लोक साहित्य और कहावतें – एक परिचय
लोक साहित्य हर काल में, हर देश में और हर भाषा में पाया जाता है. अधिकतर लोक साहित्य उस समय उत्पन्न हुआ जब लिखने और पढ़ने के पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं थे. तब लोक साहित्य का प्रसार अधिकतर मौखिक रूप से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हुआ करता था.
लोक साहित्य के विविध रूप – प्रत्येक सभ्यता में लोक कथाएं, किम्वदंतियां व जनश्रुतियां किसी न किसी रूप में पाई जाती हैं. दादी नानी की कहानियां भी लोक कथाएँ होती हैं जो किसी समय बच्चों के लिए अत्यधिक आकर्षण का केंद्र हुआ करती थीं. मनोरंजन के बहुत से साधन सहज ही उपलब्ध होने के कारण अब बच्चों के लिए उनका महत्व नहीं रहा. चुटकुले और पहेलियां भी एक प्रकार का लोक साहित्य है जिन का प्रचार व प्रसार आजकल सोशल मीडिया के द्वारा बहुत अधिक हो रहा है. लोकगीत एक ऐसी विशिष्ट विधा है जिसमें लोक साहित्य व लोक संगीत का अनुपम मिश्रण देखने को मिलता है. लेकिन इन सबसे इतर लोक साहित्य में सबसे विशिष्ट स्थान कहावतों का है. कहावत का शाब्दिक अर्थ है ऐसी बात जो बार बार कही जाए. कहावत या लोकोक्ति में कोई अनुभव की बात बहुत संक्षेप में सरल लोक भाषा में कुछ ऐसे ढंग से कही जाती है कि जिस में मनोरंजन भी हो और कुछ सीख भी मिले.
कहावतों में निम्न विशेषताएं पाई जाती हैं –
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संक्षिप्तता – कहावत चाहे कविता के रूप में हो यह वाक्य रूप में अधिकतर कहावतें एक या दो पंक्ति की ही होती हैं. यदि कोई दोहा या चौपाई कहावत के रूप में प्रयोग हो रही हो तो भी आमतौर पर उसकी एक ही पंक्ति कहावत के रूप में प्रयोग करते हैं – जैसे प्रभुता पाइ काहि मद नाहीं, जहां काम आवे सुई कहा करे तलवार इत्यादि.
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भाषा – अधिकतर कहावतें तत्कालीन लोक भाषा में कही गई हैं. यही उनकी सर्वग्राह्यता का सबसे बड़ा कारण भी है और यही कारण है कि अधिकतर हिंदी कहावतें शुद्ध हिंदी में न होकर कबीरदास जैसी पंचमेल खिचड़ी भाषा में हैं.
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लयात्मकता – अधिकतर पुरानी कहावतें तुकांत कविता के रूप में कही गई हैं. इस गेयता के कारण कहावतों को याद करने और बोलने में बड़ी सहायता मिलती है.
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शिक्षा – अधिकतर कहावतों में कुछ अनुभवी व सयाने लोगों द्वारा समाज के सामान्य व्यक्तियों को कुछ सीख दी गई है. यह कहावतों का सबसे सकारात्मक पहलू है और यही उनके व्यापक प्रयोग का सबसे बड़ा कारण भी है.
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हास्य पक्ष व मनोरंजन – बहुत सी कहावतों में लोगों को सीख इस प्रकार दी गई है कि किसी को बुरा भी न लगे और सब का मनोरंजन भी हो जाए – जैसे मुर्गा बांग न देगा तो क्या सवेरा न होगा ऐसा कहकर मजाक में ही किसी को उसकी हैसियत बताई जा सकती है.
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कहावतों का उद्गम – अधिकतर कहावतें जनता के बीच में उत्पन्न हुई हैं. उन कहावतों को सबसे पहले किसने कहा और किस संदर्भ में कहा यह अज्ञात है. कुछ कहावतें लोक कथाओं पर आधारित हैं – जैसे अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा, सीख उसी को दीजिए जाको सीख सुहाए, सीख जो दीन्ही बांदरा चिड़िया का घर जाए इत्यादि. एक कहानी सुनाने के बाद बुद्धिमान लोग यह बताते हैं कि हमें उस से क्या सबक मिलता है. जब हम वह कहावत बोलते हैं तो उस की पूरी कहानी स्वत: ही उसमें समावेशित हो जाती है. कुछ कहावतों का उद्गम तो बहुत ही आश्चर्यजनक है जैसे एक कहावत है खुदा ने गंजे को नाखून नहीं दिए हैं. एक बहुत बिरली बीमारी होती है Anonychiya जिसमें जन्म से नाखून नहीं होते. ऐसे ही एक बीमारी होती है Alopecia totalis जिसमें सर पर या सारे शरीर पर बाल नहीं होते. ये बीमारियाँ जेनेटिक गड़बड़ी के कारण लाखों में किसी एक बच्चे में एक साथ भी हो सकती हैं. इस तरह के किसी बच्चे को देख कर किसी सयाने व्यक्ति ने मजाक में कहा होगा कि देखो इस गंजे को खुदा ने नाखून नहीं दिए हैं नहीं तो वह खुजा – खुजा के अपनी खोपड़ी लहुलुहान कर लेता. तभी से यह कहावत बनी होगी. महापुरुषों द्वारा कहे गए बहुत से अनमोल वचन व प्राचीन कवियों द्वारा रचित अनेक नीति संबंधी रचनाएं भी जनता के बीच में इस सीमा तक प्रचलित हो गई हैं कि वे कहावतें ही बन गयी हैं. उन महापुरुषों व कवियों ने जो कुछ भी कहा है या लिखा है वह जन हिताय ही लिखा है कॉपीराइट बनाने वह पैसा कमाने के लिए नहीं, इसलिए उनकी रचनाएं भी जनता की ही संपत्ति है. कोई भी संक्षिप्त कविता, नसीहत, अनमोल वचन, नीति संबंधी उपदेश इत्यादि यदि जनता की जबान पर आ गए हैं तो हम उन्हें कहावत ही मानते हैं. हिंदी को संस्कृत का विशाल साहित्य तो विरासत में मिला ही है उर्दू फारसी से भी बहुत सी कहावतें मिली हैं, जैसे विनाश काले विपरीत बुद्धि, यथा राजा तथा प्रजा संस्कृत की कहावतें हैं एवं पढ़ें फारसी बेचें तेल, नौ सौ चूहे खाए बिलैया हज को चली उर्दू फारसी की कहावतें हैं. ऐसी बहुत सी कहावतों का हिंदी में खूब उपयोग होता है.
