहावत का अर्थ है कि अक्ल के अंधे लोग उत्तम और निम्न प्रकार के मनुष्यों और वस्तुओं में भेद नहीं कर सकते.
अंधे के हाथ बटेर लगी. अंधा व्यक्ति लाख कोशिश करे बटेर जैसे चंचल पक्षी को नहीं पकड़ सकता. अगर किसी अयोग्य व्यक्ति को बैठे बिठाए, बिना प्रयास करे कोई बड़ी चीज़ मिल जाए तो ऐसा कहते हैं.
अंधे के हाथ में दरपन सोहे. किसी अपात्र के हाथ में कोई नायाब वस्तु होने पर व्यंग्य.
अंधे के हाथ से लकड़ी मरने पर ही छूटती है. बहुत आवश्यक वस्तु को जीवन भर साथ रखना व्यक्ति की मजबूरी है, जैसे अंधे के लिए लकड़ी, लंगड़े के लिए बैसाखी, दृष्टि बाधित के लिए चश्मा इत्यादि. आजकल के युग में दवाओं को भी इस श्रेणी में रख सकते हैं.
अंधे के हिसाब में दिन रात बराबर. शाब्दिक अर्थ स्पष्ट है. अंधे को क्योंकि दिन में भी नहीं दिखता इसलिए उसके लिए दिन और रात बराबर हैं. कोई मूर्ख व्यक्ति किन्हीं दो बिलकुल अलग अलग बातों में अंतर न समझ पा रहा हो तब भी मज़ाक में ऐसा कहा जाता है.
अंधे को अँधेरे में बहुत दूर की सूझी. कोई मूर्ख आदमी मूर्खतापूर्ण योजना बना रहा हो तो उसका मज़ाक उड़ाने के लिए ऐसा कहा जाता है.
अंधे को अंधा मिला, कौन दिखावे राह. अंधे को अंधा रास्ता नहीं दिखा सकता. अज्ञानी मनुष्य को कोई ज्ञानवान ही रास्ता दिखा सकता है.
अंधे को दीखे हजारीबाग. एक व्यक्ति हजारीबाग घूमने गया. संयोगवश वहां से लौट कर उसकी आँखों की रौशनी चली गई. अब उसके सामने किसी भी शहर की बात करो वह हजारीबाग का वर्णन करने लगता था. अपने सीमित ज्ञान के आधार पर कोई व्यक्ति हर बात में बोलने का प्रयास करे तो यह कहावत कही जाती है
अंधे को भागने की क्यों पड़ी. जो काम आप बिलकुल ही नहीं कर सकते उसे क्यों करना चाहते हैं.
अंधे को सूझे कंधेरे का घर. कंधेरा – जिस के कंधे पर हाथ रख कर चला जाए. अंधे को किसी के कंधे पर हाथ रख कर चलना पड़ता है. वह बेचारा अंधा होते हुए भी उस का घर ढूँढ़ लेता है. जिस से हमें सहारा मिलता है उसे हम कैसे भी खोज लेते हैं.
अंधे ने चोर पकड़ा, दौड़ियो मियां लंगड़े. असंभव और हास्यास्पद बात.
अंधे पूत से निस्संतान भला. आप का कोई ऐसा निकट सम्बन्धी हो जिस से कोई लाभ न हो केवल हानि ही हो, तो उस का न होना अच्छा.
अंधे बाबा राम राम, के आज तुम्हारे यहाँ ही जीमेंगे. किसी असहाय व्यक्ति से जरा सी भी सहानुभूति दिखाओ तो वह गले ही पड़ जाता है.
अंधे मामा से काना मामा अच्छा. कुछ नहीं से कुछ अच्छा. रूपान्तर – नहीं मामा से काना मामा अच्छा.
अंधे रसिया, आइने पे मरें. किसी व्यक्ति द्वारा ऐसी वस्तु की मांग करना जो उसके किसी उपयोग की न हों.
अंधे वाली सीध. किसी ने टेढ़ा मेढ़ा कुछ बनाया हो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
अंधे ससुरे से घूँघट क्या. जब ससुर बहू को देख ही नहीं सकता तो बहू को घूँघट की क्या आवश्यकता.
अंधे से रास्ता क्या पूछना. जिसे स्वयं नहीं दिखता वह किसी को रास्ता क्या बताएगा. जो स्वयं मूर्ख होगा वह किसी को क्या ज्ञान देगा.
अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा. इस कहावत का प्रयोग किसी देश व समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अन्याय और अराजकता को दर्शाने के लिए किया जाता है. संदर्भ कथा 4. एक बार एक सन्यासी अपने चेले के साथ घूमते हुए अंधेर नगरी नाम के एक ऐसे शहर में पहुंचे जहां की शासन व्यवस्था बड़ी अजीब थी. वहां पर मामूली सब्जियां भी एक टके में एक सेर मिल रही थीं और खाजा नाम की खोए से बनी एक बढ़िया मिठाई भी. यह देख कर चेला बहुत खुश हुआ और गुरु जी से बोला, गुरु जी यह तो बहुत अच्छी जगह है हम लोगों को यही रहना चाहिए. गुरुजी ने कहा वत्स, यह बहुत खतरनाक जगह है. यहां रहना खतरे से खाली नहीं है. लेकिन चेला नहीं माना और वहीं रुकने पर अड़ गया. गुरुजी ने कहा, ठीक है तुम रुको मैं जाता हूं. कभी किसी संकट में पड़ो तो मुझे याद करना.
चेला खुशी-खुशी वहां रहने लगा और टके सेर मिठाईयां खा- खा कर खूब मोटा हो गया. एक बार उस राज्य में ककड़ी की चोरी के अपराध में एक चोर पकड़ा गया. राजा ने उसे फांसी की सजा सुनाई और राज्य के लोगों को हुक्म दिया गया की फांसी वाले दिन सभी को वहां उपस्थित रहना है. जल्लाद जब चोर को फांसी पर चढ़ाने चला तो देखता क्या है कि चोर की गर्दन पतली है और फांसी का फंदा मोटा. उसने राजा से पूछा, हुजूर अब क्या करूं? राजा बोला कोई बात नहीं. भीड़ में से छांट लो, जिसकी गर्दन इस फंदे में फिट आ जाए उसे फांसी पर चढ़ा दो (अंधेर नगरी जो ठहरी). संयोग से चेले की गर्दन फंदे में बिल्कुल फिट आ गई तो उसे ही फांसी पर चढ़ाने की तैयारी होने लगी.
अब चेले ने घबरा कर गुरु जी को याद किया. गुरुजी सिद्ध पुरुष थे. उन्होंने जान लिया कि चेला संकट में है और फौरन वहां आ गए. वहां आकर उन्होंने चेले के कान में कुछ कहा. उसके बाद गुरु और चेला आपस में झगड़ने लगे कि
फांसी पर मैं चढूँगा, नहीं मैं चढूँगा. मूर्ख राजा को इस बात पर बड़ा कौतूहल हुआ कि ऐसी क्या बात है जो दोनों ही फांसी पर चढ़ने पर आमादा हैं. उसने गुरुजी से पूछा तो गुरु जी ने बताया, महाराज इस समय ऐसा मुहूर्त है कि जो फांसी पर चढ़ेगा वह सीधा स्वर्ग जाएगा और स्वर्ग का राजा बनाया जाएगा. मूर्ख राजा तुरंत अपने सिंहासन से कूदा और जल्लाद से बोला, मुझे फौरन फांसी पर चढ़ा मैं स्वर्ग का राजा बनूंगा. इस तरह चेले की जान बची तो उसने कसम खाई कि अब कभी ऐसी अंधेर नगरी में नहीं रहेगा.
अंधेरी रात और साथ में रंडुआ. किसी भी स्त्री के लिए खतरनाक स्थिति. रंडुआ – अविवाहित या विधुर पुरुष. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – अंधेरी रात, रंडुए का साथ और जंगल की राह. किसी भी स्त्री के लिए तिहरी कठिन स्थिति. समाज में रंडुए पुरुष को एक स्त्री के प्रति कमजोर चरित्र का माना जाता है.