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कहावतों का प्रसार – कहावतों के विषय में सबसे आश्चर्यजनक पक्ष यह है की प्राचीन काल में बिना समाचार पत्र, रेडियो व टीवी के तथा बहुत कम पुस्तकों के होते हुए भी वे इतने व्यापक रूप से लोक व्यवहार में कैसे आईं. निपट अनपढ़ लोग भी बहुत सी कहावतें जानते हैं उनका बिल्कुल ठीक उपयोग करते हैं.
कहावतें या लोकोक्तियाँ किसी भी भाषा व साहित्य के लिए धरोहर के समान हैं. इसके अतिरिक्त कहावतें समाज का दर्पण होती हैं. किसी भी समाज में व्याप्त मान्यताएं और विश्वास कहावतों में प्रतिबिंबित होते है. हिंदी भाषी क्षेत्रों में अनगिनत कहावतें बोली तो जाती हैं लेकिन लिखने में इनका प्रयोग बहुत कम होता है. समय के साथ इनका प्रयोग और कम होता जा रहा है और अब बहुत सी कहावतें लुप्त होने की कगार पर हैं. स्वर्गीय एस. डब्ल्यू. फैलन ने “ए डिक्शनरी ऑफ़ हिन्दुस्तानी प्रोवर्ब्स सेइंग्स एम्ब्लेम्स एफोरिज्म्स” नामक अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ में उस समय प्रचलित कहावतों का एक बहुत अच्छा संग्रह बनाया था. इसे कैप्टेन आर.सी. टेम्पल, लाला फ़क़ीरचंद जी एवं तत्पश्चात श्री कृष्णानंद गुप्त जी ने परिमार्जित कर के हिन्दुस्तानी कहावत कोश नाम से प्रकाशित किया है. डूंगरपुर नरेश महारावल स्व. विजय सिंह जी ने कहावत रत्नाकर नाम से एक अनुपम ग्रंथ बनाया था जिसमें उन्होंने हिंदी कहावतों के साथ उनके समकक्ष इंग्लिश, उर्दू, अरबी और फ़ारसी की कहावतें भी संकलित की हैं. हिंदी की मुख्यधारा के अतिरिक्त अनुसांगिक भाषाओं जैसे भोजपुरी, हरयाणवी, राजस्थानी भाषाओं में भी कहावतों के कुछ संकलन उपलब्ध हैं. इनमें से श्री गोविन्द अग्रवाल और श्री भागीरथ कानोड़िया द्वारा लिखित राजस्थानी कहावत कोश अपने आप में एक अनूठा संग्रह है.
आज के समय में जो भी संग्रह उपलब्ध हैं उनकी विषयवस्तु में कुछ बातें आज की पीढ़ी के लिए अप्रासंगिक हो गई हैं एवं हिंदी भाषा प्रेमियों के लिए हिंदी कहावतों का कोई एक वृहत संकलन उपलब्ध नहीं है. यह वेबसाइट इस कमी को पूरा करने हेतु एक छोटा सा प्रयास है. इन कहावतों को ‘हिंदी कहावत कोश’ नाम से पुस्तक रूप में प्रकाशित किया गया है जो कि Notion press, Amazon एवं Flipcart पर उपलब्ध है.
डॉ. शरद अग्रवाल
इस वेबसाइट पर लगभग दस हजार से अधिक हिंदी कहावतें संकलित हैं. किसी भी व्यक्ति के लिए सभी कहावतें एक साथ पढ़ पाना संभव नहीं है इसलिए प्रत्येक अक्षर से प्रारंभ होने वाली कहावतों के लिए अलग अलग पेज बनाए गए हैं. पाठक जिस अक्षर से आरंभ होने वाली कहावत पढ़ना चाहते हैं उस अक्षर को क्लिक कर के सीधे उसी पेज पर पहुँच सकते हैं.
त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श स ह क्षत्रज्ञ