अंधेरी रात में मूंग काली. अंधेरे में हरी मूंग भी काली दिखाई देती है. अज्ञान के अंधेरे में भी मनुष्य को सत्य का भान नहीं हो पाता.
अंधेरी रैन में रस्सी भी सांप. अँधेरे में व्यक्ति डरने लगता है. व्यक्ति अगर अज्ञान रूपी अन्धकार से घिरा हो तब भी वह छोटी छोटी सांसारिक विपदाओं से और काल्पनिक चीजों जैसे भूत प्रेत इत्यादि से डरने लगता है.
अंधेरे घर में धींगर नाचें. 1. जहाँ न्याय व्यवस्था के अभाव में दबंग लोग मनमानी करें, (धींगर – लम्बा चौड़ा आदमी, भूत) 2. अवैज्ञानिक सोच और अज्ञान के अंधकार में तरह तरह के डर पैदा होते हैं.
अंधेरे घर में सांप ही सांप. इसका अर्थ भी ऊपर की दोनों कहावतों के समान ही है.
अंधेरे में भी हाथ का कौर कान में नहीं जाता. अंधेरे में भी ग्रास मुंह में ही जाता है. अपने स्वार्थ की बात हर परिस्थिति में ठीक से समझ में आती है.
अंधों की दुनिया में आइना न बेच. शाब्दिक अर्थ तो साफ़ ही है. यहाँ अंधे से अर्थ मूर्ख और अहंकारी लोगों से है. आइने में अपनी वास्तविक शक्ल दिखाई देती है जिसे मूर्ख और अहंकारी लोग देखना नहीं चाहते. यहाँ आइने से मतलब आत्म चिंतन से भी है जोकि अहंकारी लोग बिलकुल पसंद नहीं करते.
अंधों द्वारा हाथी का वर्णन. मूर्खो द्वारा किसी महान चीज़ को तुच्छ बताया जाना. सन्दर्भ कथा – छह अंधे आपस में दोस्त थे. एक बार उन्होंने ने सुना कि हाथी नाम का एक बहुत बड़ा जीव होता है. उन के मन में हाथी के बारे में अधिक जानने की जिज्ञासा हुई. वे सब मिल कर जमींदार के पास गए और उससे प्रार्थना की कि वे उस का हाथी देखना चाहते हैं. जमींदार ने उन से कहा कि कोई भी व्यक्ति बिना आँखों से देखे वे हाथी की विशालता का अनुभव नहीं कर सकता. पर अंधे नहीं माने. हार कर जमींदार उन्हें अपने हाथी के पास ले गया और उनसे कहा कि वे छू कर हाथी को महसूस करें.
वे सब हाथी के इर्द गिर्द बिखर गए. उन में से एक अंधे ने हाथी की सूंड पकड़ी. वह बोला हाथी तो सांप जैसा है. दूसरे के हाथ में हाथी की पूंछ आई. वह बोला गलत, हाथी तो रस्सी जैसा है. तीसरे के हाथ हाथी के पैर पर पड़े. वह बोला, अरे हाथी तो खम्बे जैसा है. चौथे के हाथ में हाथी के कान आए. वह बोला , तुम सब पागल हो. हाथी तो सूप (छाज) जैसा है. इसी तरह पांचवें और छठे के हाथ में क्रमश: हाथी का दांत और धड़ आये. उन्होंने उसे भाले और मशक जैसा बताया. फिर वे सभी अपने को सही और दूसरों को गलत बताते हुए आपस में लड़ने लगे.
जब कोई मंद बुद्धि लोग किसी वस्तु या विज्ञान के विषय में ज्ञान हुए बिना अपने को सही और दूसरों को गलत बताते हैं तो यह कहावत कही जाती है.
अंधों ने गांव लूटा, दौड़ियो बे लंगड़े. कोई मूर्खता पूर्ण अतिश्योक्ति कर रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
अंधों में काना राजा. जहाँ सभी लोग मूर्ख हों वहाँ थोड़ी सी अक्ल रखने वाले व्यक्ति की पूछ हो जाती है.